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20.3.10

मुंबई आतंकी घटना के सूत्रधार को भारत सरकार देश में लाने में असफल

भारत सरकार ने अपनी गुटनिरपेक्ष नीति को छोड़ कर अमेरिकन साम्राज्यवाद के साथ अप्रत्यक्ष रूप से रहना स्वीकार कर लिया है अमेरिकन साम्राज्यवाद की दोहरी नीतियों का खामियाजा हमारे देश को भुगतना पड़ रहा है मुंबई आतंकी घटना के सूत्रधार एफ.बी.आई मुखबिर अमेरिकन नागरिक डेविड कोलमेन हेडली भारत सरकार प्रत्यर्पण करने में असफल है क्योंकि प्ली अग्रीमेंट से हेडली सजा मौत नहीं दी जा सकती है अब उसे अधिकतम सजा उम्रकैद की ही हो सकती है और इस प्ली अग्रीमेंट के तहत उसको पाकिस्तान भारत डेनमार्क को नहीं सौंपा जा सकता है
भारत सरकार इस बात में ही खुश हो लेगी कि उसकी टीम अमेरिका जाकर हेडली से कुछ पूछताछ कर लेगी क्योंकि हेडली भारतीय जांच अधिकारीयों से बात करने के लिए तैयार हो गया है यदि वह बात करने के लिए तैयार हुआ होता तो भारत सरकार उसका कुछ नहीं कर सकती थी हमारे गृहमंत्री पि.चिदंबरम अब कह रहे हैं की हम अमेरिका पर दबाव डालना जारी रखेंगे यह उसी तरह की बात है जिस तरह से पकिस्तान में हो रहे बम विस्फोटो के बाद वहां की सरकार के मंत्री हल्ला मचाते हैं और अमेरिका द्वारा हलकी तिरछी निगाहें करने पर चुप हो जाते हैं
साम्राज्यवादी शक्तियां शोषण करने के लिए दुनिया के मुल्कों में अशांति फैलाई जाती है और फिर उस अशांति को दबाने के लिए उस देश की सरकार को अपनी पिट्ठू सरकार बनाने की कोशिश की जाती है आज जरूरत इस बात की है कि इन साम्राज्यवादी शक्तियों के कुचक्रों को पहचाने और उन्सका मुंहतोड़ जवाब दें भारत सरकार यदि अपनी इच्छाशक्ति का इस्तेमाल करे तो साम्राज्यवादी शक्तियों के मंसूबे एशिया महाद्वीप में नहीं पूरे हो सकते हैं
-सुमन

