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24.1.10

लो क सं घ र्ष !: गुंडागर्दी का ईनाम

लखनऊ के जिला मजिस्त्रेट अमित घोष की गुंडागर्दी के कारण राज्य कर्मचारियो की हड़ताल हो गयी थी सैकड़ो राजकर्मचारियों के सर फूटे थे करोडो रुपयों का नुकसान हुआ लेकिन समयबद्द वेतनमान के तहत उनको ईनाम के रूप में सरकार सुपर टाइम स्केल में प्रौन्नति की जा रही है कृषि विभाग के जिस कर्मचारी को थप्पड़ों से पीटा था उसके ऊपर फर्जी मुकदमा दर्ज कर जेल भेजा जा चुका है राज्य द्वारा नियमो कानूनों का उल्लंघन अब आम बात हो गयी है अमित घोष के खिलाफ कमिश्नर की जांच लंबित है जांचें इन अधिकारियों के खिलाफ चलती रहती हैं और इनको प्रोमोशन दर प्रोमोशन मिलता रहता है ये अधिकारिगण अच्छी तरह से जानते हैं कि लोकतंत्र में इनके खिलाफ कुछ नहीं हो सकता है इन अधिकारियों की कार्यशैली आम आदमी की रक्षा के लिए होकर उनका उत्पीडन करने के लिए है गाँव देहात में इन अधिकारियों की भूमिका बहुत ही निंदनीय हो जाती है राजधानी लखनऊ के अगल बगल के जिलो में प्रशासनिक अधिकारियो ने अपनी काली कमाई से फार्म हाउस खोले है और किसानो के पास अब उपजाऊ जमीन का टोटा होता जा रहा है हजारो लाखो एकड़ जमीन के चारो तरफ दीवालें बना कर चौकीदार नियुक्त किये जा चुके हैं अच्छा यह होगा की नए जमीन दारों की जमींदारी की जांच हो तो उनके नए-नए कारनामे जनता के समक्ष आयेंगे

सुमन
loksangharsha.blogspot.com

23.1.10

तरुणाई के सपने














आज आज़ाद हिंद फौज के मुखिया सुभाष चन्द्र बोस का जन्म दिन है. देश को आज़ादी दिलाने में इनके अप्रतिम योगदान को भला कोई कैसे भुला सकता है. खासकर युवा. वो युवा जिनकी हर देश के उत्थान और सृजन में अहम भूमिका रहि है. उन्हीं के शब्दों में पढ़िए तरुणाई के सपने...
हम इस संसार में किसी उद्देश्य की सिद्धि के लिए, किसी सन्देश को प्रचारित करने के लिए जन्म ग्रहण करते हैं. जगत को ज्योति प्रदान करने के लिए आकाश में यदि सूर्य उदित होता है, वन प्रदेश में सौरभ बिखेरने को यदि दालों में फूल खिलते हैं और अमृत बरसाने को नदियां यदि समुद्र की ओर बह चलती हैं तो हम भी यौवन का परिपूर्ण आनंद और प्राणों का उत्साह लेकर मृत्युलोक में किसी सत्य की प्रतिष्ठा के लिए आए हैं. जो अज्ञात एवं महत उद्देश्य हमारे व्यर्थतापूर्ण जीवन को सार्थक बनाता है, उसे चिंतन एवं जीवन-अनुभव द्वारा पाना होगा.














सभी को आनंद का आस्वाद कराने के लिए हम यौवन के पूर्ण ज्वार में तैरते आएं हैं. कारन, हम आनंद स्वरुप है. आनंदमय मूर्त विग्रह के रूप में इस मर्त्य में हम विचरण करेंगे. अपने आनंद में हम हंसेंगे-साथ ही जगत को भी मतवाला बनाएंगे. जिधर हम विचरेंगे उधर निरानंद का अन्धकार लज्जा से दूर हट जाएगा. हमारे स्फूर्त स्पर्श के प्रभाव-मात्र से रोग, शोक, ताप दूर होंगे.
इस कष्टमय, पीड़ापूर्ण नरकधाम में हम आनद-सागर के ज्वार को खींच लाएंगे.









