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25.7.09

देख़ो आई रुत मस्तानी





देखो आई रुत मस्तानी

बादल से बरसा है पानी।

रिमझिम रिमझिम बरख़ा से लो

मिट्टी हो गई पानी- पानी।

देखो आई रुत मस्तानी।

पत्ते-पेड़ हुए हरियाले, भर गये देख़ो नदियां नाले।

धरती हो गई धानी धानी...

देखो आई रुत मस्तानी।

मेंढक ने जब शोर मचाया, मुन्ना देखो दौडा आया।

हँस हँस नाची गुडिया रानी..

देखो आई रुत मस्तानी।

बिजली चमकी बादल गरजे,रिमझिम रिमझिम बरख़ा बरसे।

आई एक तूफ़ानी॥

देखो आई रुत मस्तानी।

पपीहा पीऊ पीऊ गाता जाये,मोर अदाएं करता जाये।

करते हैं कैसी नादानी...

देखो आई रुत मस्तानी।

मैं पगली नाचुं और गाऊं, भीगुं तो ऐसे शरमाऊं।

बरखा ने दी पूरी जवानी..

देखो आई रुत मस्तानी।



पुलिस वाले भाग गए थे

जींद : सिंघ्वल गाँव में हुई वेदपाल की हत्या के मामले में मृतक वेदपाल की पत्नी सोनिया के पिता सहित चार लोगो को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। पुलिस आरोपियों से पूछताछ कर रही है। काबिल--ज़िक्र है कि गत २२ जुलाई की रात को मटार निवासी वेदपाल सिंघ्वल गाँव से अपनी पत्नी सोनिया को लेने गया था। उसके साथ वारंट ऑफिसर पुलिस वाले थे। इस दोरान ग्रामीणों ने हमला कर दिया, जिसको देख पुलिस वाले भाग गए थे और वारंट ऑफिस का पेर टूट गया था। ग्रामीणों ने वेदपाल को घेर लिया था और उसकी पीट-पीट कर हत्या कर दी थी। इस मामले मे पुलिस ने मृत वेदपाल की पत्नी सोनिया के पिता सहित चार लोगो को गिरफ्तार किया है। यहाँ बता दे की मटार निवासी वेदपाल और सिंघ्वल निवासी सोनिया ने चार महीने पहले भाग कर शादी की थी। उसके बाद पंचायत ने दोनों को जान से मारने का फरमान जारी किया था। मामला शांत होने पर सोनिया बाद में अपने घर गई थी। लेकिन वह वापस नही गई। जब वेदपाल उसे लेने गया तो पुलिस की मोजुदगी मे उसकी हत्या कर दी गई। यहाँ बता दे कि गत दिवस सोनिया ने कोर्ट मे पेश होकर वेदपाल के खिलाफ बयान दिए थे। जिसमे उसने कहा था कि वेदपाल उसे नशे की गोलिया खिलाता था और उसकी शादी भी नशे में हुई, उसे उसकी शादी के बारे में कुछ नही पता।

मिड -डे मील

पुराने से फटे टाट पर
स्कूल के पेड के नीचे
बैठे हैं कुछ गरीब बस्ती के बच्चे
कपडों के नाम पर पहने हैं
बनियान और मैले से कछे
उनकी आँखों मे देखे हैं कुछ ख्वाब
कलम को पँख लगा उडने के भाव
उतर आती है मेरी आँखों मे
एक बेबसी,एक पीडा
तोडना नही चाहती
उनका ये सपन
उन्हें बताऊँ कैसे
कलम को आजकल
पँख नही लगते
लगते हैँ सिर्फ पैसे
कहाँ से लायेंगे
कैसे पढ पायेंगे
उनके हिस्से तो आयेंगी
बस मिड -डे मीळ की कुछ रोटियाँ
नेता खेल रहे हैं अपनी गोटियाँ
इस रोटी को खाते खाते
वो पाल लेगा अंतहीन सपने
जो कभी ना होंगे उनके अपने
वो तो सारी उम्र
अनुदान की रोटी ही चाहेगा
और इस लिये नेताओं की झोली उठायेगा
काश कि इस
देश मे हो कोई सरकार
जिसे देश के भविष्य से हो सरोकार्


24.7.09

...हमारा इन्तेज़ार तो देखो

आओ ना.......इतने नखरे क्यों करती हो ?

मौसम तो देखो.............

मौसम की पुकार तो देखो

पूर्व से आती बयार तो देखो

हमारा प्यार न देखो, न सही

पर हमारा इन्तेज़ार तो देखो


देखो तो सही

कितने उतावले हैं हम तुम्हारे लिए

अरे यार ! बावले हैं हम तुम्हारे लिए

तुम हो कि नखरैल बनी हो.............


मेरे आँगन में आती ही नहीं हो

मेरा दामन सरसाती ही नहीं हो


माना कि तुम फ़िदा हो अपने ही हुस्न पर

वक्त लगता है तुम्हें दर्पण से हटने में

लेकिन याद रख ___

मौसम तो तुम्हारा गुलाम नहीं है

बरसे बिन तुम्हें भी आराम नहीं है


अपने प्यासों को गर प्यासा ही मार डालोगी

तो क्या करोगी

उस जल का

जो आँचल में भरा है ..............अचार डालोगी ?

अरी ओ घटा...............

अब तो घट जा............

तुझसे तो बादल ही भला

जो उमड़-घुमड़ आता है

और झट से बरस जाता है...............


आजा आजा ...नाटक मत कर..........

बन्द अपना फाटक मत कर


बरस जा...............

बरस जा...........

बरस जा.............


वरना गीतकार गीत लिखना बन्द कर देंगे तुझ पर

तोड़ कर फैंक देंगे

-काली घटा छाई प्रेम रुत आई वाला कैसेट

आजा मेरी जान आजा

अपने नाम की लाज बचाने के लिए आजा

धरती के सौन्दर्य को सजाने के लिए आजा

हम प्यासों की प्यास बुझाने के लिए आजा

आजा

आजा

आजा ...................................

ऐ काली घटा आजा.............................


-albela khatri
http://albelakhari.blogspot.com/

23.7.09

आ जाओ सांवरे.......!!

पथ पखारू, रह निहारु
जाओ सांवरे........जी जाओ सांवरे


रह ताकत, अखियाँ पत्थराई
तुम्हारे लिये है, दुनिया बिसराई
सुन लो अरज सांवरे
जाओ सांवरे........जी जाओ सांवरे


मैं हूँ तुम्हारी, तुझ में ही खोई
भूली हूँ सब कुछ, मेरा नही कोई
ले लो शरण सांवरे
जाओ सांवरे........जी जाओ सांवरे


जब से है जाना, मैं हूँ तुम्हारी
भूली हूँ सब कुछ , मेरा दोष नही कोई
दर्शन दो सांवरे
जाओ सांवरे........जी जाओ सांवरे


तुम्ही मेरा जीवन, तुम्ही मेरी साँसे
तुम्ही मेरी मुक्ति, तुम्ही मेरे सहारे
पार लगा दो सांवरे
जाओ सांवरे........जी जाओ सांवरे


काम , क्रोध, लोभ, मोह , माया सब मुझ से जुडा है
सृष्टि का कैसा ये जाल बिछा है
कठपुतली से नाच रहे हैं
मुक्ति दो सांवरे
जाओ सांवरे........जी जाओ सांवरे
जाओ सांवरे........जी जाओ सांवरे

22.7.09

कहो कैसी रही!!!!


क्यों कैसी रही?आज?
बड़ा ग़ुरूर था अपने आप पर!!
आज नर्म हो गये ना? वक़्त कब और कैसे अपना रुख़ बदलेगा किसी को पता नहिं है।
और फ़िर अहंकार तो सबसे बूरी बात है।
सब कोइ कहता था कि आप से ही मैं हुं। आप के बिना मेरा कोइ वज़ुद नहिं।
मैं हमेशाँ ख़ामोश रहा।
या कहो कि मेने भी स्वीकार कर लिया था कि आप के आगे मैं कुछ भी नहिं।
लोग कहते थे कि मेरा मिज़ाज ठंडा है और आप का गर्म।
ख़ेर मैं चुपचाप सुन लिया करता था क्योंकि आप की गर्मी से मैं भी तो डरता था।
भाइ में छोटा हुं ना!
पर आज मैं तुम पर हावी हो गया सिर्फ दो घंटों के लिये ही सही।
सारी दुनिया ने देख़ा कि आज तुम नर्म थे छुप गये थे एक गुनाहगार कि तरहाँ।
थोडी देर के लिये तो मुज़े बड़ा होने दो भैया!
पर एक बात कहुं मुज़े आप पर तरस रहा था जब लोग तमाशा देख रहे थे तब!
मैं आप पर हावी होना नहिं चाहता था।
पर मैं क्या करता क़ुदरत के आगे किसी का ना चला है ना चलेगा।
बूरा मत लगाना।
देख़ो आज आप पर आइ इस आपत्ति के लिये सभी दुआ प्रार्थना करते है।
लो मैने अपनी परछाई को आप पर से हटा लिया।
आपको छोटा दिखाना मुज़े अच्छा नहिं लगा।

क्योंकि मैं चंदा हुं और तुमसुरज

20.7.09

शब्द नित्य है या अनित्य??