19.3.10

मनुष्य जाति की मित्र नजदीकी पक्षी गौरैया


विश्व गौरैया दिवस पर

गौरैया हमारे जीवन का एक अंग है मनुष्य जहाँ भी मकान बनता है वहां गौरैया स्वतः जाकर छत में घोसला बना कर रहना शुरू कर देती है। हमारे परिवारों में छोटे छोटे बच्चे गौरैया को देख कर पकड़ने के लिए दौड़ते हैं उनसे खेलते हैं उनको दाना डालते हैं। हमारा घर गाँव में कच्चा बना हुआ है जिसकी छत में सैकड़ो गौरैया आज भी रहती हैं। घर के अन्दर बरामदे में एक छोटी दीवाल है। जिस पर हमारी छोटी बहन नीलम एक कप में पानी व चावल के कुछ दाने रख देती थी जिसको गौरैया आकर खाती थीं और पानी पीती थी। बहन की शादी के बाद भी वह परंपरा जारी है हमारा लड़का अमर और मैं पकड़ने के लिए आँगन में टोकरी एक डंडी के सहारे खड़ी कर देते थे, टोकरी के नीचे चावल के दाने डाल दिए जाते थे टोकरी वाली डंडी में रस्सी बंधी होती थी उस रस्सी का एक सिरा काफी दूर ले जा कर मैं और मेरा लड़का लेकर बैठते थे गौरैया चावल चुनने आती थी और टोकरी के नीचे आते ही रस्सी खींच देने से वह टोकरी के नीचे कैद हो जाती थी। टोकरी पर चद्दर डाल कर गौरैया पकड़ी जाती थी । गौरैया लड़का देखने के पश्चात उसको अपनी मम्मी के पास पहुंचा दो कहकर छोड़ देता था। इस तरह से खाली वक्त में कई कई घंटो का खेल होता रहता था। हमारे घर में तुलसी का पौधा लगा हुआ है जिसकी पूजा करने के लिए चावल की अक्षत इस्तेमाल होती है, जिसको गौरैया के झुण्ड आकर खाते हैं जिसको देखना काफी अच्छा लगता है । शहर में भी जो मकान है जिसमें तुलसी का पौधा लगा है, मेरी पत्नी रमा सिंह एक शुद्ध हिन्दू गृहणी हैं जो रोज सूर्य और तुलसी की पूजा करती हैं और जिसमें अक्षत के रूप में चावल के दानो का प्रयोग करती हैं जिसको गौरैया आज भी आकर चुनती हैं तथा दूसरे भी पक्षी सुबह सुबह आकर चावल के दानो को चुनते हैं । किसी कारणवश वह यदि वह पूजा नहीं करती हैं तो भी चावल के दाने चुनने के लिए बिखेर दिए जाते हैं , अगर गौरैया का लगाव मनुष्य जाति से है तो मनुष्य का भी लगाव गौरैया से रहा है ।
पूंजीवादी विकास के पथ पर मानव जाति ने बहुत कुछ खोया है जब हम मकान बनाते हैं तब हम यह समझते हैं कि यह जमीन हमारी है जबकि वास्तव में उस जमीन पर रहने वाले सांप बिच्छु से लेकर विभिन्न प्रकार के पशु पक्षियों की भी होती है हम सबल हैं इसलिए जीव जगत के एनी प्राणियों के हिस्से की भी जमीन हवा पानी पर भी अपना अधिपत्य स्थापित कर लेते हैं। हमने पानी को गन्दा कर दिया है हवा को गन्दा कर दिया है और कीटनाशको का अंधाधुंध प्रयोग करके प्राणी व वनस्पति जगत को काफी नुकसान पहुँचाया है ।
गौरैया व बया प्लोकाईड़ी परिवार की सदस्य हैं । यह जंगलो में भारी संख्या में रहती हैं। गौरैया कांटेदार झुरमुट वाली झाड़ियों में भी झुण्ड के साथ रहती हैं। इनके अंडे मध्यिम हरापन लिए सफ़ेद होते हैं उनपर कई प्रकार के भूरे रंगों के निशान होते हैं अन्डो से बच्चे निउकलते हैं जो बहुत कोमल होते हैं। जिनको गौरैया छोटे-छोटे कीड़े-मकौड़े घोसले में लाकर खिलाती रहती है और पंख निकाल आने पर दो तीन दिन उड़ने का अभ्यास करा कर मुक्त कर देती है । मनुष्य जाति को इससे सबक लेना चाहिए कि पक्षी अपने बच्चो की निस्वार्थ सेवा कर योग्य बनते ही मुक्त कर देते हैं और हम पीढ़ी दर पीढ़ी दूसरों का हक़ मार कर बच्चो को बड़े हो जाने के बाद भी आने वाली पीढ़ियों के लिए व्यवस्था करने में लगे रहते हैं जिससे अव्यस्था ही फैलती है और असमानता भी ।
अंत में लखीमपुर खीरी के चिट्ठाकार श्री कृष्ण कुमार मिश्रा को विश्व गौरैया दिवस के प्रचार-प्रसार के लिए धन्यवाद देता हूँसाथी रामेन्द्र जनवार को विश्व गौरैया दिवस के अवसर पर यह सलाह देता हूँ कि गौरैया से सीखें और बार-बार घोसले बदलें
-सुमन

विज्ञान और ज्योतिष

                   विज्ञान और ज्योतिष

                                        -  डॉ० डंडा लखनवी     

आजकल अनेक टी०वी० चैनलों पर ज्योतिषशास्त्र से जुडे़ कार्यक्रम प्रमुखता से प्रसारित हो रहे हैं। प्राय: ऐसा  सब टी०आर०पी० बढ़ाने के लिए होता है। इस कार्यक्रम में ज्योतिषियों के अपने तर्क होते हैं और वैज्ञानिकों के अपने। दोनों में से कोई भी हार मानने के लिए तैयार नहीं होता। अंतत: ज्योतिषी महोदय को क्रोध आ जाता है और वे अपनी विद्या-बल के प्रभाव से विज्ञानवादी वक्ता को सबक सिखाने पर तुल जाते हैं। यह सबक येनकेनप्रकारेण उसे भयभीत करने का होता है। इस काम के लिए वह मनोविज्ञान का भरपूर उपयोग करता है। ज्योतिषी महोदय के तेवर धीरे-धीरे आक्रामक होते जाते है और विज्ञानवादी के स्थिति रक्षात्मक । कुल मिला कर यह एक ऐसा स्वांग होता है जो दिन भर चलता है। दर्शकगण हक्का-बक्का हो कर दोनों के तर्क-वितर्क में डूबते-उतराते रहते हैं।इस संबंध में मेरा मानना है कि.......