आशा, उत्साह, त्याग और पुरुषार्थ हममें है. हम सृष्टि करने आएं हैं. क्योंकि सृष्टि में ही आनंद है. तन, मन, बुद्धिबल से हमें सृष्टि करनी है. जो अन्तर्निहित सत्य है, जो सुन्दर है, जो शिव है- उसे सृष्टि पदार्थों में हम प्रस्फुटित करेंगे. आत्मदान में जो आनंद है, उस आनंद में हम खो जाएंगे. उस आनंद का अनुभव कर पृथ्वी भी धन्य हो उठेगी. फिर भी हमारे देय का अंत नहीं है, कर्म का भी अंत नहीं हैं है, क्योंकि----
" जतो देबो प्राण बहे जाबे प्राण
  फुराबे ना आर प्राण;
  एतो कथा आछे, एतो गान आछे
  एतो प्राण आछे मोर;
  एतो सुख आछे, एतो साध आछे
  प्राण हए आछे मोर."
अनंत आशा, असीम उत्साह: अपरिमित तेज़ और अदम्य साहस लेकर हम आएं हैं, इसलिए हमारे जीवन का स्रोत कोई नहीं रोक पाएगा. अविश्वास और नैराश्य का विशाल पर्वत ही क्यों न सम्मुख खड़ा हो अथवा समवेत मानवजाति की प्रतिकूल शक्तियों का आक्रमण ही क्यों न हो, हमारी आनंदमयी गति चिर अक्षुण रहेगी.









हम लोगों का एक विशिष्ट धर्म है, उसी धर्म के हम अनुयायी हैं. जो नया है, जो सरस है, जो अनास्वादित है, उसी के हम उपासक हैं. प्राचीन में नवीनता को, जड़ में चेतना को, प्रौढ़ों में तरुण को और बंधन के बीच असीम को हम ला बैठाते हैं. हम अतीत इतिहास-लब्ध ज्ञान को हमेशा मानने को तइयार नहीं हैं. हम अनंत पथ के यात्री अवश्य हैं, किन्तु हमें अजाना पथ ही भाता है- अजाना भविष्य ही हमें प्रिय है. हम चाहते हैं- ' द राइट टु मेक ब्लंडर्स ' अर्थात ' भूल करने का अधिकार.' तभी तो हमारे स्वभाव के प्रति सभी सहानुभूतिशील नहीं होते. हम बहुतों के लिए रचना-शून्य और श्रीविहीन हैं.
यही हमारा आनंद और यही हमारा गर्व है. तरुण अपने समय में सभी देशों में रचना-शून्य रहा और श्रीविहीन रहा है. अतृप्त आकांक्षा के उन्मांद में हम भटकते हैं, विज्ञों के उपदेश सुनने तक का समय हमारे पास नहीं होता. भूल करते हैं, भ्रम में पड़ते हैं, फिसलते हैं, किन्तु किसी प्रकार भी हमारा उत्साह घटता नहीं और न हम पीछे हटते हैं. हमारी तांडव-लीला का अंत नहीं है, क्योंकि हम अविराम-गति हैं.
हम ही देश-विदेश के मुक्ति-इतिहास की रचना करते हैं. हम यहां शान्ति का गंगाजल छिड़कने नहीं आते. हम आते हैं द्वंद्व उत्पन्न करने,  संग्राम का आभास देने, प्रलय की सूचना देने. जहां बंधन है, जहां जड़ता है, जहां कुसंस्कार है, जहां संकीर्णता है, वहीं हमारा प्रहार होता है. हमारा एकमात्र काम है मुक्तिमार्ग को हर क्षण कण्टक शून्य बनाए रखना, जिससे उस पथ पर मुक्ति-सेनाएं अबाधित आवागमन कर सकें.
मानव-जीवन हमारे लिए एक अखंड सत्य है. अतः जो स्वाधीनता हम चाहते हैं- उस स्वाधीनता को पाने के लिए युगों-युगों से हम खून बहाते आते हैं- वह स्वाधीनता हमारे लिए सर्वोपरि है. जीवन के सभी क्षेत्रों में, सभी दिशाओं में हम मुक्ति-सन्देश प्रचारित करने को जन्में हैं, चाहे समाजनीति हो, चाहे अर्थनीति, चाहे राष्ट्रनीति या धर्मनीति- जीवन के सभी क्षेत्रों में हम सत्य का प्रकाश, आनंद का उच्छ्वास और उदारता का मौलिक आधार लेकर आते रहे हैं.
अनादिकाल से हम मुक्ति का संगीत गुंजाते आए हैं. बचपन से मुक्ति की आकांक्षा हमारी नसों में प्रवाहित है. जनम लेते ही हम जिस कातर कंठ से रो पड़ते हैं, वह मात्र पार्थिव बंधन के विरुद्ध विद्रोह का ही एक स्वर है. बचपन में रोना ही एकमात्र सहारा है. किन्तु यौवन की देहरी पर क़दम रखते ही बाहु और बुद्धि का सहारा हमें मिलता है. और इसी बुद्धि और बाहु की सहायता  से हमने क्या नहीं किया-फिनीसिया, असीरिया, बैबीलोनिया, मिस्र, ग्रीस, रोम, तुर्की, इंग्लैण्ड, फ्रांस, जर्मनी, रूस, चीन, जापान, हिन्दुस्तान- जिस- किसी देश के इतिहास के पृष्ठों में हमारी कीर्ति जाज्वल्यमान है. हमारे सहयोग से सम्राट सिंहासनासीन होता है और हमारे इशारे पर वह सभय सिंहासन से उतार दिया जाता है. हमने एक तरफ़ पत्थर-अभिभूत प्रेमाश्रु रूपी ताजमहल का जैसे निर्माण किया है, वैसे ही दूसरी तरफ़ रक्त- स्रोत से धरती की प्यास बुझायी है. हमारी सामूहिक क्षमता से ही समाज, राष्ट्र, साहित्य, कला, विज्ञान युग-युगों में देश-देश में विकसित होता रहा है. और रूद्र कराल रूप धारण कर हमने जब तांडव आरम्भ किया, तब उसी तांडव के मात्र एक पद-निक्षेप से कितने ही समाज, कितने ही साम्राज्य dhool में मिल गए.



