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15.5.10

बबुआ ! कन्या हो या वोट...............

भारतीय संस्कृति में दान को बड़े विराट अर्थॊं में स्वीकारा गया है। कन्यादान और मतदान दोनों में अनेक समानताएं  हैं। कन्यादान का दायरा सीमित होता है वहीं मतदान के दायरे में सारा देश आ जाता है । कन्यादान एक मांगलिक उत्सव है.......मतदान उससे भी बड़ा मांगलिक उत्सव है। कन्यादान करना एक उत्तरदायित्व है.....मतदान करना बड़ा उत्तरदायित्व है। कन्यादान का उत्तरदायित्व पूर्ण हो जाने पर मनको अपार शान्ति मिलती है। मतदान के उत्तरदायित्व पूर्ण हो जाने पर भी आप अमन-शान्ति चाहते हैं। कन्यादान के लिए लोग दर-दर भटक कर योग्य वर की तलाश करते हैं परन्तु मतदान के लिए क्या शीलवान (ईमानदार) पात्र  की तलाश करते हैं.......?  यह एक बड़ा प्रश्न है इसका उत्तर आप अपने सीने में टटोलिए अथवा इस लोकगीत में खोजिए!
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बबुआ ! कन्या हो या वोट...............

                                        -डॉ0 डंडा लखनवी

बबुआ ! कन्या हो या वोट ।
दोनों की गति एक है बबुआ ! दोनों गिरे कचोट ।।
                           õ
कन्या  वरै  सो पति कहलावै, वोट  वरै सो  नेता,
ये अपने  ससुरे को दुहते, वो जनता  को  चोट ।।
                           õ
ये    ढूंढें   सुन्दर    घर - बेटी, वे  ताकें   मतपेटी,
ये  भी अपनी गोट फसावै, वो   भी  अपनी गोट ।।
                           õ
ये  सेज  भी बिछावै अपनी, वो  भी  सेज बिछावै,
इतै बिछै नित कथरी-गुदड़ी उतै बिछै नित नोट ।।
                          õ
कन्यादानी   हर दिन रोवे, मतदानी   भी   रोवे,
वर  में हों   जो   भरे कुलक्षण, नेता  में  हों खोट ।।
                          õ
कन्या  हेतु  भला  वर ढूंढो, वोट  हेतु  भल  नेता,
करना  पड़े  मगज  में  चाहे  जितना घोटमघोट ।।
                       õ  õ      õ  õ

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