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23.10.09

नया साल नया कार्यक्रम का आयोजन

सिरसा(प्रैसवार्ता) हरियाणा स्टेट ब्लड ट्रांसफूजन कौंसिल और इण्डियन रैडक्रास सोसाइटी द्वारा 24 व 25 अक्टूबर को स्थानीय सी एम के नैशनल गल्र्ज कॉलेज में नया साल नया सवेरा कार्यक्रम आयोजित करवाया जाएगा जिसमें रक्तदान की प्ररेणा को लेकर प्रशिक्षण कैम्प एवं हेमकोन 09 विषय पर सेमिनार का आयोजन करवाया जाएगा। सेमिनार में पहुंचने वाले व्यक्तियों का रजिस्टै्रशन करके ब्लड ग्रुप की पहचान भी की जाएगी।
इण्डियन रैडक्रास सोसाइटी जिला सिरसा ब्रांच के पै्रजिडेंट एवं उपायुक्त युद्धवीर सिंह ख्यालिया ने यह जानकारी देते हुए बताया कि रक्तदान से बढ़ कर कोई दान नहीं है और सिरसा जिला रक्तदान में अपनी अलग ही पहचान रखता है। जिला में आयोजित दो दिवसीय कार्यक्रम को एक पर्व की भांति मनाया जा रहा है और इस सेमीनार में प्रदेश भर से सैकड़ों रक्तदान प्ररेक शिरकत करेंगे। उन्होंने बताया कि हमारा उद्देश्य है कि कोई भी जरूरतमंद रक्त के बिना न रहे और इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए लोगों को खास कर युवाओं को रक्तदान करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है।
श्री ख्यालिया ने आज की तैयारियों को जायजा लेने के लिए कार्यक्रम स्थल का दौरा किया और विभिन्न विभागों के अधिकारियों को दिशा-निर्देश दिए और जिम्मेदारियां सौंपी। उन्होंने कहा कि समारोह स्थल पर बिजली, पानी, सफाई, भोजन आदि की पूरी व्यवस्था होगी और शहर के विभिन्न प्रवेश मार्गों पर स्वागत व साईन बोर्ड लगाएं जाए ताकि कार्यक्रम स्थल तक पहुंचने में किसी प्रकार की समस्या न आए। उन्होंने कहा कि इस कार्यक्रम को लेकर जिला के लोगों खास कर समाज सेवी संस्थाओं में काफी उत्साह है और वे कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए हर संभव सहायता कर रहे हैं। रक्क्तदान हो लेकर आयोजित किए जाने वाले इस दो दिवसीय समारोह के दौरान मुख्य मार्गों व सी एम के कॉलेज में भी पुलिस द्वारा सुरक्षा के खास इंतजात किए जाएंगे।
उन्होंने बताया कि स्वास्थ्य विभाग व कॉलेज प्रशासन को समारोह में आने वाले व्यक्तियों का रजिस्ट्रैशन किए जाने की जिम्मेवारी सौंपी गई हैं। रजिस्ट्रैशन करने के लिए कॉलेज परिसर में 20 कॉऊंटर स्थापित किए जाएंगे। रजिस्ट्रैशन करते समय ऐसे लोगों के ब्लड ग्रुपिंग की पहचान भी की जाएगी जिन्होंने अपने ब्लड ग्रुप की जांच अभी तक नहीं करवाई है। रजिस्टै्रशन के समय डिजीटल कैमरों की व्यवस्था होगी जिनके माध्यम से ब्लड ग्रुपिंग के सारे रिकॉर्ड को कम्प्यूटरीकृत किया जा जाएगा। उन्होंने बताया कि कॉलेज 24 व 25 अक्टूबर को कॉलेज में बने एस एन गंड़ा आडिटोरियम के अतिरिक्त 25 अक्टूबर को कॉलेज में बने अन्य कांफैं्रस हॉल में हेमकोन विषय पर विचार गोष्ठी होगी। उन्होंने बताया कि कॉलेज में 10 कमरों में अलग-अलग जोन बनाए गए है जहां रक्तदान विषय पर विचार-विमर्श कर सकेंगे। उन्होंने बताया कि शनिवार को कार्यक्रम दो चरणों में बांटा गया है पहला चरण 10 से दोपहर 1 बजे तक चलेगा जबकि दूसरा चरण 2 से सांय 5 बजे तक चलेगा।
इस अवसर पर उपमण्डल अधिकारी नागरिक एस. के. सेतिया, सी एम ओ प्रताप सिंह धवन व विभिन्न विभागों के अधिकारियों सहित शहर के समाज सेवी संस्थाओं के प्रतिनिधि उपस्थित थे।


