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13.3.10

सत्यमेव जयते

एक अच्छी खबर देश के सभी राज्यों के सरकारी कार्यालयों को ‘सत्यमेव जयते’ का प्रयोग करने के निर्देश दिये गये हैं, इसीक्रम में उ0प्र0 सरकार ने इसके अनुपालन के निर्देश जारी किये।
भौतिकता की बुराईयों से बचने के लिये हल निकालना ही चाहिये। पहले भी इस तरफ ध्यान दिया गया था, जब हर दफतर में गांधी जी की शांति स्थापना वाली मुद्रा की फोटो लगायी गई थी, उनके उठाये हुए हाथ की पांचो उंगुलियां सामने थीं। सभी जानते हैं कि पहले बाबू लोग (सभी नहीं) दो रूपया शर्माकर ले लेते थे, बाद में महंगाई आई तो मांग भी बढ़ी, शर्माते सकुचाते गांधी की तस्वीर का सहारा लेने लगे।
सरकारें अपनी जिम्मेदारियों से बचने के लिये कुछ टोटके करती हैं। यूरोप में तो कुछ दूसरे ही उपाय किये जाते हैं, जब बुराई हद से आगे बढ़ जाती है तो कानून बनाकर उसे जायज करार दे देते हैं, यह देश, सभ्य देश है?
अगर बुराई को समाप्त करने का दृढ़ संकल्प न हो तो विधि विधान या शासनादेशों से कुछ भी होने वाला नहीं है, इसे ‘फेस-सेविंग’ ही कहा जायेगा।
आदर्श वादिता बड़ी अच्छी चीज है अगर यह अपने स्थान पर न रूक जाये, इसके आगे भी एक लम्बा सफर है। मनसा, वाधा कर्मणा तक जाते हैं विचार तथा शब्दों की सीढियां हम को व्यवहार परिवर्तन की मंजिल तक ले जाती हैं। राष्ट्रीय त्यौहारों पर भारत माता की जय बोलने की आवाजे गगन भेंदी होती हैं बन्दे मातरम बोलने में भी किसी से कम नहीं। बड़े बड़े भ्रष्ट अफसर इन मौकों पर अपने भाषणों के द्वारा मातहतों को उपदेश की खुराके पिलाते हैं परन्तु व्यवहार परिवर्तन की किसी को फिक्र नहीं है।
पर उपदेश कुशल बहुतेरे
जो व्यवरहिं ते नर न घनेरे।

डॉक्टर एस एम हैदर

12.3.10

वादा लपेट लो, जो लंगोटी नहीं तो क्या ?

