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22.3.10

दो युवक इंडिका कार छिनकर फरार

सफीदों, (हरियाणा) : हलके के हाटरामनगर गांव के बीच दो अज्ञात युवक एक युवक से कार छिनकर फरार हो गए। मिली जानकारी के अनुसार सोनीपत निवासी अनिल कुमार अपने एक साथी के साथ इंडिका कार में सवार होकर गंगाना गांव से रामनगर बारात में जा रहा था। हाटरामनगर गांव के बीच रास्ते में उसके साथी को लघुशंका हुई। अनिल का साथी लघुशंका के लिए कार से उतरकर दूसरी तरफ चला गया। इतने में दो युवक चेतक स्कूटर पर उसी रास्ते से आए और स्कूटर को कार के आगे डाल दिया। उसके बाद उन दोनों युवकों ने अनिल के साथ हाथापाई की तथा उसका पर्स व मोबाइल छिनकर लिया। ततपश्चात वे युवक अनिल से कार छिनकर रामनगर गांव की तरफ भाग गए। मामले की सूचना पुलिस को दी गई। सूचना मिलते ही पुलिस मौके पर पहुंची तथा मौके का मुआयना किया। समाचार लिखे जाने तक कार छिनने वाले युवकों का कोई पता नहीं चल पाया था।

नरेंद्र मोदी ने कानून-संविधान न मानने की कसम खा रखी है

गुजरात दंगो की जांच के लिए नियुक्त विशेष जांच दल के सामने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को पेश होना था किन्तु वह जांच दल के सामने उपस्थित नहीं हुए। फरवरी 2002 में गुजरात में हजारों अल्पसंख्यकों का नरसंहार धर्म के आधार पर किया गया था। माननीय उच्चतम न्यायलय ने जाकिया की शिकायत पर विशेष जांच दल नियुक्त किया था। जाकिया का आरोप था कि मोदी उनकी सरकार के मंत्री पुलिस प्रशासनिक अधिकारीयों से मिलकर गुजरात में दंगे भड़काए थे और कत्लेआम कराया था। जब संविधानिक पदों के ऊपर बैठे हुए लोग इस तरह का कृत्य करेंगे और जांच एजेंसियों के समक्ष उपस्थित नहीं होंगे तो किसी साधारण आदमी से क्या उम्मीद की जा सकती है लेकिन अगर साधारण व्यक्ति को जांच एजेंसी के सामने उपस्थित होना होता और वह उपस्थित नहीं हुआ होता तो उसे होमगार्ड के जवान डंडे बाजी कर के उपस्थित होने के लिए मजबूर कर देतेहमारे लोकतंत्र में नरेंद्र मोदी, राज ठाकरे, बाल ठाकरे जैसे कानून तोडक, संविधान तोडक व्यक्तियों का कोई इलाज नहीं हैयह लोग संविधान न्याय से ऊपर के व्यक्ति हैं गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने तो लगता है कसम खा ली है कि संविधान लोकतान्त्रिक मूल्यों से उनका कोई लेना देना नहीं है
-सुमन

सातवां हनुमान जागरण आयोजित




हनुमान कलियुग के देवता हैं : निगमबोध
सफीदों, (हरियाणा) : श्री हरि संकीर्तन एवं जागरण मंडल के तत्वावधान में नगर की पुरानी अनाज मंडी में सातवां विशाल हनुमान जागरण का आयोजन किया गया। हनुमान जागरण में दण्डी स्वामी निगमबोध तीर्थ महाराज का सानिध्य प्राप्त हुआ। दण्डी स्वामी निगमबोध तीर्थ महाराज ने अखंड ज्योति प्रज्ज्वलित करके जागरण का शुभारंभ किया। जागरण में आए हुए गायकों निशा, किरण शर्मा, अरविंद कौशिक व देवेंद्र शर्मा ने अपनी मधुर गायकी के माध्यम से प्रस्तुत हनुमान भजनों से समा बांध दिया। वहीं मोंटी नटराजन द्वारा प्रस्तुत झांकियों ने दर्शकों का मन मोह लिया। लोग भजनों में इतना सराबोर हुए कि सारी रात जहां पर बैठे से वहीं पर बैठे रहे। वहीं लोगों ने भजनों की धुनों पर थिरकर जागरण का रसास्वादन किया। श्रृद्धालुओं को संबोधित करते हुए दण्डी स्वामी निगमबोध तीर्थ महाराज ने कहा कि सफीदों नगरी एक धार्मिक नगरी है। इस पवित्र धरा की गाथा इतिहास के पन्नों में भरी पड़ी है। इस तरह के धार्मिक कार्यक्रम समयसमय पर यहां पर होते रहने चाहिए। बेहद खुशी का विष्य है कि श्री हरि संकीर्तन एवं जागरण मंडल के तत्वावधान में हर साल आयोजित हो रहा यह हनुमान जागरण सातवें वर्ष् में प्रवेश कर गया है। उन्होंने कहा कि सांसारिक मनुष्य अपने जीवन को व्यर्थ के क्रियाकलापों में उलझाने की बजाए समय का सदुपयोग करते हुए अपना ध्यान भगवान की भति में लगाना चाहिए। मानव जीवन संसार की चिंताएं करने के लिए नहीं अपितु प्रभु का चिंतन करने के लिए मिला है। मनुष्य को हनुमान जी के जीवन चरित्र से सिख लेते हुए अपने जीवन को आगे बढ़ाना चाहिए। उन्होंने कहा कि कलियुग के देवता केवल हनुमान ही हैं जो अपने भतों की हर समस्या में मदद करते हैं। उन्होंने कहा कि आज मनुष्य भोगविलास में पड़ गया है। घर व घर से बाहर देखा जा रहा है कि बड़ों का कोई समान नहीं रह गया है। आज का युवा अपने पथ से भटकर पश्चिमी रंग में रंग गया है। पहले समय में युवा अपने मातापिता की समस्याओं में हाथ बंटाते थे लेकिन आज मातापिता की सबसे बड़ी समस्या खुद युवा वर्ग बन गया है। उन्होंने लोगों खासकर युवाओं से आह्वान किया कि वे अपने पथ से ना भटकते हुए अपने परिवारों को संभाले तथा बड़ों का समान करे। इस मौके पर भारी तादाद में लोग मौजूद थे।

