आप अपने क्षेत्र की हलचल को चित्रों और विजुअल समेत नेटप्रेस पर छपवा सकते हैं I सम्पर्क कीजिये सेल नम्बर 0 94165 57786 पर I ई-मेल akbar.khan.rana@gmail.com दि नेटप्रेस डॉट कॉम आपका अपना मंच है, इसे और बेहतर बनाने के लिए Cell.No.09416557786 तथा E-Mail: akbar.khan.rana@gmail.com पर आपके सुझाव, आलेख और काव्य आदि सादर आमंत्रित हैं I

23.10.09

बाल फिल्में और बच्चे

आधुनिक युग में इलैक्ट्रोनिक मीडिया से उपजे शोर व विदेशी प्रसारण सेवाओं की अंधाधुंध बाढ़ ने हमारे परिवार में तहलका मचा दिया है-जिसमें जिज्ञासाओं का ऐसा बबंडर उठा है कि जब बड़े इसकी गिरफ्त में है, तो छोटे बच्चों को इन साधनों के उपयोग से कैसे रोका जा सकता है। रही बात, मनोरंजन की, तो भारतीय तथा विदेशी फिल्मों में, जहां टकराव है, वही रोमांचकारी विदेशी फिल्में डरावनी व कुछ भी कर गुजरने का सबल देती है, फिल्मों को देखना बच्चे को एक प्रदत्त अधिकार प्राप्त है कि यह तो उनके हक में शामिल है, जिसे माता-पिता देखने देने से वंचित नहीं रख सकते हैं। कम उम्र में स्कूल भेजे जाने से बच्चों में अपनी उग्र से अधिक सोच समझ का विकास हुआ है, वही वह अपने पर माता-पिता द्वारा रोक टोक लगाये जाने पर उग्र हो जाते है, तो परिस्थितियों को संभालना मुश्किल हो जाता है, चूंकि जिज्ञासा वश घर में बड़े भी टेलीविजन को देखते हैं। छोटे बच्चों के रहने पर बड़े ही नजर अंदाज कर जाते हैं कि वह क्या समझते होंगे, किन्तु बाद में वही लापरवाही नुकसान देह व बच्चों को प्रतिद्वन्दी की श्रेणी में लाकर खड़ी कर देती है। भारतीय समाज में मध्यम वर्ग व निम्र वर्ग की सोच, समझ व स्थिति में फर्क है। वहां फिल्मों का अभाव जल्दी देखने में आता है, बच्चे पूर्ण विकसित तो होते नहीं, जो देखा, सोचते हैं, सही है और अंजाम देने पर उतर आते हैं। ऐसे में सामाजिक व्यवस्था तो बिगड़ती ही है, साथ में बच्चे का भविष्य व माता-पिता की आशाओं उम्मीदों पर ढेरों तुषाराघात पड़ जाता है। यह कहना गलत होगा कि विज्ञान मनोरंजन व कुछ सीखने जैसी फिल्में बच्चों पर प्रभाव नहीं डालती, डालती हैं, किन्तु इनका प्रतिशत कम ही होता है। ज्यादातर लोग हिन्दी में बच्चों को बहादुरी, साहस व चमत्कार की फिल्मों को प्रधानता देते हैं। पशु, पक्षी, प्यार व उनसे दोस्ती की कहानियां भी होती है, जिस पर प्रतिक्रिया जुटाने पर पाया कि, ''बकवास, हर जगह मात्र शिक्षा, कैसी शिक्षा देना चाहते है-यह फिल्म बनाने वाले।'' हैरानी की बात की इतनी अच्छी फिल्मों पर यह प्रतिक्रया, उन्हें चाहिए स्पाईडरमैन, शक्तिमान जैसे करैक्टर, यानि कुछ करे या न करें, किंतु इतनी पावन, इतना बल अवश्य हो कि वे किसी की भी मदद कर सकें, हां बच्चों को कभी अपनी मदद व अपने बारे में सोचने का शायद वक्त ही नहीं है। कार्टून फिल्मों में जिस तेजी से चित्र चलते हैं वह कहानी दौड़ती है, उसी रफ्तार से उनको मजा आता है। यदि डॉयलाग डिलेवरी में भी फर्क या दूरी है, तो बच्चों को तुरंत ही बोरियत आ घेरती है। इतनी उतावली व उग्र प्रवृत्ति की पीढ़ी का क्या करें, क्या इन्हें धीरज व धैर्य वाली, ज्ञान की या जिज्ञासा वाली कोई मूवी दिखा सकेंगे। मुख्य बात तो तब है कि अधिकांश परिवारों में बच्चों को लेकर थियेटर ले जाना ही कठिन है। माता-पिता अपने लिये ही समय मुश्किल से निकाल पाते हैं, तो, बच्चों को उनकी बाल उम्र तक एक या दो फिल्में दिखा दो, तो समझो बहुत हो गया। बच्चे अपनी पूर्ति टैलीविजन से करते हैं। उस पर दिखाई जाने वाली किसी भी तरह की फिल्म उनको तो देखना है, चाहे वह ठीक हो या नहीं। यह दावित्य बनता है हमारा, कि हम बड़े बच्चों के चहूंमुखी विकास के लिए अच्छी व बेहतर फिल्मों का निर्माण कर उन्हें बच्चों के देखने व दिखाने की व्यवस्था करनी चाहिये। जैसे आजादी के या स्वास्थ्य के संबंध में बड़ों को जागृत कर रहे है, वैसे ही बच्चों के लिए फिल्में, नर्सरी, स्कूलों व मेलों की फिल्में दिखाई जाये, जिससे उनकी अच्छी सोच व समझ स्वस्थ मनोरंजन पद्धति का विकास हो। -अंजना छलौत्रे 'शशि',प्रैसवार्ता

