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25.3.10

भारत का पहला डेडिकेटेड ऑनलाइन न्यूज़ चैनल " प्रहरी लाइव" की शुरूआत


इंटरनेट पर ब्लोगिंग, पॉडकास्टिंग और वोडकास्टिंग  के बाद अब समय आ गया है , लाइव ब्लागिंग का. क्योंकि  शुरुआत हो चुकी है भारत के पहले ऑनलाइन न्यूज़ चैनल, प्रहरी Live की.
हमारी अब तक की कोशिश रही है की ब्लाग को एक सशक्त मीडिया के रूप  स्थापित किया जाये. इस दिशा में यह आवश्यक हो चला है ब्लाग उतना ही तीव्र, प्रभावी और तथ्यपरक हो जितना कि अन्य मुख्यधारा के औजार हैं और इसके लिए वीडियो से बढ़कर  कोई और जरिया नहीं है .
प्रहरी Live एक ऐसा माध्यम होगा जहाँ आप एक साथ खबरों को पढ़  सुन और देख सकते हैं. इसके अलावा आप अपनी प्रतिक्रियाएं भी टेक्स्ट, आडियो और वीडियो फोर्मेट  में व्यक्त कर सकेंगे . इंटरनेट की उपलब्ध तमाम विशेषताओं को एक मंच पर समेट कर, इन्टरनेट के चाहने वालों के लिए प्रस्तुत करने की हमारी योजना आज साकार हो "प्रहरी Live " के  रूप में सामने है .प्रहरी Live ब्लाग पर सक्रिय अत्यंत प्रभावशाली और बेबाक अभिव्यक्तियाँ एक सहज, सुलभ और सशक्त माध्यम को पाकर एक बेहतर विकल्प  हैं . 
इस योजना को अमली जामा पहनने के  लिए गत ४ महीनो से अथक शोध और परिश्रम किया जा रहा था. हालांकि आपके सामने प्रस्तुत यह पोर्टल अभी निर्माण प्रक्रिया में है. साईट पर उपलब्ध सामग्री केवल परिचयात्मक है. जिसका हमारे उद्देश्यों से कोई सरोकार नहीं है. जल्द हीं तकनीकी जटिलताओं को दूर कर हम अपने मूल रूप में आपके सामने होंगे. आशा है आप सभी का भरपूर सहयोग मिलेगा 

संभालो अपने जीवन की कली को

सरकार का विज्ञापन या निम्नकोटि के शोहदों का उवाच

पहले माओवादियों ने खुशहाल जीवन का वादा किया
फिर, वे मेरे पति को अगवा कर ले गए
फिर, उन्होंने गाँव के स्कूल को उड़ा डाला
अब, वे मेरी 14 साल की लड़की को ले जाना चाहते हैं
रोको, रोको, भगवान के लिए इस अत्याचार को रोको