                         




इतने दिनों के बाद अपनी शक्ति का अहसास हमें हुआ है, अपने कर्म का ज्ञान हमें हुआ है. अब हमारे ऊपर शासन और हमारा शोषण भला कौन करे ? इस नव जागरण बेला में सबसे महत सत्य है- तरुणों की आत्म- प्रतिष्ठा की प्राप्ति. तरुणों की सोयी आत्मा जब जाग गयी है तब जीवन के चतुर्दिक सभी स्थलों में यौवन का रक्तिम राग पुनः दिख उठेगा. यह जो युवकों का आन्दोलन है- यह जैसे सर्वतोमुखी है, वैसे ही विश्वव्यापी भी. आज संसार के सभी देशों में, विशेषतः जहां बुढ़ापे की शीतल छाया नजर अति है, युवा सम्प्रदाय सर उठाकर प्रकृतिस्थ हो सदर्प मुहिम पर है. किस दिव्य आलोक से पृथ्वी को ये उदभासित करेंगे, कौन जाने ? ओ मेरे तरुण साथियों, उठो, जागो, उषा की किरण वह वहां फैल रही है.
                                                                        २ ज्येष्ठ, १३३०
                                                                       ( सन १९२३ ई.)       
प्रबल प्रताप सिंह

लो क सं घ र्ष !: राज्य की गुंडागर्दी

भारतीय संविधान के अनुसार राज्य कर्मचारियों को अपनी मांगो के समर्थन में हड़ताल का अधिकार है वहीँ काम नहीं तो दाम नहीं के सिधान्त के अनुसार हड़ताल के समय कर्मचारियों की उस दिन का वेतन देने का प्राविधान हैउत्तर प्रदेश के राज्य कर्मचारी शिक्षक अपनी मांगो के लिए लखनऊ में प्रदर्शन कर रहे थे जिसपर उत्तर प्रदेश सरकार के विशेष चहेते जिला मजिस्टे्ट अमित घोष ने लाठियां गोलियां चलवायीं डी.आई.जी लखनऊ ने निहत्थी महिलाओं को लाठियों से पीटासरकारी कार्यालयों में घुस कर गैर हडताली कर्मचारियों को भी पीटा गयाकल दिनांक 22-01-2010 को राजधानी के प्रमुख सरकारी अस्पताल बलरामपुर हॉस्पिटल में पुलिस और पी.एस.सी, हड़ताल खत्म कराने के नाम पर मरीजों तथा कर्मचारियों के ऊपर अकारण लाठीचार्ज कर दिया अस्पताल के आसपास के राहगीरों को भी पीटा गयारात में पुलिस अधिकारियों के नेतृत्व में कर्मचारी नेताओं के घरों में घुसकर उनके बीबी और बच्चो की राजाइयाँ डंडो से फेंक कर उनके पतियों का सुराग मालूम करने का प्रयास जारी रहाकर्मचारियों की पत्नियां बच्चे राज्य के नौकर नहीं हैं। महिलाओं व बच्चों को राज्य सरकार द्वारा प्रताड़ित करने का कोई औचित्य नहीं है। उनके साथ इस तरह की अभद्रता करना सीधे-सीधे राज्य की गुंडागर्दी है और यह भी एक गंभीर अपराध है
लखनऊ के जिला मजिस्टे्ट अमित घोष उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री सुश्री मायावती को खुश करने के लिए कृषि विभाग के एक कर्मचारी को तीन थप्पड़ मारेडी.आई.जी पुलिस जिला मजिस्टे्ट अमित घोष पागलपन की सीमा से बढ़ कर आतंक का राज पैदा कर रहे हैंराज्य द्वारा किये गए अपराधों के लिए कोई कानून नहीं है ?

