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25.11.10

....लब्बैक अल्लाहुम्मा लब्बैक,




हज
एक ऐसी अजीमुश्शान इबादत और फ़रीज़ा जिसके हर अमल से इश्क और मोहब्बत और कुरबानी का इज़हार होता है एक मुसलमान के लिए अपने रब से मोहब्बत का इज़हार करते हुए दुनिया की हर चीज़ को छोडकर सिर्फ और सिर्फ दो बिना सीले हुए कपड़ो में यानी कफ़न पहने सच्चे आशिक बनाकर तमाम तकलीफों और मुसीबतों को खुशी के साथ बर्दाश्त करते हुए अल्लाह की खुशनूदी और रज़ा लेकर उसके दरबार में हाज़िर होता है उस पाक दरबार में अपने आपको अल्लाह की इबादत में समेट लेता है हज को आना एक फ़रीज़ा तो है ही हर मुसलमान इस पाक जगह पर पहोचने के लिए अपनी ज़िन्दगी की कमाई को इकठ्ठा करता है दुनिया की सारी जिम्मेदारियों से फारिग होकर अपने को अल्लाह के सुपुर्द करता है जो न किसी कर्जदार रहता है हाजी जब अपने को अहेराम में समेट लेता है उस पर तभी से सारी पाबंदीया शुरू हो जाती हैं
और हाजी अल्लाह से इन पाबंदीयों को निभाने का वादा करता है
जैसे की …..
१) अहेराम की हालात में किसी जीव-जंतु को मारना नहीं
२) शिकार करना नहीं है
३) हरी घास या पेड़ काटने नहीं हैं
४)खुशबु लगाना नहीं है
५) नाखुन काटना नहीं है
६) शारीरीक सम्बन्ध बनाना नहीं है
“लब्बैक अल्लाहुम्मा लब्बैक, लब्बैक ला शरीका लाका लब्बैक इन्नल हमदा व नेअमता लाका वाला मुल्क ला शरीक लाका
( हाज़िर हु अय अल्लाह आपका कोई शरीक नहीं मैं हाज़िर हु सारी तारीफें और सब नेअमते आपही के लिए हैं और सारी दुनिया पर हुकुमत आपकी ही है हुकुमत में आपका कोई शरीक नहीं
”दिया हुआ तो उसी का है मगर हक तो यहाँ है की हक अदा हो जाये”
”तूं नवाबा है तो तेरा करमा है वरना, तेरी ताअतों का बदला मेरी बंदगी नहीं’
मैं अपने आप को बहोत ही नसीबदार मानती हूँ की अल्लाह ने मुझ पर अपने करम की इनायत अता की

