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31.5.11

बड़ा पत्रकार बनना है...!?



























 मुचकुंदीलाल को आज पूरे शहर  में विश्व तम्बाकू निषेध दिवस  पर होने वाले कार्यक्रमों को कवर करने का निर्देश मिला है. मीटिंग ख़त्म होते ही रोजमर्रा की तरह  मुचकुंदीलाल   ऑफिस के पीछे पप्पू पानवाले  की दुकान पर हिक१ भर धुंए के कुंए में डूब रहा है. फिर फील में जाएगा. उसके सिगरेट पीने के पीछे एक बड़ा रहस्य है. जिसे वह जनता है, मैं जनता हूँ और उसका चीफ ( चीफ रिपोर्टर ) और अब उसकी पत्नी जानती है. क्योंकि शादी के बाद उसने पत्नी को बताया था की वो सिगरेट पीता है. 
आइये अब तफ़सील से आप भी उसके रहस्य से रू-ब-रू होइए. वैसे मुचकुंदीलाल नशेबाज़ नहीं है. मैं भी उसे नशेबाज़ नहीं मानता. यहाँ तक की उसकी पत्नी भी उसे नशेबाज़ नहीं मानती. हम दोनों ने साथ स्नातक किया. उसे पत्रकार बनने का शौक था. सो वह शहर के एक प्रतिष्ठित अखबार में जुगाड़ लगाकर एंट्री कर गया. जुगाड़ इसलिए कि आज तक कोई भी पत्रकार बिना जुगाड़ के उस संस्थान में प्रवेश नहीं कर सका है. 
जब मुचकुंदीलाल की एंट्री हुई थी तो वह ट्रेनी रिपोर्टर था. कुछ साल बाद वह तरक्की पाकर रिपोर्टर की श्रेणी में आया. ट्रेनी से रिपोर्टर तक के दरम्यां वह कोई नशा नहीं करता था. जब वह रिपोर्टर की श्रेणी में आया तो उसके तन-मन में " बड़ा पत्रकार " बनने का "वाइरस" घुस गया. यह वाइरस उसके चीफ ने उसके मन पर छोड़ा था. जो मुचकुंदीलाल के आंतों तक फ़ैल गया. बड़ा पत्रकार बनने की पहली शर्त ये थी कि सिगरेट पीना चाहिए. उच्च कोटि का पत्रकार बनने के लिए चेन स्मोकिंग के साथ-साथ अव्वल दर्जे का शराबी, कबाबी, चरसी, भंगेड़ी, गंजेड़ी और जितने भी प्रतिबंधित नशे हैं, उसका अनुभव होना जरूरी है. वाही वह बड़ा पत्रकार बन सकता है. 
               बड़ा पत्रकार बनने की शर्त सुनकर मुचकुंदीलाल को रातभर नींद नहीं आई. दूसरे दिन जब वह फील्ड में गया तो उसके दिमाग में बड़ा  पत्रकार बनने का वाइरस उमड़ने लगा. फिर क्या था, मुचकुंदीलाल ने मोतीझील चौराहे पर शर्मा पान वाले की दुकान जाकर एक सिगरेट खरीदा. सुलगाने के बाद जैसे ही उसने मुंह में लगाया तो मनो उसे दमा का अटैक पड़ गया हो. पहला दिन तो किसी तरह गुज़र गया. धीरे-धीरे मुचकुंदीलाल सिगरेट के छल्ले उड़ने लगा. अब वह जब भी ऑफिस आता तो ऑफिस की सीढ़ियाँ चढ़ने से पहले पीछे जाकर पप्पू पानवाले की दुकान पर हिक भर सिगरेट का धुंआ अपने फेंफड़े में उतार लेता. रात में घर जाने से पहले मॉडल शॉप जाकर सबसे महंगी दारू तब तक पीता जब तक उसे नशा न चढ़ जाए. क्योंकि उसे बड़ा पत्रकार बनना था. वह सारा नशा ऑफिस टाइम में ही करता. जब घर में होता तो इलायची का एक दाना मुंह में नहीं डालता. उसकी नशेबाज़ी की पत्रकारिता सुबह १० बजे से रात १२ बजे तक चलती थी. जिस दिन उसका वीकली ऑफ़ होता था उसके पहली रात वो अगले दिन का कोटा भी  पूरा कर लेता था. उसकी पत्नी भी उसे कुछ नहीं बोलती थी. आखिर कौन पत्नी नहीं चाहेगी कि उसका पति बड़ा पत्रकार न बने?
                  बारह साल हो गए मुचकुंदीलाल को बड़ा पत्रकार बनने की शर्तें पूरी करते. जिसका परिणाम यह हुआ कि उच्च रक्तचाप, ह्रदय रोग, डाईबीटीज, अस्थमा जैसी तमाम घातक बीमारियों ने उसके शरीर पर कब्ज़ा कर लिया. फिर भी मुचकुंदी बड़ा पत्रकार बनने के शर्तों को पूरा करने में लगा है. जिसने ये वाइरस फेंका था वो चीफ साहब चार साल पहले अधिक दारु पीने से उनकी आंतो ने जवाब दे दिया और वे परलोक सिधार गए. मुचकुंदी की आधी पगार बड़ा पत्रकार बनने की शर्तों में खर्च हो रही है और आधी पगार घातक बीमारियों को कण्ट्रोल करने में. उसकी पत्नी प्राइवेट स्कूल से मिलने वाली पगार से घर चला रही. 
...................मुचकुंदीलाल पप्पू पानवाले की दुकान पर फेंफड़ों में धुंआ भर रहा है...उसे विश्व तम्बाकू निषेध दिवस पर कार्यक्रम कवर करने जाना है.
अफ़सोस...!!! मेरा प्रिय मित्र न जाने कब बड़ा पत्रकार बनेगा...!?

