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29.12.09

अंधकार युग से निकलकर भारत के युवाओं का स्‍वर्णयुग में प्रवेश

आज आप किसी भी मध्‍यमवर्गीय परिवार में पहुंच जाएं , उसके युवा पुत्र या पुत्री मल्‍टीनेशनल कंपनी में लाखों के पैकेज वाली नौकरी कर रहे हैं , कितने की तो विदेशों से ऐसी आवाजाही है मानों भारत घर है और विदेश आंगन। उच्‍च वर्गीय लोगों के लिए ही विदेशों की यात्रा होती है ,यह संशय मध्‍यम वर्गीय परिवारों में मिट चुका है  और अनेक माता-पिता भी अपने बच्‍चों के कारण विदेश यात्रा का आनंद ले चुके हैं। इसी प्रकार प्रत्‍येक परिवार का किशोर वर्ग , चाहे वो बेटा हो या बिटिया , बडे या छोटे किसी न किसी संस्‍था से इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट की पढाई कर रहे है और आनेवाले समय में उसके लिए भी नौकरी की पूरी संभावना दिख रही है। जो विद्यार्थी जीवन में बिल्‍कुल सामान्‍य स्‍तर के थे , उनके कैरियर की मजबूती भी देखकर आश्‍चर्य होता है। महंगे पढाई करवा पाना किसी अभिभावक के लिए कठिन हो , तो बैंक भी कर्ज देने को तैयार होती है और किशोरों की पढाई में कोई बाधा नहीं आने देती।  प्राइवेटाइजेशन के इस युग में तकनीकी ज्ञान रखनेवालों लाखों विद्यार्थियों के रोजगार की व्‍यवस्‍था से आज के युवा वर्ग की स्थिति स्‍वर्णिम दिख रही है। वे पूरी मेहनत करना पसंद करते हैं , पर अपने जीवन में थोडा भी समझौता करना नहीं चाहते , उनकी पसंद सिर्फ ब्रांडेड सामान हैं, रईसी का जीवन है। इसका भविष्‍य पर क्‍या प्रभाव पडेगा , यह तो देखने वाली बात होगी , पर यदि 20 वी सदी के अंत से इसकी तुलना की जाए तो 21 सदी के आरंभ में आया यह परिवर्तन सामान्‍य नहीं माना जा सकता। इस आलेख को पूरा पढने के लिए यहां क्लिक करें !!

न्याय में देरी का अर्थ बगावत नहीं

माननीय उच्चतम न्यायलय के मुख्य न्यायधीश न्यायमूर्ति बालाकृष्णन ने कहा कि न्याय में देरी होने से बगावत हो सकती हैइस बात का क्या आशय है ये आमजन की समझ से परे बात है न्यायपालिका ने त्वरित न्याय देने के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट्स की स्थापना की है फास्ट ट्रैक न्यायलयों में अकुशल न्यायधीशों के कारण फैसले तो शीघ्र हो रहे हैं किन्तु सुलह समझौते के आधार पर निर्णीत वादों को छोड़ कर 99 प्रतिशत सजा की दर है जिससे सत्र न्यायलय द्वारा विचारित होने वाले वादों की अपीलें माननीय उच्च न्यायलय में पहुँच रही हैंजिससे माननीय उच्च न्यायलयों में कार्य का बोझ बढ़ जाने से वहां की व्यवस्था डगमगा रही है और वहां पर न्याय मिलने में काफी देरी हो रही है कुछ प्रमुख मामलो में जनभावनाओ के दबाव के आगे उनकी पुन: जांच वाद निर्णित होने के बाद प्रारंभ की जा रही हैअपराधिक विधि का मुख्य सिधान्त यह है की आरोप पत्र दाखिल हो जाने के बाद पुन: विवेचना नहीं होनी चाहिए और ही संसोधन की ही व्यवस्था हैकानून में बार-बार संशोधन से न्याय की अवधारणा ही बदल जाती हैन्याय का आधार जनभावना नहीं होती हैसाक्ष्य और सबूतों के आधार पर वाद निर्णित होते हैंजेसिका पाल, रुचिका आदि मामलों में न्यायिक अवधारणाएं बदली जा रही हैं जबकि होना यह चाहिए की विवेचना करने वाली एजेंसी चाहे वह सी.बी.आई हो पुलिस हो या कोई अन्य उसकी विवेचना का स्तर निष्पक्ष और दबाव रहित होना चाहिए जो नहीं हो रहा हैमुख्य समस्या अपराधिक विधि में यह है जिसकी वजह से न्याय में देरी होती हैन्याय में देरी होने का मुख्य कारण अभियोजन पक्ष होता है जिसके ऊपर पूरा नियंत्रण राज्य का होता हैराज्य की ही अगर दुर्दशा है तो न्याय और अन्याय में कोई अंतर नहीं रह जाता हैआज अधिकांश थानों का सामान्य खर्चा उनका सरकारी कामकाज अपराधियों के पैसों से चलता हैउत्तर प्रदेश में पुलिस अधिकारियों करमचारियों का भी एक लम्बा अपराधिक इतिहास है कैसे निष्पक्ष विवेचना हो सकती है और लोगो को इन अपराधिक इतिहास रखने वाले अपराधियों से न्याय कैसे न्याय मिल सकता है ? जनता में अगर बगावती तेवर होते तो हम लोग ब्रिटिश साम्राज्यवाद के गुलाम नहीं होते ।