20.11.10

उल्‍टे अक्षरों से लिख दी भागवत गीता







उल्‍टे अक्षरों से लिख दी भागवत गीता
: मिरर इमेज शैली में कई किताब लिख चुके हैं पीयूष : आप इस भाषा को देखेंगे तो एकबारगी भौचक्‍क रह जायेंगे. आपको समझ में नहीं आयेगा कि यह किताब किस भाषा शैली में लिखी हुई है. पर आप ज्‍यों ही शीशे के सामने पहुंचेंगे तो यह किताब खुद-ब-खुद बोलने लगेगी. सारे अक्षर सीधे नजर आयेंगे. इस मिरर इमेज किताब को दादरी में रहने वाले पीयूष ने लिखा है. इस तरह के अनोखे लेखन में माहिर पीयूष की यह कला एशिया बुक ऑफ वर्ल्‍ड रिकार्ड में भी दर्ज है. मिलनसार पीयूष मिरर इमेज की भाषा शैली में कई किताबें लिख चुके हैं.
उनकी पहली किताब भागवद गीता थी. जिसके सभी अठारह अध्‍यायों को इन्‍होंने मिरर इमेज शैली में लिखा. इसके अलावा दुर्गा सप्‍त, सती छंद भी मिरर इमेज हिन्‍दी और अंग्रेजी में लिखा है. सुंदरकांड भी अवधी भाषा शैली में लिखा है. संस्‍कृत में भी आरती संग्रह लिखा है. मिरर इमेज शैली में हिन्‍दी-अंग्रेजी और संस्‍कृत सभी पर पीयूष की बराबर पकड़ है. 10 फरवरी 1967 में जन्‍में पीयूष बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं.
डिप्‍लोमा इंजीनियर पीयूष को गणित में भी महारत हासिल है. इन्‍होंने बीज गणित को बेस बनाकर एक किताब 'गणित एक अध्‍ययन' भी लिखी है. जिसमें उन्‍होंने पास्‍कल समीकरण पर एक नया समीकरण पेश किया है. पीयूष बतातें हैं कि पास्‍कल एक अनोखा तथा संपूर्ण त्रिभुज है. इसके अलावा एपी अधिकार एगंल और कई तरह के प्रमेय शामिल हैं. पीयूष कार्टूनिस्‍ट भी हैं. उन्‍हें कार्टून बनाने का भी बहुत शौक है.
piyushdadriwala 09654271007

31.10.10

प्रशासन ने लौहपुरूष् पटेल को भुलाया

सफीदों (हरियाणा) : सफीदों प्रशासन ने भारत के प्रथम उपप्रधानमंत्री एवं गृहमंत्री लौहपुरूष् सरदार बल्लभ भाई पटेल को अपने शदकोष् से ही मिटा दिया है। ऐसा लगता है प्रशासन को या तो देश के प्रति उनके योगदान की जानकारी नहीं है वरना नागक्षेत्र कीर्तन हाल में मनाए जा रहे संकल्प एवं सद्‌भावना दिवस के मौके पर उनको भूलने की यह चूक नहीं होती। 31 अटूबर को जहां पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी की पुण्यतिथि है वहीं भारत को एकता के सूत्र में बांधने वाले लौहपुरूष् सरदार बल्लभ भाई पटेल का जन्मदिवस भी होता है। इस अवसर पर इंदिरा गांधी को भावभीनी श्रृद्धाजंलि देने के बाद अगर सरदार बल्लभ भाई पटेल के जन्मदिन पर वहां मौजूद प्रशासन एवं अन्य अधिकारी उनके प्रति दो शब्द समर्पित करते जब सही मायनो में यह कौमी एकता एवं सद्‌भावना दिवस प्रतीत होता। प्रशासन द्वारा जारी प्रैस विज्ञप्ति में भी इंदिरा गांधी की पुण्यतिथि को छोड़कर सरदार बल्लभ भाई पटेल का जिक्र तक नहीं किया गया। अगर हमारें महापुरुषों के योगदान को इसी प्रकार गौण रखा जाएगा तो आने वाले पीढ़ियों से हम किसी भी प्रकार की कौमी एकता एवं सद्‌भावना की उमीद नहीं कर सकते है।