यह विज्ञापन भारत सरकार के गृहमंत्रालय द्वारा जनहित में जारी किया गया है अब, वे मेरी 14 साल की लड़की को ले जाना चाहते हैं यह बात संभावनाओं पर है और इस तरह के आरोप प्रत्यारोप मोहल्ले के तुच्छ किस्म के शोहदे किया करते हैं। भारत सरकार के विज्ञापनों में इस तरह के अनर्गल आरोप लगाने की परंपरा नहीं रही है । गृह मंत्रालय माओवाद के कार्य क्रियाशील क्षेत्रों में भ्रष्टाचार को समाप्त करता है। विधि सम्मत व्यवस्था जब समाप्त होती है तब हिंसा का दौर शुरू होता है । आज देश की राजधानी दिल्ली से लेकर लखनऊ तक प्रत्येक विधि सम्मत कार्य को करवाने के लिए घूश की दरें तय हैं . घुश अदा न करने पर इतनी आपत्तियां लग जाएँगी की इस जनम में कार्य नहीं होगा। एक सादाहरण सा ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने में अच्छे-अच्छे लोगों को दलाल का सहारा लेना पड़ता है और तुरंत कार्य हो जाता है यदि आप अपना लाइसेंस बगैर घूश के बनवाना चाहते हैं तो कई दिनों की प्रक्रिया बनवानी पड़ेगी जिसमें आपका हर तरह से उत्पीडन किया जायेगा। चौराहे पर ट्राफ़िक पुलिस की भी ड्यूटी उसको चौराहे की वसूली के आधार पर मासिक देने पर ही लगती है और भ्रष्टाचार का यह रूप गृह मंत्रालय को नहीं दिखता है। राजधानी से दूर के हिस्सों में अधिकारीयों का जंगल राज है और अधिकारियों द्वारा सीधे सीधे आदिवासियों व किसानो के यहाँ डकैतियां डाली जा रही हैं जिसका विरोध होना लाजमी है। कौन सा कुकर्म इन लोगो ने गाँव की भोली जनता के साथ नहीं किया है । मैं माओवाद समर्थक नहीं हूँ लेकिन इस भ्रष्ट तंत्र के साथ भी नहीं हूँ यदि समय रहते भारत सरकार ने अपने नौकरशाहों को भ्रष्टाचार से मुक्त नहीं किया तो देश की सारी सम्पदा उनके बैंक खातों में ही नजर आएगी। इस तरह के विज्ञापन जारी कर गृहमंत्रालय समझ रहा है की हम चरित्र हत्या कर के अपनी असफलताओं को छिपा लेंगे। एस.पी.एस राठौर, के.पि. एस गिल जैसे अधिकारियों को सरकार माओवादी घोषित क्यों नहीं करती ? अब सरकार को चाहिए की अपने कर्मचारियों और अधिकारियों के चरित्र चित्रण आए दिन मीडिया में छाए रहते हैं उसकी ओर ध्यान दे।

सुमन
loksangharsha.blogspot.com

24.3.10

दीन पर भारी पड़ता मुसलमान का दुनियावी प्रेम

नवाबों के शहर लखनऊ में अमरीकी राजदूत रिमोथी जे0 रोमर ने गत सप्ताह मुस्लिम शैक्षिक संस्थानों व सुप्रसिद्ध ऐतिहासिक इमारत इमाम बाड़े का दौरा कर कहा कि वह राष्ट्रपति बराक ओबामा के मुहब्बत व अमन के पैगाम को लेकर यहां आए हैं। यह दौरा ठीक उस समय क्यों हुआ जब आल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का राष्ट्रीय अधिवेशन यहां आयोजित हो रहा था, यह एक विचारणीय प्रश्न है?
मुसलमानों के शरई अधिकारों को सुरक्षित रखने, उनके शैक्षिक, सामाजिक एवं आर्थिक उत्थान की तदबीरे ढूढ़ने तथा मुस्लिम एकता को कायम रखने के दृष्टिकोण से आल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के 21वें राष्ट्रीय अधिवेशन का आयोजन अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त नदवा यूनीवर्सिटी में हुआ तदोपरान्त एक जलसे आम ऐशबाग ईदगाह में हुआ जहां एक लाख से ऊपर मुसलमानों के ढारे मारते समुद्र ने उलमाए ए दीन के उपदेश व वसीहते सुनी।
इससे तीन दिन पूर्व अमरीकी राजदूत रिमोथी जे0 रोमर ने लखनऊ में अपने दौरे के दौरान मुस्लिम शैक्षिक संस्थान शिया कालेज, करामत हुसैन गल्र्स डिग्री कालेज व ऐतिहासिक इमामबाड़ों का भ्रमण किया और शहर लखनऊ की गंगा जमुनी तहजीब की जमकर तारीफ की।
यह दोनों उल्लेखनीय घटनाएं परस्पर विरोधाभासी लगती है क्योंकि एक ओर अमरीका की विश्व स्तरीय मुस्लिम विरोधी नीतियों , जिसके चलते ईराक, अफगानिस्तान की ईंट से ईंट बज गई लाखों व्यक्ति शान्ति के नाम पर अमरीका के सैन्य अभियान में मारे गये जिनमें काफी संख्या में औरते व मासूम बच्चे थे और अब पाकिस्तान का नम्बर चल रहा है। ईरान व यमन दूसरा निशाना है जहाँ अमरीका किसी भी समय सैनिक कार्यवाई कर सकता है। दूसरी ओर मुस्लिम उलेमा का अधिवेशन जिसमें अमरीका व इजराइल के विरूद्ध प्रस्ताव पारित कर मुसलमानों के ऊपर जुल्म व अत्याचार ढाने का विरोध किया गया तथा इजरायल के साथ बढ़ती हिन्दुस्तानी दोस्ती पर चिंता व्यक्त की गई।
परन्तु इसके विपरीत अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थान का दर्जा व आर्थिक अनुदान प्राप्त करामत मुस्लिम गर्ल्स डिग्री कालेज व शिया पी0जी0 कालेज में अमरीकी राजदूत का आदर सत्कार करना और छात्राओं के द्वारा उनके गले में मालाएं डालना एक विरोधाभासी बात लगती है। और सबसे अधिक तो इमामबाड़े में उनका खैर मकदम आश्चर्यजनक है जहाँ अनेक बार अमरीका के विरूद्ध उलेमा ने भाषण देकर अमरीका और उसके पूर्व राष्ट्रपति जार्ज बुश के पुतले जलाएं गये।
मुस्लिम समुदाय द्वारा ऐसे समय पर अमरीकी राजदूत का महिमामण्डप किया जाना जब अमरीका का संरक्षण प्राप्त इजरायल द्वारा मुसलमानों की अति पवित्र माने जाने वाली मस्जिद अक्सा से नमाजियों को मार भगाया गया और विरोध करने पर कई लोगों को जान भी गवानी पड़ी। परिणाम स्वरूप पूरे विश्व में इसके विरूद्ध जोरदार आवाज उठी। परन्तु अमरीका खामोश है और इजरायल के विरूद्ध उठती हर आवाज को दबाने में लगा हुआ है।
दर हकीकत मुलसमानों की पूरे विश्व में थुकका फजीहत का मुख्य कारण यही है कि उनका चरित्र खोखला हो चुका है उसे दूसरी कौमों की भांति दुनिया के सुख-संसाधनों की चाह अधिक और दीन धर्म केवल सामाजिक आवश्यकता तक ही उनके अन्दर सीमित रह गया है। उस पर स्वार्थहित इतना हावी हो गया है कि किसी से भी उसे दो टके मिलने की उम्मीद हो तो वह अपनी लार टपकाने लगता है।


