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3.12.10

लल्लू भैया की शादी

मंच पर अपनी दुल्हन के संग स्थान ग्रहण किए लल्लू भइया बड़े मुस्कुरा रहे थे। आसपास बाराती व घराती अपने आप में मस्त थे । लल्लू भइया के चेहरे पर इतना मेकअप थोपा गया था कि जब-जब भी वह हँसते थे तो कुछ-कुछ रावण जैसे प्रतीत होते थे । लल्लू भइया को देखते-देखते पुरानी यादो में खो गया ।उन् दिनों लल्लूजी ने सोलहवें वसंत में प्रवेश किया था । हर कन्या को देखकर उनका मन का मयूर बन कर नृत्य करने लगता था । अपने ही मोहल्ले में रहने वाली एक कन्या पर लल्लू लट्टू हो गए थे । अब उसके घर के आस-पास ही उनका समय व्यतीत होने लगा । उनके घरवालों को उनका घर से बाहर रहना खला नहीं क्योंकि उन्होंने लल्लू जी को कई महीनों पहले ही आवारा घोषित कर दिया था । कन्या का नाम कम्मो था । वह दसवीं कक्षा की छात्रा थी । लल्लू भइया भी दसवीं कक्षा में थे । बस एक बार ही तो फेल हुए थे । आख़िर एक दिन उनकी मेहनत रंग लायी । लल्लू भइया ने कम्मो को फंसा लिया । अब लल्लू जी अपने गोल-मटोल शरीर वाले व्यक्तित्व पर अभिमान करने लगे तथा अपने साथियों के साथ किसी जीते हुए योद्धा की भांति हाथी जैसी मस्तानी चाल में चलते थे । कम्मो भी प्रसन्न थी उसे लल्लू के रूप में उसे एक व्यक्तिगत सहायक जो मिल गया था । वह उनसे अपना हर प्रकार का कार्य करवाती थी। लल्लू भइया भी कम्मो के प्रेमपाश में जकडे हुए उसकी प्रत्येक आज्ञा का पालन करते रहते। उन्होंने अपनी पढाई को संन्यास देकर कम्मो के गृह कार्य में अपना पूरा समय देना आरम्भ कर दिया था। कम्मो की सहेलियां कम्मो से ईर्ष्या भाव रखने लगीं थीं तथा अपने लिए भी लल्लू जैसे सुयोग्य बॉय-फ्रेंड खोजने का प्रयास करने लगीं थीं। लल्लू भइया कम्मो के प्रेम में खो कर प्रेम गीत लिखने लगे थे। एक दिन उनके पिता जी ने उनका लिखा प्रेम गीत पढ़ लिया और उनकी जमकर मरम्मत की। किन्तु लल्लू भइया के शरीर में भी राँझा,मजनूं व फरहाद जैसे महान प्रेमियों जैसा रक्त भरा था सो वे अपने प्रेम-पथ से तनिक भी विचलित नहीं हुए। एक दिन कम्मो छत पर लल्लू जी द्वारा दिए गए उपहार संग खेल रही थी। तभी उसके पड़ोस में रहने वाली उसकी सखी ने उस उपहार को भेंट करने वाले के विषय में कम्मो से पूछा। कम्मो ने मासूमियत से सबकुछ बता दिया। यह सुनते ही वह लड़की भड़क गई तथा कम्मो से बोली कि वह पंडित होकर एक नीच जाति के लड़के से कैसे मित्रता कर सकती है? कम्मो को जैसे सदमा सा लग गया उसने गुस्से में लल्लू द्वारा दिया गया उपहार छत से नीचे फैंक दिया । उस दिन लल्लू भइया का पहली बार ह्रदय टूटा था । वह ऋग्वेद के दसवें मंडल में वर्णित पुरूष सूक्त में विराट द्वारा चार वर्णों की उत्पत्ति को कोस रहे