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17.7.09

मैं जब पैदा हुई तो कितनी मजबूर थी ,,(कविता)


मित्रो आज की रचना मेरी नहीं मेरी एक मित्र अनु अग्रवाल ने ये मुझे भेजी है. वो बहुत ही संवेदनशील व्यक्तित्व की धनी है और उनकी कविताओं में भावना एवं एकरसता रहती है. माँ और पिता के ऊपर लिखी गयी रचना है. माँ के ऊपर बहुत सी रचनाये लिखी गयी परन्तु माँ शब्द ही येसा है, जिस पर जितना लिखा जाए वो अधुरा ही है. उसकी महानता को हम व्यक्त ही नहीं कर सकते. निर्मला जी के शब्दों में,,

माँ की ममता ब्रह्मण्ड से विशाल है॥
माँ की ममता की नहीं कोई मिसाल है,,

माँ पर लिखी गयी इस अमूल्य रचना पर अपनी प्रतिक्रिया देकर हमें अनुग्रहीत करें

मैं जब पैदा हुई तो कितनी मजबूर थी ,,
इस जहान की सोच से मैं दूर थी,,,,
हाथ पैर तब मेरे अपने थे ,,
मेरी आँखों में दुनिया के सपने थे ,,
कद मेरा बहुत छोटा था ,,
मुझको आता सिर्फ रोना था ,,
दूध पीकर काम मेरा सोना था ,,
मुझको चलना सिखाया था माँ ने मेरी,,
मुझको दिल में बसाया था पापा ने मेरे ,,,
माँ पापा के होने से हर एक सपना मेरा अपना था ,,,
दूकान का हर एक खिलौना मेरा अपना था ,,
माँ पापा के साये में दुलार परवान चढ़ने लगा ,,
वक़्त के साये में कद मेरा बढ़ने लगा ,,,
एक दिन एक लड़का मुझे भा गया ,,
बनके दूल्हा वो मुझे ले गया ,,,
माँ पापा की जिम्मेदारी से अब मैं दूर होने लगी ,,
फिर माँ पापा को मैं भूलने लगी ,,,
सांसो का रिश्ता अब मेरा था ,,,
माँ पापा का साया अब पराया था ,,
ऐसे माँ पापा की क्या मिशाल दूँ ,,
अपने हाथों से हर पल मुझे दुलारा था ,,,
हर गलती पर सर मेरा पुचकारा था ,,
चाहती हूँ उनके सजदे में रख दूँ अपनी तकदीर ,,
दिखती है उनके कदमो में जन्नत की तस्वीर,,,

अनु अग्रवाल

तुम भी बोलो हम भी बोलें देखें कौन बड़ा नेता है......

