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13.8.09

बंधन


ये बंधन टूटेना। (2)

चाहे कोई बाधा आये, चाहे आये तूफ़ान।

ये बंधन टूटेना। (2)

साथ कभी छूटेना…ये बंधन टूटेना

ये बंधन टूटेना। (2)

मेरी चाहत इतनी ग़हरी, जितना सागर ग़हेरा।

मेरी चाहत इतनी ऊंची, जितना नभ ये ऊँचा।

हाथ कभी छूटेना…ये बंधन टूटेना

तूँ मेरी साँसों में समाया, तू मेरी आहों में।

दिल की धड़कन नाम पुकारें, तेरा दिन-रातों में।

सांस मेरी छूटेना…ये बंधन टूटेना

तुझको चाहा, तुझको पूजा बनके मीरा मैने।

ढूंढा तुझको हर एक मोड़ पे बनके राधा मैने।

प्यार मेरा छूटेना… ये बंधन टूटेना।

11.8.09

प्रेमानुभूती

वक्त का पहिया चलता जाता
नये - नये ये रूप दिखाता
हर पल एक सीख दे जाता
कि हमको है बस चलते जाना
बचपन छोड युवा बन जाऊ
चाहत थी कोई अपना पाऊ
मन में उनका अरमान लिये
आंखो में एक सपना लिये
चली जा रही थी कोमल मन अपना लिये
दौडती भागती ज़िन्दगी में
वो मिल गये हमे
आराम की ठंडी सांस की तरह
सांसो से साँसे मिली
और वो दिल के मेहमा हुए
बिना कोई किराया- भाड़ा दिये
कह दिया दिल ने दिल से
सुनो हम तुम्हारे हुए
सपनो में कल तक जो साथ था
अब मेरी उंगली थामे चलने लगा
ऐसा लगा खोया सा कोई
ख्वाब सच होने लगा
वो मुझ में और मैं
उन में खोने लगी
वक्त फिर कुछ और भी मेहरबां हुआ
और जाने कब उनका मन मेरा हुआ
आंखो ही आंखो में दुनिया सजी
और दिल एक दूसरे का बसेरा हुआ
चल पड़ी मेरी नैया प्यार की लहर पर
वो इस नैया का खिव्या हुआ
हर दिन मेरा उत्सव और रात मयखाना हुआ
जैसे हर लम्हे पर उनका ही पहरा हुआ
उसके होठो ने मेरे होठो को छू कर कहा
कि उम्र भरके लिये मैं तेरा हुआ
तुझ में खो कर ही तो घर मेरा
फूलो का बगीचा हुआ
जब उसने अपनी अखियाँ खोली
घर मेरा रोशन हुआ
जब गूंजी उसकी किलकारी
तेरा मेरा सपना हमारा हुआ
उसने हंसकर भर दी हमारी झोली
तभी तो हमारा प्यार पूरा हुआ
उसका सपना ही अब हमारा सपना हुआ
देखते ही देखते अपना दुलारा
किसी और का साजना हुआ
हंस - रो कर जी लिया हर पल
प्यार नही , पर अब शरीर बूढ़ा हुआ
पर तेरा प्यार दिन -दिन
और भी गहरा हुआ
जब छोटू का छोटू
चश्मे से तेरे खेला किया
फिर मेरा हंस के कहना
अब तो तू बूढा हुआ
आँख भर आई मेरी
जब मेरा पल्लु पकड़ भर
तेरा यू कहना हुआ
खुशी है कि तेरे साथ में बूढा हुआ
हम हमेशा साथ होंगे मेरा फिर कहना हुआ
और फैल गया हमारा प्यार
एक अविरल धार-सा हर तरफ
वक्त की आँधी चली और तुफा गया
तेरे कंधे पर सज कर
ये तन मेरा इस दुनिया से रुख्सत हुआ
और इस मिट्टी का मिट्टी में ही मिलना हुआ
जब तू रोया फूट कर तो आत्मा चिल्ला उठी
मैं दूर नही हूँ तुमसे
मिट्टी थी मिट्टी में मिल गई
पर मन और आत्मा का तुम से ही संगम हुआ
और जब तुम अकेला होते हो उस आराम कुर्सी पर
मैं देखती हूँ तुम्हे और तुम भी तो महसूस करते हो
जब ढूंढते हो खुद में ही
और दीवारो से मेरे बातें करते हो
तो ये पीड़ा मुझ से सही नही जाती
तुम से मिलने को तड़प उठती है मेरी रुह
तब में खुद से वादा करती हूँ
हर जन्म तेरे ही पत्नी बनने का इरादा रखती हूँ
जब मिलेंगे साँवरे के द्वार पर हम
तब रुह की रुह से मुलाकात होगी
और हमारे लौकिक नही अलोकिक प्रेम की शुरुआत होगी
और वहाँ मृत्यु का बंधन नही होगा
वहा अमिट अमर प्रेम होगा .....
बस प्रेम....हमारा प्रेम
और ये वक्त जिसने हमे मिलाया
हमे दूर करने में लाचार होगा
अगर कुछ शेष होगा तो वो होगा हमारा प्रेम ....!!!!

