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24.12.09

रूचिका छेड़छाड़ व आत्महत्या कांड का तिथि अनुसार ब्यौरा

रूचिका के साथ 12 अगस्त, 1990 को उस समय के आईजी व लोन टेनिस एसोसिएशन के अध्यक्ष एसपीएस राठौर ने छेड़छाड़ की थी।
इस सम्बन्ध में 16 अगस्त को गृह सचिव व मुख्यमन्त्री सहित विभिन्न आलाधिकारियों को शिकायत की गई। उस समय प्रदेश में चौधरी हुकम सिंह मुख्यमन्त्री थे। उन्होंने 17 अगस्त को डीजीपी आरआर सिंह से मामले की जांच करने को कहा। इस मामले में पुलिस के पास 18 अगस्त, 1990 को रपट रोजनामचा (डीडीआर नंबर-12) दर्ज की गई।
मामले की जांच करने के बाद डीजीपी आरआर सिंह ने 3 सितम्बर, 1990 को कहा कि प्रारम्भिक तौर पर राठौर के खिलाफ मामला बनता है और इस मामले में एफआईआर दर्ज की जानी चाहिए। बाद में बने डीजीपी आरके हुड्डा व उस समय के गृह सचिव ने एफआईआर की बजाय राठौर को चार्जशीट किए जाने की सिफारिश की। उस समय के गृह मन्त्री ने 12 मार्च, 1991 को और मुख्यमन्त्री हुकम सिंह ने 13 मार्च, 1991 को इससे सहमति जता दी।
हुकम सिंह 22 मार्च, 1991 तक प्रदेश के मुख्यमन्त्री रहे और उसके बाद 22 मार्च, 1991 से 6 अप्रैल, 1991 तक सिर्फ दो हफ्तों के लिए ओमप्रकाश चौटाला प्रदेश के मुख्यमन्त्री बने लेकिन इस दौरान यह मामला उनके पास नहीं आया।
6 अप्रैल, 1991 से 22 जुलाई, 1991 तक प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू रहा और राष्ट्रपति शासन के दौरान ही प्रदेश में विधानसभा चुनाव हुए। इस दौरान 28 मई, 1991 को एसपीएस राठौर को दी जाने वाली चार्जशीट अप्रूव कर दी गई।
चुनाव के बाद प्रदेश में भजनलाल के नेतृत्व वाली कांग्रेस की सरकार बनी। यह सरकार 23 जुलाई, 1991 से 9 मई, 1996 तक रही। इस दौरान राठौर के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने को लेकर मामला फिर आया और इस सम्बन्ध में उस समय के एलआर से कानूनी राय ली गई। उस समय के एलआर आरके नेहरू ने 30 जून, 1992 को दी गई कानूनी राय में यह बात कही कि यह एफआईआर तो वैसे भी एसएचओ द्वारा दर्ज कर दी जानी चाहिए थी क्योंकि इस सम्बन्ध में रपट रोजनामचा 18 अगस्त, 1990 को पहले से ही दर्ज है। उन्होंने यह भी कहा कि अगर पहले एफआईआर दर्ज नहीं की गई तो इस एफआईआर को तुरन्त बिना देरी के दर्ज कर लिया जाना चाहिए और अदालत में ट्रायल के दौरान यह बात स्पष्ट की जा सकती है। एलआर की कानूनी राय के बावजूद भी एफआईआर दर्ज नहीं की गई और उस समय भजनलाल के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार थी।
भजनलाल की सरकार के दौरान रूचिका के भाई आशु के खिलाफ चोरी की छह एफआईआर दर्ज की गई। 6 अक्तूबर, 1992 को एफआईआर नंबर-39, 30 मार्च, 1993 को एफआईआर नंबर-473, 10 मई, 1993 को एफआईआर नंबर-57, 12 जून, 1993 को एफआईआर नंबर-96, 30 जुलाई, 1993 को एफआईआर नंबर-127 और 4 सितम्बर, 1993 को एफआईआर नंबर-147 दर्ज की गई। ये सभी एफआईआर धारा 379 के अन्तर्गत दर्ज की गई।