सुमन
loksangharsha.blogspot.com

उपचुनाव जीत कर इनेलों ने रचा इतिहास

चंडीगढ़। ऐलनाबाद विधानसभा सीट से इनेलो प्रत्याशी अभय सिंह चौटाला की जीत के साथ न केवल कई नए कीर्तिमान स्थापित हुए हैं बल्कि लोगों में यह भी चर्चा चल पड़ी है कि ऐसा पहली बार हुआ है कि जब किसी राजनेता पिता के साथ-साथ उनके दोनों पुत्र भी विधानसभा के सदस्य बने हों। इस समय पूर्व मुख्यमन्त्री ओमप्रकाश चौटाला उचाना विधानसभा क्षेत्र से विधायक व विधानसभा में विपक्ष के नेता हैं। उनके बड़े बेटे अजय सिंह चौटाला डबवाली से विधायक हैं और छोटे बेटे अभय सिंह चौटाला आज ऐलनाबाद विधानसभा उपचुनाव में 64 हजार 813 वोट हासिल करके कांग्रेस प्रत्याशी भरत सिंह बेनिवाल को 6,227 वोटों के अन्तर से हराकर विधायक चुने गए हैं। इसी के साथ देवीलाल परिवार की तीन पीढिय़ों ने विपक्ष में होते हुए सरकार के खिलाफ विधानसभा उपचुनाव जीतने का भी एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है। हरियाणा विधानसभा में पिता-पुत्र दो राजनेताओं को तो एकसाथ विधायक रहने का पहले भी अवसर मिला था। 1987 में चौधरी देवीलाल के साथ उनके बेटे रणजीत सिंह विधायक चुने गए थे जबकि 1993 से 1998 तक भजनलाल व चंद्रमोहन एक साथ विधायक रहे थे। इसके अलावा 2000 से 2005 तक चौधरी ओमप्रकाश चौटाला व उनके पुत्र अभय सिंह चौटाला भी एक साथ विधायक रह चुके हैं। लेकिन चौधरी ओमप्रकाश चौटाला के साथ उनके दोनों बेटों अजय चौटाला व अभय चौटाला का विधायक होना अपने आप में एक नया कीर्तिमान है। इसके अलावा एक कीर्तिमान यह भी स्थापित हुआ है कि चौधरी देवीलाल परिवार ने अब तक लड़े सभी उपचुनावों में जीत दर्ज की है। चौधरी ओमप्रकाश चौटाला के बड़े बेटे अजय सिंह चौटाला 1990 में दातारामगढ़ राजस्थान से विधायक चुने गए थे और विधानसभा के मध्यावधि चुनावों में 1993 में नौहर से विधायक चुने गए थे और 1998 तक राजस्थान विधानसभा में विधायक रहे। 1999 में हुए लोकसभा के मध्यावधि चुनावों में वे भिवानी से सांसद चुने गए और 2004 तक लोकसभा के सांसद रहे। 2004 में वे राज्यसभा के सांसद चुने गए और 2009 तक राज्यसभा में सांसद रहे। इस समय वे डबवाली से विधायक हैं। अभय सिंह चौटाला पहले रोडी से और अब ऐलनाबाद से विधानसभा उपचुनाव में विधायक चुने गए हैं। चौधरी देवीलाल परिवार ने इस जीत के साथ ही उपचुनावों में जीत का भी एक नया कीर्तिमान स्थापित कर दिया है। चौधरी देवीलाल ने 1959 में संयुक्त पंजाब के समय सिरसा विधानसभा क्षेत्र से उपचुनाव में 27 हजार मतों के अन्तर से जीत हासिल की थी। उसके बाद 10 मई, 1970 को ऐलनाबाद विधानसभा क्षेत्र से हुए उपचुनाव में चौधरी ओमप्रकाश चौटाला ने 19 हजार मतों के अन्तर से जीत दर्ज की थी। इसके बाद रोडी विधानसभा क्षेत्र में 1974 मेें हुए उपचुनाव में चौधरी देवीलाल ने आजाद प्रत्याशी के तौर पर कांग्रेस उम्मीदवार इंद्राज सिंह बेनिवाल को 16 हजार मतों के अन्तर से हराकर सरकार के खिलाफ जीत दर्ज की। इसके अलावा पंजाब समझौते के खिलाफ त्याग पत्र देकर पुन: चुनाव लड़कर चौधरी देवीलाल ने महम विधानसभा क्षेत्र से 24 दिसम्बर, 1985 को हुए उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी को 11 हजार से ज्यादा मतों के अन्तर से हराकर सरकार के खिलाफ जीत दर्ज की। 1990 में चौधरी ओमप्रकाश चौटाला ने दड़बाकलां विधानसभा क्षेत्र से उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी जगदीश नेहरा को हराकर जीत दर्ज की। 1993 में नरवाना विधानसभा क्षेत्र में हुए उपचुनाव में इनेलो प्रमुख ओमप्रकाश चौटाला ने सरकार के खिलाफ जीत दर्ज करते हुए कांग्रेस प्रत्याशी रणदीप सुरजेवाला को 19 हजार मतों के अन्तर से हराया। 2000 में हुए विधानसभा चुनाव में इनेलो प्रमुख चौधरी ओमप्रकाश चौटाला नरवाना व रोडी दोनों क्षेत्रों से विजयी हुए थे और उनके द्वारा खाली की गई रोडी सीट से अभय सिंह चौटाला उपचुनाव जीतकर विजयी हुए थे। इस बार श्री चौटाला उचाना व ऐलनाबाद विधानसभा सीटों से विजयी हुए और ऐलनाबाद सीट छोडऩे पर हुए इस उपचुनाव में इनेलो प्रत्याशी अभय सिंह चौटाला सरकार के खिलाफ जीत दर्ज करते हुए कांग्रेस प्रत्याशी भरत सिंह बेनिवाल को हराकर विधायक चुने गए हैं।

