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30.6.10

पायल के ग़मों का इल्म नहीं झंकार की बातें करते हैं

समस्त प्राणियों में केवल मानव ही अकेला वह प्राणी है जिसमें ऊपर जाने और नीचे गिरने की असीमित संभावनायें छुपी हैं, वही देवता भी है और दानव भी।
हम यहाँ महिलाओं बात करेंगे- अनेक ऐसे क्षेत्र हैं जिनमें वे पुरूषों से बहुत आगे हैं- उन्हों नें प्रगति के प्रकाश-स्तम्भ स्थापित किये हैं, परन्तु गिरावट में भी वे किसी से पीछे नहीं।
इस सबंध में जिनेवा के अंतरराष्ट्रीय अध्ययन संस्थान की एक रिर्पोट यह बताती है कि अपराध की अंधेरी दुनिया में भी महिलाओं का दबदबा बढ़ रहा है। इस अंतरराष्ट्रीय अध्ययन के मुताबिक़ दुनिया भर में महिला गैंगस्टर की संख्या बढ़ कर छः लाख साठ हजार हो गई है। ब्रिटेन और अमेरिका में होने वाले सगंठित अपराधों में तो महिलाओं की हिस्सेदारी 25 से 50 फीसदी तक है।
हम महिला शकिृकरण की बातें करते हैं- देखिये यहाँ पर भी उसने शक्ति का प्रर्दशन किया है, यह और बात है कि परमाणु-बम बनाने के मामले में जैसे एक वैज्ञानिक नें अपनी बुद्धि का दुरूपयोग किया था, वैसे ही यहाँ शक्ति की दुरूपयोग हुआ है।
कहते हैं महिलाओं के आगे बढ़ाने और नीचे गिराने में पुरूषों का अकसर प्रत्यक्ष या परोक्ष हाथ होता है। इस हेतु रिपोर्ट के आगे के शब्दों पर ध्यान दीजियें- अध्ययन में न्यूयार्क के लैटिन क्वींस गिरोह का उदाहरण देते हुए बताया गया है कि कैसे पारिवारिक और यौन हिंसा क वजह से महिलाएं अपराध की दुनिया में घुसी ?
उक्त के आधार पर अब दो बातों पर ग़ौर कीजिये- पहली यह कि पूरी दुनिया में पाश्चात्य देश यह ढ़िंढ़ोरा पीटते हैं कि उनके यहाँ की महिलाओं को अन्य देशों की अपेक्षा अधिक स्वंतत्रता और अधिकार प्राप्त हैं- अब ऐसी स्वतंत्रता से क्या हासिल जिससे वे अपराधी बनें ?
दूसरी बात यह है कि उनके अपराध पुरूषों की क्रूरता की प्रतिक्रियाये हैं। प्रतिक्रिया में भी दुख छिपा होता है।
वहाँ का पुरूष अपने स्वार्थ में महिला को स्वतंत्रता का रंगीन स्वप्न दिखा कर क्लबों तक खींच लाता है, वह उसे खेल-वस्तु समझता है तथा कपड़ो की तरह बदलता है- अन्यथा वह उसे इतना मजबूर बना देता है कि या तो वह अपराधी बनती है या अपने को बाज़ार में बेचने पर विवश हो जाती है। जब वह एक पुरूष से पीछा छुड़ाती है तो दूसरा पुरूष हमदर्दी का मुखौटा लगा कर शोषण हेतु उसके द्वार पर जाकर खड़ा हो जाता है- महिला के अंर्तमन की टीस और दर्द को कोई नहीं समझता। पुरूष एवँ महिला की मानसिकता को ‘शकील‘ ने चित्रित किया है:-
यह इश्को-हवस के दीवाने बेकार की बातें करते हैं
पायल के ग़मों का इल्म नहीं झंकार की बातें करते हैं।

डॉक्टर एस.एम हैदर
फ़ोन : 05248-220866

महिला खेत पाठशाला का तीसरा सत्र

मकड़ियों ने दी चुरड़े को मात

गत दिवस गाँव निडाना की महिला खेत पाठशाला के तीसरे सत्र में महिलाओं ने कपास के खेत में 5-5 के समूह में 10-10 पौधों का बारिकी से अवलोकन एवं निरीक्षण करते हुए पाया कि कपास के इस खेत में चुरड़ा नामक कीट न के बराबर है। इसे परभक्षी मकड़ियों ने लगभग चट ही कर दिया। महिलाओं ने कपास के पौधों पर हानिकारक कीट हरे तेले के बच्चों का शिकार करते हुए लाल जूँ को मौके पर ही पकड़ लिया। महिलाओं ने खेत पाठशाला के इस सत्र में सफेद मक्खी के शिशुओं के पेट में एनकार्सिया नामक कीट के बच्चों को पलते देखा है। 5-5 के इन महिला समूहों को सुश्री राजवन्ती, गीता, मीना, सरोज, केलां एवं बीरमती ने नेतृत्व प्रदान किया। प्रशिक्षकों के तौर पर डाक्टर कमल सैनी, मनबीर रेढु, रनबीर मलिक व डाक्टर सुरेन्द्र दलाल उपस्थित थे। दस-दस पौधों पर कीट अवलोकन एवं उनकी गिनती के बाद आपस में चर्चा करके चार्ट किये तदोपरांत सब समूहों के सामने अपनी-अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। इस दौरान उन्होने बताया कि कपास के इस खेत में आज के दिन हरा तेला, सफेद मक्खी, चुरड़ा आदि सम्मेत सभी रस चूसक हानिकारक कीट आर्थिक हानी पहूँचाने के स्तर से काफी निचे हैं। कपास का भस्मासुर मिलीबग तो पच्चास पौधों पर सिर्फ एक ही मिला। अतः इस सप्ताह कपास के इस खेत में कीट नियंत्रण के लिये किसी कीटनाशक का स्प्रे करने की कोई आवश्यकता नही है।

महिला खेत पाठशाला के इस सत्र में महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय में कार्यरत अर्थशास्त्री डाक्टर राजेंद्र चौधरी महिलाओं के इस खेत प्रशिक्षण कार्यक्रम को नजदीक से देखने व समझने के लिए उपस्थित थे। उन्होने बताया कि आज किसान का खर्चा मुख्यतौर पर तीन चिजों- खाद, बीजों व किटनाशकों पर होता है। निडाना में पिछले तीन सालों से जारी इन खेत पाठशालों में जारी प्रयोगों ने किसान का किटनाशकों पर होने वाला खर्चा तो लगभग खत्म सा ही कर दिया। उन्होने आशा कि की आने वाले दिनों में किसानों के अपने अनुभव से बीज और खाद के खर्चे भी कम होंगे। उन्होने यह भी कहा कि इस पाठशाला के माध्यम से खेती में महिलाओं की भूमिका को स्वीकार कर के एक ऩई शुरूआत की गई है। उन्होने आशा प्रकट की कि आज जो निडाना में हो रहा है वह कल पूरे हरियाणा में होगा। यह नई राह दिखाने के लिए निडाना गांव का आभार जताया।

29.6.10

पिता की खोज कीजिये

कम्पनियाँ हमेशा ग्राहक की जेब पर नज़र रखती है तथा नये-नये शिगूफ़े खिलाती हैं। खास तौर से युवा वर्ग की भावनाओं को भुनाती हैं। ‘वैलेनटाइन डे‘ के बाद अब ‘फादर्स डे‘ का क्रेज पैदा कर रहीं हैं। विज्ञान को आधार बना कर यह उकसावां दे रही हैं कि यदि असली पिता को पहचानना है तो डी0एन0ए0 टेस्ट कराइये।
दिल्ली स्थित कम्पनी ‘इडियन बायोसेंसेस‘ तथा एक अन्य कम्पनी ‘पेटेरनिटी टेस्ट इंडिया‘ ने पितृत्व-परीक्षण के लिये 25 प्रतिशत तक डिस्काउंट देने की घोषणा की है। यह बाज़ार अब तेज़ी से बढ़ रहा है।
विज्ञान के कुछ आविष्कार और खोजें ऐसी है जिनसे समाज को नुकसान ज़रूर पहुँचा है, इसी कारण इन्हें अभिशाप कहा गया। वास्तव इनका दुरूपयोग करे (नादानी से या जान बूझ कर) तो यह प्रयोगकर्ता की ग़लती है। विज्ञान का कोई दोष नहीं है।
हिरोशिमा-नागासकी का बंम काण्ड हो, चेर्नेबल का रैडियेशन, भोपाल गैस काण्ड, अल्ट्रासाउन्ड द्वारा गर्भस्थ कन्या भ्रूण का पता लगा कर उसकी हत्या करके समाज के लिंग अनुपात को बिगाड़ देना, इन सब बातों में विज्ञान का क्या दोष है ?
ग़ौर कीजिये भरे-पूरे परिवार में विश्वास के साथ सभी सुख शान्ति से रह रहे है। एक युवा पुत्र को माता-पिता का आर्शीवाद प्राप्त है। एक दम से लड़के में डी0एन0ए0 टेस्ट का जुनून पैदा होता है। मान लीजिये दाल में कुछ काला है, टेस्ट इसे सत्यापित करता है। घर परिवार, समाज में हड़बोंग मचा, दादिहाली सभी रिश्ते धाराशायी हुए। उत्तराधिकारी के झगड़े पड़े- बाप से ज़्यादा ख़ता माँ की निकली। वह मुँह दिखाने लायक़ नहीं रही। माँ पर अत्याचार हुआ तो कभी तो असली बाप मिल गया, कभी भीड़ में गुम हो गया, ढूढे न मिला।
अनेक टेस्ट भी अविश्वसनीय होते हैं- कुछ तकनीकी खराबी से और कुछ प्रायोजित होते हैं। इसी लिये नार्को टेस्ट एवँ ब्रेन-मैपिंग को केस का आधार नहीं बनाया जाता। हत्या सबंधी या खाद्य अपमिश्रण के टेस्टों को अपने स्वार्थ में कुछ का कुछ करवा दिया जाता है, तो क्या यही खेल डी0एन0ए0 टेस्ट में नहीं खेला जा सकता?
आग के ऐसे खेल न खेलिये, जिसमें हाथ झुलस जाय। ऐेसा न हो आप का घर बिगड़ जाय और कोई हंस हंस कर यह पढ़ रहा हो।
इस घर को आग लग गई, घर के चिराग़ से।

डॉक्टर एस.एम हैदर
फ़ोन : 05248-220866

28.6.10

भोपाल मामले से कुछ सीख - सेवानिवृत्त न्यायधीश उच्चतम न्यायालय


इस सम्बंध में कोर्ट के निर्णय से ऐसा लगता है कि भारत अब भी विक्टोरियन साम्राज्यवादी, सामन्ती दौर में है, और जो सोशलिस्ट सपनों से बहुत दूर है।
उन वर्षों में जिन राजनैतिक दलों के हाथों में सत्ता थी, वे इस भारी अपराधिक लापरवाही के लिये दोषी है। इस घटना से सम्बंधित असाधारण बात तो यह है कि यूनियन कारबाइड में संलिप्त सब से बड़ा अधिकारी वारेन एंडरसन तो पिक्चर में लाया ही नहीं गया।
2 दिसम्बर 1984 को भोपाल में जो बड़े पैमाने पर हत्याकाण्ड हुआ वह एक अमरीकी बहुराष्ट्रीय कार्पोरेशन की भारी गलती का परिणाम था। जिसने भारतीयों की जिन्दगियों को अश्वारोही क्रूर योद्धाओं के समान रौंदा। इसमें लगभग 20,000 लोगों की गैस हत्या हुई फिर भी 26 वर्षों की मुकदमें बाजी के बाद अपराधियों को केवल 2 वर्ष की सश्रम कारावास की सजा दी गई। ऐसा तो केवल अफरातफरी वाले देश भारत ही में घटित हो सकता है।
अमेरिकी राष्ट्रपति एवं श्वेत संसार तथा श्यामल भारतीय, प्रधानमंत्री, तालिबान एवं माओवादी नक्सलवाद पर कर्कश आवाजे उठाते हैं। मगर यह नहीं देखते कि इस जन संहार पर जो, भारत के एक पिछड़े इलाके में अमेरिकन ने किया, अदालती फैसला आने में 26 वर्ष लग गये।
चूँकि भारत एक डालर प्रभावित देश है, इसीलिये गैसजन संहार को एक मामूली अपराध जाना गया। लगता है कि भारत पर मैकाले की विक्टोरियन न्याय व्यवस्था अब भी लागू है। हमारी संसद और कार्यपालिका को उनके जीवन और उस नुकसान से लगता है कोई वास्ता ही नहीं है। न्यायपालिका का भी यही हाल है, वह भी अहम मामलों में तुरन्त फैसला देने के अपने मूल कर्तव्य के प्रति लापरवाह है। संसद को भला इतना समय कहां कि वह अपने नागरिकों के जीवन को सुरक्षित करने के कानून बनाये। वह तो कोलाहल में ही बहुत व्यस्त हैं। इस प्रकार के अपराध के लिये जो तफ़तीशी न्यायिक विलम्ब हुआ वह अक्षम्य है।
अगर कार्यपालिका के पास जरूरी आजादी, तत्परता एवं निष्ठा हो, अगर सही जज नियुक्त हो और सही प्रक्रिया में अपनाई जाये तो भारतीय न्यायालय भी सही न्याय करने में सक्षम होंगे।

