8:48 pm
Mahavir Mittal
मेरे मित्र श्री सतीश मंगला ने मुझे एक कविता भेजी है। मुझे वह कविता काफी पंसद आई। यह कविता मै आपके समक्ष रख रहा हुं। शायद आपको भी पसंद आए। कृप्या गौर फरमाएं..........
आज भी नही हूँ भुला ...........................
वो दोस्तो के साथ की हुई मस्ती ............
वो छोटी सी गलियों वाली अपनी प्यारी सी बस्ती .................
वो किसी को सताना वो किसी को मानना .....................
वो किसी के इन्तेजार मे जब निगाहें थी तरसती
जब भी बैठ के सोचता हूँ वो पुरानी बातें ,
वो बीते हुए लम्हे, वो गुजरी राते ..........
न जाने कहाँ आ फंसा हूँ ये कैसा है समंदर
है उस पार जाना और न मांझी है न कश्ती.......................
आज भी नही हूँ भुला वो की हुई मस्ती ..........................
आज भी नही हूँ भुला वो की हुई मस्ती .................
5:07 pm
Sumit Pratap Singh
मासूम ने देखा कि बस में बहुत देर से एक महिला अपने बच्चे को गोद में लिए खड़ी थी तथा कठिनाई अनुभव कर रही थी .उसने दया कर उसे अपनी सीट दे दी. अगले स्टैंड पर दूसरी सीट भी खाली हो गई व मासूम उस महिला के बगल में ही बैठ गया. महिला मासूम द्वारा सीट देने के लिए उसके प्रति आभारी थी. बातों का सिलसिला शुरू हो गया. उस महिला के नैन -नक्श आकर्षित करने वाले थे. मासूम उसके रूप के आकर्षण में आगे पढ़ें..
10:01 am
Sumit Pratap Singh
कमरे का दरवाजा खोलकर राजू अंदर आया और हँसते हुए बोला, "असलम तेरे भईया आ गये हैं तुझे छुडवाने के लिए. बेचारे तुझे सही-सलामत वापस लौटाने के लिए बहुत गिड़गिड़ा रहे थे. पहली बार किसी पुलिसवाले को ऐसी हालत में देखा है. जितना रुपया माँगा था, ले आये .पूरे पांच लाख हैं." असलम ने राजू व वहां मौजूद एक और लड़के सचिन के हाथों में ताली मारी और आगे पढ़ें..
10:08 pm
Sumit Pratap Singh
वो मुझसे अक्सर कहती थी कि जब मैं जाऊंगी तो तेरे सीने से लग कर खूब रोऊँगी और मैं भी हंसकर उससे कहता था कि वह किसी गलतफहमी में न रहे क्योंकि मैं उसके जाने पर बिलकुल नहीं रोने वाला. आज जब वह विदा होकर जाने लगी तो आगे पढ़ें...
10:57 pm
Sumit Pratap Singh
"ठीक है भैया समझो आपका ये काम हो गया." इतना कहकर अनिरुद्ध ने फोन रख दिया व कुर्सी पर आराम की स्थिति में बैठे-२ सोचने, “अभी दिन ही कितने हुए भैया से मिले कोई दो साल बस किन्तु इन दो सालों में भैया से नाता सगे भाई से बढ़कर हो गया.” कभी-२ भैया खुद ही हंसकर कहने लगते हैं, " हम दोनों का रिश्ता पिछले जन्म का है. हो न हो तुम पिछले जन्म में छोटे भाई होगे और बेशक इस जन्म में तुम मेरे सगे भाई नहीं हो लेकिन तुम मेरे लिए लक्ष्मण के जैसे हो." भाभी भी अक्सर बताती हैं, "ये तुम्हें अपने सगे भाई से भी अधिक चाहते हैं।" तभी चाय वाला चाय लेकर आता है. चाय की चुस्कियां लेते हुए आगे पढ़ें...
4:25 pm
मेरी आवाज सुनो
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ख्वाब एक हकीकत
ख्वाब है या कुछ और
ख्वाब ही सा लगता है.
बहरहाल, कुछ भी हो बड़ा हसीन है,
ख्वाब ही तो वो शहर है
जहां हम अपनी मर्जी के मालिक होते हैं.
ख्वाब और हकीकत में एक
अदना सा फासला है,
हकीकत मैं और ख्वाब आईना.
ख्वाब क्या है
कुछ अधूरी ख्वाहिशें.
