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9.9.10

महिला खेत पाठशाला का तेरहवां सत्र
















हालाँकि आज के दिन एक तरफ तो राष्ट्रिय हड़ताल का आह्वान था तथा दूसरी तरफ सुबह सात बजे से ही तेज़ बारिस को रही थी. फिर भी आज दिनांक 7 /9 /10 को निडाना गावँ में चल रही महिला खेत पाठशाला के तेरहवें सत्र का आयोजन किया गया. सत्र का आरंभ रनबीर मलिक, मनबीर रेड्हू व डा.कमल सैनी के नेतृत्व में महिलाओं द्वारा अपने पिछले काम की विस्तार से समीक्षा तथा दोहराई से हुआ. डा.कमल सैनी ने लैपटाप के जरिये महिलाओं को उन तमाम मांसाहारी कीटों के चमचमाते फोटो दिखाए जो अब तक निडाना के खेतों में पकड़े जा चुके हैं. इनमे लोपा, छैल, डायन, सिर्फड़ो व टिकड़ो आदि छ किस्म की तो मक्खियाँ ही थी. इनके अलावा एक दर्जन से अधिक किस्म की लेडी-बीटल, पांच किस्म के बुगड़े, दस प्रकार की मकड़ी, सात प्रजाति के हथजोड़े व अनेकों प्रकार के भीरड़-ततैये-अंजनहारी आदि परभक्षियों के फोटो भी महिलाओं को दिखाए गये. गिनती करने पर मालुम हुआ कि अभी तक कुल मिलाकर सैंतीस किस्म के मित्र कीटों की पहचान कर चुके हैं जिनमें से छ किस्म के खून चुसक कीड़े व इक्कतीस तरह के चर्वक किस्म के परभक्षी हैं. स्लाइड शौ के अंत में महिलाओं को मिलीबग को कारगर तरीके से ख़त्म करने वाली अंगीरा, फंगिरा व जंगिरा नामक सम्भीरकाओं के फोटो दिखाए गये. इस मैराथन समीक्षा के बाद महिलाएं कपास की फसल का साप्ताहिक हाल जानने के लिए पिग्गरी फार्म कार्यालय से निकल कर राजबाला के खेत में पहुंची. याद रहे डिम्पल की सास का ही नाम है-राजबाला. आज निडाना में क्यारीभर बरसात होने के कारण राजबाला के इस खेत में भी गोडै-गोडै पानी खड़ा है. इस हालत में जुते व कपड़े तो कीचड़ में अटने ही है. इनकी चिंता किये बगैर महिलाएं अपनी ग्रुप लीडरों सरोज, मिनी, गीता व अंग्रेजो के नेतृत्व में कीट अवलोकन, सर्वेक्षण, निरिक्षण व गिनती के लिए कपास के इस खेत में घुसी. महिलाओं के प्रत्येक समूह ने दस-दस पौधों के तीन-तीन पत्तों पर कीटों की गिनती की. इस गिनती के साथ अंकगणितीय खिलवाड़ कर प्रति पत्ता कीटों की औसत निकाली गई. महिलाओं के हर ग्रुप ने चार्टों क़ी सहायता से अपनी-अपनी रिपोर्ट सबके सामने प्रस्तुत की. सबकी रिपोर्ट