आप अपने क्षेत्र की हलचल को चित्रों और विजुअल समेत नेटप्रेस पर छपवा सकते हैं I सम्पर्क कीजिये सेल नम्बर 0 94165 57786 पर I ई-मेल akbar.khan.rana@gmail.com दि नेटप्रेस डॉट कॉम आपका अपना मंच है, इसे और बेहतर बनाने के लिए Cell.No.09416557786 तथा E-Mail: akbar.khan.rana@gmail.com पर आपके सुझाव, आलेख और काव्य आदि सादर आमंत्रित हैं I

30.12.11

साहित्यकार संसद के स्पीकर डॉ. हरीश अरोड़ा


प्रिय मित्रो 

          सादर ब्लॉगस्ते!

                    ये लो जी संसद का शीतकालीन सत्र भी समाप्त हो गया और बीमारी के कारण महात्मा अन्ना का अनशन भी ख़त्म हुआ. ठंडी फूफी अपने शीत अस्त्रों से उत्तर भारत, ख़ास तौर पर दिल्ली वासिओं का  हुलिया टाईट किये हुए हैं. इन सब घटनाओं से बिना व्यथित हुए  डॉ. हरीश अरोड़ा फेसबुक पर साहित्यकार संसद को चलाने में व्यस्त और मस्त हो रखे हैं. मित्रो आप भली-भाँति समझ गए होंगे कि आज मैं आप सभी का परिचय कराने जा रहा हूँ एक और ब्लॉगर डॉ. हरीश अरोड़ा से. 
उनके परिचय में क्या कहूँ... उनकी रचनाधर्मिता उनके जीवन को खुद बयां करती है..
मैं किसी के सांस की अंतिम घडी हूँ
मैं किसी के गीत की अंतिम कड़ी हूँ.
जिंदगी घबरा के बूढी हो गयी है,
मैं सहारे के लिए अंतिम छड़ी हूँ.
यह फिलहाल दिल्ली विश्वविद्यालय के पी.जी.डी.ए.वी. कॉलेज (सांध्य) के हिंदी विभाग में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर के पद पर कार्यरत हैं. वर्ष १९८७ से साहित्य लेखन के क्षेत्र में आये. विद्यालयी शिक्षा के दौरान इनकी  रूचि साहित्य में नहीं थी. लेकिन 12 कक्षा के दौरान कविता लेखन में रूचि जागृत हुयी.  कॉलेज की शिक्षा के दौरान कुछ युवा रचनाकारों के साथ मिलकर वर्ष १९८८ में 'युवा साहित्य चेतना मंडल' संस्था का निर्माण किया.  यह संस्था आज साहित्यिक गतिविधियों में सक्रिए योगदान देने के साथ साथ प्रकाश के क्षेत्र में भी आ चुकी है. आगे पढ़ें... 

28.12.11

प्रेम का भात पकाते रवीन्द्र प्रभात




प्रिय मित्रो

सादर ब्लॉगस्ते!

   पुराना साल रोते-हँसते, खोते-पाते बीतने वाला है और नया साल मुस्कुराते हुए आने वाला है। जहाँ पूरा जग नए साल के स्वागत में अपनी पलकें बिछा रहा है वहीं  रवीन्द्र  प्रभात जी हिंदी ब्लॉगरों को अगले साल होनेवाले ब्लोगोत्सव में खिलाने के लिए प्रेम का भात पका रहे हैं। भात पकाने के लिए चावल की बोरी अविनाश वाचस्पति जी ने नुक्कड़ नामक सुपर फास्ट ट्रेन से भेजी है। इस साल ५१ लोगों को भात खिलाया गया था अबकी बार देखते हैं कि कितने लोग इस प्रेम भात को खाने का सौभाग्य पाते हैं। हालांकि   रवीन्द्र प्रभात जी अभी हाल ही में थाईलैंड से थके-मांदे लौटे हैं और वहां चलते-फिरते उनकी थाई भी थक गयी हैं फिर भी उन्हें प्रेम भात पकाने का इतना चाव है कि आते ही लग गए अपने काम-काज में। तो मित्रो आप सब समझ ही गए होंगे कि आज मैं आपकी मुलाक़ात करवाने जा रहा हूँ परिकल्पना पर हम सबकी राष्ट्रभाषा हिंदी की प्रगति का कल्पना को साकार रूप देने में लगे हुए श्री   रवीन्द्र प्रभात जी से.  आगे पढ़ें...