कांग्रेस सरकार लोगों का विश्वास खो चुकी है: ओमप्रकाश चौटाला

चंडीगढ़(प्रैसवार्ता) इंडियन नेशनल लोकदल विधायक दल ने इनेलो प्रमुख व पूर्व मुख्यमन्त्री चौधरी ओमप्रकाश चौटाला को इनेलो विधायक दल का नेता चुना है। पार्टी विधायक दल की चंडीगढ़ में हुई एक बैठक में इनेलो प्रमुख को सर्वसम्मति से पार्टी विधायक दल का नेता चुना गया और पार्टी की आगामी रणनीति बनाने व इस सम्बन्ध में लिए जाने वाले आगामी जरूरी फैसलों के लिए श्री चौटाला को सर्वसम्मति से अधिकृत करते हुए सभी अधिकार प्रदान किए गए।
पूर्व मुख्यमन्त्री ने पार्टी विधायकों द्वारा उन्हें विधायक दल का नेता चुने जाने पर नवनिर्वाचित विधायकों द्वारा उनमें विश्वास व्यक्त किए जाने पर आभार जताते हुए इनेलो विधायकों को चुनाव जीतने पर बधाई दी और प्रदेश की जनता का आभार जताते हुए इनेलो कार्यकत्र्ताओं द्वारा विधानसभा चुनाव अभियान के दौरान की गई जी-तोड़ मेहनत के लिए उन्हें धन्यवाद देते हुए आभार जताया। इनेलो प्रमुख ने कहा कि प्रदेश की जनता द्वारा कांग्रेस सरकार के खिलाफ फतवा दिया गया है और चुनाव नतीजे सीधे-सीधे इनेलो के पक्ष में राज्य की जनता का जनादेश है।
इनेलो प्रमुख ने पार्टी के नवनिर्वाचित विधायकों से अपने-अपने विधानसभा क्षेत्रों में जाकर लोगों का आभार जताने और पार्टी कार्यकत्र्ताओं को धन्यवाद देने के लिए व्यापक जनसम्पर्क अभियान व सभी गांवों और वार्डों का दौरा करने को कहा है। पूर्व मुख्यमन्त्री ने कहा कि कांग्रेस सरकार प्रदेश के लोगों का विश्वास खो चुकी है और उसे सत्ता में बने रहने का कोई नैतिक व लोकतान्त्रिक अधिकार नहीं है। बैठक में पार्टी के सभी नवनिर्वाचित विधायकों ने हिस्सा लिया।
श्री चौटाला ने इससे पहले राज्यपाल को लिखे एक पत्र में कहा कि 11वीं विधानसभा का कार्यकाल मार्च 2010 में पूरा होना था लेकिन तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने प्रदेश की जनता से नया जनादेश प्राप्त करने के लिए छह महीने पहले चुनाव कराने का फैसला लिया था। इनेलो प्रमुख ने कहा कि 13 अक्तूबर को हुए चुनाव के घोषित नतीजों से यह बात साफ हो गई है कि प्रदेश की जनता ने कांग्रेस को बहुमत नहीं दिया है। कांग्रेस को मात्र 40 सीटें मिली हैं और कांग्रेस के खिलाफ 50 विधायक जीतकर आए हैं। इन नतीजों से यह भी स्पष्ट जाहिर होता है कि प्रदेश की जनता ने कांग्रेस के विरुद्ध जनादेश दिया है।
इनेलो प्रमुख ने राज्यपाल को लिखे पत्र में कहा कि प्रदेश के संविधानिक मुखिया होने के नाते आप सबसे पहले कांग्रेस के विकल्प के रूप में किसी अन्य राजनीतिक दल/दलों को गैर कांग्रेस सरकार गठित करने का अवसर प्रदान करें ताकि प्रदेश की जनता के जनादेश का सही मायने में पालन और सम्मान हो सके। इनेलो प्रमुख ने राज्यपाल को लिखे पत्र में यह भी कहा कि इस समय प्रदेश में एक बहुत ही दुखद घटनाक्रम चल रहा है जिसके तहत कांग्रेस पार्टी जनादेश खोने के बाद नवनिर्वाचित निर्दलीय व अन्य छोटे दलों के विधायकों की खरीद-फरोख्त (हॉर्स ट्रेडिंग) में जुटी हुई है। इस तरह के ओछे और अनैतिक हथकंडे अपनाकर कांग्रेस पार्टी लोकतन्त्र एवं जनादेश का गला घोंट रही है। पत्र में राज्यपाल से कहा गया है कि इस प्रकार की घटनाओं को रोक पाना केवल राज्यपाल के हस्तक्षेप से ही सम्भव है और राज्यपाल से यह भी आग्रह किया गया है कि वे अपने संविधानिक कर्तव्यों और पद की गरिमा को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस पार्टी के विरुद्ध मिले जनादेश का सम्मान करते हुए गैर कांग्रेस दलों पर आधारित सरकार का अविलम्ब गठन करेंगे।

