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31.10.09

लो क सं घ र्ष !: कहीं सी आई ऐ के नौकर तो नही हैं ?

अपने देश में अंग्रेज व्यापारी बनकर आए थे और यहाँ के लोगों को लालच देकर उपहार देकर, घूष देकर देश के ऊपर कब्जा कर लिया थाउन्ही नीतियों से सबक लेकर अमेरिकन साम्राज्यवाद एशिया के मुल्को को गुलाम बनाने के लिए कार्य कर रहा हैअफगानिस्तान के राष्ट्रपति हामिद करजई के भाई अहमद वली करजई को सी आई पिछले आठ सालों से वेतन दे रही है और अमेरिका की कठपुतली सरकार अफगानिस्तान में हैइसके पूर्व इराक़ में भी अमेरिकन साम्राज्यवादी लोग पत्रकारों, टेक्नोक्रेट्स , नौकरशाहो , न्यायविदों को रुपया देकर अपनी तरफ़ मिला कर इराक़ पर कब्जा किया था और ताजा समाचारों के अनुसार पाकिस्तान में अमेरिकन खुफिया एजेन्सी सी आई पैसा बाँट रही है और अपनी तरफ़ लोगों को कर रही हैपाकिस्तान में उसकी कठपुतली सरकार तो है लेकिन लोकतांत्रिक व्यवस्था द्वारा चुनी गई सरकार है अमेरिकन साम्राज्यवाद जनता द्वारा चुनी गई सरकारों की मुख्य दुश्मन हैमुंबई आतंकी घटना के बाद अमेरिकी खुफिया एजेन्सी एफ बी आई और इजराइल की खुफिया एजेन्सी मोसाद अपने देश में कार्य कर रही हैनिश्चित रूप से सी आई अपना कोई भी हथकंडा छोड़ने वाली नही है और अपने हितों के लिए इस देश के बुद्धजीवी तबको में से कुछ स्वार्थी तत्वों को रुपया लालच देकर कार्य करने के लिए प्रेरित कर सकती हैइस लिए आवश्यक यह है की इनकी गतिविधियों पर सख्त निगाह रखी जाए इनके हथकंडो से सावधान रहने की जरूरत हैक्योंकि यह लोग सी आई के लोग प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से लोगों को खरीद कर अपनी कठपुतली सरकारें बनाए का कार्य करती है


सुमन
loksangharsha.blogspot.com

30.10.09

लो क सं घ र्ष !: बुदबुदाते, खदबदाते, भरे बैठे लोगों को व्यंग्य वार्ता का आमंत्रण

प्रिय साथियो!
चलिये समाज की कुरीतियों, विसंगतियों, झूठ व आडम्बर पर प्रहार करें। हमारे औजार हमारी संवेदनाएं, हमारी अनुभूतियां, हमारे अनुभव होंगे और इनको जो धार देगा निस्संदेह वह व्यंग्य होगा। आईये हमसे हाथ मिलाइये और करिए समाज की सफाई; क्योंकि अब ‘व्यंग्यवार्ता’ का शुभारम्भ हो चुका है। संभावित दूसरा अंक पुलिस विशेषांक होगा। कमर कसिए, कलम घिसिए और भेज दीजिए अपनी चुटीली रचनाएं। हम उन सभी का स्वागत करते हैं जिनकी मुट्ठी अभी भी भिचतीं है और जो समाज को सुन्दर, बेहतर और स्वस्थ देखना चाहते हैं..........।

शुभकामनओं सहित...!
आपका मित्र
अनूप मणि त्रिपाठी
सम्पादक
व्यंग्यवार्ता
24, जहाँगीराबाद मेंशन, हजरतगंज, लखनऊ, उत्तर प्रदेश
09956789394, 09451907315

anoopmtripathi@gmail.com

atulbhashasamwad@gmail.com


लोकसंघर्ष के सभी मित्रों से अनुरोध है की लखनऊ से प्रकाशित व्यंग वार्ता पत्रिका में अपने लिखे व्यंग भेजने का कष्ट करें ।

सुमन
loksangharsha.blogspot.com

लो क सं घ र्ष !: नोबुल पुरस्कार विजेता नए अर्थशास्त्री ? पुराने ख्यालात की री पैकेजिंग