28.12.09

मुजरिमे वक्त तो हाकिम के साथ चलता है

हमारा देश करप्शन की कू में चलता है,
जुर्म हर रोज़ नया एक निकलता है।
पुलिस गरीब को जेलों में डाल देती है,
मुजरिमे वक्त तो हाकिम के साथ चलता है।।

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हर तरफ दहशत है सन्नाटा है,
जुबान के नाम पे कौम को बांटा है।
अपनी अना के खातिर हसने मुद्दत से,
मासूमों को, कमजोरों को काटा है।।

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तुम्हें तो राज हमारे सरों से मिलता है,
हमारे वोट हमारे जरों से मिलता है।
किसान कहके हिकारत से देखने वाले,
तुम्हें अनाज हमारे घरों से मिलता है।।

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तुम्हारे अज़्म में नफरत की बू आती है,
नज़्म व नसक से दूर वहशत की बू आती है।
हाकिमे शहर तेरी तलवार की फलयों से,
किसी मज़लूम के खून की बू आती है।।

- मो0 तारिक नय्यर

लोगों को करना पड रहा है कडाके की ठंड का सामना

नईदिल्ली। आज के समय में हर जगह ठंड पड़ रही है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली समेत उतर भारत के कई इलाकों में कडाके के ठंड पड़ रही है। इसी कारण वहां दो लोंगों की मौत हो गई है। मनमोहित ग्रोवर द्वारा किये गए सर्वें से पता चला है कि कल दिल्ली में लोगों को कडाके की ठंड सामना करना पडा जिस कारण उन्होने बाहर घूमने जाना उचित नहीं समझा। मौसम विभाग का इस मामलें में कहना है कि दिल्ली को इस समय कोहरा का सामना करना पड रहा है तथा जिसका प्रभाव यातायात पर भी देखने को मिल रहा है। इसी प्रकार माउनटाबू में हाड कंपकंपा देने वाली ठंड लगातार बढ़ रही है। इसी प्रकार कोहरा का सबसे अधिक प्रभाव उतर प्रदेश में देखने को मिला। कोहरे की वजह मेरठ सबसे ठंडा इलाका रहा तथा सड़क, रेल एंव यातायात पर कोहरे का असर देखने को मिला तथा इसी ठंड के कारण पिछले 24 घंटे में दो लोगों को मौत का सामना करना पडा।

27.12.09

एक क़ुरान - ए - सुख़न का सफ़ा खुलता है......!!





