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31.8.11

ईद मुबारक !





सभी को ईद मुबारक !

30.8.11

एक पत्र अन्ना के नाम



प्यारे अन्ना हजारे जी

सादर अनशनस्ते

आपको हृदय से नमन करते हुए पत्र प्रारंभ करता हूँ. जब भारत देश घोटालों से त्रस्त हुआ, जब आम भारतीय मंहगाई से पस्त हुआ और जब भ्रष्टाचार की बांसुरी बजाकर शासन तंत्र मदमस्त हुआ तब आप संकटमोचक बनकर आये और बस गए हर भारतीय के दिल में. आपका भोला-भाला व्यक्तित्व भारतीय मानुष के मन में एक नई आशा जगाता है. हम भारतीय विश्व की नज़रों में तो सन 1947 में हीआज़ाद हो गए थे किन्तु अंग्रेज जाते-2 अपनी कार्बन कॉपियां अर्थात काले अंग्रेज यहीं छोड़ कर चले गए जो धूर्तता में अपनी ऑरिजिनल कापियों से भी एक कदम बढ़कर निकले. आगे पढ़ें...

23.8.11

मै भी अन्ना हू आप भी अन्ना बनो



22.8.11

जन-गण के अन्ना...!









  अन्ना के पवित्र व प्रभावी जनआन्दोलन को नायाब  फ़िल्मी गीतों  के
श्रद्धा सुमन...

 ( गीत -एक )
आ जाओ कि अन्ना  के साथ मिल के दुआ मांगे.
भ्रस्टाचार मुक्त जहां चाहें, चाहत में वफ़ा मांगे.
 जनलोकपाल बनने में अब देर न हो मालिक.
भ्रष्टाचारियों के ये रेले न हो मालिक.

 एक तू ही अन्ना जिस पर भरोसा
एक तू ही अन्ना जिसका सहारा
भ्रष्टों के जहां में नहीं कोई हमारा 
 हे अन्ना लगा छन्ना
 जन -गण तेरे साथ रे...

अन्ना से न देखा जाए 
भ्रष्टाचारियों का जहां
उजड़े हुए भारत में तड़प रहे कई अन्ना
नन्हीं जिस्मों के टुकड़ों
लिए ६४ सालों से  खड़ी है भारत माँ
भ्रष्टों  की भीड़ में
गरीब बच  पाए कहाँ
 नादाँ हैं हम तो मालिक
क्यों दी ग़ुरबत की सज़ा
क्या है सफेदपोशों के दिल  में 
भ्रष्टता का ज़हर भरा 
इन्हें फिर से याद दिला दे
अन्ना सबक आज़ादी का
बन जाए जनलोकपाल
जल जाए भ्रष्टों की दुनिया. 
 
 हे अन्ना लगा छन्ना
 जन -गण तेरे साथ रे...
 ------------------------------------------

( गीत-दो )

अन्ना  की तमन्ना है  कि जनलोकपाल बन जाए
चाहे भ्रष्टों की जान  जाए चाहे संसद थम जाए. 
ओ ए लो रा रा रू...
अन्ना  तो पहले ही देश  का हो चुका  
देशवासियों  के दर्द   में  खो  चुका
भ्रष्टों की आँखों में शूल  बन  चुका
अन्ना  रख दे जो हाथ
फिर भ्रष्टाचार  दब जाए.
चाहे...
रिश्वत तो देते हैं लेते हैं भ्रष्ट हर बार
हुआ क्या गरीबों का भर लिया घर-बार
भ्रष्टों को  तोड़ दे 
 पूरे  देश  को जोड़  दे
अपनी   जगह से  कैसे अन्ना हिल जाये
चाहे...
भूला   ना  अन्ना को भ्रष्टाचार
हो  सके  तो तू जनलोकपाल बना...
न लडूं मैं तो अन्ना नहीं मेरा नाम 
नेताओं  की  कोरी  बातों  से 
अनशन  कैसे टल  जाए...
चाहे...
वन्दे मातरम...!! 