ज्योति शब्द प्रकाश अर्थात आलोक का द्योतक है। प्रकाश के सम्मुख आने पर वे सभी चीजें दिखने लगती हैं जो अंधेरे के कारण हमें नहीं दिखाई पड़ती हैं।......जिस प्रकार सजग शिक्षक अपने विद्यार्थियों के आचरण और व्यवहार में निहित गुण-दोषों को देखकर उसके जीवन का खाका खीच देता है। वैसे ही ज्योतिषी भी जातक के जीवन में घटित होने वाली धटनाओं का अनुमान लगाता है, खाका खीचता है। इस कार्य में वह धर्म, दर्शन, गणित, अभिनय-कला, नीतिशात्र, तर्कशास्त्र, मनोविज्ञान, पदार्थ-विज्ञान, शरीर-विज्ञान, खगोल-विज्ञान, समाजशात्र तथा लोक रुचि के नाना विषयों का सहारा लेता है। वस्तुत: ज्योतिषशास्त्र एक सामाजिक विज्ञान है। इस विज्ञान की प्रयोगशाला समाज है। सामाजिक विज्ञानों के लिए अकाट्य सिद्धांतों का निरूपण करना कठिन होता है। सामाजिक परिवर्तन की गति बहुत धीमी होती है। इसके प्रभाव भी तत्काल दिखाई नहीं देते हैं। यह बात ज्योतिषशास्त्र पर भी लागू होती है। अत: अन्य सामाजिक विज्ञानों की भांति इस विज्ञान के निष्कर्ष शतप्रतिशत खरे होने की कल्पना आप कैसे कर सकते हैं? इस निष्कर्ष विविधता का एक अन्य कारण और भी है कि कु़दरती तौर पर संसार का हर व्यक्ति अपने आप में मौलिक होता है। उसके जैसा कोई दूसरा व्यक्ति नहीं होता है। इस आधार  पर हर व्यक्ति का भविष्य भी दूसरे से भिन्न ठहरेगा। अत: शुद्ध विज्ञान की भांति इससे तत्काल और सटीक परिणामों की आशा करना व्यर्थ है।............ हाँ किसी धंधे को चमकाने के लिए...... मीडिया एक अच्छा माध्यम है । ‘ज्योतिषियों’ और मीडिया की आपसी साठगांठ से दोनों का धंधा फलफूल रहा है।............ वर्तमान को सुधारने से भविष्य सुधरता है। इस तथ्य जो मनीषी परिचित हैं उन्हें मालूम हो जाता है कि उनका भविष्य कैसा होगा।

18.3.10

उत्तर प्रदेश में लोकतंत्र कामयाब हुआ

उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था के स्तिथि अति गंभीर है कोंट्रैक्ट किलर नीरज सिंह को जब जौनपुर पैसेंज़र से लेजाया जा रहा था तो कुछ हमलावरों ने उन दोनों सिपाहियों की हत्या कर अपराधी को छुड़ा कर लेकर चले गए बरेली में अभी तक कर्फ्यू चल रहा था आए दिन हत्याएं लूटपाट का दौर जारी है एक तरफ पुलिस थानों मेंसिपाही उपनिरीक्षकों की संख्या मानक से अत्यधिक कम है और इन पुलिस कर्मियों का अधिकांश समयसत्तारूढ़ दल के नेताओं के जलूस प्रदर्शन को कामयाब करने में लगा रहता है पुलिस के उच्च अधिकारीयों कीकार्यप्रणाली विधिक होने के कारण अफरातफरी का महल रहता है गंभीर अपराधों की विवेचना थाने में बैठकरहो जाती है। अंतर्गत धरा 161 सी.आर.पी.सी के बयान थाने पुलिस उपाधीक्षक के कार्यालयों में ही हो जाती है
उच्च अधिकारीयों को मीडिया में छाए रहने के लिए कुछ गुडवर्क चाहिए उसके लिएसुनियोजित तरीके से गुडवर्क की भूमिका तैयार की जाती है अपराध के खुलासे में असली अपराधी को पकड़ कर किसी किसी नवयुवक मार पीट कर अपराधी घोषित कर दिया जाता है। बरेली दंगो के दौरान- डॉक्टर तौकीर रजा धर्मनिरपेक्ष व्यक्तियों की गिरफ्तारी कर पुलिस प्रशासन ने अपनी योग्यता का परिचय दिया था और दंगे को भड़काने में मदद की, किन्तु आखिर में मजबूरन डॉक्टर तौकीर रजा को बिना शर्त रिहा करना पड़ा पूरे प्रदेश में कानून व्यवस्था को बनाए रखने केसन्दर्भ में पुलिस के उच्च अधिकारी नाकामयाब हो रहे हैं और पिछले एक माह से लखनऊ में आयोजित रैली केलिए वाहनों की व्यवस्था करने में लगे रहे हैं वाहन स्वामियों से जबदस्ती रैली के लिए वाहन लिए गए थे पूरे प्रदेश में रैली को कामयाब बनाने के लिए जबरदस्त वसूली की गयी थी तब जाकर उत्तर प्रदेश में लोकतंत्रकामयाब हुआ था ?
-सुमन

17.3.10

पोथी पढ़ पढ़ जगमुआ, पंडित भया न कोय......

