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28.12.09

मुजरिमे वक्त तो हाकिम के साथ चलता है

हमारा देश करप्शन की कू में चलता है,
जुर्म हर रोज़ नया एक निकलता है।
पुलिस गरीब को जेलों में डाल देती है,
मुजरिमे वक्त तो हाकिम के साथ चलता है।।

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हर तरफ दहशत है सन्नाटा है,
जुबान के नाम पे कौम को बांटा है।
अपनी अना के खातिर हसने मुद्दत से,
मासूमों को, कमजोरों को काटा है।।

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तुम्हें तो राज हमारे सरों से मिलता है,
हमारे वोट हमारे जरों से मिलता है।
किसान कहके हिकारत से देखने वाले,
तुम्हें अनाज हमारे घरों से मिलता है।।

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तुम्हारे अज़्म में नफरत की बू आती है,
नज़्म व नसक से दूर वहशत की बू आती है।
हाकिमे शहर तेरी तलवार की फलयों से,
किसी मज़लूम के खून की बू आती है।।

- मो0 तारिक नय्यर

लोगों को करना पड रहा है कडाके की ठंड का सामना

नईदिल्ली। आज के समय में हर जगह ठंड पड़ रही है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली समेत उतर भारत के कई इलाकों में कडाके के ठंड पड़ रही है। इसी कारण वहां दो लोंगों की मौत हो गई है। मनमोहित ग्रोवर द्वारा किये गए सर्वें से पता चला है कि कल दिल्ली में लोगों को कडाके की ठंड सामना करना पडा जिस कारण उन्होने बाहर घूमने जाना उचित नहीं समझा। मौसम विभाग का इस मामलें में कहना है कि दिल्ली को इस समय कोहरा का सामना करना पड रहा है तथा जिसका प्रभाव यातायात पर भी देखने को मिल रहा है। इसी प्रकार माउनटाबू में हाड कंपकंपा देने वाली ठंड लगातार बढ़ रही है। इसी प्रकार कोहरा का सबसे अधिक प्रभाव उतर प्रदेश में देखने को मिला। कोहरे की वजह मेरठ सबसे ठंडा इलाका रहा तथा सड़क, रेल एंव यातायात पर कोहरे का असर देखने को मिला तथा इसी ठंड के कारण पिछले 24 घंटे में दो लोगों को मौत का सामना करना पडा।

27.12.09

एक क़ुरान - ए - सुख़न का सफ़ा खुलता है......!!





 " बल्लीमाराँ के मोहल्लों की वो पेचीदा दलीलों की - सी गलियाँ
सामने टाल के नुक्कड़ पे, बटेरों के क़सीदे
गुड़गुडाती हुई पान की पीकों में वह दाद, वह वाह - वा
चाँद दरवाज़ों पे लटके हुए बोसीदा - से कुछ टाट के परदे 
एक बकरी के मिमियाने की आवाज़ 
और धुंधलाई हुई शाम के बेनूर अँधेरे 
ऐसे दीवारों से मुंह जोड़ के चलते हैं यहाँ
चूड़ीवालान के कटोरे की ' बड़ी बी ' जैसे
अपनी बुझती हुई आँखों से दरवाज़े टटोले 
इसी बेनूर अँधेरी - सी गली क़ासिम से
एक तरतीब चरागों की शुरू होती है
एक क़ुरान - ए - सुख़न का सफ़ा खुलता है
' असद उल्लाह खाँ ग़ालिब ' का पता मिलता है". ( गुलज़ार )
आज से ठीक २१२ साल पहले २७ दिसम्बर १७९७ को अब्दुल्लाह बेग खाँ के घर मिर्ज़ा ग़ालिब का जन्म हुआ. उर्दू और फारसी ग़ज़ल के महान शायर मिर्ज़ा असद उल्लाह खाँ के बारे में पहले से ही बहुत कुछ कहा जा चुका है. बकौल अयोध्या प्रसाद गोयलीय, महाभारत और रामायण पढ़े बगैर जैसे हिन्दू धर्म पर कुछ नहीं बोला जा सकता, वैसे ही ग़ालिब का अध्ययन किए बगैर, बज़्मे - अदब में मुंह नहीं खोला जा सकता है. इसलिए दोस्तों ज्यादा वक्त जाया न करते हुए ग़ालिब के गुलशन - ए - ग़ज़ल से कुछ चुनिन्दा  ग़ज़ल - ए - गुल का लुत्फ़ उठाइए..........

हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले 
बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले.
मगर लिखवाए कोई उसको ख़त तो हमसे लिखवाए
हुई सुबह और घर से कान पर रखकर कलम निकले.
मुहब्बत में नहीं है फ़र्क जीने और मरने का 
उसी को देखकर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले.
कहां मयखाने का दरवाज़ा ' ग़ालिब ' और कहां वाइज़ 
पर, इतना जानते हैं, कल वो जाता था कि हम निकले.

रोने से और इश्क़ में बेबाक हो गए 
धोए गए हम ऐसे कि बस पाक हो गए.
इस रंग से उठाई कल उसने 'असद ' की लाश 
दुश्मन भी जिसको देख के गमनाक हो गए.


बाज़ीचए अतफ़ाल१ है दुनिया मेरे आगे 
होता है शबोरोज़ तमाशा मेरे आगे.
मत पूछ कि क्या हाल है मेरा तेरे पीछे 
तू देख कि क्या रंग है तेरे मेरे आगे.
नफ़रत का गुमां गुज़रे है, मैं रश्क से गुज़रा 
क्योंकर कहूं लो नाम न उसका मेरे आगे.


नुक्ताचीं२ है गमे दिल उसको सुनाए न बने 
क्या बने बात जहां बात बनाए न बने.
गैर फिरता है लिए यूं तेरे ख़त को कि अगर 
कोई पूछे कि यह क्या है तो छुपाए न बने.
इश्क़ पर ज़ोर नहीं, है वो आतिश " ग़ालिब "
कि लगाए न लगे और बुझाए न बुझे.

नींद उसकी है, दिमाग़ उसका है, रातें उसकी हैं
तेरी ज़ुल्फ़ें जिसके बाजू पर परीशाँ हो गईं 
रंज से खूंगर३ हुआ इन्सां तो मिट जाता है रंज 
मुश्किलें इतनी पड़ी मुझपर कि आसां हो गईं.

यह हम जो हिज्र में दीवारों दर को देखते हैं
कभी सबा को कभी नामाबर को देखते है.
वो आएं घर में हमारे ख़ुदा की कुदरत है
कभी हम उनको कभी अपने घर को देखते हैं.


न था कुछ तो ख़ुदा था, कुछ न होता तो ख़ुदा होता
डुबोया मुझको होने ने, न होता तो क्या होता.
हुई मुद्दत कि " ग़ालिब " मर गया पर याद आता है
वह हर इक बात पर कहना कि ' यूं होता तो क्या होता '.


बस कि दुश्वार है हर काम का आसां होना
आदमी को भी मयस्सर नहीं इन्सां होना.
हैफ़४ उस चार गिरह कपड़े की क़िस्मत " ग़ालिब "
जिसकी क़िस्मत में हो आशिक़ का गिरेबां होना.

इश्क़ से तबियत ने ज़ीस्त का मज़ा पाया
दर्द की दवा पाई, दर्द बेदवा पाया.

आह को चाहिए इक उम्र असर होने तक
कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होने तक.
आशिक़ी सब्र तलब५ और तमन्ना बेताब
हमने माना कि तगाफ़ुल६ न करोगे, लेकिन
ख़ाक हो जाएंगे हम, तुनको ख़बर होने तक.


ज़ुल्मतकदे में मेरे, शबे गम का जोश है
इक शम्अ है दलीले सहर वो भी ख़मोश है.
दागे - फ़िराके७ सोह्बते - शब८ की जली हुई 
एक शम्अ रह गई है, सो वो भी ख़मोश है.
आते हैं ग़ैब९ से ये मज़ामी१० ख़्याल में
" ग़ालिब " सरीरे - खामा११, नवा - ए - सरोश१२ है.

फिर कुछ इस दिल को बेक़रारी है
सीना, जुया - ए - ज़ख्मे - कारी१३ है.
फिर जिगर खोदने लगा नाखून
आमदे फ़सले - लालाकारी१४ है.
फिर उसी बेवफ़ा पे मरते हैं
फिर वाही ज़िन्दगी हमारी है.
फिर हुए हैं गवाहे - इश्क़ तलब१५ 
अश्कबारी का हुक्म जारी है.
बेखुदी, बेसबब नहीं " ग़ालिब "
कुछ तो है जिसकी पर्दादारी है.

