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2.6.10

लो क सं घ र्ष !: नये मनुष्य, नये समाज के निर्माण की कार्यशाला: क्यूबा -1

1959 में जब क्यूबा में सशस्त्र संघर्ष द्वारा बटिस्टा की सरकार को अपदस्थ करके फिदेल कास्त्रो, चे ग्वेवारा और उनके क्रान्तिकारी साथियों ने क्यूबा की जनता को पूँजीवादी गुलामी और शोषण से आजाद कराया तो उसके बाद मार्च 1960 में माक्र्सवाद के दो महान विचारक और न्यूयार्क से निकलने वाली माक्र्सवादी विचार की प्रमुखतम् पत्रिकाओं में से एक के संपादकद्वय पॉल स्वीजी और लिओ ह्यूबरमेन तीन हफ्ते की यात्रा पर क्यूबा गए थे। अपने अध्ययन, विश्लेषण और अनुभवों पर उनकी लिखी किताब ’क्यूबाः एनाटाॅमी आॅफ ए रिवाॅल्यूशन’ को वक्त के महत्त्व के नजरिये से पत्रकारिता, और गहरी तीक्ष्ण दृष्टि के लिए अकादमिकता के संयोग का बेहतरीन नमूना माना जाता है। आज भी क्यूबा को, वहाँ के लोगों, वहाँ की क्रान्ति और हालातों को समझने का यह एक ऐतिहासिक दस्तावेज है। बहरहाल, अपनी क्यूबा यात्रा की वजह से उन्हें अमेरिकी सरकार और गुप्तचर एजेंसियों के हाथों प्रताड़ित होना पड़ा था। ऐसे ही मौके पर दिए गए एक भाषण के कारण 7 मई 1963 को उन्हें अमेरिका विरोधी
गतिविधियों में लिप्त होने और क्यूबा की अवैध यात्रा करने और कास्त्रो सरकार के प्रोपेगंडा अभियान का हिस्सा होने के इल्जाम में एक सरकारी समिति ने जवाब-तलब किया था। वह पूछताछ स्मृति के आधार पर प्रकाशित की गई थी। उसी के एक हिस्से का हिन्दी तर्जुमाः
सवालः यह मंथली रिव्यू में 1960 से 1963 के दौरान क्यूबा पर प्रकाशित लेखों की एक सूची है। क्या यह सही है?
जवाबः यह सही तो है, लेकिन अधूरी है। हमने क्यूबा पर इससे ज्यादा लेख छापे हैं।
सवालः क्या इन लेखों को छापने के लिए आपको क्यूबाई सरकार ने कहा था?
जवाबः हर्गिज नहीं। हमने ये लेख अपने विवेक से प्रकाशित किए क्योंकि हमारी दिलचस्पी लम्बे समय से इस बात में है कि गरीबी, बेरोजगारी, बीमारी, अशिक्षा, रिहाइश के खराब हालात और अविकसित देशों में महामारी की तरह मौजूद असंतुलित अर्थव्यवस्था से उपजने वाली जो बुराइयाँ हैं, उनसे किस तरह निजात पाई जा सकती है। क्यूबा में क्रान्ति की गई और इन समस्याओं को हल किया गया। लैटिन अमेरिका के दूसरे देशों में ये बुराइयाँ अभी भी मौजूद हैं। सारे अविकसित लैटिन अमेरिकी देशों में सिर्फ एक ही देश है जहाँ ये बुराइयाँ खत्म की जा सकीं, और वह है क्यूबा।
सवालः क्या आप लैटिन अमेरिका के देशों में कम्युनिस्ट कब्जे/ तख्तापलट की हिमायत कर रहे हैं?
जवाबः मैंने ऐसा नहीं कहा बल्कि आपने कहा। मैंने कहा कि ये सारी बुराइयाँ सभी अविकसित देशों के लिए बड़ी समस्याएँ हैं, जिनमें लैटिन अमेरिका के देश भी शामिल हैं, और मेरे खयाल से इन समस्याओं का हल उस तरह के इंकलाब से निकलेगा, जो फिदेल कास्त्रो ने क्यूबा में किया है।