प्रबल प्रताप सिंह

14.8.11

..पर वो नहीं थे जिनके चित्र बोलते थे यहाँ
















स्विट होम की खोज:




वडोदरा मध्यस्थ जेल में एक सप्ताह के लिये सर्जन आर्ट गेलेरी वडोदरा द्वारा एक आर्ट शिबिर का आयोजन किया गया गुजरात जेलविभाग के सहयोग़ से। मेरा परिवार, मेरा प्यारा घर विषय देनेपर इन बंदिवान कलाकारों का काम उनके चित्रों में उनके विचार ,भावनात्मक संवाद के साथ स्पष्ट नज़र आया कि ये लोग अपने घर-परिवार ,अपने बच्चों को याद कर रहे हैं।श्री हितेश राणा,श्री आनंद गुडप्पा, श्री कमल राणा,श्री मूसाभाई कच्छी,जैसे होनहार चित्रकारों के साये में कलाकार्यशाला से ज़्यादातर प्रतिभागियों को एक मंच मिला जो उनकी प्रतिभाओं को बाहर ला सका। यह बात से प्रभावित सर्जन आर्ट गेलेरी वडोदरा के श्री हितेश राणा को एक और कार्यशाला के आयोजन के अपने विचार करने पर मजबूर होना पड़ा।


हालांकि यह एक्रेलिक रंग तथा कैनवास के साथ नया प्रयोग था पर सभी प्रतिभागियों ने बडी ही चतुराई से उनके चित्रण में भावनात्मक रुप लगाकर ,निष्ठा से निपटाया। उसका द्रष्टांत यह है कि 27 साल के कुंवारे बंदि जसवंत मेरवान महाला ,जिसने ना कभी कैनवास देखा था ,उसने गुजरात के ढोंगार के अपने पितृक गांव के खेतों का चित्र बना दिया।


एक और प्रतिभागी 31 साल के विनोद भगवानदास माळी ने अपने पुरानी यादों को दर्शाया जहां उन्होंने कुशलता से अपने आपको दादी की गोद में एक बच्चे के रुपमें मातापिता के साथ चित्रित किया। वो अपनी पुरानी यादों के खयाल को, उस प्यारे घर और परिवारजनों को याद करते हैं। उनका कहना है कि यह कलाकार्यशाला से उनके घावों को भरने में बहूत लाभांवित हुई है इसने उन्हें अपने कौशल को साबित करने का मौका दिया जो उनके माता पिता को गर्व कराने में सक्षम हैं। जब की बका उर्फ़े भूरा तडवी ने अपने व्यथित मन से एक माँ को अपने 6 वर्षिय स्कुल जाते हुए बच्चे को तैयार करते हुए दिखाया गया है । पृष्टभूमि पर फूलों की माला पहने लगाई हुई अपनी तस्वीर से वो यह दिखाना चाहता है कि अब वह अपने घर-परिवार के लिये अधिक कुछ नहिं है।


पादरा जिले के कुरल गांव के 29 साल के सिकंदर इब्राहिम घांची ने विरह चित्र में अपनी पत्नी जो गोदमें अपनी 6 माह की बच्ची को लेकर घर के आँगन में उनका इंतेज़ार कर रही है। और स्वयं को दिल के निशान से बनी सलाखों के पीछे आंसु बहाते दिखाया है। घांची कलाशिबिर में अपने आप को खूलेआम व्यक्त करते हुए बडी ही द्रढता से यह कहता है कि उसका यह चित्र पूरी दुनिया में दिखाया जाना चाहिये। वह विरह के इस चित्र से अपना दर्द दिखाकर इसका भाग बनने की वजह से खुश है।


40 वर्षिय मनोज पटेल जिन्हों ने इससे पहले सेना में सेवा की। जेल में आयोजित विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमो के वक्ता का रुप बडी ही निष्ठा से निभा रहे हैं।


अब वह अपनी संवेदनशील गुजराती कविताओं की रचना भी करते रहते हैं। उन्हों ने अपने चित्र में जेलों में रक्षाबंधनका महत्व को दर्शाया है। मनोज एक सच्चे,प्रेरणास्रोत हैं और सभी प्रतिभागियों के लिये उपयोगी हैं। उन्हों ने पश्चिम बंगाल के राजेश निमायचंद्र मित्ते के साथ बी.ए.का अध्ययन किया है।


42 साल की आयु के राजेश निमायचंद्र मित्ते , जो कभी स्टेनोटाइपीस्ट और बढ़ई का काम करते थे आज चित्रकार भी बन गये हैं। वह ये कलाकार्यशाला के संरक्षक रहे हैं। वह कहते हैं चित्रकला ने उन्हें पुन:जन्म दिया है। इससे उन्हें बहूत ख़ुशी और संतुष्टि मिली है। वे ये भी कहते हैं कि मैं अपने जीवन की कल्पना, कला के बिना कर ही नहिं सकता। उन्हों ने महिला की विभिन्न भूमिकाओं को उनकी मुसीबतों को ,अपने परिवार के प्रतिरोध के साथ दर्शाया है कहते हैं जेलकी तुलना में अपना संघर्ष ज़्यादा है।