आयुष् विभाग द्वारा निःशुल्क चिकित्सा शिविर आयोजित




आयुर्वेद पद्घति ऋषि मुनियों की खोज : इंदौरा
सफीदों, (हरियाणा) : आयुष् विभाग द्वारा कस्बे के आर्य समाज मंदिर में निःशुल्क चिकित्सा शिविर का आयोजन किया गया। कैंप में मुख्यातिथि एसडीएम सत्यवान इंदौरा व विशिष्ट अतिथि जिला आयुर्वेद अधिकारी डा. महेंद्र सोनी होंगे। चिकित्सा शिविर से पूर्व यज्ञ का आयोजन किया गया। मुख्यातिथि एसडीएम सत्यवान इंदौरा ने कहा कि आयुर्वेद द्वारा जरूरतमंदों की सेवा करना सबसे बड़ा पुण्य का कार्य है। आयुर्वेदिक पद्घति से किया गया इलाज सर्वोतम है। यह पद्घति बड़ेबड़े ऋषि मुनियों की खोज है, जिनका हमें आजतक फायदा मिल रहा है। आयुर्वेदिक इलाज सस्ता व सहज है। आयुर्वेदिक दवाईयों से इलाज धीरेधीरे जरूर होता है, लेकिन मरीज की बीमारी पूर्ण रूप से ठीक हो जाती है। इन दवाईयों का कोर्ई विपरित प्रभाव भी मनुष्य के शरीर पर नहीं पड़ता है। उन्होंने लोगों से आह्वान किया कि वे आयुर्वेदिक विभाग की ज्यादा से ज्यादा सेवाएं ले। विशिष्ट अतिथि जिला आयुर्वेद अधिकारी डा। महेंद्र सोनी ने कहा कि हरियाणा सरकार पूरे प्रदेश में आयुर्वेदे चिकित्सा पद्घति पर पूरा ध्यान दे रही है तथा जगहजगह पर आयुर्वेदिक डिस्पेंसरियों की स्थापना कर रही है। सफीदों के अलावा गांव बुढ़ाखेड़ा, कुरड़ व सिंघाना में भी आयुर्वेदिक डिस्पेंसरी सरकार द्वारा खोली गई है। कोई भी व्यति इनमें जाकर अपना इलाज करवा सकता है। जनता की सेवा के लिए आयुष् विभाग दिनरात तत्पर है। इस शिविर में सैकंड़ो मरीजों ने अपने स्वास्थ्य की जांच करवाई तथा सभी को मौके पर ही दवाईयां भी मुत में दी गई। शिविर में आए हुए अतिथियों को समानित किया गया। शिविर में आयुर्वेद चिकित्सा अधिकारी डा। उपेंद्र खटकड़, डा। जयदीप सिवाच, डा। राममेहर मलिक, डा. सुरेखा व डा. संदीप के पैनल ने मरीजों का ईलाज किया। इस मौके पर आर्य समाज के संरक्षक फूलचंद आर्य, प्रधान यादविंद्र बराड़, उपाध्यक्ष संजीव मुआना, मंत्री सुरेंद्र वत्स व कोषध्यक्ष महाबीर प्रसाद सहित समाज के अन्य लोग मौजूद थे।

सावधान!: कहीं आप पेट्रोल-घटतौली के शिकार तो नहीं

                                              -डा० डंडा लखनवी
छः माह पूर्व मेरा स्कूटर एक लीटर पेट्रोल में चालीस से पैतालीस कि0 मी0 प्रति लीटर एवरेज देता था। दो माह से यह एवरेज घट पच्चीस से तीस किलोमीटर प्रति लीटर रह गया। मैंने स्कूटर का ब्लाक, पिस्टन, इंजन आयल, गेयर आयल, हवा आदि चेक कराये उस स्तर पर सब कुछ सामान्य था। अब यह चेक करने की बारी थी पेट्रोल पंप पर भराए जा रहे पेट्रोल में कोई मिलावट अथवा उसमें घटतौली तो नहीं है। उस स्तर पर जाँच के बाद पिट्रौल में घटतौली पकड़ में आई।


कैसे होती है घटतौली ?


लखनऊ के पेट्रोल पंपों पर जब आप अपने वाहन में पेट्रोल भराने जाएंगे तो हर फिलिंग प्वाइंट आपको दो कर्मचारी मिलेंगे। इसमें से एक कर्मचारी वाहन में पेट्रोल भरेगा और दूसरा कर्मचारी रकम वसूलेगा। यही दोनों कर्मचारियों की मिली जुली साजिस के कारण जितनी कीमत आप चुकाएगे उतनी कीमत का पेट्रोल आपको नहीं मिलेगा। आपको पता भी नहीं चल पाएगा आप ठगे जा चुके हैं। जब यह सब पता चलेगा तब तक बहुत देर हो चुकी होगी।


होता यह है कि पिट्रोल-पंप पहुँचने पर कर्मचारी कितना पेटोल भरा जाय यह आपसे पूछेगा। आप उसे वाहन में भरने हेतु पेटोल की मा़त्रा बताएंगे। इसके बाद वह आपसे मीटर का शून्य देखने को कहेगा। आप मीटर पर शून्य देखेंगे और ओ0के0 कहेंगे। अब वह पेटोल भरना शुरू कर देगा। अभी आपके वाहन में पूरी कीमत का पेटोल भर नहीं पाया है। आप मीटर की ओर  देख रहे हैं। इस बीच दोनों कर्मचारियों में से कोई एक ऐसी बात कहेगा जिससे आपका ध्यान मीटर की ओर से हट जाएगा। इधर आपका ध्यान मीटर से हटा उधर रकम वसूलने वाले वाले कर्मचारी ने सप्लाई आफ की और मीटर जीरो पर पुनः आ गया। आप सोचेंगे कि पूरी मात्रा में पेटोल भरे जाने के बाद जीरो हुआ है परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं होता है। आप घटतौली के शिकार हो चुके होतें हैं। पेटोल पंपों पर ऐसी ठगी शाम-सुबह जब भीड़ का दबाव अधिक होता है, ज्याद होती है। इस ठगी से बचने का उपाय यह है कि आप जितनी कीमत का पेट्रोल लेना हो उतनी कीमत मीटर में फीड करा कर पेट्रोल भराएं।