23 अक्तूबर, 1993 को हरियाणा पुलिस ने रूचिका के भाई आशु को घर से उठा लिया और दो महीने तक अवैध हिरासत में रखा गया और उस पर कार चोरी के 11 मामले बनाए गए। उस समय प्रदेश में भजनलाल की सरकार थी।
28 दिसम्बर, 1993 को रूचिका ने आत्महत्या कर ली और 29 दिसम्बर को पुलिस ने आशु को छोड़ दिया। यह घटना भी भजनलाल सरकार में घटी।
इसके बाद अप्रैल, 1994 में भजनलाल सरकार ने रूचिका छेड़छाड़ के मामले में एसपीएस राठौर के खिलाफ चल रही चार्जशीट को चुपचाप तरीके से खत्म कर दिया और 4 नवम्बर, 1994 को भजनलाल के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने राठौर को पदोन्नत करके आईजी से अतिरिक्त डीजीपी बना दिया।
11 मई, 1996 को प्रदेश में बंसीलाल के नेतृत्व में हविपा की सरकार बन गई जो कि 23 जुलाई, 1999 तक रही। बंसीलाल की सरकार में राठौर एडिशनल डीजीपी जेल के पद पर थे और एक कैदी की पेरोल के मामले को लेकर उन्हें 5 जून, 1998 को निलम्बित किया गया और कैदी के पेरोल के मामले की विभागीय जांच के आदेश दिए गए। बंसीलाल सरकार ने ही 3 मार्च, 1999 को राठौर को वापिस बहाल कर दिया।
इसी बीच 21 अगस्त, 1998 को सीबीआई ने रूचिका छेड़छाड़ मामले की जांच सीबीआई से कराए जाने के आदेश दिए।
20 मई, 1999 को बंसीलाल सरकार के समय ही राठौर व एसके सेठी को डीजीपी बनाने के लिए विभागीय पदोन्नति कमेटी (डीपीसी) की बैठक हुई और एसके सेठी को डीजीपी बना दिया गया और बैठक में कहा गया कि राठौर के खिलाफ कैदी की पेरोल के मामले को लेकर विभागीय जांच अभी लम्बित है इसलिए विभागीय जांच रिपोर्ट आने तक पदोन्नति न दी जाए। 30 सितम्बर को विभागीय जांच रिपोर्ट में उनके खिलाफ कैदी के पेरोल मामले में आरोपों की पुष्टि न होने पर उन्हें भी 20 मई, 1999 से पदोन्नति मिल गई।
दिसम्बर 2000 में सीबीआई ने राठौर को रूचिका छेड़छाड़ मामले में दोषी ठहराते हुए उन्हें चार्जशीट कर दिया और इनेलो की सरकार ने उन्हें तुरन्त डीजीपी पद से हटा दिया। उसके बाद अदालत में मामले की सुनवाई चली। इसी दौरान राठौर 2002 में रिटायर हो गए और अब अदालत ने नौ साल की सुनवाई के बाद उन्हें छह महीने के कैद और एक हजार रुपए जुर्माने की सजा सुनाई है।
हम अदालत के फैसले का पहले ही स्वागत कर चुके हैं और हमारा मानना है कि ऐसे मामलों में दोषियों को सख्त से सख्त सजा मिलनी ही चाहिए।
जिन पुलिस कर्मचारियों ने रूचिका के परिवार के साथ ज्यादतियां की है और उनके खिलाफ झूठे मुकदमे दर्ज किए उनके खिलाफ भी कार्रवाई होनी चाहिए और दोषियों को सख्त से सख्त सजा मिलनी ही चाहिए और रूचिका के परिवार को भी मुआवजा मिलना चाहिए।
लेकिन बेवजह किसी को बदनाम करने के लिए किसी का नाम घसीटे जाना और झूठे आरोप लगाए जाना बेहद शर्मनाक है और मीडिया को भी किसी पर आरोप लगाने से पहले कम से कम सम्बन्धित तथ्यों व उनसे जुड़ी हुई बातों की पुष्टि जरूर कर लेनी चाहिए।

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