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17.10.09

लो क सं घ र्ष !: शुभ लाभ हमारा दर्शन नही


शुभ लाभ हमारा दर्शन नही है, लेकिन ज्योति पर्व दीपावली पर शुभ लाभ का महत्त्व सबसे ज्यादा है इसी कारण हमारी समाज व्यवस्था में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए है जिसके कारण मानव ही खतरे में पड़ गया है। इस त्यौहार को मनाने के लिए लाभ को ही शुभ मानने वाले लोगो ने नकली खोया, मिठाइयाँ, घी, खाद्य तेल सहित तमाम सारी उपभोक्ता वस्तु बाजार में लाभ के लिए बेच रहे है। बिजनौर जनपद में 95 कुंतल सिंटेथिक खोया उससे बनी मिठाइयाँ बरामद हुई है बस्ती जनपद में 4 कुंतल मिठाई, 5 कुंतल खोया रोडवेज की बस में लोग छोड़ कर भाग गए इस तरह से पूरे उत्तर प्रदेश में लाभ के चक्कर में लाखों कुंतल खोया, मीठा, नमकीन, खाद्य पदार्थ को बेचा जा रहा है जिसका दुष्परिणाम यह है कि लोगों को मधुमेह, दिल, गुर्दा, पथरी, कैंसर जैसी लाइलाज बीमारियाँ हो रही है और लोग अकाल मृत्यु मर रहे है

भारतीय समाज का दर्शन मानव कल्याण का दर्शन था इसके साथ हमारी प्रकृति के साथ चलने की प्रवित्ति थी किंतु, पूँजीवाद के संकट ने हमारे सारे मूल्य बदल दिए है लाभ ही शुभ है और शुभ ही लाभ है समय रहते ही अगर हमने पूँजीवाद से निपटा तो मानवीय मूल्य समाप्त हो जायेंगे
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लोकसंघर्ष परिवार की ओर से सभी को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं ।।

सुमन
loksangharsha.blogspot.com

3 टिप्पणियाँ:

वकील साहेब आपने बहुत ही अच्छे ढंग से प्रकाश उत्सव के इस पावन पर्व पर गलत तरीके से लाभ कमाने वाले कमीनों के कृत्य पर प्रकाश डाला. धन्यवाद !

सुमन भाई ,
जै सिया राम ,
' शुभ लाभ' का महत्त्व केवल दीपावली पर ही नहीं है ,सदैव से रहा है और भविष्य में भी रहेगा ऐसा आशावादी मैहूँ ,और यही मेरी सदिच्छा - शुभेच्छा भी है | यह दीपावली या हमारा कोई भी दर्शन नहीं कहता कि ' शुभ ' को छोड़ कर लाभ का कोई और प्रकार भी होता है |
और किसी कार्य से यदि किसी प्रकार का भौतिक - आत्मिक - सामाजिक लाभ न मिले तो उसे निरर्थक कहा जाता है |
पूंजीवाद - पूंजीवाद कहने से मात्र से पूंजी या वाद का महत्त्व कम नहीं हो जाता है वास्तव में बात शुभ-लाभ और अनुचित लाभ के बीच की है x
एक रिपोर्ट से तो आप भी अवगत होंगें कि गन्ने कि खेती से तथा यहाँ तक कि गेंहूँ - धान की खेती से भी किसानो का मोह भंग हो रहा है और रही दलहन और तिलहन की बात तो उसका चलन लगभग ख़त्म ही होता जा रहा है ; सुमन जी [ भाई ] ऐसा क्यूँ है ? क्यों की वे सभी ' लाभप्रद ' न रहीं हैं | और वे लाभप्रद क्यूँ न रहीं और उसका वास्तविक और पहला उत्तरदायी कौन है ? निष्पक्ष हो कर सारे वाद और इज्म के प्रति सारी प्रतिबद्धताओं एवं पूर्वाग्रहों को दर किनार कर सोचें तो जो उत्तर आप को आपने अन्दर से उत्तर मिलेगा वो या सारे तथ्यों का अवलोकन एवं विश्लेषण कर के जिस निष्कर्ष पर आप पहुंचेगें वो एक ही होगा '' अनुचित लाभ उठाने और पाने की भावना और इच्छा ने ,इसी अनुचित लाभ पाने की इच्छा को संक्षेप में '' लोभ '' भी कहतें हैं ,और इसी लोभ के वशीभूत धरती के साथ बलात्कार कर चुके पश्चिमी उत्तर परदेश में यह खेल ज्यादा बड़े स्तर पर चल रहा है क्यूँ कि दिल्ली की दुग्ध पदार्थों की सबसे ज्यादा सप्लाई प्रदेश का यही क्षेत्र करता है ,वैसे इस प्रदेश का कोई भी हिस्सा क्या पूरादेश इस की जकड में आचुका है ,अभी टीवी पर समाचार था कि महाराष्ट्र संभवता बोम्बे में 75 कुण्टल नकली मावा पकडा गया है |
वैसे आजसे 55 ;वर्ष पूर्व भी मैं सुना करता था कि यह खोवा या मावा मिलावटी है तब उसमें सफ़ेद गंजी /शकरकंद मिलाते थे परन्तु उस समय नकली मावा के रोग का जन्म नहीं हुआ था |
और सुमन भाई ऐसे लोगों पर आप के हमारे लेखों या टिप्पणियों से कोई फरक नहीं पड़ना है |
कभी कभी तो मन में इच्छा उठती है कि ऐसे लोगों का न्याय इंडियन पीनल कोड या भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत करने के बजाये पुराना शूली पर चढाने वाला विधान लागू करना चाहिए |
खैर आप का स्वास्थ्य कैसा है आप को तो गरिष्ठ भोजन यानि मावे की मिठाई आदि खाना मन ही होगा ?
दीपाली की'' शुभ लाभ प्रद होने की कामनाओं सहित फ़क़त आप का {अरे फिर शुभ }

vakil sahab me aapki is baat se sehmat hoon. logon ne diwali ke naam pr lojon ko dhokha dene ka ek trika nikal liya he.

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