पिछले कई महीनों से मैं इस ठगी का शिकार हो रहा था। कई पेट्रोल पंपों पर कर्मचारियों को रंगे हाथों पकड़ा और पूरी कीमत का पूरा माल लिया। उपभोक्ता गण सावधान! कहीं आप भी तो ऐसी ठगी के शिकार तो नहीं हो रहे हैं ?

21.3.10

भगत सिंह के वैचारिक शत्रु

शहीद भगत सिंह ब्रिटिश साम्राज्यवाद को इस देश से नेस्तनाबूत कर देना चाहते थेब्रिटिश साम्राज्यवादियो ने अपने मुख्य शत्रु को 23 मार्च 1931 को फांसी दे दी थीब्रिटिश साम्राज्यवाद के दुनिया में पतन के बाद उसकी जगह अमेरिकन साम्राज्यवाद ने ले लीआज देश में अमेरिकन साम्राज्यवाद के पिट्ठू जाति, भाषा, धर्म के विवाद को खड़ा कर देश की एकता और अखंडता को कमजोर करना चाहते हैंवास्तव में यही भगत सिंह की विचारधारा के असली शत्रु हैंइन शत्रुओं का और अमेरिकन साम्राज्यवाद के पिट्ठुओं का हर जगह विरोध करना आवश्यक हैप्रस्तुत लेख शहीद भगत सिंह के शहादत दिवस से पूर्व प्रकाशित किया जा रहा है
- लोकसंघर्ष



भगत सिंह की याद में
उनकी शहादत के 75 वर्ष पूरे होने पर

ब्रिटिश सरकार ने 23 मार्च 1931 को भगत सिंह को फाँसी दी तो वे केवल तेईस साल के थे। लेकिन आज तक वे हिन्दुस्तान के नौजवानों के आदर्श बने हुए हैं। इस छोटी सी उम्र में उन्होंने जितना काम किया और जितनी बहादुरी दिखायी, उसे केवल याद कर लेना काफी नहीं है। हम उन्हें श्रध्दांजलि देते हैं। 1926 में भगत सिंह ने नौजवान भारत सभा का गठन किया। नौजवानों का यह संगठन ब्रिटिश साम्राज्यवाद के शोषण के कारनामे लोगों के सामने रखने के लिए बनाया गया था। मुजफ्फर अहमद, जो कि कम्युनिस्ट पार्टी के स्थापना सदस्य थे, अठारह साल के भगत सिंह के साथ अपनी मुलाकात को याद करते हैं। कम्युनिस्ट पार्टी का गठन 1925 में कानपुर में हुआ था और कानपुर बोल्शेविक कान्स्पिरेसी केस के तहत अब्दुल मजीद और मुजफ्फर अहमद गिरफ्तार कर लिए गये थे। भगत सिंह कॉमरेड अब्दुल मजीद के घर उन दोनों का सम्मान करने गये। जाहिर है, अपने राजनीतिक जीवन की शुरूआत से ही भगत सिंह का रुझान कम्युनिस्ट आंदोलन की तरफ था।

1930 में जब भगत सिंह जेल में थे, और उन्हें फाँसी लगना लगभग तय था, उन्होंने एक पुस्तिका लिखी, “मैं नास्तिक क्यों हूँ।यह पुस्तिका कई बार छापी गयी है और खूब पढ़ी गयी है। इसके 1970 के संस्करण की भूमिका में इतिहासकार विपिन चंद्र ने लिखा है कि 1925 और 1928 के बीच भगत सिंह ने बहुत गहन और विस्तृत अध्ययन किया। उन्होंने जो पढ़ा, उसमें रूसी क्रांति और सोवियत यूनियन के विकास संबंधी साहित् प्रमुख था। उन दिनों इस तरह की किताबें जुटाना और पढ़ना केवल कठिन ही नहीं बल्कि एक क्रांतिकारी काम था। भगत सिंह ने अपने अन्य क्रांतिकारी नौजवान साथियों को भी पढ़ने की आदत लगायी और उन्हें सुलझे तरीके से विचार करना सिखाया।

1924 में जब भगत सिंह 16 साल के थे, तो वे हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) में शामिल हो गये। यह एसोसिएशन सशस्त्र आंदोलन के जरिये ब्रिटिश साम्राज्यवाद को खत् करना चाहता था। 1927 तक HRA के अधिकतर नेता गिरफ्तार किए जा चुके थे और कुछ तो फाँसी के तख्ते तक पहुँच चुके थे। HRA का नेतृत् अब चंद्रशेखर आजाद और कुछ अन्य नौजवान साथियों के कंधों पर पड़ा। इनमें से प्रमुख थे भगत सिंह। 1928 बीतते भगत सिंह और उनके साथियों ने यह त् कर लिया कि उनका अंतिम लक्ष् समाजवाद कायम करना है। उन्होंने संगठन का नाम HRA से बदलकर हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) रख लिया। यह सोशलिस्ट शब्द संगठन में जोड़ने से एक महत्त्वपूर्ण तब्दीली आयी और इसके पीछे सबसे बड़ा हाथ था भगत सिंह का। सोशलिज्म शब्द की समझ भगत सिंह के जेहन में एकदम साफ थी। उनकी यह विचारधारा मार्क्सवाद की किताबों और सोवियत यूनियन के अनुभवों के आधार पर बनी थी। ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ तब तक जो सशस्त्र संघर्ष हुए थे, उन्हें भगत सिंह ने मार्क्सवादी नजरिये से गहराई से समझने की कोशिश की।

