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8.8.10

महिला खेत पाठशाला का आठवां सत्र।

इस जिले के गावं निडाना में चल रही खेत पाठशाला में आज महिलाएं, डिम्पल के खेत में कपास के कीड़ों की व्यापक पैमाने पर हुई मौत देख कर हैरान रह गई। डिम्पल की सास से पुछताछ करने पर मालूम हुआ कि तीन दिन पहले कपास के इस खेत में विनोद ने जिंक, यूरिया डी..पी. आदि रासायनिक उर्वरकों का मिश्रित घोल बना कर स्प्रे किया था। यह घोल 5.5 प्रतिशत गाढ़ा था। इसका मतलब 100 लिटर पानी में जिंक की मात्रा आधा कि.ग्रा., यूरिया की मात्रा ढ़ाई कि.ग्रा. डी..पी. की मात्रा भी ढ़ाई कि.ग्रा. थी। पोषक तत्वों के इस घोल ने कपास की फसल में रस चूसकर हानि पहूँचाने वाले हरा-तेला, सफेद-मक्खी, चुरड़ा मिलीबग जैसे छोटे-छोटे कीटों को लगभग साफ कर डाला तथा स्लेटी-भूंड, टिड्डे, भूरी पुष्पक बीटल तेलन जैसे चर्वक कीटों को सुस्त कर दिया। इस नजारे को देखकर कृषि विज्ञान केन्द्र, पिंडारा से पधारे वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डा. यशपाल मलिक डा. आर.डी. कौशिक हैरान रह गये। उन्होने मौके पर ही खेत में घुम कर काफी सारे पौधों पर कीटों का सर्वेक्षण निरिक्षण किया। हरे तेले, सफेद मक्खी, चुरड़ा व मिलीबग की लाशें देखी। इस तथ्य की गहराई से जांच पड़ताल की। डा.आर.डी.कौशिक ने कृषि विश्वविद्यालय, हिसार में प्रयोगों द्वारा सुस्थापित प्रस्थापनाओं की जानकारी देते हुए बताया कि पौधे अपने पत्तों द्वारा फास्फोरस नामक तत्व को ग्रहण नही कर सकते।
डा. यशपाल-कांग्रेस घास के खतरे।
घोल के स्प्रे से मरणासन-हरा तेला।
इस मैदानी हकीकत पर डा. कौशिक की यह प्रतिक्रिया सुन कर निडाना महिला पाठशाला की सबसे बुजर्ग शिक्षु नन्ही देवी ने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए फरमाया कि आम के आम व गुठ्ठलियों के दाम वाली कहावत को इस स्प्रे ने सच कर दिखाया, डा. साहब। इब हाम नै इस बात तै के लेना-देना अक् पौधे इस थारे फास्फोरस नै पत्ता तै चूसै अक् जड़ा तै।
घोल के स्प्रे से सुस्त टिड्डा।
जिंक, यूरिया व डी.ए.पी. के इस 5.5 प्रतिशत मिश्रित घोल के दोहरे प्रभाव (पौधों के लिये पोषण व कीड़ों के लिये जहर) की जांच पड़ताल निडाना के पुरुष किसान पहले भी कर चुके हैं पर महिलाओं के लिये इस घोल के दोहरे प्रभाव देखने का यह पहला अवसर था।
मे-मक्खी।
पेन्टू बुगड़ा के अंडे व अर्भक।
सांठी वाली सूंडी।
सांठी वाली सूंडी का पतंग
घोल के स्प्रे से सुस्त-भूरी पुष्पक बीटल।
डा.यशपाल मलिक व डा. आर.डी.कौशिक ने जिंक, यूरिया व डी.ए.पी. के इस 5.5 प्रतिशत मिश्रित घोल के दोहरे प्रभाव की इस नई बात को किसी ना किसी वर्कशाप में बहस के लिये रखने का वायदा किया। इसके बाद महिलाओं के सभी समूहों ने डा. कमल सैनी के नेतृत्व में कपास के इस खेत से आज की अपनी कीटों की गणना, गुणा व भाग द्वारा विभिन्न कीटों के लिये आर्थिक स्तर निकाले तथा सबके सामने अपनी-अपनी प्रस्तुती दी। सभी को यह जानकर बहुत खुशी हुई कि इस कपास के खेत में हानिकारक कीटों की संख्या सिर्फ ना का सिर फोड़ने भर वाली है। इन कीटों में से कोई भी कीट हानि पहुँचाने की स्थिति में नही है। विनोद की माँ ने चहकते हुए बताया कि इस खेत में कपास की बिजाई से लेकर अब तक किसी कीटनाशक के स्प्रे की जरुरत नही पड़ी है। यहाँ तो मांसाहारी कीटों ने ही कीटनाशकों वाला काम कर दिया। ऊपर से परसों किये गए उर्वरकों के इस मिश्रित घोल ने तो सोने पर सुहागा कर दिया।
नए कीड़ों के तौर पर महिलाओं ने आज के इस सत्र में कपास के पौधे पर पत्ते की निचली सतह पर पेन्टू बुगड़ा के अंडे व अर्भक पकड़े। राजवंती के ग्रुप ने एक पौधे पर मे-फ्लाई का प्रौढ़ देखा। पड़ौस के खेत में सांठी वाली सूंडी व इसके पतंगे भी महिलाएं पकड़ कर लाई। इस सूंडी के बारे में अगले सत्र में विस्तार से अध्यन करने पर सभी की रजामंदी हुई।
सत्र के अंत में समय की सिमाओं को ध्यान में रखते हुए, डा. यशपाल मलिक ने "कांग्रेस घास - नुक्शान व नियंत्रण" पर सारगर्भीत व्याखान दिया जिसे उपस्थित जनों ने पूरे ध्यान से सुना।