ओरिस्सा के कनैया लींगराज प्रधान ,छोटी ही उम्र में पहली बार जेल में आये हैं। अपने तीन भाईयों के साथ गुजरात के सुरत में काम करते थे। जीन्होंने धान के खेत में अपनी पीठ पर बच्चा लिये काम करती महिला की तस्वीर को दर्शाकर उन कृषि मज़दूरों कि व्यथा को याद किया है जो अपने परिवार के जीवन के दो छेडे जोडने के लिये काफ़ी महेनत करते रहते हैं।


गुजरात संजाण के 27 साल के सतीष सोलंकी जिन्होंने अपने जेल रहते हुए ही अपने पिता को खो दिया । रक्षाबंधन की स्मृति में उनकी बहन उन्हें राखी बांधते हुए और दादीमाँ को ये द्रश्य निहारते हुए दिखाया है।


जितेन्द्रकुमार मेवालाल त्यागी ,सूरत के 26 साल के साइनबोर्ड के यह कलाकार मूलत: उत्तरप्रदेश के हैं,जिन्हों ने महिला और बच्चे के चित्र के साथ अपने वयोवृध्ध मातापिता को दिखाया है जो उसके रिहाई का इंतेज़ार कर रहे हैं।


सतीष सोलंकी और जितेन्द्र त्यागी के लिये तो चित्रकला शिबिर भविष्य के लिये एक ताज़गीसभर मंच है।


28 वर्षिय अशोककुमार भोजराजसींह, जिनका पुत्र जो पाठशाला जाना चाहता है पर अपनी आर्थिक परिस्थिती के चलते ये शक्य नहिं हो रहा । अपने चित्र के माध्यम से पाठशाला जाते हुए युनिफोर्म पहने बच्चों के समूह की और अपनी दादी का ध्यान दिलाने के लिये इशारा करते हुए अपने बेटे को दिखाया है।


दिलीपभाई मोतीभाई ,पूर्व सरकारी कर्मचारी बारह से अधिक वर्ष से जो जेल में हैं।


अपने पीछले जीवन के शांतिपूर्ण घर-परिवार को याद कर रहे हैं। परिवार के कमानेवाले एकमात्र सदस्य होने के नाते अपनी अनुपस्थिति में घर की आर्थिक परिस्थिति दर्शाने का प्रयास किया है अपने चित्रकला के माध्यम से किया है।


अर्जुन सिंह राठोड , वडोदरा के ही वतनी जो आयकर विभाग में डेप्युटी के पद पर थे, उन्हें अपने घर की बहोत याद आ रही है ये अपनी दिलचस्प कला से दिखाया है। जिसमें अपने दो बच्चों को पकडे हुए एक माँ को चित्रित किया है। उन्हों ने अपनी भावनाओं को केनवास पर दर्शाते हुए आयोजकों की सराहना की है।


जिग्नेश कनुभाई कहार, 30 साल के नवसारी के, यह मछुआरे का धंधा करके सुखी जीवन बितानेवाले यह बंदी अब बस छुटने ही वाले हैं। चित्र द्वारा उनके छुटने का इंतेज़ार करते हुए उसकी माँ को चित्रित किया है।


नीतीन भाई पटेल आयु 47 के कालवडा,वलसाड जिले के रहीश ने खूबसुरत नारियेल के पेडों से घीरे घर में अपने परिवार के सदस्यों में अपने पिताजी, छोटाभाई ,जीजाजी और अपने भतीजे को दर्शाया है ,अपनी पत्नी को अपनी रिहाई की मंदिर में प्रार्थना करते हुए दिखाया है।


अनवर अली मलेक आयु 38 जंबुसर का रिहायशी कढाई का कारिगर ,कुदरत के चित्र के साथ अपने घर के चित्र में जानवर पक्षी और पानी भरकर आती महिलाओं के साथ ,आँगन में बेठी बच्ची को खिलौनों के साथ दिखाया है। इस कलाकार ने बडी ही निपुणता से बीजली के खंभे के पास खडे व्यक्तिको अपनी बच्ची का हाथ पकडे द्रष्टिमान करते हुए परिवार की 11 साल लंबी जुदाई को दिखाया है। जीसे चित्रकला खुश रखती है।