15.12.11

जुगाली करते हैं संजीव शर्मा




प्यारे मित्रो

सादर ब्लॉगस्ते!

आपका मित्र सुमित प्रताप सिंह यानि कि मैं फिर से उपस्थित हूँ एक और ब्लॉगर बन्धु से आप सबका परिचय करवाने. इनका नाम है संजीव शर्मा. संजीव शर्मा जी ने मध्यप्रदेश की संस्कारधानी के नाम से मशहूर जबलपुर के राबर्टसन कालेज से वनस्पति विज्ञान में स्नातकोत्तर करने के बाद राजधानी भोपाल में स्थापित माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय के सर्वप्रथम बैच से पत्रकारिता और जनसंपर्क में स्नातकोत्तर तक पढ़ाई की है.ये उस पीढ़ी के पत्रकारों में से हैं जो पत्रकारिता की विधिवत पढ़ाई कर इस क्षेत्र में कूदे हैं. इनके आने के पहले तक यह माना जाता था कि इस पेशे को वे ही लोग अपनाते हैं जो जीवन में कुछ और नहीं कर पाते इसलिए मज़बूरी में पत्रकार बन जाते हैं. मीडिया की दुनिया में बीते दो दशकों की सक्रियता के दौरान इन्होने देशबंधु, नवभारत और एक्सप्रेस मीडिया सर्विस जैसे तमाम संस्थानों में मीडिया मजदूरी करने के साथ-साथ पत्रकारिता के नव आगंतुकों से कुछ सीखने और सिखाने के लिए अध्यापन में भी हाथ आजमाया. अब रक्षा मंत्रालय की सौ साल से ज्यादा पुरानी और तेरह भाषाओँ में प्रकाशित पाक्षिक पत्रिका 'सैनिक समाचार' के हिंदी संस्करण में बतौर संपादक जुडकर देश की रक्षा के लिए सरहदों पर तैनात जांबाज़ फौजियों की आवाज़ बनने का प्रयास कर रहे हैं.वहीं अपने ब्लॉग“जुगाली” के माध्यम से हम और आप जैसे साहित्यिक और कलाप्रेमी बन्धुवरों के साथ कदमताल के लिए अपनी कलम को धार दे रहे हैं.

सुमित प्रताप सिंह- संजीव शर्मा जी नमस्ते! आपसे कुछ प्रश्न पूछने की आज्ञा चाहता हूँ.

संजीव शर्मा- जी नमस्ते सुमित जी! वैसे पुलिस वाले तो जबरन प्रश्न पूछते हैं और आप आज्ञा लेकर पूछ रहे हैं तो प्रश्न के उत्तर न देने का तो सवाल ही नहीं उठता.

सुमित प्रताप सिंह- हा हा हा संजीव जी शुक्रिया. जहां तक मुझे ज्ञात है कि जुगाली तो गाय-भैंसें ही करती हैं और आप इंसान होकर जुगाली कर रहे हैं. आपको ये जुगाली का शौक भला कैसे पढ़ा?

संजीव शर्मा- इंसानों और गाय-भैंसों में यही बुनियादी फर्क है.जानवर हर काम खुलकर करते हैं और हम इंसान छिप-छिपाकर.कुछ यही स्थिति जुगाली की है. वे सरेआम करते हैं और हम दिन-रात अपने दिमाग में बौद्धिक जुगाली करते रहते हैं. वैसे भी हमें ज्ञान बांटने का भरपूर शौक है, जहाँ मौका मिला कि हम किसी को भी किसी भी विषय पर ज्ञान देने के लिए तैयार हो जाते हैं. बस ऐसे ही चिंतन-मनन के बीच ‘जुगाली’ का जन्म हो गया और इस तरह मैंने बेचारे निरीह जानवरों से बिना कापीराइट लिए यह नाम हथिया लिया.