लो क सं घ र्ष !: पाकिस्तानी कहानी

भगवान दास दरखान -2
बलूच नवाज़ सरायकी रईसों की परम्परा के मुताबिक़ जब इस तरह वेठ मारकर बैठ गया तो एक मुलाज़िम ने हुक्क़ा ताज़ा करके रंगीन खाट के करीब स्टूल पर रख दिया। सरदार ने हुक्के की नै सँभाली और होंठों में दबाकर कश लगाने लगा। तम्बाकू की खुशबू कमरे में फैलने लगी। मालिशिया फ़ौरन सरदार मज़ारी की पीठ के पास पहुँचा और तेज़ी के साथ उसके कन्धे और कमर हौले-हौले दबाने लगा।
कचहरी की कार्रवाई शुरू हुई, तो चाकर ख़ाँ सरगानी ने, जो पेशकार का फ़र्ज़ अदा कर रहा था, पहला मुक़दमा सुनवाई के लिए पेश किया। मुलाज़िम गड़रिया था और सरदार के सामने गरदन झुकाये सहमा हुआ खड़ा था। उसके खिलाफ़ यह इल्ज़ाम था कि उसकी रेवड़ की दो भेड़ें सरदार मज़ारी के एक खेत में घुस गयी थीं और मक्की के कई पौधों को नुकसान पहुँचाया था। गड़रिया गिड़गिड़ाकर माफ़ी माँगता रहा, क़समें खाकर यक़ीन दिलाता रहा कि आइन्दा ऐसी ग़लती नहीं होगी, मगर उसकी एक न सुनी गयी। सरदार की नज़र में जुर्म की नौइयत संगीन थी। लिहाजा उसे जुर्माने में पाँच भेडें़ मालखा़ने में पहुँचाने के अलावा तीन महीने जेल में कै़द रखने की सजा़ दी गयी।
चाकर खा़ँ सरगा़नी ने दबी जुबान से सूचित किया, ‘‘सई सरकार, जेल में जगह नहीं है।’’
‘‘जेल में जगह नहीं, तो मुजरिम को सुक्के खोह में डाल दिया जाये।’’ सरदार मजा़री ने हुक्म सुनाया, ‘‘जब तक जेल में जगह नहीं है, सजा़ पानेवाले तमाम कै़दियों को सुक्के खोह में डाल दिया जाये।’’
सुक्के खोह अन्धे कुएँ थे। ये चैड़े मुँहवाले ऐसे कुएँ थे, जो कभी सिंचाई के काम आते थे। मगर सूख जाने की वजह से न उनमें अब पानी था, न उसके निकलने की कोई संभावना थी। सरदार की निजी जेल जब कै़दियों से भर जाती और उसमें कोई गुंजाइश न रहती, तो क़ैदियों को सुक्के खोह में बन्द कर दिया जाता। वे अन्धे कुएँ में उठते-बैठते, सोते, खाना खाते और वहीं पेशाब-पाखाने से फ़ारिग़ होते। न उन्हें किसी से मिलने की इजाज़त होती, न बात करने की। खाना-पानी निश्चित वक़्त पर सुबह शाम रस्सी में बाँधकर पहुँचा दिया जाता। जाड़ा हो, गर्मी हो या बरसात, वे सुक्के खोह से बाहर न आते। अलबत्ता सर्दी के मौसम में कै़दियों को एक कम्बल दे दिया जाता और वह भी उनके घरवाले मुहैया करते। क़ैदियों को जो खाना दिया जाता, चाहे वे सरदार की निजी जेल में बन्द हों या सुक्के खोह में, उसकी की़मत भी सगे-सम्बन्धी ही अदा करते। अगर की़मत अदा न होती, तो कै़दियों को फा़का करना पड़ता। अक्सर कै़दी लगातार भूखों रहने से सिसक-सिसककर मर भी जाते। सुक्के खोह में साँप, बिच्छू और ऐसे ही ज़हरीले कीडे़-मकोडे़ भी होते, जो कभी-कभी कै़दियों की मौत की वजह बनते।
सरदार के फै़सला सुनाये जाने के बाद उस पर फौ़री तौर पर अमलदरामद शुरू हो गया। जुर्माने की अदायगी और सुक्के खोह में कै़द करने की ग़रज से मुजरिम को खींचते हुए कचहरी से बाहर ले जाया गया। सरदार का फै़सला आखि़री और अटल फै़सला था। उसके खि़लाफ़ किसी भी अदालत में न उज्रदारी हो सकती थी न अपील।
चाकर ख़ान सरगानी ने दूसरा मुक़दमा पेश किया। मुक़दमा सरदार शहजो़र खाँ मजा़री के सामने पहली बार पेश नहीं किया गया था, उसकी सुनवाई लगभग चार महीने से जारी थी। अब तक कई पेशियाँ पड़ चुकी थीं। मुक़दमा ख़ासा पेचीदा ओर निहायत संगीन था। लिहाजा़ सरदार मजा़री मसलेहत से काम लेते हुए उसे जानबूझकर तूल दे रहा था, कि गुज़रते वक़्त के साथ-साथ फ़रीका़ें के दिलों में पाया जानेवाला शदीद ग़म व गुस्सा ठण्डा पड़ जाये और उसके फै़सले से हर फ़रीक़ इस तरह मुतमइन हो जाये कि दिलों से बैरभाव हट जाये।
यह पानी के बँटवारे का पुराना झगडा़ था। नौइयत यह थी कि फ़रीकै़न एक ही रूदकोही से अपनी फ़सलों कीे सिंचाई करते थे। रूदकोही के खड्ड में पानी का ज़खी़रा कम था और फ़सलों के लिए ज़रूरत ज़्यादा थी। अंजाम यह हुआ कि पानी के बँटवारे पर झगड़ा पैदा हुआ। ऐसे झगड़े उन बारानी इलाक़ों में अक्सर होते हैं, जहाँ खेतों को रूदकोहियों से पानी दिया जाता है। डेरा ग़ाजी ख़ाँ और उसके आसपास के पहाड़ी इलाक़े में सिंचाई की यह व्यवस्था बहुत पुरानी है। इतनी पुरानी कि सही-सही नहीं पता कि यह कैसे प्रचलित हुई और किसने प्रचलित की। सिंचाई की इस व्यवस्था के तहत बारिश का पानी एक तरफ़ तो बरबाद होने से बचाया जाता है और दूसरी तरफ़ उसे खेती के लिए ज़्यादा उपयोगी बनाने की कोशिश की जाती है। होता यह है कि जब पहाड़ों पर बारिश होती,है तो पानी ऊँची-नीची चोटियों और चट्टानों की बुलन्दियों से ढलान की तरफ़ निहायत तेज़ रफ्तार से बहता है। मशहूर है कि उसके तेज़ धारे में ऐसी काट होती है कि अगर ऊँट उसकी ज़द में आ जाये, तो पैरों और कूचों की हड्डियाँ भी आरी की तरह काट देता है।

-शौकत सिद्दीक़ी

सुमन
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jaari

सावधान! कहीं जिम ही न ले ले जान!

जयपुर। जिम में जाकर स्लिम ट्रिम और फिट हो सकते हैं। फिल्मी स्टारों की तरह बॉडी बना सकते हैं। शायद यही सोचकर शहरों में लड़के लड़िकयां बड़ी तादाद में जिम का रुख कर रहे हैं। लेकिन जिम जाने से पहले हो जाइए सावधान। क्योंकि कभी-कभी जिम जानलेवा भी हो सकता है।
जिम की वजह से जयपुर में एक घर का चिराग बुझ गया। बृजेंद्र जयपुर का एक युवा मॉडल था। वो सलमान खान की तरह बॉडी बनाकर फिल्मी पर्दे पर धमाल मचाना चाहता था। उसकी यही चाहत उसे जिम तक ले गई। वो हर रोज घंटों जिम में कसरत करता और बिना रुके इस ट्रेडमिल पर दौड़ता रहता।
लेकिन बीते मंगलवार वो दौड़ते-दौड़ते ढेर हो गया। मंगलवार को बृजेंद्र ने दौड़ना शुरू किया ही था कि वो अचानक ट्रेडमिल से गिर गया और अस्पताल ले जाते वक्त उसने दम तोड़ दिया। बृजेन्द्र मौत किसकी लापरवाही से हुई। उसकी मौत का जिम्मेदार कौन है ये तो जांच का विषय है। लेकिन एक बात तो साफ है बिना डॉक्टरी सलाह के जिम में बॉडी बनाना इसी खतरे से कम नहीं है।
डॉक्टरों का भी मानना है कि ज्यादा वर्कआउट करना और क्षमता से ज्यादा वजन उठाना खतरे से खाली नहीं है। खासकर दमा और हार्ट के पेशेंट को डॉक्टरों की सलाह के बिना दौड़ना तक नहीं चाहिए। जाहिर है बृजेंद्र के मामले भी ऐसी ही लापरवाही रही होगी। फिलहाल पुलिस मामले की जांच करने में जुट गई है।