-मोहम्मद तारिक खान

अपने ही देश में आतंकित क्यों?

मै कोई शायर नहीं और न ही मै कोई लेखक हूँ। भारी-भरकम शब्दों का प्रयोग कर अपने पांडित्य का लोहा मनवाने की कोई आवश्यकता नहीं समझता। मै सीधा-सरल व्यक्ति हूँ, पक्का मुसलमान और कट्टर राष्ट्रवादी हूँ। अकबर खान मेरा नाम है।
कुछ बरसों तक प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया में काम किया तथा खूब वाहवाही बटोरी परन्तु इसी दौरान मैंने अपनी भारतीय समाज रूपी फसल में विभिन्न प्रकार के कीड़े एवं कबाड़ देखा, जिसे समाप्त करना अति आवश्यक है
आखिर आज हम अपने ही देश में आतंकित क्यों है? आतंकवाद से, भ्रष्टाचार से, लापरवाही से, अनियमितता से, अनुशासनहीनता से तथा ................से, ...................से और .......................से दरअसल समानार्थक से दिखने वाले यें शब्द हमारे समाज की विभिन्न बिमारियों की ओर इंगित करते हैं
आज सबसे पहले आतंकवाद से सम्बन्धित एक अति संवेदनशील रग को छेड़ते हैं इस दर्द से जूझने वाले भली-भांति समझ सकते हैं कि मेरा मकसद तो केवल राहत है. हालाँकि इस रग को छेड़ने से थोडा या बहुत दर्द तो अवश्यम्भावी है इस बात के लिए मै क्षमा का याचक हूँ
उस आतंकवाद की बात करेंगे, जो देश के अन्दर इसी देश के लोगों द्वारा फैलाया जाता है जैसा की मैंने शुरू में ही कहा था कि मै एक सीधा और सरल व्यक्ति हूँ इसलिए बात भी सीधी ही करता हूँ
तो क्या आपकी राय में इस देश में होने वाली आतंकवादी गतिविधियों में मुसलमानों का ही हाथ होता है? अगर हाँ, तो आखिर ऐसा क्यों हैं? आपकी निष्पक्ष एवं ईमानदार राय(टिप्पणियों) के बाद आगे की बात ........................