अर्जुन रामचंद्रभाई पार्टे ,40 साल के सयाजीगंज वडोदरा के ही इस कलाकार ने रक्षाबंधन की पूर्व संध्या पर हाथ में राखी पकडे अपने बेटों का घर पर इंतेज़ार दिखाया है। कैनवास पर ये उसका पहला प्रयास है।


प्रशांत राजाराम बोकडे ,27 साल के महाराष्ट् के सुनार को जेल में आये 9 साल हो गये । उसने जीसे अभी तक देखा भी नहिं है ,उस भतीजी को जन्मदिन विश किया है और उसे सपना नाम भी दे रख्खा है। सपना वो कहते हैं उन्हें उसका जन्मदिन भी याद नहिं पर उसका जन्मदिन हररोज़ मनाते हैं। उसकी बहोत याद आती है।


अंत में महेश सोलंकी आयु 28 वर्ष कामदार ने एक पुरानी हवेली जो जेल सी दिखाई देती है दिखाया है। अपनी केरीयर के खो जाने दुखद परिस्थिती से आहत इस कलाकार की माँ भी इसी जेल में है।


अंत में जब ये प्रदर्शिनी को जनता के सामने 10 अगस्त को 'सर्जन आर्ट गेलेरी ' में ही रख्खा गया तब वो दिन इस टीम और मेरे लिये बहोत बड़ा दिन था। प्रशांत राजाराम बोकडे के चित्र से प्रदर्शीनी को जनता के लिये खोला गया। मेरी एक गुजराती रचना भी इस केटलोग पर रख्खी हुई थी। मुझे इस के बारे में जब बोलने को कहा गया तब मैंने सभी प्रदर्शनी में आये लोगों से कहा कि आप चित्र तो बना लेंगे पर आप इनकी तरहाँ संवेदनाएं नहिं भर सकते।


यहाँ बंदिवानों के रिश्तेदारों को भी बूलाया गया था। पर जिन्हों ने अपने विचारों को चित्रों में उतारा था वो बंदिवानों की ग़ेरमौजुदगी बहोत खल रही थी। कायदे के हिसाब से ये भी ज़रूरी था। जब मैं जेल में उन बंदिवानो से मिली वो बडे उतावले हो रहे थे ये जानने के लिये कि प्रदर्शनी में क्या क्या हुआ। पर मैंने रो दिया। कुछ कह नहिं पाई। एक केटलोग से उन्हें सब कुछ बता दिया। उन्होंने भी रो दिया।


केदी सुधारणा कार्यक्रम के अंतर्गत गुजरात जेल के आई जी श्री पी.सी.ठाकुर का प्रयास बेहद सराहनीय है। जो ऐसी प्रतिभाओं को किसी न किसी माध्यम से जनता समक्ष लानेका प्रयास करते रहते हैं।




10.8.11

  कला का "नगीना" जिसे जौहरी का इंतज़ार
- अँधेरी गलियों में चमक रहा कला का जुगनू
 - मोमबत्ती केधुंए से पेंटिंग बनाने में  महारथ 
- सुलभ शौचालय में नौकरी करके जुटाता है कला को जिंदा रखने के खर्च
 - कक्षा छह तक पढ़ाई की





















अपनी धुंए की पेंटिंग के साथ राजेश.

कानपुर|   इसे कला जगत की बदनसीबी ही कहेंगे कि चित्रकला का बेहतरीन कलाकार अँधेरी गलियों में जुगनू की तरह चमक रहा है. ये कानपुर की खुशनसीबी है की इस जुगनू का जन्म यहाँ हुआ. इस उम्र में चित्रकला के क्षेत्र में राजेश निषाद ने उपलब्धि तो खूब हासिल की लेकिन वह मुकाम नहीं मिला जिसके वे हकदार हैं.
                राजेश निषाद कला की दुनिया का वह नगीना है जिस पर किसी जौहरी की निगाह नहीं पड़ी है. मोमबत्ती के धुंए से तस्वीर बनाना, माडर्न आर्ट और क्लिअर आर्ट में राजेश को महारथ हासिल है. कक्षा छह तक पढ़ाई करने वाले राजेश की पेंटिंग देखकर कोई यह साबित नहीं कर सकता है की वह किसी डिग्रीधारक से कम होगा. साँस रोककर मोमबत्ती के धुंए से बने पेंटिंग वाकई लाजवाब है. 

































