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14.5.10

दिलों में नहीं आई दरारें




लेखक : कुलवंत हैप्पी
पिछले कई दिनों से मेरी निगाह में पाकिस्तान से जुड़ी कुछ खबरें आ रही हैं, वैसे भी मुझे अपने पड़ोसी मुल्कों की खबरों से विशेष लगाव है, केवल बम्ब धमाके वाली ख़बरों को छोड़कर। सच कहूँ तो मुझे पड़ोसी देशों से आने वाली खुशखबरें बेहद प्रभावित करती हैं। जब पड़ोसी देशों से जुड़ी किसी खुशख़बर को पढ़ता हूँ तो ऐसा लगता है कि अलग हुए भाई के बच्चों की पाती किसी ने अखबार के मार्फत मुझ तक पहुंचा दी। इन खुशख़बरों ने ऐसा प्रभावित किया कि शुक्रवार की सुबह अचानक लबों पर कुछ पंक्तियाँ आ गई।

दिल्ली से इस्लामाबाद के बीच जो है फासला मिटा दे, मेरे मौला,
नफरत की वादियों में फिर से, मोहब्बत गुल खिला दे, मेरे मौला,

सच कहूँ, हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के बीच अगर कोई फासला है तो वो है दिल्ली से इस्लामाबाद के बीच, मतलब राजनीतिक स्तर का फासला, दिलों में तो दूरियाँ आई ही नहीं। रिश्ते वो ही कमजोर पड़ते हैं, यहाँ दिलों में दूरियाँ आ जाएं, लेकिन यहाँ दूरियाँ राजनीतिज्ञों ने बनाई है। साहित्यकारों ने तो दोनों मुल्कों को एक करने के लिए अपनी पूरी जान लगा दी है। अगर दिलों में भी मोहब्बत मर गई होती तो शायद श्री ननकाणा साहिब जाने वाले सिखों का वहाँ गर्मजोशी से स्वागत न होता, गुजरात की सीमा से सटे पाकिस्तान में खण्डहर बन चुके जैन मंदिरों को मुस्लिम अब तक संभाले न होते, शोएब के मन में सानिया का घर न होता, जाहिदा हीना जैसे लेखिका कभी पाकिस्तान की डायरी न लिख पाती और नुसरत फतेह अली खाँ साहिब, साजिया मंजूर, हस्न साहिब दोनों मुल्कों की आवाम के लिए कभी न गाते।

दिल चाहता है कि दोनों मुल्कों की सरकारों में साहित्यकार घूस जाएं, और मिटा दें राजनीतिज्ञों द्वारा जमीं पर खींची लकीर को। एक बार फिर हवा की तरह एवं अमन पसंद परिंदों की तरह सरहद लाँघकर बेरोक टोक कोई लाहौर देखने जाए, और कोई वहाँ दे दिल्ली घूमने आए। पंजाब में एक कहावत आम है कि जिसने लाहौर नहीं देखा, वो पैदा ही नहीं हुआ, ऐसा होने से शायद कई लोगों का पैदा होना होना हो जाए। जैन समाज खण्डहर हो रहे अपने बहुत कीमती मंदिरों को फिर से संजीवित कर लें, हिन्दु मुस्लिम का भेद खत्म हो जाए और बाबरी मस्जिद का मलबा पाकिस्तान में बसते हिन्दुओं पर न गिरे। हवाएं कुछ ऐसी चलें कि दोनों तरह अमन की बात हो, वैसे भी पाकिस्तानी आवाम भारत को अपने बड़े भाईयों के रूप में देखती है।

जी हाँ, जब हिन्दुस्तान में महिला आरक्षण बिल पास हुआ था, तो पाकिस्तानी महिलाओं ने अपने हकों के लिए वहाँ आवाज़ बुलंद की, और दुआ की कि भारत की तरह वहाँ भी महिला शक्ति को अस्तित्व में ला जाए। भारत में जब अदालत का फैसला 'गे समुदाय' के हक में आया तो पाकिस्तान में 'गे समुदाय' भी आवाज बुलंद कर उठा, जो कई वर्षों से चोरी चोरी पनप रहा था, किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि भारतीय अदालत का फैसला पाकिस्तान में दुबक कर जीवन जी रहे गे समुदाय में भी जान फूँक जाएगा।

पाकिस्तानी आवाम व हिन्दुस्तानी जनता के दिलों में आज भी एक दूसरे के प्रति मोहब्बत बरकरार है, शायद यही कारण है कि पाकिस्तान में संदेश नामक सप्ताहिक अखबार की शुरूआत हुई, जो सिंध में बसते हिन्दु समाज की समस्याओं को पाकिस्तानी भाषा में उजागर करता है। पाकिस्तानी मीडिया हिन्दुओं पर होने वाले अत्याचारों को ज्यादा अहमियत नहीं देता, लेकिन संदेश ने हिन्दु समाज के लिए वो काम किया, जिसकी कल्पना कर पाना मुश्किल है। इतना ही नहीं, पंजाबी बोली को बचाकर रखने के लिए पाकिस्तानी पंजाब में भी कई संस्थाएं सक्रिय हैं।

पाकिस्तान की सीमा से सटे पंजाब में कबूतर पालने का चलन आज भी है। लेकिन कबूतर पालकों की खुशी तब दोगुनी हो जाती है, जब कोई पाकिस्तानी अमन पसंद परिंदा उनकी छत्री पर एकाएक आ बैठता है। उनको वैसा ही महसूस होता है जैसा कि सरहद पार से आए किसी अमन पसंद व्यक्ति को मिलकर। काश! इन परिंदों की तरह मानव के लिए भी सरहदें कोई अहमियत न रखें। लेखक की दिली तमन्ना है कि एक बार फिर से Diwali में अली और Ramjan में राम नजर आएं।