योरप केंद्रित बुद्धि फिर एक बार उजागर हुई जब स्वेडिस साइंस अकादमी ने अमेरिकी अर्थशास्त्री ऑलिवर विलियम्सन और एलिनर आस्त्राम को इस वर्ष के नोबेल पुरस्कार से नवाजा । सामूहिक संपत्ति और अर्थ प्रबंधन के क्षेत्र में तथाकथित नए सिद्धांत का आविष्कार के लिए इन दोनों अर्थ शास्त्रियो को नोबेल पुरस्कार दिया गया है। यह वैसा ही आविष्कार है, जैसा किसी समय किताब में छापकर स्कूली बच्चों को पढाया जाता था की कोलाम्बस और वास्को डी गामा ने भारत की खोज की, जबकि कोलंबस और वास्को डी गामा के पैदा होने के हजारो वर्ष पहले भी भारत अस्तित्व में था। योरप केंद्रित बुद्धि का यह एक नमूना है की जिस दिन योरापियों को भारत का रास्ता मालूम हुआ उसी दिन को वे भारत का आविष्कार मानते है।

सर्विदित है की नेपाल में तुलसी मेहर और भारत में गाँधी जी ने विकेन्द्रित स्वावलंबी ग्रामीण अर्थव्यवस्था का समेकित सिद्धांत विकसित किया । इसका उन्होंने कई क्षेत्रो में सफल प्रयोग भी किया। इस साल जब गाँधी जी की मशहूर पुस्तक हिंद स्वराज के प्रकाशन के सौ वर्ष पूरे होने की स्वर्ण जयंती मनाई जा रही है, तब स्वेडिस साइंस अकादमी को दो अमेरिकी अर्थशास्त्री के हवाले से पता चलता है की भारत और नेपाल में सामूहिक संपत्ति का सामूहिक नियमन किस प्रकार किया जा रहा है । तुलसी मेहर ने, जिन्हें 'नेपाल का गाँधी' कहा जाता था और स्वयं गाँधी जी ने सरकार और कारपोरेट से विलग ग्रामवासियों के अभिक्रम जगाकर स्थानीय श्रोत्रो पर आधारित समग्र विकास का वैकल्पिक विकेन्द्रित स्वावलंबी ग्राम व्यवस्था का तंत्र विकसित किया था। अखिल भारतीय चरखा संघ इसका उदाहरण था, जिसका नेटवर्क पूरे देश में फैला । बाद में विनोबाजी ने इस व्यवस्था का प्रयोग 'ग्रामदान' आन्दोलन के मध्यम से किया। डेढ़ सौ साल पहले काल मार्क्स ने मूल प्रस्थापना पेश की की उत्पादक शक्तियों का स्वामित्व समाज में निहित होना चाहिए । मार्क्स उत्पादन की शक्तियों पर समाज का सामाजिक स्वामित्व स्वाभाविक मानते थे, क्योंकि पूरा समाज इसका परिचालन करता है सम्पूर्ण समाज के लिए। राष्ट्रीयकरण सामाजिक स्वामित्व का स्थान नही ले सकता। राष्ट्रीयकरण को स्टेट काप्लेलिज्म कहा जाता है। क्म्मयुनिज़म में राज्य सत्ता सूख जाती है, फलत: सरकार का कोई स्थान नही होता है। साम्यवादी अवस्था में उत्पादन और वितरण व्यवस्था की भूमिका समाज का स्थानीय तंत्र निभाएगा।