 " बल्लीमाराँ के मोहल्लों की वो पेचीदा दलीलों की - सी गलियाँ
सामने टाल के नुक्कड़ पे, बटेरों के क़सीदे
गुड़गुडाती हुई पान की पीकों में वह दाद, वह वाह - वा
चाँद दरवाज़ों पे लटके हुए बोसीदा - से कुछ टाट के परदे 
एक बकरी के मिमियाने की आवाज़ 
और धुंधलाई हुई शाम के बेनूर अँधेरे 
ऐसे दीवारों से मुंह जोड़ के चलते हैं यहाँ
चूड़ीवालान के कटोरे की ' बड़ी बी ' जैसे
अपनी बुझती हुई आँखों से दरवाज़े टटोले 
इसी बेनूर अँधेरी - सी गली क़ासिम से
एक तरतीब चरागों की शुरू होती है
एक क़ुरान - ए - सुख़न का सफ़ा खुलता है
' असद उल्लाह खाँ ग़ालिब ' का पता मिलता है". ( गुलज़ार )
आज से ठीक २१२ साल पहले २७ दिसम्बर १७९७ को अब्दुल्लाह बेग खाँ के घर मिर्ज़ा ग़ालिब का जन्म हुआ. उर्दू और फारसी ग़ज़ल के महान शायर मिर्ज़ा असद उल्लाह खाँ के बारे में पहले से ही बहुत कुछ कहा जा चुका है. बकौल अयोध्या प्रसाद गोयलीय, महाभारत और रामायण पढ़े बगैर जैसे हिन्दू धर्म पर कुछ नहीं बोला जा सकता, वैसे ही ग़ालिब का अध्ययन किए बगैर, बज़्मे - अदब में मुंह नहीं खोला जा सकता है. इसलिए दोस्तों ज्यादा वक्त जाया न करते हुए ग़ालिब के गुलशन - ए - ग़ज़ल से कुछ चुनिन्दा  ग़ज़ल - ए - गुल का लुत्फ़ उठाइए..........

हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले 
बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले.
मगर लिखवाए कोई उसको ख़त तो हमसे लिखवाए
हुई सुबह और घर से कान पर रखकर कलम निकले.
मुहब्बत में नहीं है फ़र्क जीने और मरने का 
उसी को देखकर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले.
कहां मयखाने का दरवाज़ा ' ग़ालिब ' और कहां वाइज़ 
पर, इतना जानते हैं, कल वो जाता था कि हम निकले.

रोने से और इश्क़ में बेबाक हो गए 
धोए गए हम ऐसे कि बस पाक हो गए.
इस रंग से उठाई कल उसने 'असद ' की लाश 
दुश्मन भी जिसको देख के गमनाक हो गए.


बाज़ीचए अतफ़ाल१ है दुनिया मेरे आगे 
होता है शबोरोज़ तमाशा मेरे आगे.
मत पूछ कि क्या हाल है मेरा तेरे पीछे 
तू देख कि क्या रंग है तेरे मेरे आगे.
नफ़रत का गुमां गुज़रे है, मैं रश्क से गुज़रा 
क्योंकर कहूं लो नाम न उसका मेरे आगे.


नुक्ताचीं२ है गमे दिल उसको सुनाए न बने 
क्या बने बात जहां बात बनाए न बने.
गैर फिरता है लिए यूं तेरे ख़त को कि अगर 
कोई पूछे कि यह क्या है तो छुपाए न बने.
इश्क़ पर ज़ोर नहीं, है वो आतिश " ग़ालिब "
कि लगाए न लगे और बुझाए न बुझे.

नींद उसकी है, दिमाग़ उसका है, रातें उसकी हैं
तेरी ज़ुल्फ़ें जिसके बाजू पर परीशाँ हो गईं 
रंज से खूंगर३ हुआ इन्सां तो मिट जाता है रंज 
मुश्किलें इतनी पड़ी मुझपर कि आसां हो गईं.

यह हम जो हिज्र में दीवारों दर को देखते हैं
कभी सबा को कभी नामाबर को देखते है.
वो आएं घर में हमारे ख़ुदा की कुदरत है
कभी हम उनको कभी अपने घर को देखते हैं.