ग़ैर ले महफ़िल में बोसे जाम के 
हम रहे यूं तश्नालब१६ पैग़ाम के.
दिल को आँखों ने फंसाया क्या मगर
ये भी हल्के१७ हैं तुम्हारे दाम१८ के.
इश्क़ ने " ग़ालिब " निकम्मा कर दिया 
वर्ना हम भी आदमी थे काम के.


उनके देखे से जो आ जाती है मुंह पर रौनक
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है.
देखी पाते हैं उश्शाक१९ बुतों से क्या फैज़२०
इक बिरहमन ने कहा है कि ये साल अच्छा है.
हमको मालूम है जन्नत की हकीक़त, लेकिन
दिल के खुश रखने को " ग़ालिब " ये ख़्याल अच्छा है.


हर एक बात पे कहते हो तुम, कि तू क्या है
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़े गुफ़्तगू२१ क्या है.
चिपक रहा है बदन पर लहू से पैराहन२२
हमारे जेब को अब हाजते - रफ़ू २३  क्या है.
जला है जिस्म जहां, दिल भी जल गया होगा
कुरेदते हो जो अब राख, जुस्तजू क्या है.
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ायल
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है.
रही न ताकते - गुफ़्तार२४ और अगर हो भी
तो किस उम्मीद पे कहिए कि आरज़ू क्या है.


१. बच्चों का खेल.

२. बाल की खाल निकालना.
३ . अभ्यस्त, आदि.

४ . अफ़सोस.

५ . धैर्यपूर्ण.

६ . उपेक्षा.

७ . वियोग की पीड़ा.

८ . रात का साथ.

९ . विषय-सन्दर्भ.

१० . परोक्ष रूप से.

११ . लिखने की ध्वनि.

१२ .शुभ सन्देश वाहक.

१३ . गहरे घाव को ढूँढने वाला.

१४ . पुष्प लहर का आना.

१५. प्रियवर की गवाही.

१६. प्यासे होंठ.

१७ . फंदा.

१८. जाल.

१९. प्रेमी.

२० . लाभ.

२१ . वार्तालाप का ढंग .

२२ . लिबास.

२३ . सिलना-पिरोना.

२४ . बात करने की शक्ति.

 -प्रबल प्रताप सिंह

गन्दा आरोप नहीं, गन्दा आदमी

उनसे कह दो, गुजरे हुए गवाहों से-
झूंठ तो बोले, मगर झूंठ का सौदा करे

यह पंक्तियाँ हमने अपने बचपन में किसी कवि के मुख से सुनी थी जिसका प्रभाव आज भी मन पर है आंध्र प्रदेश के राज्यपाल श्री नारायण दत्त तिवारी जी के ऊपर लगाया गया आरोप गन्दा नहीं हैगंदे आदमी पर यह आरोप लग के आरोप शर्मिंदगी महसूस कर रहा होगाश्री तिवारी जी आजादी की लड़ाई से आज तक दोहरे व्यक्तित्व के स्वामी रहे हैंउनका एक अच्छा उज्जवल व्यक्तित्व जनता के समक्ष रहा है दूसरा व्यक्तित्व न्यूज़ चैनल के माध्यम से जनता के सामने आया हैलखनऊ से दिल्ली , देहरादून से हैदराबाद तक का सफ़र की असलियत उजागर हो रही हैयह हमारे समाज के लिए लोकतंत्र के लिए शर्मनाक बात हैभारतीय राजनीति में, सभ्यता और संस्कृति में इस तरह के उदाहरण बहुत कम मिलते हैं लेकिन बड़े दुःख के साथ अब यह भी लिखना पड़ रहा है कि पक्ष और प्रतिपक्ष में राजनीति के अधिकांश नायको का व्यक्तित्व दोहरा हैइसमें किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए बस ईमानदारी से एक निष्पक्ष जांच की आवश्यकता है बड़े-बड़े चेहरे अपने आप बेनकाब हो जायेंगेगलियों- गलियों में हमारे वर्तमान नायको की कहानियाँ जो हकीकत में है सुनने को मिलती हैं। इन लोगो ने अपने पद प्रतिष्ठा का उपयोग इस कार्य में जमकर किया है जो निंदनीय हैइसलिए ऊपर लिखी पंक्तियाँ वास्तव में उनके व्यक्तित्व के यथार्थ को प्रदर्शित करती हैं
- सुमन