सुमित प्रताप सिंह- आपकी पहली रचना कब और कैसे रची गई?

संजीव शर्मा- रचना प्रक्रिया से मेरा साक्षात्कार स्कूली दिनों से ही शुरू हो गया था. फर्श पर पूरा अखबार फैलाकर और उसपर बैठकर पढते समय कई बार माँ-पिताजी की फटकार भी सहनी पड़ी परन्तु इसके साथ-साथ कलम भी चलने लगी. मेरी पहली रचना स्वर्गीय इंदिरा गाँधी पर लिखी एक कविता थी. इस कविता की विशेषता यह थी कि कविता की हर पंक्ति के पहले अक्षर को मिलाने से इंदिरा जी का पूरा नाम बनता था. यह कविता अखबार में स्थान बनाने में भी कामयाब रही और बस अपनी कलम भी चलने लगी. जहाँ तक ब्लागर बनने की बात है तो उसकी शुरुआत तक़रीबन पांच साल पहले “मसाला मार के” नामक ब्लॉग से हुई थी. इसमें अख़बारों में छपी रोचक और मजेदार ख़बरों का संकलन होता है लेकिन इससे रचनात्मक संतुष्टि नहीं मिली और बस फिर “जुगाली” का जन्म हो गया.

सुमित प्रताप सिंह- आप लिखते क्यों हैं?

संजीव शर्मा- यह बहुत अच्छा सवाल पूछा है आपने. यह मैंने भी कभी नहीं सोचा कि मैं लिखता क्यों हूँ? लेकिन अब इस बारे में सोचने पर लगता है कि लिखना मेरे लिए रोजमर्रा की खुराक की तरह है. इससे न केवल बौद्धिक और आत्मिक दोनों ही तरह का संतोष मिलता है बल्कि अन्य कामों को करने की ऊर्जा भी मिलता है. अपनी भड़ास निकालने का मौका भी मिलता है और किसी विषय पर अपनी राय से बाकी लोगों को अवगत कराने का भी....और वैसे भी पत्रकारिता के पेशे को चुनने के बाद नहीं लिखना तो वैसा ही है जैसे डांसर होकर नहीं नाचना या कुक होकर खाना बनाने से दूर भागना.

सुमित प्रताप सिंह- लेखन में आपकी प्रिय विधा कौन सी है?

संजीव शर्मा- वैसे कोशिश तो लेखन की हर विधा में हाथ आजमाने की है परन्तु समसामयिक विषयों से जुड़े रहना पत्रकारिता की पेशागत मजबूरी है इसलिए सबसे ज्यादा रूचि तत्कालीन घटनाओं, मौजूदा घटनाक्रम और समसामयिक मामलों पर अपनी राय व्यक्त करने में है. मैं ऐसे विषयों और मुद्दों को सभी के सामने लाना चाहता हूँ जिनपर आमतौर पर नज़र नहीं जा पाती.....और यदि खुलकर कहूँ तो केन्द्र सरकार के जनसंपर्क विभाग का एक हिस्सा होने के कारण सरकार के खिलाफ़ लिखकर अपनी सेवा शर्तों की लक्ष्मण रेखा नहीं लांघना चाहता इसलिए यदि आप मेरे लेखों के विषय देखें तो इस बात को आसानी से समझ सकते हैं कि मेरे लेखों के विषय क्यों परंपरा से हटकर होते हैं. वैसे इसी बहाने अपनी कलम भी धारदार हो जाती है और ब्लाग के पाठकों को किसी विषय विशेष पर क्रिया-प्रतिक्रिया व्यक्त करने का अवसर भी दे पाता हूँ.