प्रसंगवश मैं ये भी बता दूँ कि लैटिन अमेरिका के लिए इस तरह के इंकलाब की तरफदारी मैं तब से कर रहा हूँ जब फिदेल कास्त्रो की उम्र सिर्फ करीब 10 बरस रही होगी।
सवालः क्या आप क्यूबा की कम्युनिस्ट सरकार के प्रोपेगैंडिस्ट (प्रचारक) हैं?
जवाबः मैं क्यूबा की ही नहीं, किसी भी सरकार का, या किसी पार्टी का या किसी और संगठन का प्रोपेगैंडिस्ट नहीं हूँ, लेकिन हाँ, मैं प्रोपेगैंडिस्ट हूँ-सच्चाई का।
इसके भी पहले लिओ ह्यूबरमैन ने जून 1961 में दिए एक भाषण में जो कहा था, वह आज भी प्रासंगिक है।
’’मैं एक क्षण के लिए भी स्वतंत्र चुनावों, अभिव्यक्ति की आज़ादी या प्रेस की आज़ादी के महत्त्व को कम नहीं समझता हूँ। ये उन लोगों के लिए बेहद जरूरी और सबसे महत्त्वपूर्ण आज़ादियाँ हैं जिनके पास खाने के लिए भरपूर है, रहने, पढ़ने-लिखने और स्वास्थ्य की देखभाल करने के लिए अच्छी सुविधाएँ हैं, लेकिन इन आजादियों की जरूरत उनके लिए सबसे पहली नहीं है जो भूखे हैं, निरक्षर हैं, बीमार और शोषित हैं। जब हममें से कुछ भरे पेट वाले खाली पेट वालों को जाकर यह कहते हैं कि उनके लिए मुक्त चुनाव सबसे बड़ी जरूरत हैं तो वे नहीं सुनेंगे; वे बेहतर जानते हैं कि उनके लिए दुनिया में सबसे ज्यादा जरूरी क्या है। वे जानते हैं कि उनके लिए सबसे ज्यादा और किसी भी और चीज से पहले जरूरी है रोटी, जूते, उनके बच्चों के लिए स्कूल, इलाज की सुविधा, कपड़े और एक ठीक-ठाक रहने की जगह। जिंदगी की ये सारी जरूरतें और साथ में आत्म सम्मान-ये क्यूबाई लोगों को उनके समूचे इतिहास में पहली बार हासिल हो रहा है। इसीलिए, जो जिंदगी में कभी भूखे नहीं रहे, उन्हेें ताज्जुब होता है कि वे (क्यूबा के लोग) कम्युनिज्म का ठप्पा चस्पा होने से घबराने के बजाय उत्साह में ’पैट्रिया ओ म्यूर्ते’ (देश या मौत) का नारा क्यों लगाते हैं।’’
जुल्म जब हद से गुजर जाए तो
1959 में क्यूबा में क्रान्ति होने के पहले तक बटिस्टा की फौजी तानाशाही वाली अमेरिका समर्थित सरकार थी। बटिस्टा ने अपने शासनकाल के दौरान क्यूबा को वहशियों की तरह लूटा था। अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने पर ही नहीं, शासकों के मनोरंजन के लिए भी वहाँ आम लोगों को मार दिया जाता था। अमेरिका के ठीक नाक के नीचे होने वाले इस अन्याय को अमेरिकी प्रशासन देखकर भी अनदेखा किया करता था क्योंकि एक तो क्यूबा के गन्ने के हजारों हेक्टेयर खेतों पर अमेरिकी कंपनियों का कब्जा था, चारागाहों की लगभग सारी ही जमीन अमेरिकी कंपनियों के कब्जे में थी, क्यूबा का पूरा तेल उद्योग और खनिज संपदा पर अमेरिकी व्यावसायिक घराने ही हावी थे। वे हावी इसलिए हो सके थे क्योंकि फौजी तानाशाह बटिस्टा ने अपने मुनाफे के लिए अपने देश का सबकुछ बेचना कबूल कर लिया था।

-विनीत तिवारी
मोबाइल : 09893192740

(क्रमश:)

1.6.10

सिखाय देव बलमा दस्तखत बनाना...............