ऋषि-मुनियों की तपस्थली के नाम से जाना जाता है ऋषिकेश

ऋषिकेश (प्रैसवार्ता) ऋषिकेश का नाम भारत में ही नहीं अपितु पूरे विश्व में जाना जाता है। ऋषिकेश पूर्व में हषिकेश के नाम से जाना जाता था। ऋषिकेश का इतिहास पौराणिक ग्रंथों में आज भी पढऩे को मिलता है। ऋषिकेश ऋषि-मुनियों की तपस्थलियों के नाम से भी जाना जाता है, जहां आज भी ऋषिमुनि गंगा तट के किनारे तप कर कई सिद्धियों को प्राप्त करते हैं। ऋषिकेश की सीमा चार जिलों से घिरी हुई है जिनमें पौड़ी, नई टिहरी, हरिद्वार व देहरादून शामिल हैं। यहीं से विश्व प्रसिद्ध चारधाम श्री बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री व यमुनोत्री सहित हेमकुण्ट साहिब की यात्रा शुरू होती है। ऋषिकेश में पौराणिक भारत भगवान का मंदिर, भैरो मंदिर, काली मंदिर, चन्द्रशेखर सिद्धपीठ, नीलकंठ महादेव सोमेश्वर महादेव, वीरभद्र महादेव व सिद्धपीठ हनुमान जी की आज भी देश एवं विदेश से पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है, जिससे देश-विदेशों में प्रतिवर्ष कई लाखों की संख्या श्रद्धालु इन सिद्धपीठों के दर्शन कर पुण्य कमाते हैं। वहीं ऋषिकेश में मनोकामना सिद्ध मां गंगा की अविरल धारा बहकर गंगा सागर तक पहुंचती है, जिसमें प्रतिदिन लाखों की संख्या में लोग स्नान कर पुण्य अर्जित करते हैं। ऋषिकेश में रामझूला लक्ष्मण झूला, गीता भवन, परमार्थ निकेतन, 13 मंजिल मंदिर सहित अन्य रमणीक स्थलों पर लाखों की संख्या में देश-विदेश पर्यटक दर्शनों के लिए पहुंचते हैं। तीन माह बाद हरिद्वार-ऋषिकेश में महाकुंभ मेले का आयोजन होने जा रहा है, जिसमें करीब 15 से 20 करोड़ श्रद्धालुओं के आने की संभावना है, श्रद्धालु महाकुंभ में हरिद्वार हरकी पैड़ी पर स्नान कर पुण्य अर्जित करते हैं। कहा जाता है कि हरकी पैड़ी पर समुद्र मंथन के समय जब देवगणों और राक्षसों को अमृत बंट रहा था, तब कुछ अमृत हरकी पैड़ी पर बह रही गंगा की अविरल धारा में गि गया था, जिसके कारण हरकी पैड़ी इस विशेष स्थान पर स्नान करने से श्रद्धालु पुण्य अर्जित करते हैं। ऋषिकेश से करीब 15 किमी. नीलकंठ महादेव का सिद्ध मंदिर भी है, जहां पर सावन के माह में लोग लाखों की संख्या में पहुंचकर शिवलिंग पर जल चढ़ाकर पुण्य लाभ कमाते हैं। कहा जाता है कि महादेव ने जब विष धारण कर लिया था तो वह नीलकंठ पर्वत पर आकर तपस्या करने लगे, इसीलिए इस मंदिर को नीलकंठ महादेव के नाम से जाना जाता है। नीलकंठ महादेव में अब तो बारहों महीने ही श्रद्धालु शिवलिंग पर जल चढ़ाकर दर्शन करने आते हैं, लेकिन सावन के महीने में नीलकंठ महादेव पर जल चढ़ाने का पुण्य लाभ अधिक मिलता है। ऋषिकेश में स्थित त्रिवेणी घाट पर गंगा-यमुना-सरस्वती का संगम भी होता है जिसे देखने के लिए देश-विदेशों से लाखों की संख्या में पर्यटक पहुंचकर आनंद उठाते हैं, त्रिवेणी घट पर इस संगम का अद्भुत नजारा पर्यटकों को बरबस ही अपनी ओर खींच लेता है। वहीं मां गंगा तट के किनारे शाम के समय जब श्री गंगा सेवा समिति द्वारा आरती की जाती है तो मां गंगा के जंगल के तटीय क्षेत्र में हिरन, मोर, हाथियों का झुंड आकर गंगा जल ग्रहण करता है व मां गंगा की हो रही आरती का अनुभव महसूस करता है। यह नजारा देख पर्यटक मुग्ध हो जाते हैं और मां गंगा को प्रणाम करते हैं।