सुमित प्रताप सिंह- आप अपनी रचनाओं से समाज को क्या सन्देश देना चाहते हैं?

संजीव शर्मा- देखिये यदि ईमानदारी से स्वीकार करूँ तो मैं अपने आप को अभी इस लायक नहीं समझता हूँ कि समाज को सन्देश देने का साहस या जुर्रत कर सकूँ. हाँ मेरा यह प्रयास जरुर रहता है कि “जुगाली” या मेरे अन्य ब्लॉग मसलन “मसाला मार के” तथा “संजीवनी” के माध्यम से रचनाधर्मी बिरादरी में अपनी एक अलग पहचान बना सकूँ और विषयों की विविधता के द्वारा सामाजिक चेतना जगाने की अपनी जिम्मेदारियों को निभाने का भरसक प्रयास कर सकूं. यदि मेरे इन प्रयासों से समाज को कोई सकारात्मक सन्देश जाता है तो मैं अपनी लेखनी को धन्य मानूंगा और इन पर प्रतिक्रिया देकर मुझे अनुग्रहीत कर सामाजिक बहस को आगे बढ़ाने वालों का ह्रदय से आभारी रहूँगा.


सुमित प्रताप सिंह- जी आपका आभार जो आपने अपना अमूल्य समय दिया.

संजीव शर्मा- आभार का मत चढ़ाइए भार. आप अपने हैं इसलिए आपको दिया समय अमूल्य बन गया.

संजीव शर्मा जी को पढने के लिए पधारें http://jugaali.blogspot.com/ पर...

पैट्रोल के दाम फिर से बढ़ेंगे

देश में पैट्रोल के दाम फिर से बढ़ने वाले हैं। देश के लोगों को कुछ इसी तरह से इंतजाम करना होगा !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

12.12.11

चरित्रहीन (लघु कथा)

धीरज दूध की डेयरी पर खड़ा दोस्तों के साथ गप्प मार रहा था. किसी भी लड़की को बात ही बात में चरित्रहीन कर देना उसकी बुरी आदत थी. अभी किसी बात पर बहस हो ही रही थी कि सामने से एक लड़की आती हुई दिखी. धीरज अपनी आदतानुसार शुरू हो गया, " पता है कल्लू वो जो सामने से लड़की आ रही है न. उससे मेरी दोस्ती करीब एक साल तक रही. हम दोनों ने साथ-२ खूब मस्ती की." आगे पढ़ें...

8.12.11

आज आप ई-मेल से भी वोट दे सकते हैं

दोस्तो आज वोट देने का आखिरी दिन है तो कृपया आज आप अपने सुमित प्रताप सिंह को "मेरा शहर, मेरा गीत" का विजेता बनवाने के लिए अधिक से अधिक वोट कीजिये. वोटिंग करना बहुत ही आसान है. बस अपने मोबाइल में DEL C टाइप कीजिये और भेज दीजिये 57272 पर.
आज आप ई-मेल से भी वोट दे सकते हैं. बस आपको नीचे लिखा सन्देश cityanthem@del.jagran.com पर भेज देना है-

मेरा मनपसंद गीत है-
"कुछ ख़ास है मेरी दिल्ली में"
गीत का कोड नं.- DEL C

गीत पढने के लिए क्लिक करें http://sumit-ke-tadke.blogspot.com/2011/12/blog-post.html पर...

5.12.11

कृपया मुझे वोट दें



प्यारे दोस्तो "दैनिक जागरण" ने "मेरा शहर मेरा गीत" आयोजन हेतु मेरा यानि कि आपके दोस्त सुमित प्रताप सिंह का गीत "कुछ ख़ास है मेरी दिल्ली में" का शीर्ष 3 स्थान (TOP 3) पर चयन किया है| इस गीत को प्रथम स्थान पर चयन हेतु SMS वोटिंग प्रक्रिया से गुजरना है| आपसे निवेदन है कि कृपया मेरे इस गीत को प्रथम स्थान दिलाने हेतु वोट कीजिये और अपने सभी दोस्तों व रिश्तेदारों को भी वोट करने के लिए प्रोत्साहित कीजियेगा| मेरे इस गीत को जिताने के लिए अपने मैसेज बॉक्स में टाइप करें DEL C और SMS द्वारा भेज दें 57272 पर |शुक्रिया|

