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6.3.11

संयुक्तञ् परिवार बिखरकर बनते जा रहे हैं एकल परिवार बुजुर्ग आज भी पसंद करते हैं संयुक्तञ् परिवार में रहना संयुक्तञ् परिवार भारतीय संस्कृञ्ति की रीढ़ व्यक्तिञ्गत फायदों ने बढ़ाए एकल परिवारों की तादाद युवाओं की विचारधारा केञ् ब

जींद
भारत देश हमेशा ही अपनी सुसंस्कृञ्ति से विश्र्व भर में आज भी अपनी पहचान बनाए हुए हैं। जिससे विश्र्व भर केञ् देशों केञ् लोग निंरतर भारत देश में आकर यहां की संस्कृञ्ति एवं रीतिलृरिवाजों से ज्ञान बटोरने केञ् लिए हमेशा प्रयासरत रहते हैं। भारत की संस्कृञ्ति की मूल जड़ को देखा जाए तो भारत में प्राचीन काल से ही संयुक्तञ् परिवारों का चलन हमेशा प्रचलित रहा है। जिससे परिवारों में बच्चों को बुजुगोर्ं द्वारा न सिर्ड्डञ् संस्कार दिए जाते थे बल्कि भारत देश की उज्जवल एवं समृद्ध संस्कृञ्ति केञ् बारे में भी बताया जाता था। लेकिन अब यह चलन समाज में गिनेलृचूने परिवारों में ही दिखाई देने लगा है। संयुक्तञ् परिवार से टूटकर मोतियों की तरह बिखरे एकल परिवार भारत देश की न सिर्ड्डञ् संस्कृञ्ति से दूर होते जा रहे हैं बल्कि एकल परिवार केञ् बच्चों में भी संस्कारों की कमी भी दिखाई देने लगी है। इस ज्वलंत विषय पर जब समाज केञ् कुञ्छ संयुक्तञ् व एकल परिवारों केञ् मुखियाओं से बात की गई तो दोनों की बातों से चौकाने वाले परिणाम सामने आए जिसमें इस विषय पर बात करते हुए शहर केञ् एक संयुक्तञ् परिवार केञ् मुखिया जिले सिंह ने अपने विचारों को व्यक्तञ् करते हुए कहा कि संयुक्तञ् परिवार भारत की संस्कृञ्ति की पहचान होता है। संयुक्तञ् परिवार से ही समाज को उज्ज्वल चरित्रवान बनाया जा सकता है। वहीं संयुक्तञ् परिवार में पैदा हुए बच्चों को भी अच्छे संस्कारी बनाकर समाज को व्यवस्थित ढंग से चलाने में सहायता की जा सकती है। उधर संयुक्तञ् परिवार केञ् अन्य मुखिया महेंद्र सिंह मक्कञ्ड़ ने अपने विचार प्रकट करते हुए कहा कि संयुक्तञ् परिवार समाज की रीढ़ होता है अगर सभी परिवार टूट कर बिखरने
लगे तो समाज में अव्यवस्था ड्डैञ्ल जाएगी और न सिर्ड्डञ् लोगों को रहने की जगह की कमी पड़ेगी बल्कि रोजगार में भी भारी दिタक्तञें का सामना करना पड़ सकता है। वहीं वेद प्रकाश गुप्ता ने कहा कि संयुक्तञ् परिवार में न सिर्ड्डञ् परिवार केञ् लोगों में प्यार बना रहता है बल्कि दुखलृसुख को आपस में बांटकर एक दूसरे की सहायता की जा सकती है और संयुक्तञ् परिवार केञ् मुखिया केञ् पास ही परिवार की कमान होने से घर केञ् सदस्य एक सूत्र में बंधे रहते हैं जिससे परिवार में अशांति ड्डैञ्लने की संभावनाएं कम हो जाती हैं। उधर एकल परिवार केञ् मुखिया लक्ष्मीनारायण ने अपने विचार प्रकट करते हुए कहा कि हर परिवार समाज का ही एक अटूट अंग होता है
लेकिन माला से मोतियों की तरह बिखरे एकल परिवार केञ् ज्यादातर मुखिया अपने रोजगार केञ् प्रति ही ज्यादा
जागरूञ्क बने रहते है जिससे वह अपने परिवार व बच्चों पर ज्यादा समय तक ध्यान नहीं दे पाते और बच्चों में बढ़ रही बुराईयों की कमी को दूर करने में असमर्थ हो जाते है। जिससे बच्चा बड़ा होकर समाज में अव्यवस्था फैलाने का काम करने लगता है। इसी प्रकार एकल परिवार केञ् मुखिया दिनेश सिंह ने अपने विचारों में कहा कि एकल परिवार कि अलग से अपनी एक दुनिया बन जाती है जो बड़े परिवारों में रहकर अपने आप व बच्चों को सुविधाएं नहीं दे सकते वही सुविधाएं एकल परिवार केञ् लोग अपने आप और बच्चों को देकर अपने सपने पूरे कर सकते हैं। एकल व संयुक्तञ् परिवारों केञ् मुखियाओं केञ् विचार सुनकर स्पष्टस्न् हो जाता है कि आज समाज में एकल परिवारों की तादाद निरंतर बढ़ती जा रही है। इसका मुチय कारण लोगों की व्यक्तिञ्गत विचारधारा का युवाओं पर हावी होना भी माना जा सकता है। हर इंसान अपनी व्यक्तिञ्गत सोच को बदलकर समाज को उज्जवल एवं संस्कारी बनाने की सोचे तो शायद बढ़ रहे एकल परिवारों में हो रही बढ़ौतरी की कमी हो सकती है।

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