खुले में शौच करने वालों पर पड़ेगी बैटरी की रौशनी

गाँवों में स्वच्छता रखने के लिए प्रशासन की कवायद
सफीदों (हरियाणा) : कागजी उपलधियों व शौचालयों के निर्माण मे हेराफेरियों के लिए पिछले कई सालों से चर्चित रहे सपूर्ण स्वच्छता अभियान के प्रति जिला जींद प्रशासन ने फिर से जागा है। जब सपूर्ण स्वच्छता के लिए प्रचार से काम नहीं चला तो अब जिला प्रशासन को केवल बैटरी का ही सहारा रह गया है। खुले में शौच जाने की आदत से मजबूर ग्रामीणों के लिए बुरी खबर है। जिला प्रशासन द्वारा जिले को साफ और स्वच्छ बनाए रखने के लिए चलाए गए सपूर्ण स्वच्छता अभियान के तहत ग्राम स्तर पर बनाई गई निगरानी कमेटियों को एक बार फिर सक्रिय किया गया है। खुले में शौच जाने की प्रथा को रोकने के लिए जिला प्रशासन द्वारा ग्राम स्तर पर बनाई गई कमेटी के सदस्यों को प्रत्येक गांव में पांच टोपी, पांच बैटरी तथा पांच सीटियों की किट उपलध करवा दी गई है। इन कमेटियों के सदस्य सुबह व शाम गांव में खुले में शौच जाने वाले लोगों पर नजर रखेंगे और उन्हें ऐसा करने से रोकेंगे।
गौरतलब है कि गांवों मे अनेक गरीब परिवारों के पास घर मे शौचालय उपलध नहीं है और इनकी महिलाएं गांव के आसपास शौचादि के लिए विवश हैं। अतिरिक्त उपायुक्त डा० जे गणेशन ने इस बारें बताया कि खुले में शौच जाने की प्रथा को रोकने एवं सपूर्ण जिले को स्वच्छ करने के उदेश्य से ग्रामीण क्षेत्रों में घरों में शौचालय निर्माण कार्य जारी हैं।

23.10.10

भैंसा बना क्षेत्र में चर्चा का विषय


सफीदों, (हरियाणा) : हरियाणा के सफीदों विधानसभा क्षेत्र के गांव रत्ताखेड़ा में रहने वाले किसान राममेहर सिंह का अढ़ाई साल का मुर्राह नस्ल का भैंसा शेरू अपनी कद काठी तथा नस्ल के साथसाथ अपनी लगी अढ़ाई लाख रुपए की कीमत के कारण आसपास के क्षेत्र में आकर्षण का केंद्र बना हुआ है लेकिन भेंसें के मालिक ने अपने पशुबाड़े की शान तथा ग्रामीणों के आग्रह पर उसे बेचने से मना कर दिया। शेरू अब गांव की शान बना हुआ है। भैंसे के मालिक राममेहर सिंह ने बताया कि शेरू की खुराक में हर रोज छः लीटर दूध, चार किलोग्राम चना, दो किलोग्राम बिनौला तथा दो किलोग्राम गेहूं शामिल है। शेरू की लंबाई तेरह फुट तथा ऊंचाई साढ़े पांच फुट और वजन पांच सौ किलोग्राम है। कुछ दिन पूर्व एक पशुपालक ने शेरू की कीमत अढ़ाई लाख रुपए लगाई थी लेकिन ग्रामीणों द्वारा शेरू के बेचे जाने का आग्रह किए जाने पर उसने बेचने से मना कर दिया। उसने बताया कि शेरू मुर्राह नस्ल का भैंसा है। शेरू को मुर्राह नस्ल संरक्षण अभियान के तहत पशु पालन विभाग ने संरक्षित किया हुआ है और उसे टैग लगाया गया है। समयसमय पर पशुपालन विभाग के चिकित्सक शेरू की जांच के लिए आते रहते हैं। गांव के सरपंच सुशील सैनी ने बताया कि शेरू अब गांव की शान है। शेरू की लगी कीमत से केवल पशुपालक को याति मिली बल्कि गांव को भी पहचान मिली है। शेरू ग्रामीणों के लिए प्रेरणा बना हुआ है कि अच्छी किस्म के पशु पालकर अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। पशु चिकित्सक सुशील रोहिला ने बताया कि शेरू को पशुपालन विभाग द्वारा टैग किया गया है। शेरू मुर्राह नस्ल का उत्तम भैंसा है। उसके सिमंस पशुपालन विभाग द्वारा अन्य किसानों को उपलध करवाए जाते हैं। अच्छे किस्म के पशु पालना पशुपालको के लिए लाभ का सौदा है।

13.10.10

ग़ज़ल 

















बेसबब दर्द कोई बदन में
यूं पैदा होती नहीं प्यारे.