१-- मन भर 

प्रबल प्रताप सिंह 









28.5.11

वो दिन !

मेरे मित्र श्री सतीश मंगला ने मुझे एक कविता भेजी है। मुझे वह कविता काफी पंसद आई। यह कविता मै आपके समक्ष रख रहा हुं। शायद आपको भी पसंद आए। कृप्या गौर फरमाएं..........

आज भी नही हूँ भुला ...........................
वो दोस्तो के साथ की हुई मस्ती ............
वो छोटी सी गलियों वाली अपनी प्यारी सी बस्ती .................
वो किसी को सताना वो किसी को मानना .....................
वो किसी के इन्तेजार मे जब निगाहें थी तरसती
जब भी बैठ के सोचता हूँ वो पुरानी बातें ,
वो बीते हुए लम्हे, वो गुजरी राते ..........
न जाने कहाँ आ फंसा हूँ ये कैसा है समंदर
है उस पार जाना और न मांझी है न कश्ती.......................
आज भी नही हूँ भुला वो की हुई मस्ती ..........................
आज भी नही हूँ भुला वो की हुई मस्ती .................

टाटा (लघु कथा)

मासूम ने देखा कि बस में बहुत देर से एक महिला अपने बच्चे को गोद में लिए खड़ी थी तथा कठिनाई अनुभव कर रही थी .उसने दया कर उसे अपनी सीट दे दी. अगले स्टैंड पर दूसरी सीट भी खाली हो गई व मासूम उस महिला के बगल में ही बैठ गया. महिला मासूम द्वारा सीट देने के लिए उसके प्रति आभारी थी. बातों का सिलसिला शुरू हो गया. उस महिला के नैन -नक्श आकर्षित करने वाले थे. मासूम उसके रूप के आकर्षण में आगे पढ़ें..

21.5.11

अपहरण (लघु कथा)

कमरे का दरवाजा खोलकर राजू अंदर आया और हँसते हुए बोला, "असलम तेरे भईया आ गये हैं तुझे छुडवाने के लिए. बेचारे तुझे सही-सलामत वापस लौटाने के लिए बहुत गिड़गिड़ा रहे थे. पहली बार किसी पुलिसवाले को ऐसी हालत में देखा है. जितना रुपया माँगा था, ले आये .पूरे पांच लाख हैं." असलम ने राजू व वहां मौजूद एक और लड़के सचिन के हाथों में ताली मारी और आगे पढ़ें..

18.5.11

मेरी बहना चली गई

वो मुझसे अक्सर कहती थी कि जब मैं जाऊंगी तो तेरे सीने से लग कर खूब रोऊँगी और मैं भी हंसकर उससे कहता था कि वह किसी गलतफहमी में न रहे क्योंकि मैं उसके जाने पर बिलकुल नहीं रोने वाला. आज जब वह विदा होकर जाने लगी तो आगे पढ़ें...

15.5.11

अपने और पराये (लघु कथा)

"ठीक है भैया समझो आपका ये काम हो गया." इतना कहकर अनिरुद्ध ने फोन रख दिया व कुर्सी पर आराम की स्थिति में बैठे-२ सोचने, अभी दिन ही कितने हुए भैया से मिले कोई दो साल बस किन्तु इन दो सालों में भैया से नाता सगे भाई से बढ़कर हो गया. कभी-२ भैया खुद ही हंसकर कहने लगते हैं, " हम दोनों का रिश्ता पिछले जन्म का है. हो न हो तुम पिछले जन्म में छोटे भाई होगे और बेशक इस जन्म में तुम मेरे सगे भाई नहीं हो लेकिन तुम मेरे लिए लक्ष्मण के जैसे हो." भाभी भी अक्सर बताती हैं, "ये तुम्हें अपने सगे भाई से भी अधिक चाहते हैं।" तभी चाय वाला चाय लेकर आता है. चाय की चुस्कियां लेते हुए आगे पढ़ें...