  मोमबत्ती  के धुंए से बनाई डॉ. कलाम के तस्वीर के राजेश.

नारी  दुर्दशा, नेताओं के गिरफ्त में भारत, गरीबी और ममता जैसे विषयों को चित्रों के माध्यम से दर्शाना उसकी ज़हीन मानसिकता को दर्शाता है.





















  ममता की अद्भुत मिसालभरी चोत्रकारी.






































को लक्ष्मीपुरवा के मंगली प्रसाद के हाता में पैदा हुआ यह कलाकार बचपन से ही कला का शौक़ीन था, स्कूल तो  जाता था लेकिन पास के ही सुशील पेंटर देखता था. यही वजह है कि वह कक्षा छह तक ही पढ़ सका. पिता की छोटी सी पान की दुकान में तीन भाई और दो बहनों का बचपन आर्थिक तंगी में बीता. आज वह हाते में सुलभ शौचालय में कर महीने में आठ हज़ार रूपये महीने कम लेता है. इन रुपयों से वह कला को जीवित रखने के लिए खर्च करता है. स्वतंत्रता संग्राम सेनानी महावीर निषाद का पौत्र राजेश बदहाली में ज़िन्दगी गुज़ार रहा है. 
       बकौल राजेश कई बार बड़े मंचों से ईनाम देने के लिए उसे बुलावा आया लेकिन पुरस्कार किसी दूसरे को मिला. राजेश बताते हैं कि लखनऊ के ललित कला केंद्र में फिल्मकार मुजफ्फर अली ने लोगों से उसकी पेंटिंग की तारीफ़ की लेकिन ईनाम और किसी को मिल गया.
  राजेश बड़ी जगहों पर चले तो जाते हैं लेकिन उन्हें अपनी कला को प्रदर्शित करने में डर लगता है. उनका कहना है कि सरकार उसे १५ दिन की थ्योरी की क्लास दिलवा दे जिससे वह किसी को अपनी पेंटिंग को उनकी शब्दावली में समझा सके.
     अब उन्हें इंतज़ार है १७ नवम्बर २०११ का. मुंबई के नेहरू कला केंद्र में उनकी पेंटिंग प्रदर्शनी के लिए चयनित हुई है जहां तीन अम्बानी, आमिर खान जैसे देश के तमाम मशहूर हस्तियाँ शिरकत करने वाली हैं. दुनिया में मशहूर जहाँगीर आर्ट गैलरी में राजेश ने अपनी पेंटिंग की सीडी भेजी है. दिसंबर में होने वाली प्रदर्शनी में अगर उनकी सीडी चयनित हो गई तो शहर में लोग उन्हें पहचानने लगेंगे.
शायद इन दोनों  में से किसी एक जगह इस नगीने को उसका जौहरी मिल जाए. आमीन...
                                ( लेखक --सुहेल खान, पत्रकार, अमर उजाला मोबाइल- ९६७५८९७५३7 )



9.8.11

- ब्लोगर मीट वीकली के माध्यम से भाई अनवर और प्रेरणा ने सभी ब्लोगर्स को एक माला में बाँध लिया है

-- ब्लोगर मीट वीकली के माध्यम से भाई अनवर और प्रेरणा ने सभी ब्लोगर्स को एक माला में बाँध लिया है