जो मिल गया उसी को मुकद्दर समझ लिया

यह रफी साहब की सरलता थी कि वह गाने के बदले जो भी मिल जाता था, ले लेते थे। वह रॉयल्टी लेने के खिलाफ थे। इसी मतभेद के कारण लता मंगेशकर के साथ उन्होंने चार साल तक गाना नहीं गाया। लता जी का कहना है कि फिल्मकारों ने अपने हितों के लिए रफी साहब के सरल-हृदय होने का फायदा उठाया था, लेकिन जब सचाई का पर्दाफाश हुआ तो फिर मिलाप में ज्यादा वक्त नहीं लगा
रफी साहब ने फिल्म हम दोनों में गाए साहिर लुधियानवी के इस गीत को अपनी जिंदगी में उतार लिया था। यही कारण है कि उन्होंने इसबात की कभी चिंता नहीं की कि उन्हें गाने के एवज में कितना मिल रहा है। रफी पैसे के मामले में अत्यंत संतोषी व्यक्ति थे और उन्हें जितना मिलता था, उसी से वह संतोष कर लेते थे। कई लोगों के लिए तो उन्होंने मुफ्त में भी गाने गाए थे। अपनी इसी उदारता के कारण उन्होंने संगीत कंपनियों से कभी रॉयल्टी की मांग नहीं की। वह मानते थे कि एक बार जब निर्माता गायक को गाने का पारिश्रमिक अदा कर देता है, तो मामला वहीं समाप्त हो जाता है, लेकिन उनकी इसी दानशीलता और उदारता के कारण न सिर्फ उनके और उनके परिवार के आर्थिक हितों के साथ कुठाराघात हुआ, बल्कि रॉयल्टी के मामले में लता मंगेशकर और अन्य गायकों के साथ अनबन भी हुई। लता और रफी के बीच एक-दूसरे के प्रति नाराजगी कई साल चली। इस दौरान दोनों न तो बातचीत करते थे और न ही एक साथ कोई गीत गाते थे। संगीत प्रेमी इस अवधि को पाश्र्वगायन के काले अध्याय के रूप में याद करते हैं। शायद यह पहला मौका था, जब इस सरल, सहृदय गायकने कड़ा रुख अपनाया था। कुछ निर्माताओं और संगीत कंपनियों को रफी के सरल स्वभाव के बारे में पता था। कुछ निर्माताओं द्वारा भावनात्मक रूप से बरगलाए एवं गुमराह किए जाने के बाद सीधे-सादे रफी ने स्वयं ही अनी रॉयल्टी के दावे समाप्त कर दिए। दूसरी तरफ लता जी का मानना था कि गायकों को गाने की रिकॉर्डिंग के पैसों के अलावा गाने की रॉयल्टी का भी भुगतान करना चाहिए। उनका कहना था कि अपने निर्माताओं के लिए आर्थिक मुश्किलें पैदा करना अपनी कला का सही मूल्य पाने की तुलना में भी ज्यादा गंभीर मुद्दा है। रफी के इस विचार ने उन्हें उन गायक-गायिकाओं के बीच बदनाम कर दिया, जो यह मानते थे कि गाने की सफलता गायक की आवाज पर निर्भर करती है। रफी और लता के बीच व्यावसायिक अलगाव करीब चार साल तक चला आखिरकार नरगिस के प्रयास