देखो ऋतुराज बसंत है आया








देखो ऋतुराज बसंत है आया
तन मन जन का है हर्षाया.
खेतों में निकली है सरसों पीली-पीली
शबनम की बूंदों से धरती की होंठ है गीली-गीली.
कलियों ने नैन-कपाट हैं खोले
भवरों ने मीठे-मीठे बैन हैं बोले.
कवियों का हृदय हुआ आह्लादित
विविध शब्द-रस हुआ उदघाटित.

















चारों दिशाएं झूम के गाएं
आंगन मोरे ऋतुराज हैं आएं.
हवा चली आज बसंती
महक रहे जन आज बसंती.
खोल पुराने छोड़-छाड़कर
पीत वस्त्र पहन निकला है दिवाकर.
नदियां,साहिल और समुन्दर मारे पींगे
बसंती धार से सत, रज, तम सब गुन भींगे.



















बरस भर के सूखे फूल खिले
बयार बसंती में मुरझे हृदय-कमल खिले.
'प्रबल' बसंती 'प्रणवीर' बसंती
हुए पाकर 'धुन', 'शुभ्र', 'वत्सल' बसंती.
(प्रणवीर- अग्रज भाई, धुन- बड़ी भांजी, शुभ्र- बड़ी भतीजी, वत्सल- छोटी भतीजी.)


प्रबल प्रताप सिंह

लो क सं घ र्ष !: जीवन सफल बनाना है तो, सत्य पथ अपनाना होगा

हार जाना काल चक्र से, जीत को शीश झुकाना होगा
जीवन सफल बनाना है तो, सत्य पथ अपनाना होगा

द्विधा की घनघोर घटा जब, मन मानस पर घिरती जाए
मोह, भ्रान्ति के अवरोधों से, प्रेम की धारा रूकती जाए।।

ज्ञान, विवेक, सुमति, साहस से, संशय तुम्हे मिटाना होगा
जीवन सफल बनाना है तो, सत्यपथ अपनाना होगा

संसार-सिन्धु की लहरों से, जीवन नौका टकराएगी
प्रचंड काल की भंवरों में, यह कभी उलझ जायेगी

निर्भय निर्द्वंद दृढ़ता से, तुमको पतवार चलाना होगा
जीवन सफल बनाना है तो, सत्य पथ अपनाना होगा

दुर्दिन में मित्रों का विछोह , ह्रदय को कभी व्यथित कर देगा
मित्रता, विश्वास, प्रेम का, छद्म रूप विचलित कर देगा

निर्विकार, निष्काम भाव से, स्वकर्तव्य निभाना होगा
जीवन सफल बनाना है तो, सत्यपथ अपनाना होगा

सत्य, अहिंसा, दया, प्रेम का, बीज धरा पर बोना होगा
हिंसा, स्वार्थ, इर्ष्या, घृणा से कल्पित मन धोना होगा

काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह को, जग से दूर भागना होगा
जीवन सफल बनाना है तो, सत्यपथ अपनाना होगा



मोहम्मद जमील शास्त्री

शिक्षा प्रणाली की खामियां - बेक़सूर मासूम बच्चे देते कुर्बानियां !