26.12.09

राज्य का मुखिया राज्यपाल

संविधान के अनुच्छेद 155 के तहत राष्ट्रपति किसी भी राज्य के कार्यपालिका के प्रमुख राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर और मुद्रा सहित अधिपत्र द्वारा नियुक्त करता हैआन्ध्र प्रदेश के राज्यपाल श्री नारायण दत्त तिवारी के कारनामो को देखने के बाद कार्यपालिका की भी स्तिथि साफ़ होती नजर राही हैझारखण्ड के मुख्यमंत्री श्री मधु कोड़ा के भ्रष्टाचार के मामले आने के बाद वहां भी राज्यपाल श्री शिब्ते रजी के ऊपर उंगलियाँ उठी थीराज्यपाल की भूमिका पर हमेशा प्रश्नचिन्ह लगते रहे हैंइस पद का इस्तेमाल केंद्र में सत्तारूढ़ दल अपने वयोवृद्ध नेताओं को राज्यपाल नियुक्त कर उनको जीवन पर्यंत जनता के टैक्स से आराम करने की सुविधा देता हैइन राज्यपालों के खर्चे शानो शौकत राजा रजवाड़ों से भी आगे होती हैलोकतंत्र में जनता से वसूले करों का दुरपयोग नहीं होना चाहिए लेकिन आजादी के बाद से राज्यपाल पद विवादास्पद रहा हैजरूरत इस बात की है कि ईमानदारी के साथ राज्यपाल पद की समीक्षा की जाएअच्छा तो यह होगा की इस पद की कोई उपयोगिता राज्यों में बची नहीं है इसको समाप्त कर दिया जाए
- सुमन

एक अनोखा उल्लू

उल्लू एक अनोखा पक्षी है। दिन में इसे कुछ दिखाई नहीं देता। रात में ही यह अपने शिकार के लिए निकलता है। उल्लू का रंग अधिकतर सुरमई होता है। कुछ उल्लू मटमैले होते है। इसका सिर काफी बड़ा, बिल्ली की तरह गोल और बालों से भरा होता है। आंखें मनुष्यों की तरह खोपड़ी में स्थित होती है। उल्लू को शिकारी पक्षी माना जाता है, परंतु इसका शिकार करना पाप माना जाता है। यह लक्ष्मी का वाहन भी है। उल्लू की तीन जातियां: घुग्घू उल्लू और खूसठ। इसमें से सबसे छोटे को उल्ले कहते हैं और सबसे बड़े को घुग्घु के नाम से जाना जाता है। घुग्घु कहलाने वाली जाति के बाल और पंख मुड़ कर सींग की तरह हो जाते हैं। इसकी तीन उंगलियां आगे की ओर होती है और एक पीछे की ओर। यह अपनी अगली उंगलियों को पीछे की ओर भी आसानी से मोड़ लेता है। पंख कोमल और कान बड़े-बड़े होते हैं। उड़ते समय यह अपने पंखों से बिल्कुल भी आवाज नहीं करता। रात के समय चाहे जितना भी सन्नाटा हो, इसके शिकार को इसके आने का बिल्कुल भी आभास नहीं होता। इसके पैर अंगूठे तक पंखों से ढके रहते हैं। यह शिकार को पूरे का पूरा निगल जाता है। इसलिए शिकार साफ करने के लिए उल्लू अपने पैरों की मदद नहीं लेता।उल्लू लगभग 14 इंच तक लंबा होता है। चूहे, मक्खियां, सांप ओर कीड़े-मकौड़े इसका ्िरप्रय भोजन है। उल्लू की भद्दी आवाज के कारण ही लोग इसे मनहूस समझते हं। मादा उल्लू अपने अंडे मई से जुलाई तक देती है। अंडे गिनती में तीन या चार होते है और उनका रंग सफेद होता है। उल्लू अपना घोंसला पुरानी इमारतों के खंडहरों, पेड़ों के खोखले तनों और सुराखों में बनाना पंसद करता है। उल्लू फसल को हानि पहुंचाने वाले कीड़ों को मारकर खा जाता है। इसलिए यह किसानों का मित्र पक्षी भी है। भारत के अतिरिक्त उल्लू संसार के लगभग सभी देशों में मिलता है।