कमाल की उठापटक चल रही है आज कल उत्तर प्रदेश की राजनीति में....मायावती बलात्कार पीड़ितों को मुआवज़ा देकर तथाकथित भला काम कर रही थीं। उनके सचिव गांव गांव जाकर हैलीकॉप्टर से लड़कियों औऱ महिलाओं को 25 हज़ार से लेकर 75 हज़ार तक की कीमत अदा माफ करियेगा मुआवज़ा दे रहे थे। इस शुभ काम या कहें कि ज़बान बंद करने की कीमत या ये भी कह सकते है कि बलात्कार पीड़ित महिलाओं के जले पर नमक छिड़कने का भला कर रही थीं। एक तो पहले ही उनके आत्मविश्वास को तोड़ दिया गया औऱ बजाए आरोपियों को मृत्युदंड दिये महिलाओं को पैसे थमा रही हैं। भाई मैं तो इस तरह के मामले पर तालिबान का समर्थन करता हूं कि जब भी उनके राज में कोई पुरुष किसी महिला के साथ छेड़छाड़ करता या बलात्कार करता तो उसको ऐसा दंड दिया जाता था कि फिर कभी वो ये करने के हालत में ही न रहे। मतलब आप समझ गये होंगे। लेकिन भईया ये भारत है हम है सबसे बड़े लोकतंत्र। यहां पर सबको जीने का हक है चाहे वो बलात्कारी हो या बलात्कार पीड़ित। यहां पर किसी भी कत्ल में शामिल मुजरिम को सिवाय कुछ दिन की सज़ा के अलावा कुछ नहीं मिलता। तभी तो आजकल फैशन हो गया है कि पांच पांच सौ में लोगों का मर्डर हो जाता है। क्योंकि कानून कड़ा नहीं है। और अगर कोई ये कहता है कि कानून कड़ा है तो मै बता दूं तो वे दलाल भी तो कानूनविद् है जो ऐसे अपराधियों को छुड़ा लेते है प्रोफेशनल बनकर। खैर मुद्दे से भटक गया था मुद्दा है मायावती के बलात्कार पीड़ित महिलाओं को उनकी कीमत अदा अरे फिर गलती हो गई माफ करियेगा मुआवज़ा देने औऱ इसी मुद्दे पर कांग्रेस की रीता बहुगुणा जोशी के बयान के बाद भड़की आग में झुलसे उनके घर औऱ उत्तर प्रदेश की राजनीति की। रीता के बयान को सही नहीं ठहरा रहा हूं ये दोनों एक ही थाली के चट्टे बट्टे हैं। कार्यकर्ता कह रहे है कि मायावती पर की गई टिप्पणी अशोभनीय थी और बीएसपी कार्यकर्ताओं द्वारा रीता का घर प्रतिशोध की ज्वाला में जल गया तो एक बात मै ऐसे कार्यकर्ताओं को याद दिला दूं कि.......आगे की बात पढ़ने के लिए केसरिया...पधारो म्हारे ब्लाग

16.7.09

ज़िन्दगी में एक बार



बेहोशी के मीठे पल में,,


बेहोशी के मीठे पल में,,
मैं शून्य क्षितिज में फिरता था ,,,
हिमगिरी की ऊंचाई चढ़ता था,,
फिर सागर में गिरता था ,,
कौतुक विस्मय हो लोगों को ,,
अपलक निश्चल देखे जाता था ,,
कर्तव्य विमूढ़ हो उनकी इस ,,
चंचलता को लिया करता था ,,
फिर हो सकेंद्रित निज की ,,
मस्ती में ही तो जिया करता था ,,
प्रीत और प्रेम को अनायास ही,,
खेता था,,
नीरस इन रागों में रस्वादन लेता था ,,
माधुर्य और माधुरी की ,,,
एक प्रथक कल्पना थी मेरे मन में ,,
इन बेढंगों से अलग,,
वासना थी मेरे मन में ,,
कभी प्रेम की व्याकुलता को ,,
मैंने महसूस नहीं किया था,,
कभी ह्रदय की दुर्बलता को ,,
मैंने महसूस नहीं किया था ,,
सौन्दर्य वशन इस धरती का ,,
मेरा प्रेमांगन था ,,
ऋतुओ का परिवर्तन ही ,,
मेरा प्रेमालिंगन था ,,
हर सर्द किन्तु चौमुखी हवा,,
मुझको हर्षित करती थी ,,,
सूरज की एक एक किरण ,,
उल्लासो से भरती थी ,,,
बस नया प्रेम अब खोज रहा हूँ ,,
वो सब भूल भूला के ,,,
छेड़ रहा हूँ नयी तान ,,
रागों में खुद को मिला के ,,,

15.7.09

नारनौल एरिया के लिए नयी वेबसाइट

पश्चिम हरियाणा के नारनौल- महेंद्रगढ़ क्षेत्र पर केन्द्रित एक वेबसाइट का प्रारंभ हम कुच्छ मित्रों ने किया है. इस वेबसाइट का लिंक यह है: www.narnaul.org
यह वेब साईट नारनौल- महेंद्रगढ़ को सूचना क्रांति के विश्व पटल पर लाने का एक प्रयास है.
यह वेब साईट जन हित तथा जन सूचना के लिए है. इस का एक ही मकसद है: महेंद्रगढ़ - नारनौल के लोगों तथा समाज को जोड़ा जाये. आपका इस वेबसाइट पर स्वागत है. यदि आप महेंद्रगढ़ - नारनौल से सम्बन्ध रखते हैं या इस क्षेत्र में रुचि रखते हैं, तो आप इस वेब साईट से जरुर जुड़िये . इस पोर्टल पर दी गयी जानकारी, सूचना, आलेखों का मकसद समाज को सकारात्मक रूप से प्रभावित करना है. राजनीतिक सोच या विचार धारा के प्रति हमारा स्टैंड निष्पक्ष रहेगा। सकारात्मक राजनीतिक बहस का भी स्वागत है.
वेबसाइट का लिंक पुन: www.narnaul.org

