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1.8.09

प्रहर





अंधेरे हैं भागे प्रहर हो चली है।

परिंदों को उसकी ख़बर हो चली है।


सुहाना समाँ है हँसी है ये मंज़र।

ये मीठी सुहानी सहर हो चली है।


कटी रात के कुछ ख़यालों में अब ये।

जो इठलाती कैसी लहर हो चली है।


जो नदिया से मिलने की चाहत है उसकी।

उछलती मचलती नहर हो चली है।


सुहानी-सी रंगत को अपनों में बाँधे।

ये तितली जो खोले हुए पर चली है।


है क़ुदरत के पहलू में जन्नत की खुशबू।

बिख़र के जगत में असर हो चली है।


मेरे बस में हो तो पकडलुं नज़ारे।

चलो राज़ अब तो उमर हो चली है।




" स्वाइन - फ्लू और समलैंगिकता [पुरूष] के बहाने से "

" स्वाइन - फ्लू और समलैंगिकता [पुरूष] के बहाने से "


किसी अखबार में कोर्ट - रूलिंग के बारे में पढ़ा था उसकी भाषा कुछ ऐसी थी जैसे कोर्ट का होमोसेक्स्सुअल्टी या समलैंगिकता के पक्ष में निर्णय देना तथा शासन द्वारा सम्बंधित सजा की धारा समाप्त करना नैसर्गिक एवं प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के आधार पर किया गया महान कार्य है | अगर समाचार-पत्र द्वारा उल्लिखित भाषा और निर्णय आदि की भाषा एक ही है ,
"तो फिर हमें सोचना पड़ेगा की नैसर्गिक एवं प्राकृतिक का वास्तविक अर्थ क्या हैं ? क्या वो जो कुछ बीमार सोच वाली मानसिकता के लोग परिभाषित कर रहे हैं ,या वो जो इस ' प्रकृति ' द्वारा हमें ' नैसर्गिक ' रूप से दिया या प्रदत्त किया गया है ?"
कहीं अति आधुनिक एवं तथा कथित प्रगति शील कहलाने की अंधी दौड़ में हम अपने पैरों पर कुल्हाडी तो नहीं मारे ले रहें हैं ,जब की अभी तक प्रकृति के साथ की गयी अपनी मूर्खताओं की अलामाते मानव - समाज भुगत रहा है ,फिर भी उसकी आंखे नहीं खुल रहीं हैं |||

ज्ञात सृष्टि में केवल मानव प्रजाति ही एक ऐसी प्रजाति है, जो बारहों मास अपनी इच्छानुसार यौन-क्रिया में सक्षम है जब की अन्य सभी का ऋतु-काल होता है और प्रकृति इस के द्वारा उनकी पजाति का वंशवर्धन व अग्रवर्धन कराती है ,यौन क्रीडा में आनन्द अन्य जीवों को भी आता ही होगा | परन्तु यह मानव प्रजाति ही है जो केवल और केवल मात्र अपने आनन्द के लिए ही रति-क्रीडा करती है ,और उस आनंद को बढाने हेतु नित नए एवं कृत्रिम तरीकों का भी अविष्कार करती रहती है ; यह '' होमोसेक्सुएलिटी '' भी उसी क्रम में आती है | यहाँ तक उसका स्वर्ग और जन्नत भी सेक्स रहित नहीं है वहां भी हूरें या अप्सराएँ है |
ब्रेकिंग न्यूज
किसी समाचार-पत्र में अभी हाल में यह समाचार पढ़ा उसमें उल्लेख था कि
'' डी यु '' , इसका पूर्ण रूप तो आप में से जिसके मतलब की यह ख़बर हो वह ख़ुद ढूंढे ; हाँ ख़बर में प्रोफेसर शब्द आने के कारण मैं ''यु '' का मतलब युनवर्सिटी मान रहा हूँ | हाँ तो '' युनवर्सिटी '' के एक प्रोफेसर [ डाक्टरेट है ] ने अपने किसी तथा- कथित बयान में कोर्ट तथा विधायिका द्वारा इस संदर्भित विषय के पक्ष जो भी निर्णय लिए है उस पर प्रसन्नता प्रकट की है , अरे भाई चौंकिए मत प्रोफेसर साहब अपने लिए नही अपने होनहार कुल -भूषण '' सपूत '' , भाई जब पूर्वज कह ही गए हैं '' लीक छोड़ चले तीन ,'शायर सिंह सपूत ' तो प्रकृति द्वारा निर्धारित लीक छोड़ने के कारण ''सपूत '' ही तो हुए ; के लिए , एक सुंदर - सुशील - होंनहार बहू , '''सपू ''' के लिए एक अर्धांगिनी ??? अरे नही भाई आप गलत समझ रहे हैं ,सही शब्द यहाँ पर ''' अर्धंगना ''' होगा , भाई मैं यहाँ भ्रमित हूँ कि सही शब्द क्या होगा , अगर आप की समझ में आजाये तो मुझे भी बतावें ||
है कोई योग्य स्त्रै लड़का की निगाह में ???
पूर्ण विवरण गत दिनों के किसी हिन्दी समाचार में ढूंढें यह सूचना वहीं से साभार उठाई गई है |