विश्वास भंग हुआ
यह भी हुआ कि आम आदमी के लिये यह समाजवादी लोकतंत्र बराबर एक निराशा का कारण बना रहा। यह विरोधाभास समाप्त होना चाहिये। हमारे पास असीमित मानव संसाधन हैं, जिससे हम अपने राष्ट्रपिता की प्रतिज्ञा की पुर्नस्थापना कर सकते हैं, उनकी यह प्रबल इच्छा थी कि हर आंख के आंसू को पोछा जाये। परन्तु भारतीय प्रभु सत्ता के इस विश्वास को भोपाल ने हास्यास्पद ढंग से भंग कर दिया गया। एक समय था जब हर वह गरीब आदमी जो भूखा और परेशान था और ब्रिटिश सामा्रज्य का विरोध कर रहा था, वह कांग्रेसी कहा जाता था। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद जब कांग्रेसी सत्ता में आये, फिर प्रत्येक भूखा लड़ाकू कम्युनिस्ट कहा गया। जब अनेक राज्यों में कम्युनिस्ट सत्ता में आये, और वहां बहुत से भूखे थे, वह भूखे गरीब नक्सलवादी कहे गये। क्या भारत का कुछ भविष्य भी है? हां जरूर है। शर्त यह है कि यहां के गौरवपूर्ण संविधान और अद्भुत सांस्कृति परम्पराओं में कार्ल माक्र्स एवँ महात्मा गाँधी के दष्टिकोण को शमिल करने की समझ पैदा की जाय। क्या हमारे पास इतना विचार-बोध हैं ? क्या न्यायाधीश ऐसी लालसा रखते हैं? भोपाल पर दिया निर्णय तो यही ज़ाहिर करता है कि भारत अब भी साम्राज्यवादी सामंती विकटोरियन युग मे है, और समाजवादी स्वप्नों से कोसों दूर है।
इस परिणाम की असाधारण बात यही है कि युनियन कारबाइड में संलिप्त सब से बड़ा अफ़सर वारेन एनडरसन को मामलो से बाहर रक्खा गया। यह तो इन्साफ का मज़ाक बनाया गया। मुख्य अपराधी को तो व्युह रचना से अलग हीं रक्खा गया। अब जो छोटों को अभियुक्त बनाया तो इससे यही प्रतीत हुआ कि उन लाखों का मज़ाक बना जिन लोगों को भुगतान पड़ा। अपराध क्षेत्र से शक्तिशालियों को मुक्त कर देने का अर्थ क़ानून को लंगड़ा कर देना। क्या एक अमेरिकी अपराधी की भारतीय कोर्ट के आर्डर के अन्र्तगत जांच नहींे की जा सकती ? इस प्रकार के भेद-भाव से न्याय हास्यास्पद बनता है। जब मूल अधिकारों का हनन हो तो जजों के कार्यक्षेत्र कें ऐसे केसों की सुनवाई निहित है, 26वर्ष बीत गये, इतने जज होते हुए भी सुप्रीम कोर्ट नें अब तक क्या किया ? तुरन्त सुनवाई हेतु भारत-सरकार भी कोर्ट तक नहीं गई ? अब क़ानून मंत्री कहते है कि जो दो वर्ष की सश्रम करावास की सज़ा दी गई है, उससे वह प्रसन्न नहीं है। इस 26 वर्ष की अवधि में भारतीय दण्ड विधान की धारा 300 से 304 में कोई संशोधन न प्रस्तावित किया गया न ही किया गया और न सख्त दण्ड का प्रावधान किया गया। यह बात भी संसद एवँ कार्यपालिका की अपने कर्तव्यों के प्रति लापरवाही की द्योतक है। उन दिनों में जो भी राजनैतिक दल सत्ता में रहे वह भी इस अपराधिक चूक के लिये दोषी हैं। क्योंकि भारतीय मानव पर अपराधिक कृत्य हुआ और वे सोते रहे। भुक्त भोगियों को मुनासिब मुआवज़ा तक नहीं दिया गया। यूनियन कारबाइड द्वारा वित्त-पोषित एक बड़े अस्पताल का निर्माण भोपाल में जरूर करवाया गया, लेकिन यह भी गरीबों के लिये नहीं अमीरों के लिए था। यह समझने कि अस्पताल लशों पर बना फिर भी वंचितो की पहुँच वहाँ तक नहीं हुई। सुप्रीम कोर्ट बजाय इसके कि निचले कोर्ट से मुकदमा मंगा कर तुरन्त निर्णय देता, वह अपने ही भत्ते और सुविधायें बढ़ाने में तल्लीन रहा।
यू0एस0 के लिये वारेन एंनडरसन एक बन्द अध्याय है। इस अत्यंत शक्तिशाली परमाणु राष्ट्र की न्याय अध्याय करने की अलग सोच है। इस बात से भारतीय जन मानस में इतना साहस होना चाहिये कि वह ‘डालर-उपनिवेशवाद‘ का कड़ा विरोध करे। अमेरिकन विधि के शासन से मुक्त हैं ? जब बहुं राष्ट्रीय निगम अधिनायकों के दोष की बात आ जाए तब श्यामल भारत को श्वेत-न्याय से संतुष्ट होना ही हैं ? हालांकि वाशिंगटन हमेशा व्यापक मानवाधिकार घोषणा-पत्र के प्रति वफ़ादारी की क़समें खाता है, परन्तु पब परमाणु-सन्धि की बात आती है तो उसकी डंडी अपने हितों की तरफ़ झुका देता है। भारत में यह साहस भी नहीं होता कि वह धोके के विरोध में कोई आवाज़ उठाये। हमारे पास बहुराष्ट्रीय निगम है जिसका वैश्विक अधिकार क्षेत्र है। एंडरसन एक अमेरिकी है और यूनियन कारबाइड थी ?
इसके आज्ञापत्र एशियाई ईधन के लिए ही हैं, भारतीय न्याय व्यवस्था लगता है कि केवल नगर पालिकाओं एवँ पंचायतों के लिये ही है, इससे आगे नहीं।


-वी0आर0 कृष्णा अय्यर
पूर्व मुख्य न्यायधीश
उच्चतम न्यायलय

the hindu से साभार
अनुवादक: डॉक्टर एस.एम हैदर

हरियाणा में 7 दिन में 6 ऑनर किलिंग

चंडीगढ़ । हरियाणा में कायदा-कानून खत्म हो चुका है। यहां प्रशासन की नहीं हत्यारों की चलती है। एक हफ्ते के भीतर ऑनर किलिंग के नाम पर छह हत्याएं यही साबित करती हैं कि राज्य सरकार इस मसले पर गंभीर नहीं है। ऐसा लग रहा है कि राज्य को चलाने वाले लोग इन पाषाणयुगीन मानसिकता रखने वालों को मौन समर्थन देते हैं। पिछले सात दिनों की इन घटनाओं पर गौर करें तो पता चलता है कि हरियाणा में हालात कितने खराब हैं। यहां एक हफ्ते में 6 हत्याएं हो चुकी हैं। पहली घटना 20 जून को, दूसरी 25 जून और तीसरी ठीक दो दिन बाद यानी 27 जून को घटी।
20 जून: जाट समुदाय के रहने वाले युवक और युवती ( रिंकू और मोनिका) को निमरीवाली गांव में युवती के परिजनों ने मार डाला। युवती की हत्या करने वालों में युवती के पिता, भाई और चाचा (या ताऊ) शामिल थे। इनके अलावा युवती के कजन्स भी इसमें शामिल थे। हत्यारे परिजनों ने इन दोनों की लाशों को बाद में अपने घरों में भी टांग दिया ताकि दूसरे लोग यह नजारा देख सकें और प्रेम करने की कथित गलती न कर सकें।
25 जून: सोनीपत में एक दादी ने अवैध संबंधों के संदेह में अपने बेटों की मदद से दो नाबालिग पोतियों की हत्या कर दी। दोनों लड़कियों की लाश शुक्रवार को मिली थी। शनिवार को पुलिस ने तीनों आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया। बताया जाता है कि सोनीपत निवासी सुरेंद्र वर्मा ने दो शादियां की थीं। उनके पहली पत्नी से एक लड़का था विजय (16)। दूसरी पत्नी से एक बेटी थी चंचल (14 साल)। विजय पहले अनाथाश्रम में रहता था। कुछ दिनों पहले वह अपने पिता और अन्य परिजनों के साथ रहने आया था। घरवालों को संदेह था कि चंचल और उसकी चचेरी बहन राज कुमारी (12)के विजय के साथ अवैध संबंध हो गए हैं। इसी संदेह में सुरेंद्र वर्मा की मां विद्या देवी अपने दो बेटों - सूरज वर्मा और चांद वर्मा - के साथ चंचल और राजकुमारी को एक रिश्तेदार के घर जाने के बहाने कार में ले गई। रास्ते में दादी ने अपने बेटों की मदद से दोनों पोतियों का गला घोंटकर मार दिया और लाशें पश्चिमी यमुना नहर में फेंक दी। तीनों आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया है।
27 जून: सोनीपत में ही ऑनर किलिंग की एक और घटना घटी जिसमें दो परिवारों ने मिल कर पति पत्नी को आत्महत्या करने पर मजबूर कर दिया। 25 साल के दीपक कुमार और 18 साल की टीना झा की शादी का मुखर विरोध कर रहे दोनों के परिवार वालों ने शादी के बाद भी दोनों पर दबाव बनाना जारी रखा था। दोनों ने पानीपत के समाल्खा में ट्रेन के आगे कूद कर जान दे दी।

27.6.10

छोटी-बड़ी बातों का कामरेड - कामरेड राजेन्द्र केसरी

(फोटो कैप्शन: तीन साल पहले जब हमने इंग्लैण्ड की एक शोध छात्रा क्लेर हेस को बीड़ी उद्योग पर अध्ययन करने का काम सौंपा था तो उसने राजेन्द्र केसरी का इस विषय पर लंबा इंटरव्यू लिया था। ये फोटो उसी वक्त उसने इन्दौर में शहीद भवन में लिया था जो उसने कामरेड राजू के प्रति अपनी श्रृद्धांजलि के साथ भेजा है।)

