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13.2.11

लोगों कों खूब भा रहा है सुरजकुण्ड मेला

सूरजकुंड मेला हथकरघे पर बुने उत्कृष्ट डिजाईनों और समोहक वर्णों के लिये याद किया जायेगा। हाथ से बुने हुए वस्त्र पर्यटकों को अपनी ओर आकृष्ति कर रहे हैं। थीम राज्य आन्ध्र प्रदेश के ऐसे ही राष्ट्रीय याति प्राप्त डिजाईनों को लोग खूब पंसद कर रहे हैं। वस्त्रों पर उकेरी गई कशीदाकारी देखते ही बनती है। उनके डिजाईनों में कला की गहराई है और वह पौराणिक शास्त्रीय कथाओं को उसके अध्यात्मिक स्वरूप में प्रस्तुत करते हैं। आन्ध्र प्रदेश के शिल्प में जो सबसे प्रभावी बात देखने को मिलती है वह यह कि कोई भी डिजाईन केवल कलाकार की चपलता से प्रभावित ना होकर साधना की परिपक्वता को दर्शाता है। यहां हर डिजाईन में कुछ उद्देश्य छिपा हुआ है जो अंतत जिज्ञासु को धर्म, कर्म और मोक्ष के चरम लक्ष्य की ओर लेकर जाता है। यह बात केवल वस्त्र डिजाईन में ही नही बल्कि उनके नृत्य और समस्त जीवन शैली में भी नजर आती है।इन्हीं में से एक प्रमुख है मंगलागिरी साड़ी। मंगलागिरी आन्ध्र प्रदेश के गुंटूर जिले का एक छोटा कस्बा है। इन साड़ियों के भारी जरी बार्डर और मोनो स्ट्रिप एवं धागों से बुनी स्ट्रिप पल्लू स्त्रियों को काफी लुभा रहे हैं। साड़ियों की डिजाईनों में चैक के साथ जरी और रंगों का संतुलित मिश्रण किया गया है।साड़ियों का कपड़ा भी महीन बुनकरी से बुना गया है। हथकरघे की दोहरी बुनाई, उचित समायोजित आकार तथा बडी ही तन्मयता से धीरव् धीरव् की जाने वाली बुनाई इन साड़ियों को अदुभूत सौंदर्य और मजबूती प्रदान करती है। इनकी खास बात यह है कि प्रत्येक साड़ी की बुनाई और हस्तशिल्पी के ज्ञान की विविधता के कारण एवं धागे की बुनावट से विशिष्ट डिजाईन रखती है। उदीता धनलक्ष्मी के स्टाल पर ऐसी विशेष् डिजाईनर साड़ियों और वस्त्र देखने को मिलते हैं। वह बताती हैं कि उनके वस्त्रों में शुद्ध सूती और सिल्क का प्रयोग होता है तथा उन्हे वर्गाकार चौखटे की रूपरव्खा में बुना जाता है। वह राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता हैं और अपनी साड़ियों को विदेशों में निर्यात भी करती हैं। एक हट के मालिक बाबू रामकहते हैं कि उनके परिधानों में प्रयोग किये जाने वाले रंग एंटी एलर्जिक हैं। उनके परिधानो को मेले में हाथों हाथ लिया जा रहा है।मंगलागिरी साड़ियों की तरह ही आन्ध्र प्रदेश की गढ़वाल साड़ियां भी लोगों के आर्कष्ण का केंद्र बना हुआ है। अदुभूत सूती बेस पर भारी सिल्क बार्डर और पल्लू इन साड़ियों की खास विशेष्ता है। सिल्क की साड़ी में छींट का काम बहुत लुभाता है। गढवाल साड़ियों की सबसे प्रमुख विशेष्ता इसकी इंटरलाकड बुनाई शैली है जिसे कूपाडम के नाम से जाना जाता है इसलिये ही इसे कूपाडम साडियों के नाम से भी जाना जाता है। सिल्क बार्डर वाले यह परिधान तुस्सार सिल्क अथवा शहतूत सिल्क कहा जाता है। इन सडियों के सूती बेस में आजकल सिल्क की चैक का काम होता है , जिसे पचास पचास प्रतिशत की मात्रा में प्रयोग किया जाता है। इस मेले की शान में चार चांद लगाते हस्तशिल्पी राष्ट्रीय स्तर राज्य स्तर के अवार्ड जीत चुके हैं। इन अवार्डियों की प्रतिभागिता ने मेले की शोभा बढ़ाकर सूरजकुंड को गौरवान्वित किया है। सूरजकुंड