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24.12.09

खाद्यय विभाग ने मनाया उपभोक्ता दिवस

सिरसा: खाद्यय आपूर्ति विभाग हरियाणा द्वारा 24 दिसम्बर से एक सप्ताह तक उपभोक्ता दिवस मनाया जाता है। आज पीआर सैन्टर में उपभोक्ता दिवस मनाने की शुरूआत की। इस दिन विभाग द्वारा ग्राहकों व आम नागरिक को अपने अधिकारों के बारे में जानकारी दी जाती है। इस अवसर पर जिला खाद्यय आपूर्ति नियंत्रक सुलतान सिंह, डीएफएसओ नत्थूराम, एएफएसओ अशोक बांसल, संजीव कुंडू के अलावा नरेंद्र सरदाना, योगेंद्र शर्मा, कश्मीरी लाल, झण्डाराम, अशोक कोचर आदि ने उपभोक्ता दिवस पर लोगों को जागरूक करने के लिए उनके अधिकारों के बारे में विस्तृत जानकारी दी। बैठक में शामिल हुए लोगों को विभाग की तरफ से जलपान करवाया गया।

विशाल कॉस्को टूर्नामैंट 27 को

सिरसा: जिला के गांव नुहियांवाली में गांव की शिव शक्ति क्लब द्वारा 27 दिसम्बर को पहला विशाल कॉस्को टूर्नामैंट का आयोजन किया जा रहा है। टूर्नामैंट का उद्घाटन इनेलो नेता भाई दिग्विजय सिंह चौटाला करेंगे व समापन समारोह में गांव के सरपंच रामकुमार नेहरा बतौर मुख्यातिथि शिरकत करेंगे। उक्त जानकारी क्लब के प्रधान सुभाष बिजारणियां ने प्रैस के नाम जारी एक विज्ञप्ति में दी। उन्होंने बताया कि इस टूर्नामैंट में प्रथम ईनाम पाने वाली टीम को 7100 रुपये व ट्राफी, द्वितीय स्थान पाने वाले को 5100 रुपये व ट्राफी प्रदान की जाएगी। इसके अलावा मैन आफ दी सीरिज रहने वाले खिलाड़ी को 1100 रुपये की राशि व ट्राफी दी जाएगी। उन्होंने बताया कि इस मैच में भाग लेने वाली टीमों को 350 रुपये एन्ट्री फीस जमा करवानी होगी। टूर्नामैंट में 10-10 ओवरों के मैच होंगे। सभी मैचों में मैन आफ दी मैच दिया जाएगा व छक्कों व विकेटों की हैट्रिक पर विशेष प्रतिभा पुरस्कार दिया जाएगा। ये टूर्नामैंट गांव के राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय के खेल परिसर में आयोजित किया जाएगा।