दिल्ली असेम्बली में बम फेंकने के बाद 8 अप्रैल 1929 के दिन भगत सिंह बटुकेश्वर दत्त के साथ जेल पहुँचे। बम फेंककर भागने के बजाय उन्होंने गिरफ्तार होने का विकल्प चुना। जेल में उनकी गतिविधियों का पूरा लेखा-जोखा आज हमें उपलब्ध है। उन दिनों भगत सिंह का अध्ययन ज्यादा सिलसिलेवार और परिपक्व हुआ। लेकिन अध्ययन के साथ-साथ भगत सिंह ने जेल में राजनैतिक कैदियों के साथ होने वाले बुरे सलूक के खिलाफ एक लम्बी जंग भी छेड़ी। यह जंग सशस्त्र क्रांतिकारी जंग नहीं थी, बल्कि गांधीवादी किस्म की अहिंसक लड़ाई थी। कई महीनों तक भगत सिंह और उनके साथी भूख हड़ताल पर डटे रहे। उनके जेल में रहते दिल्ली एसेम्बली बम कांड और लाहौर षडयंत्र के मामलों की सुनवाई हुई। बटुकेश्वर दत्त को देशनिकाले की और भगत सिंह , सुखदेव और राजगुरू को फाँसी की सजा हुई।

बेहिसाब क्रूरता के बावजूद ब्रिटिश सरकार उनके हौसलों को पस् नहीं कर पायी। सुश्री राज्यम सिन्हा ने अपने पति विजय कुमार सिन्हा की याद में एक किताब लिखी। किताब का नाम हैएक क्रांतिकारी के बलिदान की खोज।इस पुस्तक में उन्होंने विजय कुमार सिन्हा और उनके दोस् भगत सिंह के बारे में कुछ मार्मिक बातें लिखी हैं। इन क्रांतिकारी साथियों ने कोर्ट में हथकड़ी पहनने से इन्कार कर दिया था। कोर्ट मान भी गयी, लेकिन अपने दिये हुए वादे का आदर नहीं कर पायी। जब कैदी कोर्ट में घुसे तो झड़प शुरू हो गयी और फिर बेहिसाब क्रूरता और हिंसा हुई। - “जब पुलिस को यह लगा कि उनकी इज्जत पर बट्टा लग रहा है तो पठान पुलिस के विशेष दस्ते को बुलाया गया जिन्होंने निर्दयता के साथ कैदियों को पीटना शुरू किया। पठान पुलिस दस्ता अपनी क्रूरता के लिए खास तौर पर जाना जाता था। भगत सिंह के ऊपर आठ पठान दरिंदे झपटे और अपने कँटीले बूटों से उन्हें ठोकर मारने लगे। यही नहीं, उनपर लाठियाँ भी चलाई गयीं। एक यूरोपियन अफसर राबर्टस ने भगत सिंह की ओर इशारा करते हुए कहा कि यही वो आदमी है, इसे और मारो। पिटाई के बाद वे इन क्रांतिकारियों को घसीटते हुए ऐसे ले गये, जैसे भगत सिंह लकड़ी के ठूँठ हों। उन्हें एक लकड़ी की बेंच पर पटक दिया गया। ये सारा हँगामा कोर्ट कंपाउंड के भीतर बहुतेरे लोगों के सामने हुआ। मजिस्ट्रेट खुद भी यह नजारा देख रहे थे। लेकिन उन्होंने इसे रोकने की कोई कोशिश नहीं की। उन्होंने बाद में बहाना यह बनाया कि वे कोर्ट के प्रमुख नहीं थे, इसलिए पुलिस को रोकना उनकी जिम्मेदारी नहीं थी।

शिव वर्मा, जो बाद में सीपीएम के सीनियर कॉमरेड बने और अजय कुमार घोष, जो सीपीआई के महासचिव हुए, इस वारदात में बेहोश हो गये। तब भगत सिंह उठे और अपनी बुलंद आवाज में कोर्ट से कहा, “मैं कोर्ट को बधाई देना चाहता हूँ ! शिव वर्मा बेहोश पड़े हैं। यदि वे मर गये तो ध्यान रहे, जिम्मेदारी कोर्ट की ही होगी।

भगत सिंह उस समय केवल बाईस वर्ष के थे लेकिन उनकी बुलंद शख्सियत ने ब्रिटिश सरकार को दहला दिया था। ब्रिटिश सरकार उन आतंकवादी गुटों से निपटना तो जानती थी, जिनका आतंकवाद उलझी हुई धार्मिक राष्ट्रवादी विचारधारा पर आधारित होता था। लेकिन जब हिन्दुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन का नाम बदलकर हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएशन हो गया और भगत सिंह उसके मुख्य विचारक बन गये तो ब्रिटिश साम्राज्यवादी सरकार दहशत में गयी। भगत सिंह के परिपक्व विचार जेल और कोर्ट में उनकी निर्भीक बुलंद आवाज के सहारे सारे देश में गूँजने लगे। देश की जनता अब उनके साथ थी। राजनीतिक कैदियों के साथ जेलों में जिस तरह का अमानवीय बर्ताव किया जाता था, उसके खिलाफ भगत सिंह ने जंग छेड़ दी और बार-बार भूख हड़ताल की। उनका एक प्यारा साथी जतिन दास ऐसी ही एक भूख हड़ताल के दौरान लाहौर जेल में अपने प्राण गँवा बैठा। जब उसके शव को लाहौर से कलकत्ता ले जाया गया, तो लाखों का हुजूम कॉमरेड को आखिरी सलामी देने स्टेशन पर उमड़ आया।

कांग्रेस पार्टी का इतिहास लिखने वाले बी. पट्टाभिरमैया के अनुसार इस दौरान भगत सिंह और उनके साथियों की लोकप्रियता उतनी ही थी, जितनी महात्‍मा गांधी की !