वैसे जान लें कि भारतीय समाज में यह ' विशिष्टता '' पहले से थी ज्योतिष के प्राचीन ग्रंथों में कुछ ग्रह स्थिति और योग होने पर पुरुष समलैंगिकता का फलित कहा गया है , और जहाँ तक याद रहा है अबदुर्र रहीम 'खानखाना' साहेब ने भी अपनी ज्योतिष्य की छोटी सी पुस्तक '' खेतु कौतुकम् " में भी एक दो दोहे इस संभावना पर '' हिन्दी फारसी संस्कृत मिक्स '' भाषा में कहे हैं ||
श्री काशिफ़ आरिफ़/Kashif आरिफ ने भी हिन्दी ब्लोगिंग की देन पर ' कुरान शरीफ का हवाला दिया है ' ||


वैसे पुरुष -समाज के लिए एक जानकारी और चेतावनी :--
ज्यादा वैज्ञानिक विवरण में जाते हुए संक्षेप में बता रहा हूँ 'पुरानी लोकोक्ति कि पोस्ट -कार्ड को तार समझाना की समझदारी ही से पढें :-->

''पुरषों में ''पुंसत्व '' का निर्धारण करने वाले ''जेनोमिक गुण सूत्रों '' कि संख्या खतरनाक ढंग से खतरनाक स्तर तक कम हो चुकी हैं और यह प्रक्रिया आगे भी जारी रहने की पूर्ण संभावनाएं पाई जा रहीं हैं ; जब कि स्त्रियों में ऐसा कोंई विशेष परिवर्तन नहीं सामने आया है | अतः पुरुष समाज सवधान रहें या नही अगले एक हजार से पॉँच-छः हजार साल बाद पुरुष के स्थान पर केवल " नाना पाटेकर के डाएलोग ' एक मच्छर आदमी को [पुरुषों के सन्दर्भ में ] .......वाली बिरादरी ही बचेगी , और फिर क्योंकि पुरुष संतान होगी नहीं अतः कुछ दिनों में पुरुष नामक प्रजाति का '' कुरु कुरु स्वाहाः '' हो जायेग और यह धरती ,शौकत थानवी के उपन्यास वाला परन्तु वास्तविक "ज़नानिस्तान " बन के रह जायेगी परन्तु वहाँ पुरुष तो थे पर व्यवस्थाएं उलट थीं ||
हाँ यह भी हो सकता है की जब भी उत्पन हो एक ही पुरूष संतान हो जिसे समाज की मुखिया या रानी अपने ' ' इस्तेमाल 'के लिए आलराईटस रिज़र्व' स्टाइल '' में रख ले ? चीटियों मधु -मक्खियों के तरीके से ? तब उस पुरूष के लिए युद्घ नही महायुद्ध हुआ करेंगे ,जिसपर ' गाथाएं ' लिखी जाया करेंगी ?
अभी तक तो औरों का कहा दोहरा रहा था अब मेरी बात, वैसे यह भी मेरा नहीं है शास्त्रों का ही कहा है परन्तु ईश्वरवादी हूँ अतः इसे ही मेरा ही विचार समझें '' शास्त्रों में कहा गया है कि जब - जब पृथ्वी का भार बढ़ जाता वह पुकार लगाती है '' तो भगवान पहले पृथ्वी का भार किसी प्रकार से जैसे हैजा [कालरा ] प्लेग , ताउन , रोज - रोज छोटे-राजाओं [ एक गाँव के चक्रवर्ती सम्राटों ] के मध्य मूंछ ऊँची नीची , कुत्ते की पूंछ की छोटी-बड़ी जैसी बातों पर युद्ध आदि से जिसमें गाँव के गाँव ,नगर के नगर आबादी विहीन हो जाते थे ,द्वारा इस का प्रबंधन कर दिया करते थे || हाँ अगर इससे भी काम न चले तो महाभारत करा के भार कम कर दिया करते थे ; अरे भाई आबादी कम होगी तो भार भी तो कम होगा ; प्रति व्यक्ति आप औसत ७६ किलो मान ही सकते हैं |
वैस पहले देव दानव के युद्ध समान्य सी बात थी , जब तक ''अमृत '' का अविष्कार हुआ नहीं था | दानवों की ओर से शुक्राचार्य मृत-संजीवनी विद्या के साथ थे अतः जब देवता हार कर थक-थका जाते या ब्रेक टाइम आ जाता तो पृथ्वी वासियों को अपनी ओर से '' वरदान नामक गिफ्ट पॅकेज '' का करार कर भेज देते थे आदि-आदि;" परन्तु अब लगता है कि यह सब कारगर नहीं रहा तो उपर वाला डैमेज कंट्रोल में स्वाइन-फ्लू , होमोसेक्स्सुअलिटी के वायरस भेज रहा है "
कुरु कुरु स्वाहा