राठौर प्रकरण में जनता को भ्रमित करने के प्रयास की निंदा

चंडीगढ़: इनेलो ने रूचिका मामले में लोगों का ध्यान एसपीएस राठौर को बचाने वाले असली दोषियों से हटाकर जनता को भ्रमित करने के प्रयासों की कड़े शब्दों में निन्दा की है। इनेलो के प्रधान महासचिव अजय सिंह चौटाला ने कहा कि ओमप्रकाश चौटाला ने कभी किसी दोषी को बचाने का प्रयास नहीं किया और एसपीएस राठौर को बचाने का प्रयास कांग्रेस की सरकार में किया गया और असली दोषियों को बचाने के लिए अब कुछ शरारती तत्वों द्वारा कांग्रेस के कुकृत्यों पर पर्दा डालने के लिए घटिया हथकंडे अपनाए जा रहे हैं। अजय सिंह चौटाला ने कहा कि रूचिका के साथ जब छेड़छाड़ हुई और जब रिपोर्ट आई उस समय ओमप्रकाश चौटाला मुख्यमन्त्री नहीं थे। उन्होंने कहा कि रूचिका के भाई व परिवार के साथ हुई ज्यादतियों व रूचिका द्वारा आत्महत्या किए जाने के समय भी प्रदेश में भजनलाल के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार थी। उन्होंने कहा कि कांगे्रस सरकार ने न सिर्फ राठौर के खिलाफ चल रही चार्जशीट को रद्द किया बल्कि उन्हें पदोन्नति भी दी गई। उन्होंने कहा कि इनेलो अब भी मधुबन सैक्स स्कैंडल में हरियाणा के दो मौजूदा आला अधिकारियों के संलिप्त होने के आरोपों की इनेलो द्वारा सीबीआई से जांच करवाए जाने की मांग कर चुकी है। इनेलो द्वारा इस मामले में राज्यपाल को ज्ञापन दिए जाने के बाद मौजूदा कांग्रेस सरकार बेहद तिलमिलाई हुई है और इस मुद्दे से लोगों का ध्यान हटाने के लिए बेवजह झूठी बयानबाजी करवाई जा रही है। उन्होंने कहा कि रूचिका मामले व मधुबन सैक्स स्कैंडल से जुड़े सभी मामलों की भी अविलम्ब सीबीआई अथवा अन्य किसी भी स्वतन्त्र जांच एजेंसी से जांच करवा ली जानी चाहिए ताकि वास्तविकता सामने आ सके। उन्होंने कहा कि रूचिका मामले को लेकर मीडिया द्वारा करवाई जा रही जनबहस का इनेलो स्वागत करती है लेकिन यह बहस तथ्यों पर आधारित होनी चाहिए और बिना तथ्यों के किसी राजनेता की छवि को धूमिल करने के गैर जिम्मेदाराना प्रयासों की सराहना नहीं की जा सकती। अजय सिंह चौटाला ने घटनाओं का सिलसिलेवार ब्यौरा देते हुए कहा कि 12 अगस्त, 1990 को जब रूचिका के साथ एसपीएस राठौर द्वारा छेड़छाड़ की गई। उन्होंने कहा कि इस मामले को लेकर राठौर के खिलाफ 16 अगस्त को गृह सचिव व मुख्यमन्त्री सहित विभिन्न आलाधिकारियों को शिकायत की गई। उस समय प्रदेश में चौधरी हुकम सिंह मुख्यमन्त्री थे। उन्होंने 17 अगस्त को डीजीपी आरआर सिंह से मामले की जांच करने को कहा। इस मामले में पुलिस के पास 18 अगस्त, 1990 को रपट रोजनामचा (डीडीआर नंबर-12) दर्ज की गई। उन्होंने कहा कि मामले की जांच करने के बाद डीजीपी आरआर सिंह ने 3 सितम्बर, 1990 को कहा कि प्रारम्भिक तौर पर राठौर के खिलाफ मामला बनता है और इस मामले में एफआईआर दर्ज की जानी चाहिए। बाद में बने डीजीपी आरके हुड्डा व उस समय के गृह सचिव ने एफआईआर की बजाय राठौर को चार्जशीट किए जाने की सिफारिश की। उस समय के गृह मन्त्री ने 12 मार्च, 1991 को और मुख्यमन्त्री हुकम सिंह ने 13 मार्च, 1991 को इससे सहमति जता दी। अजय सिंह चौटाला ने कहा कि हुकम सिंह 22 मार्च, 1991 तक प्रदेश के मुख्यमन्त्री रहे और उसके बाद 22 मार्च, 1991 से 6 अप्रैल, 1991 तक सिर्फ दो हफ्तों के लिए ओमप्रकाश चौटाला प्रदेश के मुख्यमन्त्री बने लेकिन इस दौरान यह मामला उनके पास नहीं आया। उन्होंने कहा कि 6 अप्रैल, 1991 से 22 जुलाई, 1991 तक प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू रहा और राष्ट्रपति शासन के दौरान ही प्रदेश में विधानसभा चुनाव हुए। इस दौरान 28 मई, 1991 को एसपीएस राठौर को दी जाने वाली चार्जशीट अप्रूव कर दी गई। उन्होंने कहा कि चुनाव के बाद प्रदेश में भजनलाल के नेतृत्व वाली कांग्रेस की सरकार बनी। यह सरकार 23 जुलाई, 1991 से 9 मई, 1996 तक रही। इस दौरान राठौर के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने को लेकर मामला फिर आया और इस सम्बन्ध में उस समय के एलआर से कानूनी राय ली गई। उस समय के एलआर आरके नेहरू ने 30 जून, 1992 को दी गई कानूनी राय में यह बात कही कि यह एफआईआर तो वैसे भी एसएचओ द्वारा दर्ज कर दी जानी चाहिए थी क्योंकि इस सम्बन्ध में रपट रोजनामचा 18 अगस्त, 1990 को पहले से ही दर्ज है। उन्होंने यह भी कहा कि अगर पहले एफआईआर दर्ज नहीं की गई तो इस एफआईआर को तुरन्त बिना देरी के दर्ज कर लिया जाना चाहिए और अदालत में ट्रायल के दौरान यह बात स्पष्ट की जा सकती है। एलआर की कानूनी राय के बावजूद भी एफआईआर दर्ज नहीं की गई और उस समय भजनलाल के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार थी। अजय सिंह चौटाला ने कहा कि भजनलाल की सरकार के दौरान रूचिका के भाई आशु के खिलाफ चोरी की छह एफआईआर दर्ज की गई। 