यह कहावत तो आप ने सुनी होगी जब जागे तब सबेरा। यह खबर आई है। कौतूहल पूर्ण और प्रशंसनीय। इस वर्ष की बोर्ड परीक्षा दे रहे हैं भाजपा सरकार में समाज कल्याण राज्यमंत्री रहे दल बहादुर कोरी। यह पूर्व राज्यमंत्री रहे दल बहादुर कोरी। यह पूर्व राज्यमंत्री इस वर्ष प्रतापगढ़ के एक केन्द्र से हाईस्कूल की परीक्षा दे रहे हैं। देर शायद दुरूस्त आयद। यही क्या कम है कि सुबह के भूले शाम को घर पहुंचे। साक्षरता या समाज में शिक्षा के प्रसार के लिये सरकारें या समाज में शिक्षा के प्रसाद के लिये सरकारें व्यथित रहती है, बड़ी रक़में खर्च की जा रही है।मिड़ डे मीलसे बच्चे कम, दूसरे ज़्यादा फ़ायदा उठा रहे है। आज़ादी के 63 र्वष हो चुके, परन्तु साक्षरता दर हम अधिक नही बढ़ा सके। लगता यह है कि दो भारत हैं-एक अमीरों का दूसरा ग़रीबों का। शहरी अमीर बस्तियों में बच्चों को पढ़ानास्टेटस सिंबलहै। शिक्षा-माफ़िया या व्यवसायीक्रेज़पैदा करके दोनो हाथों से धन लूट रहे हैं, दूसरी ओर ग़रीब भारत की जनता पहले भोजन और रोज़गार से जूलमे-शिक्षा तो बाद की चीज़ है। साक्षर वह भी है जो पढ़ना लिखना नहीं जानता बस अगले से हस्ताक्षर तक पहुँच गया हमारे कबीर दास जी बेचारे तो साक्षर भी नहीं थे। बात कबीर का पड़ी तरे एक बात सुन लीजिये-शिक्षा और ज्ञान में क्या अन्तर है। ययह दोनो साथ साथ चलते भी है और साथ दोड़ भी देते है। अनेक डिग्रीधारी व्यक्ति जाहिलों से भी बदतर हैं, शिक्षा का दुरूपयोग करते हैं, मानवता के स्थान पर घृणा फैलाते हैं। कबीर शिक्षित नहीं थे, लेकिन ज्ञानी थें। ज्ञान सहृदपता और मानवता की ओर ले जाता है। एक दूसरे से प्रेम करना सिखाता है-
पोथी पढ़ पढ़ जगमुआ, पंडित भया न कोय।
ढाई अक्षर प्रेम का, पढ़ै सो पंडित होय।
आप नें देखा यू0पी0 के पूर्वमंत्री बड़े जागरूक निकले यही क्या कम है कि इस साल की हाईस्कूल की परीक्षा में बैठे, अनेक सिटिंग मंत्री अब भी अंगूठा टेक हैं क्या यह दुखद नहीं है कि देश प्रदेश में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के लिये भी शैक्षित योग्यता निर्धारित है। फिर पंचायत निकायों के अध्यक्षों, विधान मण्डल के सदस्यों, सांसदों एवं मंत्रियों के लिये निम्नतम शैक्षिक योग्यता आखिर क्यों निर्धारित नहीं की गई है चुनाव नामांकन के समय जो फार्म भरकर पेश किये जाते हैं उनके संलग्नकों में निर्वाचन आयोग ने कुछ सूचनायें देने हेतु निर्देश दे रखे हैं। उन्हीं में शैक्षिक योग्यता की सूचना देना भी अपेक्षित है। इन सूचनाओं का उपयोग आखिर क्या है? अतः जनता को सरकार से यह आग्रह करना चाहिए कि हमारे जनप्रतिनिधि पढ़े लिखे हो ज्ञानी हो एक ड्राइवर को ड्राइविंग लाइसेंस तब ही निर्गत किया जाता है जब वह गाड़ी ठीक प्रकार से चलाना जानता हो, फिर हमारे कर्णधारों से यह अपेक्षा क्यों नही की जाती? अगर सभी जनप्रतिनिधियों का कोई शैक्षिक सर्वेक्षण प्रकाशित हो तो उनमें से बहुसंख्यक का हाल यही होगा।
मसिकागद छूओ नहीं, कलम गहेव नहिं हाथ।
डॉक्टर एस.एम हैदर