लोहे की हरी अल्मारी के भीतर एक पुराना सा टाइपराइटर इंतजार कर रहा है कि कोई उसे बाहर निकालेगा। कोई दरख्वास्त, कोई नोटिस, कोई सर्कुलर, कोई परचा - कुछ तो होगा जिसे टाइप होना होगा। टाइपराइटर के साथ ही वे सारी दरख्वास्तें, नोटिस, सर्कुलर और परचे भी इन्तजार कर रहे हैं कि कोई उन्हें टाइप करेगा, आॅफिस पहुँचाएगा, कोर्ट ले जाएगा, नोटिस बोर्ड पर लगाएगा। 27 मई को गुजरे आज महीना होने को आया, इंतजार खत्म ही नहीं होता।
एक बूढ़ी अम्मा है। साँवेर के नजदीक एक गाँव में रहती है। मांगल्या के पास की एक गुटखा फैक्टरी में काम करती थी। वहाँ राजू ने यूनियन बनायी हुई है। वहीं से वो राजू केसरी काॅमरेड को जानती है। बस में सत्रह रुपये खर्च करके इन्दौर में पार्टी के आॅफिस शहीद भवन तक आती है। वो शहीद भवन आकर राजू केसरी से मिलना चाहती है कि वो उसके देवर के खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट लिखवाये। उसे पुलिस के पास जाकर रिपोर्ट लिखवानी है कि उसके देवर ने उस पर बहुत बड़ा पत्थर उठाकर फेंका। वो शहीद भवन में आकर राजू का कई बार तो घंटों इंतजार करती है। काॅमरेड राजू आते हैं, अम्मा से हँसी-मजाक करते हैं, अपना काम करते हैं लेकिन अम्मा के साथ रिपोर्ट लिखवाने नहीं जाते। बूढ़ी अम्मा खूब गुस्सा हो जाती है। काॅमरेड राजू हँसकर उसका गुस्सा और कोसना सुनते रहते हैं। अम्मा अपने सत्रह रुपये बेकार जाने का हवाला देती है। काॅमरेड राजू हँसते-हँसते उससे कहते हैं कि अम्मा मेरे घर चलकर सो जाना। मैं खाना भी खिला दूँगा और 17 रुपये भी दे दूँगा।
मैं उस दिन वहीं शहीद भवन में ही थी। सब काॅमरेड राजू और बूढ़ी अम्मा की बातचीत सुनकर हँस रहे थे। मैंने राजू केसरी से कहा, ’’काॅमरेड, क्यों बूढ़ी अम्मा को सताते हो? उसकी रिपोर्ट क्यों नहीं लिखवा देते?’’ राजू बोला, ’’काॅमरेड आप जानती नहीं हो। मैं खुद अम्मा के गाँव उसके घर जाकर आया, वो पत्थर भी देखकर आया जो ये बोलती है कि इसके देवर ने इस पर फेंका था, लेकिन इसे लगा नहीं। अब मैं पुलिस को जाके क्या बोलूँ कि इसके देवर ने इसको पत्थर मारा जो इसको लगा नहीं इसलिए उसको गिरफ्तार कर लो? फिर जब इसको इसका देवर कल सचमुच में पत्थर मारेगा तो फिर अम्मा को कौन बचाएगा?’’ अम्मा बड़बड़ाती रही, राजू टाइप करते-करते मुस्कुराते रहे, मैं अम्मा को समझाने की कोशिश करके निकल आयी।
जाॅब कार्ड बनवाना है, राशन कार्ड बनवाना है, लेबर कमिश्नर के पास जाना है, पेंशन दिलवानी है, ऐसे ढेर छोटे-बड़े कामों को काॅमरेड राजू केसरी को करते देखने की यादें हैं। यादें और भी हैं। विनीत ने बताया कि राजू केसरी की पहली याद वो है जब काॅमरेड रोशनी दाजी हमें छोड़ चली गयी थी। रोशनी की अंतिम यात्रा निकलने के पहले राजू केसरी सैकड़ों मजदूरनियों का जुलूस लेकर नारे लगाते हुए पहुँचा था। बेशक राजू सहित सभी रो रहे थे लेकिन सबकी आवाज बुलंद थी - ’काॅमरेड रोशनी दाजी को लाल सलाम’।
बीड़ी मजदूरिनों को संगठित करने, रेलवे हम्मालों की यूनियन बनाने, गुटखा फैक्टरियों में काम करने वाली औरतों का संगठन खड़ा करने जैसे अनेक कामों से राजू केसरी पार्टी का काम आगे बढ़ा रहे थे। बीड़ी के बारे में तो वे बताते भी थे कि इन्दौर की बीड़ी बनाने वाली बाइयाँ दूसरी जगहों की बीड़ी मजदूरों से कितनी अच्छी स्थिति में हैं। इन्दौर में सभी बीड़ी कारखानों के मजदूरों में राजू का काम फैला था और 3 हजार से ज्यादा बीड़ी मजदूर एटक के सदस्य बने थे। हाल में मुंबई में हुए बीड़ी-सिगार मजदूरों के राष्ट्रीय सम्मेलन में राजू को बीड़ी-सिगार फेडरेशन के मध्य प्रदेश के संयोजक की महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी गयी थी।
लड़ने में काॅमरेड राजू केसरी नंबर एक थे। मुझे खुद बताते थे कि कामरेड, आज फलाने की धुलाई कर दी। आज किसी को धक्का मारकर बाहर कर दिया। कामरेड बसन्त मुझे एक दिन बोले, ’’ये राजू हर चीज में झगड़ा डालता है। अड़ जाता है तो किसी की सुनता ही नहीं।’’ उनके साथ लगभग हर वक्त रहने वाले कामरेड सत्यनारायण बोले कि हम दोनों हर रोज लड़ते थे। आज शहीद भवन में सब कामरेड्स आँखें नम किये इंतजार करते हैं कि राजू आये और लड़ाई करे।
जब से इन्दौर में महिला फेडरेशन का काम शुरू किया, तभी से कामरेड मोहन निमजे और काॅमरेड राजू केसरी अपनी यूनियन की महिलाओं को महिला फेडरेशन की गतिविधियों में हमेशा भेजते रहे। अभी 8 मार्च 2010 को महिला दिवस के लिए मैंने काॅमरेड राजू से बात की तो वो प्रोमेड लैबोरेटरीज की कर्मचारी महिलाओं से बात करने के लिए हमारे साथ गये, गेट मीटिंग ली और बोले, ’’मैं मैनेजर से बात करूँगा कि 8 मार्च के दिन वो तुम लोगों की जल्दी छुट्टी कर दे ताकि तुम लोग महिला दिवस के जुलूस में शामिल हो जाओ, लेकिन अगर वो न माना तो तुम लोग आधे दिन की तनख्वाह कटवा कर आ जाना। छुट्टी मिले या नहीं लेकिन आना जरूर।’’ सारी महिलाएँ जोर से सिर हिलाकर बोलीं कि बिल्कुल आएँगे और 8 मार्च को आधे दिन की छुट्टी लेकर महिलाएँ आयीं और जुलूस में शामिल हुईं।
27 मई को जब राजू हमें छोड़कर चले गये तो बीड़ी मजदूरनियाँ, रेलवे हम्माल, प्रोमेड लैबोरेटरीज और तमाम कारखानों के मजदूर फिर छुट्टी लेकर आये अपने लड़ाकू काॅमरेड को आखिरी सलाम कहने। सबकी आँखों में आँसू थे लेकिन उन्होंने राजू से सीख लिया था कि आँखों में आँसू भले हों लेकिन किसी भी काॅमरेड को लाल सलाम कहते वक्त आवाज नहीं काँपनी चाहिए।
मिल मजदूर के लड़के थे राजू केसरी। एक दिन अपने बारे में बता रहे थे कि जब सिर्फ 14 बरस की उम्र थी तब उनके पिता दुर्घटना की वजह से काम करने लायक नहीं रह गये थे। सन 1975 में राजू ने पार्टी आॅफिस में पोस्टर चिपकाने की नौकरी 40 रुपये महीने पर की थी। काॅमरेड पेरीन दाजी कहती हैं कि ’’राजू पार्टी आॅफिस में झाड़ू लगाता था। उसका रंग काला था, तो शुरू में तो हम सब उसे कालू ही कहते थे। राजू तो वो बाद में बना।’’ झाड़ू लगाते-लगाते और पोस्टर चिपकाते-चिपकाते काॅमरेड राजू ने दसवीं पास की और टाइपिंग भी सीख ली। पार्टी के तमाम नोटिस और तमाम कागज टाइप करने की जिम्मेदारी तब से राजू ने ही संभाली हुई थी।
एक दिन मैंने उनसे पूछा कि जब आप पार्टी से जुड़े तो कम्युनिज्म से क्या समझते थे? तो बोले कि ’’काॅमरेड, 14 बरस की उम्र में मैं कुछ नहीं समझता था। सिर्फ इतना जानता था कि लाल झण्डा पकड़ना सम्मान की बात है। उस वक्त लाल झण्डे की लोग बहुत इज्जत करते थे। उन दिनों इन्दौर की कपड़ा मिलों में 30-35 हजार मजदूर काम करते थे और मजदूरों की आवाज केवल मिल क्षेत्र में ही नहीं बल्कि पूरे शहर में सुनी जाती थी।’’
सन् 1975 में ही मेरी माँ कामरेड इन्दु मेहता ने भी पार्टी की सदस्यता ली थी। उन्हीं दिनों मुझे एक चिट्ठी में मेरी माँ ने लिखा था कि ’’तुम लोगों के लिए एक बेहतर दुनिया छोड़कर जाना चाहती हूँ। इस दुनिया को बेहतर बनाने के लिए समाजवाद कायम करने का संघर्ष जरूरी है।’’ उस वक्त मेरी माँ की उम्र 53 वर्ष थी। वो काॅलेज में राजनीतिशास्त्र पढ़ाती थीं, उन्होंने समाजवाद और माक्र्सवाद के बारे में कई किताबें पढ़ी थीं। लेकिन राजू केसरी जैसे काॅमरेड्स उतनी किताबें नहीं पढ़ते। माक्र्सवाद के बारे में उनकी समझ पार्टी स्कूल से बनती है। वो मानवता की जरूरत और मानवता के लिए संघर्ष के माक्र्सवादी पाठ वहीं सीखते हैं। राजू केसरी मुझे कहा करते थे कि हमने तो माक्र्सवाद काॅमरेड इन्दु मेहता से ही सीखा।
ट्रेड यूनियन की राजनीति भी राजू केसरी ने काम करते-करते और अपने वरिष्ठ साथियों के काम करने के तरीकों को देखकर सीखी। पिछले 35 बरसों में पार्टी और कम्युनिस्ट विचारधारा से राजू ने गहरा संबंध बना लिया था। सही-गलत के बारे में और नये तरीकों की जरूरत के बारे में भी वो सोचते थे और बात करते थे। एक दिन शहीद भवन में बोले, ’’काॅमरेड, मैं ट्रेड यूनियन के काम से संतुष्ट नहीं हूँ। मजदूर हमारे पास आते हैं क्योंकि उन्हें पता है कि उनके हकों की लड़ाई लाल झण्डे वाली यूनियन ही लड़ सकती है। हम उनका संगठन बनाते हैं। उनके हक की लड़ाई लड़ते हैं। मैनेजमेंट को मजदूरों के हक में झुकाते हैं, लेकिन जब उनकी माँग पूरी हो जाती है तो उन्हें यूनियन की जरूरत नहीं महसूस होती। वो सब छोड़-छाड़कर चले जाते हैं। बताइए काॅमरेड, अगर हम मजदूरों को उनके स्वार्थों से ऊपर उठाकर उनकी राजनीतिक समझ नहीं बना पाये तो ट्रेड यूनियन का क्या काम किया?’’ इन जायज सवालों का सामना करते हुए भी राजू को इस बात में कभी संदेह नहीं रहा कि रास्ते तभी निकलते हैं जब संघर्ष और कोशिशें जारी रखी जाती हैं। इसीलिए उसने लगातार मजदूरों, कर्मचारियों के नये-नये संगठन बनाना जारी रखा। हाल में आपूर्ति निगम के हम्मालों का संगठन और प्राइवेट स्कूलों के शिक्षकों व कर्मचारियों का संगठन बनाने में राजू ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। अपनी तरह से वो कोशिश भी करते थे कि यूनियन में शामिल मजदूर भत्ते-तनख्वाहों तक ही न रुकें बल्कि उनका सही राजनीतिक विचार भी बने। एक बार 15 अगस्त को हम्माल यूनियन के मजदूरों के बीच झण्डा फहराते हुए राजू केसरी मजदूरों से बोले कि ’’भगतसिंह ने हिन्दुस्तान की ऐसी आजादी के लिए कुर्बानी तो नहीं दी थी जहाँ हमारे बच्चों को दूध न मिले, काॅपी-किताब न मिले, उल्टे हम धर्म के नाम पर लड़ें और सब तरह की बेईमानियाँ करें। ये तो भगतसिंह और आजादी के उन सब दीवानों के साथ नाइन्साफी है।’’
असंगठित क्षेत्र में यूनियन को फैलाने का जो काम काॅमरेड राजू केसरी और उनके साथी काॅमरेडों ने किया, उसका महत्त्व इसलिए और भी बढ़ जाता है कि वो ऐसे वक्त में किया गया काम है जब असंगठित तो दूर, संगठित क्षेत्रों की ट्रेड यूनियनों में भी हताशा का माहौल है।
उदारीकरण के मजदूर विरोधी माहौल में ट्रेड यूनियन की राजनीति कितनी कठिन है, राजू जैसे काॅमरेड्स इस किताब को अपने अनुभव की रोशनी में रोज पढ़ते हैं। मैंने उनसे पूछा था कि, ’’काॅमरेड, फिर आप पार्टी के साथ अभी तक क्यों जुड़े हैं?’’ वो बोले, ’’काॅमरेड मैंने आशा नहीं छोड़ी है कि एक वैकल्पिक समाज, शोषणरहित समाज व्यवस्था एक दिन जरूर आएगी। लोग समाजवाद के महत्त्व को एक दिन जरूर समझेंगे। हमें एक अच्छा नेतृत्व चाहिए बस, एक दिन हम समाजवाद के सपने को जरूर सच कर लेंगे।’’
रात को दस-साढ़े दस बजे तक राजू पार्टी का काम करते रहे और फिर आधी रात अचानक अपने अधूरे काम, अधूरी लड़ाइयाँ और अधूरे सपने छोड़कर वो चले गए। मैं उनके घर गयी तो पूरा मोहल्ला भीगी आँखों के साथ बैठा था। उनकी 17 बरस की लड़की शानो मुझसे बात करने लगी अपने पापा के बारे में। मुझसे बोली, ’’आपकी पार्टी कितनी अच्छी है। मेरा भाई भी पार्टी ज्वाइन कर सकता है क्या? अभी वो सिर्फ 13 साल का है। पापा उसे इन्जीनीयर बनाना चाहते थे।’’
उसकी बात सुनकर मुझे लगा कि इतिहास अपने आपको इस शक्ल में दोहराये, ऐसा नहीं होना चाहिए। ऐसा नहीं होना चाहिए कि जैसे कम उम्र में राजू को पार्टी ज्वाइन करने की जरूरत पड़ी, वैसे ही उसके बेटे को पड़े। हम सब जो बचे हैं, पार्टी में राजू केसरी की खाली जगहों को देर-सबेर भर ही लेंगे। लेकिन राजू के बच्चों को इन्जीनीयर, डाॅक्टर, कलाकार या जो भी बनना हो, वो बनने का उन्हें अवसर मिलना चाहिए। हम सभी को मिलकर राजू के बच्चों की अच्छी पढ़ाई की पूरी व्यवस्था करनी चाहिए। बच्चे जब बड़े हों तो सोच-समझकर पार्टी से जुड़ें, वैसी दुनिया बनाने की कोशिशों में अपना हिस्सा बँटाएँ जिसका सपना उनके पापा देखते थे और जिन्दगी की आखिरी साँस तक उसको सच करने की खातिर वे हर छोटा-बड़ा काम करते रहे।
कामरेड राजू केसरी को लाल सलाम।
जया मेहता,
संदर्भ केन्द्र, 26, महावीर नगर, इन्दौर -452018

