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27.11.10

मेरी ट्रेड फेयर यात्रा

प्रगति मैदान में ट्रेड फेयर आरंभ हो चुका है यह समाचार जनसंपर्क साधनों व जासूस मित्रों द्वारा मेरे कानों तक पहुँच चुका था. कई बार मेला देखने का विचार किया था किन्तु कोई न कोई काम होने के कारण नहीं जा सका. माताश्री कई दिनों से व्यापार मेले में जाने के लिए कह चुकी थीं. मैंने भी सोचा कि जब श्रवण कुमार ने अपने माता-पिता को अपने कन्धों पर डोली लटकाकर तीर्थयात्रा करवा डाली तो मैं क्या अपनी मैया को ट्रेड फेयर में भी नहीं घुमा सकता. इस प्रकार एक दिन दृढ निश्चय कर माता श्री को अपनी फटफटिया पर बिठाकर मैं ट्रेड फेयर की यात्रा करवाने चल पड़ा. अब आपके मन में ये विचार कौंध रहा होगा कि श्रवण कुमार की भांति मैं माता-पिता दोनों को एक साथ ट्रेड फेयर की यात्रा पर क्यों नहीं ले गया. तो हुज़ूर इसका भी कारण है. मेरे पिता श्री तो दूसरों (जेबकतरों,चोरों व अन्य अपराधी) को यात्रा(जेल की) करवाते हैं फिर मैं उनका तुच्छ पुत्र ट्रेड फेयर की यात्रा के लिए उनके इस सुकार्य में कैसे बाधा ( डालने का साहस कर सकता हूँ. कुछ समय के पश्चात मैं व माताश्री प्रगति मैदान पहुँच गए. पार्किंग में अपनी फटफटिया को पटक कर हम ट्रेड फेयर के प्रवेशद्वार पर पहुंचे. वहाँ हमारा स्वागत पुलिस में कार्यरत एक महिला द्वारा बुरी तरह चिल्लाकर किया गया. प्रवेश द्वार से भीतर जाने के उपरान्त जब मैंने माता श्री से पुलिसवाली द्वारा इस प्रकार अभद्रता प्रकट करने पर खिन्नता प्रकट की तो माता श्री ने इसका कारण बताया कि वह शायद अपने घर में कोई परेशानी झेल रही होगी अथवा अपनी ड्यूटी से तंग होगी. मैंने कहा कि फिर सरकार पर अहसान क्यों कर रही है जब बस की नहीं है तो नौकरी क्यों नहीं छोड़ देती. खैर हम आगे बढे. मैं आज्ञाकारी पुत्र की भांति माताश्री के पीछे-२ चला जा रहा था. सर्वप्रथम हम दिल्ली के पांडाल में घुसे. अत्यधिक भीड़ थी.कुछ समय बाद ऐसा लगा कि दम घुट जाएगा. बड़ी मुश्किल से हम बाहर निकले. अंदर क्या-क्या देखा कुछ भी याद न रहा. बाहर निकल माता श्री ने इलेक्ट्रोनिक्स सामान के पांडाल की और इशारा किया. हम वहाँ की ओर चल पड़े. नए-२ प्रकार के सामानों के दर्शन हुए.वहाँ चीन के बने सस्ते व घटिया सामान पर जनता टूट पड़ रही थी. शायद उन्हें इसका अनुमान न था कि इन सामानों से हुई आय से चीन भारत के जवानों के सीने छलनी करने के लिए गोलियाँ बनाएगा. इसके पश्चात हम खादी के पांडाल की ओर चल पड़े. सामने देखा तो पुलिसवाले कुछ लड़कों को पीटते हुए ला रहे थे. पता करने पर ज्ञात हुआ कि वे लड़की छेड़ रहे थे. शायद लड़की छेड़ते समय वे यह भूल गए थे कि जिस नारी जाति का वो अपमान कर रहे थे उसी की कोख से ही उनका जन्म हुआ था. खादी भण्डार में भिन्न-२ प्रकार के खादी वस्त्रों से भेंट हुई. यदि महात्मा गाँधी जीवित होते तो वो भी खादी के इतने सारे रूप देखकर दंग रह जाते.वहाँ से निकले तो सामने पाकिस्तान का पांडाल दिखा. हमने सोचा कि चलो इस मुएँ पाकिस्तानी पांडाल की भी खैर-खबर ले ली जाये.भीतर बहुत भीड़ थी. कोई वहाँ का सामान लेने का इच्छुक न था.ऐसा लगता था कि जैसे सभी भारतीय मात्र पाकिस्तानियों को डराने के एकमात्र उद्देश्य से ही वहाँ पहुंचे थे. यह भारतीयों की पाकिस्तानी व्यापारियों को घूरती आँखों को देखकर प्रतीत हो रहा था. पूरा पांडाल डर के मारे थर-२ काँप रहा था.वहाँ से निकलकर हमने उत्तर प्रदेश व मध्यप्रदेश की संस्कृति देखी. राजस्थान, पंजाब तथा दक्षिण भारतीय राज्यों को भी निकट से जाना. अब हम बिहार के पांडाल में थे. वहाँ से माता श्री ने कुछ चूड़ियाँ खरीदीं.बिहार के व्यंजनों का स्वाद लेने की इच्छा हुई. हमने लिट्टी चोखा खाया किन्तु उसमें हमने धोखा ही खाया क्योंकि वह बिलकुल बेस्वाद था.हम थोड़ा और आगे बड़े तो सामने हिमाचल प्रदेश का पांडाल था. मेरे मना करने के बावजूद माता श्री मुझे साथ ले गयीं. वहाँ आनंद आया.हिमाचल की चाय मजेदार थी.जी किया कि काश! ऐसी चाय सदैव पीने को मिले.रात होनेवाली थी. ठण्ड भी बढ़ गयी थी. मैं माता श्री को संग लेकर अपनी फटफटिया पर सवार हो घर की ओर निकल पड़ा. माता श्री अत्यधिक प्रसन्न थीं व ट्रेड फेयर फिर से(अगले वर्ष) देखने की इच्छा जता रही थीं.

3 टिप्पणियाँ:

यात्रा मजेदार थी.

agli baar hame bhi le chalna.

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