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27.6.09

जैन मुनिश्री १०८ तरुणसागर जी महाराज

मध्य प्रदेश के दमोह जिले के प्रतापचंदजी और शांतिदेवी जैन के यहाँ 26 जून 1967 को बालक पवन का जन्म हुआ। पवन छठी कक्षा में प़ढ़ते वक्त स्कूल से घर जाते हुए जलेबी खाने होटल में रुके मुँह में रसपूर्ण जलेबी अभी आई ही थी कि कानों में आकाशवाणी पड़ी। पास ही के मंदिर में मुनिश्री पुष्पदंतसागरजी का प्रवचन चल रहा था। पवन जीवन के रस छोड़कर अध्यात्म की राह पर निकल पड़े। गुरु के पीछे-पीछे ब्रह्मचारी/क्षुल्लक/ ऐलक... ये साधुत्व के पड़ाव पार करते 20 जुलाई 1988 में राजस्थान में बने मुनिश्री 108 तरुणसागर। जैनत्व के दो हजार वर्ष के इतिहास में आचार्य कुंद-कुंद के बाद इतनी कठोर साधना करने वाले वे प्रथम योगी हैं। भूमि शयन, दिन में सिर्फ एक बार अंजुली में अन्न-जल ग्रहण तथा संयम से मन को साधना और कठोर ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करने के साधुत्व के पड़ाव उन्होंने पार किए हैं। वर्ष 2003 में इंदौर में सरकार द्वारा मुनिश्री को 'राष्ट्रसंत' की उपाधि से विभूषित किया गया। मप्र, गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र ने उन्हें राजकीय अतिथि का सम्मान दिया। टीवी के माध्यम से भारत सहित 22 देशों में अहिंसामयी 'महावीर-वाणी' का प्रसारण करने वाले वे प्रथम जैन संत हैं। दिल्ली के लालकिले से उन्होंने 1 जनवरी 2000 को नई सदी की पहली सुबह को गोहत्या और पशु मांस निर्यात के खिलाफ अहिंसात्मक राष्ट्रीय आंदोलन छेड़ा और ऐतिहासिक 'अहिंसा-महाकुंभ' संपन्न हुआ। मुनिश्री भारतीय सेना को संबोधन करने वाले प्रथम जैन संत हैं। मप्र, गुजरात, हरियाणा, राजस्थान, कर्नाटक, महाराष्ट्र की धरा पर मुनिश्री ने गहन पदयात्रा, जनयात्रा की है। मुनिश्री ने तीन दर्जन से अधिक किताबें लिखी हैं। जिनकी 15 लाख से ज्यादा प्रतियाँ लोगों के बीच पहुँच चुकी हैं। उनकी पुस्तक 'कड़वे प्रवचन' का छः भाषाओं में अनुवाद हुआ है।

23.5.09

Tao Te Ching - Hindi: चौदहवाँ अनुच्छेद

"अगर आप इसे देखने का प्रयास करें तो नहीं देख पायेंगे, क्योंकि यह निराकार है
अगर आप इसे सुनने का प्रयास करें तो नहीं सुन पाएंगे, क्योंकि यह श्रवण के परे है
अगर आप इसे छूना चाहें तो नहीं छू पाएंगे क्योंकि यह ठोस नहीं है

इन्द्रियों के परे जो है वही सर्वोच्च है
अदृश्य, अश्रव्य, अस्प्रश्य

जो ऊपर उठता है वह उज्जवल लगता है, जो नीचे बैठता है वह काला लगता है
मगर देखा जाए तो न तो अँधेरा है न उजियारा, बस छायाओं का खेल है|

अनस्तित्व से पूर्णता और पूर्णता से वापस अनस्तित्व
यह निराकार रूप
यह अदृश्य चित्र
दिमाग या शक्ति से नहीं समझे जा सकते
अगर आप इसके सामने जाना चाहें तो कहाँ जा के खड़े होंगे?
अगर आप इसका पीछा करना चाहें तो कहाँ इसे पाएंगे?

जब आप जान लेंगे की की सभी शुरुआतों से परे कौन है तब आप सब कुछ अभी और यहीं जान लेंगे
आप अभी सब जान लीजिये और आप अनादी ताओ को जान लेंगे |"

10.5.09

10 मई: भारत की आजादी की पहली लड़ाई की वर्षगांठ!

 
आज 10 मई को 152 वर्ष पहले - 10 मई 1857- के दिन ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी के सिपाहियों ने विद्रोह का बिगुल बजाया था. इस के बाद भी हम भारतियों को 90 साल लगे आज़ादी प्राप्त करने में. दुनिया के इतिहास में आजादी की लड़ाई में यह संभवतः सबसे लम्बी लड़ाई होगी.!
1857  की लड़ाई लड़ने वाले देशप्रेमियों को शत शत प्रणाम! उन्हें याद कर शायद सबक लें की अभी भी देश निर्माण के लिए काफी समस्याओं से हमे जूझना है.