26.6.10

मेहनत रंग लायी एक पिता की

बरेली जनपद के सीबीगंज इलाके में तत्कालीन सहायक पुलिस अधीक्षक जे रविन्द्र गौड़ के दिशा निर्देशन में मुकुल गुप्ता नाम के नौजवान को पुलिस ने पकड़ कर हत्या कर दी थी। मुकुल गुप्ता के पिता ब्रजेन्द्र गुप्ता ने न्यायलय की शरण लेकर प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराई थी जिसकी विवेचना स्थानीय पुलिस को ही दी गयी थी जिसपर ब्रजेन्द्र गुप्ता ने माननीय उच्च न्यायलय इलाहाबाद में याचिका दायर कर सी.बी.आई जांच कराने की मांग की थीकानूनी दांव पेच के बाद 20 फरवरी 2010 को न्यायलय ने सी.बी.आई जांच के आदेश दिए। जांच के उपरांत सी.बी.आई ने अब वर्तमान में पुलिस अधीक्षक बलरामपुर जे रविन्द्र गौड़ समेत 11 पुलिस कर्मियों के ऊपर हत्या हत्या के सबूत मिटाने का वाद दर्ज कराया है।
कानून के रक्षकों द्वारा वह-वाही इनाम प्राप्त करने के लिए नवजवानों को पकड़ कर हत्या का सिलसिला बहुत पुराना हो रहा है। पीड़ित पक्ष द्वारा आवाज उठाने पर कोई कार्यवाही नहीं हो पाती है यदि किसी तरह प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज भी हो जाती है तो उसकी विवेचना उसी विभाग के निचले स्तर के अधिकारी करने लगते हैं। विवेचना के नाम पर विवेचना अधिकारी साक्ष्य मिटाने का ही काम करते हैं इसलिए आवश्यक यह है एनकाउन्टर में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कर पुलिस विभाग से अतिरिक्त जांच एजेंसी से जांच करनी चाहिए जिससे जनता का विश्वास पैदा होगा और फर्जी तरीके से एनकाउन्टर के नाम पर हत्याएं रोकी जा सकती हैं।
बधाई के पात्र हैं श्री ब्रजेन्द्र गुप्ता जिन्होंने ने अपने पुत्र की हत्या के अपराधियों को सजा दिलाने के लिए एक लम्बी कानूनी लड़ाई लड़ी। एक अधिवक्ता होने के नाते मैं उनका कष्ट समझ सकता हूँ कि उन्होंने न्याय प्राप्त करने के लिए कितने कष्ट सहे होंगे। अभी उनको हत्यारों को सजा कराने के लिए काफी प्रयास करने होंगे

हिसार में ऑनर किलिंग

हिसार । इज्जत के लिए हत्या करने का एक और मामला सामने आया है। अपने मजहब से बाहर लव मैरिज करने वाले युवक की हत्या कर दी गई। युवक का शव शुक्रवार को हिसार के एक होटेल से मिला। युवक के परिवार वालों ने हत्या का इल्जाम लड़की के परिवार वालों पर लगाया है। पुलिस सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक , 28 वर्षीय इस युवक का नाम प्रणव कुमार (बदला हुआ नाम) था। वह एक मुस्लिम युवती से लव मैरिज करने के बाद से हिसार के अर्बन एस्टेट-2 में अपने परिवार से अलग रह रहा था। पुलिस की तफतीश में पता चला है कि प्रणव को गुरुवार को लड़की के परिजनों ने फोन करके बुलाया था। लेकिन शुक्रवार सुबह उसकी लाश, हिसार के बस अड्डे के सामने स्थित होटल के कमरा नंबर 121 से बरामद हुई। प्रणव के शरीर पर चोट के गहरे निशान पाए गए हैं। कमरे से हथोड़ा व कुछ बोतलें भी बरामद हुई हैं। एएसपी पंकज नैन ने बताया कि युवक हिसार के एक प्राइवेट स्कूल में कंप्यूटर ऑपरेटर था। उसके पिता हिसार की एक फैक्ट्री में फोरमैन के पद पर कार्यरत हैं। प्रणव ने 15 नवंबर 2009 को जयपुर की मुस्लिम लड़की रुखसाना (बदला हुआ नाम) से लव मैरिज की थी। प्रेम प्रसंग के दौरान रुखसाना के परिजनों ने प्रणव के खिलाफ अपहरण व बलात्कार का केस दर्ज कराया था, लेकिन रुखसाना ने पुलिस को प्रणव के पक्ष में बयान दिया और दोनों ने शादी कर ली थी। प्रणव के पिता ने पुलिस को बताया कि इस शादी से रुखसाना के परिवार वाले खुश नहीं थे और उन्होंने ही आलोक की हत्या की है। बताया जाता है कि रुखसाना के पिता राजस्थान से एक राजनीतिक पार्टी के प्रदेश महासचिव हैं। पुलिस प्रवक्ता के अनुसार होटेल में कमरा किसी दूसरे के नाम से बुक करवाया गया था। पुलिस मामले की तहकीकात रुपयों के लेन-देन से लेकर सट्टेबाजी आदि जैसे पहलुओं पर भी गौर करते हुए कर रही है। पुलिस के अनुसार युवक अपनी पत्नी के साथ देर रात तक मोबाइल पर संपर्क में था।

25.6.10

कितने मुनासिब हैं विशेष पुलिसिया दस्ते- अंतिम भाग

विशेष बलों के जरिए होने वाली फर्जी गिरफ्तारियों का सिलसिला उत्तर प्रदेश तक ही सीमित नहीं है। दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल भी मनगढ़ंत कहानी पर फर्जी गिरफ्तारी करने के मामले में अदालत में मुँह की खा चुकी है। दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल की करतूत तब सामने आईं, जब अदालत ने मुठभेड़ के बाद गिरफ्तार किए गए कथित आतंकियों को रिहा कर दिया। इन कथित आतंकियों को स्पेशल सेल ने 2005 में मुठभेड़ के बाद दिल्ली से गिरफ्तार किया था। इन पर भारतीय सैन्य अकादमी, देहरादून पर हमले की साजिश का आरोप था। जिसे स्पेशल सेल ने एक बड़ी कामयाबी के तौर पर प्रचारित किया था। जबकि गिरफ्तार किए गए सभी चारो लोग पुलिस की तरफ से पेश की गई चार्जशीट के विरोधाभासी ब्यौरों के आधार पर निचली अदालत द्वारा बरी कर दिए गए हैं। अदालत ने स्पेशल सेल के कामकाज से असंतोष व्यक्त करते हुए बार-बार टिप्पणी की है कि स्पेशल सेल ने अपने अधिकारों का बेजा इस्तेमाल किया है। दिल्ली पुलिस ने मार्च 2005 में जिन चार लोगों को आतंकी बताकर गिरफ्तार किया था, पाँच साल बाद जब वे छूटे तो उनके पास न तो वह उल्लास था और न वे सपने, जो उन्होंने पुलिसिया साजिश का शिकार होने से पहले सँजोये थे।
आउट ऑफ टर्न प्रमोशन लेकर फर्जी एनकाउंटर करके अपनी पीठ थपथपाने वाली पुलिस से जन्मे विशेष दस्ते अब आतंकवाद और नक्सलवाद के नाम पर लोगों को निशाना बना रहे हैं। ऐसे में ये सवाल करना सहज हो जाता है कि आखिर देश का संविधान जो आजादी, जो सहूलियतें देता है, उसको नुकसान पहुँचाने वाले पुलिसकर्मी निर्दोष कैसे हो सकते हैं? क्या इन दस्तों के कारनामों से संविधान की मूल भावना को चोट नहीं पहुँचती है? दरअसल राजनीति में दिनों-दिन बढ़ती जा रही गैर-जिम्मेदारी ऐसे सवालों से मुँह चुरा रही है। जबकि सत्ता अपने अपने अपराध को छिपाने के लिए खौफजदा समाज बनाने की कोशिश में है। एक ऐसा समाज जहाँ हर किसी को केवल अपने जान और माल की चिंता में ही व्यस्त रहने की मजबूरी हो और सत्ता के पक्षपाती कदमों के संगठित
प्रतिरोध की स्थितियाँ ही न बन पाएँ। यही कारण है कि अधिकारों का दुरुपयोग करने के तमाम आरोपों के बावजूद विशेष पुलिस दस्तों को बनाए रखा जा रहा है। सत्ता भययुक्त समाज बनाने के लिए
धीमी न्याय प्रक्रिया का फायदा उठाकर इन बलों का बखूबी इस्तेमाल कर रही है। यही कारण है कि किसी भी बड़ी वारदात के बाद चैबीस या अड़तालीस घंटे के भीतर एक साथ कई गुनाहगारों की गिरफ्तारी हो जाती है। साजिशकर्ता जानते हैं कि जब तक मामला निष्कर्ष पर पहुँचेगा और अदालत का फैसला आएगा, तब तक बात पुरानी हो चुकी होगी। इसके अलावा ये विशेष दस्ते फर्जी गिरफ्तारियों और मनगढंत कहानियों के जरिये अपने औचित्य का भी बचाव करते हैं। क्योंकि जब तक इस तरह के अपराध होते रहेंगे या होने की सम्भावनाएँ जताई जाती रहेंगी, तब तक इन विशेष दस्तों के बने रहने का तर्क मजबूत रहेगा। कुल मिलाकर विशेष दस्तों को मिलने वाली विशेष सुविधाएँ इस तरीके के भ्रष्टाचार के लिए मनोबल देती हैं।
कहने का साफ मतलब है कि जब देश का सामान्य कामकाज सामान्य नियमों से चल सकता है,तो विशेष कानून और विशेष कार्य बल कितने जरूरी हैं? अगर ऐसे बलों की आवश्यकता है तो यह तय करने की जिम्मेदारी किसकी है कि इन बलों से नैसर्गिक न्याय की अवधारणा को कोई चोट न पहुँचे। अगर कोई नागरिकों की गरिमा को नुकसान पहुँचाता है तो ऐसे लोगों को दंडित करने की जिम्मेदारी किसकी है ? वक्त रहते सामान्य विधि प्रक्रियाओं और व्यवस्थाओं को मजबूत किया जाना जरूरी है, ताकि किसी भी तरह के विशेषाधिकार के बल पर नागरिकों की अस्मिता पर चोट करने वाली कारगुजारियों को रोका जा सके। ऐसे में इन विशेष पुलिसिया दस्तों को भंग किया जाना मानवाधिकारों के संरक्षण में पहला कदम साबित होगा।