ग्लोबल वार्मिंग:दस्तक प्रलय की

आजकल जलवायु बदलाव विश्व के तापमान में वृद्धि गंभीर पर्यावरणीय समस्या के रूप में उभर कर सामने आए हैं। वैज्ञानिकों ने इस समस्या का ग्लोबल वार्मिंग नाम दिया है। धरती को बढ़ता तापमान समूचे संसार एवं मानव जाति के लिए खतरानाक सिद्ध हो रहा है। वर्तमान में जलवायु तथा मौसम में भंयकर उथल-पुथल इसी के कारण मची हुई है। ग्लोबल वार्मिंग के फलस्वरूप ग्लेशियर पिघलते जा रहें हैं। ठंड में गर्मी और गर्मी में बारिश बाढ़ का प्रकोप झेलना पड़ रहा है। मौसम में हो रहे इस बदलाव से छोटे-बड़े जीव-जन्तु पेड़ पौधे सभी दुष्प्रभावित हो रहे हैं।वायु प्रदूषण, ध्वनी प्रदूषण मृदा प्रदूषण, जैव प्रदूषण आदि ने मिलकर पूरे पर्यावरण को प्रदूषित कर दिया है और आज यही जीवनदायी तत्व जीवन घातक बन गए हैं। वैज्ञानिकों को आशंका है कि परमाणु युद्ध या धरती से क्षुद्रग्रह के टकराने से जितनी तबाही हो सकती है, उतनी तबाही ग्लोबल वार्मिंग से भी संभव है। हमारे देश में वर्ष 1998 का वर्ष पिछले 50 वर्षो में सर्वाधिक गर्म रहा, जिसमें 26 दिन की लू में करीब 2500 लोगों की जान चली गई। पूरे विश्व में इसका असर देखा गया। यह धरती के मौसमी इतिहास की सबसे तेज गर्मी थी। वैज्ञानिकों का मानना है कि अगले 50 वर्शो तक पर्यावरण प्रदूषण की यही गति बनी रही तो महाप्रलय सकता है, क्योंकि वायु मंडल में निरंतर बढ़ती कार्बन डाईऑक्साइड गैस से पृथ्वी के वायुमंडल का तापमान 3 से 4 डिग्री सेंटीग्रेट बढ़ जाएगा जो पौध घर प्रभाव को नष्ट तो करेगा ही साथ ही ग्लेषियरों के पिघलने से समुद्र का जल स्तर बढ़ जाएगा। ग्लोबल वार्मिंग के कारण आर्कटिक हिम सतह की मोटाई 1950 के बाद आश्चर्यजनक रूप से 15 प्रतिशत घट चुकी है। माउंट केन्या का सबसे बड़ा ग्लेशियर 92 प्रतिशत खत्म हो चुहा है। गंगा को जीवन देने वाले ग्लेशियर पर भी संकट के बादल मंडरा रहे हैं। विश्व का तीसरा सबसे बड़ा यह ग्लेशियर 30 मीटर प्रतिवर्ष की तीव्र रफ्तार से सिकुड़ता जा रहा है, अब तक यह 260 वर्ग किलोमीटर तक सिकुड़ गया है, सुविख्यात पर्यावरणविद् डॉ. सैयद इकबाल हुसैन और डॉ. अरुण शास्त्री के सर्वेक्षण से पता चलता है कि यह मौमुखी ग्लेशियर निरंतर घट रहा है। इस प्रकार स्पष्ट है कि दुनिया भर के ग्लेशियरों एवं बर्फ के पिघलने से समुद्रों का जल स्तर निरंतर उठता जा रहा है। भारत में इसका पहला प्रभाव कच्छ पर होगा, जो हमेशा के लिए समुद्र में समा सकता है और आशंका है कि सुंदर वन एवं लक्षद्वीप भी सदा के लिए विष्व मानचित्र से लुप्त हो जाएंगे। ग्लोबल वार्मिंग के समाधान हेतु कई अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन, समझौते एवं संधिया भी हो चुकी हैं, परंतु कोई सार्थक निष्कर्ष नहीं निकल पा रहा है। यह विश्वव्यापी समस्या दिनों दिन उग्र होती जा रही है। लेकिन ऐसा नहीं है कि इसके समाधान के समस्त द्वार बंद हो गए हों। वैज्ञानिकों के अनुसार ग्लोबल वार्मिंग का कारण ग्रीन हाउस गैसें हैं, पेड़ पौधे इन गैसों को सोखने में मुख्य भूमिका निभाते हैं। यदि वृक्षारोपण पर बल दिया जाए, तो इस संकट से काफी कुछ निपटा जा सकता है। निरंतर बढ़ रहे पर्यावरण प्रदुषण को कम करने हेतु आवश्यक कदम उठाने होंगे। हम सभी पर्यावरण को प्रदूशित करने से बचें एवं उसके प्रति संवेदनशील बनें। समय रहते धरती को बचाने के लिए सारे प्रयास किए जाएं अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब महाप्रलय जाएगा और पृथ्वी से मानव का नामो-निशान मिटकर यह एक बेजान ग्रह बनकर रह जाएगा।