10.8.09

देखो लोगों मेरे जाने का है पैग़ाम आया.



देख़ो लोगों मेरे जाने का है पैग़ाम आया..(2)

ख़ुदा के घर से है ये ख़त, मेरे नाम आया….देख़ो लोगो…

जिसकी ख़वाहिश में ता-जिन्दगी तरसते रहे।

वो तो ना आये मगर मौत का ये जाम आया। ख़ुदा के घर…..

ज़िंदगी में हम चमकते रहे तारॉ की तरहॉ ।

रात जब ढल गइ, छुपने का ये मक़ाम आया। ख़ुदा के घर…..

राह तकते रहे-ता जिन्दगी दिदार में हम |

ना ख़बर आइ ना उनका कोइ सलाम आया । ख़ुदा के घर…..

चल चुके दूर तलक मंज़िलॉ की खोज में हम।

अब बहोत थक गये रुकने का ये मक़ाम आया। ख़ुदा के घर…..

हम मुहब्बत् में ज़माने को कुछ युं भूल गये ।

हम है दिवाने, ज़माने का ये इल्ज़ाम आया। ख़ुदा के घर…..

जिसने छोडा था ज़माने में युं तन्हा रज़िया

क़ब्र तक छोड़ने वो क़ाफ़िला तमाम आया। ख़ुदा के घर…..

8.8.09

दाता तेरे हज़ारों हैं नाम



दाता तेरे हज़ारों है नाम…(2)

कोई पुकारे तुझे रहीम,

और कोई कहे तुझको राम।दाता(2)

क़ुदरत पर है तेरा बसेरा,

सारे जग पर तेरा पेहरा,

तेरा राज़ बड़ा ही गैहरा,

तेरे इशारे होता सवेरा,

तेरे इशारे होती शाम।दाता(2)

ऑंधी में तुं दीप जलाए,

पत्थर से पानी तूं बहाये,

बिन देखे को राह दिख़ाये,

विष को भी अमृत तू बनाये,

तेरी कृपा हो घनश्याम।दाता(2)

क़ुदरत के हर-सु में बसा तू,

पत्तों में पौंधों में बसा तू,

नदिया और सागर में बसा तू,,

दीन-दु:ख़ी के घर में बसा तू,

फ़िर क्यों में ढुंढुं चारों धाम।दाता(2)

ये धरती ये अंबर प्यारे,

चंदा-सूरज और ये तारे,

पतझड़ हो या चाहे बहारें,

दुनिया के सारे ये नज़ारे,

देखूँ मैं ले के तेरा नाम।दाता(2)




7.8.09

अय धूप कि किरन...



तूं हर सुबह मेरे घर की खिड़की पर दस्तक देती थी।.

छोटी-छोटी किवाडों से मेरे घर में चली आया करती थी।

मैं चिलमन लगा देती फिर भी तू चिलमनो से झांक लिया करती।

तेरी रोशनी चुभती थी मेरी आंखों में,मेरे गालों पर,मेरी पेशानी पर।

मैं तुझे छुपाने कि कोशिश करती थी कभी किताबों के पन्नों से तो

कभी पुरानी चद्दरों से.लेकिन…..