सुनने पर मालूम हुआ कि इस सप्ताह भी राजबाला के इस खेत में कपास की फसल पर तमाम नुक्शानदायक कीट हानि पहुँचाने के आर्थिक स्तर से काफी निचे हैं तथा हर पौधे परकड़ियों की तादाद भी अच्छी खासी है. इसके अलावा लेडी-बीटल, हथजोड़े, मैदानी-बीटल, दिखोड़ी, लोपा, छैल, व डायन मक्खियाँ, भीरड़, ततैये व अंजनहारी आदि मांसाहारी कीट भी इस खेत में नजर आये हैं. थोड़ी-बहुत नानुकर के बाद सभी महिलाएं इस बात पर सहमत थी कि इस सप्ताह भी कपास के इस खेत में राजबाला को कीट नियंत्रण के लिए किसी कीटनाशक का छिड़काव करने की आवश्यकता नही है. यहाँ गौर करने लायक बात यह है कि रानी, बिमला, सुंदर, नन्ही, राजवंती, संतरा व बीरमती आदि को अपने खेत में कपास की बुवाई से लेकर अब तक कीट नियंत्रण के लिए कीटनाशकों के इस्तेमाल की आवश्यकता नहीं पड़ी. इनके खेत में कीट नियंत्रण का यह काम तो किसान मित्र मांसाहारी कीटों, मकड़ियों, परजीवियों तथा रोगाणुओं ने ही कर दिखाया. ठीक इसी समय कृषि विभाग के विषय विशेषग डा.राजपाल सूरा भी महिला खेत पाठशाला में आ पहुंचे. रनबीर मलिक ने खेत पाठशाला में पधारने पर डा.राजपाल सूरा का स्वागत किया. परिचय उपरांत, डा.सूरा ने इन महिलाओं से कीट प्रबंधन पर विस्तार से बातचीत की. उन्होंने बिना जहर की कामयाब खेती करने के इन प्रयासों की भूरी-भूरी प्रशंसा करते हुए, महिलाओं से इस काम को अन्य गावों में भी फैलाने की अपील की. इसके बाद अंग्रेजो ने महिलाओं को सेब वितरित किये. ये सेब डा.सूरा स्वयं के खर्चे से जींद से ही खरीद कर लाये थे. जिस समय महिलाएं सेब खा रही थी ठीक उसी समय मनबीर व रनबीर कहीं से गीदड़ की सूंडी समेत कांग्रेस घास की एक ठनी उठा लाये. इसे महिलाओं को दिखाते हुए, उन्होंने महिलाओं को बताया कि यह गीदड़ की सूंडी वास्तव में तो मांसाहारी कीट हथजोड़े की अंडेदानी है. इसमें अपने मित्र कीट हथजोड़े के 400 -500 अंडे पैक हैं. सत्र के अंत में डा.सुरेन्द्र दलाल ने मौसम के मिजाज को मध्यनज़र रखते हुए इस समय कपास की फसल को विभिन्न बिमारियों से बचाने के लिए किसानों को 600 ग्राम कापर-आक्सी-क्लोराइड व 6 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन का 150-200 लिटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करने की सलाह दी.