25.12.09

विधायिका पर अपराधियों का कब्ज़ा

राजनीति पर अपराधियों का कब्ज़ा हो गया है आए दिन कोई कोई राज़नीतज्ञ किसी किसी घोटाले में लिप्त नजर रहा है कांग्रेस के 85 वर्षीय नेता श्री नारायण दत्त तिवारी जो राज्यपाल हैं सेक्स स्केण्ड़ल में उनका नाम आया है इससे पूर्व श्री तिवारी जैसे राजनेता का नाम सेक्स स्केण्ड़ल में चुका है इन राजनेताओं का चरित्र देखकर लगता है कि यह सब समाज के लम्पट तत्व हैं और इन्होने अपनी यूनियन बनाकर विधायिका पर ही कब्ज़ा कर लिया है
- सुमन

ये अंधा क़ानून है....!!!!!!










ये अंधा कानून है, 
ये अंधा कानून है,
ये.... अंधा....कानून....है......
जी हां आप सही सोच रहे हैं. ये लाईनें न्याय की देवी जो आँख पर पट्टी बांधे हैं उनके लिए है. जो न्याय की देवी दूध का दूध और पानी का पानी वाला फैसला देने के जानी जाती है, उस देवी के दर से आज एक देवी के आबरू से खेलने वाले और उसे आत्महत्या के लिए जिम्मेदार डीजीपी को पर्याप्त सबूत होने के बावजूद ६ महीने की साधारण सज़ा और एक हज़ार रुपये जुर्माना लगाकर छोड़ दिया गया.

१९ साल 
१९ साल से रुचिका गिरहोत्रा काण्ड का केस चल रहा था. पर्याप्त सबूत होने के बावजूद केस की सुनवाई में इतना लम्बा समय दर्शाता है कि हमारी न्याय प्रणाली कितनी लाचा और लाचार हो चुकी है. इसी कारण ऊंचे रसूख वाले न्याय को अपने हाथ की कठपुतली बना रखे हैं.
हाईस्कूल में पढ़ रही रुचिका गिरहोत्रा के यौन उत्पीड़न के लिए दोषी पूर्व डीजीपी एसपी सिंह राठौर को कोर्ट ने १९ साल बाद ६ महीने की सामान्य सज़ा और एक हज़ार रुपये जुर्माना लगाकर छोड़ दिया ? इस फैसले ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं. १४ वर्षीय टेनिस खिलाड़ी के साथ राज्य का सबसे बड़ा पुलिस अधिकारी बलात्कार का दोषी पाया गया ? रुचिका की आपबीती हलफ़नामे को कोर्ट ने नज़रंदाज़ कर दिया ? यह मुकदमा आम आदमी और खास आदमी के बीच न्यायसंगत था ? यह मुकदमा पुलिस के सचरित्र को दर्शाता है ?
बिना कारण रुचिका पर अनुशासनहीनता का आरोप लगाकर स्कूल से निकाल दिया जाता है. भाई को पुलिस डराती है, धमकाती है, पीटती है, झूठे केस में फंसाती है. पूरा परिवार सदमें में जीने को अभिशप्त होता है. यह सब देखकर अल्पवयस्क रुचिका जहर खाकर अपनी जीवन लीला ख़त्म कर लेती है, ताकि उसके भाई और पिता को कोई परेशानी न हो. कब तक ऐसा होता रहेगा ? कब तक लड़कियों और महिलाओं को दूसरे की करनी भुगतनी पड़ेगी ? पुरुष प्रधान समाज में महिला सिर्फ उपभोग की वास्तु रह गई है ? " यत्र नार्यस्तु पूज्यते तत्र रमन्ते देवता ",  उक्ति वर्तमान में अपना अस्तित्व खो चुकी है ? घर - परिवार, देश और समाज संभालने वाली महिला की सुरक्षा किसी की नहीं है ? नारी को स्वतंत्रता का कोई अधिकार नहीं है ?
इन सवालों के जवाब हमें और आपको ही देने है. तभी एक स्वस्थ और विकसित समाज की कल्पना साकार होगी.
                                                                रुचिका मामले में गवाह बने उसकी सहेली के माता - पिता आनंद प्रकाश और श्रीमती मधु प्रकाश की जितनी तारीफ की जाए कम है. तमाम धमकियों के बावजूद पुलिस प्रशासन के प्रभाव में न आकर उन्होंने अपनी गवाही दी. जहां गवाह खरीदे और बेचे जाते हों, जहां गवाही को धनबल और बाहुबल से बदला जाता हो , वहां इन दोनों के हौसलों को सलाम...!!