कुछ दिल में दफ़न अरमान
कुछ आने वाले कल की तस्वीरें,
यही तो ख्वाब है!
ख्वाब देखो!
सच हो जाते हैं अक्सर ख्वाब.
आओ देखें मिलकर हम सब ख्वाब....!
हकीकत में तब्दील करने को...!!
(लेखिका) डॉ. अमरीन फातिमा
4:31 pm
Sumit Pratap Singh
कॉलेज़ में एक लड़का था
सबने ही उसको हड़का था
कविता एक ही कहता था
उसको ही कहता रहता था
एक लड़की मुझको भाती है
एक लड़की मुझको भाती है...
जब भी मौका मिलता तोझट से आगे बढता था आगे पढ़ें..
8:55 am
Sumit Pratap Singh
माँ उदास हो आँगन में बैठी थी की तभी पड़ोस की आंटी आ धमकी. माँ को उदास बैठे देख उन्होंने पूछ लिया, "क्या बात हैं आज इतनी उदास क्यों हो".माँ ने बात टालते हुए कहा ,"कुछ ख़ास नहीं आज यूं ही थोडा मूड ठीक नहीं है ".आंटी जी माँ के पास बैठी और बोली ,"तुम कभी भी यूं ही उदास नहीं होती कुछ न कुछ बात तो है. मुझे नही बताओगी.” आगे पढ़ें...
10:10 am
रज़िया "राज़"
10 मार्च 1957 को रियाध सउदी अरब में एक धनी परिवार में जन्मे ओसामा बिन लादेन
अल कायदा नामक आतंकी संगठन का प्रमुख था।
जो संगठन 9 सितंबर 2001 को अमरीका के न्यूयार्क शहर के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमले के साथ विश्व के कई देशों में आतंक फैलाने का दोषी था। उस अलक़ाएदा संगठन के मुखिया ओसामा बिन
लादिन को पाकिस्तान के एबटाबाद में रविवार रात CIA ने मार गिराया गया। मध्य पूर्वी मामलों के विश्लेषक हाज़िर तैमूरियन के अनुसार ओसामा बिन लादेन को ट्रेनिंग CIA ने ही दी थी।
वो जहाँ रहता था वो एक ऐसी इमारत थी जीसकी दीवार 12 से 18 फ़ीट की थी, जो इस इलाक़े में बनने वाली इमारतों से कई गुना ज़्यादा थी।. इस इमारत में न कोई टेलिफ़ोन कनेक्शन था और न ही इंन्टरनेट कनेकशन। यहीं छिपकर बैठा था दुनिया को अपने आतंक से हिलाकर रख देने वाला आतंकी। जिसने कंई बेगुनाहों को कत्ल कर दिया। क्या उसका यही मज़हब था????
सऊदी अरब में एक यमन परिवार में पैदा हुए ओसामा बिन लादेन ने अफगानिस्तान पर सोवियत हमले के ख़िलाफ़ लड़ाई में हिस्सा लेने के लिए 1979 में सऊदी अरब छोड़ दिया. अफगानी जेहाद को जहाँ एक ओर अमरीकी डॉलरों की ताक़त हासिल थी तो दूसरी ओर सऊदी अरब और पाकिस्तान की सरकारों का समर्थन भी था।.
सबसे आश्चर्च की बात गुफाओं में रहने-छिपनेवाला लादेन अमेरिका को एक पॉश कॉलोनी में मिला!!!!!
वह भी पाकिस्तानी मिलिट्री अकादमी से सिर्फ 800 मीटर की दूरी पर!!!!
जहाँ परदेशी एक परिन्दा भी अपनी उडान नहिं भर सकता उसी ज़मीन पर एक ख़ोफ़नाक आतंकी दुनिया की नज़र से छिपकर कैसे रह सकता था भला?
या पाकिस्तान की नज़रे इनायत तो नहिं थी उस पर!!!!!
चलो ख़ेर आख़िर मारा तो गया जो इस्लाम/इंसानियत के नाम पर एक धब्बा था ।
नादान जवानों को मज़हब के नाम पर या जिहाद के नाम पर जान की बाज़ी लगाने भेजकर खुद एशो-आराम की ज़िन्दगी बसर करता था।
या कहो कि इस्लाम से /इंसानियत से ख़िलवाड कर रहा था।
जो अपने वतन (साउदी अरब) को वफ़ादार नहिं था वो भला अपने मज़हब को वफ़ादार कैसे हो सकता था?
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