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 ख्वाब एक हकीकत














ख्वाब है या कुछ और
ख्वाब ही सा लगता है.
बहरहाल, कुछ भी हो बड़ा हसीन है,
ख्वाब ही तो वो शहर है
जहां हम अपनी मर्जी के मालिक होते हैं.
ख्वाब और  हकीकत में एक 
अदना सा फासला है,
हकीकत मैं और ख्वाब आईना.
ख्वाब क्या है 
कुछ अधूरी ख्वाहिशें.
कुछ दिल में दफ़न अरमान
 कुछ आने वाले कल की तस्वीरें,
यही तो ख्वाब है!

ख्वाब देखो!
सच हो जाते हैं अक्सर ख्वाब.
आओ देखें मिलकर हम सब ख्वाब....!

हकीकत में तब्दील करने को...!!

 (लेखिका) डॉ. अमरीन फातिमा

8.5.11

एक लड़की मुझको भाती है

कॉलेज़ में एक लड़का था
सबने ही उसको हड़का था
कविता एक ही कहता था
उसको ही कहता रहता था
एक लड़की मुझको भाती है

एक लड़की मुझको भाती है...


जब भी मौका मिलता तो
झट से आगे बढता था आगे पढ़ें..

6.5.11

किसी से कहना नहीं (लघु कथा)

माँ उदास हो आँगन में बैठी थी की तभी पड़ोस की आंटी आ धमकी. माँ को उदास बैठे देख उन्होंने पूछ लिया, "क्या बात हैं आज इतनी उदास क्यों हो".माँ ने बात टालते हुए कहा ,"कुछ ख़ास नहीं आज यूं ही थोडा मूड ठीक नहीं है ".आंटी जी माँ के पास बैठी और बोली ,"तुम कभी भी यूं ही उदास नहीं होती कुछ न कुछ बात तो है. मुझे नही बताओगी.आगे पढ़ें...

5.5.11

....चलो आखिर मारा तो गया ओसामा





10 मार्च 1957 को रियाध सउदी अरब में एक धनी परिवार में जन्मे ओसामा बिन लादेन

अल कायदा नामक आतंकी संगठन का प्रमुख था।

जो संगठन 9 सितंबर 2001 को अमरीका के न्यूयार्क शहर के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमले के साथ विश्व के कई देशों में आतंक फैलाने का दोषी था। उस अलक़ाएदा संगठन के मुखिया ओसामा बिन

लादिन को पाकिस्तान के एबटाबाद में रविवार रात CIA ने मार गिराया गया। मध्य पूर्वी मामलों के विश्लेषक हाज़िर तैमूरियन के अनुसार ओसामा बिन लादेन को ट्रेनिंग CIA ने ही दी थी।

वो जहाँ रहता था वो एक ऐसी इमारत थी जीसकी दीवार 12 से 18 फ़ीट की थी, जो इस इलाक़े में बनने वाली इमारतों से कई गुना ज़्यादा थी।. इस इमारत में न कोई टेलिफ़ोन कनेक्शन था और न ही इंन्टरनेट कनेकशन। यहीं छिपकर बैठा था दुनिया को अपने आतंक से हिलाकर रख देने वाला आतंकी। जिसने कंई बेगुनाहों को कत्ल कर दिया। क्या उसका यही मज़हब था????

सऊदी अरब में एक यमन परिवार में पैदा हुए ओसामा बिन लादेन ने अफगानिस्तान पर सोवियत हमले के ख़िलाफ़ लड़ाई में हिस्सा लेने के लिए 1979 में सऊदी अरब छोड़ दिया. अफगानी जेहाद को जहाँ एक ओर अमरीकी डॉलरों की ताक़त हासिल थी तो दूसरी ओर सऊदी अरब और पाकिस्तान की सरकारों का समर्थन भी था।.

सबसे आश्चर्च की बात गुफाओं में रहने-छिपनेवाला लादेन अमेरिका को एक पॉश कॉलोनी में मिला!!!!!

वह भी पाकिस्तानी मिलिट्री अकादमी से सिर्फ 800 मीटर की दूरी पर!!!!

जहाँ परदेशी एक परिन्दा भी अपनी उडान नहिं भर सकता उसी ज़मीन पर एक ख़ोफ़नाक आतंकी दुनिया की नज़र से छिपकर कैसे रह सकता था भला?

या पाकिस्तान की नज़रे इनायत तो नहिं थी उस पर!!!!!

चलो ख़ेर आख़िर मारा तो गया जो इस्लाम/इंसानियत के नाम पर एक धब्बा था ।

नादान जवानों को मज़हब के नाम पर या जिहाद के नाम पर जान की बाज़ी लगाने भेजकर खुद एशो-आराम की ज़िन्दगी बसर करता था।

या कहो कि इस्लाम से /इंसानियत से ख़िलवाड कर रहा था।

जो अपने वतन (साउदी अरब) को वफ़ादार नहिं था वो भला अपने मज़हब को वफ़ादार कैसे हो सकता था?

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