4.12.11

अविनाश वाचस्पति बोले तो अन्ना भाई


नमस्कार मित्रो आइये मिलते हैं एक ऐसे व्यक्तित्व से जो कि ब्लॉगजगत अथवा चिट्ठाजगत में एक जाना-माना नाम है चिट्ठाजगत में शायद ही कोई व्यक्ति हो जिसने अविनाश वाचस्पति का नाम न सुना हो. उत्तम नगर, नई दिल्ली में जन्म लेकर आजकल संत नगर, नई दिल्ली में चिट्ठाकारिता की तपस्या में लीन हैं जब अविनाश वाचस्पति के पहले चिट्ठे का प्रादुर्भाव हुआ था उन दिनों सक्रिय चिट्ठों की संख्या सिर्फ कुछ सौ थी वह चिट्ठे के माध्यम से हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए सदैव कर्मठता से लगे रहते हैं हिंदी भाषा के प्रति उनका कट्टर प्रेम उनके इस कथन से साफ़ प्रतीत होता है "हिन्‍दी का प्रयोग न करने को देश में क्राइम घोषित कर दिया जाना चाहिए और मैं पूरा एक दशक हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग के नाम करने की घोषणा करता हूं। इस एक दशक में आप देखेंगे कि हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग सबसे शक्तिशाली विधा बन गई है। जिस प्रकार मोबाइल फोन सभी तकनीक से युक्‍त हो गया है, उसी प्रकार हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग सभी प्रकार के संचार का वाहक बन जाएगी"


अविनाश वाचस्पति नुक्कड़,अविनाश वाचस्पति, पिताजी,बगीची व तेताला जैसे कई चिट्ठे(ब्लॉग) के माध्यम से अंतरजाल पर सक्रिय हैंचिटठा जगत में अविनाश वाचस्पति अन्ना भाई के नाम से लोकप्रिय हैं


लेकिन मैं अर्थात आपका मित्र सुमित प्रताप सिंह उनको लेखक के रूप में जानने व पहचानने के लिए उनसे मिला


सुमित प्रताप सिंह- अविनाश वाचस्पति जी नमस्ते!


अविनाश वाचस्पति- नमस्ते सुमित प्रताप सिंह जी! कैसे मिजाज हैं आपके?


सुमित प्रताप सिंह- जी बिलकुल कुशल-मंगल है आप कहिये आप कैसे हैं?


अविनाश वाचस्पति- यहाँ भी सब कुछ है मंगल फेसबुक और चिट्ठे पर चल रहा है दंगल


सुमित प्रताप सिंह- हा हा हा बहुत खूब अविनाश जी आज आपको लेखक के रूप में जानने के लिए आया हूँ


अविनाश वाचस्पति- तो शौक से जानिये


सुमित प्रताप सिंह- आपकी पहली रचना कब और कैसे रची गई?


अविनाश वाचस्पति- मेरी सभी रचनाएं पहली ही होती हैं। मैंने आज तक कोई ऐसी रचना रचने की कोशिश नहीं की है जो दूसरी हो यानी दोयम दर्जे की हो। मेरी सभी रचनाएं मेरी पहली रचना की पहचान ही पाती रहें, यही बेहतर है।


सुमित प्रताप सिंह- आप लिखते क्यों हैं?