"अशिक्षा समाज प्रदत्त अभिशाप है।" 
अभिशापित व्यक्ति के कष्टों का अंत नहीं। उसके कारण वह पग-पग 
पर कष्ट भोगता है। देरसबेर समाज को भी उसके दंश झेलने पड़ते हैं।
एक अभिशप्त नारी की व्यथा को इस लोकगीत में अनुभव कीजिए। 
                                                                -डॉ० डंडा लखनवी 

                       लोकगीत

सिखाय   देव बलमा  दस्तखत  बनाना।
सुहात   नाहीं  हमका  अंगुठा   लगाना॥

जब   मैं  जाती   बैंक   पइसा   निकारै,
अंगूठा    पकड़   बबुआ   शेखी   बघारै,

मिजाज वहिका लागै तनी आशिकाना॥
सिखाय  देव बलमा  दस्तखत बनाना॥
                                      
पोस्टमैन  आवै   मनिआडर  जो  लावै,
छापै  अंगूठा  की   कसि  कसि  लगावै,
सिहात  नाहीं वहिका  अंगुठा  दबाना।
सिखाय देव बलमा दस्तखत बनाना॥

आवै    चुनाव    मतदान    करै    जाई,
अंगुठा   थमाय   बाद   अंगुरी    थमाई,
चलत नाहीं  हुआं  सैयां  कोऊ बहाना।
सिखाय  देव  बलमा दस्तखत बनाना॥