23.3.10

प्रबंधक कमेटी के गठन में प्रधानमंत्री बड़ा रोड़ा : झींडा

सफीदों, (हरियाणा) : हरियाणा सिख गुरूद्वारा प्रबंधक कमेटी के गठन में आज प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पंजाब के मुखयमंत्री प्रकाश सिंह बादल के बहकावे में आकर सबसे बड़ा रोड़ा बने बैठे हैं। यह बात हरियाणा सिख गुरूद्वारा प्रबंधक कमेटी के प्रदेशाध्यक्ष जगदीश सिंह झींडा ने लोक निर्माण विश्रामगृह में पत्रकार समेलन को संबोधित करते हुए कही। उन्होंने कहा कि हरियाणा सरकार ने प्रदेश के सिखों की भावना को देखते हुए हरियाणा की अलग कमेटी बनाने को मंजूरी देने का मसौदा तैयार किया है लेकिन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पंजाब के मुखयमंत्री प्रकाश सिंह बादल के दबाव में आकर इसके गठन को लेकर देरी कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि अलग कमेटी के गठन में जो भी उनके अधिकारों के बीच में आएगा हरियाणा के सिख उसका डटकर विरोध करेंगेहरियाणा के सिख अपनी मांगों को लेकर अब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के समक्ष अपना संघर्ष् करवाएंगे उन्होंने कहा कि कुछ राजनीतिक लोग हरियाणा सिख गुरूद्वारा प्रबंधक कमेटी की मांग को धार्मिक मांग कहकर उसे उलझाने का प्रयास कर रहे हैं। झींडा ने साफ किया कि उनकी यह मांग धार्मिक नहीं बल्कि हरियाणा-पंजाब बंटवारे के वक्त बने कानून उनकी यह संविधानिक मांग सपष्ट है। उन्होंने पंजाबी भाषा को हरियाणा में दूसरी भाषा का दर्जा देने के लिए मुखयमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा का आभार प्रकट करते हुए कहा कि हुड्डा ने पंजाबी भाषा को दूसरा दर्जा देकर हरियाणा में एक इतिहास रच दिया है। उन्होंने कहा कि पंजाबी भाषा को देश की दूसरी भाषा घोष्ति कराने को लेकर हरियाणा सिख गुरूद्वारा प्रबंधक कमेटी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी को कई बार ज्ञापन सौंपा चुकी है। उनकी इस मांग को सबसे पहले हरियाणा में लागू करके मुखयमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने प्रदेश की जनता को मानसमान प्रदान किया है। ऐसे हालात में हरियाणा के लोगों का भी फर्ज बनता है कि वे मुखयमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा की इस पहल का आभार प्रकट करव्ं। हरियाणा सिख गुरूद्वारा प्रबंधक कमेटी ने ये फैसला किया है कि पंजाबी भाष को प्रदेश में दूसरा दर्जा दिए जाने पर रविवार ख्त्त् मार्च को पिपली (कुरूक्षेत्र) में मुखयमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा का अभिनंदन करके उनका आभार प्रकट करेंगे

यह लोहिया की सदी हो -वेदप्रताप वैदिक

डॉवेदप्रताप वैदिक जी ने यह आलेख हमे -मेल से भेजा है, जो यहाँ आपके लिए प्रस्तुत हैI