न था कुछ तो ख़ुदा था, कुछ न होता तो ख़ुदा होता
डुबोया मुझको होने ने, न होता तो क्या होता.
हुई मुद्दत कि " ग़ालिब " मर गया पर याद आता है
वह हर इक बात पर कहना कि ' यूं होता तो क्या होता '.


बस कि दुश्वार है हर काम का आसां होना
आदमी को भी मयस्सर नहीं इन्सां होना.
हैफ़४ उस चार गिरह कपड़े की क़िस्मत " ग़ालिब "
जिसकी क़िस्मत में हो आशिक़ का गिरेबां होना.

इश्क़ से तबियत ने ज़ीस्त का मज़ा पाया
दर्द की दवा पाई, दर्द बेदवा पाया.

आह को चाहिए इक उम्र असर होने तक
कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होने तक.
आशिक़ी सब्र तलब५ और तमन्ना बेताब
हमने माना कि तगाफ़ुल६ न करोगे, लेकिन
ख़ाक हो जाएंगे हम, तुनको ख़बर होने तक.


ज़ुल्मतकदे में मेरे, शबे गम का जोश है
इक शम्अ है दलीले सहर वो भी ख़मोश है.
दागे - फ़िराके७ सोह्बते - शब८ की जली हुई 
एक शम्अ रह गई है, सो वो भी ख़मोश है.
आते हैं ग़ैब९ से ये मज़ामी१० ख़्याल में
" ग़ालिब " सरीरे - खामा११, नवा - ए - सरोश१२ है.

फिर कुछ इस दिल को बेक़रारी है
सीना, जुया - ए - ज़ख्मे - कारी१३ है.
फिर जिगर खोदने लगा नाखून
आमदे फ़सले - लालाकारी१४ है.
फिर उसी बेवफ़ा पे मरते हैं
फिर वाही ज़िन्दगी हमारी है.
फिर हुए हैं गवाहे - इश्क़ तलब१५ 
अश्कबारी का हुक्म जारी है.
बेखुदी, बेसबब नहीं " ग़ालिब "
कुछ तो है जिसकी पर्दादारी है.

ग़ैर ले महफ़िल में बोसे जाम के 
हम रहे यूं तश्नालब१६ पैग़ाम के.
दिल को आँखों ने फंसाया क्या मगर
ये भी हल्के१७ हैं तुम्हारे दाम१८ के.
इश्क़ ने " ग़ालिब " निकम्मा कर दिया 
वर्ना हम भी आदमी थे काम के.


उनके देखे से जो आ जाती है मुंह पर रौनक
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है.
देखी पाते हैं उश्शाक१९ बुतों से क्या फैज़२०
इक बिरहमन ने कहा है कि ये साल अच्छा है.
हमको मालूम है जन्नत की हकीक़त, लेकिन
दिल के खुश रखने को " ग़ालिब " ये ख़्याल अच्छा है.


हर एक बात पे कहते हो तुम, कि तू क्या है
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़े गुफ़्तगू२१ क्या है.
चिपक रहा है बदन पर लहू से पैराहन२२
हमारे जेब को अब हाजते - रफ़ू २३  क्या है.
जला है जिस्म जहां, दिल भी जल गया होगा
कुरेदते हो जो अब राख, जुस्तजू क्या है.
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ायल
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है.
रही न ताकते - गुफ़्तार२४ और अगर हो भी
तो किस उम्मीद पे कहिए कि आरज़ू क्या है.


१. बच्चों का खेल.

२. बाल की खाल निकालना.
३ . अभ्यस्त, आदि.

४ . अफ़सोस.

५ . धैर्यपूर्ण.

६ . उपेक्षा.

७ . वियोग की पीड़ा.

८ . रात का साथ.

९ . विषय-सन्दर्भ.

१० . परोक्ष रूप से.

११ . लिखने की ध्वनि.

१२ .शुभ सन्देश वाहक.

१३ . गहरे घाव को ढूँढने वाला.

१४ . पुष्प लहर का आना.

१५. प्रियवर की गवाही.

१६. प्यासे होंठ.

१७ . फंदा.

