सुबह हुई । पीठ ने बोझ उठाना आरम्भ किया । कुछ पैसे मिले । उन पैसों से आटे, नमक, तेल खरीदे गए । रोटियां बनी । थोड़ी सब्जी थी । पेट ताबड़तोड़ खाता गया ।
दोपहर बाद --
पीठ ने फ़िर बोझ उठाया । फिर पेट ने खाने का ही काम किया ।
रात हुई है --
और पीठ पर लदकर सो गया बेहया भारी पेट । निश्चिंत, लापरवाह और परजीवी पेट को देख 'अपने देश के नेता याद आए।'
० अभिराम सत्यज्ञ जयशील
1 टिप्पणियाँ:
वाह!!!क्या कहने भाई। थोडे ही शब्दों में बहोत कुछ! वाह!
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