ऎ किरन ! तू किसी न किसी तरहां आ ही जाती.ना जाने तेरा मुजसे

ये कैसा नाता था?क्यों मेरे पीछे पड गई है तूं ?

आज मुझे परदेश जाने का मौका मिला है.मै बहोत खुश हुं।

ऎ किरन ! चल अब तो तेरा पीछा छुटेगा !

दो साल बाद वापस लौटने पर…..

जैसे ही मैने अपने घर का दरवाजा खोला !

मेरा घर मेरा नहीं लगा मुझे,

क्या कमी थी मेरे घर मैं?

क्या गायब था मेरे घर से?…..

अरे हां ! याद आया ! वो किरन नज़र नहीं आती !

बहोत ढुंढा ऊसे,पर कहीं नज़र नहीं आई,वो किरन,

खिड़की से सारी चिलमनें हटा दी मैने,फिर भी वो नहीं आई,

क्या रुठ गई है मुझ से?

घर का दरवाज़ा खोलकर देखा तो,

घर की खिड़की के सामने बहोत बडी ईमारत खडी थी.उसी ने किरन को

रोके रखा था।

आज मैं तरसती हुं, ऊस किरन को, जो मेरे घर में आया करती थी।.

कभी चुभती थी मेरी आंखों में..मेरे गालों पर…

आज मेरा घर अधूरा है, ऊसके बिना.ऊसके ऊजाले से मेर घर रोशन था.

पर आज ! वो रोशनी कहां? क्यों कि ….!

वो धूप की किरन नहीं..

2.8.09

कलम


है बड़ा उसमें जो दम।

चल पडे उसके कदम।

देखो क्या करती कलम।

कभी होती है नरम।

कभी होती है गरम।

देखो क्या करती कलम।

छोड देती है शरम।

खोल देती है भरम।

देखो क्या करती कलम।

कभी देती है ज़ख़म।

कभी देती है मरहम।

देखो क्या करती कलम।

कभी लाती है वहम।

कभी लाती है रहम।

देखो क्या करती कलम।

कभी बनती है नज़म।

कभी बनती है कसम।

देखो क्या करती कलम।

लिख्नना है उसका धरम।

चलना है उसका करम।

देखो क्या करती कलम।

आओ युद्ध की गरिमा सुनावही ,,,,,,,,(कविता)