अर्थशास्त्रियों ने हमारी जरूरतों को तीन भागों आवश्यक आवश्यकताओं, आरामदायक तथा विलासिताओं में बांटा है। आवश्यक में खाना, कपड़ा, मकान मुख्य है। मैं अक्सर शहरी एवं ग्रामीण बस्तियों से गुजरा और देखा कि झोपड़ियों से टी0वी0, रेडियों द्वारा प्रसारित प्रोग्राम की आवाजे आ रही हैं तथा युवाओं के हाथों में मोबाइल सेट हैं मेरे मन में इस प्रगति के प्रति कोई विरोध नहीं है, मानवता के आधार पर अमीर गरीब समान हैं, परन्तु आश्चर्य इस बात पर हुआ कि इन आदमियों में खेलने वाले बच्चे अधिकतर कुपोषित थे तथा कपड़े तक मयस्सर नहीं थें, शायद ये लोग ग्लैमरस जिन्दगी की चकाचौंध का शिकार हो गये, इनकी जेब कम्पनियों ने काट ली और ये प्राथमिकताएं तय करने में गलती कर बैठे।
आवश्यकताओें में खाने का पहला नम्बर है, इनमें अनाज सब से मुख्य है। गरीब को रोटी चाहियें, परन्तु हमारी खाद्य नीति ने गरीब को भूखा मरने पर मजबूर कर दिया। लगता है हमारे केन्द्रीय खाद्य मंत्री शरद पवार के भी कुछ निहित स्वार्थ थे जिसके कारण उन्होंने आयात निर्यात का मकड़जाल फैलाकर कुछ बड़ों को शायद फायदा पहुंचाने की कोशिश की। उन्होंने अक्सर ऐसे विरोधाभासी बयान दिये जिससे एक तरफ अनाजों के दाम बढ़े जिस से उपभोक्ता प्रभावित हुए परन्तु दूसरी तरफ उत्पादकों तक फायदा नहीं पहुंचने दिया गया। यह फायदा बिचौलिए ले उड़े। कभी कहा गया अनाज आयात किया जायेगा, कभी कहा गया गोदामों में अनाज इतना भरा हुआ है कि उनको आगे के लिये खाली करना जरूरी हो गया है। शक्कर के सम्बंध में भी गलती से या जानबूझकर उलटफेर वाली नीतियाँ अपनाई गईं। उपभोक्ता ऊँचे दामों पर शक्कर खरीदने पर मजबूर हुआ, दूसरी तरफ आयातिति खांडसरी बन्दरगाहों पर पड़ी सड़ती रही।
गरीब की कोई सुनता नहीं, मौका आने पर उससे सिर्फ वोट लिया जाता है तथा जो वादे किये जाते हैं उनकी तरफ से कोई मुड़कर नहीं देखता, एक शेर शमसी मीनाई का देखिये-
सब कु है अपने देश में, रोटी नहीं तो क्या ?
वादा लपेट लो, जो लंगोटी नहीं तो क्या ?
-डॉक्टर एस.एम.हैदर