12.7.09

Real Test of Democracy

How should our elected representatives behave and work? Does winning an elected post entitle them to indulge in corruption and self-serving activities? It seems that some people join politics to serve the society , whereas others join to fill their coffers. The real test of democracy is how strongly it works at the grass root level. In Narnaul district, on the same day newspapers have reported two contrast news items about our elected Sarpanchs (village Heads). The Hindi daily Jagran reports on July 10, 09.

राष्ट्रपति से मिलने के लिए सरपंच के संग महिलाएं गईं:
नारनौल : राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल के बुलावे पर जिले के गाव कोथल खुर्द की महिला सरपंच रोशनी देवी शुक्रवार अपराह्न उपायुक्त ए. श्रीनिवास के साथ दिल्ली के लिए रवाना हुईं। उनके साथ उनकी मंडली की 18 महिलाएं भी गई हैं। राष्ट्रपति 11 जुलाई को इस जत्थे से भेंट करेंगी। 11 जुलाई को राष्ट्रपति से मुलाकात के बाद यह टीम शाम तक नारनौल पहुच जाएगी। मालूम हो कि गाव कौथल खुर्द की महिला सरपंच रोशनी देवी व उनकी मंडली द्वारा शराबियों के खिलाफ छेडे़ गए क्रातिकारी अभियान से प्रभावित होकर ही राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने उन्हे बुलावा भेजा था।

इस महिला मंडली की कार्यशैली अनूठी थी, जिसके कारण यह चर्चा में आ गई। इस समूह ने गाव में सार्वजनिक स्थल पर शराब पीने वालों पर अंकुश लगाने के लिए मंदिर के नाम 500 रुपये की पर्ची काटनी शुरू कर दी थी, जो शराबियों पर बहुत भारी पड़ी। वास्तविकता भी यही है कि इसी कारण यह समूह ज्यादा कारगर साबित हुआ। हालांकि इसके अलावा उन पर नैतिकता के आधार पर भी शराब को छोड़ने के लिए दबाव बनाया गया। इसका नतीजा यह हुआ कि अब गाव में शराब पीकर घूमने वालों पर पूरी तरह अंकुश लग चुका है। इससे भी बड़ी बात यह है कि महिला मंडली इस उद्देश्य की पूर्ति के बाद भी शांत नहीं बैठी है और दायरे को बढ़ाते हुए सामाजिक बुराइयों के खिलाफ भी अभियान चलाना शुरू कर दिया है।
गबन के आरोप में ग्राम सचिव व सरपंच नामजद:

नारनौल : गांव दोचाना के सरपंच धर्मपाल एवं ग्राम सचिव उमेश चंद पर अदालत के निर्देश पर धोखाधड़ी एवं आपराधिक षडयंत्र रचने के आरोप में मामला दर्ज किया गया है। सरपंच और सचिव के खिलाफ गांव के ही एक पंच द्वारा अदालत में इस्तगासा दायर कर उसके एवं कुछ अन्य पंचों के फर्जी हस्ताक्षर कर ग्रांट लेने का आरोप लगाते हुए उनके खिलाफ मामला दर्ज कराने की अपील की गई थी।