(समाप्त)

-ऋषि कुमार सिंह
मोबाइल: 09313129941

फांसी पर लटके मिले युवक-युवती

फतेहाबाद: टोहाना नगर के रतिया रोड़ पर अजय ट्रासपोर्ट कम्पनी के कार्यालय के सामने स्थित खाली पड़ी कोठी की ऊपरी मंजिल पर एक अज्ञात युवक व युवती का शव छत से झूलता हुआ पाये जाने से सनसनी फैल गई। शहर पुलिस ने दोनों शवों को अपने कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए सरकारी अस्पताल में भिजवा दिया है। अनुमान लगाया जा रहा है कि लगभग डेढ़ माह से दोनों शव इस मकान में लटक रहे थे। रतिया रोड़ के दुकानदारों को पिछले लगभग पन्द्रह-बीस दिनों से बदबू का अहसास हो रहा था। उन्होंने पास के खाली स्थानों में कुत्तो के शव के पड़े होने की आशका के चलते इसे गंभीरता से नहीं लिया। आज अचानक प्रात: ग्यारह बजे के करीब उक्त कमरे से जबरदस्त बदबू फैलने से दुकानदारों के अलावा राह चलते लोगों को भारी परेशानी हो रही थी। लोगों को आशका व्यक्त हुई कि उक्त कोठी में से ही बदबू आ रही है। लोगों ने शहर थाना में फोन के द्वारा सूचना दी। सूचना मिलते ही शहर पुलिस की टीम थाना प्रभारी मदन के नेतृत्व में उक्त कोठी के मुख्य द्वार पर पहुंची, जहा लोगे के गेट को जंजीर से बंद कर ताला जड़ा हुआ था, लेकिन गेट लूज बंद होने से उसमें से निकलना आसान था। पुलिस ने मुख्य द्वार का ताला तोड़कर मुंह को रूमाल से ढांपकर उस कोठी की ऊपरी मंजिल में प्रवेश किया तो कमरे के अन्दर एक युवक व युवती का शव छत पर लगी हुक के साथ बंधी रस्सी से लटक रहा था। शव पुराना होने के कारण चेहरे के हालात बिगड़े हुए थे तथा शिनाख्त करना भी मुश्किल था। युवक का शव छत की ओर व युवती का शव रस्सी से बंधा जमीन पर लटक रहा था। युवती की दोनों टागे कुत्ताों द्वारा नोचे जाने की आशका व्यक्त की जा रही थी क्योंकि कमरे के बाहर पैरों की हड्डिया पड़ी पाई गई है। पुलिस ने तुरन्त सीन ऑफ क्राइम की टीम को मामले की सूचना दी जिस पर कुछ ही घटों बाद टीम ने पहुच कर कमरे में लटके शवों के इर्द गिर्द जाच पड़ताल कर आवश्यक सबूत एकत्र किये। शहर थाना प्रभारी मदन लाल ने बताया कि उक्त शव टोहाना नगर के वासी नहीं हो सकते क्यों कि पिछले एक माह के दौरान थाना शहर में किसी ऐसे युवक युवती के लापता होने का कोई मामला दर्ज नहीं है। फिलहाल पुलिस उन दोनों की शिनाख्त के लिए छानबीन कर रही है। इस बारे में पुलिस अधीक्षक जगवंत सिंह लांबा से बात की गई तो उन्होंने कहा कि प्राथमिक जांच में यह आत्महत्या का मामला नजर आ रहा है। उन्होंने कहा कि युवक युवती के फतेहाबाद जिले से बाहर होने का अनुमान है। क्योंकि अभी तक जिले में इस तरह का मामला सामने नहीं आया है।

24.6.10

कितने मुनासिब हैं विशेष पुलिसिया दस्ते

देश में उत्तर प्रदेश पुलिस प्रताड़ना से होने वाली मौतों में सबसे आगे है, तो मानवाधिकार हनन के भी मामले में किन्हीं दूसरे राज्यों से पीछे नहीं है। हाल के दिनों में विशेष पुलिसिया दस्तों के द्वारा किए गए कथित मुठभेड़ों पर लगातार सवाल उठते रहे हैं। जबकि इन विशेष पुलिसिया दस्तों का गठन संगठित अपराधों और आतंकी वारदातों से निपटने के नाम पर किया गया था, लेकिन वक्त बीतने के साथ ये विशेष दस्ते सवालों के घेरे में आ गए। ये विशेष दस्ते अपने कामकाज के तरीके में मानवाधिकार हनन का केंद्र बन गए हैं। गौरतलब है कि हरियाणा में अपराधियों से निपटने के लिए बनाई गई स्पेशल टास्क फोर्स ऐसे ही आरोपों के चलते भंग कर दी गई। हरियाणा एस0टी0एफ0 पर सर्राफा व्यापारियों से पैसे वसूलने का आरोप लगा। सी0सी0टी0वी0 कैमरे में कैद हुईं तस्वीरों के आधार पर एस0टी0एफ0 के सात जवानों समेत एस0टी0एफ0 के मुखिया अशोक श्योराण को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया है। हरियाणा की घटना से यह बहस जरूरी हो गई है कि सामान्य पुलिस की तुलना में एस0टी0एफ0 जैसे विशेषाधिकार प्राप्त दस्ते कितने उपयुक्त होते हैं, क्योंकि अपराधियों पर नकेल कसने की लिए बनाए गए ये दस्ते कई संगीन आरोपों में घिरते जा रहे हैं। इन दस्तों पर न केवल बेगुनाहों को फँसाने का आरोप है, बल्कि जबरन उगाही, सरेआम हथियारों का प्रदर्शन, बिना नम्बर प्लेट की गाड़ी से चलने जैसे कई आरोप समय-समय पर लगते रहे हैं।
केवल उत्तर प्रदेश में इन विशेष पुलिसिया दस्तों के कामकाज को लेकर लगातार अँगुली उठती रही है। उत्तर प्रदेश पुलिस की एस0टी0एफ0 और ए0टी0एस0 पर दर्जनों फर्जी गिरफ्तारियाँ करने का आरोप है। इस बात को लेकर समय-समय पर मानवाधिकार संगठनों ने न केवल एस0टी0एफ0 व ए0टी0एस0 को भंग करने की, बल्कि फर्जी गिरफ्तारियों के मामले में ए0टी0एस0 अधिकारियों का नार्को टेस्ट कराने की माँग भी की है। फर्जी गिरफ्तारियों की असलियत तब सामने आई, जब अदालतों में साक्ष्यों के अभाव में या पकड़े गये लोगों के घटनास्थल पर मौजूद न होने के पुख्ता सबूतों के आधार पर अदालत ने फैसला सुनाया। पश्चिम बंगाल से गिरफ्तार किया गया राजू बंगाली नामक युवक बेकसूर पाया गया, हालाँकि एस0टी0एफ0 ने उसे हूजी का कमांडर बताया था। ए0टी0एस0 और एस0टी0एफ0 ने राजू बंगाली की निशानदेही पर जिन लोगों को गिरफ्तार किया था, वे लोग अभी तक जेलों में रहने को मजबूर हैं। उत्तर प्रदेश में एस0टी0एफ0 की फर्जी गिरफ्तारियों का दूसरा साक्ष्य 19 नवम्बर 2009 को लखनऊ की अदालत में सामने आया, जब 23 जून 2007 को लखनऊ में विस्फोटक छुपाने के मामले की सुनवाई चल रही थी। उत्तर प्रदेश एस0टी0एफ0 ने अज़ीज़ुर्रहमान नाम के शख्स को पश्चिम बंगाल से गिरफ्तार करते हुए जो कहानी पेश की थी, उसके अनुसार 22/23 जून की रात अजीजुर्रहमान लखनऊ में मौजूद था। जबकि 22 जून को पश्चिम बंगाल की सी0आई0डी0 ने अजीजुर्रहमान को चोरी के आरोप में कोर्ट में पेश किया था। जहाँ अलीपुर कोर्ट के मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट ने उसे 6 दिन की रिमांड पर भेजा था, कोर्ट की तरफ से जारी की गई रिमांड की सर्टीफाइड कॉपी इस बात का सबूत है। कुल मिलाकर पश्चिम बंगाल का अदालती दस्तावेज यह साबित करता है कि अज़ीज़ुर्रहमान किसी भी सूरत में 22/23 जून 2007 को लखनऊ में नहीं हो सकता है। गौरतलब है कि एस0टी0एफ0 ने हूजी के कथित एरिया कमांडर जलालुद्दीन उर्फ बाबू की निशानदेही पर अज़ीज़ुर्रहमान को दो अन्य लोगों एस के मुख्तार और मोहम्मद अली अकबर के साथ गिरफ्तारी की थी। तीनों की निशानदेही पर 11 जुलाई 2007 को मोहनलालगंज के गढ़ी गाँव से विस्फोटक भी बरामद किया था। जबकि जलालुद्दीन उर्फ बाबू को 23 जून 2007 को लखनऊ के रेजीडेंसी के पास से गिरफ्तार किया गया था। एसटीएफ ने बाबू को संकट मोचन मंदिर और श्रमजीवी एक्सप्रेस में हुए बम धमाकों का मास्टरमाइंड बताया था।
सबसे अफसोसजनक हालत यह है कि अज़ीज़ुर्रहमान की फर्जी गिरफ्तारी के सबूत सामने आने के बाद उत्तर प्रदेश पुलिस, एटीएस और एसटीएफ तीनों एक दूसरे को जिम्मेदारे ठहराने लगे। एडीजी राजीव जैन ने ए0टी0एस0 को जिम्मेदार बताया, जबकि ए0टी0एस0 प्रमुख सब्बरवाल ने ए0टी0एस0 बनाये जाने से पहले का मामला बताकर बचने की कोशिश की। वहीं एस0टी0एफ0 प्रमुख व ए0डी0जी0 बृजलाल ने पूरे मामले पर ए0टी0एस0 को जिम्मेदार बताया और कारण दिया कि इस तरह के सारे मामले ए0टी0एस0 ही देख रही है। कुल मिलाकर उत्तर प्रदेश पुलिस, ए0टी0एस0 और एस0टी0एफ0 तीनों जिम्मेदारी लेने से बचते दिखाई दे रहे हैं। जबकि तत्कालीन डी0जी0पी0 विक्रम सिंह ने बाकायदा संवाददाता सम्मेलन बुलाकर यह घोषणा की थी कि 22/23 जून 2007 की रात तीनों यानी अजीजुर्रहमान, एस0के0 मुख्तार और अली अकबर लखनऊ में मौजूद थे। जलालुद्दीन उर्फ बाबू के गिरफ्तार होने की खबर टेलीविजन पर देखकर वे भाग गए थे। कुल मिलाकर अदालत में सामने आया पूरा वाक़िया यह साबित करने के लिए काफी है कि उत्तर प्रदेश में मानवाधिकारों के लिए ये विशेष अधिकार संगठन किस तरह का खतरा पैदा कर रहे हैं? गौरतलब है कि अज़ीज़ुर्रहमान की गिरफ्तारी फर्जी होने के ठोस सबूत के बावजूद अदालत ने अज़ीज़ुर्रहमान की जमानत याचिका खारिज कर दी। मुकदमें की पैरवी कर रहे एडवोकेट मोहम्मद शुऐब ने असंतोष व्यक्त करते हुए अपना वकालतनामा वापस ले लिया। चूँकि पूरी न्याय व्यवस्था साक्ष्यों के होने या न होने पर काम करती है, ऐसे में ठोस साक्ष्यों की अवहेलना अपने आप में कई सवाल खड़े करता है।