27.7.10

महिला खेत पाठशाला का सातवां सत्र।


आज भी सुबह से ही निडाना के आसमान में चारों ओर बादलों की चौधर है। चौधरियों के इसी आसमान में लोपा मक्खियाँ (ड्रैगन फलाईज्) भी जमीन के साथ-साथी नीची उड़ान भर रही हैँ। निडाना की महिला किसान इसका सीधा सा मतलब निकालती हैं कि भारी बरसात होने वाली है। मौसम की इस तुनक मिजाजी के मध्य ही आज निडाना की महिला खेत पाठशाला का सातवाँ सत्र शुरु होने जा रहा है। इस महिला खेत पाठशाला के मैदानी सच को जानने, इसकी बारिकियों को समझने व इसकी कवरिंग के लिये, हरियाणा न्यूज चैनल के रिपोर्टर, श्री सुनील मोंगा भी अपनी टीम के
साथ खेत में मौके परपँहुचे। सत्र की शुरुवातमें डा. कमल सैनी की देखरेख में, महिलाओं द्वारा पिछले काम कीसमीक्षा की गई। इसके बादमहिलाओं ने पाँच-पाँच के समूह मेंदस-दस पौधों पर कीट अवलोकन, निरिक्षण गणना का कार्यकिया। बूंदा-बांदी के चलते सुअरफार्म पर ही आज कपास कीफसल में कीटों की स्थिति काआकलन विशलेषण किया। इसकेआधार पर ही महिलाओं ने घोषणा की कि आज के दिन इस फसल में कोई भी कीटहानि पँहूचाने की स्थिति में नहीहैं। कराईसोपा, दिखोड़ी, लोपामक्खी, डायन मक्खी, लेडिबीटल्ज, विभिन्न बुगड़े आदिलाभदायक कीटों की उपस्थिति कीभी रिपोर्ट महिलाओं ने की। आजमहिलाओं ने इस खेत में चितकबरीसूंडी का प्रौढ़ पतंगा भी देखा मांसाहारी कीट हथजोड़ा भीदेखा।डा. दलाल ने इस हतजोड़े कीखाती के सरोत जैसी अगली टांगेंभी महिलाओं को दिखाई।यह सारीकार्यवाही रणबीर मलिक मनबीररेढ़ू की अगुवाई में हुई। सुनीलमोंगा ने मुक्त-कँठ से महिलाओं कीइस पाठशाला की भुरी-भुरी प्रशंसाकी, खासकर उनकी लगन, निष्ठा चाव की। उन्होने महिलाओं कोबताया कि उनकी यह कीटों केविरुद्ध जंग अकेले कीटों के खिलाफही नही है बल्कि यह जंग तोबड़ी-बड़ी बहुराष्ट्रीय कीटनाशककम्पनियों के खिलाफ भी है।इसलिये इस जंग की तैयारियों केलिये उन्हे बहुत ज्यादा मेहनत लगन से काम करना होगा।