              दोस्तों आप सभी जानते हैं के ब्लोगिंग की दुनिया में डोक्टर अनवर जमाल की क्या शख्सियत है ..वोह जो लिखते हैं दिल से लिखते हैं ..और लिखते हैं तो बस लिखते ही रहते हैं ..उनके लिखने के अपने अंदाज़ से ब्लोगिंग के कई महाराज उनसे कुछ दिन खफा जरुर रहे ..डोक्टर अनवर जमाल और कुछ लोगों के बीच तकरार रही लेकिन अब खुदा का शुक्र है के माहोल दोस्ताना है परिवाराना हैं और खुश गवार माहोल में ब्लोगिग्न चल रही है ..लेकिन दोस्तों डोक्टर अनवर जमाल ने इन दिनों जो कमाल क्या है उससे ब्लोगिंग के कई लोग जो दबे कुचले कोने में एक तरफ बेठे थे वोह अब सीना ताने खड़े हैं और उन्हें भाई अनवर जमाल ने ब्लोगिग्न की खबरें और खुद के कई ब्लॉग पर स्थान दिया है .साथ ब्लोगरों को अधिक से अधिक लोग पढ़ें इसके लियें भाई अनवर जमाल ने एक कमाल और क्या है ..इधर उधर बिखरे पड़े ब्लोगों को सजा संवार कर एक माला में गूँथ कर उन्होंने अपनी एक महिला ब्लोगर साथी प्रेरणा के साथ ब्लोगर मीट वीकली का प्रसारण शुरू कर दिया है ......भाई अनवर के इस सपने को साकार करने में बहन प्रेरणा अर्गल  ने पूरा सहयोग दिया है बंगाल की रहने वाली प्रेरणा जी सभी ब्लोगर्स के ब्लॉग समेटती हैं और फिर एक वीकली ब्लॉग मीट में हम जेसे लोगों के सामने परोस देती हैं .............दोस्तों भाई अनवर के इस प्रयास ने ब्लोगिग्न की दुनिया में खलबली मचा दी है ..जिस भाई अनवर की पोस्टों को निजी कारणों से एग्रीगेटरों से हटा दिया जाता था आज वोह खुद दुसरे लोगों की पोस्टों का प्रकाशन प्रचार प्रसार कर रहे हैं ..उनकी इसी महनत और लगन का नतीजा है के आज वोह प्रमुख ब्लोगरों में गिने जाने लगे हैं जो लोग उन्हें टिपण्णी देना तो दूर उनके ब्लॉग से खिसक लिया करते थे आज उनके ब्लॉग को वोह पूरा पढ़ कर टिप्पणिया देने के लियें मजबूर हो गए हैं ........भाई अनवर ने खुद तो बहतरीन ब्लोगिरी की ही है साथ ही अपने साथियों के साथ जो सहयोगी ब्लॉग बनाए हैं उसकी कामयाबी से सभी ब्लोगर्स हेरान हैं ..और आज हालात यह हैं के वोह दूसरों के ब्लॉग को वीकली ब्लोगर्स मीट में स्थान दे रहे हैं ...........भाई अनवर की इस कोशिश .इस कामयाम कोशिश और महनत से सभी ब्लोगर भाइयों को एक बात तो सीखने को मिली है के कोई काम नहीं है मुश्किल जब किया इरादा पक्का ..दूसरी बात विकट परिस्थितयों में भी अगर कोई हिम्मत नहीं हरे और पत्थर से टकराने का उसमे होसला हो तो वोह जीतता और सिर्फ जीतता ही है ........भाई अनवर ने खुदी को इतना बुलंद किया है के हर ब्लोगर उनसे पूंछने लगा है के बता तेरी रजा क्या है ....भाई अनवर के ब्लॉग को जब एग्रीगेटरों से हटाया जाने लगा उनके ब्लॉग एक विशेष लोगों के बनाये गए कोकस की उपेक्षा के शिकार हुए तब भाई अनवर हिम्मत नहीं हारे और उन्होंने इस शेर को सही साबित कर दिखाया के ....नशेमन पर नशेमन इस क़दर तामीर करता जा के बिजलियाँ आप बेज़ार हो जाएँ गिरते गिरते और भाई अनवर ने कुछ ऐसी ही महनत की ऐसी ही हिम्मत दिखाई के उन्होंने छोटे ब्लोगर्स को एक साहस दिया , एक ताकत दी , मान सम्मान  और प्रतिष्ठा दी ..टिप्पणियों का कोकस खड़ा कर खुद अपने ही लोगों को टिपण्णी करने की परम्परा के शिकार जो अली बाबा चालीस चोर बने थे उन्हें गिरफ्त में लिया उन्हें  उनकी भूल का एहसास दिलाया और आज देखलो ब्लोगिग्न की दुनिया में फिर से भाईचारा सद्भाव और प्यार कायम है ..भाई अनवर का साथ दे रही हैं प्रेरणा अर्गल जो रोज़ मर्रा ब्लोगर मीट वीकली के लियें ब्लोगों को खुशबूदार फूलों की तरह चुनती है एक माला बनाती है और फिर ब्लोगिंग की दुनिया को प्यार दुलार और अपनेपन की खुशबु से महका देती है ..ब्लोगिंग के इस कामयाब सफ़र के लियें भाई अनवर और प्रेरणा बहन को बधाई .ब्लोगिंग के इस सिपाही का सेल्यूट है ........अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान