आप अपने क्षेत्र की हलचल को चित्रों और विजुअल समेत नेटप्रेस पर छपवा सकते हैं I सम्पर्क कीजिये सेल नम्बर 0 94165 57786 पर I ई-मेल akbar.khan.rana@gmail.com दि नेटप्रेस डॉट कॉम आपका अपना मंच है, इसे और बेहतर बनाने के लिए Cell.No.09416557786 तथा E-Mail: akbar.khan.rana@gmail.com पर आपके सुझाव, आलेख और काव्य आदि सादर आमंत्रित हैं I

28.7.09

एक सबक़ ईमानदारी का !!

अम्मी को “केंसर’ होने की वजह से अम्मी को लेकर मुझे बारबार
रेडीएशन के लिये बडौदा ओंकोलोजी डिपार्टमेंन्ट में जाना होता था। शरीर के
अलग अलग हिस्सों के “केन्सर” से जूझते लोग और उनकी मृत्यु को थोडा दूर
ले जाने कि कोशिश करते उनके रिश्तेदारों से मिलना लगा रहता था। हांलाकि
मैं भी तो अस्पताल का ही हिस्सा हुं।
पर ये तो “केन्सर”!!!! ओह!
मरीज़ से ज़्यादा मरीज़ के रिश्तेदारों को देखकर दिल में दर्द होता था। एक
तरफ “केन्सरग्रस्त” का दयाजनक चहेरा, दुसरी तरफ अपने की ज़िंदगी की एक
उम्मीद लिये आये उनके रिश्तेदार। बड़ा दर्द होता था। कोइ पेट के “केन्सर’
से जूझ रहा था , तो कोई गले के। कोई ज़बान के तो कोई गर्भाशय के! बडे बडे
लेबल लगे हुए थे “केन्सर” से बचने के या उसको रोकने के।
बडौदा जिले का ये बड़ा सरकारी अस्पताल है। यहाँ रेडीएशन
और् किमोथेरेपी मुफ़त में दी जाती है। देशभर से आये मरीज़ों का यहाँ इलाज
होता है। दूर दूर से आनेवाले मरीजों और उनके रिश्तेदारों के रहने के
लिये अस्पताल के नज़दीक ही एक ट्र्स्ट “श्रीमती इन्दुमति ट्र्स्ट”
ने व्यवस्था कर रखी है, जिसमें मरीज़ों तथा उनके एक रिश्तेदार को दो वक़्त
का नाश्ता और ख़ाना दिया जाता है।
रहीम चाचा और आएशा चाची भी वहीं ठहरे हुए थे।
आयशा चाची को गले का केन्सर था। हररोज़ के आने-जाने से मुझे उनके साथ बात
करना बड़ा अच्छा लगता था। कहते हैं ना कि दर्द बांटने से कम होता है मैं
भी शायद उनका दर्द बाँटने की कोशिश कर रही थी। घर से दूर रहीमचाचा
आयशाचाची अपने दो बच्चों को अपनी बहन के पास छोडकर आए थे। उनका आज
तैइसवाँ “शेक”(रेडीएशन) था।
“कल और परसों बस बेटी अब दो ही शेक बाक़ी
हैं ,परसों दोपहर, हम अपने वतन को इन्दोर चले जायेंगे।“ रहीमचाचा ने कहा।
तो अपने बच्चों के लिये आप यहां से क्या ले जायेंगे? मैने पूछा। ”बेटी
मेरे पास एक हज़ार रुपए है। सोचता हुं आमिर के लिये बैट-बाल और रुख़सार के
लिये गुडिया ख़रीदुंगा। बेटी अब तो काफ़ी दिन हो गये है। अल्लाह भला करे इस
अस्पताल का जिसने हमारा मुफ़्त ईलाज किया। भला करे इस ट्र्स्ट का जिसने
हमें ठहराया, ख़िलाया,पिलाया। और भला करे इस रेलवे का जो हमें इस बिमारी
की वज़ह से मुफ़्त ले जायेगी। अब जो पाँच सौं रुपये है देख़ें जो भी
ख़िलौने ,कपडे मिलेंगे ले चलेंगे।
उस रात को घर आनेपर मैने सोचा कि कल इन लोगों का आख़री दिन है मैं
भी इनके हाथों में कुछ पैसे रख़ दुंगी। दुसरे दिन जब मैं वहाँ पहुंची चाचा
चाची बैठे हुए थे। मैने सलाम कहकर कहा “चाची क्या ख़रीदा आपने? हमें भी
दिख़ाइये।“आज तो आप बडी ख़ुश हैं। “
चाची मुस्कुराई और रहीमचाचा के सामने शरारत भरी निगाह
से देख़ा। मैंने चाचा के सामने जवाब के इंतेज़ार में देख़ा। चाचा बोले” अरे
बेटी ये अल्लाह की नेक बंदी से ही पूछ।
क्यों क्या हुआ? मैने पूछा!
रहीमचाचा बोले” कहती है’ हमने मुफ़त ख़ाया पीया तो क्या हमारा
फ़र्ज़ नहीं कि हम भी कुछ तो ये ट्र्स्ट को दे जायें? अल्लाह भी माफ़ नहीं
करेगा हमें” बच्चों के लिये तो इन्दोर से भी ख़रीद सकते हैं। बताओ बेटी
अब मेरे पास बोलने के लिये कुछ बचा है?”
रहीम चाचा की बात सुनकर मैं चाची को देख़ती रही। अपने आप से शर्म आने
लगी मुझे।
हज़ारों की पगारदार, कमानेवाली मैं!! एक ग़रीब को कुछ पैसे देकर अपनी
महानता बताने चली थी। पर इस गरीब की दिलदारी के आगे मेरा सर झुक गया।
वाह!!!आयशा चाची वाह!!!
सलाम करता है मेरा सर तुम्हें जो तुम मुझे ईमानदारी का सबक़ दे गई।

27.7.09

शोभना ने पाया स्टेट में दूसरा स्थान.

जींद(हरियाणा) के हिंदू कन्या कॉलेज की स्टुडेंट शोभना ने कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी की B.A प्रथम वर्ष की वार्षिक परीक्षा में प्रदेश में द्वितीय स्थान पाया है। उसकी इस उपलब्धि पर कॉलेज प्रसाशन व परिजनों ने खुशी जाहिर की है। शोभना ने 400 में से 344 अंक प्राप्त किए। इससे पहले भी शोभना ने 10+2 की परीक्षा में जिले में प्रथम स्थान पाया था। वह भविष्य में इंग्लिश प्राध्यापिका बनना चाहती है। उसकी इस उपलब्धि पर कॉलेज स्टाफ के अलावा माता संतोष मित्तल, भाई हर्ष मित्तल, अजय मित्तल व भाभी सुमन मित्तल बेहद प्रसन्न हैं।

संतुष्टि किस बला का नाम है ?

कुछ दिनों पहले मुझे एक केस के सिलसिले मे चंडीगढ़ जाना पड़ गया। मेरे साथ कुछ और लोग भी थे. रास्ते में हम में से एक आदमी को करनाल के नजदीक मधुबन पुलिस लाईन में किसी काम से जाना था. हम दोपहर तक पुलिस लाईन के मुख्य गेट के बाहर पंहुच गए थे. जिस आदमी को वहां काम जाना था वह कार से उतरकर हमे यह कहकर अंदर चला गया कि तुम सभी यही रुको मै दस मिनिट मे काम निपटाकर आता हूँ। वह आदमी तो अपने काम से पुलिस लाइन मे चला गया और हम भी कार से उतरकर उसकी इंतजार करने लगे लेकिन गर्मी के कारण हमारी जान पर बन आई। कुछ ही मिनिटो मे हम पसीने से तरबतर हो गए. अधिक गर्मी को देखते हुए हमने फैंसला किया कि ए.सी. चलाकर कार मे बैठा जाए और पुलिस लाईन में गए साथी का इंतजार किया जाए . हम सभी कार मे ठंडक का आनंद लेने बैठे ही थे कि मेरी नजर पुलिस लाईन के मुख्य गेट के बाहर की दीवार पर चली गई। मैंने देखा कि उस दीवार पर एक आदमी बड़े आराम से सो रहा था। शायद वह कोई मजदूर होगा जो दोपहर मे आराम कर रहा होगा। लेकिन मै यह सोच सोचकर हैरान था कि वह आदमी इतनी गर्मी मे किस तरह से सो रहा है. मै सोच रहा था कि लोग बगैर पंखे, कूलर और ए.सी. के सोना तो क्या बैठ भी नहीं सकते. यह आदमी किस तरह से आराम से सो रहा है और वह भी खाली दीवार पर. लोगों को तो मोटे मोटे गद्दों पर भी नींद नहीं आती तो वह आदमी किस तरह से विपरीत परिस्थतियों में आराम फरमा रहा है . यह पूरा दृश्य देखकर मेरे दिमाग में सिर्फ़ एक ही सवाल उभरा कि संतुष्टि कहते किसे हैं और यह मिलती किन्हें है? एक व्यक्ति तो काँटों की सेज़ पर भी संतुष्ट है, जबकि दूसरा फूलों की सैय्या पर भी नही सो सकता। कोई तो बताये कि आख़िर संतुष्टि किस बला का नाम है?

26.7.09

खुद को तन्हा पाती हूँ ,,,(कविता)

-- दुनिया की इस भीड़ में,
खुद को तन्हा पाती हूँ ,,,
ना गम मेरा कम होता ,,,,,,
ना आंसू बहने रुकते है,,,,
हर उम्मीद छिन्न हो जाती है,
न कोई अपना लगता है,
सूरज की हर एक किरण,,,,
अब और अँधेरा फैला जाती ,,,,
बादल की हर एक चींख,
बस मेरी ही करुणा गाती ...
मीठे स्वर नहीं है भाते,,,
मुझको,
मातम का रंग ही भाता है,
बेबसी हसी उडाती है ,,,,
और खामोशी रुला जाती,,,,,
अब हर एक मौसम,
खोया-खोया सा लगता है,
चारो तरफ कुहासा है ...
सब सोया सोया सा लगता है
जाने क्यूँ उनसे रंजिश होती ,,
जिनको सब मिल जाता है ,,,
हमने तो बस खोया है ,,
और खोना ही भाता है,,
हम जिन्हें याद करते है हरपल,
क्या उनके ख्वावो में भी हम होते है
क्या कभी नमी होती है उन आँखों में ,,
जिनकी यादो में हम रोते है

क्या कभी नमीं होती है उन आंखों में ,,
जिनकी यादों में हम रोते हैं ???

इसी सवाल के साथ ,
अनु अग्रवाल

ऐसा सच सामने लाया जाए जो देश और समाज हित में हो !

एक टीवी चॅनल में इन दिनों प्रसारित हो रहे एक करोड़ ईनाम वाले "सच का सामना" कार्यक्रम पर सच अथवा हकीकत के सार्वजानिक किए जाने पर व्यापक बहस का मुद्दा बना हुआ है एक ओर जहाँ यह कार्यक्रम सेलिब्रिटी प्रतिभागी के निजी जीवन के विभिन्न पहलुओं की सच्चाई को परत दर परत खोलने की दिशा में आगे बढ़ता है वहीं स्टेज दर स्टेज यह कार्यक्रम बेहद निजता के करीब पहुंचता जाता है और इतने करीब कि जो मर्यादाओं और सीमाओं को लांघते हुए बेहद निजी जीवन की ओर झाँकने का प्रयास होता हैवह भी परिवार के बहुत निजी सहयोगी पत्नी , सम्मानीय माता पिता एवं भाई बहनों के साथ आम जनता के सामने जहाँ सारी सीमाओं को लांघते हुए जीवन मूल्य और सामाजिक रिश्तों की मर्यादा धराशाई होने लगती है कुछ ऐसी बातें जिनका परदे में रहना ही परिवार तथा समाज के लिए हितकर होता है, उन्हें उभारकर परिवार में बिखराव , मर्यादाओं की धज्जियाँ उडाना , आपसी विश्वाश और सम्मान की भावना का ध्वस्त होना एवं सामाजिक प्रतिष्ठा को दावं पर लगने की संभावनाओं की ओर अग्रसर होने से इनकार नही किया जा सकता है क्योंकि इसी अवधारणा पर आधारित कार्यक्रम अमेरिका , ग्रीस और कोलंबिया में भी प्रसारित हो चुके हैं और इसी प्रकार की परिणिति के चलते इन्हे बंद करना पड़ा है
इसमे प्रतिभागी का भाग लेने का आधार अलग-अलग हो सकता है जहाँ एक ओर इसमे एक करोड़ रुपये का लालच , विवादस्पद होकर प्रसिद्धि पाने की चाह और डूबते कैरियर को सहारा देने की चाह अथवा अभिव्यक्त ना हुई या अपूर्ण हुई चाहत के चलते दीवानगी माना जा सकता है वहीं दूसरी ओर कार्यक्रम को ज्यादा लोकप्रिय बनाने हेतु कार्यक्रम ज्यादा रोचक एवं स्टेज दर स्टेज ज्यादा निजता की परत उघाड़ कर उत्सुकता पैदा करने का प्रयास कहा जा सकता है साथ ही विवादस्पद रूप देकर टी आर पी बढ़ाने की चाह से भी इनकार नही किया जा सकता है
अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का नाम देकर इसके पूरे स्वरुप को पूरी तरह उचित नही कहा जा सकता है ऐसी अभिव्यक्ति जो परिवार और समाज के हित में नही हो उसे उचित नही कहा जा सकता है पारिवारिक रिश्ते को विघटन की ओर ले जाने और असामाजिक अवं अमर्यादित गतिविधियों के सार्वजनिक प्रदर्शन पारिवारिक संस्था और समाज की सेहत के लिए ठीक नही माने जा सकते हैं इस तरह के कार्यक्रम को सही रूप में प्रस्तुत किया जाए एवं अवैध संबंधों और निजता से जुड़े अमर्यादित सीमा रहित प्रश्नों को दरकिनार किया जाए तो ऐसे कार्यक्रम देश और समाज के हित में एक नई क्रांति का आगाज और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में एक नए युग का सूत्रपात कर सकते हैं झूठ पकड़ने की मशीन के प्रयोग से सच को सामने लाने की अवधारणा को अपनाते हुए कथित रूप से आरोपित व्यक्ति और देश में छुपे बहरूपियों द्वारा दिए जाने वाले साक्षारकात की हकीकत को सामने लाकर बेनकाब किया जा सकता है
आशा है भारतीय परिवेश के अनुरूप इस तरह के कार्यक्रम को सुसंस्कारित रूप में परिमार्जित एवं संसोधित कर नए रूप में प्रस्तुत किया जावेगा जो देश और समाज के हित के अनुरूप सर्वग्राह्य होगा

क्या प्रेम करने वालो को जीने का अधिकार नही?

हमारे देश मे सबको जीने का समान अधिकार दिया गया है। लेकिन आज भी कुछ रुढिवादिता हमारे समाज में पसरी हुई है, जिसे दूर करना जरुरी है। हरियाणा के जींद जिले के सिंघ्वल गाँव में जो घटना हुई. उससे सीधा कानून को चुनोती दी गई है और पुलिस भी खाप पंचायत के आगे झुकी नज़र आती है। मटार के रहने वाले वेदपाल का कसूर सिर्फ़ इतना था कि वह अपनी पत्नी को लेने गया था, जहाँ उसकी पीट-पीट कर हत्या कर दी गईक्या आज के समाज मे प्यार करना कोई जुर्म है? एक तरफ़ तो पुलिस लोगो की हिफाजत करने की बात करती तो दूसरी तरफ़ वेदपाल जैसे लोग जो पुलिस पर विश्वास कर जाते है, उन्हें मौत जैसी सजा मिलती है। क्या प्रेम करने वालो को जीने का अधिकार नही?
वेदपाल
की हत्या करने वाले सोनिया के पिता अन्य तीन लोगो को कोर्ट में पेश किया गया, जहाँ से उनको दो दिन के पुलिस रिमांड पर भेज दिया गया है।वहीं इस मामले में कईं सामाजिक संगठनों ने हाईकोर्ट मे अर्जी दायर की है और इंसाफ की मांग की है।

तुगलक की विरासत और हमारी-----

वर्तमान को इतिहास से जोडने में हमारी प्राचीन धरोहरे एक सेतु का काम करती हैं। आज जब हम अपनें वर्तमान के एश्वर्य पर गर्व करते है वही इतिहास की विशालता हमारे उस गर्व को धुमिल कर देती है।दिल्ली में जहाँ लाल किला, इंडिया गेट, कुतुब मीनार जैसी विख्यात ऐतिहासिक महत्व की जगह हैं। वही कम परिचित इमारतें जैसे हौज खास गाँव में तुगलक का सुन्दर किला भी एक देखने लायक जगह है। यह तुगलक शासन की एक महत्वपूर्ण निशानी है। १३९८ में तुगलक का बना हुआ यह किला ईडों-इस्लामिक शैली में बना हुआ है। शहर की भीड-भाड से दूर, शांत कोने में दम साधे खडी यह इमारत सबको आकर्षित करती है। बाहर से साधारण सी दिखने वाले इस किले की भव्यता भीतर जा कर ही पता चलती है। अंदर घने पेड बेहद खूबसूरत नजारा प्रस्तुत करते हैं। हौज खास का नामकरण " हौज खास" यानी शाही टँकी खिलजी के नाम पर पडा। गयासुदीन ने भारत के काफी बडे भाग पर शासन किया १३२० से १४१२ तक। तुगलक के शासन के खत्म होते ही दिल्ली कई राज्यों में बंट गई। अलाऊद्दीन खिलजी ने सिरी फोर्ट के निवासीयों के लिये इस पानी की टंकी को बनवाया था। इसके साथ ही तुगालाक का किला है और मदरसा भी है जहाँ से कई सारी सिढियाँ शाही टैक की ओर जाती हैं।
वर्तमान का आँखों देखा सच।
बेशक हौज खास गाँव आज एक अमीर इलाका माना जाता है। यहाँ सैलानियों का तांता लगा रहता है और यहाँ बुटीक, कलात्तमक, बेहतरीन रेस्तरा है।पर उपेक्षित से पडे इस नयनाभिराम किले की हालत को देखकर बेहद दुख होता है, जरूर हमारे देश में पुरातत्तव विभाग है पर अभी वह गहरी नीदं ले रहा है, जाने कब वह नींद से जागेगा और उपेक्षित पडे इस किले की सुध लेगा। इतिहास हमारा कल है जिस की नींव पर हमारा आज खडा हुआ है, पर जब इतिहास के पाँव लडखडा रहे हो तो हमें अपने आज पर इतना गर्व करना शोभा नहीं देता। सभी पुरानी इमारतें की सुरक्षा सरकार और आम आदमी का परम दायित्व होना चाहिये।