16.3.10

उक्रेन में राष्ट्रपति चुनावः अमरीकी साम्राज्यवाद के लिए एक झटका

1990-91 में विश्व में एकध्रुवीय हो जाने और अमरीका का इसका अगुआ बन जाने के बाद से ही उसने विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में अपनी गतिविधियां तेज कर दी हैं। लेकिन यूरोप और खासकर पूर्वी यूरोप पर उसका विशेष ध्यान है। इस अभियान में उसने सर्वप्रथम युगोस्वालिया को सभी अंतर्राष्ट्रीय कानूनों और मान्यताओं की अवहेलना करते हुए कई भागों में विभक्त कर दिया। इसके साथ ही उसका दूसरा निशाना उन राष्ट्रों पर था, जो पहले समाजवादी खेमों के सदस्य थे। इस मुहिम में इन राष्ट्रों को नाटो सैनिक संगठन में सम्मिलित करना शामिल थे। इसके साथ ही मध्य एशिया के राष्ट्रों और इनके माध्यम से कैस्पियन सागर के तेल सम्पदा पर अधिकार जमाना इनकी नीति का भाग था।
शुरू में उसे कुछ सफलता भी मिली, जैसे कि बुल्गारिया, पोलैंड, रूमानिया आदि को नाटो का सदस्य बनाया गया और इनमें से कुछ में अमरीकी नाटो फौजी अड्डे भी स्थापित किये गये। लेकिन अभियान के इस क्रम में उसे बड़ा झटका ज्याॅर्जिया संकट के रूप में लगा। लम्बे समय से अमरीका उक्रेन को नाटो में शामिल करने के लिए प्रयत्नशील है। इस संबंध में उतार-चढ़ाव होता रहा है।
उक्रेन में अभी-अभी राष्ट्रपति का आम चुनाव संपन्न हुआ है। वहां की चुनाव प्रणाली के अनुसार राष्ट्रपति प्रत्यक्ष वोटरों द्वारा दो चरणों में चुना जाता है। पहले चरण में कई उम्मीदवार लड़ सकते हैं। यदि किसी को 50 प्रतिशत से अधिक नहीं मिला तो दो अधिक मत पाने वाले दूसरे चरण में लड़ते हैं। इस चुनाव के पहले दौर (31 जनवरी) में विक्टर यानुकोविच और वर्तमान प्रधानमंत्री युलिया तिमोशेको को क्रमशः 35 अज्ञैर 25 प्रशित मत मिले हैं जबकि उक्रेन के नाटों में शामिल करने की नीति के समर्थक वर्तमान राष्ट्रपति युश्चेको को मात्र 5 प्रतिशत ही मत मिल पाए हैं। इसका मतलब था कि अन्तिम दौर में जीतने वाला अमरीका समर्थक नहीं होता। क्योंकि यानुकोविच और तिमोशेकों दोनों ही अमरीका-विरोधी हैं। इस प्रकार उक्रेन को नाटो में शामिल करने के अमरीका मंसूबे पर पूर्ण विराम लग जाएगा। यह अमरीका के लिए बड़ा झटका है। इसके अलावा और अन्य तरह से भी उक्रेन महत्वपूर्ण है। यानुकोविच को मात्र 5 प्रतिशत मत मिलना नाटो सदस्य बनाने की उनकी अमरीका परस्त नीति को रद्द किया जाना है।
कैस्पियन सागर से तेल और गैस की आपूर्ति पश्चिम यूरोप के राष्ट्रों को कई माध्यम से होती है। इसमें रूस, तर्कमेनिस्तान समझौता अजरबैजान के तेल गैस के रूस के रास्ते पश्चिम यूरोप जाने और रूस-तुर्की के रास्ते पश्चिम यूरोप जाने और रूस-तुर्की समझौता जो गैस/तेल को दक्षिण यूरोप भेजेंगे, प्रमुख हैं। येश्चेंका इन सबके खिलाफ थे और वे चाहते थे कि रूस को इन सबसे अलग कर सारी तेल/गैस उक्रेन से ही होकर पश्चिम यूरोप को जाये। लेकिन स्पष्ट रूप से यह सब ख्याली पुलाव बन कर ही रह जायगा।
उपरोक्त तेल राजनीति का सीधा संबंध कैस्पियन सागर के तेल और गैस भंडार से है। पहले वह पूर्व सोवियत संघ की सम्पदा थी। उसके ध्वस्त होने के बाद वह सोवियत संघ से अलग हुए और कैस्पियन सागर से लगे राष्ट्रों की सम्पत्ति है। विभिन्न समझौतों के कारण इस तेल/गैस भंडार पर वर्चस्व स्थापित करना भी एक उद्देश्य रहा है। लेकिन उक्रेन के इस चुनाव से उसकी इस नीति को मुंह की खानी पड़ी है।
यूश्चेंको उक्रेन में सेवास्तोपोल में रूसी सैनिक अड्डे के भी खिलाफ थे। इस सैनिक अड्डे का काला सागर पर वर्चस्व से सम्बंध है। काला सागर से लगे बुल्गारिया और रूमानिया में पहले से ही अमरीका ने सैनिक अड्डा स्थापित कर रखा है और उसका उद्देश्य काला सागर पर अपना दबदबा जमाना है। उसका यह मंसूबा भी धराशायी होता दीख रहा है।
ज्याॅर्जिया के संबंध में भी युश्चेंको/रूस की संकट भत्र्सना के पक्षधर थे। उक्रेन की आने वाली सरकार की इस मामले में भी अलग नीति होगी। कुछ दिन पहले उक्रेन से गुजरने वाली पाइप-लाइन के संबंध में रूस के साथ उक्रेन का संकट हुआ था। ये पाइप-लाइन पश्चिम यूरोप को भी जा रही है और इस संकट का असर पश्चिम यूरोप को पहुंचने वाले तेल और गैैस की आपूर्ति पर पड़ा था। इसलिए पश्चिम यूरोप के देश भी इस संबंध में अमरीका के विरूद्ध और रूस समर्थक नीति रखते हैं। इन सब घटनाओं का यह अर्थ नहीं निकाला जाना चाहिए कि उक्रेन में रूस पक्षी सरकार आने वाली है। लेकिन लड़ने वाले दोनों उम्मीदवारों ने साफ कर दिया है कि उनकी नीति तर्कसंगत और उक्रेनपक्षी होगी।
कुल मिलाकर आने वाले दिनों में अमरीकी नीति को इस क्षेत्र में भारी झटका लगने जा रहा है और ओबामा के लिए सांप-छछंुदर की स्थिति उत्पन्न होने वाली है। अगर ओबामा उक्रेन के संबंध में रूस के साथ टकराव की स्थिति पैदा करते हैं तो उनका रूस के साथ संबंध कोरिसेटकरने (सामान्य बनाने) का कार्यक्रम धरा रह जायगा। अगर वह उक्रेन संबंधी नीति पर पीछे हटते हैं तो इसकी विरोधी रिपब्लिकन पार्टी इसकी नींद हराम करेगी।
चुनाव के दूसरे और अंतिम दौर में जिसमें सिर्फ दो सबसे अधिक मत पाने वाले उम्मीदवार ही लड़ते हैं। 7 फरवरी को दूसरे दौर में उक्रेन के विरोधी उम्मीदवार यानुकोविच ने प्रधानमंत्री तिमोशेको को राष्ट्रपति की दौड़ में बहुत थोड़े से मतों से हरा दिया। यानुकोविच को 48.40 तथा तिमोशेको को 45.99 प्रतिशत मत मिले। पश्चिमी देशों ने अपनी निराशा स्पष्ट की है। यूरोपीय संसद की परिषद केरैपोर्टियरने चुनावी नतीजे कोत्रासदीकरार दिया है।
चुनाव नतीजे यानुकोविच के लिए नाटकीय वापसी है। वे भूतपूर्व प्रधानमंत्री हैं। 2004 के चुनावों में पश्चिम के हस्तक्षेप से चुनावी नतीजे उनके विरोध में गए जिसेनारंगी क्रांति“ (!) कहा गया।
अब वे राष्ट्रपति के रूप में वापस गए हैं। जाहिर है उक्रेन दृढ़तापूर्वक पश्चिम-विरोध पर चलेगा; कम से कम संभावना तो यही लगती हैं।
-भारत भूषण प्रसाद