-ऋषि कुमार सिंह
मोबाइल: 09313129941

विशालकाय तीन ट्रालें बने चर्चा का विषय

सिरसा: गुजरात के कांडला घाट से वॉयलर लेकर बठिंडा के श्री गुरू गोबिंद सिंह रिफायनरी के लिए रवाना हुआ विशालकाय तीन ट्रालें आज 3 महीने 20 दिन का सफर तय करने के पश्चात सिरसा पहुंच गया। दिल्ली पूल पर इस विशालकाय ट्राले को देखने के लिए सिरसा वासी उमड़ पड़े। इस ट्राले के साथ चल रहे हाईड्रोलिक इंजीनियर शंकर दूदूथी ने बताया कि यह विशाल ट्राला गुजरात के कांडला घाट से बठिंडा के लिए रवाना हुआ है। उन्होंने बताया कि प्रत्येक ट्राले में 250 से 300 के करीब टायर लगे हुए हैं वहीं इस ट्राले को खीचने के लिए वोल्वों कम्पनी के दो शक्तिशाली इंजन लगे हुए हैं तथा साथ ही प्रत्येक ट्राले की देखरेख के लिए 50 से अधिक कर्मचारी जुटे हुए हैं। शंकर ने बताया कि प्रत्येक दिन वे 10 से 15 किलो मीटर का सफर तय करते हैं और इतने सफर के बाद टायरों का रखरखाव और अन्य पुर्जों की जांच की जाती है। उन्होंने बताया कि गुजरात से बठिंडा तक का 17 सौ किलो मीटर का सफर उन्हें तय करना है। जबकि सिरसा तक उन्होंने 15 सौ किलो मीटर का सफर तय कर लिया है। जब उनसे पूछा गया कि रास्तें में उन्हें किन दिक्कतों का सामना करना पडा तो उन्होंने बताया कि आंधी बारिश के इलावा शहरों में नीचे लगी बिजली की तारों के कारण उन्हें काफी परेशानी झेलनी पडती है। उन्होंने बताया कि इससे पहले भी वे मध्य प्रदेश के जिला वीणा, उत्तर प्रदेश के मथुरा, हरियाणा के पानीपत के बाद अब बठिंडा के लिए ये वायलर सप्लाई करने जा रहे हैं। 30 फुट ऊंचाई व 137 फुट लम्बाई वाले ये तीन ट्राले शहर के लोगों के लिए चर्चा का विषय जरूर बने हुए हैं।

23.6.10

अतिवाद की लड़ाई - 2

राजशाही जब खारिज की गयी जोकि एक समय तक ईश्वर प्रदत्त मानी जाती थी और यह तय हुआ कि अब राजाओं को जनता चुनेगी तो संसदीय लोकतंत्र की स्थापना, सैद्धांतिक तौर पर लोगों द्वारा ईश्वर के लिये खारिजनामा ही था, क्योंकि राजा उसके प्रतिनिधि होते थे और राजा को खा़रिज करना इश्वर को खारिज करने से कहीं कम न था बल्कि वह एक प्रत्यक्ष भय था. इस नयी व्यवस्था के बारे में प्रस्फुटित होने वाले विचार जरूरी नहीं कि वे केवल लिंकन के ही रहे हों पर ये विचार राजशाही के लिये अतिवादी ही थे. राजशाही के समय का यही अतिवाद आज हमारे समय के लोकतंत्र में परिणित हुआ. अतिवाद हमेशा समय सापेक्ष रहा है पर वह भविष्य की संरचना के निर्माण का भ्रूण विचार भी रहा जिसे ऐतिहासिक अवलोकन से समझा जा सकता है.
ज्योतिबाफुले, सावित्रीबाई फुले, राजाराम मोहनराय जैसे कितने नाम हैं जो लोग अपने समय के अतिवादी ही थे. इन्हें आज का माओवादी भी कह सकते हैं चूंकि ये संरचना प्रक्रिया में विद्रोह कर रहे थे एक दमनकारी व शोषणयुक्त प्रथा का अंत करने में जुटे थे. भविष्य में जब समाज के मूल्यबोध बदले तो इन्हें सम्मानित किया गया, क्या नेपाल में ऐसा नहीं हुआ. सत्तावर्ग ने इन शब्दों के मायने ही आरक्षित कर लिये हैं. किसी भी समय का अतिवाद, उस समय के सत्तावर्ग के लिये अपराधी और भविष्य के समाज का निर्माता होता है बशर्ते वह उन मूल्यों के लिये हो जो मानवीयता और आजादी के दायरे को व्यापक बनाये.
उन्हें उग्रवादी घोषित कर दिया जायेगा, आसानी से अराजक कह दिया जायेगा जो आवाज उठाते हैं कि घोषित करने वालों की बनी बनायी व्यवस्थायें, भले ही वह एक व्यापक समुदाय के लिये निर्मम और अमानवीय हो पर उनके लिये सुविधा भोगी है, के खिलाफ आवाज उठाना, उनकी व्यवस्थित जिंदगी व उनके जैसे भविष्य में आने वालों की जिंदगी में खलल पैदा करती है. मसलन आप असन्तुष्ट रहें पर इसे व्यक्त न करें, व्यक्त भी करें तो उसकी भी एक सीमा हो, उसके तौर-तरीके उन्होंने बना रखें हैं. इसके बाहर यदि आप उग्र हुए, गुस्सा आया तो यह उग्रवादी होना है. इस प्रवृत्ति को आपसी बात-चीत, छोटे संस्थानों से लेकर देश की बड़ी व्यवस्थाओं तक देखा जा सकता है जहाँ असंतुष्ट होना, असहमति उनके बने बनाये ढांचे से बाहर दर्ज करना, अराजक और उग्रवादी होना है और इन शब्दों के बोध जनमानस में अपराधिकृत कर दिये गये हैं.
अभिषेक मुखर्जी जिसकी बंगाल पुलिस द्वारा हाल में ही हत्या कर दी गयी क्या यह सोचने पर विवश नहीं करता कि आखिर वे क्या कारण हैं कि १३ भाषाओं का जानकार और जादवपुर विश्वविद्यालय का एक प्रखर छात्र देश की उच्च पदाधिकारी बनने की सीढ़ीयां चढ़ते-चढ़ते लौट आता है और लालगढ़ के जंगलों में आदिवासियों की लड़ाई लड़ने चला जाता है, क्या यह सचमुच युवाओं का भटकाव है जो गुमराह हो रहे हैं, जिसे सरकार बार-बार दोहराती रहती है या व्यवस्था की कमजोरी और सीमा की पहचान कर विकल्प की तलाश. अनुराधा गांधी, कोबाद गांधी, साकेत राजन, तपस चक्रवर्ती, शायद देश और दुनिया के बड़े नौकरसाह बन सकते थे, पर वर्षों बरस तक लगातार जंगलों की उस लड़ाई का हिस्सा बने रहे जिसे सरकार अतिवाद की लड़ाई मानती है और ये उसे अधिकार की. शायद समाज में जब तक अतिवाद और अतिवादि रहेंगे, स्वभाव में जब तक उग्रता बची रहेगी तमाम दुष्प्रचारों के बावजूद नये समाज निर्माण की उम्मीदें कायम रहेंगी.

( समाप्त )

-चन्द्रिका
स्वतंत्र लेखन व शोध

सरपंच की हत्या से जल उठा बहादुरगढ़

बहादुरगढ़: नया गांव के नवनिर्वाचित सरपंच राकेश उर्फ काला की मंगलवार की सुबह हमलावरों ने निजी अस्पताल के अंदर गोलियों से भूनकर हत्या कर दी। सरपंच बीती सांय तबीयत बिगड़ने के बाद यहां दाखिल हुए थे। घटना से गुस्साएं ग्रामीणों ने पहले अस्पताल में तोड़फोड़ की फिर बाद में राष्ट्रीय राजमार्ग को जाम कर दिया। बाद में गुस्सा और भड़का तो अनेक वाहनों में तोड़फोड़ की गई। हरियाणा रोडवेज की एक बस को आग के हवाले कर दिया गया। बहादुरगढ़ के अलावा रोहतक-झज्जारसे भारी पुलिस बल ने पहुंचकर स्थिति को संभाला। पुलिस महानिरीक्षक वी. कामराजा भी स्थिति का जायजा लेने पहुंचे। उन्होंने दोषियों को शीघ्र पकड़ने और सख्त कार्रवाई की बात कही।
दस दिन पहले संपन्न हुए पंचायती चुनाव में नया गांव में सरपंच चुने गए राकेश उर्फ काला की बीती सांय तबीयत खराब होने के बाद उन्हे शहर के दिल्ली अस्पताल में दाखिल कराया गया था। वे अस्पताल के डीलक्स रूम नम्बर 2 में भर्ती थे। सुबह 11 बजे के आसपास जब सरपंच अकेले थे उसी समय बदमाश अंदर दाखिल हुए और उन्हे गोलियों से भूनकर कर मौत के घाट उतार दिया। गोलियों की आवाज के बाद हमलावर जब भागे तब अस्पताल के स्टाफ को पता लगा। बाद में सूचना मिलने के बाद मृतक सरपंच के परिजन व अन्य ग्रामीण भी पहुंच गए। अस्पताल में हत्या की इस वारदात से ग्रामीणों का गुस्सा भड़क गया। आक्रोशित भीड़ ने राष्ट्रीय राजमार्ग जाम कर दिया और अस्पताल के अंदर तोड़फोड़ शुरू कर दी। वहां मौजूद पुलिस बल ने किसी तरह भीड़ को काबू किया। बाद में गांव के लोगों ने जाम खोल दिया और सभी गांव का रुख किए। स्थानीय लोगों के गुस्से को देख पुलिस ने गांव में पहुंचकर स्थिति को संभाला। पुलिस जब कार्रवाई में जुटी हुई थी। तभी घंटे भर बाद गांव के लोग फिर से वाहनों में सवार होकर अस्पताल के बाहर पहुंच गए। इस बार ग्रामीणों का गुस्सा और भी ज्यादा भड़का हुआ था। पहले तो राजमार्ग को जाम किया गया उसके बाद सड़क पर लगी कतार में खड़े वाहनों पर लोगों ने पथराव शुरू कर दिया। लगभग दर्जन भर वाहनों में तोड़फोड़ की गई। इसके बाद हरियाणा रोडवेज की एक बस को आग के हवाले कर दिया गया। अग्निशमन दस्ता के पहुंचने से पहले बस जल चुकी थी। स्थिति काबू होती न देख झज्जार व रोहतक से भी पुलिस बल बुलाया गया। घटना सुबह हुई थी और शाम तक पुलिस बल के पहुंचने का दौर जारी था। आक्रोशित ग्रामीण जब एक के बाद एक वाहनों में तोड़फोड़ कर रहे थे तो भगदड़ मच गई। सभी आसपास की दुकानें बंद हो गई। यहां तक कि थाना सदर के दरवाजे पर भी पुलिसकर्मियों ने डर के मारे ताला लगा लिया। कई वाहनों पर गुस्सा निकालने के बाद ग्रामीण सड़क पर जाम लगाकर बैठ गए। इसी बीच रोहतक से पुलिस महानिरीक्षक वी. कामराजा भी पहुंचे। उन्होंने पूरी स्थिति का जायजा लिया और परिजनों व ग्रामीणों को दोषियों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई का भरोसा दिलाया। उन्होंने कहा कि अपराधियों को बख्शा नहीं जाएगा।
पुलिस उप अधीक्षक महाबीर सिंह दलबल के साथ पहुंचे तो उन्होंने सबसे पहले अस्पताल में लगे सीसीटीवी कैमरों की रिकार्डिग खंगाली। कैमरे की फुटेज में पुलिस को हमलावरों के बारे में पता चल गया। मृतक सरपंच राकेश के परिजनों से कैमरे में कैद हुए हमलावरों की पहचान कराई गई। पुलिस के मुताबिक फुटेज में 11 बजकर 6 मिनट पर चार हमलावर अंदर दाखिल होते साफ दिख रहे है। इनमें से बाद में तीन ने अपने-अपने हथियार भी निकाले। उसके बाद सरपंच पर दनादन गोलियां बरसाकर हमलावर भाग निकले।
आईजी के आश्वासन पर खोला जाम
पुलिस महा निरीक्षक वी. कामराजा ने मौके पर पहुंचकर जब स्थिति का जायजा लिया और पीड़ितों को आरोपियों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई का भरोसा दिलाया तब जाकर ग्रामीणों का गुस्सा शांत पड़ा और करीब 4 बजे राष्ट्रीय राजमार्ग का जाम खोल दिया गया। उधर, पुलिस ने हमलावरों की पहचान के बाद कई टीमें उनकी गिरफ्तारी के लिए गठित करके भेज दी है।