11.3.10

हम डाक्टर भेजते हैं, सैनिक नहीं

हैती में प्राकृतिक आपदा, जिसने हमारे इस पड़ोसी देश को तबाह कर दिया, के दो दिन बाद 14 जनवरी 2010 को मैंने लिखा था, “स्वास्थ्य एवं अन्य क्षेत्रों में हैती के लोगों को क्यूबा का सहयोग मिला है यद्यपि वह एक छोटा सा और प्रतिबंधित देश है। हमारे करीब 400 डाक्टर और स्वास्थ्यकर्मी निःशुल्क हैती के लोगों की मदद कर रहे हैं। हमारे डाक्टर उस दे के 237 में 227 कम्यूनों में प्रति दिन काम कर रहे हैं। इसके अलावा हैती में 400 युवाओं को हमारे देश ने मेडिकल ग्रेज्युएट बना कर भेजा है। वे अब अपने देश में लोगों की जान बचाने के लिए काम करेंगे। इस प्रकार एक हजार डाक्टर और स्वास्थ्य कर्मी बिना किसी विशेष प्रयास के वहां तैनात किये जा सकते हैं तथा उनमें से अधिकांश पहले से वहां हैं जो किसी भी अन्य देश के साथ सहयोग करने के लिए तैयार हैं जो हैती के लोगों की जान बचाना चाहते हैं।
हमारे मेडिकल ब्रिगेड के प्रधान ने सूचित किया है कि वहां स्थिति कठिन है लेकिन हम लोगों की जान बचा रहे हैं।
क्यूबा के स्वास्थ्यकर्मी दिन रात घंटों जो भी सुविधाएं वहां उपलब्ध हैं - शिविरों में या पार्कों में खुले आसमान के नीचे बिना रूके लगातार काम कर रहे हैं चूंकि वहां के लोगों को फिर भूकंप आने की आशंका थी। जितना पहले सोचा गया था, स्थिति उससे कहीं ज्यादा भयावह है। पोर्ट-ओ-प्रिंस की सड़कों पर हजारों घायल लोग सहायता के लिए गुहार लगा रहे हैं। अनगिनत लोग जिंदा या मुर्दा ढह गये मकानों के मलबे में दबे हुए हैं। बहुत ठोस मकान भी धराशायी हो गये।
संयुक्त राष्ट्र के कुछ अधिकारी भी अपने कमरों में फंस गये तथा दसियों लोगों की जानें चली गयी जिनमें संयुक्त राष्ट्र दल की टुकड़ी मिनुस्था के अनेक प्रमुख अधिकारी भी शामिल थे। संयुक्त राष्ट्र के अन्य सैकड़ों कर्मचारियों का कोई अता-पता नहीं है।
हैती के राष्ट्रपति का महल ढह गया तथा अनेक अस्पताल और अन्य सार्वजनिक दफ्तर नष्ट हो गये।
इस अभूतपूर्व प्राकृतिक आपदा को देखकर सारा विश्व स्तब्ध रह गया। दुनिया भर के लोगों ने प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय टीवी नेटवर्कों पर वहां की तबाही का मंजर देखा। विश्व भर की सरकारों ने बचाव दलों, खाद्य सामग्रियों, दवाइयों, उपकरण एवं अन्स संसाधन भेजने की घोषणा की। क्यूबा द्वारा की गयी सार्वजनिक रूप से घोषणा के अनुरूप स्पेन, मेक्सिको, कोलम्बिया एवं अन्य देशों के मेडिकल स्टाफ ने हमारे डाक्टरों के साथ मिलकर कड़ी मेहनत की। पीएएचओ जैसे संगठनों तथा वेनेजुएला जैसे दोस्ताना देशों ने दवा एवं अन्य समान भेजे। क्यूबा के पेशेवरों एवं उनके नेताओं ने बिना किसी प्रचार और ताम-झाम के काम किया।
क्यूबा ने ऐसी ही परिस्थिति में जब न्यू ओर्लीन्स शहर में भयंकर तूफान आया था और हजारों अमरीकी नागरिकों की जान खतरे में थी, तो वहां के लोगों के साथ सहयोग करने के लिए अमरीका जैसे देश में जो अपने विशाल संसाधनों के लिए जाना जाता है, एक पूरा मेडिकल ब्रिगेड भेजने की पेशकश की थी। उस समय प्रशिक्षित एवं साज समानों से परिपूर्ण डाक्टरों की जरूरत थी ताकि लोगों की जान बचायी जा सके। न्यू ओर्लीन्स की भौगोलिक स्थिति को देखते हुए “हेनरी रीव“ टुकड़ी के एक हजार से अधिक डाक्टरों को तैयार रखा गया जो अपने साथ जरूरी दवाइयां एवं अन्य उपकरणों के साथ किसी भी वक्त वहां जाने के लिए तैयार थे। हमने कभी सोचा भी नहीं था कि उस देश के राष्ट्रपति हमारी पेशकश को ठुकरा देंगे और अनेक अमरीकी नागरिकों को मरने देंगे, जिन्हें बचाया जा सकता था। उस देश की सरकार ने शायद यह गलती की कि वह यह नहीं समझ पायी कि क्यूबा के लोग अमरीका के लोगों को अपना दुश्मन नहीं मानते और न ही क्यूबा पर हमले के लिए उन्हें दोषी समझते हैं। वहां की सरकार यह नहीं समझ पा रही थी कि हमारा देश उन लोगों से कुछ पाने की इच्छा नहीं रखता है जो आधी शताब्दी से हमें झुकाने का व्यर्थ प्रयास कर रहे हैं। हैती के संबंध में भी हमारे देश ने अमरीकी अधिकारियों के इस अनुरोध को कि सहयता सामग्रियों एवं जरूरी अन्य चीजों को यथासंभव हैती पहुंचाने के लिए क्यूबा के पूर्वी हिस्से के ऊपर से उड़ने दिया जाये, तुरन्त मान लिया ताकि अमरीका के और हैती के लोगों को जो तबाही से प्रभावित हुए है मदद पहुंच सके।