आओ युद्ध की गरिमा सुनावही,,

रुण्ड मुण्ड सब मिल गावही,,,

छावही मरू भूमि रुण्ड ते ,,,,,

मुण्ड मुण्ड उडावही,,,,,,

गावही मरू गीत कोई ……

।मरू द्वंद कोई बजावही,,,,,

कोई छावही कोई जावही …

कोई जोर जोर चिल्लावही,,,,,

कोई हाथ बिनु मारही …॥

कोई मुख बिनु चिल्लावाही …

कोई पैर बिनु आबही ,,

कोई ,कोई पैरबिनु जावाही ,,,,,

जुंड जुंड आवही ,,,

मरू नीद सोवही॥

स्वान गीत गावही ,,,

काग गीत गावही…

गिद्ध नोच नोच के,

आतडी खावही,,,

झुंड के झुंड चील नर मुण्ड खावही…।

खावही विखरावही गीत भोज गावही ,,,,

स्वान नोचे पांव तो आंख काग खावही,,

ले जावही नभ में ,,,,

कोई नभ ते गिरावही,,,

झपटी झपटी धावही

झपटी लै जावही ,,,

मरे मरे खावही अधमरे नुचावही,,,,,,

हाय हाय चिल्लावही कोई ना सुनावही…

रोवही चिल्लावही हाथ ना हिलावही,,,

खुलत झपट आंख काग लै जावही…।

चीख चीख के अधमरे,

जियति मांस स्वान खावही …॥

मनो रंक भिखारी आजु राज भोज पावही …

आओ युद्ध की गरिमा सुनावही ,,,,,,,,

1.8.09

प्रहर





अंधेरे हैं भागे प्रहर हो चली है।

परिंदों को उसकी ख़बर हो चली है।


सुहाना समाँ है हँसी है ये मंज़र।

ये मीठी सुहानी सहर हो चली है।


कटी रात के कुछ ख़यालों में अब ये।

जो इठलाती कैसी लहर हो चली है।


जो नदिया से मिलने की चाहत है उसकी।

उछलती मचलती नहर हो चली है।


सुहानी-सी रंगत को अपनों में बाँधे।

ये तितली जो खोले हुए पर चली है।


है क़ुदरत के पहलू में जन्नत की खुशबू।

बिख़र के जगत में असर हो चली है।


मेरे बस में हो तो पकडलुं नज़ारे।

चलो राज़ अब तो उमर हो चली है।




31.7.09

यादें !



पीछे मुड़ के हमने जब देखा, गुज़रा वो ज़माना याद आया।

बीती एक कहानी याद आई, बीता एक फ़साना याद आया।.....पीछे.


सितारों को छूने की चाहत में, हम शम्मे मुहब्बत भूल गये।(2)

जब शम्मा जली एक कोने में, हम को परवाना याद आया।.....पीछे.


शीशे के महल में रहकर हम, तो हँसना-हँसाना भूल गये।(2)

पीपल की ठंडी छाँव तले वो हॅसना-हॅसाना याद आया।.....पीछे.


दौलत ही नहीं जीने के लिये, रिश्ते भी ज़रूरी होते हैं।(2)

दौलत ना रही जब हाथों में, रिश्तों का खज़ाना याद आया।.....पीछे.


शहरों की जगमग-जगमग में, हम गीत वफ़ा के भूल गये।(2)

सागर की लहरॉ पे हमने, गाया था तराना याद आया।.....पीछे.


चलते ही रहे चलते ही रहे, मंज़िल का पता मालूम न था।(2)

वतन की वो भीगी मिट्टी का अपना वो ठिकाना याद आया।.....पीछे.


अपनों ने हमें कमज़ोर किया, बाबुल वो हमारे याद आये।(2)

कमज़ोर वो आंखों से उनको वो अपना रुलाना याद आया।.....पीछे.


अय “राज़” कलम तूं रोक यहीं, वरना हम भी रो देंगे।(2)

तेरी ये ग़ज़ल में हमको भी कोई वक़्त पुराना याद आया।.....पीछे.

29.7.09

तलाश एक कारवाँ की...


मेरे पंख मुझसे न छीनलो,

मुझे आसमॉ की तलाश है।


मैं हवा हूँ मुझको न बॉधलो ,

मुझे ये समॉ की तलाश है।


मुझे मालोज़र की ज़रूरक्या?

मुझे तख़्तो-ताज चाहिये !


जो जगह पे मुझको सुक़ुं मिले,

मुझे वो जहाँ की तलाश है।


मैं तो फूल हूं एक बाग़ का।

मुझे शाख़ पे बस छोड दो।


में खिला अभी-अभी तो हूं।

मुझे ग़ुलसीतॉ की तलाश है।


हो भेद भाषा या धर्म के।

हो ऊंच-नीच या करम के।


जो समझ सके मेरे शब्द को।

वही हम-ज़बॉ की तलाश है।


जो अमन का हो, जो हो चैन का।

जहॉ राग_द्वेष,द्रुणा हो।


पैगाम दे हमें प्यार का

वही कारवॉ की तलाश है।

26.7.09

खुद को तन्हा पाती हूँ ,,,(कविता)

-- दुनिया की इस भीड़ में,
खुद को तन्हा पाती हूँ ,,,
ना गम मेरा कम होता ,,,,,,
ना आंसू बहने रुकते है,,,,
हर उम्मीद छिन्न हो जाती है,
न कोई अपना लगता है,
सूरज की हर एक किरण,,,,
अब और अँधेरा फैला जाती ,,,,
बादल की हर एक चींख,
बस मेरी ही करुणा गाती ...
मीठे स्वर नहीं है भाते,,,
मुझको,
मातम का रंग ही भाता है,
बेबसी हसी उडाती है ,,,,
और खामोशी रुला जाती,,,,,
अब हर एक मौसम,
खोया-खोया सा लगता है,
चारो तरफ कुहासा है ...
सब सोया सोया सा लगता है
जाने क्यूँ उनसे रंजिश होती ,,
जिनको सब मिल जाता है ,,,
हमने तो बस खोया है ,,
और खोना ही भाता है,,
हम जिन्हें याद करते है हरपल,
क्या उनके ख्वावो में भी हम होते है
क्या कभी नमी होती है उन आँखों में ,,
जिनकी यादो में हम रोते है

