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4.8.09

“आज मेरी दादीमाँ का श्राद्ध है

आज मेरी दादीमाँ का श्राद्ध है, आज तो मेरी मम्मी ने अच्छे अच्छे पकवान
बनाये होंगे। ख़ीर पूरी, लड्डू। मज़ा आयेगा घर जाकरपिन्टु बोला। शाम को
तूँ मेरे घर आयेगा?
अच्छा आउंगा,”कल शबेबारत है ? मेरे दादा का भी कल फ़ातिहा है कल मुज़े
भी हलवा पुरी ख़ाने को मिलेगा। तूँ भी मेरे घर आना।राजा ने कहा।
शाम को राजा पिन्टु के घर पहोंचा। पिन्टु कि मम्मी ने राजा को खीर पूरी,
लड्डू, दिये। पिन्टु ने राजा से कहाचल छत पर खेलेंपिन्टु और राजा छत
पर खेलने लगे। खेलते खेलते बॉल राजा के हाथ से छुट गइ।, और सीढी से नीचे
की और लुढकने लगी। भागता हुआ राजा नीचे की तरफ उतरने लगा। बॉल सीढी से
सटे कमरे में चली गइ। राजा कमरे की और बढा, दरवाज़ा थोडा ख़ुला सा था।
आतुरता वश राजा ने दरवाज़े को धीरे से खोला। कमरे में अँधेरा था। कुछ बदबु
सी रही थी। राजा ने अपने हाथों से टटोलकर बॉल को ढुंढ लिया और जल्दी से
बाहर कि तरफ भागने लगा। भागते भागते उसके पैर से कोइ चीज़ टकरा गइ।कौन
है वहां”? किसी बिमार कि आवाज कानों में लगी। और कमरे में लाइट जलने लगी।
राजा ने देखा कि एक बूढा आदमी पलंग पर लेटा हुआ था। पलंग के नजदीक छोटा
सी एक टिपोइ रखी थी। एल्युमिनीयम की प्लेट में एक लड्डु आधा खाया हुआ। एक
कटोरी में ख़ीर थोडी प्लेट में ढुली हुई थी। बूढा आदमी कमज़ोर, बिमार लग
रहा था। कमरे की बदबू ही बता देती थी कि कमरे में बहोत दिनों से सफ़ाइ
नहिं हुई।
राजा भागता हुआ कमरे से बाहर निकल आया। इतने में पिन्टु भी वहां आगया।
क्या बॉल मिली? चल खेलें कहकर पिंन्टु राजा को फ़िर से छत पर ले गया। पर
राजा का अब मूड नहिं रहा था। उसने पिंन्टु से पूछा तेरे घर में कौन कौन
हैं?
पिन्टु बोला मैं मम्मी पापा और दादाजी।‘ “पर मैने तेरे दादा को तो नहिं
देखा कहां हैं वो?
वो बिमार हैं, एक बात बताउं राजा! मेरे दादा पहले बिमार नहिं थे। मेरी
दादी के मर जाने के बाद वो बिमार रहने लगे। तूं किसी से कहना मत पर मेरी
मम्मी उन्हें बहोत परेशान करती है। दादी के साथ भी यही होता रहा
था।पिन्टु ने गंभीर स्वर में कहा।तेरे पापा को ये सब पता था?” राजा
बोला।नहिं ! पापा पहले ज़्यादातर बाहर टुर पर ही रहते थे। उनके आने पर
भी दादा दादी कुछ नहिं कहते थे।पता है जब दादी मर गइ तब मेरे दादा बहोत
रोये थे। अभी भी अकेले अकेले रोते है। मुज़े बड़ा तरस आता है अपने दादा
पर, क्या करुं मैं भी मम्मी से डरता हुं। किसी किसी बहाने मुज़े वो पापा
कि डाँट ख़िलाती रहती है।पिन्टु की आंखें भर आईं। ये मम्मी पापा कैसे होते
हैं राजा? पहले तो हमारे बुज़ुर्गों से पराये सा व्यवहार करते हैं फ़िर
उनके मरने के बादश्राद्ध”, औरफ़ातिहाका नाटक करते है।“ ”मगर मेरी
अम्मी अब्बू ने तो मेरे दादा दादी के साथ ऐसा नहिं किया।?” एक मान भरे
स्वर में राजा ने कहा।‘ ”तूं नसीबदार है राजा! मुज़े तो अब मेरी मम्मी पर
भी तरस रहा है कि वो भी जब किसी की सास बनेगी तो क्या उसकी बहु भी
मम्मी के साथ ऐसा ही करेगी?”पिन्टु नम्र स्वर में बोला।पता नहिंचल
बहोत देर हो गई है। अब्बू गुस्सा हो जायेंगे राजा बोलाकल तूं भी मेरे
घर ज़रूर आना। हलवा खाएंगे साथ मिलकर रातभर राजा करवटें बदलता रहा। उसे
पिन्टु की हर बात याद रही थी। छोटा सा दिमाग बडी बडी बातों में उलज़ रहा
था। अचानक उसे कुछ डरावना ख़याल आया। तन पर ओढी हुइ चादर दूर हटाकर एकदम
दौडा अपनी दादी के कमरे की और.. दादी अम्मा एनक़ लगाये क़ुरानशरीफ़ कि
तिलावत कर रही थी। शायद दादाअब्बा की रुह के सवाब के लिये। उसने एक रुख़
अपने अम्मी अब्बू के कमरे कि तरफ़ किया।
दोनों बेख़बर सो रहे थे।