हमारे लोगों का इस तरह का शानदार नृजातीय चरित्र रहा है।
धीरज के साथ दृढ़ता, यह हमारी विदेश नीति का हमेशा ही विशेषता रही है और अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में जो लोग हमारे विरोधी रहे हैं उन्हें भी यह अच्छी तरह मालूम है। क्यूबा इस राय से पूरी तरह एवं दृढ़ता पूर्वक सहमत है कि दक्षिण गोलार्ध के सबसे गरीब देश हैती में जो त्रासदी हुई है वह विश्व के सबसे शक्तिशाली एवं धनी देशों के लिए एक चुनौती है।
हैती विश्व में थोपी गयी औपनिवेशिक, पूंजीवादी और साम्राज्यवादी व्यवस्था की उपज है। हैती की गुलामी तथा बाद की गरीबी बाहर से थोपी गयी है। यह भयंकर भूकंप कोपेनहेगन शिखर सम्मेलन के बाद हुआ जहां संयुक्त राष्ट्र के 192 सदस्य देशों के सर्वाधिक मूलभूत
अधिकारों को कुचल दिया गया। इस त्रासदी के बाद हैती में जल्दबाजी में गैर कानूनी ढंग से लड़के-लड़कियों को गोद लेने की स्पर्धा चल रही है। इसे देखते हुए यूनिसेफ को इन बच्चों को बचाने के लिए निरोधात्मक कदम उठाने के लिए मजबूर होना पड़ा ताकि ये बच्चे अपनी जड़ों से इस तरह न उखड़ें और अपने अधिकारों को अपने सगे-संबंधियों से पाने से वंचित न हो जायंे। इस त्रासदी में एक लाख से अधिक लोग मारे गये। बड़ी संख्या में लोगों के हाथ, पैर टूट गये या फ्रैक्चर हो गये जिन्हें पुनर्वास की जरूरत है ताकि वे फिर से काम शुरू कर सके।
देश के 80 प्रतिशत हिस्से को फिर से बसाने की जरूरत है। हैती को ऐसी अर्थव्यवस्था की जरूरत है जो उत्पादन क्षमता के अनुसार इतनी विकसित हो कि अपनी जरूरतों को पूरा कर सके। हैती में जिन प्रयासों की जरूरत है उनकी तुलना में यूरोप और जापान का पुनर्निर्माण जो कि उत्पादन क्षमता और लोगों के तकनीकी स्तर पर आधारित था, आसान था। हैती तथा अधिकांश अफ्रीकी देशों और अन्य विकासशील देशों में स्थायी विकास के लिए हालात पैदा करना बहुत जरूरी है। केवल 40 सालों में दुनिया की आबादी नौ अरब हो जायेगी जिसे अभी वायुमंडल परिवर्तन की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। वैज्ञानिकों की राय में जलवायु परिवर्तन एक ऐसी वास्तविकता है जिससे बचा नहीं जा सकता।
हैती में आयी त्रासदी के बीच, किसी को पता नहीं क्यों और कैसे अमरीकी नौसेना के हजारों सैनिकों, 82वां एयरबोर्न डिविजन सैनिकों एवं अन्य सैनिकों ने हैती पर कब्जा कर लिया। इससे भी बदतर बात यह है कि न तो संयुक्त राष्ट्र ने और न ही अमरीकी सरकार ने सैनिकों की तैनाती के बारे में विश्व को कुछ बताया।
अनेक सरकारों ने शिकायत की है कि उनके विमानों को हैती में उतरने नहीं दिया गया जो मानवीय एवं तकनीकी संसाधनों को लेकर गये थे।
कुछ देशों ने घोषणा की है कि वे वहां अतिरिक्त सैनिक एवं सैनिक उपकरण भेजेंगे। मेरे विचार में ऐसी घटनाओं से अंतर्राष्ट्रीय सहयोग में जटिलता और अराजकता पैदा होगी जो कि पहले से ही जटिल है। इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। संयुक्त राष्ट्र को ऐसे नाजुक मामलों में अग्रणी भूमिका निभाने की जिम्मेदारी सौंपी जानी चाहिए।
हमारा देश बिल्कुल एक मानवीय मिशन को पूरा करने में लगा हुआ है। यथासंभव हमारा देश मानवीय एवं अन्य संसाधन वहां भेजेंगा। हमारे लोगों की इच्छा काफी मजबूत हे जिन्हें अपने डाक्टरों और अन्य कर्मियों पर जो वहां काफी महत्वपूर्ण सेवाएं दे रहे हैं, नाज है। हमारे देश को यदि किसी महत्वपूर्ण सहयेाग की पेशकश की जायेगी तो उसे अस्वीकार नहीं किया जायेगा बशर्ते कि वह बिना किसी शर्त के और महत्वपूर्ण हो तथा जिसके लिए हमारे यहां से अनुरोध किया गया हो।
यह कहना उचित होगा कि अभी तक क्यूबा ने जो भी अपने विमान एंव अन्य मानवीय संसाधन हैती के लोगों की सहायता के लिए भेजे वे वहां बिना किसी कठिनाई के पहुंच गये हैं। हम डाक्टर भेजते हैं, सैनिक नहीं।
(23 जनवरी, 2010)
-फिडेल कास्ट्रो रूज