महिला खेत पाठशाला का दूसरा सत्र








मंगलवार का दिन हिन्दुओं में हनुमान के नाम होता है| मंगलवार के दिन बरती रहना व प्रसाद बाँटना आम बात है| इस दिन ज्यादातर नाई भी अपनी दुकान बंद रखते हैं| परन्तु इनसे हटकर निडाना गावं में यह मंगलवार का दिन महिला खेत पाठशाला के नाम मुकर्र है| आज सुबह सवेरे ही महिलायें घर के काम निपटा कर आठ बजे ही डिम्पल पत्नी विनोद के खेत में पहुँच चुकी थी| उन्होंने कृषि विभाग के अधिकारियों का इंतजार किये बगैर ही पौधों के अवलोकन व् निरिक्षण का काम शुरू कर दिया था| भूमि संरक्षण अधिकारी, डा.मीना सुहाग जब डा.सुरेन्द्र दलाल व् मनबीर के साथ इस पाठशाला में पहुंची तो महिलाएं खेत में कीटों का निरक्षण कर रही थी| महिला अधिकारी को अपने बीच पाकर अर वो भी इतने सवेरे, महिलाओं की ख़ुशी का ठिकाना नही रहा| महिलाओं ने लस्सी पिलाकर अपनी इस अधिकारी, डा.मीना सुहाग का स्वागत किया | इसके बाद इन महिलाओं ने पांच-पांच के समूह बनाए| अपने साथ एक-एक उत्प्रेरक लिया| एक टोली के साथ जिले के कीट विशेषग किसान मनबीर रेड्हू, दुसरे ग्रुप के साथ डा.कमल सैनी, तीसरे समूह के साथ, डा.सुरेन्द्र दलाल, चौथे समूह के साथ रणबीर मालिक व् पांचवे समूह के साथ मीना मालिक थी| सभी समूहों ने दस-दस पौधों का बारीकी से निरिक्षण किया व् इन पौधों पर कीटों की गिनती की| इसके बाद हर समूह ने अपनी-अपनी प्रस्तुति दी| आज कपास के इस खेत में हानिकारक कीटों के रूप में सफ़ेद मक्खी, ह्ऱा-तेला, चुरडा व् मिलीबग की उपस्तिथि तो सभी समूहों ने दर्ज कराई पर इनमेसे कोई भी कीट आर्थिक- दहलीज़ को पार करते हुए नही पाया गया| महिला-समूहों की इस प्रस्तुति का निचोड़ पेश करते हुए डा.कमल सैनी ने बताया की आज के दिन इस फसल पर किसी भी कीटनाशक का छिडकाव करने की कोई आवश्यकता नही है| लाभदायक कीटों के रूप में अभी तक इस खेत में सिवाय मकड़ियों के कोई कीट नही देखा गया| पर इस बात मीणा मलिक ने सैनी सर को याद दिलाया की आज हमने मिलीबग को परजीव्याभीत करने वाला अंगीरा भी तो देखा है| डा.दलाल ने भी इस छात्रा की हाँ में हाँ मिलाई और मौके पर सभी को अंगीरा से परजीव्याभित मिलीबग दिखाए जिनके शरीर से आटानूमा पाउडर उड़ चुका था तथा इनका शरीर लाली लिए भूरा पड़ चुका था|इस ख़ुशी की सुचना पर सभी महिलाओं ने तालियाँ बजाई| मनबीर रेड्हू ने मिलीबग की जानकारी महिलाओं को देते हुए इसकी दो खास कमजोरियों को उजागर किया| एक तो मिलीबग की मादा पंखविहीन होती है तथा दुसरे यह अपने अंडे थैली में देती है. इन दो कमजोरियों के चलते मिलीबग नाम का यह भस्मासुर आसानी से परभक्षियों का शिकार हो जाता है| राजवंती मलिक ने अपनी रिपोर्ट पेश करते हुए बताया कि हमारे ग्रुप ने तो आज पौधों की ऊँचाई भी नापी है| इस खेत में औसतन पौधों की उचाई आठ-नौ इंच पाई गई है| कार्यक्रम के अंत में डा.मीना सुहाग ने भूमि संरक्षण विभाग द्वारा चलाई जा रही विभिन्न स्किम्मों बारे विस्तार से जानकारी दी व महिलाओं से वादा किया कि जब भी निडाना गावँ की महिलाएं उनके कार्यालय किसी भी कार्य से आएँगी वे हमेशा उनकी सेवा में तैयार पाएंगी| इस खेत पाठशाला के कार्य को नजदीक से समझने के लिए भू.पु.सरपंच बसाऊ राम के साथ रागनी गायक व लेखक राजबीर सिंह ने भी इस खेत में तीन घंटे बिताये|
पाठशाला के कार्य से निपट कर अनीता मलिक ने प्रशिक्षकों क़ी इस पूरी टीम को अपने घर पर जल-पान करवाया|

महिला खेत पाठशाला का पहला सत्र


आज महिला खेत पाठशाला का पहला सत्र निडाना गावँ में डिम्पल पत्नी विनोद के खेत में शुरू हुआ | सुबह आठ बजे ही महिलाओं का पहला जत्था कपास की खेती के प्रशिक्षण हेतु इस खेत में पहुच चूका था | महिलाओं का यह पहला जथा अपने साथ पिने के पानी का भी जुगाड़ करके लाया था | महिलाएं इस नई किस्म की पाठशाला के लिए आज गीत गाते हुए खेत में पहुंची थी | गीत के बोल थे, " बगड़ो-मनियारी हे! मनै लगै प्यारी हे!! हमनै खेत में बैठी पाईये हे! म्हारी बाड़ी के कीड़े खाईये हे!!!!" डा सुरेन्द्र दलाल के लिए भी यह एक नये किस्म का अनुभव था| पुरुषों में तो किसी भी पाठशाला में इतना हौंसला व चाव उसने नहीं देखा था| डा.दलाल ने उपस्तिथ महिलाओं को इस पाठशाला के उदेश्य विस्तार से बताये| इसके राजनितिक मायने महिलाओं को समझाते हुए किसान और कीटों की इस अंतहीन जंग में बेहतर सैनिकों के रूप में विकसित होने कि अपील की| उन्होंने हरियाणा में लड़ी गई सबसे भयंकर जंग महाभारत व इस किट्टीया जंग की तुलना करते हुए महिलाओं को बताया की महाभारत की लड़ाई इतनी भयावह थी कि आज भी हिन्दू इस जंग कि किताब को अपने घर में रखते हुए डरते हैं| लेकिन फिर भी यह लड़ाई सिर्फ अठारह दिन में अपने मुकाम पर पहुँच गई थी| पर यह किसान -कीटों की जंग पिछले पच्चीस सालों से रुकने का नाम नही ले रही| इन दोनों जंगों के मुख्य अन्तरो पर चर्चा करते हुए डा.दलाल ने बताया कि महारत की लड़ाई में दोनों पक्षों को एक दुसरे का पूरा भेद था| पांडवों को कौरवों की पूरी पहचान, पुरे भेद व एक-एक कमजोरियों का इल्म था| इसीतरह कौरवों को भी पांडवों के बारे में ज्ञात था| जबकि इस कीटों व किसानों की आधुनिक जंग में किसानों व इनके नेतृत्व को कीटों की पूरी पहचान व भेद मालूम नही है|दूसरा मुख्य फर्क हथियारों को लेकर है|महाभारत में हर योद्धा के पास दो तरह के हथियार थे- एक तरह के वो जो दुश्मन को मारने के लिए तथा दुसरे अपना खुद का बचाव करने के लिए| लेकिन आज हमारे किसानों के पास तो सिर्फ कीटों को मारने के हथियार भर ही हैं अर् वो भी बेगाने| इसीलिए तो यह जंग ख़त्म होने का नाम नही ले रही| अत: हमारी इस पाठशाला में मिलजुल कर सारा जोर कीटों की सही पहचान व इनके भेद जानने पर रहेगा|
डा.दलाल ने महिलाओं को मांसाहारी व शाकाहारी कीटों के बारे में बताया| चुसक व चर्वक किस्म के कीटों बारे बताया| इसके बाद महिलाये अवलोकन व निरिक्षण के लिए पांच-पांच की टोलियों में कपास के खेत में उतरी| हरेक टोली के पास छोटे-छोटे कीट देखने के लिए मैग्नीफाईंग-ग्लास था| एक घंटे की माथा-पच्ची के बाद महिलाओं ने रिपोर्ट दी कि आज के दिन इस कपास के खेत में हरे-तेले, सफ़ेद-मक्खी, चुरड़े व मिलीबग देखे गये हैं परन्तु इनकी संख्या काफी कम है|