महिला खेत पाठशाला के इस सातवें सत्र के अन्त में कृषि विकास अधिकारी डा. सुरेन्द्र दलाल ने उपस्थित महिला किसानों को बताया कि कपास की भरपूर फसल लेने के लिए किसान का जागरूक होना अति आवश्यक है। उन्हें एक तरफ तो अपनी फसल को खरपतवारों से मुक्त रखना चाहिए व दूसरी तरफ हानिकारक कीटों व लाभदायक कीटों की पहचान कर कीटनाशक के स्प्रे करने का सही समय पर सही फैसला लेना चाहिए। किसानों को जानकारी होनी चाहिए कि बहुत सारे खरपतवार हानिकारक कीटों के लिये वैकल्पिक आश्रयदाता का काम करते हैं और इन खरपतवारों पर पल रहे शाकाहारी कीटों की आबादी पर मांसाहारी कीटों का फलना-फुलना निर्भऱ करता है। अगर फसल में दोनों तरह के कीट साथ-साथ आते हैं तो हमारी फसल में कीटों का नुक्शान नही होगा। अतः सड़कों, कच्चे रास्तों, नालों, खालों, मेंढों आदि पर उग रहे कांग्रेस घास, आवारा सूरजमुखी, उल्ट कांड, धतूरा, कचरी, भम्भोले आदि खरपतवारों को आँख मिच कर नष्ट नही करना चाहिए। बल्कि इन पौधों पर दोनों तरह के कीटों की वास्तविक स्थिति का जायजा लेकर ही इस बारे में कोई ठोस फैसला लेना चाहिये। डा. सुरेन्द्र दलाल ने महिलाओं को बताया कि कपास की फसल सम्मेत तमाम खरपतवारों पर इस समय मिलीबग के साथ-साथ इसको खत्म करने वाले अंगीरा, फंगीरा व जंगीरा नामक परजीवी भी बहुतायत में मौजूद हैं। इनमें से अंगीरा नामक परजीवी तो अकेले ही 80-90 प्रतिशत तक मिलीबग को नष्ट कर देता है।
डा. सुरेन्द्र दलाल ने महिलाओं को याद दिलाया कि फसल में मित्रकीट भी दुश्मन कीटों को अपनाभोजन बनाकर कीटनाशकों वालाही काम करते हैं। इस लिए फसलपर कीटनाशक का छिड़काव करने का फैसला लेने से पहले फसल का निरीक्षण करना, हानिकारक कीटों व मित्र कीटों की संख्या नोट करना व सही विशलेषण करना अति जरूरी है।