आज मैं जो ये लेख डाल रहा हूँ ये परम आदरणीय माननीय अन्योनास्ती जी के अथक प्रयाश और मेहनत के कारण ही सम्भब हो सका (तेरा तुझे समर्पित क्या लागत है मोर )मैं ये लेख माननीय अन्योनास्ती जी के चरणों में समर्पित कर रहा हूँ
''शब्द नित्य है या अनित्य '' यह एक लम्बी और संभवता कभी न ख़त्म होने वाली चर्चा का विषय भी हो सकता है अपने अध्ययन में जो कुछ समझ और ग्रहण कर पाया उसके आधार पर मैं यहाँ पर कुछ कहने का प्रयास कर रहा हूँ
'' अनेक दार्शनिको का मत है क्यूँ कि शब्द प्रयास के फल स्वरूप उत्पन्न होता है अतः वह नित्य हो ही नहीं सकता और क्यूँ कि शब्द कि उत्पत्ति होती है ,,,,,,अतः ये विचार कि शब्द नित्य है गलत है' ''
.............शब्द इसलिए भी नित्य नहीं है क्यूँ कि एक निश्चित समय के बाद उसकी अनुभूति रुक जाती है ,,, उसका आभास ख़त्म हो जाता है ,,,,,, शब्द के वेग को घटाया और बढाया जा सकता है ........ यदि यह नित्य है तो ये नहीं होना चाहिए था ,,,,,,,,,,, इससे भी इसकी अनित्यता ही प्रमाणित होती है इस मत के दार्शनिको का कथन है कि हजारो प्राकट्य- कर्ता मिल कर भी '' किसी नित्य वस्तु ' को घटा या बढा नहीं सकते हैं ...... अब शब्द को नित्य स्वीकारने वाले दार्शनिको का मत भी जन लिया जाये
उनका मानना है उपरोक्त विचार कि शब्द नित्य नहीं अनित्य है स्वीकारना गलत है ,,,,,,,उनका मानना है कि शब्दों की उत्पत्ति नहीं होती केवल प्रकटीकरण होता है
क्यूँ कि शब्दों का प्रकटी - करण मात्र होता है , उत्पत्ति नहीं ------ इससे पता चलता है कि शब्द पहले से उपलब्ध थे अतः शब्द की नित्यता सिद्ध होती है,,,, इसे हम इस प्रकार समझ सकते है ,,, जब हम चकमक पत्थर के दो टुकडो को आपस में रगड़ कर अग्नि प्राप्त करते हैं तो अग्नि की उत्पत्ति नहीं होती बल्कि उसका प्रकटी - करण मात्र होता है
,,,, ,शब्द उर्जा है और उर्जा का विनाश नहीं होता उसकी अवस्था परिवर्तित होती रहती है
,,,, जिस प्रकार चकमक पत्थर में अग्नि, प्रकटी करण से पहले वह अग्नि उसमे उर्जा के रूप में स्थित थी ठीक इसी प्रकार उच्चारण - कर्ता के आभाव में शब्द अदृश्य रूप में विद्यमान था किसी समय विशेष पर जब शब्द की अनुभूति नहीं होती है तो यह नहीं समझना चाहिए की शब्द अनित्य है बल्कि उसका एक ही कारण है ,,, कि शब्द का उच्चारण करने वाली वस्तु का विषय (शब्द ) से संपर्क नहीं हो सका था ,,,,,,जिस प्रकार, ' क 'शब्द नित्य है इसे आने बाली पीढियां उसी रूप में जानेगी और पिछली पीढियां भी उसी रूप में जानती रही हैं -------- चाहे उसके स्थूल (भौतिक ) रूप में कितना ही परिवर्तन क्यूँ न हो जाये (क, k),,,,, शब्द का वेग कभी घटता या बढ़ता नहीं है बल्कि शब्द की पुनरावर्ती उसके वेग की तीव्रता या मंदता का अनुभव कराती है अतः शब्द नित्य है और हमारे पास कोई कारण नहीं की हम कह सके की शब्द अनित्य है ,,,,,,,अब दूसरे पक्ष द्वारा ये जोर देकर कहा जा सकता है,, कि शब्द वायु का परिवर्तित रूप है वायु के ही संग्रह - विग्रह से ही इसकी उत्पत्ति होती है ----- अतः हम मान सकते है कि वायु का अभिर्भाव ही शब्द के लिए हुआ है अब क्यूँ कि शब्द वायु से उत्पन्न होता है इस लिए ये नित्य नहीं हो सकता है (एक दार्शनिक ),,,,, मेरे विचार से उपरोक्त विचार ही सारहीन है क्यूँ कि अगर शब्द केवल वायु का परिवर्तन मात्र होता तो उसे व्यक्त करने के लिए किसी माध्यम की आबश्यकता नहीं पड़ती वह स्वतंत्र रूप से वायु से निर्मित हो सकता था परन्तु ऐसा नहीं होता है ; वायु स्वतंत्र रूप से कोई शब्द उत्पन्न नहीं करती है बल्कि