31.7.09

कभी सांझ ढले आना.....

बचपन के दिन

कसूर होता किसका है?

न्यूज़ : हरियाणा- जींद बरसोला स्टेशनों के बीच ट्रेन से गिरकर एक आदमी की मौत हो गई। मृतक की पहचान नही हो सकी है। रेलवे पुलिस मृतक की पहचान मे लगी है। रात को जींद-बरसोला के बीच पंजाब की तरफ़ से आनेवाली ट्रेन से गिरकर एक आदमी मौत हो गई।

व्यूज़ : जिंदगी को सुलभ बनाने के लिए
वैज्ञानिक आविष्कार किए जाते हैं, नए-नए साधन अविष्कृत होते हैं, परन्तु कईं बार इनका प्रयोग करते हुए इन्सान का जीवन सुलभ होने की बजाय दुर्लभ हो जाता है बल्कि कईं बार तो जीवन-लीला ही समाप्त हो जाती है। विचारणीय विषय यह है कि आखिर क़ुसूर होता किसका है; ख़ुद का अथवा उस साधन का ?

यादें !



पीछे मुड़ के हमने जब देखा, गुज़रा वो ज़माना याद आया।

बीती एक कहानी याद आई, बीता एक फ़साना याद आया।.....पीछे.


सितारों को छूने की चाहत में, हम शम्मे मुहब्बत भूल गये।(2)

जब शम्मा जली एक कोने में, हम को परवाना याद आया।.....पीछे.


शीशे के महल में रहकर हम, तो हँसना-हँसाना भूल गये।(2)

पीपल की ठंडी छाँव तले वो हॅसना-हॅसाना याद आया।.....पीछे.


दौलत ही नहीं जीने के लिये, रिश्ते भी ज़रूरी होते हैं।(2)

दौलत ना रही जब हाथों में, रिश्तों का खज़ाना याद आया।.....पीछे.


शहरों की जगमग-जगमग में, हम गीत वफ़ा के भूल गये।(2)

सागर की लहरॉ पे हमने, गाया था तराना याद आया।.....पीछे.


चलते ही रहे चलते ही रहे, मंज़िल का पता मालूम न था।(2)

वतन की वो भीगी मिट्टी का अपना वो ठिकाना याद आया।.....पीछे.


अपनों ने हमें कमज़ोर किया, बाबुल वो हमारे याद आये।(2)

कमज़ोर वो आंखों से उनको वो अपना रुलाना याद आया।.....पीछे.


अय “राज़” कलम तूं रोक यहीं, वरना हम भी रो देंगे।(2)

तेरी ये ग़ज़ल में हमको भी कोई वक़्त पुराना याद आया।.....पीछे.