कोई बुरी लत नहीं होने से रफी को मिले थे अमर गीत

नई दिल्ली (प्रैसवार्ता) 'मन तड़पत हरि दर्शन को और ओ दुनिया के रखवाले जैसे गीतों को अपनी मखमली आवाज से अमर बनाने वाले मोहम्मद रफी को दरअसल ये गीत उनके निव्र्यसनी होने की वजह से मिले थे और आज भी नए गायकों के लिए ये गीत प्रतिभा की असल कसौटी बने हुए हैं। मशहूर संगीतकार नौशाद अपने अधिकतम गीत तलत महमूद से गवाते थे। एक बार उन्होंने रिकार्डिंग के दौरान तलत महमूद को सिगरेट पीते देख लिया था। इससे चिढ़कर उन्होंने फिल्म बैजू बावरा के लिए मोहम्मद रफी को साइन कर लिया। रफी के बारे में माना जाता था कि वह कट्टर मुसलमान थे और सिगरेट शराब तथा किसी भी तरह के नशे से दूर ही रहा करते थे। इन गीतों ने मोहम्मद रफी को और प्रसिद्ध बना दिया और उनकी गायकी ने नौशाद पर ऐसा जादू किया कि वह उनके पसंदीदा गायक बन गए। इसके बाद नौशाद ने लगभग सभी गानों के लिए मोहम्मद रफी को बुलाया। रफी ने नौशाद के लिए 149 गाने गाए हैं जिनमें से 81 गाने उन्होंने अकेले गाए हैं। नौशाद शुरू में रफी से कोरस गाने गवाते थे। गीतों के जादूगर ने नौशाद के लिए पहला गाना ए आर करदार की फिल्म पहले आप (1944) के लिए गाया था। इसी समय उन्होंने कि गांव की 'गोरीÓ फिल्म के लिए अजी दिल हो काबू में नामक गाना गाया। मोहम्मद रफी इस गाने को हिंदी भाषा की फिल्मों के लिए अपना पहला गाना मानते थे। सुरों के बेताज बादशाह रफी को 1960 में चौदहवीं का चांद हो या गाने के लिए पहली बार फिल्म फेयर पुरस्कार मिला था। उन्हें 1968 में 'बाबुल की दुआएं लेती जा' के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया था। इन दोनों का संगीत रवि ने दिया था। रफी को सर्वश्रेष्इ पाश्र्च गायक का फिल्मफेयर पुरस्कार छह बार मिला। इसके अलावा उन्हें दो बार सर्वश्रेष्ठ पाश्र्चगायक के राष्ट्रीय पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। 1950 और 1960 के दशक में मोहम्मद रफी कई संगीतकारों के पंसदीदा गायक बन गए। इनमें ओ.पी. नैयर शंकर जयकिशन तथा सचिनदेव बर्मन मुख्य हैं। एस डी बर्मन ने 50 और 60 के दशक में रफी को एक समय देवानंद की आवाज बना दिया था। ' दिन ढल जाएÓ, तेरे मेरे सपने, या हर फिक्र को धुंए में उड़ाता, जैसे गीतों को कौन भूल सकता है। ओ.पी. नैयर तो रफी से इतने प्रभावित थे कि उन्होंने गायक तथा अभिनेता किशोर कुमार की फिल्म 'रागिनी' के लिए मोहम्मद रफी से मन मोरा बावरा नामक गाना गवाया। इसके बाद रफी किशोर कुमार के लिए कई अन्य फिल्मों में भी गाने गाए। नैयर ने रफी से 97 गाने गवाए। इनमें से रफी ने 56 गाने अकेले गाए हैं। इनमें नया दौर 'तुमसा नहीं देखा' तथा कश्मीर की कली नामक हिट फिल्में और उनके हिट गीत शामिल हैं। शंकर जयकिशन के सबसे पसंदीदा गायक बन चुके मोहम्मद रफी ने उनके लिए 341 गाने गाए। इन गानों में से 216 ऐसे गाने थे जिन्हें रफी ने अकेले गाया था। रफी के बारे में एक दिलचस्प वाकया है जब वह अपने भाई हमीद के साथ एक बार के एल सहगल के कार्यक्रम में शिरकत करने गए थे। बत्ती चले जाने के बाद सहगल ने कार्यक्रम में गाने से इनकार कर दिया। इसके बाद इनके भाई हमीद ने आयोजकों को कहा कि उनका भाई इस कार्यक्रम में गाकर भीड़ को शांत करा सकता है। बालक रफी (13) का यह पहला सार्वजनिक कार्यक्रम था। इसके बाद उन्होंने बुलंदियों की राह पकड़ी और गीतों के बेताज बादशाह बन गए। लाहौर रेडियो स्टेशन से उनके लिए स्थाई गायक का भी प्रस्ताव आया था। मोहम्मद रफी ने 11 भारतीय भाषाओं में तरकीबन 28 हजार गाने गाए। रफी के प्रशंसकों का मानना है कि उन्होंने 28 हजार से अधिक गाने गाए हैं। एक अनुमान के मुताबिक इनमें से चार हजार 516 हिंदी गाने हैं। सुरों का पर्याय बन चुका यह कलाकार आज ही के दिन हमें छोड़ कर सदा के लिए चला गया। उनके बारे में किसी गीतकार ने ठीक ही लिखा है, न फनकार तुझसा तेरे बाद आया, मुहम्मद रफी तू बहुत यादा आया।

खतरे में उल्लुओं का अस्तित्व

रूड़की (प्रैसवार्ता) दीपावली पर हर कोई चाहता है कि उसके घर लक्ष्मी आए, जिसके लिए लोग श्रद्धाभाव के साथ पूजा अर्चना करते हैं। घरों की साफ-सफाई कर रोशन के द्वारा लक्ष्मी जी को खुश करने का प्रयास किया जाता है, लेकिन लक्ष्मी की सवारी उल्लू की तरफ कोई तरफ कोई ध्यान नहीं देता, जब उल्लू ही नहीं रहेंगे तो लक्ष्मी जी आएंगी कैसे। पहले हर गांव-शहर के पुराने वृक्षों की खोखर उल्लू का आशियान हुआ करते थे। उल्लूओं का वृक्षों की साख पर बैठना आम बात हुआ करती थी। कहावत भी है हर साख पर उल्लू बैठा है अंजामे गुलिस्ता क्या होगा, लेकिन आज उल्लू गर्दिश में है। जब से तंत्र-मंत्र और काले जादू के नाम पर उल्लूओं का अवैध व्यापार होने लगा है तब से लक्ष्मी के वाहन उल्लू पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। कई ऐसे तांत्रिक हैं जो पूजा-पाठ के लिए उल्लू के शारीरिक अवशेषों के इस्तेमाल की सलाह देकर इस दुर्लभ जीव का अस्तित्व मिटाने में लगे हैं। प्रकृति मित्र दिवाकर की माने तो भारत के साथ-साथ नेपाल, पाकिस्तान, भूटान, बंगलादेश और दक्षिण पूर्वोत्तर देशों में काले जादू के लिए उल्लूओं की मांग की जाती है। पाकिस्तान बार्डर अटारी क्षेत्र, अमृतसर, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, आसाम, पश्चिम बंगाल, मध्यप्रदेश व महाराष्ट्र में विभिन्न जगहों पर उल्लुओं की अवैध तरीके से तस्करी की जाती है। इसी तस्करी और उनके शिकार के कारण उल्लू की जान खतरे में हैं। अब आप ही बताईए उल्लू यानी लक्ष्मी के वाहन की जान खतरे में हो तो लक्ष्मी कैसे प्रसन्न हो सकती है। वन्य तस्कर अधिकतर मटमैले रंगे के उल्लू का ही शिकार करते हैं। कुछ लोगों में यह भ्रांति है कि उल्लू के खून से न्यूकोडरमा, अस्थमा व नपुंसकता का इलाज हो सकता है, लेकिन इसमें वैज्ञानिक स्तर पर कोई सच्चाई नहीं है। काले जादू के लिए धनई व ब्राउन फिश उल्लू का ही उपयोग किया जाना बताया गया है। उल्लू को पकडऩे के लिए शिकारी गोंद लगी लम्बी डंडी का प्रयोग करता है। इस प्रक्रिया में 50 प्रतिशत उल्लू डर व सदमे के कारण मौके पर ही मर जाते हैं, जबकि शेष बचे उल्लूओं में भी 40 प्रतिशत उल्लू एक सप्ताह में दम तोड़ देते हैं। ऐसे में लक्ष्मी के वाहन उल्लू की संख्या लगातार कम हो रही है। इसी कारण उल्लू अब दिखाई पडऩे बंद हो गए हैं। उल्लू को संस्कृत में उल्लूक, नत्रचारी, दिवांधधर्धर, बंगाली में पेचक, अरबी में बूम, लेटिन में आथेनेब्रामा इण्डिा नाम से जाना जाता है, वहीं उल्लू को कुचकुचवा, खूसट, कुम्हार का डिंगरा, धुधना व घुग्घु भी कहा जाता है। उल्लू की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वह अपना सिर 160 कोण से भी अधिक घुमा सकता है। निशाचार पक्षी होने के कारण उल्लू चूहे व खरगोश आदि खाकर अपना पेट भरता है।