से दोनों के बीच जमी बर्फ पिघली और शिकवे की दीवार टूटी, जब एक स्टेज कंसर्ट के दौरान दोनों को दिल पुकारे.... के लिए बुलाया गया। बाद में लता जी ने स्वीकारा कि उनहोंने एक मामूली बात के लिए रफी साहब के साथ गाने का सौभाग्य खोया था, लेकिन उन्होंने कहा कि रफी साहब जैसे ईमानदार और निष्कपट व्यक्ति से दोबारा मिलाप कर लेने में ज्यादा वक्त नहीं लगा। लता जी ने रॉयल्टी के मामले को लेकर मोहम्मद रफी के साथ हुई अनबम के बारे में कहती है, रफी साहब न तो अपने अधिकारों से अनजान थे और न ही वह प्रोड्यूसरों या म्यूजिक डायरेक्टरों से डरते थे, क्योंकि वह समय ही ऐसा था कि हर गायक-गायिका की अपनी स्टाइल थी। जिस स्टाइल की फिल्म में जरूरत होती, तो उस गायक या गायिका या गायिका के बिना काम न चलता। कई हीरो का काम रफी साहब की आवाज के बगैर चलता ही नहीं था। लेकिन रफी साहब जरूरत से ज्यादा भले थे। उनका कहना था कि गाना गाने के एवज में प्रोड्यूसर हमें पैसे दे चुका है तो हम ज्यादा क्यों मांगे? जबकि मेरा कहना था कि कुछ गायकों के गीत आज भी बिक रहे हैं, पर उन्हें कुछ नहीं मिलता, जबकि उन गायकों की आज आर्थिक स्थिति बहुत खराब है। इस पर रफी साहब ने कहा कि अभी कल ही खान मस्ताना (पुराने गायक) को मैंने पांच सौ रुपए दिए। हम ऐसा तो करते ही रहते हैं। लता जी का इस मामले में कहना था, हमारी एसोसियेशन ने पाश्र्व गायकों की ओर से जब रेकॉर्डिंग कंपनी से अपने अधिकार की मांग की तो उसने निर्माता को दे दी है आप उनसे मांग लें। कुछ निर्माता मान गए तो कऊछ ने हममें फूट डालने की कोशिश की। उन्होंने रफी साहब को अपने विश्वास में लिया, ताकि वह बाकी गायकों को रॉयल्टी मांगने से रोकें। मैंने रफी साहब को समझाने का प्रयास किया कि उन्हें या मुझे तो रॉयल्टी न मिलने से कोई दिक्कत नहीं होगी, लेकिन दूसरों को रोकने का हमें कोई अधिकार नहीं है। इसी बात को लेकर हम दोनों में बातचीत और गाना बंद हो गया।... बाद में मुकेश भैया (पाश्र्वगायक) से पता चला कि कई गायक जो हमारी तरफ थे, वे जाकर रिकॉर्डिंग भी करवा रहे हैं। रफी साहब की भी हां में हां मिलाते और हम लोगों के साथ भी। जब मुझे विश्वास हो गया कि कोई हमारा साथ नहीं दे रहा तो मैंने सिर खपाना बंद कर दिया। जहां तक मेरा अपना सवाल था, मैं जानती थी कि मुझे मांगने पर रॉयल्टी मिलेगी ही। बाद में रफी साहब से सुलाह हो गई। मनमोहित ग्रोवर,प्रैसवार्ता