यह
लोहिया की सदी हो

जन्म शताब्दियां तो कई नेताओं की मन रही हैं, लेकिन प्रश्न यह है कि स्वतंत्र भारत में क्या राममनोहर लोहिया जैसा कोई और नेता हुआ है? इसमें शक नहीं कि पिछले 63 सालों में कई बड़े नेता हुए, कुछ बड़े प्रधानमंत्री भी हुए, लेकिन लोहिया ने जैसे देश हिलाया, किसी अन्य नेता ने नहीं हिलाया।
उन्हें कुल 57 साल का जीवन मिला, लेकिन इतने छोटे से जीवन में उन्होंने जितने चमत्कारी काम किए, किसने किए? जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी से लोहिया का अपने युवाकाल में कैसा आत्मीय संबंध था, यह सबको पता है। लेकिन यदि लोहिया नहीं होते तो क्या भारत का लोकतंत्र शुद्ध परिवारतंत्र में नहीं बदल जाता?
वे लोहिया ही थे, जो नेहरू की दो-टूक आलोचना करते थे। चीनी हमले के बाद लोहिया ने ही नेहरू सरकार कोराष्ट्रीय शर्म की सरकारकहा था। उन्होंने हीतीन आनेकी बहस छेड़ी थी। यानी इस गरीब देश का प्रधानमंत्री खुद पर 25 हजार रुपए रोज खर्च करता है, जबकि आम आदमीतीन आने रोजपर गुजारा करता है। लोहिया ने ही उस समय की अति प्रशंसित गुट-निरपेक्षता की विदेश नीति पर प्रश्नचिह्न् लगाए थे और नेहरूजी कीविश्वयारीपर तीखे व्यंग्य बाण चलाए थे।
उन्होंने सरकारी तंत्र के मुगलिया ठाठ-बाट की निंदा इतने कड़े शब्दों में की थी कि सारा तंत्र भर्राने लगा था। उन्होंने देश के हजारों नौजवानों में सरफरोशी का जोश भर दिया था। सारे देश में तरह-तरह के मुद्दों पर सिविल नाफरमानी के आंदोलन चला करते थे। राजनारायण, मधु लिमये, रवि राय, किशन पटनायक, एसएम जोशी, लाडली मोहन निगम, जॉर्ज फर्नाडीज जैसे कई छोटे-मोटे मसीहा लोहिया ने सारे देश में खड़े कर दिए थे। कहीं जेल भरो, कहीं रेल रोको, कहीं अंग्रेजी नामपट पोतो, कहीं जात तोड़ो, कहीं कच्छ बचाओ, कहीं भारत-पाक एका करो जैसे आंदोलन निरंतर चला करते थे।
लोहिया के आंदोलनों में अहिंसा का ऊंचा स्थान था, लेकिन वे वस्तु की हिंसा यानी तोड़-फोड़ को हिंसा नहीं मानते थे। उन्होंने प्राण की हिंसा करने वाली यानी प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने वाली अपनी ही केरल की सरकार को गिरवा दिया था। लोहिया ने भारत के नेताओं और राजनीतिक दलों को यह सिखाया कि सशक्त विपक्ष की भूमिका कैसे निभाई जाती है? लोकसभा में लोहियाजी की संसोपा के दर्जनभर सदस्य भी नहीं होते थे, लेकिन वहां बादशाहत संसोपा की ही चलती थी। जब लोहिया और मधु लिमये सदन में प्रवेश करते थे तो वह समां देखने लायक होता था। एक करंट-सा दौड़ जाता था। मंत्रिमंडल के सदस्य लगभगअटेंशनकी मुद्रा में जाते थे और स्वयं प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के चेहरे पर बेचैनी छा जाती थी।
दर्शक दीर्घा में बैठे लोग कहते सुने जाते थे, वो लो, डॉक्टर साहब गए। डॉक्टर लोहिया ने अपनी उपस्थिति से लोकसभा को राष्ट्र का लोकमंच बना दिया। जिस दबे-पिसे इंसान की आवाज सुनने वाला कोई नहीं होता, उसकी आवाज को हजार गुना ताकतवर बनाकर सारे देश में गुंजाने का काम डॉ लोहिया करते। कोई मामूली मजदूर हो, कोई सफाई कामगार हो, कोई भिखारी या भिखारिन हो- डॉ लोहिया उसे न्याय दिलाने के लिए अकेले ही संसद को हिला देते थे। लोकसभा अध्यक्ष सरदार हुकुम सिंह कई बार बिल्कुल पस्त हो जाते थे। मई 1966 में