10.3.10

देश की अस्मिता पर भारी व्यवसायिकता

हाकी के जादूगर मेज़र ध्यानचंद

कुंवर दिग्विजय सिंह

देश के राष्ट्रीय खेल की वर्तमान में क्या दशा है इसका आंकलन वर्तमान में देश की सरजमीं पर चल रही विश्व कप प्रतियोगिता से भली-भांति लगाया जा सकता है जब उसके सातवें स्थान पर आने की आशा पर हांकी संघ के पदाधिकारी खिलाड़ी गर्व की अनुभूति प्रदर्शित करते दिखलाई दे रहे हैं। हांकी के लिए हमारी सरकार के दिल में क्या जगह है और इसका क्या सम्मान है इसका एक उदहारण यह है कि दिल्ली में आयोजित विश्व कप प्रतियोगिता के प्रसारण अधिकार टेन स्पोर्ट्स चैनल को बेंच दिया गया है जो बड़े घरों की जीनत है।
किसी भी खेल की लोकप्रियता की अलख जगाने के लिए उसके प्रचार प्रसार का महत्वपूर्ण योगदान रहता है और यह गौरव हो और यह पतन की ओर जा रहा हो। जी हाँ हम बात कर रहे हैं अपने राष्ट्रीय खेल हाकी की जिसके स्वर्णिम इतिहास का कीर्तिमान पूरे विश्व में स्थापित करने में हाकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद कुंवर दिग्विजय सिंह का महत्वपूर्ण योगदान अथाह परिश्रम रहा है।
वर्ष 1980 के मास्को ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने के पश्चात एक भी ऐसा अवसर नहीं आया जिस पर देशवासी गर्व कर सकें। वह चाहे एशियाई खेल हो या विश्व कप वह चाहे चैंपियंस ट्राफी हो या सैफ खेल सभी प्रतियोगिताएं में हमारे राष्ट्रीय खेल की प्रतिष्ठा तार-तार होती रही और हमारा हाकी संघ के पदाधिकारी अपनी बदनीयती के कारण एक दूसरे के गिरहबान में ही झांकते रहे। एक पत्रकार आशीष खेतान ने स्टिंग ऑपरेशन कर के हाकी संघ के भीतर फैले भ्रष्टाचार के जाल को सही समय पर चक दे इंडिया नाम की अपनी रिपोर्ट के शीर्षक के माध्यम से उजागर करने का प्रयास किया था बावजूद इसके कोई सुधार हमारी कार्यप्रणाली में नहीं आया और स्तिथि अब यहाँ तक पहुंची है की टीम के खिलाड़ी ब्लैक मेलिंग पर उतर आये हैं
लोगों के दिलों में खेल के प्रति लोकप्रियता जगाने के लिए एक माहौल मीडिया द्वारा उत्पन्न कराया जाता है और खेल का सजीव प्रसारण इस का सशक्त माध्यम है परन्तु राष्ट्रीय खेल हाकी को इसके गौरवमयी इतिहास की और पुनः वापसी के लिए हमारी सरकार और उसका खेल मंत्रालय जरा सा भी चिंतित नहीं है और ही हाकी के प्रति युवाओं में अभिरुचि जाग्रत करने के लिए सरकार के पास योजना है ।अन्यथा सरकार व्यावसायिकता की दौड़ में शामिल होकर राष्ट्रीय खेल हाकी का प्रसारण अधिकार दूरदर्शन के पास ही रखती जिससे हाकी के खेल का व्यापक प्रचार-प्रसार होता
-मोहम्मद तारिक खान