लो क सं घ र्ष !: बुलबुल-ए-बे-बाल व पर - अंतिम भाग


फिर सिराजुद्दीन बहादुर शाह जफ़र को एक मामूली मुल्ज़िम की हैसियत से ज़िला वतन कर दिया। वह 1862ई0 में (रंगून में) अपने वतन से दूर इस आलम-ए-फ़ानी को तर्क कर गए।
सच तो यह है कि दिल्ली के आखि़री ताजदार ज़फ़र बेचारे, बेकस, बेदोस्त ओ यार और वाक़ई बेपरो बाल थे। लेकिन वे अपनी तमाम बेचारगियों और कमजोरियों के बावजूद हिन्दुस्तान में हिन्दू, मुस्लिम, इत्तेफाक़ और आजादी की अलामत रहे थे। इस राज़ से अंग्रेज सरकार भी बखूबी वाक़िफ़ थी कि ज़फ़र का कोई असर बाकी न छोड़ने के लिए हर मुमकिन कोशिश थी। खुद बा एतबार मुसलमानों से उनके खिलाफ प्रोपे्रगण्डा करवाया। बाज़ असहाब जानते बूझते अपने मफ़ादात की खातिर और बाज लोग बादिले नाख़्वास्ता (न चाहते हुए) बस अपनी कौम को तलवार के मुँह से बचाने की खातिर इस प्रोपेगण्डे में शामिल हो गए जैसा कि सर सैय्यद शामिल हुए थे और अपनी मारूफ़ तसनीफ़ (प्रसिद्ध रचना) असवाबे बग़ावत ए हिन्द में कलम बन्द फरमाया था-
‘‘दिल्ली के माज़ूल बादशाह (अपदस्थ राजा) का यह हाल था कि अगर उससे कहा जाता कि पाकिस्तान में जिन्नों का बादशाह आपका ताबेदार है तो वह उसको सच समझता और एक छोड़ दस फ़रमान लिख देता। दिल्ली का माज़ूल बादशाह हमेशा ख़्याल करता था कि मैं मक्खी और मच्छर बनकर उड़ जाता हूँ और लोगों की और मुल्कों की खबर ले आता हूँ और इस बात को वह अपने ख़याल में सच समझता और दरबारियों से तस्दीक़ चाहता था। ‘‘
‘‘दरअसल यह एक ऐसा बाअसर हरबा था (प्रभावशाली हथियार) जिसे अहले मग़रिब (पश्चिम देश वाले) सदियों से बड़ी खूबी से इस्तेमाल करते आए हैं और अहले बर्तानिया भी इस काम में माहिर थे। लेकिन सिर्फ यह मनफ़ी (नकारात्मक) प्रोपेगण्डा काफी नहीं था, उनकी वफ़ात के बाद भी हिन्दुस्तान की एकजहती और इत्तेफाक की मिटती अलामत का कोई निशान बाकी नहीं रहना था। ज़रा रंगून में कैदियों की निगरानी करने काले अंग्रेज अफसर नेलसन डेविस के रोजनामचे में ज़फ़र की तजहीज़ व तकफ़ीन (कफ़न व दफ़न) के हालात मुताला (अध्ययन) कीजिए और इस अलामत-ए-इकजहती का इन्हदाम (हार या पराजय) किस तरह रूए अमल आया वह देखिए व सबक हासिल कीजिए। इस सिलसिले में नेलसन डेविस ने अपने रोजनामचे में लिखा है-
‘‘रंगून जुमेरात सात नम्बर 1862ई0
अबू ज़फ़र मोहम्मद बहादुर शाह आज सुबह पाँच बजे इंतकाल कर गए, चूँकि तमाम तैयारियाँ मुक़म्मल थीं इसलिए आज ही शाम 4 बजे गार्ड के उक़ब (घेरे) में ईंटों की कब्र में उनकी तदफीन कर दी गई और कब्र की ऊपरी सतह पर मिट्टी डालकर सतहे जमीन के साथ हमवार (समतल) कर दी गई। थोड़े फासलों पर बाँसों का अहाता खींच दिया गया है ताकि जब तक बाँस गल सड़कर गिरें जमीन पर घास उग चुकी हो और कोई अलामत ऐसी बाकी न रहे जिससे आखिरी मुगल शहंशाह की कब्र की निशान देही की जा सके।
मरहूम की तजहीज़ व तकफ़ीन के लिए एक मुल्ला की खिदमात हासिल की गई थी। जनाजे को एक सन्दूक में रखकर ऊपर से सुर्ख रंग की एक सूती चादर से ढाँप दिया गया था मुसलमानों का एक हुजूम बाजार से आकर अहाते के करीब जमा हो गया था, लेकिन उस हुजूम को एक फ़ासले पर रखा गया और इस तरह कि उनमें से कोई भी मैय्यत को न छू सके। कोई नाखुश गवार वाक़िया पेश नहीं आया। बादशाह के दोनों बेटे जवँाबख्त और शाह अब्बास और बादशाह का खादिम अहमद बेग जनाजे के साथ थे। शाही खानदान के दीगर अफराद (बच्चों और औरतों) को जनाजे में शिरकत की इजाजत नहीं थी।
चुनाँचे हिन्दुस्तान की एकजहती और इत्तेफ़ाक़ की इस अलामत को मिटा देने और हिन्दुस्तान पर पूरी तरह कब्जा करने के बाद अंग्रेजों ने ‘‘बाँटो और हुक्म करो’’ की हिकमते अमली पर सऊरी तौर पर हिन्दुओं और मुसलमानों के दरमियान निफ़ाक़ (फूट) डाला और उन दो बड़ी क़ौमों को एक दूसरे से नफरत कराकर उनको एक दूसरे से लड़ाकर खुद हिन्दुस्तान पर अपना हुक्म चलाया। वे इस हिकमत ए अमली में इतना कामयाब रहे कि आज तक उनकी हिकमत ए अमली के असरात गाहे बगाहे महसूस किए जा रहे हैं। अब यह ख़बर सुनने में आई है कि जफर की मैय्यत रंगून से दिल्ली लाने की तहरीक चली है। यह बड़ी अच्छी खुशखबरी है।
क्योंकि जफर की मैय्यत को हिन्दुस्तान वापस मुन्तक़िल करने से तो शायद मैय्यत को कुछ नहीं मिलेगा। लेकिन यह हिन्दुस्तान में एक नये दौर की तरफ एक क़दम होगा जिसमें पुराने नफ़रतों को भुलाकर इत्तेहाद व इत्तेफ़ाक़ की यादें जिन्दा की जाएँगी और बहादुर शाह ज़फ़र फिर एक ऐसे दौर के रूये अमल आने की अलामत होंगे।