8.8.10

महिला खेत पाठशाला का आठवां सत्र।

इस जिले के गावं निडाना में चल रही खेत पाठशाला में आज महिलाएं, डिम्पल के खेत में कपास के कीड़ों की व्यापक पैमाने पर हुई मौत देख कर हैरान रह गई। डिम्पल की सास से पुछताछ करने पर मालूम हुआ कि तीन दिन पहले कपास के इस खेत में विनोद ने जिंक, यूरिया डी..पी. आदि रासायनिक उर्वरकों का मिश्रित घोल बना कर स्प्रे किया था। यह घोल 5.5 प्रतिशत गाढ़ा था। इसका मतलब 100 लिटर पानी में जिंक की मात्रा आधा कि.ग्रा., यूरिया की मात्रा ढ़ाई कि.ग्रा. डी..पी. की मात्रा भी ढ़ाई कि.ग्रा. थी। पोषक तत्वों के इस घोल ने कपास की फसल में रस चूसकर हानि पहूँचाने वाले हरा-तेला, सफेद-मक्खी, चुरड़ा मिलीबग जैसे छोटे-छोटे कीटों को लगभग साफ कर डाला तथा स्लेटी-भूंड, टिड्डे, भूरी पुष्पक बीटल तेलन जैसे चर्वक कीटों को सुस्त कर दिया। इस नजारे को देखकर कृषि विज्ञान केन्द्र, पिंडारा से पधारे वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डा. यशपाल मलिक डा. आर.डी. कौशिक हैरान रह गये। उन्होने मौके पर ही खेत में घुम कर काफी सारे पौधों पर कीटों का सर्वेक्षण निरिक्षण किया। हरे तेले, सफेद मक्खी, चुरड़ा व मिलीबग की लाशें देखी। इस तथ्य की गहराई से जांच पड़ताल की। डा.आर.डी.कौशिक ने कृषि विश्वविद्यालय, हिसार में प्रयोगों द्वारा सुस्थापित प्रस्थापनाओं की जानकारी देते हुए बताया कि पौधे अपने पत्तों द्वारा फास्फोरस नामक तत्व को ग्रहण नही कर सकते।
डा. यशपाल-कांग्रेस घास के खतरे।
घोल के स्प्रे से मरणासन-हरा तेला।
इस मैदानी हकीकत पर डा. कौशिक की यह प्रतिक्रिया सुन कर निडाना महिला पाठशाला की सबसे बुजर्ग शिक्षु नन्ही देवी ने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए फरमाया कि आम के आम व गुठ्ठलियों के दाम वाली कहावत को इस स्प्रे ने सच कर दिखाया, डा. साहब। इब हाम नै इस बात तै के लेना-देना अक् पौधे इस थारे फास्फोरस नै पत्ता तै चूसै अक् जड़ा तै।
घोल के स्प्रे से सुस्त टिड्डा।
जिंक, यूरिया व डी.ए.पी. के इस 5.5 प्रतिशत मिश्रित घोल के दोहरे प्रभाव (पौधों के लिये पोषण व कीड़ों के लिये जहर) की जांच पड़ताल निडाना के पुरुष किसान पहले भी कर चुके हैं पर महिलाओं के लिये इस घोल के दोहरे प्रभाव देखने का यह पहला अवसर था।
मे-मक्खी।
पेन्टू बुगड़ा के अंडे व अर्भक।
सांठी वाली सूंडी।
सांठी वाली सूंडी का पतंग
घोल के स्प्रे से सुस्त-भूरी पुष्पक बीटल।
डा.यशपाल मलिक व डा. आर.डी.कौशिक ने जिंक, यूरिया व डी.ए.पी. के इस 5.5 प्रतिशत मिश्रित घोल के दोहरे प्रभाव की इस नई बात को किसी ना किसी वर्कशाप में बहस के लिये रखने का वायदा किया। इसके बाद महिलाओं के सभी समूहों ने डा. कमल सैनी के नेतृत्व में कपास के इस खेत से आज की अपनी कीटों की गणना, गुणा व भाग द्वारा विभिन्न कीटों के लिये आर्थिक स्तर निकाले तथा सबके सामने अपनी-अपनी प्रस्तुती दी। सभी को यह जानकर बहुत खुशी हुई कि इस कपास के खेत में हानिकारक कीटों की संख्या सिर्फ ना का सिर फोड़ने भर वाली है। इन कीटों में से कोई भी कीट हानि पहुँचाने की स्थिति में नही है। विनोद की माँ ने चहकते हुए बताया कि इस खेत में कपास की बिजाई से लेकर अब तक किसी कीटनाशक के स्प्रे की जरुरत नही पड़ी है। यहाँ तो मांसाहारी कीटों ने ही कीटनाशकों वाला काम कर दिया। ऊपर से परसों किये गए उर्वरकों के इस मिश्रित घोल ने तो सोने पर सुहागा कर दिया।
नए कीड़ों के तौर पर महिलाओं ने आज के इस सत्र में कपास के पौधे पर पत्ते की निचली सतह पर पेन्टू बुगड़ा के अंडे व अर्भक पकड़े। राजवंती के ग्रुप ने एक पौधे पर मे-फ्लाई का प्रौढ़ देखा। पड़ौस के खेत में सांठी वाली सूंडी व इसके पतंगे भी महिलाएं पकड़ कर लाई। इस सूंडी के बारे में अगले सत्र में विस्तार से अध्यन करने पर सभी की रजामंदी हुई।
सत्र के अंत में समय की सिमाओं को ध्यान में रखते हुए, डा. यशपाल मलिक ने "कांग्रेस घास - नुक्शान व नियंत्रण" पर सारगर्भीत व्याखान दिया जिसे उपस्थित जनों ने पूरे ध्यान से सुना।