जेल में अपनी जिन्दगी के आखिरी दिनों में भगत सिंह ने बेहिसाब पढ़ाई की। यह जानते हुए भी कि उनके राजनीतिक कर्मों की वजह से उन्हें फाँसी होने वाली है, वे लगातार पढ़ते रहे। यहाँ तक कि फाँसी के तख्ते पर जाने के कुछ समय पहले तक वे लेनिन की एक किताब पढ़ रहे थे, जो उन्होंने अपने वकील से मँगायी थी। पंजाबी क्रांतिकारी कवि पाश ने भगत सिंह को श्रध्दांजलि देते हुए लिखा है, “लेनिन की किताब के उस पन्ने को, जो भगत सिंह फाँसी के तख्ते पर जाने से पहले अधूरा छोड़ गये थे, आज के नौजवानों को पढ़कर पूरा करना है।गौरतलब है कि पाश अपने प्रिय नेता के बलिदान वाले दिन, 23 मार्च को ही खालिस्तानी आतंकवादियों द्वारा मार दिये गये।

भगत सिंह ने जेल में रहते हुए जो चिट्ठियॉं लिखते थे, उनमें हमेशा किताबों की एक सूची रहती थी। उनसे मिलने आने वाले लोग लाहौर के द्वारकादास पुस्तकालय से वे पुस्तकें लेकर आते थे। वे किताबें मुख्य रूप से मार्क्सवाद, अर्थशास्त्र, इतिहास और रचनात्मक साहित् की होती थीं। अपने दोस् जयदेव गुप्ता को 24 जुलाई 1930 को जो ख़त भगत सिंह ने लिखा, उसमें कहा कि अपने छोटे भाई कुलबीर के साथ ये किताबें भेज दें : 1) मिलिटेरिज् (कार्ल लाईपनिस्ट), 2) व्हाई मेन फाईट (बर्न्टेड रसेल), 3) सोवियत् ऐट वर्क 4) कॉलेप्स ऑफ दि सेकेण्ड इंटरनेशनल 5) लेफ्ट विंग कम्यूनिज्म (लेनिन) 6) म्युचुअल एज (प्रिंस क्रॉप्टोकिन) 7) फील्ड, फैक्टरीज एण्ड वर्कशॉप्स, 8) सिविल वार इन फ्रांस (मार्क्स), 9) लैंड रिवोल्यूशन इन रशिया, 10) पंजाब पैजेण्ट्स इन प्रोस्पेरिटी एण्ड डेट (डार्लिंग) 11) हिस्टोरिकल मैटेरियलिज्म (बुखारिन) और 12) स्पाई (ऊपटॉन सिंक्लेयर का उपन्यास)

भगत सिंह औपचारिक रूप से ज्यादा पढ़ाई या प्रशिक्षण हासिल नहीं कर पाए थे, फिर भी उन्हें चार भाषाओं का अच्छा ज्ञान था। उन्होंने पंजाबी, हिन्दी, उर्दू और अंग्रेजी भाषाओं में लिखा है। जेल से मिले उनके नोटबुक में 108 लेखकों के लेखन और 43 किताबों में से चुने हुए अंश मौजूद हैं। ये अंश मुख्य रूप से मार्क्स और एंगेल्स के लेखन से लिए गए हैं। उनके अलावा उन्होंने थॉमस पाएने, देकार्ट, मैकियावेली, स्पिनोजा, लार्ड बायरन, मार्क ट्वेन, एपिक्यूरस, फ्रांसिस बेकन, मदन मोहन मालवीय और बिपिन चंद्र पाल के लेखन के अंश भी लिए हैं। उस नोटबुक में भगत सिंह का मौलिक एवं विस्‍तृत लेखन भी मिलता है, जो “दि साईंस ऑफ दि स्टेट” शीर्षक से है। ऐसा लगता है कि भगत सिंह आदिम साम्यवाद से आधुनिक समाजवाद तक समाज के राजनीतिक इतिहास पर कोई किताब या निबंध लिखने की सोच रहे थे।

जिस बहादुरी और दृढ़ता के साथ भगत सिंह ने मौत का सामना किया, आज के नौजवानों के सामने उसकी दूसरी मिसाल चे ग्वारा ही हो सकते हैं। चे ग्वारा ने क्रांतिकारी देश क्यूबा में मंत्री की सुरक्षित कुर्सी को छोड़कर बोलिविया के जंगलों में अमेरिकी साम्राज्यवाद से लड़ने का विकल्प चुना। चे ग्वारा राष्ट्रीय सीमाएँ लाँघकर लातिनी अमेरिका के लोगों को पढ़ना-लिखना सिखाते थे। ये सच है कि चे ग्वारा का व्यक्तिगत अनुभव भगत सिंह की तुलना में बहुत ज्यादा विस्‍तृत था, और उसी वजह से उनके विचार भी अधिक परिपक्व थे। लेकिन क्रांति के लिए समर्पण और क्रांति का उन्माद दोनों ही नौजवान साथियों में एक जैसा था। दोनों ने साम्राज्यवाद और पूँजीवादी शोषण के खिलाफ लड़ाई लड़ी। दोनों ने ही अपने उस मकसद के लिए जान दे दी, जो उन्हें अपनी जिन्दगी से भी ज्यादा प्यारा था।