3.8.09

सोशल नेटवर्किंग साइट्स से कैंसर का खतरा

लंदन। अगर आप फेसबुक या माय स्पेस जैसी ऑनलाइन कम्युनिटीज साइट्स का लगातार इस्तेमाल करते हैं तोहो सकता है कि भविष् में आपको कुछ समस्याओं का सामना करना पड़े। एक रिपोर्ट के मुताबिक इन साइट्स काज्यादा इस्तेमाल करने से कैंसर होने का खतरा बढ़ सकता है।एक साइंस मैग्जीन में छपी रिपोर्ट में दावा कियागया है कि इन वेबसाइट्स पर लगातार जाने से कैंसर, लकवा और मेमोरी लॉस होने का खतरा बढ़ सकताहै।मनोचिकित्सक एरिक सिगमैन ने एक रिपोर्ट में कहा कि दोस्तों से मुलाकात करने के बजाय उन्हें ईमेल करनेका व्यापक बायो-साइंटिफिक असर हो सकता है। इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता, हार्मोन के लेवल और धमनियों केकामकाज पर असर पड़ता है। इतना ही नहीं मानसिक क्षमता भी प्रभावित हो सकती है, जिससे कैंसर, लकवा औरमेमोरी लॉस जैसी गंभीर बीमारियां होने का खतरा बढ़ जाता है।सिगमैन ने कहा कि ये वेबसाइट्स लोगों के बीचआपसी संपर्क बढ़ाने के उद्देश्य से बनाई गई हैं, लेकिन ये लोगों में अकेलापन बढ़ा रही हैं। शोध बताते हैं कि 1987 से लोगों के आमने-सामने बात करने के घंटों में काफी कमी आई है क्योंकि इलेक्ट्रॉनिक माध्यम का इस्तेमाल बढ़गया है। ‍‍ ‍‍

मर चुकी मानवीय संवेदनाएं

हमारे समाज मे आज लगता है मानवीय संवेदना मर चुकी है, जिसका सीधा-सीधा उद्धरण आज उस समय देखने कोमिला जब जीन्द में जोगिन्दर नगर के पास से जाने वाली रेलवे लाइन के पास एक १६ साल की युवती का गलाघोटकर नगन अवस्था मे फेंक रखा था। युवती के हाथ पर मिस पूजा लिख रखा है। जिस हालत मे युवती
की लाश मिली है, उससे ऐसा लगता है कि युवति के साथ दुष्कर्म करने के बाद उसकी गला घोट कर हत्या कर रखीहै। आस-पास के लोग भी बोलने को कुछ तैयार नही है। आज दिन निकलने के बाद किसी ने हिम्मत करके रेलवेपुलिस को इसकी सूचना दी। माना जा रहा है कि हत्या रात के अंधेरे में हुई होगी। रेलवे पुलिस मृतका के परिजनों कीतलाश मे लगी है। फोरेंसिक टीम ने भी मौके का निरीक्षण कर लिया है। अब देखना है कि यह कांड किसी प्रेम प्रसंगके चलते हुआ है यह फिर कोई और ही बात है।