आज सरकार बनाने का दावा पेश करेंगे हुड्डा

चंडीगढ़। हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा आज सरकार बनाने का दावा पेश करेंगे। राज्य विधानसभा में जीत कर आए 7 निर्दलीय विधायकों व हरियाणा जनहित कांग्रेस ने कांग्रेस को समर्थन देने की बात कही है। मुख्यमंत्री के एक करीबी सूत्र ने बताया कि हुड्डा शुक्रवार को निर्दलीय विधायकों के समर्थन संबंधी पत्र के साथ राज्यपाल जगन्नाथ पहाड़िया से मिल कर उनके सामने सरकार बनाने का दावा पेश करेंगे। गुरुवार देर रात हुए एक अहम घटनाक्रम में 6 निर्दलीय विधायक हुड्डा के दिल्ली स्थित निवास पर पहुंचे और कांग्रेस पार्टी को समर्थन देने की बात कही। हुड्डा के घर के बाहर सिरसा के निर्दलीय विधायक गोपाल कंडा ने कहा कि उन्होंने कांग्रेस को समर्थन देने का प्रस्ताव दिया है। मालूम हो कि हरियाणा में कांग्रेस 40 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है। उसे सरकार बनाने के लिए 45 विधायकों का समर्थन जरूरी है। आईएनएलडी को 31 सीटें मिली हैं, जबकि भजनलाल की पार्टी हरियाणा जनहित कांग्रेस 6 सीटें मिली हैं। बीजेपी को 4 और बीएसपी को एक सीट मिली है। 7 सीटों पर निर्दलीयों ने जीत हासिल की है।

22.10.09

चौटाला ने नहीं मानी हार, सरकार बनाने की जुगत

चंडीगढ़। हरियाणा में भले ही कांग्रेस को बहुमत मिलता दिख रहा हो लेकिन विपक्ष खासकर इंडियन नेशनल लोकदल के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला हार मानने को तैयार नहीं हैं। कांग्रेस की सीटें घटने और उसे नाममात्र का बहुमत मिलता देख चौटाला की उम्मीदें और जवान हो गई हैं। वे विपक्ष की दूसरी पार्टियों से मिलकर सत्ता तक पहुंचने की कड़ी बनाने में जुट गए हैं।
हरियाणा के इतिहास में पिछले 37 साल में ये पहला मौका है जबकि एक ही पार्टी की सरकार लगातार दूसरी बार चुनकर आती दिख रही है। 90 सीटों वाले इस राज्य में कांग्रेस को दोपहर साढ़े तीन बजे तक 40 सीटों पर बढ़त-जीत हासिल हो गई थी। दूसरी ओर इनेलो ने भी अपना प्रदर्शन काफी सुधारा और पिछले बार की नौ सीट में इनेलो इस बार 32 सीटों पर बढ़त-जीत हासिल किए हुए है।
यही वजह है कि चौटाला ने प्रेसवार्ता कर कहा कि कांग्रेस की सीटों में काफी कमी हुई और इसलिए उसे सरकार बनाने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है। पार्टी को सीएम किसे बनाएं इस बात पर माथापच्ची करने के बजाय विपक्ष में बैठना चाहिए। चौटाला की कोशिश ये है कि भाजपा, हजकां और अन्य को किसी तरह अपने पाले में लाकर हुड्डा को सरकार बनाने से रोका जाए।

हरियाणा में बहुमत से पीछे रह गई कांग्रेस

चंडीगढ़। हरियाणा में विधानसभा चुनाव के तहत 90 सीटों पर हुए मतदान का परिणाम गया है। सत्ताधारी कांग्रेस इस बार भी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है हालांकि उसे बहुमत से कुछ कम सीटें हासिल हुई हैं।
कांग्रेस को यहां कुल 40 सीटें मिली हैं। यानि बहुमत के लिए उसे 6 सीटों की और जुगाड़ करनी होगी। फरवरी 2005 में हुए विधानसभा चुनाव में पार्टी ने 67 सीटों पर जीत दर्ज की थी। राज्य में मुख्य विपक्षी दल इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) का प्रदर्शन अपेक्षा से बेहतर हुआ है। उसे 32 सीटें हासिल हुई है।
वर्ष 2005 में पार्टी ने केवल नौ सीटों पर जीत दर्ज की थी। वहीं भाजपा 4, हरियाणा जनहित कांग्रेस और अन्य ने 7-7 सीटें हासिल की हैं। गुरुवार सुबह से कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच 90 केंद्रों पर मतगणना शुरू हुई। यहां 13 अक्टूबर को नई सरकार के गठन के लिए मतदान हुआ था।