20 मार्च 1931 को, अपने शहादत के ठीक तीन दिन पहले भगत सिंह ने पंजाब के गवर्नर को एक चिट्ठी लिखी, “हम यह स्पष्ट घोषणा करें कि लड़ाई जारी है। और यह लड़ाई तब तक जारी रहेगी, जब तक हिन्दुस्‍तान के मेहनतकश इंसानों और यहाँ की प्राकृतिक सम्पदा का कुछ चुने हुए लोगों द्वारा शोषण किया जाता रहेगा। ये शोषक केवल ब्रिटिश पूँजीपति भी हो सकते हैं, ब्रिटिश और हिन्दुस्‍तानी एक साथ भी हो सकते हैं, और केवल हिन्दुस्‍तानी भी। शोषण का यह घिनौना काम ब्रिटिश और हिन्दुस्‍तानी अफसरशाही मिलकर भी कर सकती है, और केवल हिन्दुस्‍तानी अफसरशाही भी कर सकती है। इनमें कोई फर्क नहीं है। यदि तुम्हारी सरकार हिन्दुस्‍तान के नेताओं को लालच देकर अपने में मिला लेती है, और थोड़े समय के लिए हमारे आंदोलन का उत्‍साह कम भी हो जाता है, तो भी कोई फर्क नहीं पड़ता। यदि हिन्दुस्‍तानी आंदोलन और क्रांतिकारी पार्टी लड़ाई के गहरे अँधियारे में एक बार फिर अपने-आपको अकेला पाती है, तो भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा। लड़ाई फिर भी जारी रहेगी। लड़ाई फिर से नये उत्‍साह के साथ, पहले से ज्यादा मुखरता और दृढ़ता के साथ लड़ी जाएगी। लड़ाई तबतक लड़ी जाएगी, जबतक सोशलिस्ट रिपब्लिक की स्थापना नहीं हो जाती। लड़ाई तब तक लड़ी जाएगी, जब तक हम इस समाज व्यवस्था को बदल कर एक नयी समाज व्यवस्था नहीं बना लेते। ऐसी समाज व्यवस्था, जिसमें सारी जनता खुशहाल होगी, और हर तरह का शोषण खत्‍म हो जाएगा। एक ऐसी समाज व्यवस्था, जहाँ हम इंसानियत को एक सच्ची और हमेशा कायम रहने वाली शांति के दौर में ले जाएँगे......... पूँजीवादी और साम्राज्यवादी शोषण के दिन अब जल्द ही खत्‍म होंगे। यह लड़ाई न हमसे शुरू हुई है, न हमारे साथ खत्‍म हो जाएगी। इतिहास के इस दौर में, समाज व्यवस्था के इस विकृत परिप्रेक्ष्‍य में, इस लड़ाई को होने से कोई नहीं रोक सकता। हमारा यह छोटा सा बलिदान, बलिदानों की श्रृंखला में एक कड़ी होगा। यह श्रृंखला मि. दास के अतुलनीय बलिदान, कॉमरेड भगवतीचरण की मर्मांतक कुर्बानी और चंद्रशेखर आजाद के भव्य मृतयुवरण से सुशोभित है।”

उसी 20 मार्च्र के दिन नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने दिल्ली की एक आम सभा में कहा, “आज भगत सिंह इंसान के दर्जे से ऊपर उठकर एक प्रतीक बन गया है। भगत सिंह क्रांति के उस जुनून का नाम है, जो पूरे देश की जनतापर छा गया है।”

फ्री प्रेस जर्नल ने अपने 24 मार्च 1931 के संस्करण में लिखा, “शहीद भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव आज जिन्दा नहीं हैं। लेकिन उनकी कुर्बानी में उन्हीं की जीत है, यह हम सबको पता है। ब्रिटिश अफसरशाही केवल उनके नश्वर शरीर को ही खत्‍म कर पायी, उनका जज्बा आज देश के हर इंसान के भीतर जिन्दा है। और इस अर्थ में भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव अमर हैं। अफसरशाही उनका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकती। इस देश में शहीद भगत सिंह और उनके साथी स्वतंत्रता के लिए दी गयी कुर्बानी के लिए हमेशा याद किए जाएँगे। “सचमुच, 1931 के ब्रिटिश राज के उन आकाओं और कारिंदों की याद आज किसी को नहीं, लेकिन तेईस साल का वह नौजवान, जो फाँसी के तख्‍ते पर चढ़ा, आज भी लाखों दिलों की धड़कन है।”

आज अगर हम भगत सिंह की जेल डायरी और कोर्ट में दिये गये वक्‍तव्य पढ़ें, और उसमें से केवल “ब्रिटिश” शब्द को हटाकर उसकी जगह “अमेरिकन” डाल दें, तो आज का परिदृश्य सामने आ जाएगा। भगत सिंह के जेहन में यह बात बिल्कुल साफ थी, कि शोषक ब्रिटिश हों या हिन्दुस्‍तानी, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। आज लालच के मारे हिन्दुस्‍तानी नेता और अफसर अमरीकी खेमे में जा घुसे हैं। लेकिन भगत सिंह के ये शब्द हमारे कानों में गूँज रहे हैं - “लड़ाई जारी रहेगी।” आज के बोलिविया में चे ग्वारा और अलान्दे फिर जीवित हो उठे हैं। लातिनी अमेरिका की इस नयी क्रांति से अमरीका सहम गया है। उसी तरह हिन्दुस्‍तान में भगत सिंह के फिर जी उठने का डर बुशों और ब्लेयरों को सताता रहे।

विपिन चंद्र ने सही लिखा है कि हम हिन्दुस्‍तानियों के लिए यह बड़ी त्रासदी है कि इतनी विलक्षण सोच वाले व्यक्ति के बहुमूल्य जीवन को साम्राज्यवादी शासन ने इतनी जल्दी खत्‍म कर डाला। उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद ऐसे घिनौने काम करता ही है, चाहे हिन्दुस्‍तान हो या वियतनाम, इराक हो, फिलीस्‍तीन हो या लातिन अमरीका। लेकिन लोग इस तरह के जुर्मों का बदला अपनी तरह से लेते हैं। वे अपनी लड़ाई और ज्यादा उग्रता से लड़ते हैं। आज नहीं तो कल, लड़ाई और तेज होगी, और ताकतवर होगी। हमारा काम है क्रांतिकारियों की लगाई आग को अपने जेहन में ताजा बनाए रखना। ऐसा करके हम अपनी कल की लड़ाई को जीतने की तैयारी कर रहे होते हैं।