कवि राजविन्दर से रुबरू

पंजाबी लिखारी सभा नंगल, पंजाबी रंग मंच नंगल एवं अक्षर चेतना मंच नया नंगल द्वारा संयुक्त रूप से एक भव्य साहित्यक समारोह का आयोजन नया नंगल के आनंद भवन क्लब के सभागार मे 29 जुलाई की शाम को किया गया। इसका प्रयोजन जर्मनी से पधारे वहाँ के राज कवि {पोईट लोरियल} श्री राजविन्दर का सम्मान् एवं रुबरू था।समारोह का शुभारम्भ मुख्य अतिथी स. लखबीर सिह जी{S.D.M.}एवं स.हरनीत सिंह हुन्दल{D.S.P} स.निरलेप सिंह {मुख्य अभियंता } N.F.L.nangal unit श्री राकेश नैयर प्रमुख व्यवसायी, स़. हरफूल सिंह नामवर कवि, श्री ग्यान चंद {तहसीलदार} द्वारा शमा रोशन करके किया गया। श्री संजीव कुरालिया द्वारा कार्यक्रम की संक्षिप्त रूप रेखा बताने के बाद टी.वी. कलाकार नंगल के श्री. पम्मी हंसपाल ने श्री राजविन्दर की गज़ल गाकर महौल को शायराना बना दिया। श्रीमति अरुणा वालिया ने मधुर आवाज़ मे दो गज़लें,`राजस्थानी मांड` एवं पंजाबी गीत `सौण दा महीना` और बुल्लेशाह गाकर श्रोताओं को मन्त्रमुग्ध कर दिया। तदोपरांत सुनील डोगरा जी ने शिव बटालवी की रचना` `कुझ रुख मैनू` गाकर हाजिरी लगवाई।
इस संगीतमय महफिल के बाद स्थानीय कवियों द्वारा कवि दरबार सजाया गया। जिसमे श्री देवेन्द्र शर्मा प्रधान अक्षर चेतना मंच ने राजनीति पर कटाक्ष करती नज़्म `लोक तन्त्र` श्री बलबीर सैणी ने गज़ल `मैथों हस्या नी जाणा ते रोया वी नी जाणा,हन्जू पलकाँ ते आया ते लुकोया वी नी जाणा। स. अमरजीत बेदाग ने हास्य कविता`` आई०पी०सी० 377 ने पनाह दी. मोहन ने सोहन से शादी बना ली`` अजय शर्मा ने ``पीडाँ दा वोगनविलिया ,श्रीमति सविता शर्मा ने``कालख गोरे रंग दी``सुनाई । अक्षर् चेतना मंच के सचिव श्री राकेश वर्मा ने वियना की घटना के बाद पंजाब मे हुये प्रतिक्रम पर केन्द्रित नज़म ``हालात सुखन साज़ करां तां किन्झ करां``सुना कर श्रोताओं को सोचने पर मजबूर कर दिया। इसके बाद अशोक राही,ने चन्द शेर एवं संजीव कुरालिया ने ``मैं पंजाब बोलदां``सुना कर तालियाँ बटोरी। निर्मला कपिला जी ने गला खराब होने के कारण अपनी असमर्थता प्रकट की।
मंच संचालक श्री गुरप्रीत गरेवाल {पत्रकार अजीत समाचार} ने कपूरथला से पधारे स.हरफूल सिंह जी को राज कवि श्री राजविन्दर जी का परिचय करवाने के लिये आमंत्रित किया। स.हरफूल सिंह जी ने राजविन्दर जी की संक्षिप्त जानकारी देने के साथ-साथ नंगल शहर के बारे मे लिखी अपनी कविता``रोशनियाँ दे शहर् ``सुना कर नंगल से जुडी यादें ताज़ा की।
इसके बाद तीनों संस्थाओं के पदाधिकारियों द्वारा श्री राजविन्दर को दोशाला एवं समृ्ति चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया गया।
श्री राजविन्दर जी ने आत्मकथन करते हुये बताया कि वे वार्तालाप के कवि है । उनकी पहली पुस्तक 19 वर्ष की आयु मे छपी थी।वो अब जर्मन भाषा मे लिखते हैं। बर्लिन युनिवर्सिटी मे पढाने के बाद 1991 मे वो स्वतंत्र कवि बने।1997 मे उन्हें प्रथम बार पोइट लोरीयट का खिताब मिला। वे प्रथम अनिवासी भारतीय हैं, जिन्हें इस खिताब के फलस्वरूप किंग फेड्रिक्स के महल मे ठहरने का सम्मान मिला। उनके 10 काव्य संग्रह व एक लघु कथा संग्रह जर्मन भाषा मे छप चुके है।वे 2004 मे वर्लिन के, 2006 मे वेस्ट्फेलिया,एवं 2007 मे त्रियर के पोइट् लोरीयल {राज कवि} बने।उनकी नज़्मों को स्कूल की पाठ्य पुस्तकों मे शामिल किया गया एवं कुछ नज़्मे पत्थरों पर उकेर कर त्रियर शहर मे लगाया गया है. पंजाबी मे उनकी एक पुस्तक मे से तरन्नुम मे अपनी चंद गज़लें गाकर सुनाई। जिनके बोल थे--
1 ऐंवें कदे जे शौक विच सागर नूँ तर गये
अज्ज रेत दे सुक्के होये दरिया तों डर गये
2 मैं झुण्ड दरख्ताँ दा बण जावाँ
तू बण के पवन मुड मुड आवीं
3 अक्स तेरा लीकणा सी अखियाँ `च अज़ल तक
गज़ल ताहियों ना पिया ऐ बेबसी विच हिरन दा
इस अवसर पर बी०बी०एम०बी० के पूर्व मुख्य अभियंता श्री के के खोसला जी चित्रकार श्री देशरंजन शर्मा इंज.संजय सनन.सुरजीत गग्ग .श्रीमति निर्मला कपिला.राजी खन्ना.राकेश शर्मा पिंकी.फुलवन्त मनोचा. डाक्टर पी पी सिन्ह ..डाक्टर चट्ठा ,प्रभात भट्टी,अमर पोसवाल,अमृत सैणी, अमृत पाल धीमान, कंवर पोसवाल विजय कुमार,भोला नाथ कश्यप {स्म्पादक समाज धर्म पत्रिका },अम्बिका दत्त प्रोफेसर योगेश सूद ,इँज दर्शन कुमार,इँज.राजेश वासुदेव इंज गुलशन नैयर व श्रीमति नैयर ,आदि गणमान्य लोग उपस्थित थे. 200 से उपर श्रोताओं ने इस कार्यक्रम मे भाग लिया।। देर रात 11-30 बजे तक चला ये साहित्यक समारोह शहर की संस्कृ्तिक गतिविधिओं का एक मील पत्थर साबित हुआ।