अनुवादक-मो0 जमील शास्त्री
साभार-चहारसू पत्रिका
प्रकाशित-रावलपिण्डी, पाकिस्तान

(समाप्त)

सरकार देश से कत्लखानों को बंद करवाए : राधेश्याम

एस.एस. जैन महासभा के प्रांतीय समेलन संपन्न
सफीदों, (हरियाणा) : सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की पालना करते हुए हरियाणा सरकार प्रदेश में जैन धर्म के प्रमुपर्युषण पर्वों के दौरान कत्लखानों को बंद करवाए। यह बात एस.एस. जैन महासभा के प्रांतीय अध्यक्ष राधेश्याम जैन ने कही। वे सफीदों के जैन मंदिर में महासभा के प्रांतीय समेलन को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि जैन धर्म में पर्युषण पर्व की बड़ी महता है। इन दिनों में जैन साधु-साध्वियां तथा श्रावक-श्राविकाएं तपस्या करते हैं। इस बात को ध्यान में रखते हुए जैन समाज ने सन २००५ में सर्वोच्च न्यायालय में अपील की। इस अपील को मंजूर करते हुए सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ के माननीय न्यायाधिपति मार्कण्डेय काटजू ने १४ मार्च २००८ केतिहासिक निर्णय में गुजरात उच्च न्यायालय का निर्णय बदलते हुए कहा था कि अहमदाबाद में जैन धर्मावलबियों की धार्मिक भावना का आदर करते हुए पर्युषण के दौरान दिन तक कत्लखाने बंद रखे जाने चाहिए। सम्राट अकबर का हवाला देते हुए कहा गया कि सम्राट अकबर ने भी धर्मावलबियों की धार्मिक भावना का आदर करते हुए शिकार मांस सेवन का निश्चित अवधि के लिए त्याग कर दिया था। प्रांतीय अध्यक्ष ने सरकार से पूरजोर अपील की कि पुर्यषण पर्वों के दिनों के दौरान प्रदेश में कत्लखाने पूरी तरह से बंद किए जाने चाहिए। इसके अलावा उन्होंने सरकार से मांग की कि अन्य राज्यों की तरह से ही ईसाईयों, मुसलमानों सिखों की तरह से प्रदेश के में जैन माज को अल्पसंयक का दर्जा दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि प्रदेश की कुल जनसंया में मात्र ५७१६७ ही जैन समाज के हैं। इसलिए इनकों अल्पसंका दर्जा दिया जाना जायज है। उन्होंने बताया कि मध्यप्रदेश, चंडीगढ़, उत्तरप्रदेश, त्तराचंल, राजस्थान, महाराष्ट, पश्चिम बंगाल, बिहार, तमिलनाडू, कर्नाटक दिल्ली की सरकारों ने जैन समाज को अल्पसंका दर्जा दिया हुआ है। उन्होंने कहा कि जैन समाज पिछड़ता ही चला जा रहा है। इसका मुकारण समाज में एकता का अभाव है। उन्होंने समाज के लोगों से आह्वान किया कि वे एकजूट रहें तथा एकजूट होकर अपने अधिकारों के लिए लड़ें। इस प्रांतीय समेलन में प्रदेश कार्यकारिणी के चुनाव भी संपन्न हुए। जिसमें काफी विचार-विमर्श के बाद सर्वसम्मति से राधेश्याम जैन को ही पुनः एस.एस. जैन महासभा का प्रांतीय अध्यक्ष चुन लिया गया। इसके अलावा महासचिव जे.पी. जैन तथा कोषध्यक्ष सुरेश चंद जैन को चुना गया। उपस्थित जैन समाज के लोगों ने सर्वसाति से हुई इन नियुक्तियों का स्वागत किया।