--लेखक, श्री चमनलाल, प्राध्यापक, जे एन यू, दिल्ली
अनुवादक , सुश्री जया मेहता एवं सुधीर साहू

20.3.10

मुंबई आतंकी घटना के सूत्रधार को भारत सरकार देश में लाने में असफल

भारत सरकार ने अपनी गुटनिरपेक्ष नीति को छोड़ कर अमेरिकन साम्राज्यवाद के साथ अप्रत्यक्ष रूप से रहना स्वीकार कर लिया है अमेरिकन साम्राज्यवाद की दोहरी नीतियों का खामियाजा हमारे देश को भुगतना पड़ रहा है मुंबई आतंकी घटना के सूत्रधार एफ.बी.आई मुखबिर अमेरिकन नागरिक डेविड कोलमेन हेडली भारत सरकार प्रत्यर्पण करने में असफल है क्योंकि प्ली अग्रीमेंट से हेडली सजा मौत नहीं दी जा सकती है अब उसे अधिकतम सजा उम्रकैद की ही हो सकती है और इस प्ली अग्रीमेंट के तहत उसको पाकिस्तान भारत डेनमार्क को नहीं सौंपा जा सकता है
भारत सरकार इस बात में ही खुश हो लेगी कि उसकी टीम अमेरिका जाकर हेडली से कुछ पूछताछ कर लेगी क्योंकि हेडली भारतीय जांच अधिकारीयों से बात करने के लिए तैयार हो गया है यदि वह बात करने के लिए तैयार हुआ होता तो भारत सरकार उसका कुछ नहीं कर सकती थी हमारे गृहमंत्री पि.चिदंबरम अब कह रहे हैं की हम अमेरिका पर दबाव डालना जारी रखेंगे यह उसी तरह की बात है जिस तरह से पकिस्तान में हो रहे बम विस्फोटो के बाद वहां की सरकार के मंत्री हल्ला मचाते हैं और अमेरिका द्वारा हलकी तिरछी निगाहें करने पर चुप हो जाते हैं
साम्राज्यवादी शक्तियां शोषण करने के लिए दुनिया के मुल्कों में अशांति फैलाई जाती है और फिर उस अशांति को दबाने के लिए उस देश की सरकार को अपनी पिट्ठू सरकार बनाने की कोशिश की जाती है आज जरूरत इस बात की है कि इन साम्राज्यवादी शक्तियों के कुचक्रों को पहचाने और उन्सका मुंहतोड़ जवाब दें भारत सरकार यदि अपनी इच्छाशक्ति का इस्तेमाल करे तो साम्राज्यवादी शक्तियों के मंसूबे एशिया महाद्वीप में नहीं पूरे हो सकते हैं
-सुमन

19.3.10

मनुष्य जाति की मित्र नजदीकी पक्षी गौरैया


विश्व गौरैया दिवस पर

गौरैया हमारे जीवन का एक अंग है मनुष्य जहाँ भी मकान बनता है वहां गौरैया स्वतः जाकर छत में घोसला बना कर रहना शुरू कर देती है। हमारे परिवारों में छोटे छोटे बच्चे गौरैया को देख कर पकड़ने के लिए दौड़ते हैं उनसे खेलते हैं उनको दाना डालते हैं। हमारा घर गाँव में कच्चा बना हुआ है जिसकी छत में सैकड़ो गौरैया आज भी रहती हैं। घर के अन्दर बरामदे में एक छोटी दीवाल है। जिस पर हमारी छोटी बहन नीलम एक कप में पानी व चावल के कुछ दाने रख देती थी जिसको गौरैया आकर खाती थीं और पानी पीती थी। बहन की शादी के बाद भी वह परंपरा जारी है हमारा लड़का अमर और मैं पकड़ने के लिए आँगन में टोकरी एक डंडी के सहारे खड़ी कर देते थे, टोकरी के नीचे चावल के दाने डाल दिए जाते थे टोकरी वाली डंडी में रस्सी बंधी होती थी उस रस्सी का एक सिरा काफी दूर ले जा कर मैं और मेरा लड़का लेकर बैठते थे गौरैया चावल चुनने आती थी और टोकरी के नीचे आते ही रस्सी खींच देने से वह टोकरी के नीचे कैद हो जाती थी। टोकरी पर चद्दर डाल कर गौरैया पकड़ी जाती थी । गौरैया लड़का देखने के पश्चात उसको अपनी मम्मी के पास पहुंचा दो कहकर छोड़ देता था। इस तरह से खाली वक्त में कई कई घंटो का खेल होता रहता था। हमारे घर में तुलसी का पौधा लगा हुआ है जिसकी पूजा करने के लिए चावल की अक्षत इस्तेमाल होती है, जिसको गौरैया के झुण्ड आकर खाते हैं जिसको देखना काफी अच्छा लगता है । शहर में भी जो मकान है जिसमें तुलसी का पौधा लगा है, मेरी पत्नी रमा सिंह एक शुद्ध हिन्दू गृहणी हैं जो रोज सूर्य और तुलसी की पूजा करती हैं और जिसमें अक्षत के रूप में चावल के दानो का प्रयोग करती हैं जिसको गौरैया आज भी आकर चुनती हैं तथा दूसरे भी पक्षी सुबह सुबह आकर चावल के दानो को चुनते हैं । किसी कारणवश वह यदि वह पूजा नहीं करती हैं तो भी चावल के दाने चुनने के लिए बिखेर दिए जाते हैं , अगर गौरैया का लगाव मनुष्य जाति से है तो मनुष्य का भी लगाव गौरैया से रहा है ।
पूंजीवादी विकास के पथ पर मानव जाति ने बहुत कुछ खोया है जब हम मकान बनाते हैं तब हम यह समझते हैं कि यह जमीन हमारी है जबकि वास्तव में उस जमीन पर रहने वाले सांप बिच्छु से लेकर विभिन्न प्रकार के पशु पक्षियों की भी होती है हम सबल हैं इसलिए जीव जगत के एनी प्राणियों के हिस्से की भी जमीन हवा पानी पर भी अपना अधिपत्य स्थापित कर लेते हैं। हमने पानी को गन्दा कर दिया है हवा को गन्दा कर दिया है और कीटनाशको का अंधाधुंध प्रयोग करके प्राणी व वनस्पति जगत को काफी नुकसान पहुँचाया है ।
गौरैया व बया प्लोकाईड़ी परिवार की सदस्य हैं । यह जंगलो में भारी संख्या में रहती हैं। गौरैया कांटेदार झुरमुट वाली झाड़ियों में भी झुण्ड के साथ रहती हैं। इनके अंडे मध्यिम हरापन लिए सफ़ेद होते हैं उनपर कई प्रकार के भूरे रंगों के निशान होते हैं अन्डो से बच्चे निउकलते हैं जो बहुत कोमल होते हैं। जिनको गौरैया छोटे-छोटे कीड़े-मकौड़े घोसले में लाकर खिलाती रहती है और पंख निकाल आने पर दो तीन दिन उड़ने का अभ्यास करा कर मुक्त कर देती है । मनुष्य जाति को इससे सबक लेना चाहिए कि पक्षी अपने बच्चो की निस्वार्थ सेवा कर योग्य बनते ही मुक्त कर देते हैं और हम पीढ़ी दर पीढ़ी दूसरों का हक़ मार कर बच्चो को बड़े हो जाने के बाद भी आने वाली पीढ़ियों के लिए व्यवस्था करने में लगे रहते हैं जिससे अव्यस्था ही फैलती है और असमानता भी ।
अंत में लखीमपुर खीरी के चिट्ठाकार श्री कृष्ण कुमार मिश्रा को विश्व गौरैया दिवस के प्रचार-प्रसार के लिए धन्यवाद देता हूँसाथी रामेन्द्र जनवार को विश्व गौरैया दिवस के अवसर पर यह सलाह देता हूँ कि गौरैया से सीखें और बार-बार घोसले बदलें
-सुमन