एक मेहमान ऐसा भी- हास्य व्यंग्य

मेहमान सभी के यहां आते हैं। कुछ खास और कुछ लागे लगाए के, लेकिन खातिर-तवज्जो तो सभी मेहमानों की करनी होती है। दरअसल मेहमान नवाजी में सभी लोगों को खुशी ही मिलती है, क्योंकि इसी से पता लगता है कि भाई इनके भी कोई है। इसी भावना से कुछ ऐसे लोग अपनी नाक ऊंची किए घूमते रहते हैं, जिनके घर में खूब मेहमान आते हैं। अब मेहमानों की क्या है, जितना अधिक दोस्तों और परिचितों का दायरा होगा, उतनी ही अधिक संख्या में मेहमान भी आएंगे घर में। बहुत सारे लोग ऐसे भी मिल जाते हैं जिनमें यह सब खूबियां नहीं होती। यानिकि सीमित परिवार और दोस्त रिश्तेदार तो फिर उनके यहां मेहमान भी उंगलियों पर गिने चुने ही आने चाहिए। ऐसा होता भी है, लेकिन जनाब ये चंट लोग अक्सर ही यही कह कर अपना पिंड छुड़ा लेते हैं और अपना चेहरा साफ किए रहते हैं? क्या करें, हम तो कारोबारी लोग हैं। कहीं आने जाने की फुर्सत ही नहीं मिलती। उनका मतलब यह कि जब वे किसी के यहां नहीं जा पाते तो, फिर कोई उनके यहां क्या खाक आए। तो साहब समाज के कुछ कारोबारी और तराजू के कमाल से फलने फूलने वाले भाई लोगों ने अपने घरों में हमेशा न सही तो कम से कम किसी काम-काज या संस्कार के अवसर पर ही मेहमानों की भीड़ जुटाने का एक और तरीका ईजाद कर रखा है। मेहमान यानी कि खास मेहमान कम हैं तो क्या, वे थोक में कार्ड छपवा कर अपने ग्राहकों में ही बंटवा देते हैं। यदि पूरे न सही तो पचीस प्रतिशत ग्राहक आएंगे ही। व्यवहार का लिफाफा हाथों में लहराते हुए अपनी फीकी मुस्कानों के साथ आयोजक के हाथ में उसे सौंप ही जाएंगे, फिर आयोजक भाई अपनी बनियागिरी का हिसाब लगाते और गदगद होते लोगों से यही हांकते नजर आएंगे, अरे मेरे मुन्ने के मुंडन में तो छ: हजार रुपए का व्यवहार आया। तो साहब यह तो हुई व्यवहार की बात, लेकिन असली मुद्दा था मेहमानों का। तो मेहमाननवाजी भी कोई एकतरफा थोड़े ही करता है। कुछ ही समय बाद वह भी सवाई समेत वसूल लेता है। मेहमान भाई अकेले आए थे तो अपने राम पूरे परिवार के साथ मेहमानी कर आए, वह भी पूरे एक हफ्ते तक। जब लौटे तब तक मेहमाननवाजी करने वाले भाई पीले पडऩे लगे थे। आजकल महंगाई का जमाना है, तो मेहमान की आकांक्षा भी कम ही लोग खुशी-खुशी करते हैं। लेकिन जिस तरह बीमारी-हारी आने के लिए कुछ भी नहीं देखती, उसी प्रकार मेहमान भाई भी तंगी-तंगी नहीं देखते। बस धर धमकते हैं। आएंगे तो कऊछ न कुछ तो मिलेगा ही छानने के लिए चाहे घर में पहले ही छन्ना लगा हो। वैसे कुछ चालाक और होशियार मेहमान भी होते हैं। वे पार्टी देखकर या उनकी माली हालत देखकर ही उनके यहां मेहमानी करते हैं। यार वो मिश्रा जी, वहीं वो गढ़ी कनौसी वाले उनके यहां तो मुंह बांध के सेवा होता है। नहीं जाना उनके यहां मेहमानी करने। जब जाओ बस सत्तू पिला देते हैं। लेकिन फिर कहां चलें। अपना मेहमानी का राउन्ड तो पूरा हो चुका। अच्छा उस घर फूंक तमाशा देखने वाले मधोभाई के यहां फिर से चलते हैं। इस तरह आनन फानन में मेहमानी का कार्यक्रम बनाने वाले हजारों हैं। वास्तव में सैकड़ों किस्में पाई जाती है मेहमानों की ओर अपनी समाथ्र्य के अनुसार गरीब अमीर सभी खातिरदारी भी कर ही लेते हैं। अब साहब एक पते की बात उठ रही है इस प्रकरण मेहमानी में। हुआ यह कि वही माधोभाई अपनी दरियादिली के लिए कुछ ज्यादा ही मशहूर हो गए। अब मुफ्त में छानने फूंकने को मिले और मेजबान के चेहरे पर शिकन तक न आए तो फिर घर वापस जाने का मन किस अहमक मेहमान का होगा? जो आए तो चार-छ: दिन टिके जरुर। माधोभाई थे तो दिलदार लेकिन चार साल की शहंशाही में ही बोल गए और उन्होंने इस मेहमाननवाजी से छूटने के लिए कस्बे में घर बनवा लिया। गांव से काफी दूर और परिचितों व रिश्तेदारों की पहुंच से काफी दूर। फिर भी चीटियों की तरह संूघते कुछ तरकीबी रिश्तेदार उनके मेहमान बनते ही रहे। माधो भाई उन्हें संभालते रहे, लेकिन एक मेहमान ऐसा निकला कि माधोभाई को रक्त के आंसू रुला गया। हुआ ये कि माधोभाई कहीं बाहर निकल रहे थे। घर में उनकी सीधी सरल पत्नी थी। मेहमाननवाली में कभी भी पीछे नहीं रहीं। घर में अकेली थीं। तभी एक अपरिचित मेहमान आ गया। आप कौन हैं? ये तो कीं बाहर गए हैं। अपरिचित को देखते ही उन्होंने कहा-सुना तो उस मेहमन ने भी मौका ताड़ लिया। बोला झट से, अरे भाभी आप ने नहीं पहचाना मुझे। पहचानों भी कैसे? शादी के बाद पहली बार तो मैंने ही आप को देखा। मैं द्वारिका प्रसाद, माधो और हम मौसेरे, अरे सगे मौसेरे भाई हैं। शहर में रहते हैं। न आज आपके दर्शन कर पाए। ये लीजिए कुछ मिठाई है। उसने कुछ इस तरह का रोब डाला कि बेचारी भाभी मेहमाननवाजी में जुट ही गईं। खूब खिलाया पिलाया और मौका लगते ही द्वारका मेहमान तिजोरी तोड़ कर नकदी जेवर के साथ कपड़े भी साथ लेकर चंपत हो गये। माधो भाई लौटे तो पत्नी ने रो-रो कर सब हाल कहे तो वे मूच्र्छित ही हो गए। तब से वे आने वाले मेहमानों से बड़े सावधान रहने लगे हैं। -डॉ. सुरेश प्रकाश शुक्ल, लखनऊ (प्रैसवार्ता)