भारत के प्रत्येक ग्राम में सामूहिक इस्तेमाल के लिए 'गैर मजरुआ आम' जमींन है, जिसका सामूहिक उपयोग गाँव की सामूहिक राय से होती है। राष्ट्रीय सैम्पल सर्वे के मुताबिक भारत की कुल भगौलिक क्षेत्र का 15 प्रतिशत ऐसी ही सामूहिक संपत्ति है, जिसका सामूहिक उपयोग चारागाह , तालाब, सिंचाई और जलावन की लकड़ी इकठ्ठा करने के लिए किया जाता है। यह बात अलग है कि सरकारी नीतियों के चलते ऐसी सामूहिक संपत्ति का नियंत्रण या तो सरकार ने स्वयं अधिग्रहण कर लिया है या सरकारी हलके में उसका प्रबंधन इधर किसी निजी कंपनी/संस्थान के हवाले करने की सरकारी प्रवित्ति बलवती हो गई है।
नेपाल के कतिपय गाँवों की सिंचाई व्यवस्था मछली पालन, चारागाह, तालाब प्रबंधन देखकर आस्त्राम ने सिद्धांत निकला की "सामूहिक संपत्ति का प्रबंधन इस संपत्ति के उपभोक्ताओं के संगठनों द्वारा किया जा सकता है।" उसी तरह ऑलिवर विलियम्सन निष्कर्ष निकला है कि विवादों के समाधान के लिए मुक्ति बाजार व्यवस्था से ज्यादा सक्षम संगठित कंपनियाँ होती हैं । विलियमन कहते है की मुक्त बाजार में झगडे और असहमतियां होती हैं। असहमति होने पर उपभोक्ता बाजार में उपलब्ध अन्य वैकल्पिक उत्पादों की तरफ़ मुद जातें हैं , किंतु मोनोपाली मार्केट की स्तिथि में खरीदार के समक्ष कोई विकल्प नही रहता । ऐसी स्तिथि में संगठित ट्रेडिंग फर्म्स स्वयं विवाद का संधान करने में सक्षम होती हैं। इस प्रकार विलियम्सन मुक्त बाजार को नियमित करने के लिए कंपनियों की भूमिका रेखांकित करते हैं । कंपनियाँ आपसी सहमति का तंत्र विकसित कर बाजार के विरोधाभाषों पर काबू पा सकते हैं । यहाँ यह ध्यान देने की बात है की आस्त्राम और विलियम्सन दोनों ही सरकारी हस्तचेप और सरकारी नियमन की भूमिका नकारते हैं और वे मुक्त बाजार व्यवस्था के विरोधाभासों के समाधान के लिए पूर्णतया निजी ट्रेडिंग कंपनियों के विवेक पर निर्भर हो जाते हैं।

लोकतंत्र में आम लोगों की निर्णायक भूमिका होती है वे अपनी मर्जी की सरकार चुनते हैं । ऐसी स्तिथि में बाजार को विनियमित कमाने के लिए सरकार की भूमिका के अहमियत है। लोकतंत्र में सरकारी नियमन लोक भावना की सहज अभिवयक्ति है। किंतु इसे स्वीकार करने में दोनों अर्थशास्त्रियों को परहेज है। जाहिर है, स्वेडिस साइंस अकादमी मूल रूप में शोषण पर आधारित निजी व्यापार की आजादी का पक्षधर है और मुक्त बाजार व्यवस्था में सरकारी हस्तक्षेप का विरोधी है। इसलिए नोबेल पुरस्कार प्राप्त दोनों ही अर्थशास्त्रियों की तथाकथित 'नई खोज' पूँजी बाजार समर्थक पुराने ख्यालात की री पैकेजिंग है।

सत्य नारायण ठाकुर

सुमन
loksangharsha.blogspot.com

मगर शर्म इनको नहीं आती-बालको चिमनी कांड

सितम्बर  माह की २३ तारीख कई मजदूरों के लिए काल बनकर आई. कई घरों में घरों में अँधेरा कर गई, कईयों के घर का चिराग बुझा गई, अपरान्ह ३.४० मिनट को वेदान्त बालको पावर प्लांट विस्तार परियोजना कोरबा(छत्तीसगढ़)की निर्माणाधीन चिमनी धराशायी हो गई, जिसमे लग-भग-४५ मजदूरों की मौत हो गयी. कम्पनी का मालिक अभी तक फरार है.पुलिस उसे ढूंढ़ रही है. दूसरी चिमनी में भी घथिया निर्माण सामग्री लगे होने का आरोप लगने के पश्चात् आई.आई.टी रुढ़की एक प्रोफेसर जे.प्रसाद को दुर्घटना के बाद बालको प्रबंधन ने दुर्घटना के कारणों की पड़ताल करने के लिए बुलाया था और इस बालको के प्रायोजित प्रोफेसर ने आते ही आनन फानन में कह दिया कि आकाशीय बिजली गिरने के कारण यह दुर्घटना हुयी है. जब इस बयान पर हल्ला मचा कि बालको प्रबंधन के प्रभाव में आकर बिना किसी जाँच पड़ताल के दुर्घटना को प्राकृतिक हादसा बताया और दूसरी चिमनी को सुरक्षित घोषित कर दिया . पुलिस अधीक्षक रतनलाल दांगी ने इस बयान पर संज्ञान लेते हुए उन्हें नोटिस भेजा.जिसके जवाब में उन्होंने कहा कि घटन स्थल पर जो जानकारी लोगों ने दी थी उसके आधार पर मैंने यह बयान दिया था.इस बयान की जबरदस्त प्रतिक्रिया हो रही है.किसी को समझ में नहीं आया कि एक सदस्यीय कमेटी ने एक बार ही निरिक्षण के बाद कैसे बालको प्रबंधन को क्लीन चिट दे दी. आई.आई टी दिल्ली के प्रोफेसर डाक्टर एस.एस.सिन्हा की रिपोर्ट भी शक के दायरे में है. इन्होने भी जी.डी.सी.एल के द्वारा उपलब्ध करी जानकारी के आधार पर ही अंतिम निष्कर्ष दे दिया था. यह सब न्यायिक जाँच को भटकाने के लिए किया जा रहा है. क्या उन मृतकों के गरीब परिवारों को न्याय मिल पायेगा और दोषियों को सजा हो पायेगी. ये एक यक्ष प्रश्न है.इतने मज्दोरों की मौत के बाद इस दुर्घटना को प्रकितिक हादसा बताने इनको शरम नहीं आती. 