नव संवत्सर क्यों नहीं मानते...!!













ग्रेगेरियन कैलेण्डर का आखिरी महिना आते ही पूरे विश्व में जहां-जहां पर अंग्रेजों का आधिपत्य रहा है, वे सारे देश नए साल की आगुवानी करने के लिए तैयारियां करने लगते हैं. हैप्पी न्यू इयर के झंडे, बैनर, पोस्टर और कार्डों के साथ दारू की दुकानों की भी चांदी कटने  लगती है. कहीं-कहीं तो जाम से जाम इतने टकराते हैं कि घटनाएं दुर्घटनाओं में बदल जाति हैं और आदमी आदमी से और गाड़ियां गाड़ियों से भिड़ने लगती हैं. रातभर जागकर नया साल ऐसे मनाया जाता है मानो पूरे साल की खुशियाँ एक साथ आज ही मिल जाएंगी. सभ्यता और संस्कृति की दुहाई देने वाले हम भारतीय पश्चिमी शराबी तहज़ीब में इस कदर सराबोर हो जाते हैं कि उचित अनुचित का बोध त्याग अपनी सारी कथित मर्यादाओं की की तिलांजलि दे देते हैं. पता ही नहीं लगता कि कौन अपना है और कौन पराया. नव संवत्सर को हम भारतीय लगभग भूल ही चुके है. इसके बारे में जानने वालों को अंगुली पर गिना जा सकता है.
जबकि ग्रेगेरियन कैलेण्डर को जानने वालों की संख्या अनगिनत है. अपनी समृद्ध सांस्कृतिक ओ ऐतिहासिक परम्पराओं को भूलकर वर्तमान में ' भारत ' वास्तव में ' इंडिया ' में  तब्दील होता जा रहा है. हमें अंग्रेजी नया साल मानाने में जितना अभिमान होता है उसका रत्तीभर भी गर्व भारतीय नव संवत्सर को जानने या मानाने में नहीं होता. अपने आप से ये सवाल पूछें कि हम भारतीय नव संवत्सर क्यों नहीं मानते ?