जातिगत जनगणना से भारतीय एकता को खतरा : ओझा

भारत विकास परिषद जोन-दो की क्षेत्रीय बैठक संपन्न
सफीदों, (हरियाणा) : सामाजिक संस्था भारत विकास परिषद के जोन-दो की क्षेत्रीय बैठक सफीदों के शुभम पैलेस में आयोजित की गई। भाविप के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष ईश्र्वर दत ओझा की अध्यक्षता में आयोजित इस बैठक में जोन-दो के सभी पदाधिकारियों के अलावा भाविप के राष्ट्रीय अतिरिक्त संगठन मंत्री केशव दता, स्थाई प्रकल्प के राष्ट्रीय मंत्री घनश्याम शर्मा, क्षेत्रीय संरक्षक एवं हरियाणा के पूर्व डिप्टी स्पीकर फकीरचंद अग्रवाल, राष्ट्रीय संस्कार प्रमुख अविनाश शर्मा का मार्गदर्शन प्राप्त हुआ। बैठक का आगाज भारत माता के चित्र पर दीपप्रज्ज्वलित कर वंदे मातरम गीत से किया। बैठक में मुख्य रूप से भाविप के विस्तार के लिए शाखा एवं सदस्यता में बढ़ौतरी के अलावा हरियाणा प्रांत में जारी सामाजिक गतिविधियों, क्षेत्रीय टीम की शपथ, जिला अधिकारियों के दायित्व ग्रहण कराने, केंद्र प्रांत से कार्यक्रमों की अपेक्षा, विभिन्न प्रांतों के कार्यक्रम निर्धारित करने तथा संस्कार सेवा कार्यक्रमों पर चर्चा की गई। इस क्षेत्रीय बैठक सबसे अहम चर्चा जातिगत जनगणना के विष्य पर हुई। बैठक में ध्वनिमत से जातिगत जनगणना करने को विरोध करने का क् प्रस्ताव पेश किया। बैठक को संबोधित करते हुए भाविप के राष्ट्र्रीय कार्यकारी अध्यक्ष ईश्र्वर दत ओझा ने कहा कि जातिगत जनगणना से भारतीय एकता को खतरा है। जातिगत विभाजन के कारण ही आक्रांताओं ने कई बार देश को बाटने का काम किया है। देश भारत विकास परिषद देश की वो संस्था जो भारत के विकास उसकी संस्कृति एवं मानवीय मूल्यों की रक्षा का चितंन करती है। किसी भी संस्था का मापदंड उसकी बढ़ौतरी से तय होता है। संस्था की बढौतरी ही सही मायनों में उसका विकास होता है। देश समाज सेवा के लिए किसी हद तक क् जुनून की जरूरत होती है। भारत विकास परिष्द के प्रत्येक कार्यकर्ता में समाज सेवा का वो जनून होगा तो भाविप का विस्तार छोटी से छोटी इकाई तक संभव होगा। समाजसेवा करने वालो पर भगवान की विशेष् अनुकंपा होती इसलिए वो समाज में भगवान के एक दूत के रूप में पहचाने जाते है। इस अवसर पर भाविप सफीदों के अध्यक्ष अश्र्वनी सैनी ने पूरे जोन से आए सभी पदाधिकारियों का स्वागत किया।