(चित्र नवभारत से साभार)

29.10.09

कपास सेदक कीट-स्लेटी भुंड

स्लेटी भुंड जिला जींद में कपास का नामलेवा सा हानिकारक कीट है। लेकिन "घनी सयानी दो बर पोया करै" अख़बारों में पढ़ कर अपनी फसल में कीडों का अंदाजा लगाने वाले किसानों की इस जिला में भी कोई कमी नहीं है। भारी ज्ञान के भरोटे तलै खामखाँ बोझ मरते थोड़े जाथर वाले किसान इस स्लेटी भुंड को ही सफ़ेद मक्खी समझ कर धड़ाधड़ अपनी फसल में स्प्रे करते हुए आमतौर पर मिल जायेगें। इसमें खोट किसानों का भी नहीं है। एक तो घरेलु मक्खी व इस भुंड का साइज बराबर हो सै। दूसरी रही रंग की बात। स्लेटी अर् सफ़ेद रंग में फर्क करना म्हारे हरियाणा के माणसां के बस की बात कोन्या। लील देकर पहना हुआ सफ़ेद कुर्ता भी दो दिन में माट्टी अर् पसीने के मेल से स्लेटी ही बन जाता है। इसीलिए तो रंगों व कीटों की पहचान का कार्य यहाँ के किसानों को बुनियाद से ही सिखने की आवश्यकता है। कीट ज्ञान व पहचान की बुनियाद पर ही कीट नियंत्रण का मजबूत महल खड़ा हो सकता है अन्यथा कीट-नियंत्रण रूपी रेत के महल पहले भी ताश के पत्तों की तरह ढहते रहे हैं और आगे भी ढहते रहेगें।यह स्लेटी भुंड कपास की फसल के अलावा बाजरा, ज्वार व अरहर की फसल में भी नुकशान करते हुए पाया जाता है। इस कीट का प्रौढ़ पौधों के जमीन से ऊपरले व गर्ब ज़मीन के निचले हिस्सों पर नुक्शान करता है। इस कीट की दोनों अवस्थाए पौधों की विभिन्न हिस्सों को कुतरकर व चबाकर खाती हैं। इस कीट का प्रौढ़ पत्तों या फूलों की पंखुडियों के किनारे नोच कर खाता है। यह पुंकेसर भी खा जाता है जबकि इसका गर्ब पौधों की जडें खाता है। कुलमिलाकर यह कीट कपास की फसल में अपनी उपस्थिति तो दर्ज कराता है मगर फसल में इसका कोई उल्लेखनीय नुकशान नहीं होता। इसीलिए तो इसे सफ़ेद मक्खी समझ कर किसानों को खेत में मोनो, क्लोरो, एसिफेट व कानफिडोर जैसे घातक कीटनाशकों के साथ लटोपिन होने की जरुरत नहीं होती। आतंकित हो कर भलाखे में किए गये कीटनाशक स्प्रे किसान व स्लेटी-भुंड, दोनों के लिए खतरनाक होते हैं।खानदानी परिचय: स्लेटी भुंड को द्विपदी प्रणाली मुताबिक कीट विज्ञानी माइलोसेर्स प्रजाति का भुंड कहते है इसके कुल का नाम कुर्कुलिओनिडि होता है। इस कीट की मादाएं पौण महीने की अवधि में लगभग साढे तीन सौ अंडे जमीन के अंदर देती हैं। इन अण्डों का रंग क्रीमी होता है जो बाद में मटियाला हो जाता है। अंडो का आकार एक मिलीमीटर से कम ही होता है। तीन-चार दिन की अवधि में अंड-विस्फोटन हो जाता है तथा इसके शिशु अण्डों से बाहर निकल आते है। इस कीट के शिशु जिन्हें विज्ञानी गर्ब कहते हैं, जमीन के अंदर रहते हुए ही पौधों की जड़े खाकर गुजारा करते हैं। मौसम के मिजाज व भोजन की उपलब्धता अनुसार इनकी यह शिशु अवस्था 40 -45 दिन की होती है। इन शिशुओं के शरीर का रंग सफ़ेद व सिर का रंग भूरा होता है। इनके शरीर की लम्बाई लगभग आठ मिलीमीटर होती है। स्लेटी भुंड का प्यूपल जीवन सात-आठ दिन का होता है। प्युपेसन भी जमीं के अंदर ही होतीहै। इसका प्रौढिय जीवन गर्मी के मौसम में दस- ग्यारह दिन का तथा सर्दी के मौसम में चार-पांच महीने का होता है। सर्दी के मौसम में यह कीट अडगें में छुपा बैठा रहता है। कपास की फसल में तो फूलों की शुरुवात होने पर ही दिखाई देने लगता है।