6 अक्तूबर, 1992 को एफआईआर नंबर-39, 30 मार्च, 1993 को एफआईआर नंबर-473, 10 मई, 1993 को एफआईआर नंबर-57, 12 जून, 1993 को एफआईआर नंबर-96, 30 जुलाई, 1993 को एफआईआर नंबर-127 और 4 सितम्बर, 1993 को एफआईआर नंबर-147 दर्ज की गई। ये सभी एफआईआर धारा 379 के अन्तर्गत दर्ज की गई। उन्होंने कहा कि 23 अक्तूबर, 1993 को हरियाणा पुलिस ने रूचिका के भाई आशु को घर से उठा लिया और दो महीने तक अवैध हिरासत में रखा गया और उस पर कार चोरी के 11 मामले बनाए गए। उस समय प्रदेश में भजनलाल की सरकार थी। उन्होंने कहा कि 28 दिसम्बर, 1993 को रूचिका ने आत्महत्या कर ली और 29 अगस्त को पुलिस ने आशु को छोड़ दिया। यह घटना भी भजनलाल सरकार में घटी। इनेलो के प्रधान महासचिव ने घटनाक्रम का ब्यौरा देते हुए कहा कि इसके बाद अप्रैल, 1994 में भजनलाल सरकार ने रूचिका छेड़छाड़ के मामले में एसपीएस राठौर के खिलाफ चल रही चार्जशीट को चुपचाप तरीके से खत्म कर दिया और 4 नवम्बर, 1994 को भजनलाल के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने राठौर को पदोन्नत करके आईजी से अतिरिक्त डीजीपी बना दिया। उन्होंने कहा कि11 मई, 1996 को प्रदेश में बंसीलाल के नेतृत्व में हविपा की सरकार बन गई जो कि 23 जुलाई, 1999 तक रही। बंसीलाल की सरकार में राठौर एडिशनल डीजीपी जेल के पद पर थे और एक कैदी की पेरोल के मामले को लेकर उन्हें 5 जून, 1998 को निलम्बित किया गया और कैदी के पेरोल के मामले की विभागीय जांच के आदेश दिए गए। बंसीलाल सरकार ने ही 3 मार्च, 1999 को राठौर को वापिस बहाल कर दिया। उन्होंने कहा कि इसी बीच 21 अगस्त, 1998 को सीबीआई ने रूचिका छेड़छाड़ मामले की जांच सीबीआई से कराए जाने के आदेश दिए। उन्होंने बताया कि 20 मई, 1999 को बंसीलाल सरकार के समय ही राठौर व एसके सेठी को डीजीपी बनाने के लिए विभागीय पदोन्नति कमेटी (डीपीसी) की बैठक हुई और एसके सेठी को डीजीपी बना दिया गया और बैठक में कहा गया कि राठौर के खिलाफ कैदी की पेरोल के मामले को लेकर विभागीय जांच अभी लम्बित है इसलिए विभागीय जांच रिपोर्ट आने तक पदोन्नति न दी जाए। 30 सितम्बर को विभागीय जांच रिपोर्ट में उनके खिलाफ कैदी के पेरोल मामले में आरोपों की पुष्टि न होने पर उन्हें भी 20 मई, 1999 से पदोन्नति मिल गई। अजय सिंह चौटाला ने कहा कि दिसम्बर 2000 में सीबीआई ने राठौर को रूचिका छेड़छाड़ मामले में दोषी ठहराते हुए उन्हें चार्जशीट कर दिया और इनेलो की सरकार ने उन्हें तुरन्त डीजीपी पद से हटा दिया। उसके बाद अदालत में मामले की सुनवाई चली। इसी दौरान राठौर 2002 में रिटायर हो गए और अब अदालत ने नौ साल की सुनवाई के बाद उन्हें छह महीने के कैद और एक हजार रुपए जुर्माने की सजा सुनाई है। हम अदालत के फैसले का पहले ही स्वागत कर चुके हैं और हमारा मानना है कि ऐसे मामलों में दोषियों को सख्त से सख्त सजा मिलनी ही चाहिए। उन्होंने कहा कि जिन पुलिस कर्मचारियों ने रूचिका के परिवार के साथ ज्यादतियां की है और उनके खिलाफ झूठे मुकदमे दर्ज किए उनके खिलाफ भी कार्रवाई होनी चाहिए और दोषियों को सख्त से सख्त सजा मिलनी ही चाहिए और रूचिका के परिवार को भी मुआवजा मिलना चाहिए। इनेलो नेता ने कहा कि राठौर मामले से उनका बेवजह नाम जोड़े जाना और बेवजह किसी को बदनाम करने के लिए किसी का नाम घसीटे जाना और झूठे आरोप लगाए जाना बेहद शर्मनाक है और मीडिया को भी किसी पर आरोप लगाने से पहले कम से कम सम्बन्धित तथ्यों व उनसे जुड़ी हुई बातों की पुष्टि जरूर कर लेनी चाहिए। उन्होंने कहा कि असल में रूचिका के मामले की पैरवी जिस जोरदार तरीके से रूचिका की दोस्त आराधना व उनके परिवार वालों ने की वे सच में बधाई के पात्र हैं और उन्हें इस बात की प्रशंसा मिलनी ही चाहिए। उन्होंने कहा कि 1991 से 1999 तक भजनलाल व बंसी लाल की सरकारें थी और उन सरकारों की विफलताओं और बेकायदगियों को किसी अन्य के जिम्मे मड़े जाना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।

रूचिका छेड़छाड़ व आत्महत्या कांड का तिथि अनुसार ब्यौरा

रूचिका के साथ 12 अगस्त, 1990 को उस समय के आईजी व लोन टेनिस एसोसिएशन के अध्यक्ष एसपीएस राठौर ने छेड़छाड़ की थी।
इस सम्बन्ध में 16 अगस्त को गृह सचिव व मुख्यमन्त्री सहित विभिन्न आलाधिकारियों को शिकायत की गई। उस समय प्रदेश में चौधरी हुकम सिंह मुख्यमन्त्री थे। उन्होंने 17 अगस्त को डीजीपी आरआर सिंह से मामले की जांच करने को कहा। इस मामले में पुलिस के पास 18 अगस्त, 1990 को रपट रोजनामचा (डीडीआर नंबर-12) दर्ज की गई।
मामले की जांच करने के बाद डीजीपी आरआर सिंह ने 3 सितम्बर, 1990 को कहा कि प्रारम्भिक तौर पर राठौर के खिलाफ मामला बनता है और इस मामले में एफआईआर दर्ज की जानी चाहिए। बाद में बने डीजीपी आरके हुड्डा व उस समय के गृह सचिव ने एफआईआर की बजाय राठौर को चार्जशीट किए जाने की सिफारिश की। उस समय के गृह मन्त्री ने 12 मार्च, 1991 को और मुख्यमन्त्री हुकम सिंह ने 13 मार्च, 1991 को इससे सहमति जता दी।
हुकम सिंह 22 मार्च, 1991 तक प्रदेश के मुख्यमन्त्री रहे और उसके बाद 22 मार्च, 1991 से 6 अप्रैल, 1991 तक सिर्फ दो हफ्तों के लिए ओमप्रकाश चौटाला प्रदेश के मुख्यमन्त्री बने लेकिन इस दौरान यह मामला उनके पास नहीं आया।
6 अप्रैल, 1991 से 22 जुलाई, 1991 तक प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू रहा और राष्ट्रपति शासन के दौरान ही प्रदेश में विधानसभा चुनाव हुए। इस दौरान 28 मई, 1991 को एसपीएस राठौर को दी जाने वाली चार्जशीट अप्रूव कर दी गई।
चुनाव के बाद प्रदेश में भजनलाल के नेतृत्व वाली कांग्रेस की सरकार बनी। यह सरकार 23 जुलाई, 1991 से 9 मई, 1996 तक रही। इस दौरान राठौर के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने को लेकर मामला फिर आया और इस सम्बन्ध में उस समय के एलआर से कानूनी राय ली गई। उस समय के एलआर आरके नेहरू ने 30 जून, 1992 को दी गई कानूनी राय में यह बात कही कि यह एफआईआर तो वैसे भी एसएचओ द्वारा दर्ज कर दी जानी चाहिए थी क्योंकि इस सम्बन्ध में रपट रोजनामचा 18 अगस्त, 1990 को पहले से ही दर्ज है। उन्होंने यह भी कहा कि अगर पहले एफआईआर दर्ज नहीं की गई तो इस एफआईआर को तुरन्त बिना देरी के दर्ज कर लिया जाना चाहिए और अदालत में ट्रायल के दौरान यह बात स्पष्ट की जा सकती है। एलआर की कानूनी राय के बावजूद भी एफआईआर दर्ज नहीं की गई और उस समय भजनलाल के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार थी।
भजनलाल की सरकार के दौरान रूचिका के भाई आशु के खिलाफ चोरी की छह एफआईआर दर्ज की गई। 6 अक्तूबर, 1992 को एफआईआर नंबर-39, 30 मार्च, 1993 को एफआईआर नंबर-473, 10 मई, 1993 को एफआईआर नंबर-57, 12 जून, 1993 को एफआईआर नंबर-96, 30 जुलाई, 1993 को एफआईआर नंबर-127 और 4 सितम्बर, 1993 को एफआईआर नंबर-147 दर्ज की गई। ये सभी एफआईआर धारा 379 के अन्तर्गत दर्ज की गई।
23 अक्तूबर, 1993 को हरियाणा पुलिस ने रूचिका के भाई आशु को घर से उठा लिया और दो महीने तक अवैध हिरासत में रखा गया और उस पर कार चोरी के 11 मामले बनाए गए। उस समय प्रदेश में भजनलाल की सरकार थी।
28 दिसम्बर, 1993 को रूचिका ने आत्महत्या कर ली और 29 दिसम्बर को पुलिस ने आशु को छोड़ दिया। यह घटना भी भजनलाल सरकार में घटी।
इसके बाद अप्रैल, 1994 में भजनलाल सरकार ने रूचिका छेड़छाड़ के मामले में एसपीएस राठौर के खिलाफ चल रही चार्जशीट को चुपचाप तरीके से खत्म कर दिया और 4 नवम्बर, 1994 को भजनलाल के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने राठौर को पदोन्नत करके आईजी से अतिरिक्त डीजीपी बना दिया।
11 मई, 1996 को प्रदेश में बंसीलाल के नेतृत्व में हविपा की सरकार बन गई जो कि 23 जुलाई, 1999 तक रही। बंसीलाल की सरकार में राठौर एडिशनल डीजीपी जेल के पद पर थे और एक कैदी की पेरोल के मामले को लेकर उन्हें 5 जून, 1998 को निलम्बित किया गया और कैदी के पेरोल के मामले की विभागीय जांच के आदेश दिए गए। बंसीलाल सरकार ने ही 3 मार्च, 1999 को राठौर को वापिस बहाल कर दिया।
इसी बीच 21 अगस्त, 1998 को सीबीआई ने रूचिका छेड़छाड़ मामले की जांच सीबीआई से कराए जाने के आदेश दिए।
20 मई, 1999 को बंसीलाल सरकार के समय ही राठौर व एसके सेठी को डीजीपी बनाने के लिए विभागीय पदोन्नति कमेटी (डीपीसी) की बैठक हुई और एसके सेठी को डीजीपी बना दिया गया और बैठक में कहा गया कि राठौर के खिलाफ कैदी की पेरोल के मामले को लेकर विभागीय जांच अभी लम्बित है इसलिए विभागीय जांच रिपोर्ट आने तक पदोन्नति न दी जाए। 30 सितम्बर को विभागीय जांच रिपोर्ट में उनके खिलाफ कैदी के पेरोल मामले में आरोपों की पुष्टि न होने पर उन्हें भी 20 मई, 1999 से पदोन्नति मिल गई।
दिसम्बर 2000 में सीबीआई ने राठौर को रूचिका छेड़छाड़ मामले में दोषी ठहराते हुए उन्हें चार्जशीट कर दिया और इनेलो की सरकार ने उन्हें तुरन्त डीजीपी पद से हटा दिया। उसके बाद अदालत में मामले की सुनवाई चली। इसी दौरान राठौर 2002 में रिटायर हो गए और अब अदालत ने नौ साल की सुनवाई के बाद उन्हें छह महीने के कैद और एक हजार रुपए जुर्माने की सजा सुनाई है।
हम अदालत के फैसले का पहले ही स्वागत कर चुके हैं और हमारा मानना है कि ऐसे मामलों में दोषियों को सख्त से सख्त सजा मिलनी ही चाहिए।
जिन पुलिस कर्मचारियों ने रूचिका के परिवार के साथ ज्यादतियां की है और उनके खिलाफ झूठे मुकदमे दर्ज किए उनके खिलाफ भी कार्रवाई होनी चाहिए और दोषियों को सख्त से सख्त सजा मिलनी ही चाहिए और रूचिका के परिवार को भी मुआवजा मिलना चाहिए।
लेकिन बेवजह किसी को बदनाम करने के लिए किसी का नाम घसीटे जाना और झूठे आरोप लगाए जाना बेहद शर्मनाक है और मीडिया को भी किसी पर आरोप लगाने से पहले कम से कम सम्बन्धित तथ्यों व उनसे जुड़ी हुई बातों की पुष्टि जरूर कर लेनी चाहिए।

रास्ट्र वादिता और प्रगति

आदरणीय अकबर जी से बात हुई और मैंने उनसे आज्ञा ली दरअसल मै रास्ट्र चिंतन और रास्ट्र प्रगति पर एक जन जाग्रति अभियान चलाना चाहता था जिसके लिए मैंने मांननीय अकबर जी से दनेटप्रेस को रास्ट्र वादी मंच के रूप में प्रयोग करने का आग्रह किया और मुझे ख़ुशी इस बात की है आंतरिक सामाभाव रखने वाले अकबर जी ने मेरे अनुग्रह को स्वीकार करते हुए मुझे इसकेलिए आज्ञा तो दी ही साथ ही प्रोत्साहित भी किया और अपनी सक्रीय भागीदारी का अस्वाशन भी दिया ,,,,अतः मै उनका ह्रदय से आभार व्यक्त करता हूँ और \हाजिर हूँ रास्ट्र वाद पर अपना चिंतन लेकर


जब कभी भी सामाजिक व्यवस्थाओ में परिवर्तन होता है ,--उनकी गति और अविरल प्रवाह में परिवर्तन होता है ,, तब नयी व्यवस्थाये जन्मती है और धीरे धीरे पुरानी व्यवस्थाये विलुप्त होने लगती है--- ,व्यवस्थाओ के इस परिवर्तन का समाज और रास्ट्र पर बहुत व्यापक प्रभाव पड़ता है , यह प्रभाव सकारात्मक या नकारात्मक दोनों ही हो सकता है ----, यदि प्रभाव सकारात्मक है तो थोड़ी हील हुज्जत के बाद ये व्यवस्था समाज द्वारा स्वीक्रत हो जाती है,---- और पुरानी व्यवस्था की जगह ले लेती है , परन्तु यदि यही प्रभाव नकारात्मक होता है,, तो इसके खिलाफ रास्ट्र वाद की दुहाई देता हुआ एक प्रबुद्ध वर्ग खड़ा हो जाता है ,,और व्यवस्था परिवर्तन का विरोध करता है ,, आम जन उस समय कर्तव्य विमूढ़ होता है ,,वह ना तो नयी व्यवस्था को पूर्णता अस्वीकार करता है--- और न ही स्वीकार ही , प्रबुद्ध वर्ग द्वारा असंगत व्यवस्था परिवर्तन के विरोध को और अल्प प्रबुद्ध वर्ग(यहाँ प्रबुद्ध वर्ग और अल्प प्रबुद्ध वर्ग के मेरे मानक के अनुसार चिंतन शील समाज का वह वर्ग जो प्रगति का तो विरोधी नहीं है- परन्तु किसी भी व्यवस्था परिवर्तन को पूर्ण चिंतन और मनन के साथ ही स्वीकार करता है तथा भविष्य की पीढियों पर उस व्यवस्था परिवर्तन का क्या प्रभाव पड़ेगा इसके प्रति जाग्रत होकर ही व्यवस्था परिवर्तन को स्वीक्रति देता है -प्रबुद्ध वर्ग में आता है --समाज का वह वर्ग जो समाज और रास्ट्र के हितो के प्रति तो चिंतित होता है ,,परन्तु उसका यह चिंतन सामायिक और वर्तमान परस्थितियों को लेकर ही होता है समाज और रास्ट्र पर व्यवस्था परिवर्तन के द्वारा पड़ने वाले दीर्घ गामी प्रभाव को लेकर ये वर्ग मौन होता है अल्प प्रबुद्ध वर्ग में आता है ) द्वारा व्यवस्था परिवर्तन के समर्थन को आंख बंद कर के ही देखता है ,--- यदि पुरानी व्यवस्था असंगत और शोषक है तो यह वर्ग उसके शोषण को तो महसूश करता है और उसके परिवर्तन की उत्कंठा भी रखता है परन्तु यह बिना चिंगारी का ईधन है ,जो आग को जलाए तो रख सकता है परन्तु जिसमे आग उत्पन करने की क्षमता नहीं है यही वो वर्ग है जो दोनों वर्गों ( प्रबुद्ध और अल्प प्रबुद्द वर्ग ) द्वारा आसानी से अपने साथ जोड़ा जा सकता है ,,, इस वर्ग द्वारा राष्ट्रीयता रास्ट्र वाद और रास्ट्र भक्ति की कोई स्वनिर्धारित व्याख्या नहीं होती . यह विभिन्न वर्गों द्वारा निर्धारित रास्ट्र वाद की व्याख्याओ के अनुसार अपने आप को रास्ट्रवादी सिद्ध करने का प्रयाश करता रहता है,,, अब यहाँ जो मुख्य बात पर दिखती है वह यह है की समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग रास्ट्र वाद के स्पस्ट और तर्क पूर्ण अर्थ से ही अनभिग्य है तिस पर विभिन्न राजनैतिक और सामाजिकदलों ने
अपने फायदे के हिसाब से रास्ट्र वाद की मनगढंत व्यखाये करके कोढ़ में खाज का काम किया है ,, जिससे बहुत बड़ा और दीर्घ गामी नकारात्मक प्रभाव समाज पर पड़ा ,और आम जन की रूचि अस्मिता और आत्म गौरव से जुड़े इन शब्दों से हट गयी ,, इन शब्दों को इतना गूढ़ कर दिया गया की ये शब्द भारी साहित्य की तरह नीरश और भारी लगने लगे जिनका प्रयोग लिखने पढने और बोलने तक ही रह गया और आम जन का जुड़ाव इन शव्दों से ख़त्म होने लगा ,, जब की सीधे शव्दों में देखा जाए तो अपनी अस्मिता और पहिचान को बचाए रखने के लिए नकारात्मक व्यवस्था परिवर्तन का विरोध ही प्रखर रास्ट्र वाद है ,,और यही सच्ची रास्ट्र भक्ति है . क्यों की रास्ट्र वादिता है तो रास्ट्र है और रास्ट्र है तो राष्ट्रीयता और यही रास्ट्रीयता हमारी पहिचान है ,, तो इन अर्थो में रास्ट्र वाद कोई गूढ़ विषय न होकर वयक्तिक विषय है जो सीधे सीधे व्यक्ति विशेष से जुड़ा है,, रास्ट्र वाद की व्याख्या में दो सबसे महत्पूर्ण अवयव है रास्ट्र और जन ,, रास्ट्र संस्क्रति , अध्यात्म ,धर्म दर्शन तथा भूखंड का वह भाग है जिसमे जन निवास करते है ,,, जन किसी भी रास्ट्र में रहने वाले मनुष्यों का वह समूह जो उस रास्ट्र की सांस्क्रतिक ,अध्यात्मिक, धार्मिक और इतिहासिक पहिचान की ऱक्षI करते हुए और उससे गौरव प्राप्त करते हुए निरंतर उस रास्ट्र की प्रगति और उत्थान के लिए प्रयाश रत रहता है जन कहलाता है ,, यहाँ ये ध्यान देने योग्य बात है की किसी भी रास्ट्र की भौगोलिक सीमाए परिवर्तनीय हो सकती है परन्तु किसी रास्ट्र का आस्तित्व तभी तक है जब तक उसकी सांस्क्रतिक और अध्यात्मिक पहिचान जिन्दा है जिसके ख़त्म होते ही रास्ट्र विलुप्त हो जाता है , और वह केवल भूखंड का एक टुकड़ा मात्र रह जाता है . यही सांस्क्रतिक धार्मिक और अध्यात्मिक पहिचान जन में राष्ट्रीयता का बोध कराती है, परन्तु एक जो चीज सबसे महत्व पूर्ण है वह ये है की रास्ट्र और जन एक दुसरे के पूरक तो है, परन्तु रास्ट्र सर्वोच्च है , जन के पतन से रास्ट्र का शनै शनै पतन तो होता है परन्तु रास्ट्र के पतन से जन का सर्व विनाश हो जाता है , अतः रास्ट्र की सर्वोच्चता और अस्तित्व को बनाये रखना प्रत्येक जन का कर्तव्य है क्यों की रास्ट्र है तो जन , रास्ट्र प्रेम की यही भावना रास्ट्र वाद है जिसमे व्यक्तिगत हितो को तिरोहित करके संघ समाज समूह के विस्तर्त वर्ग में अपना हित देखा जाता है,,यही त्याग की भावना रास्ट्रवादी होने का गौरव प्रदान करती है ,, अगर इसे सीधे शब्दों में देखे तो अपनी पुरातन उर्ध गामी व्यवस्था संस्क्रति और गौरव को बचाए रख कर प्रगति के मार्ग पर बढ़ना ही सच्चा रास्ट्र वाद है-- , यही राष्ट्रीयता की भी सच्ची पहिचान है ,,जो आज कल विभिन्न राजनैतिक दलों संगठनों द्वारा प्रचारित रास्ट्र वाद की व्याख्या से सर्वथा अलग है , अगर हम विभिन्न राजनैतिक दलों और संगठनों द्वारा प्रचारित रास्ट्र वाद का विश्लेषण करे तो तो हम यही पाते है की उनके द्वारा प्रचारित रास्ट्र वाद अधूरा रास्ट्र वाद है, और वे पूर्ण रास्ट्र वादिता का समर्थन नहीं करते ,,क्यों की कोई भी वाद एक के द्वारा स्वीकार्य तथा दूसरे के द्वारा अस्वीकार्य और दूसरे के द्वारा स्वीकार्य और पहले के द्वारा अस्वीकार्य हो कर प्रखर रास्ट्र वाद की व्याख्या नहीं कर सकता ,,,,,,
इसे हम धर्म से भी नहीं जोड़ सकते ,क्यूँ की हम किसी विशेष धर्म को रास्ट्र वादी और दूसरे को रास्ट्र विरोधी तब तक नहीं मान सकते जब तक उस धर्म के मानने वाले रास्ट्र वाद की परिक्षI में पास या फेल नहीं होते , अब हम फिर उसी विषय पर आ जाते है की आखिर रास्ट्र वाद है क्या ?क्या किसी एक वर्ग विशेष द्वारा प्रतिपादित मानको को पूरा करना रास्ट्र वाद है या फिर दूसरे वर्ग द्वारा निर्धारित मानको को पूरा करना सच्चा रास्ट्र वाद है ,,,इसे हम आधुनिक परिपेक्ष में सबसे विवादस्पद विषय वन्दे मातरम को ले कर देख सकते है , एक वर्ग विशेष इसके गायन को प्रखर रास्ट्र वाद और इसके विरोध को रास्ट्र द्रोह मानता है , वही दूसरा वर्ग इसके गायन की बाध्यता को धार्मिक स्वतन्त्रता का हननमानता है,, अब इन दोनों में किसे रास्ट्र वादी कहा जाए और किसे नहीं ,,यहअपर मै अपने विचार स्पस्ट करना चाहूँगा " की किसी व्यक्ति के अन्दर रास्ट्र वाद को डर ,भय ,प्रलोभन और बाध्यता के द्वारा नहीं पैदा किया जा सकता है , यह वो भावना है जो व्यक्तिगत स्वार्थ से ऊपर उठ कर आत्म गौरव और सामाजिक त्याग से शुरू होती है ,,जो केवल और केवल जाग्रति के द्वारा ही संभव है , मै नहीं मानता की जो वन्देमातरम नहीं गाते वो रास्ट्र वादी नहीं और न मै ये मानता हूँ की जो वन्देमातरम गाते है वो प्रखर रास्ट्र वादी है ,,रास्ट्र वाद एक भावनात्मक जुड़ाव है जो संस्क्रति के प्रति महसूस होने वाले गौरव के रक्षIर्थ स्वत उत्पन्न होता है ,,ये बाध्यता नहीं है परन्तु आस्तित्व का संघर्ष है ,,अतः रास्ट्र वादिता के विराट स्वरूप को किसी गीत संगीत या दलगत राजनीति के मानको में ढालना उचित नहीं है ,,,रास्ट्र वाद आस्तित्व की पहिचान है ,,,जो जाति समाज वर्ग, धर्म और संघ से ऊपर उठी हुई त्याग की एक भावना है जो पूर्णता पुष्ट होने पर बलिदान में परिवर्तित हो जाती है ,,रास्ट्र वाद की उस श्रेष्ठता में पहुचने पर व्यक्तिगत आबश्यकताये व्यक्तिगत पहिचान , और व्यक्ति विषेयक सारे नियम रास्ट्र के हित में तिरोहित हो जाते है यही प्रखर रास्ट्र वाद की अति है ,, जो धर्म जाति और वर्ग संघर्ष से ऊपर है ,,रास्ट्र वादिता में जो एक चीज मुख्य रूप से दिखाई देती है वो हैआत्म त्याग की निस्वार्थ भावना ,, क्यूँ की इसके न रहते हुए रास्ट्र वाद की बात नहीं की जा सकती ,, जहा रास्ट्र जन के सम्मान पहिचान और गौरव के लिए उत्तरदायी होता है,, और जहाँ जन रास्ट्र के इतिहास प्रगति और उत्थान से गौरव पाते है,,वही रास्ट्र की सांस्क्रतिक विरासत को बनाये रखना और रास्ट्र को निरंतर प्रगति के पथ पर बढ़ाये रखना प्रत्येक जन का परम कर्तव्य होता है ,,,,,
इसे हम इस प्रकार समझ सकते है ,,की जन का एक वर्ग जहा रास्ट्र के लिए प्रगति और उत्थान कर उसके गौरव को निरंतर चर्मौत्कर्ष पर ले जाता है ,,वही दूसरा वर्ग रास्ट्र की संस्क्रति विरासत और इतिहास को सभाल कर आने वाले पीढ़ी को गौरवान्वित करने की व्यवस्था करता है,,और आने बाली पीढ़ी अपने गौरवान्वित इतिहास सेआत्म संबल प्राप्त कर के रास्ट्र के उत्थान में नित नए आयाम स्थापित करती है ,,,अतः रास्ट्र वादिता उत्थान की सीढ़ी है ,,,और चर्मोत्कर्स पर पहुचने का तरीका है