शिक्षा प्रणाली की खामियां - बेक़सूर मासूम बच्चे देते कुर्बानियां !
हाल ही मैं देश के कई हिस्सों से बच्चों द्वारा आत्महत्या जैसे अप्रिय और दुखद कदम उठाने की खबर आती रही है । इस तरह की घटनाओं मैं समय दर समय इजाफा होते जा रहा है । पढ़ाई मैं स्वयं की अथवा माता पिताओं की आशा अनुरूप परिणाम न आने अथवा थोपी गई शिक्षा या अधिक नंबर की होड़ वाली शिक्षा के बोझ से तनाव ग्रस्त होने के परिणाम स्वरुप बच्चों द्वारा खुद को नुक्सान पहुचाने वाले आत्महत्या जैसे अप्रिय और दुखद कदम उठाने हेतु बाध्य होना पद रहा है । ऐसी परिसथितियां देश मैं वर्तमान मैं लागू दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली की खामियां और असफलता की कहानी खुद ही बयां करती है ।
1). नैसर्गिक गुणों को अवरुद्ध करती थोपी हुई शिक्षा : - मातापिता अपने बच्चों पर अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा के मद्देनजर आशा एवं इक्च्छा को थोपकर अपने बच्चे का बचपन क्षीण कर छोटी उम्र मैं ही नम्बरों की होड़ वाली प्रतिस्पर्धा की अंधी दौड़ मैं उतार देते हैं और उनकी स्वाभाविक अभिरुचि एवं मौलिक गुण अथवा कौशल एवं हुनर की अनदेखी कर नैसर्गिक गुणों के विकास को अवरुद्ध करते हैं ।
२)। शिक्षा का व्यवसाई करण :- दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली का ही परिणाम है की शिक्षा प्रदान करने वाली संस्था एवं शिक्षकों का एकमात्र उद्देश्य व्यावसाईक हितों के अनुरूप शिक्षा बाजारीकरण करना हो गया है वन्ही शिक्षा को ग्रहण करने वाले शिक्षार्थी का एकमात्र लक्ष्य शिक्षा को ग्रहण कर अधिक अधिक से नंबर लाकर अधिक से अधिक ऊँचे वेतन वाले ऊँचे पदों को प्राप्त करना मात्र रह गया है । फलस्वरूप व्यावसाईक एवं स्वार्थपरक व्यक्तित्व युक्ता युवा पीढ़ी का निर्माण हो रहा है । जो अधिक से अधिक भौतिक सुखों और सुविधाओं को प्राप्त करने हेतु भ्रष्ट्राचार , अनैतिक एवं अवैधानिक तरीकों और रास्तों को अपनी जीवन शैली तरजीह दे रहे हैं ।
३)। देश की प्राकृतिक , भौगोलिक और सांस्कृतिक आवश्यकताओं के प्रतिकूल शिक्षा : - देश की प्राकृतिक , भौगोलिक और सांस्कृतिक आवश्यकताओं एवं व्यावसाईक व तकनीकी ज्ञान की उपेक्षा कर बनायी गयी शिक्षा प्रणाली का ही परिणाम है की शिक्षा ग्रहण करने के बाद आज के युवा अपनी संस्कृति और परम्परागत व्यवसाय से दूर होते जा रहें हैं । वन्ही किताबी ज्ञान आधारित शिक्षा के अनुरूप पर्याप्त रोजगार के अभाव के चलते बेरोजगारी का दंश झेलने हेतु मजबूर है ।
४)। प्राचीन ज्ञान की उपेक्षा करती शिक्षा प्रणाली : - शिक्षा पाठ्यक्रमो मैं न तो देश के पूर्वजों के ज्ञान और अनुभव को स्थान दिया गया है और न ही पुरातन शिक्षा ग्रंथों को शामिल किया गया है । प्राचीन खगोलशास्त्र , ज्योतिष विज्ञानं , आयुर्वेद ज्ञान , योग एवं अध्यात्म एवं अनेक ऐसे कई विषयों की उपेक्षा की गयी है जिससे की भारत को विश्वगुरु होने का दर्जा प्राप्त था । ऐसे विषयों के ज्ञान को परिष्कृत और परिमार्जित कर देश के सामने लाने का गंभीर प्रयास ही नहीं किया जा रहा है । जबकि विदेशी ज्ञान का अन्धानुकरण कर थोपने का प्रयास किया जा रहा है जो की देश की परिस्थिति के पूरी तरह अनुकूल नहीं है ।
५) । शिक्षा एवं ज्ञान के मूल्यांकन की दोषपूर्ण पद्धति : - आज की शिक्षा प्रणाली मैं ग्रहण किया गया ज्ञान का मूल्यांकन न तो व्यक्ति विशेष के कौशल और हुनर का प्रायोगिक परिक्षण से और न ही जीवन शैली और व्यक्तित्व व्यवहार मैं हुए सकारात्मक और रचनात्मक परिवर्तन के आकलन से होता है और न ही समाज और देश के प्रति अपने दायित्वों और कर्तव्यों की समझ और उनके के प्रति संवेदनशीलता से होता है । नंबरों होड़ युक्ता शिक्षा प्रणाली मैं तो बस ग्रहण किये गया ज्ञान के आंकलन हेतु , रटे गए ज्ञान का लिखित परीक्षायों के माध्यम से मूल्याङ्कन से होता है । और इस तरह की मूल्यांकन और परीक्षा प्रणाली बच्चों को तनावग्रस्त करती है और वांछित सफलता न मिलने पर खुद को नुक्सान पहुचाने वाले अप्रिय कदम उठाने हेतु बाध्य करती है ।
अतः आवश्यकता है देश मैं प्राचीन सम्रद्ध ज्ञान के साथ युक्तिसंगत आधुनिक ज्ञान आधारित शिक्षा व्यवस्था की जो देश की प्राकृतिक , भौगोलिक और सांस्कृतिक आवश्यकताओं के अनुरूप हो , जो बच्चों के मौलिक और नैसर्गिक गुणों को परिष्कृत और परिमार्जित करे एवं स्वावलंबी और आत्मनिर्भर बनाए , साथ ही सकारात्मक और रचनात्मक कार्यों के साथ के साथ सामाज और देश के प्रति दायित्वों से जोड़े ।
इस प्रकार हम शिक्षा प्रणाली की खामियां को दूर कर बेकसूर और मासूम बच्चों की कुर्बानियों को रोक पाएंगे ।