गर समझ होती दर्द की
चारागर की जरूरत होती नहीं प्यारे.

गरीब होना क्या गुनाह है
अमीरी किसी की करीबी होती नहीं प्यारे.

सुन ओ मेरे वतन से रश्क करने वाले
मां हमारी रश्क के बीज बोती नहीं प्यारे.

कितना बढाऊँ हाथ आशनाई का '' प्रताप ''
एक हाथ से तो ताली बजती नहीं प्यारे.

प्रबल प्रताप सिंह

11.10.10

#iodgc 2010 ECM Social Media Excitement

9.9.10

महिला खेत पाठशाला का तेरहवां सत्र
















हालाँकि आज के दिन एक तरफ तो राष्ट्रिय हड़ताल का आह्वान था तथा दूसरी तरफ सुबह सात बजे से ही तेज़ बारिस को रही थी. फिर भी आज दिनांक 7 /9 /10 को निडाना गावँ में चल रही महिला खेत पाठशाला के तेरहवें सत्र का आयोजन किया गया. सत्र का आरंभ रनबीर मलिक, मनबीर रेड्हू व डा.कमल सैनी के नेतृत्व में महिलाओं द्वारा अपने पिछले काम की विस्तार से समीक्षा तथा दोहराई से हुआ. डा.कमल सैनी ने लैपटाप के जरिये महिलाओं को उन तमाम मांसाहारी कीटों के चमचमाते फोटो दिखाए जो अब तक निडाना के खेतों में पकड़े जा चुके हैं. इनमे लोपा, छैल, डायन, सिर्फड़ो व टिकड़ो आदि छ किस्म की तो मक्खियाँ ही थी. इनके अलावा एक दर्जन से अधिक किस्म की लेडी-बीटल, पांच किस्म के बुगड़े, दस प्रकार की मकड़ी, सात प्रजाति के हथजोड़े व अनेकों प्रकार के भीरड़-ततैये-अंजनहारी आदि परभक्षियों के फोटो भी महिलाओं को दिखाए गये. गिनती करने पर मालुम हुआ कि अभी तक कुल मिलाकर सैंतीस किस्म के मित्र कीटों की पहचान कर चुके हैं जिनमें से छ किस्म के खून चुसक कीड़े व इक्कतीस तरह के चर्वक किस्म के परभक्षी हैं. स्लाइड शौ के अंत में महिलाओं को मिलीबग को कारगर तरीके से ख़त्म करने वाली अंगीरा, फंगिरा व जंगिरा नामक सम्भीरकाओं के फोटो दिखाए गये. इस मैराथन समीक्षा के बाद महिलाएं कपास की फसल का साप्ताहिक हाल जानने के लिए पिग्गरी फार्म कार्यालय से निकल कर राजबाला के खेत में पहुंची. याद रहे डिम्पल की सास का ही नाम है-राजबाला. आज निडाना में क्यारीभर बरसात होने के कारण राजबाला के इस खेत में भी गोडै-गोडै पानी खड़ा है. इस हालत में जुते व कपड़े तो कीचड़ में अटने ही है. इनकी चिंता किये बगैर महिलाएं अपनी ग्रुप लीडरों सरोज, मिनी, गीता व अंग्रेजो के नेतृत्व में कीट अवलोकन, सर्वेक्षण, निरिक्षण व गिनती के लिए कपास के इस खेत में घुसी. महिलाओं के प्रत्येक समूह ने दस-दस पौधों के तीन-तीन पत्तों पर कीटों की गिनती की. इस गिनती के साथ अंकगणितीय खिलवाड़ कर प्रति पत्ता कीटों की औसत निकाली गई. महिलाओं के हर ग्रुप ने चार्टों क़ी सहायता से अपनी-अपनी रिपोर्ट सबके सामने प्रस्तुत की. सबकी रिपोर्ट सुनने पर मालूम हुआ कि इस सप्ताह भी राजबाला के इस खेत में कपास की फसल पर