जानकारी के अनुसार गांव दोचाना के पंच मदनलाल ने अतिरिक्त मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी की अदालत में गत 6 जुलाई को एक इस्तगासा पेश कर सरपंच एवं ग्राम सचिव पर मामला दर्ज करने के लिए पुलिस को आदेश देने की गुहार लगाई थी। मदनलाल ने इस्तगासा में बताया कि ग्राम पंचायत दोचाना के सरपंच धर्मपाल ने विभिन्न तारीखों में पंचायत पुस्तिका व कार्यवाही कमेटी रजिस्टर में उसके तथा कुछ अन्य पंचों, महिला पंच देवी और मुमताज अली तथा सुरेश कुमार पंच के फर्जी हस्ताक्षर कर एवं अंगूठे लगा कर प्रस्ताव पारित कर लिए। जबकि उक्त पंचों के सामने इस प्रकार की कोई बैठक हुई ही नहीं थी। सरपंच धर्मपाल ने पंचायत के सदस्यों का कोरम पूरा दिखाने की नीयत से प्रस्तावों पर फर्जी हस्ताक्षर कर लिए थे। ऐसा कर सरपंच ने सरकार से ग्रांट भी प्राप्त कर ली। इस्तगासा में यह भी कहा गया कि ग्राम सचिव उमेश चंद ने भी सरपंच धर्मपाल से फर्जी हस्ताक्षरों के माध्यम से पारित इन प्रस्तावों को अटेस्ट करके इस अपराध में सरपंच का सहयोग किया है। पंच मदनलाल ने इस संबंध में पुलिस महानिदेशक एवं अन्य संबंधित पुलिस अधिकारियों को भी शपथ पत्र के साथ एक शिकायती दरखास्त भेजी थी, किंतु पुलिस ने उस पर कोई कार्रवाई नहीं की। शिकायतकर्ता पंच मदनलाल के अधिवक्ता सुरेंद्र ढिल्लो ने बताया कि अतिरिक्त मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी की अदालत ने मामले की गंभीरता को देखते हुए गत 6 जुलाई को धारा 156 सीआरपीसी के तहत इसे नारनौल सदर थाना में भेज दिया था। जिस पर कार्रवाई करते हुए पुलिस ने सरपंच व ग्राम सचिव कि खिलाफ गत बुधवार को भारतीय दंड संहिता की धारा 419, 420, 467, 468, 471, 406 व 120 बी के तहत मुकदमा नंबर 159 दर्ज कर लिया है।

11.7.09

ये आम रास्ता नहीं है.....