ग्रेगेरियन कैलेण्डर की शुरूआत
१ जनवरी से प्रारंभ होने वाली काल गणना को ईस्वीं सन के नाम से जानते हैं जिसका संबंध ईसाई जगत व ईसा मसीह से है. इसे रोम के सम्राट जूलियस सीज़र द्वारा ईसा के जन्म के तीन वर्ष बाद प्रचलन में लाया गया. भारत में ईस्वीं संवत की शुरूआत अंग्रेजी शासकों ने १७५२ में किया. अधिकांश राष्ट्रों के ईसाई होने और अंग्रेजों के विश्वव्यापी प्रभुत्व के कारण ही इसे विश्व के अनेक देशों ने अपनाया. १७५२ से पहले ईस्वीं सन २५ मार्च से शुरू होता था, किन्तु १८ वीं सदी से इसकी शुरूआत १ जनवरी से होने लगी. ईस्वीं कैलेण्डर के महीनों के नामों  में प्रथम छह माह यानी जनवरी से जून रोमन देवताओं ( जोनस, मार्स व  मया आदि ) के नाम पर हैं. जुलाई और अगस्त रोम के सम्राट जूलियस सीज़र तथा उनके पौत्र आगस्टस के नाम पर तथा सितम्बर से दिसंबर तक रोमन संवत के मासों के आधार पर रखे गए. जुलाई और अगस्त, क्योंकि सम्राटों के नाम पर थे इसलिए, दोनों ही इकत्तीस दिनों के माने गए अन्यथा कोई भी दो मास ३१ दिनों या लगातार बराबर दिनों की संख्या वाले नहीं हैं.
ईसा से ७५३ वर्ष पूर्व रोमन नगर की स्थापना के समय रोमन संवत प्रारंभ हुआ जिसके मात्र दस माह ३०४ दिन होते थे. इसके ५३ साल बाद वहां के सम्राट नूमा पाम्पीसियस ने जनवरी और फरवरी दो माह और जोड़कर इसे ३५५ दिनों का बना दिया. ईसा के जन्म से ४६ वर्ष पहले जूलियस सीज़र ने इसे ३६५ दिन का बना दिया. सन १५८२ में पोप ग्रेगरी ने आदेश जारी किया कि इस मास के ०४ अक्टूबर को इस वर्ष का १४ अक्टूबर समझा जाए. आखिर क्या आधार है इस काल गणना का ? यह तो ग्रहों व नक्षत्रों की स्थिति पर आधारित होनी चाहिए.
ग्रेगेरियन कैलेण्डर की काल गणना मात्र दो हज़ार वर्षों के अति अल्प समय को दर्शाती है. जबकि यूनान की काल गणना ३५७९ वर्ष, रोम की २७५६ वर्ष, यहूदी की काल गणना ५७६७ वर्ष, मिस्र की २८६७० वर्ष, पारसी १८९९७४ वर्ष तथा चीन की ९६००२३०४ वर्ष पुरानी है. इन सबसे अलग यासी भारतीय काल गणना की बात करे तो हमारे ज्योतिष अनुसार पृथ्वी की आयु १ अरब ९७ करोड़, ३९ लाख ४९ हज़ार १०८ वर्ष है, जिसके व्यापक प्रमाण भारत के पास मौजूद है.

विक्रम संवत की शुरूआत
' चैत्रे मासि जगद ब्रह्मा ससर्ज प्रथमे अहनि, शुक्ल पक्षे समग्रेतु तदा सूर्योदये सति.'- ब्रह्म पुराण में वर्णित इस श्लोक के मुताबिक चैत्र मास के प्रथम दिन प्रथम सूर्योदय पर ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना की थी. इसी दिन से  विक्रम संवत की शुरूआत होती है. ग्रेगेरियन कैलेण्डर से अलग देश में कई संवत प्रचलित हैं. फिलहाल, विक्रम संवत, शक संवत, हिजरी संवत, बौद्ध और जैन संवत तेलगू संवत प्रचलित हैं. इनमें हर एक का अपना नया साल होता है. विक्रम संवत को सम्राट विक्रमादित्य ने शकों को पराजित करने की ख़ुशी में ५७ ईसा पूर्व में शुरू किया था. विक्रम संवत चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शुरू होता है. भारतीय पंचांग और काल निर्धारण का आधार विक्रम संवत है.