हम कह सकते है वायु एवं शब्द में सहअस्तित्व है जिस प्रकार ' दूध में माखन ' घुला होता है ठीक इसी प्रकार शब्द वायु में मिला होता है
--------दूध को विलोकर मक्खन प्राप्त किया जा सकता है ठीक इसी प्रकार मुख से जब शब्द का उच्चारण होता है तो वायु विक्षोभित होती है और हमें शब्द का आभास हो जाता है ,,परन्तु इसका ये मतलब भी नहीं है की वायु रहित क्षेत्र मेंशब्द नहीं होता बल्कि शब्द तो हर जगह विद्यमान रहता है, बस हमारी कर्नेंद्रियाँ ( श्रवणेन्द्रियाँ ) उसे ग्रहण नहीं करती है जब हम आंख बंद करके मनन करते है तब क्या वो अवस्था शब्द रहित होती है -------नहीं ऐसा नहीं होता ; परन्तु वायु से शब्द की उत्पत्ति की विचारकता समाप्त हो जाती है ------मनन करने से मन में अनेक तरह के विचार उत्पन्न होते है और वे शब्द का ही सम्मिश्रण है , अब चूंकि मन स्थूल शरीर का भाग नहीं होता अतः वहां वायु के होने का सवाल ही नहीं है
,,,,, चूंकि मन आत्मा का भाग है और आत्मा पञ्च तत्व से निर्मित नहीं होती अतः शब्द पञ्च तत्व से निर्मित नहीं होते है...... अब नयी व्याख्या के अनुसार हम कह सकते है की शब्द एक तरह का आकर्षण है या चुम्बकीय क्षेत्र है ,,,,जो समय अनुसार स्थान परिवर्तन करके नित्य रहता है -------अब ये सिद्धांत कि वायु के संग्रह- विग्रह से शब्द की उत्पत्ति होती है कितना भ्रामक है ,,,,,, हम वंशी बजाते है गिटार वजाते है और भी कितने तरीके के वाद्य यंत्र है उन सब में शब्द का प्रकटी करण ही होता है निर्माण नहीं वंशी में प्रवाहित वायु हमारे शरीर से उर्जा ग्रहण करके वेग प्राप्त करती है और छिद्रों से विक्षुद्रित होती है और शब्द का प्रकटीकरण होता है ///// शब्द पुनः विश्रित होकर वायु में घुल जाताहै यह शब्द का उर्जा रूप है .... इसी प्रकार अन्य वाद्य यंत्रो का भी यही गुण है
,,,,,,अब वेदांग का यह कथन पूर्णता सत्य प्रतीत होताहै '' वायु का निर्माण ही शब्द के लिए हुआ है '' क्यूँ कि बिना वायु के हमारी कर्ण- इन्द्रियां शब्द का आभास नहीं कर सकती है .... अतः ये आबश्यक है की शब्द के आभास के लिए वायु हो
इन उदाहरणों से स्पस्ट है कि शब्द अनादि , अनन्त और नित्य हैं इसी लिए वेदों को भी नित्य कहा गया है क्यूँ कि वेद न तो कभी उत्पन्न किये गए है और न ही उत्पन्न किये जा सकते है और न किसी व्यक्ति द्वारा किसी भी स्थिति में उनकी रचना ही की जा सकती है
. इसीलिए भगवान् श्री कृष्ण ने गीता में कहा है ''अक्षरम ब्रह्म स्वभावो अध्यात्म मुच्यते ''
शब्द को ही ब्रह्म बताया है अतः वेद की अपौरुषेयता पर संदेह करना ...... कठिन ही नहीं असंभव है ..... और ये विचार करना की वेद की रचना किसी ईश्वर या ब्रह्मा द्वारा हुई है गलत है यूँ कि वेद नित्य शव्दों संग्रह है किताब का नाम नहीं है ,
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