मेरी एक बहुत बुरी आदत बनती जा रही है कि मुझे गलत लगने वाली बातें गलत ही लगती है। हमारे नोएडा शहर में एक ट्रेंड चल रहा है...मुझे ये तो नहीं पता कि हर शहर में ऐसा होता है या नहीं लेकिन हमारा नोएडा लगता है आम लोगों का शहर नहीं रह गया है। जहां भी जाओ एक बोर्ड हर तरफ मिलता है और वो बोर्ड है...ये आम रास्ता नहीं है..का ...भगवान कसम मेरी नजर में तो ऐसी जगह पता नहीं कौन सी है.. जो आम लोगों के लिए हो। सुरक्षा के नाम पर हर सेक्टर में गेट पर एक लोहे का दरवाजा लगा होता है औऱ बड़े से बोर्ड पर लिखा होता है कि ये आम रास्ता नहीं है अंग्रेजी में भी अंग्रेजी बुद्धुओं के लिए भी लिखा होता हैं वो भी अंग्रेजी में साथ बड़ी मूंछों वाले कुछ लठैत...ये बोर्ड कोई आम बोर्ड नहीं है। इन बोर्डस पर बाकायदा घुसने का समय और जाने का समय लिखा जाता है। अगर आप गलत समय पर आये तो अंदर नहीं जा सकते और अगर चले गये तो वापस तो नहीं जाने दिया जाएगा। या तो आप उस वक्त लड़ाई करिये या फिर गुंडो की तरह दादागिरी दिखाकर आइये..... भाई साहब आम आदमी तो आ ही नहीं सकता है। मैने एक चीज़ नोटिस की है कि अगर हर रास्ता आम न रहे तो आम आदमी कहां रहे। अक्सर इस तरह के बोर्ड आपको उन सेक्टर्स में मिलते है जो तथाकथित पॉश इलाके होते है और हेहेहेहेहेहेहेहेहे...आप तो समझते ही होंगे कि पॉश इलाकों में आम आदमी कहां रहते हैं ?...माफ करियेगा वो लोग रहते ही कहां हैं वो तो ज्यादातर विदेशों में रहते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि वो आदमी कहां रहे जो उन कॉलोनियों के दूसरी तरफ रहते हैं। आपमे से ही ज्यादातर लोग ये सोच रहे होंगे कि दूसरा रास्ता भी तो हो सकता है। तो उनकें लिए जवाब है कि रास्ते तो बहुत हैं पर वो रास्ता कोई खास है क्या। सिर्फ इसलिए कि पॉश सेक्टर है चारों तरफ सो बार्डर लगा दो और हर दरवाजे पर मुछ्छड़ सिक्योरिटी गार्ड खड़ा कर दो बस। आखिर क्या है ये.... आम रास्तों को लोग क्यों खास बना रहे हैं सिर्फ उन चंद लोगों के लिए जो उन जगहों पर रहते हैं। क्या डर है उन्हें चोरी डकैती का। अरे जिसे चोरी करनी होगी वो क्या छह फुट के दरवाजे के उस पार नहीं जा सकता है। दिखावे के लिए दरवाजे लगाने से कोई जगह खास नहीं हो जाती है। ऊपर से ये बोर्ड जो ये कहता है कि ये आम रास्ता नहीं है....क्या घटियापन है उन लोगों का जो उन जगहों पर रहते हैं। क्या खास है उस रास्ते पर। आम आदमी का रास्ता क्यों नहीं है वो ..जरा कोई तो मुझे बताये। क्या जरा सा भी ये पता चलता है उन लोगों को कि किसी आदमी को कितनी परेशानी होती है जब चार कदम की दूरी को वो पचास कदमों से पूरी करता है। कौन देता है ये हक कि किस रास्ते को आम बनाना है और किसे खास ?...... कौन होता है ये कहने वाला कि ये रास्ता आम नहीं है। ज़रा कोई तो मुझे बताये कि क्या खास है उन रास्तों पर ????

तालीम के लब्ज़ों को....


तालीम के लब्ज़ों को हम तीर बना लेंगे।
मिसरा जो बने पूरा शमशीर बना लेंगे।

जाहिल
रहे कोई, ग़ाफ़िल रहे कोई।
हम मर्ज कि दवा को अकसीर बना लेंगे।

रस्मों
के दायरों से हम अब निकल चूके है।
हम ईल्म की दौलत को जागीर बना लेंगे।

अबतक
तो ज़माने कि ज़िल्लत उठाई हमने।
ताक़िद ये करते हैं, तदबीर बना लेंगे।

जिसने
बुलंदीओं कि ताक़ात हम को दी है।
हम भी वो सिपाही की तस्वीर बना लेंगे।

मग़रीब
से या मशरीक से, उत्तर से या दख़्ख़न से।
तादाद को हम मिल के ज़ंजीर बना देंगे।

मिलज़ुल
के जो बन जाये, ज़ंजीर हमारी तब।
अयराज़ईसी को हम तक़दीर बना लेंगे।

10.7.09

मोबाइल गुमशुदा ही क्यों होता है....