न्याय की विडम्बना 
१. १४ साल की नाबालिग लड़की के साथ अधेड़ डीजीपी ने बलात्कार किया.
२. १९ साल बाद फैसला, वह भी न्यायसंगत नहीं.

३. तारीख पर तारीख, तारीख पर तारीख डलवाकर पूर्व डीजीपी राठौर ने अपने पद और पावर का बेहिसाब इस्तेमाल करते हुए  केस को १९ साल तक खींचा. पीड़िता के भाई और पिता को प्रताड़ित किया गया. गवाह बने आनंद प्रकाश और श्रीमती मधु प्रकाश को डराया, धमकाया गया.

४. बलात्कार पीड़िता ने आत्महत्या कर लिया.

५. पर्याप्त सबूत होने के बाद भी बलात्कारी राठौर को कोर्ट ने सामान्य सी सज़ा सुनाई.

६. कोर्ट का यह कहना बहुत ही हास्यास्पद है कि इतने लम्बे समय तक चले केस के कारण राठौर को लम्बी सज़ा नहीं दी जा सकती क्योंकि उनकी उम्र ६८ वर्ष हो चुकी है और हृदय की सर्जरी भी हो चुकीहै.

७. १९ साल तक चले केस से जिस परिवार को जो मानसिक, शारीरिक, आर्थिक और सामजिक नुकसान हुआ उसकी भरपाई कौन करेगा ?

८. महिलायें कब तक अन्याय का शिकार होती रहेंगी ?

९. आम आदमी न्याय से हमेशा वंचित रहा है. इस फैसले ने इस बात को और पुख्ता कर दिया है.

१०. यह फैसला लोकतंत्र की न्याय प्रणाली पर अनास्था और विद्रोह की भावना पैदा करता है.

११. किसी नाबालिग लड़की की आबरू  को धूमिल करना और उसे ख़ुदकुशी के कगार पर पहुंचाने वाले राठौर की इतनी कम सज़ा काफी है ?

१२. अप्रासंगिक हो चुके भारतीय कानून को बदल देना चाहिए.
जो सज़ा पूर्व डीजीपी राठौर को कोर्ट ने सुनाई है, उस सज़ा से कौन अपराधी खौफ खायेगा ? ऐसे अपराधी की सज़ा मौत से कम स्वीकार नहीं, ताकि कोई बेटी, बहिन , बहू, बीवी की अस्मत पर बुरी नज़र डालने से पहले उसके अंजाम को सोचकर थर्रा उठे.

एक सवाल जज से
"जिस जज ने यह फैसला सुनाया है 
क्या उसके बेटी, बहिन , बहू या बीवी
के साथ ऐसा हादसा हुआ होता तो वे 
यही फैसला सुनाते ??"

प्रबल प्रताप सिंह