लो क सं घ र्ष !: पाकिस्तानी कहानी-1

भगवान दास दरखान-१ -शौकत सिद्दीक़ी
कचहरी शुरू नहीं हुई थी। जिस कमरे में मुक़दमों की सुनवाई होती थी, अभी तक ख़ाली था। अलबत्ता सदर दरवाजे़ की दहलीज़ के पास दो मुलाज़िम किवाड़ों से टेक लगाये फ़र्श पर फसकड़ा मारे बैठे थे। कमरे के ठीक बीचोबीच दीवार से ज़रा हटकर रंगीन खाट पड़ी थी। यह चैड़ा चकला पलंग था। उसके पाये ऊँचे-ऊँचे थे। उन पर रंग-रोगन से निहायत खुशनुमा नक़्क़ाशियाँ बनी थीं। पलंग पर साफ़ सुथरी झलकती हुई सफे़द चादर बिछी थी। पाँयती की तरफ़ दोहती थी। उस पर रंगीन धागों से आँखों को भानेवाली क़शीदाकारी की गयी थी और हाशिया सुर्ख़ नोल का था। सिरहाने बड़े-बड़े मोटे तक़िये रखे थे।
कमरे के आगे लम्बा बरामदा था। बरामदे के सामने चैड़ा अहाता था, जिसके पूरबी कोने में घने दरख़्तों का झुण्ड था। बरामदे में और दरख़्तों के नीचे किसान, बकरे और भेड़ों को लड़ानेवाले और अलग-अलग पेशों से ताल्लुक़ रखने वाले कामगार जगह-जगह छोटी-बडी़ टोलियों में बैठे थे। उनमें बडी़ तादाद ऐसे मर्दों-औरतों की थी, जिनके मुक़दमों की सुनवाई सरदार की कचहरी में चल रही थी या जिनकी सुनवाई अभी शुरू नहीं हुई थी। वे हँस रहे थे या अपने मुक़दमों के बारे में एक-दूसरे से विचार-विमर्श कर रहे थे। उनकी मिली-जुली आवाजों का शोर आहिस्ता-आहिस्ता उभर रहा था, जिसमें सरायकी के साथ-साथ कहीं-कहीं बलूची भी मिली हुई थी।
तमाम आवाजें एकाएक बन्द हो गईं। हर तरफ़ गहरी ख़ामोशी छा गयी। कचहरी के सदर दरवाजे़ की दहलीज़ पर
बैठे हुए दोनों मुलाज़िम घबराकर उठे और नज़रंे झुकाकर मुस्तैदी से खडे़ हो गये। देखते ही देखते दरवाजे़ पर सरदार शहजो़र खान मजा़री प्रकट हुआ। वह घुटनों से भी नीची लम्बी कमीज़ और पूरे बीस गज़ की घेरदार शलवार पहने हुए था। उसके उजले लिबास पर इत्र लगा था, जिसकी तेज़ खुशबू से कमरे की फ़िजा़ महकने लगी। उसकी स्याह दाढी़ खूब घनी थी। मूँछें भी घनी थीं और चढी़ हुई थीं। आँखों से जलाल टपकता था। चेहरे पर रूआब और दबदबा था। पीछे, उसका कारदार चाकर खा़ँ सरगानी और हवेली का मालिशिया था। दोनों गरदनें झुकाये उसके पीछे-पीछे चल रहे थे।
सरदार को देखते ही मुलाज़िमों ने आगे बढ़कर उसके पैरों को हाथ लगाकर पैरनपून किया। ऊँची आवाज़ में दुआएँ दीं। ‘सई’ सरदार सदा जीवें। सुखी-सेहत होवें। खै़र-ख़ैरियत होवे। बाल-बच्चे सुखी सेहत होवंे। सब राज़ी-बाज़ी होवे।
सरदार मज़ारी ने हौले-हौले गरदन हिलायी और उनकी तरफ़ देखे बग़ैर कहा ‘‘खै़र-ख़ैर सलाये।’’ वह गरदन उठाये आहिस्ता-आहिस्ता आगे बढ़ा। रंगीन खाट के करीब गया। टाँगे समेटकर ऊपर पहुँचा। चाकर खा़ँ सरगानी ने झुककर उसके पैरों से ख़स्से उतारे। सरदार तक़ियों से टेक लगाकर बैठ गया। उसने दोनों पैरों के पंजे जोड़कर एक दूसरे से मिलाये और घुटने उठाकर ऊँचे कर लिए। सरगानी के इशारे पर एक मुलाज़िम बढ़कर आगे आया। उसके हाथ में ख़ीरी थी। यह सफे़द मलमल का ढ़ाई गज़ लम्बा टुकड़ा था, जिसे तह करके लगभग छह इंच चैड़ा कर लिया गया था। मुलाज़िम झुका और निहायत मुस्तैदी से ख़ीरी उसकी कमर और घुटनों के गिर्द लपेटकर बग़लबन्दी कर दी। फिर ख़ीरी के दोनों सिरे जोड़कर इस तरह दमोका लगाया कि आँखों के सिवा चेहरे का ज़्यादातर हिस्सा छुप गया। जारी =>