28.10.09

विश्वसनीयता किसने खोई - इ वि ऍम मशीन ने , जनता ने या फिर राजनेताओं ने !

हाल ही मैं तीन राज्यों के चुनाव परिणाम आने पर राजनीतिक पार्टियों द्वारा विश्वसनीयता पर प्रश्न चिह्न खड़ा किया गया जहाँ कोई वी एम मशीन की विश्वसनीयता पर प्रश्न चिह्न खड़ा कर रहा है तो कोई जनता की विश्वसनीयता पर तो , वहीं जनता राजनेताओं की विश्वसनीयता पर पहले से ही प्रश्नचिंह खड़ा कर रही है अब किस बात पर कितनी सच्चाई है यह गौर करने वाली बात है
जहाँ वी एम् मशीन की विश्वसनीयता पर बात करें तो पहले भी इस बात पर सवाल खड़े किया जा चुके हैं। दूसरी ओर यह भी बात है कि वी एम् मशीन पूरी तरह छेड़ छाड रहित और त्रुटी रहित है ऐसा कोई प्रमाण भी अभी तक सार्वजानिक अवं प्रमाणिक रूप से नही दिया गया है जिससे यह साबित हो सके कि वी एम् मशीन को पूर्णतः त्रुटिरहित और अविश्वसनीय माना जा सके जब इस तरह की कोई वस्तु जो देश के निष्पक्ष जनमत संग्रह का माध्यम हो और लोकतंत्र क्रियान्वयन मैं महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हो की विश्वसनीयता पर उंगली उठने लगे तो जरूरी है कि ऐसी बातों की अनसुनी करने की बजाय उठने वाली आशंकाओं एवं भ्रमों को विराम देने एवं अविश्वसनीयता को निराधार साबित करने हेतु प्रयास तो अवश्य ही किए जाने चाहिए
इस चुनाव मैं नई बात यह सामने आई की पक्ष मैं आशा अनुरूप और वांछित परिणाम मिलने पर राजनीतिक पार्टियों और राजनेताओं द्वारा जनता को अविश्वसनीय कहा गया जबकि जनता के निर्णय को सही और जायज मानते हुए उसे सिरोधार्य करने की परम्परा देश के लोकतंत्र मैं रही है एवं भविष्य मैं अपनी गतिविधियाँ और क्रियाकलापों पर आत्म अवलोकन करने और भूल सुधार करने की बात होती रही है किंतु अपनी असफलताओं का दोष जनता के सर मढ़ने का यह पहला बाकया है
इन दोनों बातों से इतर अब जनता की बात करें तो उनके लिए राजनेताओं और राजनीतिक पार्टियाँ दिन प्रतिदिन अपने विश्वसनीयता खोती जा रही है जिस विशवास एवं आशा से जन प्रतिनिधि चुने जाते हैं उस अनुरूप ये अपनी जिम्मेदारी के निर्वहन मैं पूर्णतः खरे नही उतर रहे हैं एक बार चुने जाने के बाद अपने क्षेत्र मैं दुबारा मुड़कर नही देखना नही चाहते हैं , अपनी आय श्रोतो से अधिक उतरोत्तर वृद्धि करते हैं गरीबी , भ्रष्टाचार , एवं अशिक्षा , बेरोजगारी जैसे आम जनता से जुड़े मुद्दे पर बात करने की बजाय स्वयं एवं अपने पूर्वज नेताओं की मूर्तियों बनाने मैं , शहरों के नाम बदलवाने मैं , क्षेत्रियाँ वैमनष्य फैलाने मैं और छोटी छोटी बातों मैं धरना , जुलुश और हिंसक प्रदर्शन करने मैं आगे रहते हैं
यह अनसुलझा प्रश्न है कि विश्वसनीयता किसने खोई - वि ऍम मशीन ने , जनता ने या फिर राजनेताओं ने किंतु इन प्रश्नों का सर्वमान्य हल खोजना देश के लोकतंत्र के हित मैं अति आवश्यक है