28 जून को मेरा मोबाइल और पर्स मेरे ही घर से चोरी हो था। कुछ दिनों तक तो मुझे लगा कि मेरा मोबाइल घर में ही कहीं रखा होगा। कुछ दिन बाद यकीन हो गया कि मेरा मोबाइल घर से ही चोरी हो गया है। एक टीवी चैनल में काम करता हूं तो टाइम नहीं मिल पाया कि पोलीस थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई जा सके। चूंकि मोबाइल घर से चोरी हुआ था तो मेरा घर थाना सेक्टर 24 में आता है। मैं समय निकालकर थाने मे पहुंचा पहली बार किसी अपने काम से थाने में आया था। थाने में प्रवेश करते ही मैने देखा कि हर कोई अपने काम में मग्न था। आम आदमी वहां पहुंचे तो उनकी भाषाओं को समझने मे काफी देर लग जाये। एक तो एक दम अक्खड़, सख्त से चेहरे, लंबे चौड़े साथ में कुछ छोटे कद के भी थे। कुल मिलाकर जब मै वहां पहुंचा तो करीब 10 लोग होंगे। हाँ कुछ लोग बंदीग्रह में भी थे गर्मी की वजह से वहां दरवाजे के बाहर एक पंखा लगा था। अंदर पानी की बोतल थी लेकिन ज्यादा झांक नहीं सका क्योंकि वहा पर अंधेरा बहुत था। एक कमरा था जिसमें थाना प्रभारी निरीक्षक लिखा थासाथ में जो उस वक्त वहां नियुक्त थे उनका नाम..प्रभारी निरीक्षक का नाम था कैलाश चंद। दूसरे कमरे में जाने से पहले बाहर ही कुछ कुर्सियां औऱ रखी हुई थीं और एक पुलिस की वर्दी में महाशय बैठे थे नाम था फतह सिंह। अब मै उनके पास कमरे में गया जहां पर कुछ लिखा पढ़ी का काम चल रहा था। मैने वहां जाकर अपनी बात कही कि भाई साहब मेरा मोबाइल चोरी हो गया है क्या आप रिपोर्ट लिखेंगे। उन्होंने कहा क्यों नहीं मैने कहा कि तो फिर एक पर्चा दे दीजिए। उन्होने तुरंत एक पर्चा दे दिया। मैने तुरंत लिखा सारी जानकारी लिख दी कि मेरा मोबाइल और पर्स मेरे घर में चोरी हो गया है। ये घटना सुबह आठ बजे से नौ बजे के बीच की है। और भी कई जानकारी लिखी और लेकर वहां गया तो उन्होने कहा कि यार ये राम कहानी क्यों लिख दी बस इतना करों कि ये लिख दो मोबइल गुम हो गया है। मै दोबारा पर्चा लेकर गया औऱ मैने फिर वहीं बातें लिखी जो पहले लिखी थीं। इस बार दो पर्चें लेकर गया था। मैने कहा कि भाई साहब मेरा मोबाइल चोरी हुआ है कि गुम। उन्होने मेरी तरफ़ नाक सिकोड़कर कहा कि तो फिर ऐसा करो कि साहब से मिलकर आ जाओ। मै तुरंत कैलाश चंद के पास गय़ा जो कि वहां के थाना प्राभारी थे। उन्हे पूरी बात बताई फिर उन्होने कहा कि ठीक है जाकर पर्चा दे दो। मै वापस आया तो वो दूसरे साहब जी मानने को तैयार नहीं हुए कि फोन चोरी हुआ है। वो दोबारा लेकर गये पर्चा कैलाश जी के पास। वापस आये तो तेवर बदले हुए थे। मुझे समझाने लगे बोले कि यार फोन गुमशुदा ही होता है ,चोरी नहीं होता। मैने कहा कि क्यों जब मेरे घर से मोबाइल चोरी हुआ है तो मै गुमशुदा की रिपोर्ट दर्ज क्यों करवाऊं? उन्होने बारामदे में बैठे मोटे से पुलिस वाले के पास भेज दिया, कुछ देर मुझे टरकाया, लेकिन जब मै माना तो मुझे उस मोटे से पुलिस वाले के पास भेजा। उनका नाम था फतह सिंह, मोटे से, गोल चेहरा सख्त चेहरा, सांवला सा रंग, बाहर बैठे थे बारामदे में पर्चा लेकर बोले कि फोन कैसे चोरी हुआ, मैने कहा कि मेरा भाई सुबह