हिन्दु मैरिज एक्ट मे संशोधन होना जरूरी : फरमाणा

सफीदों, (हरियाणा) : देश की संस्कृति को बचाए रखने के लिए हिन्दु मैरिज एट मे संशोधन होना जरूरी है। यह बात पूर्व विधायक एवं राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी वरिष्ठ नेता सुखबीर सिंह फरमाणा ने पत्रकारों से बातचीत में कहीउन्होंने बताया कि यदि सरकार ने हिन्दु मैरिज एट मे सर्वखाप पंचायतों की मांग के अनुसार संशोधन नहीं किया तो सभी खापों के लोग संसद को घेरने के तैयारी करेंगे। इसके लिए उन्होंने आगामी २१ जून को अनेक खाप नेताओं की सहमति पर सोनीपत में प्रदेश स्तरीय बैठक बुलाई है जिसमे समीपवर्ती राज्यों राजस्थान, उत्तरप्रदेश दिल्ली के भी अनेक खाप नेता भाग लेंगे। फरमाणा ने कहा कि एक ही गोत्र गांव में शादी के विरोध में जन आंदोलन तैयार कि या जाएगा और अब तक के प्रयासों मे लोग इस दिशा मे अत्यंत उत्साहित हैं क्योंकि गैर जिमेदाराना अनैतिक संबंधों को न्यायपालिका पुलिस प्रशासन द्वारा दिया जा रहा संरक्षण हिन्दु समाज के लिए गंभीर चुनौती बनता जा रहा है। उन्होंने कहा कि ऐसे नाजायज संरक्षण के चलते युवा पीढ़ी के अनेक लोग भ्रमित होकर हमारी संस्कृति को मिटाने पर तुले हैं लेकिन सर्वखाप पंचायतों के आंदोलन का यह सुखद पहलू है कि खाप पंचायतों के आंदोलन को युवा पीढ़ी का भी बड़े पैमाने पर समर्थन हासिल हो रहा है। उन्होंने कहा कि हमारें समाज मे संबंधों की पवित्रता को कायम नहीं रखा गया तो कयामत ज्यादा दूर नहीं है।

पुलिस ने किया गांव स्तर पर क्राइम फ्री कमेटी का गठन

ग्रामीण क्षेत्रों को क्राइम मुक्त बनाने की कवायद
सफीदों, (हरियाणा) : सफीदों पुलिस क्षेत्र से क्राइम के खातमें को लिए हर दिन नएनए प्रयोग कर रही है। इसी कड़ी में सफीदों पुलिस ने ग्रामीण क्षेत्र को क्राइम मुक्त करने के लिए एक नई पहल की है। इस पहल में सबसे पहले पुलिस ने निकटवर्ती रामपुरा गांव को चुना। पुलिस ने रामपुरा गांव को क्राइम फ्री बनाने के लिए बारह सदस्यीय कमेटी गठित की है। सबसे अहम बात यह है कि इस कमेटी में गांव के हर वर्ग के लोगों को शामिल किया गया है। यह कमेटी न सिर्फ गांव में क्राइम को रोकेगी, बल्कि गांव के विकास में भी अहम भूमिका निभाएगी। सफीदों थाना प्रभारी दलीप सिंह ने बताया कि पुलिस हमेशा समाज में शांति एवं व्यवस्था बनाए रखने के लिए प्रयासरत रहती है, लेकिन फिर भी गांवों में क्राइम बढ़ता ही जा रहा है। उन्होंने बताया कि ग्रामीण क्षेत्र को क्राइम फ्री बनाने के लिए पुलिस विभाग ने विशेष पहल की है, जिसमें हलके के सभी गांवों में क्राइम फ्री कमेटियों का गठन किया जाएगा। इसी के मद्देनजर रामपुरा गांव में बारह सदस्यीय कमेटी का गठन किया गया है। उन्होंने बताया कि इस कमेटी में पूर्व सरपंच हरभजन सिंह, सुरेंदर सिंह, रणजीत सिंह, जसवंत सिंह, गुरभजन सिंह, जिलाराम, धर्मा, हरभजन सिंह, रोशनलाल, रमेश सैनी, इकबाल व कुशदीप सिंह को शामिल किया गया है। उन्होंने बताया ये कमेटी पुलिस और पलिक के बीच तालमेल बनाने के लिए अहम भूमिका निभाएगी। जल्द ही क्षेत्र के सभी गांवों में इन कमेटियों का गठन किया जाएगा।