बिना रास्ट्र के जन अस्तित्व हीन है अतः आस्तिव को बचाए रख ने के लिए रास्ट्र वादिता नितांत आवश्यक है ,,,परन्तु रास्ट्र वादिता प्रलोभन नहीं है वह स्वीक्रति है, निर्भरता नहीं है उन्नति है ,,,, और प्रखर रास्ट्र वादिता से नित नयी उन्नति की जा सकती है और उन्नति के लिए नए आयाम स्थापित किये जा सकते है ,,,अतः रास्ट्र वादिता और प्रगति की प्रचलित वो धारणा की रास्ट्र वादिता में संस्क्रति और इतिहास के संरक्षण के कारण रास्ट्र वादिता प्रगति के मार्ग में बाधक है और प्रगति से रास्ट्र वादिता खो जाती है,,नितांत भ्रामक है,,,अतः रास्ट्र वादिताऔर प्रगति दोनों एक दूसरे के पूरक है ,,,प्रगति के नए आयामों के संयोजन के बिना तथा पुराने गौरव को बचाए बिना रास्ट्र को बचाना मुश्किल है ,,,अतः प्रखर रास्ट्र वादिता के लिए प्रगति वादिता आवश्यक है ,,परन्तु यह भी ध्यान रखना होगा की प्रगति वादिता के मानक रास्ट्र के गौरव मय इतिहास और संस्क्रति को ध्यान में रख कर ही तय करने होगे वही सच्ची रास्ट्र भक्ति होगी और वही सच्ची रास्ट्र वादिता होगी अंत में दो शब्दों के साथ मै अपनी लेखनी को विराम देता हूँ ,,,
"जिस व्यक्ति के अन्दर अपनी संस्क्रति सभ्यता और इतिहास को सजोने की क्षमताऔर प्रगति के नित नए आयाम स्थापित करने की तत्परता नहीं है वो न तो रास्ट्र वादी है और न ही प्रगति वादी है वो निरे पशु के सिवा कुछ भी नहीं है " ,

संघ का अंतर्द्वंद्व - भाजपा का अस्तित्व

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) दावा तो सांस्कृतिक संगठन होने का करता है परन्तु उसने भारत की बहुलतावादी संस्कृति एवं सहअस्तित्व की भावना से हमेशा परहेज ही किया। उसके गैर-राजनीतिक होने के दावे की हकीकत से देश का बच्चा-बच्चा वाकिफ है। बाजपेई और आडवाणी 85 वर्ष के करीब हो गये, वे अपनी उम्र और भूमिका दोनों का सफर तय कर चुके हैं। उनके शरीर नश्वर हैं..... समाप्ति की ओर अग्रसर। लेकिन भाजपा की आत्मा - ”राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघभी 85 साल की होने के बावजूद तो स्वयं को मृतप्रायः स्वीकार करने को तैयार और ही अपने राजनीतिक संस्करण भाजपा को ही।
सत्ता में आने के लिए भाजपा बार-बार अपनी आत्मा यानी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के घोषित सोच के साथ समझौता करने के बावजूद राजनीतिक क्षितिज पर पराभव की ओर अग्रसर है। अपने राजनीतिक संस्करण की इस दुर्दशा पर बहुत चिन्तित है संघ। बड़ी कुलबुलाहट, बड़ी छटपटाहट का शिकार है संघ। पूर्व संघ प्रमुख के.सी.सुदर्शन भाजपा नेतृत्व से शिकायतें करते ही रह गये कि भाजपा सत्ता के नशे में परिवार के योगदान को भुला बैठी। भागवत संघ परिवार के मुखिया बनने के बाद लोकसभा चुनावों में पार्टी की पराजय को बर्दाश्त नहीं कर सके। अपनी 60वीं वर्षगांठ की ओर अग्रसर भागवत चीख उठे - ”बदलाव जरूरी है।समाचार माध्यमों एवम् राजनीतिक हल्कों में भाजपा ने कुलबुलाहट को शान्त करने का प्रयास किया। राजनाथ सिंह पार्टी में आन्तरिक लोकतंत्र के नाम पर मामले को शान्त करते नजर आये। वे पार्टी के जिस आंतरिक लोकतंत्र की दुहाई दे रहे थे, पूरा देश उसके अस्तित्वहीन होने से परिचित है।
आखिर 18 दिसम्बर को वह घड़ी ही गयी जब संघ के प्रतिनिधि के तौर पर गडकरी ने भाजपा की शीर्षसत्ता यानी उसके अध्यक्ष पद पर आसीन हो गये। भागवत के निर्देशन मेंहेडगेवार भवनमें भाजपा को एक बार फिर जिन्दा रखने के लिए जो ब्लूप्रिन्ट तैयार किया गया था, उसको अगली जामा पहनाया जाने लगा।
गडकरी की क्या पहचान होगी? उनके सामने पार्टी की लगभग वही स्थिति है तो सन 1984 में भाजपा की थी। संघ का स्वास्थ्य हमेशा जन-मानस के रूधिर से ही पनपता रहा है। तब संघ को अयोध्या में एक प्रतीक नजर गया। उस प्रतीक के झुनझुने को लाल कृष्ण आडवाणी को एक रथ पर बैठा कर पकड़ा दिया गया। वे पूरे देश में उस झुनझुने को बजा-बजाकर आवाम की शान्ति-चैन छीनने निकल पड़े क्योंकि फासिस्ट संघ के राजनीतिक संस्करण भाजपा को जीने के लिए तमाम लाशों की जरूरत थी। उधर संघ परिवार अपने अन्य अनुषांगिक संगठनों के साथ मिलकर अयोध्या के प्रतीक को ध्वंस करने के ब्लूप्रिन्ट को अमली जामा पहनाने की तैयारी करता रहा। उस दौर में पूरे देश में काफी लाशें गिराने में संघ और भाजपा सफल रहे। उन लाशों से गुजर कर आखिरकार भाजपा को एक नया जीवन मिल गया। केन्द्र में सत्तासीन होने का उसका रास्ता प्रशस्त हुआ था परन्तु वह 24 पार्टियों का सर्वमान्य नेता कथित उदारमना अटल बिहारी बाजपेई के नाम पर सहमत होने पर ही सम्भव हो सका था।
उस दौर ने जनता के सामने संघ परिवार की सोच को साफ-साफ पेश कर दिया था। उसके इस चेहरे से भी जनता अब परिचित हो गयी है।
अब देखना होगा कि गडकरी के हाथ में भागवतहेडगेवार भवनसे कौन सा झुनझुना और कैसा रथ भेजते हैं। हमें सतर्क रहना होगा क्योंकि मृतप्रायः भाजपा को नया जीवनदान देने के लिए संघ फिर लाशों की राजनीति करने से नहीं हिचकेगा। हम जनता से यही गुजारिश कर सकते हैं कि जागते रहो और फासिस्ट संघ की नई चाल से सतर्क रहो।
ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि अयोध्या के प्रतीक रूपी झुनझुने की अवधारणा तैयार करने के पहले संघ परिवार ने सत्तर के दशक से अस्सी के दशक के मध्य तक कई पैतरों का इस्तेमाल किया था। पहले उन्होंने स्वामी विवेकानन्द को अपनाने का प्रयास किया परन्तु स्वामी विवेकानन्द के शिकागो के ऐतिहासिक भाषण की यह लाईनें किभूखों को धर्म की नहीं रोटी की जरूरत होती हैभाजपा के रास्ते पर आकर खड़ी हो गईं। फिर उन्होंने शहीदे-आजम भगत सिंह को अपना प्रतीक बनाने का प्रयास किया तो भगत सिंह का खुद को नास्तिक घोषित करने का मामला भाजपा के आड़े गया। तब उन्होंनेगांधीवादी समाजवादका प्रलाप शुरू किया तो जनता ने गांधी के हत्यारे के रूप में भाजपा को चित्रित कर उसे लोकसभा में दो सीटों तक पहुंचा दिया। सम्भव है शुरूआती दौर में संघ एक बार फिर इस तरह के प्रतीकों का इस्तेमाल करने की असफल कोशिश करे परन्तु अन्तोगत्वा उसे जिन्दा रहने के लिए लाशों की ही जरूरत पड़ेगी। उसका इतिहास तो यही बताता है।
- प्रदीप तिवारी

सुरेश गोयल की नियुक्ति

सिरसा: ओल्ड बस स्टैण्ड मार्किट वैल्फेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष नरेश मेहता ने एसोसिएशन की कार्यकारिणी का विस्तार करते हुए पुराना बस स्टैण्ड स्थित विकास मैडिकोज के संचालक एवं प्रमुख समाजसेवी सुरेश कुमार गोयल को एसोसिएशन का वरिष्ठ उपप्रधान नियुक्त किया है। नरेश मेहता ने कहा कि श्री गोयल की नियुक्ति से मार्किट की समस्याओं को निपटाने में तीव्रता आएगी तथा यह पद उन्हें उनकी निष्ठा व मार्किट के हित में रूचि के चलते सौंपा गया है। इस अवसर पर नवनियुक्त उपप्रधान सुरेश गोयल ने एसोसिएशन का इस पद हेतु आभार व्यक्त किया तथा आश्वासन दिया कि वे इस पद को पूर्ण जिम्मेदारी से निभाएंगे तथा मार्किट के हितों के प्रति हमेशा प्रयासरत रहेंगे।