राजस्थान की वीर-नारियाँ

कृषक कन्या हम्मीर माता: कृषक कन्या हम्मीर माता जब अपने खेतों की रखवाली पर थी, उसने देखा कि चित्तौड़ के महाराणा लक्ष्मणसिंह के सबसे बड़े अरिसिंह जी अपने साथियों के साथ घोड़ा दौड़ाये एक जंगली सूअर का पीछा करते हुए चले आ रहे है। सूअर डरकर उसी के बाजरे के खेत में घुस गया। कन्या अपने मचान से उतरी और घोड़ों के सामने खड़ी हो गयी। बड़ी ही विनम्रता के साथ बोली, राजकुमार! आप लोग मेरे खेत से घोड़ों को ले जायेंगे तो मेरी खेती नष्ट होने से बच जायेगी। आप यहां रुकें, मैं सूअर को मारकर ला देती हूं। राजकुमार आश्चर्य से देखते रह गये। उन्होंने सोचा यह लड़की नि:शस्त्र सुअर को कैसे मारकर लायेंगी? उस लड़की ने बाजरे के एक पेड़ को उखाड़कर तेज किया और खेत में निर्भय होकर घुस गयी। थोड़ी ही देर में वे लोग स्नान कर रहे थे, तब एक पत्थर आकर उनके एक घोड़े के पैर में लगा, जिससे घोड़े का पैर टूट गया। वह पत्थर उसी कृषक-कन्या ने अपने मचान से पक्षियों को उड़ाने के लिए फेंका था। राजकुमार के घोड़े की दशा देखकर वह दौड़कर आई और क्षमा मांगने लगी। राजकुमार बोला, तुम्हारी शक्ति देखकर मैं आश्चर्य में पड़ गया हूं। मुझे दु:ख है कि तुम्हें देने योग्य कोई पुरस्कार इस समय मेरे पास नहीं है। कृषक कन्या ने विनम्रता से कहा, अपनी गरीब प्रजा पर कृपा रखें, यही मेरे लिए बहुत बड़ा पुरस्कार है। इतना कहकर वह चली गई। संयोग से जब राजकुमार व उनके साथी सायंकाल घोड़ों पर बैठे जा रहे थे, तब उन्होंने देखा, वही लड़की सिर पर दूध की मटकी रखे दोनों हाथों से दो भैसों की रस्सियां पकड़े जा रही है। राजकुमार के एक साथी ने विनोद में उसकी मटकी गिराने के लिए जैसे ही अपना घोड़ा आगे बढ़ाया, उस लड़की ने इसका इरादा समझ लिया और अपने हाथ में पकड़ी भैंस की रस्सी को इस प्रकार फेंका कि उस रस्सी में उस सवार के घोड़े का पैर उलझ गया और घोड़े सहित वह भूमि पर आ गिरा। निर्भय बालिका के साहस पर राजकुमार अरिसिंह मोहित हो गये, उन्होंने पता लगा लिया कि यह एक क्षत्रिय कन्या है। स्वयं राजकुमार ने उसके पिता के पास जाकर विवाह की इच्छा प्रकट की और वह साहसी वीर बालिका एक दिन चित्तौड़ की महारानी बनी जिसने प्रसिद्ध राणा हम्मीर को जन्म दिया। पन्नाधाय: पन्नाधाय के नाम को कौन नहीं जानता? वे राजपरिवार की सदस्य नहीं थी। राणा सांगा के पुत्र उदयसिंह को मां के स्थान पर दूध पिलाने के कारण पन्नाधाय मां कहलाई। पन्ना का पुत्र वह राजकुमार साथ-साथ बड़े हुए। उदयसिंह को पन्ना ने अपने पुत्र के समाना पाला अत: उसे पुत्र ही मानती थी। दासी पुत्र बनवीर चित्तौड़ का शासक बनना चाहता था। उसने एक-एक कर राणा के वंशजों को मार डाला। एक रात महाराज विक्रमादित्य की हत्या कर, बनवीर उदयसिंह को मारने के लिए उसके महल की ओर चल पड़ा। एक विश्वस्त सेवक द्वारा पन्ना धाय को इसकी पूर्व सूचना मिल गई। पन्ना राजवंश के प्रति अपने कर्तव्यों के प्रति सजग थी वह उदयसिंह को बचाना चाहती थी। उसने उदयसिंह को एक बांस की टोकरी में सुलाकर उसे झूंठी पत्तलों से ढककर एक विश्वास पात्र सेवक के साथ महलों से बाहर भेज दिया। बनवीर को धोखा देने के उद्देश्य से अपने पुत्र को उसके पलंग पर सुला दिया। बनवीर रक्तरंजित तलवार लिए उदयसिंह के कक्ष में आया और उदयसिंह के बारे में पूछा। पन्ना ने उदयसिंह के पलंग की ओर संकेत किया जिस पर उसका