सुमन
loksangharsha.blogspot.com
लोकसंघर्ष पत्रिका में शीघ्र प्रकाशित

मतगणना जारी, कांग्रेस आगेI फरीदाबाद में हंगामा I

चौटाला ने ठोकी दावेदारी
हरियाणा, महाराष्ट्र और अरुणाचल प्रदेश में हुए विधानसभा चुनावों के वोटों की गिनती जारी है। शुरुआती रुझानों में कांग्रेस तीनों राज्यों में आगे चल रही है। लोकसभा चुनाव के बाद यह पहले विधानसभा चुनाव हैं ।
उधर ईवीएम मशीन को लेकर फरीदाबाद में हंगामा हो रहा है। विशेष तौर पर बीजेपी के कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया है कि कुछ मशीनों की सीलें टूटी हुईं थी। लोगों का यह भी कहना है कि शिकायत करने गए व्यक्तियों के साथ वहां के एसडीएम ने अभद्र व्यवहार किया।
इनेलो सुप्रीमो चौ० ओमप्रकाश चौटाला ने कांग्रेस से कम सीटें होने के बावजूद सरकार बनाने की दावेदारी पेश कीI

21.10.09

शोक सभा का आयोजन

सिरसा (प्रैसवार्ता) श्री सर्व सेवा संघ वैल्फेयर ट्रस्ट के जिला कार्यालय में आज ट्रस्ट के प्रधान पूर्ण चन्द अरोड़ा की अध्यक्षता में एक शोक सभा का आयोजन किया गया। शोक सभा में हरियाणा जनहित कांग्रेस के जिलाध्यक्ष वीरभान मेहता की माता श्रीमती लाजवन्ती देवी के आकस्मिक निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया गया। प्रधान श्री पूर्ण चन्द अरोड़ा ने कहा कि माता जी मेहता परिवार के लिए प्रेरणा की स्त्रोत थीं जिसका प्रमाण उनके परिवार के सदस्यों से मिलने पर दिखता है। परिवार का प्रत्येक सदस्य मृदुभाषी एवं परोपकारी है। यह सब कुछ माता जी की प्रेरणा काी ही परिणाम है। पारिवारिक तथा आध्यात्मिक क्षेत्र में भी वह एक सुलझी हुई महिला थीं। इन्होंने अपनी जीवन रूपी गाड़ी बड़ी सुचारू रूप से चलाई। उनके देहावसान के शोकस्वरूप ट्रस्ट के सभी सदस्यों द्वारा दो मिनट का मौन धारण कर दिवंगत आत्मा को श्रद्धांजलि दी गई तथा परमपिता परमात्मा से प्रार्थना की गई कि वे दिवंगत आत्मा को अपने श्री चरणों में स्थान दें तथा उनके परिवार को इस असीम दु:ख को सहन करने की शक्ति प्रदान करें। इस सभा में चेयरमैन श्याम बांसल, प्रदेशाध्यक्ष डा. गुरप्रीत, ललित सोलंकी, विरेन्द्र गोल्डी, जोगिन्द्र सोनी, ललित छिम्पा, सोनू व करण सङ्क्षहत अनेकों सदस्य उपस्थित थे।
अधिक जानकारी के लिए सम्पर्क करें : विरेन्द्र गोल्डी मो. 90176-66300