6.7.10

कीट भी करते हैं कीटनाशकों वाला काम।

महिला खेत पाठशाला का चौथा सत्र।



आज दिनांक 6 जुलाई, 2010 बार मंगलवार को निडाना में महिला खेत पाठशाला का चौथा सत्र है। रात से ही वर्षा जारी है। इस भारी बरसात की भाँतियां बरगी बाट देखै थे निडाना के लोग। क्योंकि पिछले सितम्बर के बाद बस यही अच्छी-खासी बरसात हुई है। जब सुबह 8-00 बजे डा. सुरेन्द्र दलाल व डा. कमल सैनी, डिम्पल के खेत में पहुँचे तो वहाँ खेत की मालिक डिम्पल के मालिक विनोद के अलावा कोई नही था। वह भी हाय-हैलो के बाद रफ्फुचकर हो गया। अब रह गये दोनों डाक्टर। डा. कमल सैनी कहने लगे कि शायद इतने खराब मौसम में आज की पाठशाला में कोए महिला नही आवै। डा. दलाल के कुछ कहने से पहले ही पता नही कहाँ से गांव का भूतपुर्व सरपंच बसाऊ राम आ पहुँचा और कहने लगा कि डा. साहबो आज इस झड़ में आपका कोए कीट कमांडो इस पाठशाला में आण तै रहा। म्हारै घरआली तो नयूँ कह थी अक् इब बरसते में कौण पाठशाला लावै था।
पर सब अन्दाजों को झुठलाते हुए, राजवंति ने अचानक आ दी राम-राम। तख्त पर बैठकर लगी बताने अपने खेत में कपास की फसल पर उस द्वारा इस सप्ताह देखे गये कीड़ों के बारे में। एक-एक करके कपास की फसल के सारे रस चूसक कीट गिना दिये। राजवंति को अपने खेत में कम पौधे होने का मलाल है। राजवंति आगे कुछ बोलती इससे पहले ही मीनी, अंग्रेजों, बिमला व संतरा आ पहुँची। देखते-देखते गीता, कमलेश, केलो, सरोज व अन्य सोलह महिलायें आज की पाठशाला में पहुँच गई। इनके पिछे-पिछे अनिता अपने सिर पर पानी का मटका उठाय़े खेत में आ पहुँची। नन्ही-नन्ही बुंद पड़ै- गोडै चढगी गारा।। लक्ष्मी चन्द का सांग बिगड़ग्या सारा ।। के विपरित इन महिलाओं ने तो आज की इस पाठशाला का कसुता सांग जमा दिया। गौर में गौडै गारा, खेत में खड़ा पानी व उपर से बुंदा-बांदी को मध्यनजर रखते, डा. कमल सैनी ने आज महिलाओं को पिग्गरी फार्म के कमरे में ही कीटों के बारे में पढाने का फैसला किया। डा. कमल ने सामान्य कीट का जीवन चक्र महिलाओं को विस्तार से महिलाओं को समझाया। रस चूसक व चर्वक किस्म के शाकाहारी कीटों बारे बताया। परभक्षी कीटों के बारे में जानकारी दी। पर महिलाएँ तो खेत में मौके पर ही कीटों का अवलोकन व निरिक्षण करने को उतावली थी। अतः कीचड़ के बावजूद खेत में घुसने का फैसला हुआ। राजवंति, मीनी, गीता, सरोज व कमलेश के नेतृत्व में पाँच टिम्में बनी और चल दी कपास के खेत में अवलोकन, सर्वेक्षण व निरिक्षण के लिये। महिलाओं के प्रत्येक समूह द्वारा आज दस-दस पौधों की बजाय केवल दो-दो पौधों पर ही कीटों की गिनती की गई। दस पौधों के तीन-तीन पत्तों पर पाये गए कीटों का जोड़-घटा, गुणा-भाग करके औसत निकाली गई जिसके आधार पर महिलाओं ने घोषणा की कि अभी सब रस चूसक हानिकारक कीट आर्थिक स्तर से काफी निचे हैं अतः कीटों के नियन्त्रण को लेकर चिन्ता करने की कोई जरुरत नही। मित्र कीटों के तौर पर आज महिलाओं ने कराईसोपा का प्रौढ़, कमसिन बग का प्रौढ़, दिदड़ बग, कातिल बग का अण्डा व दिखोड़ी आदि मांसाहारी कीट इस कपास की फसल में पकड़े व सभी महिलाओं को दिखाये। मकड़ी तो तकरीबन हर पौधे पर ही विराजमान थी।
कपास के भस्मासुर- मिलीबग को नष्ट करने वाली संभीरकाएँ भी आज इस खेत में सक्रिय देखी गई। अंगीरा व फंगीरा नामक ये संभीरकाएँ अपनी वंश वृद्धि के लिये ही मिलीबग की हत्या करती हैं। कयोंकि इनका एक-एक बच्चा मिलीबग के पेट में पलता है। बीराणे बालक पालने के चक्कर में मिलीबग को मिलती है- मौत।
अंग्रेजो द्वारा सभी को घेवर बाँटे जाने के साथ ही पाठशाला के इस चौथे सत्र की समाप्ति की घोषणा हुई।