22.1.10

लो क सं घ र्ष !: डी.आई.जी पुलिस की जवाँमर्दगी

राजधानी लखनऊ में प्रदेश के राज्य कर्मचारी शिक्षक अपनी मांगो के लिए प्रदर्शन कर रहे थे जिसपर लखनऊ पुलिस ने बर्बरतापूर्वक लाठियां गोलियां चलायीं, सरकारी कार्यालयों में घुसकर लोगों को पीटा गयाडी.आई.जी लखनऊ को जवाँमर्दगी दिखाने के लिए नहीं मिला तो वह निहत्थी महिलाओं के ऊपर लाठियां चलाने लगे पुलिस ने अनावश्यक रूप से राज्य कर्मचारियों शिक्षकों पर लाठीचार्ज किया आंसू गैस के गोले छोड़े हवाई फायरिंग कीजवाहर भवन इंदिरा भवन सहित दर्जनों सरकारी कार्यालयों में घुसकर लाठी चार्ज किया
शांतिपूर्ण कर्मचारी शिक्षकों के ऊपर प्रशासन द्वारा लाठीचार्ज उनके बब्बर चरित्र को दर्शाता हैराजधानी में निहत्थी महिलाओं के ऊपर बेशर्मी के साथ लाठीचार्ज करना यह बताता है कि पुलिस का माननीय उच्चतम न्यालय के दिशानिर्देश कानून संविधान में कोई यकीन नहीं हैयह सब ब्रिटिश युग के गुलाम मानसिकता वाले सरकारी तंत्र हैंऊँचे ओहदों पर बैठे हुए लोग अपने को सर्वशक्तिमान समझते हैं वह यह समझते हैं कि उनका कोई कुछ नहीं कर सकता है इसीलिए डी.आई.जी पुलिस लखनऊ को जब पीटने के लिए कोई नहीं दिखा तो वह औरतों पर अपने हाथ में लाठी लेकर मार पीट करने लगेप्रशासन ने समझदारी से कार्य लिया होता तो राज्य कर्मचारियों शिक्षकों के ऊपर लाठी चार्ज करने की कोई आवश्यकता नहीं थीआज जरूरत इस बात की है कि प्रशासन के ऊपर ऊँचे ओहदे पर नियुक्त बीमार मानसिकता वाले लोगो की छँटनी की जाए

सुमन
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लो क सं घ र्ष !: सत्ता के लिए ललायित कांग्रेस के खेल

महराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चाहवाण की कैबिनेट द्वारा लिए गये एक फैसले ने महाराष्ट्र में नफरत अलगाववाद की राजनीत करने वालों के पक्ष को शक्ति प्रदान की है। कैबिनेट में लिए गये निर्णय के मुताबिक महाराष्ट्र में उन्हीं टैक्सी चालकों को टैक्सी चलाने का परमिट दिया जायेगा जो मराठी भाषा ठीक से बोल, लिख पढ़ लेते हो। इस पर राष्ट्र स्तर पर आती तीखी प्रतिक्रियाओं से घबराकर कांग्रेस के केन्द्रीय नेतृत्व के दबाव में अशोक चाहवाण को निर्णय पर अपना स्पष्टीकरण देकर यू टर्न लेना पड़ा।
कांग्रेस का यह खेल बहुत पुराना है। सत्ता पाने के लिए वह अक्सर ऐसे खेल खेला करती है। कहने को तो यह जमात अपने को धर्म निरपेक्ष जातिवाद के विरूद्ध कहती है परन्तु इस तरह के शिगूफे वह बराबर छोड़ती रहती है और सम्प्रदायिक अलगाववादी शक्तियों को ताकत देती रहती है। बाबरी मस्जिद का सोया शेर कांग्रेसियों ने जगाया। फिर शिलान्यास करवाकर हिन्दूवादी शक्तियों के अंदर धार्मिक उबाल पैदा कर राजनीतिक लाभ लेने के उद्देश्य से हिन्दू कार्ड खेला, परन्तु दाव उलटा पड़ गया लाभ भाजपा के हिस्से में चला गया। बाबरी मस्जिद विंध्वस के समय तत्कालीन कांग्रेसी प्रधानमंत्री नरसिंहाराव ने मस्जिद बचाने के वह सार्थक प्रयास यह सोच कर वही किये कि भाजपा के हाथ से मुद्दा ही समाप्त कर दिया जाये और केन्द्रीय सुरक्षा बलों को विवादित स्थल में तब भेजा जब कारसेवक मालने को साथ करने के पश्चात अस्थायी मंदिर बनाकर रामजानकी की मूर्ति वहां स्थापित कर गये।
फिर गुजरात में नरेन्द्र मोदी के विरूद्ध कांग्रेस ने हिन्दुत्व का फार्मूला यह सोचकर आजमाया कि नरेन्द्र मोदी के उग्र हिन्दुत्व का विकल्प जनता के सामने रखा जाये मगर राम ही मिला ना रहीम। हिन्दू वोट तो नरेन्द्र मोदी के गर्मा गर्म ताजा हिन्दुत्व के कारण कांग्रेस द्वारा पर से गये ठण्डे बासी नरम हिन्दुत्व की थाली के पास तक आया उल्टे मुस्लिम वोट भी कांग्रेस से दूर छिटक गया।
इसी तरह कश्मीर में 1973 में शेख अब्दुल्ला के नेतृत्व में चुनी गई सरकार में फूट डालकर उनके सगे बहनोई गुल मोहम्मद शाह की पीठ पर हाथ रखकर लोकतंात्रिक सरकार को ध्वस्त कर वहां राष्ट्रपति शासन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने लगवाया और जगमोहन को गर्वनर बना कर कश्मीरियों पर ऐसा जुल्म ढाया कि पाकिस्तान की आरे नर्मगोशा उनका पैदा शुरू हो गया जिसका लाभ कश्मीर के अलगाव वादी संगठनों ने भरपूर तौर पर लिया और जिसका परिणाम यह है कि कश्मीर अभी तक सुलग रहा है लाखों इंसान मार डाले जा चुके हैं पर्यटन उद्योग से लेकर फल मेवा उद्योग सभी प्रभावित हुए हैं।
उधर पश्चिम बंगाल में वामपंथी सरकार की हटाने के प्रयास में ममता बनर्जी का साथ देकर नक्सलियों पर चोरी छुपे हाथ रखने का काम भी कांग्रेस के द्वारा ही किया जा रहा है। इससे पूर्व पंजाब में अकालियांे को ठिकाने लगाने के उद्देश्य से भिंडरा वाला नाम के जनूनी व्यक्ति को भी खड़ा करने का दुष्कर्म कांग्रेस की ही रणनीति का हिस्सा था जिसका परिणाम पूरा पंजाब को और बाद में स्वयं इंदिरा गांधी को अपने प्राणों की आहूति देकर भुगतना पड़ा।
एक बार फिर कांग्रेस वही गलती दोहरा रही है और महाराष्ट्र जैसे औद्योगिक प्रान्त की सुख शांति जो पहले रही शिवसेना महराष्ट्र निर्माण पार्टी के कारण छिन्न भिन्न हो चुकी है उसमें और शोले भड़काने का काम कांग्रेस कर रही है। स्वाभाविक प्रश्न उठता है कि बार-बार मुंह की खाने के बाद कांग्रेस ऐसी गलती करती क्यों है तो इसका जवाब यह है कि कांग्रेस के भीतर विभिन्न करती क्यों है तो इसका जवाब यह है कि कांग्रेस के भीतर विभिन्न विचार धाराओं के व्यक्तियों का संग्रह है जो कांग्रेस की सत्ता पाने की लालच में यह गलतियां कराने पर मजबूर करते हैं।

मोहम्मद तारिक खान