राईस सैलर में आग लगने से चावल व बारदाना जलकर राख

सफीदों, (हरियाणा) : सफीदों के एक राईस सैलर में अचानक भयंकर आग लगने से लाखों रूपए का चावल बारदाना जलकर स्वाहा हो गया। मिली जानकारी के अनुसार सफीदों के हाट रोड़ पर स्थित आर.एस.एस.के. राईस सैलर में हर रोज की भांति कार्य चल रहा था कि अचानक एक मजदूर ने सैलर मालिकों को सूचना दी कि गोदाम से धूआ निकल रहा है। धुंआ निकलने की बात सुनकर सैलर मालिकों की पैरों तले की जमीन खिसक गई। वे आननफानन में गोदाम की तरफ दौड़े तथा गोदाम खोलकर देखा तो पाया कि गोदाम से धुंए के गुबार उठ रहे थे।सैलर मालिकों ने इसकी सूचना सफीदों फायर बिग्रेड को दी। सूचना मिलते ही सफीदों फायर बिग्रेड मौके पर पहुंची। आग बुझाने के काफी प्रयास किए लेकिन आग पर काबू नहीं पाया जा सका। आग पर काबू ना आता देखकर असंध अन्य स्थानों पर फायर ब्रिगेड को सूचित किया गया। सूचना मिलने पर असंध अन्य स्थानों से फायर ब्रिगेड ने मौके पर पहुंची। संयुक्त प्रयासों से कई घंटों की मशक्कत के बाद आग पर काबू पाया जा सका। राईस सैलर के मालिक अशोक कुमार ने बताया कि इस घटना में उनका लाखों रूपए का चावल बारदाना जलकर राख हो गया है। आग लगने का कारण गोदाम में बिजली का सार्ट सर्किट होना बताया जाता है।

लो क सं घ र्ष !: ब्लॉग उत्सव 2010

सम्मानीय चिट्ठाकार बन्धुओं,

सादर प्रणाम,

आज दिनांक 31.05.2010 को परिकल्पना ब्लोगोत्सव-2010 के अंतर्गत बीसवें दिन के कार्यक्रम का लिंक -

ब्लोगोत्सव की आखिरी परिचर्चा : क्या आत्मा अमर है ?

http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_31.html

ुमन सिन्हा की कविता : तुम्हारे नामhttp://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_4302.html

मैं पुनर्जन्म नही मानता : कर्नल अजय कुमार http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_607.html

बसंत आर्य की लघुकथा : खिडकियाँ

http://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_31.html

कई उदहारण भी हैं....जिससे यह प्रमाणित होता हैं कि पुनर्जन्म है : नवीन कुमार

http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_4928.html

दिविक रमेश की दो

http://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_943.html

मेरे विचार से पुनर्जन्म होता है : वंदना श्रीवास्तव http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_7060.html

रजिया मिर्ज़ा का संस्मरण : सलाम एक ग़रीब की महानता को

http://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_6910.html

हाँ कुछ है जिसे हम पुनर्जन्म कह सकते है...क्या आप मानते है??" : नीता

http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_9978.html

मंजू गुप्ता की कविताएँ

http://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_1803.html

मेरे लिए मेरा अनोखा बंधन ही पुनर्जन्म है ... प्रीती मेहता http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_3367.html

कारगिल के शहीदों को नमन :पवन चन्दन की कविता

http://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_3928.html


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अंतरजाल पर परिकल्पना के श्री रविन्द्र प्रभात द्वारा आयोजित ब्लॉग उत्सव 2010 लिंक आप लोगों की सेवा में प्रेषित हैं।

-सुमन
loksangharsha.blogspot.com