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11.6.10

लो क सं घ र्ष !: एंडरसन की चाकरी- भोपाल गैस काण्ड

(मेरा क्या कर लोगे)

यूनियन कार्बाईड के प्रमुख वारेन एंडरसन की गिरफ्तारी के बाद शासक दल ने और सरकार के अधिकारियों ने जिस तरह से उसकी मदद की है वह अपने में एक महत्वपूर्ण उदहारण है । वैचारिक स्तिथि में हम लोग यूरोपीय और अमेरिकन भक्त हैं हमारे वहां का अभिजात्य वर्ग पहले ब्रिटिश साम्राज्यवाद की चापलूसी में लगा रहता था और अब अमेरिकन साम्राज्यवाद की चापलूसी में लगा रहता है। हम सबको याद होगा की राष्ट्रवाद के प्रबल प्रवक्ता व तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के अमेरिका यात्रा पर वहां के राष्ट्रपति ने शराब का भरा गिलास इनके ऊपर गिरा दिया था, सब चुप रहे। तत्कालीन रक्षा मंत्री श्री जार्ज फर्नांडीज जब अमेरिका यात्रा पर गए तो वहां प्रोटोकॉल के विपरीत जामा तलाशी हुई और कोई विरोध नहीं हुआ। मनमोहन सिंह जी तो अमेरिका में काफी दिन रहकर नौकरी किये हैं वह कैसे विरोध कर सकते हैं। बड़ी-बड़ी कंपनियों के ये सब राजनेता चाकर होते हैं। डी.एम और एस.पी नियमित रूप से वहां से पगार पाते हैं। न्याय व्यवस्था के भी अधिकारी पीछे नहीं रहते हैं। इन कंपनियों के अधिकारी होली-दिवाली से लेकर ईद-बकरीद तक तमाम तरह के तोहफे इनको भेंट करते रहते हैं। तो फैसले भी उन्ही के पक्ष में ही होते हैं पूर्व मुख्य न्यायधीश उच्चतम न्यायलय श्री अहमदी साहब ने रिट याचिका ख़ारिज की थी। अगर वही रिट याचिका किसी सामान्य व्यक्ति के खिलाफ होती तो निश्चित रूप से उसके ऊपर अंतर्गत धरा 304 आई.पी.सी का वाद चलता। भारतीय दंड संहिता में इस बात की व्यवस्था है कि वही अपराध साधारण आदमी करे तो आजीवन कारावास की सजा हो सकती है और वही अपराध बड़ा आदमी करे तो पुलिस को जांच करने का अधिकार भी नहीं रहता है और उसके ऊपर वाद चलने के लिए न्यायलय की अनुमति की आवश्यकता होती है यह प्रक्रिया सामान्य प्रक्रिया है । एंडरसन एक मल्टी नेशनल कंपनी का मुखिया था। उसके खिलाफ राजनेता, न्यायलय, कानून, संविधान को जानबूझ कर खामोश रहना ही था। यह व्यवस्था हम समझते है की हमारे जीवन को सुखमय करने के लिए है जबकि विधि के नाम पर आप को अपाहिज और पंगु करने के लिए है। सरकार की इच्छा थी मल्टी नेशनल कंपनी के मुखिया को सारी सुविधाएं देकर उसके देश वापस भेजना था , वह काम उन्होंने खूबसूरती से कर दिया। व्यवस्था लाखो लोगो के रोजगार छीन कर भूखो मरने के लिए मजबूर करती हैं और उनके हिस्से की हवा पानी जमीन उद्योगपतियों के तिजोरियो में बंद होने के लिए है।

सुमन
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1 टिप्पणियाँ:

में चाहे ये करूं में चाहे वोह करूं मेरी मर्जी

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