30.6.10

महिला खेत पाठशाला का तीसरा सत्र

मकड़ियों ने दी चुरड़े को मात

गत दिवस गाँव निडाना की महिला खेत पाठशाला के तीसरे सत्र में महिलाओं ने कपास के खेत में 5-5 के समूह में 10-10 पौधों का बारिकी से अवलोकन एवं निरीक्षण करते हुए पाया कि कपास के इस खेत में चुरड़ा नामक कीट न के बराबर है। इसे परभक्षी मकड़ियों ने लगभग चट ही कर दिया। महिलाओं ने कपास के पौधों पर हानिकारक कीट हरे तेले के बच्चों का शिकार करते हुए लाल जूँ को मौके पर ही पकड़ लिया। महिलाओं ने खेत पाठशाला के इस सत्र में सफेद मक्खी के शिशुओं के पेट में एनकार्सिया नामक कीट के बच्चों को पलते देखा है। 5-5 के इन महिला समूहों को सुश्री राजवन्ती, गीता, मीना, सरोज, केलां एवं बीरमती ने नेतृत्व प्रदान किया। प्रशिक्षकों के तौर पर डाक्टर कमल सैनी, मनबीर रेढु, रनबीर मलिक व डाक्टर सुरेन्द्र दलाल उपस्थित थे। दस-दस पौधों पर कीट अवलोकन एवं उनकी गिनती के बाद आपस में चर्चा करके चार्ट किये तदोपरांत सब समूहों के सामने अपनी-अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। इस दौरान उन्होने बताया कि कपास के इस खेत में आज के दिन हरा तेला, सफेद मक्खी, चुरड़ा आदि सम्मेत सभी रस चूसक हानिकारक कीट आर्थिक हानी पहूँचाने के स्तर से काफी निचे हैं। कपास का भस्मासुर मिलीबग तो पच्चास पौधों पर सिर्फ एक ही मिला। अतः इस सप्ताह कपास के इस खेत में कीट नियंत्रण के लिये किसी कीटनाशक का स्प्रे करने की कोई आवश्यकता नही है।

महिला खेत पाठशाला के इस सत्र में महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय में कार्यरत अर्थशास्त्री डाक्टर राजेंद्र चौधरी महिलाओं के इस खेत प्रशिक्षण कार्यक्रम को नजदीक से देखने व समझने के लिए उपस्थित थे। उन्होने बताया कि आज किसान का खर्चा मुख्यतौर पर तीन चिजों- खाद, बीजों व किटनाशकों पर होता है। निडाना में पिछले तीन सालों से जारी इन खेत पाठशालों में जारी प्रयोगों ने किसान का किटनाशकों पर होने वाला खर्चा तो लगभग खत्म सा ही कर दिया। उन्होने आशा कि की आने वाले दिनों में किसानों के अपने अनुभव से बीज और खाद के खर्चे भी कम होंगे। उन्होने यह भी कहा कि इस पाठशाला के माध्यम से खेती में महिलाओं की भूमिका को स्वीकार कर के एक ऩई शुरूआत की गई है। उन्होने आशा प्रकट की कि आज जो निडाना में हो रहा है वह कल पूरे हरियाणा में होगा। यह नई राह दिखाने के लिए निडाना गांव का आभार जताया।