थे । कितने दुखी थे वह उस दिन । मित्रों के लाख समझाने के बावजूद भी उनका दुःख कम नही हुआ । उन्होंने गुटखा खाकर आत्महत्या करने का प्रयास किया और नशे में पार्क में कई घंटे चक्कर खाकर पड़े कम्मो से अपना ध्यान बंटाने के लिए लल्लू जी मुंह-तोड़ खेल मुक्केबाजी सीखना प्रारंभ कर दिया। वह स्टेडियम में अत्यधिक परिश्रम करने लगे। यह क्रम भी अधिक दिनों तक न चल सका । एक दिन उनके साथी मुक्केबाज़ ने उन्हें रिंग में ऐसा धोया कि उनका मुंह टमाटर जैसा लाल कर दिया । कई दिन शर्म के मारे वह घर से नहीं निकले । अब उन्होंने कई कन्यायों से एक साथ नैना मिलाने आरंभ कर दिये परन्तु सभी ने उन्हें भाई बनाना ही पसंद किया । एक कन्या की माँ ने तो लल्लू जी के कालर पकड़कर दो चार झापड़ भी रसीद दिये। पर लल्लू भइया हिम्मत नहीं हारते थे। यदि कोई कन्या उन्हें गलती से भी देख लेती वह उससे राखी या थप्पड़ ही लेकर लौटते थे। समय बीता और उन्होंने एक छोटी-मोटी नौकरी ढूँढ ली। सड़कों पर दौड़ लगाते और बसों में धक्के खाते-२ उनका "कन्या पटाऊ अभियान" चालू रहा। उनके प्रत्येक मित्र के पास गर्ल-फ्रेंड थी। अब उनके लिए यह प्रतिष्ठा का प्रश्न बन चुका था। किंतु कमबख्त किस्मत ऐसी थी कि कोई लड़की उन्हें घास नहीं डालती थी। अपनी इज्ज़त बचाने का उन्होंने एक उपाय खोजा। उन्होंने एक-दो कन्याओं को बहन बना लिया व कभी-२ उनके साथ घूमने-फिरने निकल जाते। जब कोई मित्र उन कन्यायों के विषय में पूछता तो वह आँख मार के मुस्करा देते। मित्र यह समझता कि वे सब लल्लू भइया कि गर्ल-फ्रेंड हैं। एक दिन उनके माता-पिता ने उनकी शादी पक्की कर दी। माँ-बाप कि चिंता जायज थी। क्योंकि लल्लू भइया कि उम्र काफ़ी हो गई थी तथा जो कोई भी रिश्ता लेकर आता था लल्लू जी के व्यक्तित्व को देख कर भाग खड़ा होता था। आख़िर एक लड़की का बाप एक दिन फंस ही गया। लल्लू जी के माँ-बाप ने चट मंगनी पट ब्याह की नीति अपनाई और उनके फेरे पडवा दिये। मित्रों ने पकड़कर हिलाया तो होश में आया। आशीर्वाद समारोह आरम्भ हो चुका था। हम सबने भी लल्लू भइया को बधाई दी व उनके संग कैमरे में कैद हो गए। मंच से उतरते हुए लल्लू जी के पिता जी पर दृष्टि गई तो उन्हें देखकर ऐसा लगा कि जैसे वे ईश्वर से कह रहे हों कि भला हो उसका जो उसने उनके लड़के की उम्र निकलने से पहले ही शादी करवा दी। लल्लू भइया को मुड़कर देखा तो प्रतीत हुआ कि वह भी कुछ ऐसा ही सोच रहे थे। रात को घर लौटते हुए मैं और मेरे मित्र पहले और अब के लल्लू भइया में तुलना करते हुए उनके सुखी विवाहित जीवन की कामना कर रहे थे।

3 टिप्पणियाँ:

Lallu bhaiya ki shadi majedar rahi

धन्यवाद जयदेव!
धन्यवाद महावीर मित्तल जी!

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