30.6.10

महिला खेत पाठशाला का तीसरा सत्र

मकड़ियों ने दी चुरड़े को मात

गत दिवस गाँव निडाना की महिला खेत पाठशाला के तीसरे सत्र में महिलाओं ने कपास के खेत में 5-5 के समूह में 10-10 पौधों का बारिकी से अवलोकन एवं निरीक्षण करते हुए पाया कि कपास के इस खेत में चुरड़ा नामक कीट न के बराबर है। इसे परभक्षी मकड़ियों ने लगभग चट ही कर दिया। महिलाओं ने कपास के पौधों पर हानिकारक कीट हरे तेले के बच्चों का शिकार करते हुए लाल जूँ को मौके पर ही पकड़ लिया। महिलाओं ने खेत पाठशाला के इस सत्र में सफेद मक्खी के शिशुओं के पेट में एनकार्सिया नामक कीट के बच्चों को पलते देखा है। 5-5 के इन महिला समूहों को सुश्री राजवन्ती, गीता, मीना, सरोज, केलां एवं बीरमती ने नेतृत्व प्रदान किया। प्रशिक्षकों के तौर पर डाक्टर कमल सैनी, मनबीर रेढु, रनबीर मलिक व डाक्टर सुरेन्द्र दलाल उपस्थित थे। दस-दस पौधों पर कीट अवलोकन एवं उनकी गिनती के बाद आपस में चर्चा करके चार्ट किये तदोपरांत सब समूहों के सामने अपनी-अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। इस दौरान उन्होने बताया कि कपास के इस खेत में आज के दिन हरा तेला, सफेद मक्खी, चुरड़ा आदि सम्मेत सभी रस चूसक हानिकारक कीट आर्थिक हानी पहूँचाने के स्तर से काफी निचे हैं। कपास का भस्मासुर मिलीबग तो पच्चास पौधों पर सिर्फ एक ही मिला। अतः इस सप्ताह कपास के इस खेत में कीट नियंत्रण के लिये किसी कीटनाशक का स्प्रे करने की कोई आवश्यकता नही है।

महिला खेत पाठशाला के इस सत्र में महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय में कार्यरत अर्थशास्त्री डाक्टर राजेंद्र चौधरी महिलाओं के इस खेत प्रशिक्षण कार्यक्रम को नजदीक से देखने व समझने के लिए उपस्थित थे। उन्होने बताया कि आज किसान का खर्चा मुख्यतौर पर तीन चिजों- खाद, बीजों व किटनाशकों पर होता है। निडाना में पिछले तीन सालों से जारी इन खेत पाठशालों में जारी प्रयोगों ने किसान का किटनाशकों पर होने वाला खर्चा तो लगभग खत्म सा ही कर दिया। उन्होने आशा कि की आने वाले दिनों में किसानों के अपने अनुभव से बीज और खाद के खर्चे भी कम होंगे। उन्होने यह भी कहा कि इस पाठशाला के माध्यम से खेती में महिलाओं की भूमिका को स्वीकार कर के एक ऩई शुरूआत की गई है। उन्होने आशा प्रकट की कि आज जो निडाना में हो रहा है वह कल पूरे हरियाणा में होगा। यह नई राह दिखाने के लिए निडाना गांव का आभार जताया।