क्या कभी नमीं होती है उन आंखों में ,,
जिनकी यादों में हम रोते हैं ???

इसी सवाल के साथ ,
अनु अग्रवाल

25.7.09

देख़ो आई रुत मस्तानी





देखो आई रुत मस्तानी

बादल से बरसा है पानी।

रिमझिम रिमझिम बरख़ा से लो

मिट्टी हो गई पानी- पानी।

देखो आई रुत मस्तानी।

पत्ते-पेड़ हुए हरियाले, भर गये देख़ो नदियां नाले।

धरती हो गई धानी धानी...

देखो आई रुत मस्तानी।

मेंढक ने जब शोर मचाया, मुन्ना देखो दौडा आया।

हँस हँस नाची गुडिया रानी..

देखो आई रुत मस्तानी।

बिजली चमकी बादल गरजे,रिमझिम रिमझिम बरख़ा बरसे।

आई एक तूफ़ानी॥

देखो आई रुत मस्तानी।

पपीहा पीऊ पीऊ गाता जाये,मोर अदाएं करता जाये।

करते हैं कैसी नादानी...

देखो आई रुत मस्तानी।

मैं पगली नाचुं और गाऊं, भीगुं तो ऐसे शरमाऊं।

बरखा ने दी पूरी जवानी..

देखो आई रुत मस्तानी।



मिड -डे मील

पुराने से फटे टाट पर
स्कूल के पेड के नीचे
बैठे हैं कुछ गरीब बस्ती के बच्चे
कपडों के नाम पर पहने हैं
बनियान और मैले से कछे
उनकी आँखों मे देखे हैं कुछ ख्वाब
कलम को पँख लगा उडने के भाव
उतर आती है मेरी आँखों मे
एक बेबसी,एक पीडा
तोडना नही चाहती
उनका ये सपन
उन्हें बताऊँ कैसे
कलम को आजकल
पँख नही लगते
लगते हैँ सिर्फ पैसे
कहाँ से लायेंगे
कैसे पढ पायेंगे
उनके हिस्से तो आयेंगी
बस मिड -डे मीळ की कुछ रोटियाँ
नेता खेल रहे हैं अपनी गोटियाँ
इस रोटी को खाते खाते
वो पाल लेगा अंतहीन सपने
जो कभी ना होंगे उनके अपने
वो तो सारी उम्र
अनुदान की रोटी ही चाहेगा
और इस लिये नेताओं की झोली उठायेगा
काश कि इस
देश मे हो कोई सरकार
जिसे देश के भविष्य से हो सरोकार्


24.7.09

...हमारा इन्तेज़ार तो देखो

आओ ना.......इतने नखरे क्यों करती हो ?

मौसम तो देखो.............

मौसम की पुकार तो देखो

पूर्व से आती बयार तो देखो

हमारा प्यार न देखो, न सही

पर हमारा इन्तेज़ार तो देखो


देखो तो सही

कितने उतावले हैं हम तुम्हारे लिए

अरे यार ! बावले हैं हम तुम्हारे लिए

तुम हो कि नखरैल बनी हो.............


मेरे आँगन में आती ही नहीं हो

मेरा दामन सरसाती ही नहीं हो


माना कि तुम फ़िदा हो अपने ही हुस्न पर

वक्त लगता है तुम्हें दर्पण से हटने में

लेकिन याद रख ___

मौसम तो तुम्हारा गुलाम नहीं है

बरसे बिन तुम्हें भी आराम नहीं है


अपने प्यासों को गर प्यासा ही मार डालोगी

तो क्या करोगी

उस जल का

जो आँचल में भरा है ..............अचार डालोगी ?