विज्ञान और ज्योतिष

                   विज्ञान और ज्योतिष

                                        -  डॉ० डंडा लखनवी     

आजकल अनेक टी०वी० चैनलों पर ज्योतिषशास्त्र से जुडे़ कार्यक्रम प्रमुखता से प्रसारित हो रहे हैं। प्राय: ऐसा  सब टी०आर०पी० बढ़ाने के लिए होता है। इस कार्यक्रम में ज्योतिषियों के अपने तर्क होते हैं और वैज्ञानिकों के अपने। दोनों में से कोई भी हार मानने के लिए तैयार नहीं होता। अंतत: ज्योतिषी महोदय को क्रोध आ जाता है और वे अपनी विद्या-बल के प्रभाव से विज्ञानवादी वक्ता को सबक सिखाने पर तुल जाते हैं। यह सबक येनकेनप्रकारेण उसे भयभीत करने का होता है। इस काम के लिए वह मनोविज्ञान का भरपूर उपयोग करता है। ज्योतिषी महोदय के तेवर धीरे-धीरे आक्रामक होते जाते है और विज्ञानवादी के स्थिति रक्षात्मक । कुल मिला कर यह एक ऐसा स्वांग होता है जो दिन भर चलता है। दर्शकगण हक्का-बक्का हो कर दोनों के तर्क-वितर्क में डूबते-उतराते रहते हैं।इस संबंध में मेरा मानना है कि.......

ज्योति शब्द प्रकाश अर्थात आलोक का द्योतक है। प्रकाश के सम्मुख आने पर वे सभी चीजें दिखने लगती हैं जो अंधेरे के कारण हमें नहीं दिखाई पड़ती हैं।......जिस प्रकार सजग शिक्षक अपने विद्यार्थियों के आचरण और व्यवहार में निहित गुण-दोषों को देखकर उसके जीवन का खाका खीच देता है। वैसे ही ज्योतिषी भी जातक के जीवन में घटित होने वाली धटनाओं का अनुमान लगाता है, खाका खीचता है। इस कार्य में वह धर्म, दर्शन, गणित, अभिनय-कला, नीतिशात्र, तर्कशास्त्र, मनोविज्ञान, पदार्थ-विज्ञान, शरीर-विज्ञान, खगोल-विज्ञान, समाजशात्र तथा लोक रुचि के नाना विषयों का सहारा लेता है। वस्तुत: ज्योतिषशास्त्र एक सामाजिक विज्ञान है। इस विज्ञान की प्रयोगशाला समाज है। सामाजिक विज्ञानों के लिए अकाट्य सिद्धांतों का निरूपण करना कठिन होता है। सामाजिक परिवर्तन की गति बहुत धीमी होती है। इसके प्रभाव भी तत्काल दिखाई नहीं देते हैं। यह बात ज्योतिषशास्त्र पर भी लागू होती है। अत: अन्य सामाजिक विज्ञानों की भांति इस विज्ञान के निष्कर्ष शतप्रतिशत खरे होने की कल्पना आप कैसे कर सकते हैं? इस निष्कर्ष विविधता का एक अन्य कारण और भी है कि कु़दरती तौर पर संसार का हर व्यक्ति अपने आप में मौलिक होता है। उसके जैसा कोई दूसरा व्यक्ति नहीं होता है। इस आधार  पर हर व्यक्ति का भविष्य भी दूसरे से भिन्न ठहरेगा। अत: शुद्ध विज्ञान की भांति इससे तत्काल और सटीक परिणामों की आशा करना व्यर्थ है।............ हाँ किसी धंधे को चमकाने के लिए...... मीडिया एक अच्छा माध्यम है । ‘ज्योतिषियों’ और मीडिया की आपसी साठगांठ से दोनों का धंधा फलफूल रहा है।............ वर्तमान को सुधारने से भविष्य सुधरता है। इस तथ्य जो मनीषी परिचित हैं उन्हें मालूम हो जाता है कि उनका भविष्य कैसा होगा।