कोचिंग के लिए निकला और मुझे बाताये बगैर वो दरवाजा बंद करके चला गया लेकिन दरवाजा पूरी तरह से बंद नहीं था। मै उठा आठ बजकर पचास मिनट पर मैने देखा कि मेरी पर्स और मोबाइल वहां नहीं था। इतना कहते ही फतह सिंह बोले कि आपकी लापरवाही है इसमें हम क्या कर सकते हैं। मैं उनकी बात सुनकर सन्न रह गया। मुझे ऐसे जवाब की आशंका नहीं थी। मै उस वक्त क्या कहूं ये मुझसे कहते नहीं बन रहा था क्योंकि मै तो वहां मदद मांगने गया था। पर मैं बोला भाई साहब दरवाजा खुला था इसका मतलब ये तो नहीं कि आपका काम खत्म हो जाता है दरवाजा बंद होने से या खुला होने से। आप मेरी रिपोर्ट लिखिये। वो बोले कि ऐसा करों कि गुमशुदगी कि रिपोर्ट दर्ज करवा दो। मैने कहा कि नहीं फोन चोरी हुआ है। उन्होने मुझसे कहा कि फोन चाहिए या नहीं। मैन कहा कि चाहिए। तो बोले कि तो फिर गुमशुदगी कि रिपोर्ट दर्ज करवाओ। मैने कहा कि चोरी कि रिपोर्ट दर्ज करवाने पर नहीं मिलेगा इसका मतलब। वो बोले ऐसा है कि गुमशुदगी कि रिपोर्ट दर्ज करवाओं वर्ना कहीं और जाओ। मैने कहा कमाल की बात कर रहे है आप। मैरे घर इस थाने के अंतर्गत आता है तो मै और कहाँ जाउंगा। इस पर उन्होने कहा कि मै नहीं लिखुंगा ऱिपोर्ट, कहीं औऱ जाकर लिखवाओं। अब मेरे मुझे जो झटका लगा वो शायद ज्यादातर लोगों को लगता होगा। जो लोग पुलिस स्टेशन मे आते होंगे। मै अभी तक सोचता था कि पता नहीं लोग कैसे कहते है कि पुलिस स्टेशन पर रिपोर्ट नहीं लिखी जाती। लेकिन उनका गुस्सा और मुजरिमों को डराने वाले अंदाज को देखकर मै तो बिलकुल नहीं डरा। हां अक्सर लोग डरकर उनकी बात मान जाते होंगे। मैने कहां कि तो फिर ठीक आप मुझे लिख कर दे दीजिए कि आप मेरी रिपोर्ट नहीं लिखेंगे। उन्होने कहा नहीं दूंगा और मेरा प्रार्थना पत्र मेरी ओर फेंक दिया। उस वक्त मुझे पुलिस स्टेशनों की हालत औऱ असलियत सामने गई। इस बीच मुझे एक और जानकारी मिली कि दिनभर में सैकड़ों मोबाइल चोरी होते हैं कहां तक चोरी की शिकायतें लिखेगा कोई। ये बातें मुझे लिखा पढ़ी करने वाले पुलिसवाले ने बताई। मै परेशान हो गया कुछ काम होते देख मै हताश होता लेकिन पत्रकार ठहरा हताश होना सीखा नहीं है मैने। मैने तुरंत अपने एक मित्र को फोन किया उसने अपने एक मित्र जो कि आईबीएन 7 में कार्यरत है, उसके पास फोन किया ब्रजेश नाम के उस शख्स ने अपने फोन पर थाना प्राभारी से क्या बात की ये तो पता नहीं। लेकिन उसके बाद मेरा काम बनता हुआ नजर आने लगा और जो पुलिस वाले अभी तक मुझ पर हावी हो रहे थे वो हलके पड़ गये और फतह सिंह की डराने के अंदाज पर मित्र का एक फोन भारी पड़ गया और उन्होने कहा कि मै कुछ नहीं कर सकताआप लिखा पढ़ी वाले के पास जाइयें वो रिपोर्ट लिखेगा। मैने देखा कि पहले जो सुस्ती वो लोग दिखा रहे थे इस बार तेजी से काम हो रहा था। मुझसे दो कॉपियां लिखवा ली थी एक कॉपी खुद रख ली और अब मेरे पास तो बस वो दूसरी कॉपी है जिसमें तो मोहर है और ही कोई सूबूत की मैं पुलिस स्टेशन पर गया था। एक कॉपी तो उन्होने रख ली है औऱ नाम भी बता दिया है कि अश्वनी जी जांच करेंगे पर जांच होगी या नहीं ये जांच का विषय ज़रुर बन गया है।