2.8.09

कलम


है बड़ा उसमें जो दम।

चल पडे उसके कदम।

देखो क्या करती कलम।

कभी होती है नरम।

कभी होती है गरम।

देखो क्या करती कलम।

छोड देती है शरम।

खोल देती है भरम।

देखो क्या करती कलम।

कभी देती है ज़ख़म।

कभी देती है मरहम।

देखो क्या करती कलम।

कभी लाती है वहम।

कभी लाती है रहम।

देखो क्या करती कलम।

कभी बनती है नज़म।

कभी बनती है कसम।

देखो क्या करती कलम।

लिख्नना है उसका धरम।

चलना है उसका करम।

देखो क्या करती कलम।

आओ युद्ध की गरिमा सुनावही ,,,,,,,,(कविता)


आओ युद्ध की गरिमा सुनावही,,

रुण्ड मुण्ड सब मिल गावही,,,

छावही मरू भूमि रुण्ड ते ,,,,,

मुण्ड मुण्ड उडावही,,,,,,

गावही मरू गीत कोई ……

।मरू द्वंद कोई बजावही,,,,,

कोई छावही कोई जावही …

कोई जोर जोर चिल्लावही,,,,,

कोई हाथ बिनु मारही …॥

कोई मुख बिनु चिल्लावाही …

कोई पैर बिनु आबही ,,

कोई ,कोई पैरबिनु जावाही ,,,,,

जुंड जुंड आवही ,,,

मरू नीद सोवही॥

स्वान गीत गावही ,,,

काग गीत गावही…

गिद्ध नोच नोच के,

आतडी खावही,,,

झुंड के झुंड चील नर मुण्ड खावही…।

खावही विखरावही गीत भोज गावही ,,,,

स्वान नोचे पांव तो आंख काग खावही,,

ले जावही नभ में ,,,,

कोई नभ ते गिरावही,,,

झपटी झपटी धावही

झपटी लै जावही ,,,

मरे मरे खावही अधमरे नुचावही,,,,,,

हाय हाय चिल्लावही कोई ना सुनावही…

रोवही चिल्लावही हाथ ना हिलावही,,,

खुलत झपट आंख काग लै जावही…।

चीख चीख के अधमरे,

जियति मांस स्वान खावही …॥

मनो रंक भिखारी आजु राज भोज पावही …

आओ युद्ध की गरिमा सुनावही ,,,,,,,,

1.8.09

प्रहर





अंधेरे हैं भागे प्रहर हो चली है।

परिंदों को उसकी ख़बर हो चली है।


सुहाना समाँ है हँसी है ये मंज़र।

ये मीठी सुहानी सहर हो चली है।


कटी रात के कुछ ख़यालों में अब ये।

जो इठलाती कैसी लहर हो चली है।


जो नदिया से मिलने की चाहत है उसकी।

उछलती मचलती नहर हो चली है।


सुहानी-सी रंगत को अपनों में बाँधे।

ये तितली जो खोले हुए पर चली है।


है क़ुदरत के पहलू में जन्नत की खुशबू।

बिख़र के जगत में असर हो चली है।


मेरे बस में हो तो पकडलुं नज़ारे।

चलो राज़ अब तो उमर हो चली है।




" स्वाइन - फ्लू और समलैंगिकता [पुरूष] के बहाने से "

" स्वाइन - फ्लू और समलैंगिकता [पुरूष] के बहाने से "