23.6.10

महिला खेत पाठशाला का दूसरा सत्र








मंगलवार का दिन हिन्दुओं में हनुमान के नाम होता है| मंगलवार के दिन बरती रहना व प्रसाद बाँटना आम बात है| इस दिन ज्यादातर नाई भी अपनी दुकान बंद रखते हैं| परन्तु इनसे हटकर निडाना गावं में यह मंगलवार का दिन महिला खेत पाठशाला के नाम मुकर्र है| आज सुबह सवेरे ही महिलायें घर के काम निपटा कर आठ बजे ही डिम्पल पत्नी विनोद के खेत में पहुँच चुकी थी| उन्होंने कृषि विभाग के अधिकारियों का इंतजार किये बगैर ही पौधों के अवलोकन व् निरिक्षण का काम शुरू कर दिया था| भूमि संरक्षण अधिकारी, डा.मीना सुहाग जब डा.सुरेन्द्र दलाल व् मनबीर के साथ इस पाठशाला में पहुंची तो महिलाएं खेत में कीटों का निरक्षण कर रही थी| महिला अधिकारी को अपने बीच पाकर अर वो भी इतने सवेरे, महिलाओं की ख़ुशी का ठिकाना नही रहा| महिलाओं ने लस्सी पिलाकर अपनी इस अधिकारी, डा.मीना सुहाग का स्वागत किया | इसके बाद इन महिलाओं ने पांच-पांच के समूह बनाए| अपने साथ एक-एक उत्प्रेरक लिया| एक टोली के साथ जिले के कीट विशेषग किसान मनबीर रेड्हू, दुसरे ग्रुप के साथ डा.कमल सैनी, तीसरे समूह के साथ, डा.सुरेन्द्र दलाल, चौथे समूह के साथ रणबीर मालिक व् पांचवे समूह के साथ मीना मालिक थी| सभी समूहों ने दस-दस पौधों का बारीकी से निरिक्षण किया व् इन पौधों पर कीटों की गिनती की| इसके बाद हर समूह ने अपनी-अपनी प्रस्तुति दी| आज कपास के इस खेत में हानिकारक कीटों के रूप में सफ़ेद मक्खी, ह्ऱा-तेला, चुरडा व् मिलीबग की उपस्तिथि तो सभी समूहों ने दर्ज कराई पर इनमेसे कोई भी कीट आर्थिक- दहलीज़ को पार करते हुए नही पाया गया| महिला-समूहों की इस प्रस्तुति का निचोड़ पेश करते हुए डा.कमल सैनी ने बताया की आज के दिन इस फसल पर किसी भी कीटनाशक का छिडकाव करने की कोई आवश्यकता नही है| लाभदायक कीटों के रूप में अभी तक इस खेत में सिवाय मकड़ियों के कोई कीट नही देखा गया| पर इस बात मीणा मलिक ने सैनी सर को याद दिलाया की आज हमने मिलीबग को परजीव्याभीत करने वाला अंगीरा भी तो देखा है| डा.दलाल ने भी इस छात्रा की हाँ में हाँ मिलाई और मौके पर सभी को अंगीरा से परजीव्याभित मिलीबग दिखाए जिनके शरीर से आटानूमा पाउडर उड़ चुका था तथा इनका शरीर लाली लिए भूरा पड़ चुका था|इस ख़ुशी की सुचना पर सभी महिलाओं ने तालियाँ बजाई| मनबीर रेड्हू ने मिलीबग की जानकारी महिलाओं को देते हुए इसकी दो खास कमजोरियों को उजागर किया| एक तो मिलीबग की मादा पंखविहीन होती है तथा दुसरे यह अपने अंडे थैली में देती है. इन दो कमजोरियों के चलते मिलीबग नाम का यह भस्मासुर आसानी से परभक्षियों का शिकार हो जाता है| राजवंती मलिक ने अपनी रिपोर्ट पेश करते हुए बताया कि हमारे ग्रुप ने तो आज पौधों की ऊँचाई भी नापी है| इस खेत में औसतन पौधों की उचाई आठ-नौ इंच पाई गई है| कार्यक्रम के अंत में डा.मीना सुहाग ने भूमि संरक्षण विभाग द्वारा चलाई जा रही विभिन्न स्किम्मों बारे विस्तार से जानकारी दी व महिलाओं से वादा किया कि जब भी निडाना गावँ की महिलाएं उनके कार्यालय किसी भी कार्य से आएँगी वे हमेशा उनकी सेवा में तैयार पाएंगी| इस खेत पाठशाला के कार्य को नजदीक से समझने के लिए भू.पु.सरपंच बसाऊ राम के साथ रागनी गायक व लेखक राजबीर सिंह ने भी इस खेत में तीन घंटे बिताये|
पाठशाला के कार्य से निपट कर अनीता मलिक ने प्रशिक्षकों क़ी इस पूरी टीम को अपने घर पर जल-पान करवाया|