अरी ओ घटा...............

अब तो घट जा............

तुझसे तो बादल ही भला

जो उमड़-घुमड़ आता है

और झट से बरस जाता है...............


आजा आजा ...नाटक मत कर..........

बन्द अपना फाटक मत कर


बरस जा...............

बरस जा...........

बरस जा.............


वरना गीतकार गीत लिखना बन्द कर देंगे तुझ पर

तोड़ कर फैंक देंगे

-काली घटा छाई प्रेम रुत आई वाला कैसेट

आजा मेरी जान आजा

अपने नाम की लाज बचाने के लिए आजा

धरती के सौन्दर्य को सजाने के लिए आजा

हम प्यासों की प्यास बुझाने के लिए आजा

आजा

आजा

आजा ...................................

ऐ काली घटा आजा.............................


-albela khatri
http://albelakhari.blogspot.com/

23.7.09

आ जाओ सांवरे.......!!

पथ पखारू, रह निहारु
जाओ सांवरे........जी जाओ सांवरे


रह ताकत, अखियाँ पत्थराई
तुम्हारे लिये है, दुनिया बिसराई
सुन लो अरज सांवरे
जाओ सांवरे........जी जाओ सांवरे


मैं हूँ तुम्हारी, तुझ में ही खोई
भूली हूँ सब कुछ, मेरा नही कोई
ले लो शरण सांवरे
जाओ सांवरे........जी जाओ सांवरे


जब से है जाना, मैं हूँ तुम्हारी
भूली हूँ सब कुछ , मेरा दोष नही कोई
दर्शन दो सांवरे
जाओ सांवरे........जी जाओ सांवरे


तुम्ही मेरा जीवन, तुम्ही मेरी साँसे
तुम्ही मेरी मुक्ति, तुम्ही मेरे सहारे
पार लगा दो सांवरे
जाओ सांवरे........जी जाओ सांवरे


काम , क्रोध, लोभ, मोह , माया सब मुझ से जुडा है
सृष्टि का कैसा ये जाल बिछा है
कठपुतली से नाच रहे हैं
मुक्ति दो सांवरे
जाओ सांवरे........जी जाओ सांवरे
जाओ सांवरे........जी जाओ सांवरे

22.7.09

कहो कैसी रही!!!!


क्यों कैसी रही?आज?
बड़ा ग़ुरूर था अपने आप पर!!
आज नर्म हो गये ना? वक़्त कब और कैसे अपना रुख़ बदलेगा किसी को पता नहिं है।
और फ़िर अहंकार तो सबसे बूरी बात है।
सब कोइ कहता था कि आप से ही मैं हुं। आप के बिना मेरा कोइ वज़ुद नहिं।
मैं हमेशाँ ख़ामोश रहा।
या कहो कि मेने भी स्वीकार कर लिया था कि आप के आगे मैं कुछ भी नहिं।
लोग कहते थे कि मेरा मिज़ाज ठंडा है और आप का गर्म।
ख़ेर मैं चुपचाप सुन लिया करता था क्योंकि आप की गर्मी से मैं भी तो डरता था।
भाइ में छोटा हुं ना!
पर आज मैं तुम पर हावी हो गया सिर्फ दो घंटों के लिये ही सही।
सारी दुनिया ने देख़ा कि आज तुम नर्म थे छुप गये थे एक गुनाहगार कि तरहाँ।
थोडी देर के लिये तो मुज़े बड़ा होने दो भैया!
पर एक बात कहुं मुज़े आप पर तरस रहा था जब लोग तमाशा देख रहे थे तब!
मैं आप पर हावी होना नहिं चाहता था।
पर मैं क्या करता क़ुदरत के आगे किसी का ना चला है ना चलेगा।
बूरा मत लगाना।
देख़ो आज आप पर आइ इस आपत्ति के लिये सभी दुआ प्रार्थना करते है।
लो मैने अपनी परछाई को आप पर से हटा लिया।
आपको छोटा दिखाना मुज़े अच्छा नहिं लगा।

क्योंकि मैं चंदा हुं और तुमसुरज