पुत्र सोय था। बनवीर ने पन्ना के पुत्र को उदयसिंह समझकर मार डाला। पन्ना अपनी आंखों के सामने अपने पुत्र के वध को अविचलित रूप से देखती रही। बनवीर को पता न लगे इसलिए वह आंसू भी नही बहा पाई। बनवीर के जाने के बाद अपने मृत पुत्र की लाश को चूमकर राजकुमार को सुरक्षित स्थान पर ले जाने के लिए निकल पड़ी। धन्य है स्वामिभक्त वीरांगना पन्ना जिसने अपने कर्तव्य-पूर्ति में अपनी आंखों के तारे पुत्र का बलिदान देकर मेवाड़ राजवंश को बचाया। वीरांगना कालीबाई:वीरांगनाओं के इतिहास में केवल राजपूतनियों के नाम ही पाये जाते हों ऐसा नहीं है। राजस्थान की नारियों की नस-नस में त्याग, बलिदान व वीरता भरी हुई। यहां तक कि आदिवासियों ने भी आवश्यकता पडऩे पर जी-जान से देश की प्रतिष्ठा में चार-चांद लगाये हैं। राजस्थान की आदिवासी जन-जातियां सदैव से देशभक्त व स्वाभिमानी रही हैं। इनकी महिलाओं ने भी समय-समय पर अपना रक्त बहाया है। इन्हीं नामों में से एक नाम है वीर बाला कालीबाई का। स्वाधीनता आंदोलन चल रहा था। वनवासी अचंल को गुलामी का अंधेरा अभी भी पूरी तरह ढके हुए था। छोटी-छोटी बातों पर अंग्रेजी राज्य के वफादार सेवक स्थानीय राजा अत्याचार करते थे। प्रजा में जागृति न फैले इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता था। वे भयभीत थे कि अगर वनवासी पढ़-लिख गये तो वे नागरिक अधिकारों की बात करेंगे और उनकी राजय सत्ता कमजोर होगी। राजा ने अपने क्षेत्र के वनवासी अंचल में सभी विद्यालय बंद करने का आदेश दिया। नानाभाई के पास आदेश भिजवाया कि वे अपनी पाठशालाएं बंद करें, लेकिन नानाभाई नहीं माने। अवज्ञा से क्षुब्ध मजिस्ट्रेट उन्हें पीटते हुए अपने शिविर तक ले जाने लगा। इतने में ही एक नन्हीं बालिका जो उसी समय घास काटकर लाई थी, चिल्लाते हुए ट्रक के पीछे दौड़ी, अरे तुम लोग मेरे मास्टरजी को क्यों ले जा रहे हो? छोड़ दो! इन्हें छोड़ दो! हाथ में हंसिया, पांव में बिजली और मुख से कातर पुकार करती वह बच्ची न बंदूकों से घबराई और न पुलिस की डरावनी धमिकयों से उसे तो बस अपने मास्टरजी दिखाई दे रहे थे। बालिका को देखकर वनवासी भी उत्साहित हो उठे और पीछे दौड़े। यह देखकर पुलिस अधिकारी ने बौखलाकर बंदूक तानकर कहा, ऐ लड़की, वापस जा, नहीं तो गोली मार दूंगा। लड़की ने उसकी बात को अनुसुना कर ट्रक के पीछे दौड़ते हुए वह रस्सी काट दी, जिससे बांधकर नानाभाई व सेंगभाई को घसीटा जा रहा था। पुलिस की बंदूक गरजी और बालिका की जान ले ली। कालीबाई के मरते ही वनवासियों ने क्रोधोन्मत्त हो मारू बाजा बजाना शुरू कर दिया और पुलिस की बंदूकों की परवाह न करते हुए उन्हें मारने के लिए दौड़े। गोलियों से कई अन्य भील महिलाएं भी घायल हुई। अपनी दुर्गति का अंदाजा लगा, पुलिस व मजिस्ट्रेट जीप में भाग निकले। घायलों को तीस मील दूर अस्पताल में ईलाज के लिए ले जाया गया। कालबाई के साथ घायल हुई अन्य भील महिलाएं नवलीबाई, मोगीबाई, होमलीबाई तथा अध्यपाक सेंगाभाई बच गये। वे स्वतंत्रता के बाद भी भीलों के मध्य काम करते रहे, किन्तु नानाभाई को नहीं बचाया जा सका और वीर बाला कालीबाई भी नानाभाई का अनुशरण करते हुए चिर-निद्रा में लीन हो गई। डूंगरपुर में नानाभाई व कालीबाई की स्मृति में उद्यान बनाया गया है और उनकी मृर्तियां भी स्थापित की गई हैं। -डॉ. संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी (प्रैसवार्ता)