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4.9.09

...वक़्त ने साथ छोडा हमारा तो....




वक़्त ने साथ छोड़ा हमारा जो था,

हाय तेरा, तड़पना मुझे याद है।

मुंह छिपाकर तेरा मेरी आगोश में,

हाय कैसा बिलख़ना मुझे याद है।…हॉ मुझे याद है।

प्यार की वादीओ में गुज़ारे जो पल,

कैसे दिल से ओ साथी भूला पायेंगे?

जिन लकीरों पे कस्मे जो खाइ थीं कल,

आज हम वो लकीरें मिटा पायेंगे?

उन रक़ीबों के ज़ुल्मों को मेरे सनम,

हाय तेरा वो सहेना मुझे याद है। हॉ मुझे याद है।

ख्वाब हमने सज़ाये थे मिलकर सनम।

एक घरौंदा सुनहरा बनायेंगे हम।

साथ तेरा रहे, साथ मेरा रहे।

हमने ख़ाईं थीं इक-दूसरे की कसम|

उन वफ़ाओं की राहों में मेरे सनम,

आज भी सर ज़ुकाना मुझे याद है। हॉ मुझे याद है.

क्या करें मेरे महबूब अय जानेमन!

हम भी वक़तों के हाथों से मजबूर हैं।

ना नसीबा ही अपना हमें साथ दे।

ईसलीये ही तो हम आज यूं दूर है।

हिज्र के वक़्त में ओ मेरे हमसुख़न।

आज तेरा सिसकना मुझे याद है। हॉ मुझे याद है.

हाय चलती हवाओं उसे थाम लो।

ठंडी-ठंडी फ़िज़ाओ मेरा नाम लो।

सर से उस के जो पल्लू बिख़र जायेगा,

आहें भर के ये माशुक़ मर जायेगा।

याद जब जब करेंगे हमें राज़ तब।

हाय मेरा तड़पना मुझे याद है।

3 टिप्पणियाँ:

क्या बात है.........
बहुत ख़ूब कारीगरी से लिखी गई रचना.........
बधाई !

बड़ी दर्दीली नज्म लिख डाली
आपकी तारीफ़ करने से पहले अपने आंसू पोछने पड़ेंगे

सर से उस के जो पल्लू बिख़र जायेगा,
आहें भर के ये माशुक़ मर जायेगा।
bahut khoob -- behatareen

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