किसी अखबार में कोर्ट - रूलिंग के बारे में पढ़ा था उसकी भाषा कुछ ऐसी थी जैसे कोर्ट का होमोसेक्स्सुअल्टी या समलैंगिकता के पक्ष में निर्णय देना तथा शासन द्वारा सम्बंधित सजा की धारा समाप्त करना नैसर्गिक एवं प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के आधार पर किया गया महान कार्य है | अगर समाचार-पत्र द्वारा उल्लिखित भाषा और निर्णय आदि की भाषा एक ही है ,
"तो फिर हमें सोचना पड़ेगा की नैसर्गिक एवं प्राकृतिक का वास्तविक अर्थ क्या हैं ? क्या वो जो कुछ बीमार सोच वाली मानसिकता के लोग परिभाषित कर रहे हैं ,या वो जो इस ' प्रकृति ' द्वारा हमें ' नैसर्गिक ' रूप से दिया या प्रदत्त किया गया है ?"
कहीं अति आधुनिक एवं तथा कथित प्रगति शील कहलाने की अंधी दौड़ में हम अपने पैरों पर कुल्हाडी तो नहीं मारे ले रहें हैं ,जब की अभी तक प्रकृति के साथ की गयी अपनी मूर्खताओं की अलामाते मानव - समाज भुगत रहा है ,फिर भी उसकी आंखे नहीं खुल रहीं हैं |||

ज्ञात सृष्टि में केवल मानव प्रजाति ही एक ऐसी प्रजाति है, जो बारहों मास अपनी इच्छानुसार यौन-क्रिया में सक्षम है जब की अन्य सभी का ऋतु-काल होता है और प्रकृति इस के द्वारा उनकी पजाति का वंशवर्धन व अग्रवर्धन कराती है ,यौन क्रीडा में आनन्द अन्य जीवों को भी आता ही होगा | परन्तु यह मानव प्रजाति ही है जो केवल और केवल मात्र अपने आनन्द के लिए ही रति-क्रीडा करती है ,और उस आनंद को बढाने हेतु नित नए एवं कृत्रिम तरीकों का भी अविष्कार करती रहती है ; यह '' होमोसेक्सुएलिटी '' भी उसी क्रम में आती है | यहाँ तक उसका स्वर्ग और जन्नत भी सेक्स रहित नहीं है वहां भी हूरें या अप्सराएँ है |
ब्रेकिंग न्यूज
किसी समाचार-पत्र में अभी हाल में यह समाचार पढ़ा उसमें उल्लेख था कि
'' डी यु '' , इसका पूर्ण रूप तो आप में से जिसके मतलब की यह ख़बर हो वह ख़ुद ढूंढे ; हाँ ख़बर में प्रोफेसर शब्द आने के कारण मैं ''यु '' का मतलब युनवर्सिटी मान रहा हूँ | हाँ तो '' युनवर्सिटी '' के एक प्रोफेसर [ डाक्टरेट है ] ने अपने किसी तथा- कथित बयान में कोर्ट तथा विधायिका द्वारा इस संदर्भित विषय के पक्ष जो भी निर्णय लिए है उस पर प्रसन्नता प्रकट की है , अरे भाई चौंकिए मत प्रोफेसर साहब अपने लिए नही अपने होनहार कुल -भूषण '' सपूत '' , भाई जब पूर्वज कह ही गए हैं '' लीक छोड़ चले तीन ,'शायर सिंह सपूत ' तो प्रकृति द्वारा निर्धारित लीक छोड़ने के कारण ''सपूत '' ही तो हुए ; के लिए , एक सुंदर - सुशील - होंनहार बहू , '''सपू ''' के लिए एक अर्धांगिनी ??? अरे नही भाई आप गलत समझ रहे हैं ,सही शब्द यहाँ पर ''' अर्धंगना ''' होगा , भाई मैं यहाँ भ्रमित हूँ कि सही शब्द क्या होगा , अगर आप की समझ में आजाये तो मुझे भी बतावें ||
है कोई योग्य स्त्रै लड़का की निगाह में ???
पूर्ण विवरण गत दिनों के किसी हिन्दी समाचार में ढूंढें यह सूचना वहीं से साभार उठाई गई है |

वैसे जान लें कि भारतीय समाज में यह ' विशिष्टता '' पहले से थी ज्योतिष के प्राचीन ग्रंथों में कुछ ग्रह स्थिति और योग होने पर पुरुष समलैंगिकता का फलित कहा गया है , और जहाँ तक याद रहा है अबदुर्र रहीम 'खानखाना' साहेब ने भी अपनी ज्योतिष्य की छोटी सी पुस्तक '' खेतु कौतुकम् " में भी एक दो दोहे इस संभावना पर '' हिन्दी फारसी संस्कृत मिक्स '' भाषा में कहे हैं ||
श्री काशिफ़ आरिफ़/Kashif आरिफ ने भी हिन्दी ब्लोगिंग की देन पर ' कुरान शरीफ का हवाला दिया है ' ||