9.3.10

धर्म और हुड़दंग

दो त्योहार होली एवं ईदे मीलाद अभी अभी गुजर गये, दुख का त्योहार मुहर्रम कुछ समय पूर्व खत्म हुआ, हमारा दावा तो यही है, और सही भी है, कि यह सब बुराई पर अच्छाई की विजय एवं सामाजिक सदभावना बढ़ाने वाले हैं, परन्तु समाज में हम प्रत्येक अवसर पर क्या देख रहे हैं? दंगे, हुड़दंग, हत्यायें, आगजनी, कुरान, गीता, बाइबिल हमें अच्छी शिक्षायें देती हैं। शायर कहता है-
मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना।
हम अपने इस विश्वास पर आग्रह करते हैं कि आज हम भौतिक रूप से बराबर आगे बढ़ते चले जा रहे हैं लेकिन मानवता विलुप्त होती जा रही है। बिना मानवता के प्रगति पर विनाश के बादल मंडराते रहेंगे, यदि कोई गांव विकास में पूरी तरह संतृप्त हो जाय, धन दौलत से सब भरे पुरे हो, सारी सुख सुविधायें उपलब्ध हो मगर सभी एक दूसरी को चैन से न रहने दें, लड़ते-भिड़ते रहें एक दूसरे की हत्यायें करें, माल लूटते रहें तो गांव का वैभव कितने दिन बांकी रह सकेगा। यही हाल देश का होगा, अराजक तत्व, आतंकवादी प्रगति को दुरगति में बदल देंगे। किसी संस्कृत भाषा के दार्शनिक ने पाप-पुण्य की कैसी अच्छी परिभाषा प्रस्तुत की थी। परोपकाराय पुन्याय पापाय परपीड़नम। तुलसीदास जी ढोल, गंवार शुद्र, पशु नारी की ताड़ना को लेकर बदनाम अवश्य हैं परन्तु उनकी यह सीख यदि चरित्र में उतार ली जाये तो दुनिया बदल जायेगी
आदमी दानव से मानव बनने की तरफ कदम आगे बढ़ायेगा
परहित सरिस धर्म नहिं भाई, पर पीड़ा समनहिं अधमाई।

-डॉक्टर एस.एम हैदर

8.3.10

पाकिस्तान पर मेहरबानी अमेरिकी शरारत

बच्चों से परीक्षाओं में अन्य प्रश्नों के अतिरिक्त कभी कभी ये दो सवाल भी पूछे जाते हैं एक यह कि किसी देश का राष्ट्रीय खेल कौन सा है, दूसरा यह कि मुख्य व्यवसाय क्या है, यदि अमेरिका के बारे में कोई मुझ से यह प्रश्न करें तो मैं बेधड़क पहले के जवाब में यह कहूंगा कि उसका खेल दूसरें देशों पर प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से आक्रमण करना, खून खराबा करवाना, आतंक फैलाना तथा दादागिरी करते रहना है, मुख्य व्यवसाय से पहले एक देश को लैस करके क्षेत्र में असंतुलन की स्थिति पैदा कर देना, फिर शिकायत करने पर उसके मुकाबले वाले देश को भी सप्लाई दे देना, फिर दोनों को गेम करना, लड़वाना और दोनों के हथियारों को एक दूसरे पर दगवाना और इस प्रकार दोनों पर धौंस गाठना और अपना उल्लू सीधा करना।
इधर अखबारों में एक खबर आई है कि जिसके लिये मुझे इतनी भूमिका की जरूरत पड़ी पाकिस्तान के साथ हथियारों के व्यापार के लिये अमेरिका ने अपनी चालाकी से एक स्थिति बनाई, पहले उसने विदेश सचिव स्तर की वार्ता को जोड़ने के लिये पहली बार बैठे उसी के बाद उसने पाकिस्तान को लेजर गाइडेन्ट बम किट, 12 ड्रोन, 18 एफ-16 लड़ाकू विमान, तथा स्मार्ट बम बनाने के उपकरण देने का फैसला कर लिया तथा उसकी सैन्य मदद 70 करोड़ डालर से बढ़ाकर 120 करोड़ डालकर कर दी। सभी को पता है कि अमेरिका ने कहां कहां दखल अंदाजी अब तक की है ऐसे देशों की एक लम्बी सूची है। भारत जब इसकी शिकायत करेगा तो अमेरिका तुरन्त भारत पर भी मेहरबानी करेगा। गालिब ने सच कहा था
हुए तुम दोस्त जिसके, दुश्मन उसका आसमां क्यो हो।

