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17.9.09

जनता - जानवर या जनार्दन ?

जनता जानवर है या जनार्दन या भगवान । यह तो हमारे देश के नेता तय करते हैं । वक़्त वक़्त के हिसाब से नजरिया बदलता है । चुनाव के समय जब वोट की आवश्यकता होती है तब तो जनता जनार्दन अथवा भगवान् होती है बाकी समय तो जानवर होती है और यही सोच को हमारे विदेश राज्य मंत्री शशि थरूर ने जग जाहिर कर ही दी है की देश की इकोनोमी क्लास जिसमे जनता सफर करती है को केटल क्लास ( अर्थात जानवर के स्तर की श्रेणी ) कहकर । और यह सही भी तो है जो दिल मैं जनता के प्रति भाव है वह तो वाही तो मंत्री जी के श्रीमुख से बाहर निकला है की जनता जानवर के समान है । जिस पर क़र्ज़ का जितना बोझ डालों और ख़ुद उस क़र्ज़ के पैसे से खर्चीली जीवन शैली अपनाओं , अपने मन मुताबिक कानून को अपनी मुट्ठी मैं रख जनता को जैसा चाहे हांको , अव्यवस्था , मंहगाई और असुरक्षा के ख़राब माहोल मैं जनता को जानवर जिंदगी जीने हेतु छोड़ दो और ख़ुद पाँच सितारा और आराम जिन्दगी जियो । बस दो वक़्त की रोजी रोटी जुटाने हेतु उसकी जिन्दगी को खपा दो ताकि उसके पास न तो उनकी करतूत देखना का वक़्त हो और न ही देश के बारे मैं कुछ सोचने और पूछने का समय मिले ।

तो जनता के प्रति इस तरह की सोच रखने वाले नेताओं और जनप्रतिनिधियों और मंत्रियों से जन हित और जन कल्याण की अपेक्षा की जा सकती है । क्या इस तरह से पाँच सितारा होटलों मैं रहने वाले और वातानुकूलित खर्चीली यात्रा करने वाले , ऐशो आराम वाली जिन्दगी जीने वाले मंत्रियों से आम जनता के हितों के अनुरूप नीतियों के निर्धारण और क्रियान्वयन की उम्मीद की जा सकती है । जो आम लोगों के बीच न रहकर और जाकर उनके जीवन और जीवन शैली मैं झाँकने का प्रयास न करे और उन्हें और उनकी जिन्दगी की तुलना जानवर से करके देखे , क्या ऐसे व्यक्ति आम लोगों की समस्या और आवश्यकता से अच्छी तरह से रूबरू और वाकिफ हो सकता है । क्या ऐसे नेता आम जनता के सच्चे प्रतिनिधि हो सकते हैं ।

जरूरत है ऐसे जनप्रतिनिधि को पहचानकर इन्हे संसद , विधानसभा अथवा सरकार मैं जाने से रोका जाए और ऐसे जनप्रतिनिधि को चुना जाए जो जनता को जानवर नही अपितु जनार्दन समझे , जो जनता के हमदर्द हो और जनता के दुःख दर्द और मुसीबत मैं काम आए , लोगों की भावना और आवश्यकता के अनुरूप काम करें ।

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