वैसे पुरुष -समाज के लिए एक जानकारी और चेतावनी :--
ज्यादा वैज्ञानिक विवरण में जाते हुए संक्षेप में बता रहा हूँ 'पुरानी लोकोक्ति कि पोस्ट -कार्ड को तार समझाना की समझदारी ही से पढें :-->

''पुरषों में ''पुंसत्व '' का निर्धारण करने वाले ''जेनोमिक गुण सूत्रों '' कि संख्या खतरनाक ढंग से खतरनाक स्तर तक कम हो चुकी हैं और यह प्रक्रिया आगे भी जारी रहने की पूर्ण संभावनाएं पाई जा रहीं हैं ; जब कि स्त्रियों में ऐसा कोंई विशेष परिवर्तन नहीं सामने आया है | अतः पुरुष समाज सवधान रहें या नही अगले एक हजार से पॉँच-छः हजार साल बाद पुरुष के स्थान पर केवल " नाना पाटेकर के डाएलोग ' एक मच्छर आदमी को [पुरुषों के सन्दर्भ में ] .......वाली बिरादरी ही बचेगी , और फिर क्योंकि पुरुष संतान होगी नहीं अतः कुछ दिनों में पुरुष नामक प्रजाति का '' कुरु कुरु स्वाहाः '' हो जायेग और यह धरती ,शौकत थानवी के उपन्यास वाला परन्तु वास्तविक "ज़नानिस्तान " बन के रह जायेगी परन्तु वहाँ पुरुष तो थे पर व्यवस्थाएं उलट थीं ||
हाँ यह भी हो सकता है की जब भी उत्पन हो एक ही पुरूष संतान हो जिसे समाज की मुखिया या रानी अपने ' ' इस्तेमाल 'के लिए आलराईटस रिज़र्व' स्टाइल '' में रख ले ? चीटियों मधु -मक्खियों के तरीके से ? तब उस पुरूष के लिए युद्घ नही महायुद्ध हुआ करेंगे ,जिसपर ' गाथाएं ' लिखी जाया करेंगी ?
अभी तक तो औरों का कहा दोहरा रहा था अब मेरी बात, वैसे यह भी मेरा नहीं है शास्त्रों का ही कहा है परन्तु ईश्वरवादी हूँ अतः इसे ही मेरा ही विचार समझें '' शास्त्रों में कहा गया है कि जब - जब पृथ्वी का भार बढ़ जाता वह पुकार लगाती है '' तो भगवान पहले पृथ्वी का भार किसी प्रकार से जैसे हैजा [कालरा ] प्लेग , ताउन , रोज - रोज छोटे-राजाओं [ एक गाँव के चक्रवर्ती सम्राटों ] के मध्य मूंछ ऊँची नीची , कुत्ते की पूंछ की छोटी-बड़ी जैसी बातों पर युद्ध आदि से जिसमें गाँव के गाँव ,नगर के नगर आबादी विहीन हो जाते थे ,द्वारा इस का प्रबंधन कर दिया करते थे || हाँ अगर इससे भी काम न चले तो महाभारत करा के भार कम कर दिया करते थे ; अरे भाई आबादी कम होगी तो भार भी तो कम होगा ; प्रति व्यक्ति आप औसत ७६ किलो मान ही सकते हैं |
वैस पहले देव दानव के युद्ध समान्य सी बात थी , जब तक ''अमृत '' का अविष्कार हुआ नहीं था | दानवों की ओर से शुक्राचार्य मृत-संजीवनी विद्या के साथ थे अतः जब देवता हार कर थक-थका जाते या ब्रेक टाइम आ जाता तो पृथ्वी वासियों को अपनी ओर से '' वरदान नामक गिफ्ट पॅकेज '' का करार कर भेज देते थे आदि-आदि;" परन्तु अब लगता है कि यह सब कारगर नहीं रहा तो उपर वाला डैमेज कंट्रोल में स्वाइन-फ्लू , होमोसेक्स्सुअलिटी के वायरस भेज रहा है "
कुरु कुरु स्वाहा