विशेषता 
विक्रम संवत का संबंध विश्व की प्रकृति, खगोल सिद्धांत और ब्रह्माण्ड के ग्रहों व नक्षत्रों से है. इसलिए भारतीय काल गणना पंथ निरपेक्ष होने के साथ सृष्टि की रचना और राष्ट्र गौरवशाली परम्पराओं को दर्शाती है. यही नहीं, ब्रह्माण्ड के सबसे पुरातन ग्रन्थ वेदों में भी इसका वर्णन है. नव संवत्सर यानि संवत्सरों का वर्णन यजुर्वेद के २७ वें और ३० वें अध्याय के मन्त्र क्रमांक क्रमशः ४५ और १५ में विस्तार से दिया गया है. विश्व में सौर मंडल के ग्रहों और नक्षत्रों की चाल और निरंतर बदलती उनकी स्थिति पर ही हमारे दिन, महीने, साल और उनके सूक्ष्मतम भाग आधारित होते.

राष्ट्रीय कैलेण्डर
देश आज़ाद होने के बाद नवम्बर १९५२ में वैज्ञानिक और औद्योगिक परिषद् के द्वारा पंचांग सुधर समिति की स्थापना की गई. समिति ने १९५५ में सौंपी अपनी रिपोर्ट में विक्रमी संवत को भी स्वीकार करने की सिफारिश की थी. लेकिन, तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के आग्रह पर ग्रेगेरियन कैलेण्डर को ही सरकारी कामकाज हेतु उपयुक्त मानकर २२ मार्च १९५७ को इसे राष्ट्रीय कैलेण्डर के रूप में स्वीकार किया गया.

ऐतिहासिक-पौराणिक महत्व 
1. आज से १ अरब ९७ करोड़, ३९ लाख ४९ हज़ार १०९ वर्ष पहले इसी दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि का सृजन किया था.
2. लंका में राक्षसों का मर्दन कर अयोध्या लौटे मर्यादा पुरुषोत्तम राम का राज्याभिषेक इसी दिन किया गया.
3. शक्ति और भक्ति के नौ दिन अर्थात नवरात्र स्थापना का पहला दिन यही है. भगवान राम के जन्म दिन रामनवमी से पूर्व नौ दिन उत्सव मानाने का प्रथम दिन.
4. समाज को अच्छे मार्ग पर ले जाने वाले स्वामी दयानंद सरस्वती ने इसी दिन को आर्य समाज के स्थापना दिवस के रूप में चुना.
5. सिख परम्परा के  द्वितीय गुरू का जन्म दिवस.
6. सिंध प्रान्त के प्रसिद्ध समाज सुधारक रक्षक वरुनावातार संत झूलेलाल इसी दिन प्रगट हुए.
7.शालिवाहन संवत्सर का प्रारंभ दिवस विक्रमादित्य की भांति शालिवाहन ने हूणों  को परस्त कर दक्षिण में श्रेष्ठतम राज्य की स्थापना करने के लिए यही दिन चुना.
8. युगाब्द संवत्सर का प्रथम दिन ५११२ वर्ष पूर्व युधिस्ठिर का राज्याभिषेक भी इसी दिन हुआ.
9. इसी दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डा. केशवराम बलिराम हेडगेवार का जन्म दिवस है.  

प्राकृतिक महत्व
1. वसंत ऋतु का प्रारंभ वर्ष प्रतिपदा से शुरू होता है जो उल्लास, उमंग, खुशी तथा चरों तरफ़ पुष्पों की सुगंध से भरी होती है.
2. फसल पकने का प्रारंभ यानि किसान की मेहनत का फल मिलने का भी यही समय होता है.
3. नक्षत्र शुभ स्थिति में राहते हैं अर्थात किसी भी कार्य को प्रारंभ करने के लिए शुभ मुहूर्त होता है.
क्या ग्रेगेरियन कैलेण्डर के साथ ऐसा एक भी प्रसंग जुड़ा है जिससे राष्ट्र प्रेम जाग सके, स्वाभिमान जाग सके या श्रेष्ठ होने का भाव जाग सके ? आइए गर्व के साथ भारतीय नव वर्ष यानी कि विक्रमी संवत ( २०६७ ) को पूरा जोशो-खरोश के साथ मनाएं और सभी लोगों को इसके बारे में बताएं.
                                     (स्रोत: पंजाब केसरी. शुक्रवार्ता, १ जनवरी, २०१० और दैनिक जागरण, १५ मार्च, २०१०)
नव संवत का नूतन स्वर, नव सूर्योदय की प्रथम किरण.
सृजित करे आप सबमें, दया, शीलता, क्षमा, प्रेम और कर्मठता.
समृद्ध शसक्त परिवार, समाज  और देश का निर्माण करें
आओ मिलकर नव संवत को नूतन स्वर प्रदान करें...!! 

जय हिंद !
प्रबल प्रताप सिंह