जब डॉ लोहिया ने मेरा अंतरराष्ट्रीय राजनीति का पीएचडी का शोध-प्रबंध हिंदी में लिखने का मामला उठाया तो इतना जबर्दस्त हंगामा हुआ कि सदन में मार्शल को बुलाना पड़ा। डॉ लोहिया और उनके शिष्यों के तर्क इतने प्रबल थे कि सभी दलों के प्रमुख नेताओं ने मेरा समर्थन किया। इंदिराजी के हस्तक्षेप पर स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज ने अपना संविधान बदला और मुझे यानी प्रत्येक भारतीय को पहली बार स्वभाषा के माध्यम सेडॉक्टरेटकरने का अधिकार मिला।
डॉ लोहिया के व्यक्तित्व में चुंबकीय आकर्षण था। वे देखने में सुंदर नहीं थे। उनका कद छोटा और रंग सांवला था। उनके खिचड़ी बाल प्राय: अस्त-व्यस्त रहते थे। उनके खादी के कपड़े साफ-सुथरे होते थे, लेकिन उनमें नेहरू या जगजीवनराम या सत्यनारायण सिंह जैसी चमक-दमक नहीं रहती थी। वे सादगी और सच्चई की प्रतिमूर्ति थे। वे जिस विषय पर भी बोलते थे, उसमें मौलिकता और निर्भीकता होती थी। वे सीता-सावित्री पर बोलें, शिव-पार्वती पर बोलें, हिंदू-मुसलमान या नर-नारी समता पर बोलें, अंग्रेजी हटाओ या जात तोड़ो पर बोलें- उनके तर्क प्राणलेवा होते थे। जो एक बार डॉ लोहिया को सुन ले या उनको पढ़ ले, वह उनका मुरीद हो जाता था।
डॉ लोहिया ने अपने भाषण और लेखन में जितने विविध विषयों पर बहस चलाई है, देश के किसी अन्य राजनेता ने नहीं चलाई। सिर्फ डॉ भीमराव आंबेडकर और विनायक दामोदर सावरकर ही ऐसे दो अन्य विचारशील नेता दिखाई पड़ते हैं, जो डॉ लोहिया की श्रेणी में रखे जा सकते हैं। डॉ लोहिया ने जर्मनी से डॉक्टरेट की थी। इस खोजी वृत्ति के कारण वे हर समस्या की जड़ में पहुंचने की कोशिश करते थे। सप्रू हाउस में उस समय रिसर्च कर रहे डॉ परिमल कुमार दास, प्रो कृष्णनाथ और मेरे जैसे कई नौजवान उनके अवैतनिक सिपाही थे। इसी का परिणाम था कि 1967 में डॉ लोहिया देश में गैर कांग्रेसवाद की लहर उठाने में सफल हुए। जनसंघियों और कम्युनिस्टों ने भी उनका साथ दिया और देश के अनेक प्रांतों में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकारें बनीं। यदि डॉक्टर लोहिया 10-15 साल और जीवित रहते तो उन्हें प्रधानमंत्री बनने से कौन रोक सकता था? अब से 30-35 साल पहले ही भारत का चमत्कारी रूपांतरण शुरू हो जाता और अब तक वह दुनिया की ऐसी अनूठी महाशक्ति बन जाता, जिसका जोड़ इतिहास में कहीं नहीं मिलता।
जो भी हो, डॉ लोहिया असमय चले गए हों, लेकिन उनके विचार इस इक्कीसवीं सदी के प्रकाश-स्तंभ की तरह हैं। सप्त-क्रांति का उनका सपना अभी भी अधूरा है। जाति-भेद, रंग-भेद, लिंग-भेद, वर्ग-भेद, भाषा-भेद और शस्त्र-भेद रहित समाज का निर्माण करने वाले नेता अब ढूंढ़ने से भी नहीं मिलते। इस समय सभी दल चुनाव की मशीन बन गए हैं। वे सत्ता और पत्ता के दीवाने हैं। यदि डॉ लोहिया का साहित्य व्यापक पैमाने पर पढ़ा जाए तो आशा बंधेगी कि शायद आदर्शवादी नौजवानों की कोई ऐसी लहर उठ जाए, जो इस भारत को नए भारत में और इस दुनिया को नई दुनिया में बदल दे। लोहिया को गए अभी सिर्फ 43 साल ही हुए हैं। उनका शरीर गया है, विचार नहीं, विचार अमर हैं। विचारों को परवान चढ़ने में कई बार सदियों का समय लगता है। अभी तो सिर्फ पहली सदी बीती है। हम अपना धैर्य क्यों खोएं? क्या मालूम आने वाली सदी लोहिया की सदी हो?