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24.7.09

...हमारा इन्तेज़ार तो देखो

आओ ना.......इतने नखरे क्यों करती हो ?

मौसम तो देखो.............

मौसम की पुकार तो देखो

पूर्व से आती बयार तो देखो

हमारा प्यार न देखो, न सही

पर हमारा इन्तेज़ार तो देखो


देखो तो सही

कितने उतावले हैं हम तुम्हारे लिए

अरे यार ! बावले हैं हम तुम्हारे लिए

तुम हो कि नखरैल बनी हो.............


मेरे आँगन में आती ही नहीं हो

मेरा दामन सरसाती ही नहीं हो


माना कि तुम फ़िदा हो अपने ही हुस्न पर

वक्त लगता है तुम्हें दर्पण से हटने में

लेकिन याद रख ___

मौसम तो तुम्हारा गुलाम नहीं है

बरसे बिन तुम्हें भी आराम नहीं है


अपने प्यासों को गर प्यासा ही मार डालोगी

तो क्या करोगी

उस जल का

जो आँचल में भरा है ..............अचार डालोगी ?

अरी ओ घटा...............

अब तो घट जा............

तुझसे तो बादल ही भला

जो उमड़-घुमड़ आता है

और झट से बरस जाता है...............


आजा आजा ...नाटक मत कर..........

बन्द अपना फाटक मत कर


बरस जा...............

बरस जा...........

बरस जा.............


वरना गीतकार गीत लिखना बन्द कर देंगे तुझ पर

तोड़ कर फैंक देंगे

-काली घटा छाई प्रेम रुत आई वाला कैसेट

आजा मेरी जान आजा

अपने नाम की लाज बचाने के लिए आजा

धरती के सौन्दर्य को सजाने के लिए आजा

हम प्यासों की प्यास बुझाने के लिए आजा

आजा

आजा

आजा ...................................

ऐ काली घटा आजा.............................


-albela khatri
http://albelakhari.blogspot.com/

2 टिप्पणियाँ:

तो क्या करोगी

..............अचार डालोगी ?

अलबेला भाईजान!
बहुत ही बढ़िया रचना है. भेजने के लिए बहुत शुक्रिया ! आप तो "साथी रे" में शामिल हैं. इसलिए blogger.com में जाकर साइन इन कीजिये और अपना लेखन भेजिए ताकि प्रस्तुतकर्ता भी आप ही रहें. उम्मीद है, आईन्दा भी आपका लेखन सहयोग प्राप्त होता रहेगा. एक बार फिर बहुत धन्यवाद!

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