30.7.09

सट्टा लगवाते धरे गए.

न्यूज़ => आईजी स्पेशल स्टाफ ने श्री लंका-पकिस्तान मैच पर सट्टा लगवाते तीन लोगों को काबू किया हैहिसार रेंज के आईजी को सूचना मिली थी कि अपराही मोहल्ला जींद में कुछ लोग श्री लंका पकिस्तान मैच पर सट्टा लगवा रहे हैंपुलिस ने छापामार दल का गठन कर मैच पर सट्टा लगवाते तीन लोगों को पकड़ कर उनके पास से २३,१५० रूपये, एक मोबाइल फोन और एक रंगीन टीवी बरामद किया है। पुलिस पूछताछ में पकड़े गए लोगों की पहचान सैनी मुहल्ला जीन्द के नरेश लक्की तथा रामराय गेट जीन्द ही के नरेंदर के रूप में हुई है

व्यूज़ => जब कानूनी तौर पर जायज़ तरीकों द्वारा धन कमाया जा सकता है एवं मनोरंजन भी किया जा सकता है तोफिर गैर कानूनी तरीके क्यों अपनाए जाते हैं?

29.7.09

तलाश एक कारवाँ की...


मेरे पंख मुझसे न छीनलो,

मुझे आसमॉ की तलाश है।


मैं हवा हूँ मुझको न बॉधलो ,

मुझे ये समॉ की तलाश है।


मुझे मालोज़र की ज़रूरक्या?

मुझे तख़्तो-ताज चाहिये !


जो जगह पे मुझको सुक़ुं मिले,

मुझे वो जहाँ की तलाश है।


मैं तो फूल हूं एक बाग़ का।

मुझे शाख़ पे बस छोड दो।


में खिला अभी-अभी तो हूं।

मुझे ग़ुलसीतॉ की तलाश है।


हो भेद भाषा या धर्म के।

हो ऊंच-नीच या करम के।


जो समझ सके मेरे शब्द को।

वही हम-ज़बॉ की तलाश है।


जो अमन का हो, जो हो चैन का।

जहॉ राग_द्वेष,द्रुणा हो।


पैगाम दे हमें प्यार का

वही कारवॉ की तलाश है।