घर को किया रोशन गीतांजली ने
जहां समाज में बेटों को घर का चिराग माना जाता है वहीं गीता ने अपने आप को घर का चिराग सिद्ध किया है। आप जैसे ही गीता के घर में प्रवेश करेंगे तो घर की प्रत्येक दीवार पर गीता की कलाकृतियां दिखाई देंगी। गीता की बनाई पेंटिग तथा कलाकृतियों ने उसके घर को एक अलग पहचान दी है। गीता द्वारा सजाई गई घर की दीवारों को देखकर हर कोई वाह वाह किए बिना नहीं रह सकता। घर की प्रत्येक दीवार पर अलग अलग तरह की पेटिंग देखकर आने वाला पूरव् घर को देखे बिना वापिस नहीं जा पाता। गीता की कलाकृतियों ने घर को प्रदर्शनीगृह में बदल दिया है। इस घर में आपको आयॅल पेंटिग,फेब्रिक पेंटिंग,कलियोग्राफी पेंटिग, एंबोस पेंटिंग, स्प्रे पेंटिग, स्पंज पेंटिग मंत्रमुग्ध कर देंगी। ऐसे में इस घर में आने वाला व्यक्ति यह कहे बिना नहीं रह सकता कि गीता ने अपने घर को रोशन कर दिया है।
क्या कहना है गीतांजली का
इस संदर्भ में गीतांजली का कहना है कि मनुष्य को यह सोच कभी भी नहीं पालनी चाहिए कि उसके शरीर में कोई कमी हैं। गलत सोच ही मनुष्य को उसके काम में बांधा डालने में मजबूर करती है। भगवान ने जैसा शरीर दिया है उसे न नकार कर मनुष्य को उसी शरीर में कुछ नया कर दिखाना चाहिए। गीतांजली ने बताया कि उसके इन कार्यों में परिपूर्णता लाने में उनके परिवार का भी अहम योगदान है। उन्होंने कहा कि वह अपने परिवार पर बोझ नहीं बनना चाहती इसलिए अगर सरकार उसे उसकी योग्यता देखते हुए सरकारी नौकरी लगा दे तो वह अपने जीवन में बड़े होने पर भी उसे किसी के सहारे की आवश्यकता नहीं रहेगी।
मां उर्मिला को है बेटी पर नाज
अपनी इस होनहार बेटी को पाकर गीमांजली की मां उर्मिला काफी खुश है। हालांकि बेटी के अपाहिज होने का उसका गम गीता के बारें में बात करते हुए उसकी आंखों से निकलने वाले आंसू बयां कर देते हैं लेकिन अपनी बेटी को उत्साहित करके उसे इस मुकाम पर पहुंचाने में मां का बड़ा हाथ है। प्रत्येक पग पर बेटी के पांव बन उसे अपने पैरों पर खड़ा होने का होंसला देने वाली मां का कहना है कि बचपन में गीतांजली की हालत देखकर वह बहुत दुखी होती थी लेकिन गीता ने अपने हुनर व मेहनत से उसकी सारी मेहनत को पुरा कर दिया। अब गीता जैसी बेटी पाकर वह अपने आप को भाग्यशाली समझती है। मां उर्र्मिला को इस बात का गम है कि विकलांगों के उत्थान के लिए इतने दावे करने वाली सरकार ने आज तक उसकी कोई सुध नहीं ली है।