१८. जाल.

१९. प्रेमी.

२० . लाभ.

२१ . वार्तालाप का ढंग .

२२ . लिबास.

२३ . सिलना-पिरोना.

२४ . बात करने की शक्ति.

 -प्रबल प्रताप सिंह

गन्दा आरोप नहीं, गन्दा आदमी

उनसे कह दो, गुजरे हुए गवाहों से-
झूंठ तो बोले, मगर झूंठ का सौदा करे

यह पंक्तियाँ हमने अपने बचपन में किसी कवि के मुख से सुनी थी जिसका प्रभाव आज भी मन पर है आंध्र प्रदेश के राज्यपाल श्री नारायण दत्त तिवारी जी के ऊपर लगाया गया आरोप गन्दा नहीं हैगंदे आदमी पर यह आरोप लग के आरोप शर्मिंदगी महसूस कर रहा होगाश्री तिवारी जी आजादी की लड़ाई से आज तक दोहरे व्यक्तित्व के स्वामी रहे हैंउनका एक अच्छा उज्जवल व्यक्तित्व जनता के समक्ष रहा है दूसरा व्यक्तित्व न्यूज़ चैनल के माध्यम से जनता के सामने आया हैलखनऊ से दिल्ली , देहरादून से हैदराबाद तक का सफ़र की असलियत उजागर हो रही हैयह हमारे समाज के लिए लोकतंत्र के लिए शर्मनाक बात हैभारतीय राजनीति में, सभ्यता और संस्कृति में इस तरह के उदाहरण बहुत कम मिलते हैं लेकिन बड़े दुःख के साथ अब यह भी लिखना पड़ रहा है कि पक्ष और प्रतिपक्ष में राजनीति के अधिकांश नायको का व्यक्तित्व दोहरा हैइसमें किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए बस ईमानदारी से एक निष्पक्ष जांच की आवश्यकता है बड़े-बड़े चेहरे अपने आप बेनकाब हो जायेंगेगलियों- गलियों में हमारे वर्तमान नायको की कहानियाँ जो हकीकत में है सुनने को मिलती हैं। इन लोगो ने अपने पद प्रतिष्ठा का उपयोग इस कार्य में जमकर किया है जो निंदनीय हैइसलिए ऊपर लिखी पंक्तियाँ वास्तव में उनके व्यक्तित्व के यथार्थ को प्रदर्शित करती हैं
- सुमन

26.12.09

राज्य का मुखिया राज्यपाल

संविधान के अनुच्छेद 155 के तहत राष्ट्रपति किसी भी राज्य के कार्यपालिका के प्रमुख राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर और मुद्रा सहित अधिपत्र द्वारा नियुक्त करता हैआन्ध्र प्रदेश के राज्यपाल श्री नारायण दत्त तिवारी के कारनामो को देखने के बाद कार्यपालिका की भी स्तिथि साफ़ होती नजर राही हैझारखण्ड के मुख्यमंत्री श्री मधु कोड़ा के भ्रष्टाचार के मामले आने के बाद वहां भी राज्यपाल श्री शिब्ते रजी के ऊपर उंगलियाँ उठी थीराज्यपाल की भूमिका पर हमेशा प्रश्नचिन्ह लगते रहे हैंइस पद का इस्तेमाल केंद्र में सत्तारूढ़ दल अपने वयोवृद्ध नेताओं को राज्यपाल नियुक्त कर उनको जीवन पर्यंत जनता के टैक्स से आराम करने की सुविधा देता हैइन राज्यपालों के खर्चे शानो शौकत राजा रजवाड़ों से भी आगे होती हैलोकतंत्र में जनता से वसूले करों का दुरपयोग नहीं होना चाहिए लेकिन आजादी के बाद से राज्यपाल पद विवादास्पद रहा हैजरूरत इस बात की है कि ईमानदारी के साथ राज्यपाल पद की समीक्षा की जाएअच्छा तो यह होगा की इस पद की कोई उपयोगिता राज्यों में बची नहीं है इसको समाप्त कर दिया जाए
- सुमन