डॉक्टर एस.एम हैदर

7.3.10

हमारी क्या है भाई! हम न मुफ्ती हैं न मौलाना

हिन्दू, मुसलमानों व अन्य धर्मों के अधिकांश नेता मोलवी, मौलाना, मुफ्ती, पंडित आदि ने अक्सर अपने श्रद्धालुओं का शोषण किया है तथा अपने स्वार्थों व ऐश आराम को वरीयता दी है, अकबर इलाहाबादी का एक सटीक शेर देखिये-
पका लें पीस कर दो रोटियां थोड़े से जौ लाना।
हमारी क्या है भाई! हम न मुफ्ती हैं न मौलाना।
धर्म का दुरूपयोग अगर होता तो लाखों लोग जिहाद, धर्मयुद्ध और होली वार के नाम पर मौत के घाट उतारे गये होते। धर्म ही के नाम पर अकसर कुरीतियों अंध विश्वासों ने जन्म लिया, परन्तु यह दोष धर्म का नहीं, धर्म का धन्धा करने वालों का है।
मुसलमानों की एक प्रभावशाली संस्था आल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की ओर से किया गया यह ऐलान स्वागत योग्य है कि बोर्ड अपनी आगामी लखनऊ की बैठक में जो मार्च 2010 के दूसरे पखवारे में आयोजित होगी, इसमें कुछ प्रस्ताव इस बात के पास करेगा कि मुस्लिम समाज कुरीतियों को खत्म करें, महंगी शादियाँ करें, दहेज का लेन-देन करे तथा कन्या भ्रूण हत्या जैसे पाप से बचे। मैंने देखा है कि कुछ सुधारवादी हिन्दू संस्थाये सामूहिक विवाह कार्यक्रम आयोजित करती है, इसको भी सभी धर्मावलम्बियों को अपनाना उचित होगा। बोर्ड तो बहुत से हैं, शिया पर्सनल ला बोर्ड, महिला पर्सनल ला बोर्ड, लेकिन सभी के अपने अपने स्वार्थ हैं, किसी ने भी अब तक कोई सुधारवादी कार्य नहीं किया है और ये भी भ्रष्टाचार में लिप्त हुए हैं।
मैं बोर्ड के आगामी प्रस्ताव का स्वागत करता हूँ परन्तु प्रस्तावमात्र से कुछ होने वाला नहीं है जब तक उस पर अमल हो, और कोई ऐसा तंत्र हो जो क्रियान्वयन के प्रति जिम्मेदारी निभायें।
एक बात यह भी हो सकती है कि कोई भी धर्मगुरू उस विवाह समारोह का बहिष्कार करें और निकाह पढ़े जहां समारोह को भव्य बनाया गया हो और उसे स्टेटस सिम्बल का दर्जा दिया गया हो एवं सादगी का उलंघन हो। बहरहाल प्रस्ताव के अस्त्र को धारदार बनाया जाये ताकि हम यह कह सकें-लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं।
-डॉक्टर एस.एम हैदर