गायब युगल फांसी के फंदे पर लटकता मिला


जींद (हरियाणा)
गांव सफाखेड़ी में संदिग्ध परिस्थितियों के चलते मंगलवार रात एक युगल की मौत हो गई। दोनों के शव गांव में ही चौबारे में फांसी के फंदे पर लटकते पाए गए। परिजनों ने घटना की सूचना पुलिस को दिए बगैर दोनों का अंतिम संस्कार कर दिया। घटना की सूचना पाकर मौके पर पहुंची पुलिस तथा मीडियाकर्मियों को लाठियों, जैलियां, गंडासियों से लैस ग्रामीणों ने गांव में नहीं घुसने दिया। जब तक दोनों के शव पूरी तरह नहीं जल गए तब तक ग्रामीणों ने पूरे गांव की घेराबंदी जारी रखी। पुलिस अधीक्षक सतीश बालन तथा नरवाना के एसडीएम नरहरि बांगड़ उचाना थाना से ही स्थिति पर नजर रखे रहे। पुलिस ने युवक तथा युवती के परिजनों के खिलाफ हत्या तथा शवों को खुर्द बुर्द करने का मामला दर्ज कर छानबीन शुरू कर दी है।
गांव सफाखेड़ी निवासी नन्हू उर्फ नन्हड़ (२२) तथा गांव की ही युवती बिट्‌टू (२०) के बीच काफी समय से प्रेम प्रसंग चला आ रहा था। बिट्‌टू के परिजनों ने उसकी शादी गांव थुआ में तय की हुई थी। बृहस्पतिवार को बिट्‌टू की बारात आनी थी। मंगलवार शाम को बिट्‌टू शौच के लिए घर से निकली थी। उसके बाद वह गायब हो गई। काफी देर तक घर न लौटने पर बिट्‌टू के परिजन नन्हू के घर पहुंचे और बिट्‌टू के बारे में पूछताछ की। लेकिन नन्हू भी घर से गायब मिला। दोनों के परिजनों ने पूरी रात उनकी तलाश की। लेकिन उनका कोई सुराग नहीं लगा। बुधवार सुबह बिट्‌टू तथा नन्हू के शव नन्हू के चौबारे में पंखे पर फांसी के फंदे पर लटकते पाए गए।
ग्रामीणों ने दोनों के शवों को फांसी के फंदे से उतारकर शमशान घाट ले गए और पुलिस को इतलाह दिए बगैर अंतिम संस्कार कर दिया। न ही दोनों पक्षों की तरफ से किसी ने पुलिस को शिकायत दी। युगल की संदिग्ध मौत की सूचना पाकर पुलिस तथा मीडियाकर्मियों ने गांव में पहुंचने का प्रयास किया। मगर ग्रामीण लाठियां, जैलियां और गंडासी लेकर गांव से बाहर निकल आए और पुलिस तथा मीडियाकर्मियों को खदेड़ दिया। ग्रामीण तब तक गांव की घेराबंदी किए रहे जब तक दोनों केशव पूरी तरह नहीं जल गए। पुलिस गांव के दोनों और लगभग दो किलोमीटर दूर मुチय मार्ग पर खड़ी रही। बाद में पुलिस अधीक्षक सतीश बालन तथा नरवाना के एसडीएम उचाना थाना पहुंचे और गांव के कुछ मौजिज व्यक्तियों को बुलाकर उनके साथ पूरे प्रकरण पर बातचीत की। उधर, पुलिस ने दोनों पक्षों के लोगों केखिलाफ हत्या तथा शवों को खुर्द बुर्द करने का मामला दर्ज कर छानबीन शुरू कर दी है।