तमाम नुक्शानदायक कीट हानि पहुँचाने के आर्थिक स्तर से काफी निचे हैं तथा हर पौधे परकड़ियों की तादाद भी अच्छी खासी है. इसके अलावा लेडी-बीटल, हथजोड़े, मैदानी-बीटल, दिखोड़ी, लोपा, छैल, व डायन मक्खियाँ, भीरड़, ततैये व अंजनहारी आदि मांसाहारी कीट भी इस खेत में नजर आये हैं. थोड़ी-बहुत नानुकर के बाद सभी महिलाएं इस बात पर सहमत थी कि इस सप्ताह भी कपास के इस खेत में राजबाला को कीट नियंत्रण के लिए किसी कीटनाशक का छिड़काव करने की आवश्यकता नही है. यहाँ गौर करने लायक बात यह है कि रानी, बिमला, सुंदर, नन्ही, राजवंती, संतरा व बीरमती आदि को अपने खेत में कपास की बुवाई से लेकर अब तक कीट नियंत्रण के लिए कीटनाशकों के इस्तेमाल की आवश्यकता नहीं पड़ी. इनके खेत में कीट नियंत्रण का यह काम तो किसान मित्र मांसाहारी कीटों, मकड़ियों, परजीवियों तथा रोगाणुओं ने ही कर दिखाया. ठीक इसी समय कृषि विभाग के विषय विशेषग डा.राजपाल सूरा भी महिला खेत पाठशाला में आ पहुंचे. रनबीर मलिक ने खेत पाठशाला में पधारने पर डा.राजपाल सूरा का स्वागत किया. परिचय उपरांत, डा.सूरा ने इन महिलाओं से कीट प्रबंधन पर विस्तार से बातचीत की. उन्होंने बिना जहर की कामयाब खेती करने के इन प्रयासों की भूरी-भूरी प्रशंसा करते हुए, महिलाओं से इस काम को अन्य गावों में भी फैलाने की अपील की. इसके बाद अंग्रेजो ने महिलाओं को सेब वितरित किये. ये सेब डा.सूरा स्वयं के खर्चे से जींद से ही खरीद कर लाये थे. जिस समय महिलाएं सेब खा रही थी ठीक उसी समय मनबीर व रनबीर कहीं से गीदड़ की सूंडी समेत कांग्रेस घास की एक ठनी उठा लाये. इसे महिलाओं को दिखाते हुए, उन्होंने महिलाओं को बताया कि यह गीदड़ की सूंडी वास्तव में तो मांसाहारी कीट हथजोड़े की अंडेदानी है. इसमें अपने मित्र कीट हथजोड़े के 400 -500 अंडे पैक हैं. सत्र के अंत में डा.सुरेन्द्र दलाल ने मौसम के मिजाज को मध्यनज़र रखते हुए इस समय कपास की फसल को विभिन्न बिमारियों से बचाने के लिए किसानों को 600 ग्राम कापर-आक्सी-क्लोराइड व 6 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन का 150-200 लिटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करने की सलाह दी.

3.9.10


ग़ज़ल

जबसे बड़ों ने बड़प्पन छोड़ दिया
बच्चों ने सम्मान करना छोड़ दिया.

बंद कमरों में ज्ञान किसको मिला है
बच्चों ने अब कक्षा में बैठना छोड़ दिया.

बड़े होने की तमन्ना में
बच्चों ने बचपना छोड़ दिया.

वैश्वीकरण ने ऐसा मौसम बदला
बच्चों ने घर का खाना छोड़ दिया  

बराबरी के सिंहासन की होड़ में 
सबने विनम्रता का गहना छोड़ दिया.

कैसे गुजरेगी उम्र की आखिरी शाम " प्रताप "
अपनों ने सहनशीलता ओढ़ना छोड़ दिया.

प्रबल प्रताप सिंह