क्राफट मेले में सोने की वस्तुओं की भांति दिखाई देने वाली पीतल की वस्तुएं आकर्ष्ण का केंद्र बनी रही। इनमें सोने की भांति दिखने वाली पीतल की लक्ष्मीगणेश, राधा कृष्ण, शिवपार्वती देवीदेवताओं की मूर्तियां हाथीघोड़े, सूर्य, घंटी, काजलदानी, पूजा का सामान सहित अनेक कलाकृतियां मौजूद हैं। उार प्रदेश के आजाद कुमार सोनी नामकहस्तशिल्प द्वारा लगाई स्टाल में सोने की भांति दिखने वाली इन कलाकृतियों में सौ ग्राम से तीस किलोग्राम भार की इन वस्तुएं को लोग दो सौ रुपये से तीस हजार रुपये तक में खरीद रहे थे। इस सबंध में आजाद सोनी बताया कि उनका परंपरागत काम बतौर सुनार सोनेचांदी की वस्तुएं बनाना था, लेकिन पिछले काफी समय से उनके परिवार के लोग सोनेचांदी की वस्तुएं बनाने की बजाए पीतल की एक विशेष तकनीक द्वारा बनाई गई वस्तुओं का व्यापार करने लगे हैं।मेले की नाट्यशाला में गत सायं मध्य प्रदेश, छाीसगढ़ और उड़ीसा के लोकनृत्य का कार्यक्रम प्रस्तुत किया गया। कार्यक्रम में श्रीमति प्रेम शिला वर्मा ने पांडवानी गायन से किया। उन्होंने महाभारत की कथा में से उस भाग का गायन किया जब पांडव अज्ञातवास के दौरान विराट नगर में रहे थे। इसके बाद राई नृत्य प्रस्तुत किया गया। यह नृत्य बुंदेलखण्ड के इलाके में बेड़नी जाति की महिलाओं और पुरुषें द्वारा संयुत रुप से किया जाता है। मध्य प्रदेश के सागर शहर से आए इन कलाकारों ने राधाकृष्ण की लीलाओं का मनोरम मंचन किया। कार्यक्रम के दौरान उड़ीसा के आदिवासी लोकनृत्यों की प्रस्तुति की गई, जिसमें भुवनेश्वर से आए कलाकारों ने डालखाई और दूसरव् नृत्य प्रस्तुत किए। डालखाई संभलपुर इलाके की एक ऐसी परंपरा है जैसे उारी भारत में रक्षा बंधन का दृश्य होता है। वहां नवरात्रों में बहने भाइयों के लिए व्रत रखती है और अष्ठमी के दिन नए अनाज के पकवान बनाकर व्रत खोलती हैं। स्पेन से मेला देखने आये मार्को गार्शिया और ऐंजेलिना को मेला बहुत ही बहुरंगी लगा। गार्शिया ने कहा कि उनके देश में हर जगह कार्निवाल प्रसिद्ध हैं परन्तु एक साथ ही इतनी विविधता कला और संगीत में उन्होंने पहले कभी नहीं देखी। ऐंजेलिना ने कहा कि भारत की विभिन्न संस्कृतियों के बारव् में सुना जरूर था परन्तु उसका वास्तविक अनुभव यहीं पर देखने को मिला। जापान से भारत घूमने आई इिश्मीतो ने लकड़ी और बांस का सामान खरीदा और उन्हें मेले में दक्षिण भारतीय भोजन और मेले के इंतजाम बहुत अच्छे लगे।रियोडी जैनरो से आये फर्नाडिज दंपति ने कहा कि यहां के शास्त्रीय नृत्य कूचिपूड़ी और राजस्थान के लंगा गायक बूंदे खान की प्रस्तुति बेहद शानदार लगी और वह देर सांय हर रोज संगीत संध्या में रहे हैं। वे भारत के लोगों की विविधता के साथ सामान्य भाव और सौहार्द से रहने की भावना से बेहद प्रभावित नजर आये। फ्रांस के लियरव् मेले में लोक धुनों पर नाचे , कला को जाना कला को बेचने वालों को जाना और ग्राहकों को भी जाना उन्होंने हा कि भारत में संतोष् की प्रवृति से वे हैरान हैं। यहां गरीब लोग संर्घष् करते हुए भी अराजक नहीं है और शांत भाव से जीवन की चुनौतियों से जूझते हैं , योंकि यहां के हर नृत्य में हर कला में धर्म और संस्कार छिपे हुए हैं जो मानवों को अराजकता और अनैतिकता एंव हिंसा से दूर कर सामान्य और संस्कारी रखते हैं।