अविनाश वाचस्पति- यह तो वही सवाल हुआ कि सुमित जी, मैं आपसे पूछूं कि आप सांस क्‍यों लेते हैं या पानी क्‍यों पीते हैं और खाना क्‍यों खाते हैं। मेरे लिए मेरी प्रत्‍येक सांस से जरूरी मेरा लिखना है और वह ऐसा लिखा जाए जो कि सबके मानस में एक स्‍फूर्ति दे सके, उसे ऊर्जा और ऊष्‍मा से भर सके। प्रत्‍येक अंधेरे को आलोकित कर सके। अगर बुराई को भी हम चित्रित कर रहे होते हैं तो उसके माध्‍यम से भी अच्‍छाई को दिखाने की कोशिश होती है। दोनों का समाज में रहना अनिवार्य है। आप चाहें कि बुराई बिल्‍कुल ही हट जाए या हम सब अमर हो जाएं। इससे भी अराजकता का माहौल बन जाएगा और कोई नहीं चाहेगा कि अराजकता का साम्राज्‍य हो। उस अराजकता के साम्राज्‍य की पकड़ को कम करने के लिए, बदलने के लिए लिखना एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसे हवा, पानी, भोजन के बराबर महत्‍व दिया जाना चाहिए और मैं देता हूं और चाहता हूं कि सब ऐसा ही करें और सबको ऐसा करना ही चाहिए।


सुमित प्रताप सिंह- लेखन में आपकी प्रिय विधा कौन सी है?


अविनाश वाचस्पति- लेखन में सभी विधाएं मेरी प्रिय हैं अब अगर मैंने नाटक नहीं लिखे हैं, उपन्‍यास नहीं लिखे हैं, लघुकथाएं नहीं लिखी हैं या आत्‍मकथा अथवा अन्‍य कुछ भी, तो इसका यह मतलब नहीं है कि मुझे वह प्रिय नहीं है। मुझे सभी विधाएं समान रूप से प्रिय हैं, चाहे मैं उस विधा में लिख पाऊं अथवा नहीं लिख पाऊं। कोशिश तो कर ही सकता हूं, मेरी प्रिय विधा सदैव कोशिश करना ही है। कोशिश करना मुझे सबसे अधिक प्रिय है। जबकि मैं सरलता से व्‍यंग्‍य और कविता लिख लेता हूं। किसी भी क्रिया पर प्रतिक्रिया देना सबसे सरल है परंतु वह सार्थक तभी है जब वह सबको पसंद भी आए। मेरा सौभाग्‍य है कि फेसबुक जैसी सोशल साइटों पर मेरी प्रतिक्रियाएं मित्रों को पसंद आ रही हैं।


सुमित प्रताप सिंह- अपनी रचनाओं से समाज को क्या सन्देश देना चाहते हैं?


अविनाश वाचस्पति- समाज को कभी किसी संदेश को लेने की जरूरत नहीं है। संदेश सब जगह हैं। बस उन्‍हें ग्रहण करने, अपनाने वाले अपने नजरिए को सकारात्‍मक बनाए रखने की जरूरत है। सकारात्‍मकता की ओर प्रवाहित करना, मानव जीवन के उच्‍च मूल्‍यों को अपनाना, बुराईयों में से अच्‍छाईयां छांट छांट कर अपनी रचनाओं में चिपका चिपका कर उन्‍हें बांटने की कोशिश करता रहता हूं। सब चीजें समाज में मौजूद हैं। लेखक का काम तो उन्‍हें पहचानकर अपनी रचनाओं में उभारते रहना होता है। अब कोई उन्‍हें माने अथवा नहीं माने।


सुमित प्रताप सिंह- अविनाश वाचस्पति जी फेसबुक और चिट्ठे की दुनिया से अपना कुछ कीमती समय मुझे देने के लिए आपका बहुत-२ शुक्रिया


अविनाश वाचस्पति- शुक्रिया नामक क्रिया लगती है अजब प्रक्रिया शुक्रिया की कोई जरूरत नहीं है सुमित जी आप जब कहेंगे हम अपना कीमती समय आपको देते रहेंगे


3.12.11

ये होते हैं ठाठ !!!!!!!


किसी को जेब में रखने के लिए रुपए नहीं मिलते और ये साहब हैं कि रुपयों पर लेटे हुए हैं। बडे़ भाग्यशाली हैं ..........................

2.12.11