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4.1.10

36 कानूनों के बावजूद महिलाएं असुरक्षित

नई दिल्ली। कानून में संशोधन कानूनी ढांचे का इलाज तो कर सकता है, लेकिन सरकार उनका क्या करेगी जो कानून लागू ही नहीं करते?महिलाओं की हिफाजत के लिए पहले से मौजूद 36 कानूनों के बावजूद महिलाओं पर अत्याचार बढ़े हैं। खास बात है कि छत्तीस में से दस कानून विशेष तौर पर महिलाओं के लिए ही बने हैं। सरकार ने साल भर से लंबित अपराध प्रक्रिया संहिता संशोधन कानून लागू कर दिया है। इसमें बलात्कार पीडि़ता को और अधिकार मिले हैं तथा ऐसे अपराधों का ट्रायल दो महीने में पूरा करने का प्रावधान भी किया गया है। महिलाओं के खिलाफ यौन अपराध रोकने के लिए कुछ नए कड़े कानून भी लाने की तैयारी चल रही है। कार्यस्थ पर यौन उत्पीडऩ रोकना और यौन उत्पीडऩा के मामलों की सुनवाई के लिए विशेष अदालतें बनाने का प्रावधान करना सरकार के एजेंडे में है। महिलाओं के खिलाफ अपराधों को दो श्रेणियों में बांटा गया है। भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत दर्ज अपराध और विशेष कानून तथा स्थानीय कानूनों के तहत दर्ज अपराध आईपीसी में बलात्कार, अपहरण, दहेज हत्या दहेज प्रताडऩा, छेडख़ानी और लड़कियों की तस्करी के मामले हैं। विशेष और स्थानीय कानूनों में अनैतिक देह व्यापार (रोक) कानून, सती प्रथा रोक कानून हैं। इसके अलावा राज्य सरकारों ने भी जरूरत के हिसाब से कुछ कानून बनाए हैं, लेकिन असर वहां भी ढीला ही है। उदाहरण के तौर पर तमिलनाडु ने छींटाकशी रोकने के लिए अलग से कानून बना रखा है। महिला हितैषी कानूनों का दूसरा पहलू भी है। जिसमें अक्सर दुरुपयोग के आरोप लगते रहे हैं। विशेष कर दहेज कानून पर। इन सबके बावजूद, नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के 2003 से 2007 के आंकड़े बताते हैं कि बलात्कार, छेडख़ानी, यौन उत्पीडऩ, अपहरण और दहेज प्रताडऩा के मामले बढ़ रहे हैं।

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