18.11.09

कांग्रेस घास पर हितेषी कीट हाफलो


हाफलो, जी हाँ ! जिला जींद में निडाना, रूपगढ व राजपुरा के किसान इस छोटी सी बीटल को इसी नाम से पुकारते हैं क्योंकि इसके प्रौढ तथा गर्ब दोनों ही हाफले मार-मार कर मिलीबग के शिशुओं को खाते हैं। जबकि सांईसदान इसे कोक्सिनेलिड कुल की ब्रुमस कहते है। इस बीटल के प्रौढ व गर्ब निरामिषि होते हैं। अपना पेट भरने के लिए, इन्हें सारा दिन दुसरे कीट या उनके अंडे ढुन्ढने में ही गुजारना पड़ता है। बहुत सारे कीट या अंडे एक ही जगह खाने को मिल जाए तो, इनके ठाठ हो जाते हैं। ऐसा अवसर, इन्हें मिलीबग के कारण ही मिल पाता है क्योंकि मिलीबग की प्रौढ मादा हर ब्यांत में सैंकडों अंडे एक थैली में देती है। सुरक्षा उपायों के कारण, मिलीबग की मादा इस थैली को अपनी छाती के नीचे रखती है। मिलीबग का पालन-पोषण व प्रजनन कांग्रेस घास व अन्य गैरफसली पौधों पर होना किसानों के लिए अगले जन्म का सचा सौदा बेशक ना हो पर वर्त्तमान में फायदे का सौदा तो जरुर होता है। कांग्रेस घास मिलीबग के लिए कुदरती तौर पर सुरक्षित ठिकाना भी होगा तथा भोजन का स्रोत भी। इसका मतलब मिलीबग के लिए लधने-बढ़ने के भरपूर अवसर। परन्तु जिस तरह से घी मक्खी का बैरी होता है ठीक उसी तरह से जी का जी बैरी होता है। अतः कांग्रेस घास पर मिलीबग का फलना-फुलना मांसाहारी कीटों के लिए सुनहरी मौका होगा और उन्हें भी जीवनयापन व वंशवृद्धि का सुलभ स्रोत मिल जाता है।इस तरह से स्थापित हो जाती है प्रकृति में एक भोजन श्रंख्ला। बस आवश्यकता है तो किसानों द्वारा इस प्रक्रिया को समझने की तथा कीट साक्षरता के नवसाक्षर होने की अन्यथा इस कलयुग में किसी दिन हमारा कृषि-प्रजापति ऑस्ट्रेलिया या जापान से इन बीटलों की अटैची भर कर दिल्ली के हवाई अड्डे पर आसमान से उतरेगा। देश भर के कीट-शंकरों को दिल्ली में फालन करेगा। बी.टी.कपास के भस्मासुर इस मिलीबग से किसानी को मुक्ति दिलवाने के लिए इन बीटलों को अचूक अस्त्र के रूप में उन्हें सौपेगा। जैविक कीट नियंतरण की प्रयोगशालाएं स्थापित होंगीं और शुरू हो जायेंगे इस बीटल को प्रयोगशालाओं में पालने के अनुसंधान। इनके सहारे शुरू हो जायेगी एक नई श्रंखला इन कीट-शंकरों के लिए वेतन-वृद्धियों की, व्यक्तिक-पदोन्नतियों की तथा प्रतीष्ठ पदों को प्राप्त करने की। इन प्रयोगशालाओं में इस बीटल को लेकर धूम-दडाके से बहुअयामी खोजें शुरू होंगीं। इस बीटल के पोषण, प्रजनन व स्थानीय प्रतिक्रिया पर एक या दो सांखिकीय-स्टार लगे ढेरों पेपर छापे जायेंगें। इस प्रक्रिया में, ये मांसाहारी बीटल कीट-शंकरों द्वारा परोसे गए भोजन व प्रयोगशालाओं की सुविधाओं के आदी हो जाते हैं। और फ़िर ये बीटल व परियोजनाए किंतु-परन्तु व समय के साथ दम तोड़ जाती हैं।पर किसानो के खेतों में कहीं नज़र नहीं आती। इसलिए कपास की फसल में इस मिलीबग रुपी चक्रब्यूह को तोड़ने के लिए किसानी अभिमन्यु को ही गुर सिखने होंगें। इसके लिए किसानों को करनी होगी स्थानीय हानिकारक व लाभदायक कीटों की पहचान। जुटानी होगी इनकी भोजन विविधता व क्षमता की जानकारी। जुटानी होगी इनकी प्रजनन क्षमता की जानकारी। जुटानी होगी स्थानीय भोजन श्रंखला की जानकारी। बाज़ार की इस चक्काचौन्द में इन कीट-शंकरों से कीट-संकट से मुक्ति की आस तो बहुत दूर की बात है यहाँ तो सतयुग में भी पारबती की एक दुखिया किसान के दुःखहरण की प्रार्थना पर शंकर जी ने यह नोट चढा दिया था कि किस-किस के दुःख दूर करैगी, या दुनिया दुखी फिरै रानी।