22.6.10

अतिवाद की लड़ाई - 1

कुछ दिन पहले ही हम सब दण्डकारण्य घूम कर लौटे हैं, अरुंधती रॉय के साथ, भूमकाल में कॉमरेडों के साथ-साथ घूमते हुए. दण्डकारण्य के ग्राम स्वराज्य को देखते हुए, आउटलुक, समयांतर और फिलहाल, पत्रिकाओं के पन्ने पलटते हुए. भारत सरकार के असुरक्षा की महसूसियत को खारिज होती जा रही थी, जंगलों में चलते हुए, पहाड़ों पर चढ़ते हुए. हमे ऐसा ही लग रहा था कि जमीन पर पेड़ों से टूटकर गिरे सूखे पत्ते हमारे ही पैरों के नीचे दब रहे हैं और उनकी चरमराहट हमारे कानों में किसी संगीत की तरह बज रही है. संगीत, जिसे भारत सरकार और उसकी दलाली करने वाली कार्पोरेट मीडिया भय के रूप में हमारे जेहन में भरते रहने का लगातार प्रयास करती रहती है. इंद्रावती नदी के पार जो “पाकिस्तान” है (पुलिस की भाषा में) वहाँ के किस्से सी.वेनेजा, रुचिरगर्ग और कई पत्रकार पहले भी ला चुके हैं. जब हम आजादी की बात करते हैं तो उसके क्या मायने होते हैं? अरुंधती इस अवधारणा को ही एक वाक्य में ही बताती हैं “वहाँ मुक्ति का मतलब असली आजादी था”, वे उसे छू सकते थे, चख सकते थे, इसका मतलब भारत की स्वतंत्रता से कहीं ज्यादा था. यह नकली आजादी को पेपर्द करने वाला वाक्य है और यह भी कि नकली आजादी जैसी चीज बहुतायत पायी जाती हैं, मसलन हमारी आजादी और हमारे देश की आजादी. सरकार और पूजीपतियों की आजादी से अलग. ये “जनताना सरकार” के क्षेत्र में रहने वाली महिलायें हैं जिन्हें रात और दिन का फर्क सिर्फ रोशनी का फर्क होता है, असुरक्षा और भय का नहीं, एक पहाड़ी से दूसरी पहाड़ी को वे कभी भी पार कर सकती हैं. इसके लिये आखों में इतनी ही रोशनी की जरूरत है कि आप उससे रास्ता बना सकें. दिल्ली को भी भारत सरकार ऐसा नहीं बना पायी और शायद संसद भवन को भी. “ये लोग अपने सपनों के साथ जीते हैं, जबकि बाकी दुनिया अपने दुरूस्वप्नों के साथ” इस पूरे लेखन को यात्रा वृतांत कहें, कविता कहें, रिपोर्ताज कहें या इन विधाओं से अलग एक दस्तावेज, जहाँ भूमकाल साल में एक दिन मनाया जाता है और भूमकाल के विद्रोह की आवाजें दशकों से वहाँ की हवाओं में और वेग के साथ प्रवाहित होती जा रही हैं. इतिहास जरूरी नहीं कि सफेद पन्नों पर काली रोशनाई से लिखे जायें वे जंगलों की हलचल में रोज-रोज घटित होकर पीढ़ीयों के व्यवहारों में शामिल हो सकते हैं, उनके बच्चों की रगों में, उनके गाँवों के घरों की दीवारों पर. इस लेखन के बाद अरुंधती को अतिवादी घोषित करने की होड़ सी लगी रही, उनके तर्कों को ख़रिज करने की जहमत न उठाते हुए. जिसका खारिज किया जाना शायद मुमकिन भी नहीं था एक उग्रता और उन्माद में कुछ कह देने की व्यग्रता ही दिखी. आखिर यह अतिवाद ही तो था जो संसदीय लोकतंत्र के खतरे को इस तरह प्रस्तुत कर रहा था कि लोकतंत्र हमे घुटन की तरह लग रहा था और भूमकाल में शामिल न हो पाने का क्षोभ भी. फिर तो यह ऐसा अतिवाद है जो हमे व्यग्र कर देता है. एक “अतिवादी” की डायरी के विचार यदि हमे व्यग्र करते हैं, तो क्या सरकार के हर रोज के दमन से आदिवासीयों को उग्र नहीं होना चाहिये.
परिवर्तन सबसे पहले स्वप्न में आता है. रात की नींद के सपनों में नहीं, जीवन के बेहतरी की लालसा के स्वप्न में, और कहीं अपने भीतर एक बना बनाया ढांचा टूटता है, अपने समय के मूल्य ढहते हुए दिखते हैं. यह ढांचा पहले आदमी के विचार से टूटता है फिर व्यवहार से फिर वह आदमी के दायरे को ही तोड़कर, संरचना के दायरे को तोड़ने की प्रक्रिया में शामिल हो जाता है. वे हर बार आतिवादी ठहरा दिये गये होंगे जिन्होंने समय के मूल्यों को तोड़ा होगा क्योंकि किसी भी समय में व्यवस्था के संरचना की एक सीमा रही है, उसके एक मूल्य रहे हैं उसी के भीतर सोचने की इजाजत होती है, पर दुनिया में हर बार संरचना और सत्ता के बाहर की सोच पैदा हुई. यह परिस्थिति की देन मात्र नहीं थी बल्कि चिंतन की व्यापकता थी जो व्यापक आजादी के लिये हर समय विद्रोह करती रही और अपने समय में समय के आगे का विचार पैदा होते रहे. किसी भी समय का अतिवाद यही होता है जो समय की संरचना से विद्रोह करता है, एक नये संरचना की तलास करता है लिहाजा हर दौर में नये समाज बनाने के सपने रहे हैं और हर समय में वे लोग जो अपने समय की संरचना को नकारने का साहस रखते हों. जबकि इतिहास से वे नयी संरचना को बिम्बित करने में असफल भी होते हैं फिर भी उम्मीद और मूल्यों ने उनके विचारों को आगे बाढ़ाया और भविष्य के समाज उन्हीं के विचारों की निर्मिति रहे हैं. शायद दुनिया का अंत किसी प्रलय या दैवीय शक्ति से नहीं, बल्कि उस दिन होगा जब ये नकार के साहस खत्म हो जायेंगे. जो जैसा है उसी रूप में स्वीकार्य होगा तो बदलाव की प्रक्रियायें रुक जायेंगी और दुनिया की सारी घढ़ियां और कलेंडर अर्थ विहीन हो जायेंगे. समय का ठहराव यही होगा कि नये चिंतनकर्म समाप्त हो जायें और सब सत्ता के आगे नतमस्तक दिखेंगे, पर मानवीय प्रवृत्तियां इन्हें अस्वीकार करती रही हैं कि इंसान है तो सोचना जारी रहेगा.

(क्रमश: )

-चन्द्रिका
स्वतंत्र लेखन व शोध

शराब उधार न देने पर कारिदे की निर्मम हत्या

फतेहाबाद : जिला फतेहाबाद गाव बीराबदी से दो किलोमीटर दूर पंजाब की सीमा के पास गाव भगवानपुर के पास स्थित देशी शराब के ठेके की छत पर सोए कारिदे 50 वर्षीय सत्यवान उर्फ सत्ता निवासी वार्ड 1 सरदूलगढ पंजाब की गंडासे से काटकर हत्या कर देने का सनसनीखेज समाचार है। रतिया थाने के तहत पड़ने वाली नागपुर पुलिस चौकी ने मृतक सत्यवान के भाई शमशेर सिंह की शिकायत पर गाव भगवानपुर हींगणा पंजाब निवासी लाडो के विरुद्ध हत्या के आरोप में धारा 302 के तहत केस दर्ज किया है। प्राप्त जानकारी के अनुसार श्रवण सिंह निवासी आदमके पंजाब ने फतेहाबाद जिले के गाव मढ का शराब का ठेका ले रखा है। जिस ठेके पर कारिदे सत्यवान की हत्या हुई वह गाव मढ़ की ब्राच है। इस ठेके पर मृतक सत्यवान शराब का ठेका संचालित करता था जबकि उसका भाई शमेशर सिंह वहा अंडे की रेहड़ी लगाता था व तीसरा भाई भी रेहड़ी पर काम करता है। शराब ठेकेदार श्रवणसिंह ने बताया कि सत्यवान व उसके भाई उत्तरप्रदेश के रहने वाले है व कई वर्षो से उसके शराब के ठेकों पर काम कर रहे है। उसने बताया कि शनिवार शाम को हत्यारोपी लाडो का कारिदे सत्यवान से झगड़ा हुआ था। लाडो ने उधार में शराब मागी थी, सत्यवान ने मना कर दी। इसके बाद लाडो उसे देख लेने की धमकी देकर भाग गया। श्रवण ने बताया कि मृतक सत्यवान के दोनों भाई रात को दस बजे के लगभग गाव सरदूलगढ लौट जाते थे व सत्यवान ठेके पर ही सोता था। उसने बताया कि सोमवार सुबह बीराबदी निवासी भल्लासिंह जिसके खेत में शराब का ठेका बना हुआ है, ने मोबाईल पर सूचना दी कि उसका कारिदा धूप निकलने के बावजूद छत पर सोया है, नीचे नहीं उतर रहा। शराब ठेकेदार श्रवणसिंह ने मौके पर पहुंचकर देखा तो पाया कि सत्यवान की हत्या की जा चुकी है। श्रवणसिंह ने तुरत गाव के सरपंच व पंचों को मौके पर बुलाया व नागपुर पुलिस चौकी को घटना की सूचना दी। सूचना मिलते ही नागपुर पुलिस चौकी इचार्ज रघुबीर सिंह एसआई, रतिया एसएचओ अजायब सिंह मौके पर पंहुच गए। बाद में एसपी जगवंत सिंह लाम्बा, डीएसपी रमेश यादव भी मौके पर पंहुच गए व मृतक के भाईयों व शराब ठेकेदार श्रवणसिंह से पूछताछ की। रतिया पुलिस ने तुरत सीन ऑफ क्राईम के इचार्ज डा. जोगेंद्र व पुलिस डॉग स्कवायर्ड इचार्ज प्रदीप कुमार को सिरसा से मौके पर बुलाया। दोनों ने मौके पर पंहुचकर घटना की जाच शुरु कर दी। रतिया पुलिस ने श्रवणसिंह से मिली जानकारी के बाद गाव भगवानपुर हींगना में हत्यारोपी लाडो के घर छापा मारकर वहा से खून से सने लाडो के कपड़े बरामद कर लिए, जबकि लाडो अपने घर से गायब मिला। पुलिस टीम ने लाडो के घर से बरामद किए खून से सने कपड़ों को घटनास्थल पर लाकर डाग स्क्वायर्ड के कुत्ते को सुंघाया तो कुत्ता कपड़ों को सुंघकर समीप के धान के खेत के पास जाकर रुक गया। रतिया पुलिस मामले की पूरी सरगर्मी के साथ जाच कर रही है। पुलिस अधीक्षक ने मौके पर पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा कि शीघ्र ही हत्यारोपी को गिरफ्त में ले लिया जाएगा।

नहर में दरार आने से दर्जनों एकड़ फसल जलमग्न

फतेहाबाद: शहर फतेहाबाद से दस किलोमीटर दूर फतेहाबाद-भट्टूकला मार्ग पर स्थित गाव मानावाली के पास मानावाली-सरवरपुर में सोमवार तड़के 2 बजे के लगभग आई दरार से काफी बड़े क्षेत्र में कृषि भूमि जलमग्न हो गई। पानी के भारी जमाव से कपास की फसल को भारी नुकसान पहुंचा है। माईनर से निकला पानी गाव मानावाली तक भी जा पहुंचा। गाव के लोगों ने बताया कि माइनर टूटने के बाद रात को ही सिंचाई विभाग के एसडीओ जयपाल सिंह को सूचना दे दी गई थी, लेकिन प्रात: 7 बजे ही सिंचाई विभाग के अधिकारी मौके पर पहुंचे जिससे माईनर से निकला पानी खेतों से होता हुआ गाव तक जा पहुंचा। ग्रामीणों ने बताया कि वे खुद गाव बनावाली के पास जाकर खुद हैड पर माईनर में पानी का बहाव रोककर आए, जिससे पानी और ज्यादा क्षेत्र में नहीं फैल पाया। मौके पर पहुंचे सिंचाई विभाग के एसडीओ जयपाल सिंह ने बताया कि माईनर टूटना कोई खास बात नहीं है, माईनर टूटते ही रहते है। बाद में सिंचाई विभाग के अधिकारियों ने जेसीबी मशीन फतेहाबाद शहर से बुलाकर माईनर में आई दरार को पाटा। सूचना के पाच घटे बाद पंहुचे सिंचाई विभाग के रवैये को लेकर ग्रामीणों में भारी रोष व्याप्त था। पूर्व सैनिक रामसिंह फौजी ने बताया कि यह माईनर पहले भी टूट चुकी है जिससे कई ट्यूबवैलों को भारी नुक्सान पंहुचा था। उन्होंने कहा कि माईनर के बार-बार टूटने का मामला उपायुक्त के नोटिस में लाया जाएगा।

21.6.10

बटाला हाउस इन्काउन्टर - 2

मोहम्मद आतिफ अमीन को लगभग सारी गोलियाँ पीछे से लगी है। 8 गोलियाँ पीठ में लग कर सीने से निकली हैं। एक गोली दाहिने हाथ पर पीछे से बाहर की ओर से लगी है जबकि एक गोली बाँईं जाँघ पर लगी हैं और यह गोली हैरत अंगेज तौर पर ऊपर की ओर जाकर बाएँ कूल्हे के पास निकली है। पुलिस ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट के सम्बंध में प्रकाशित समाचारों और उठाये जाने वाले प्रश्नों का उत्तर देते हुए यह तर्क दिया कि आतिफ गोलियाँ चलाते हुए भागने का प्रयास कर रहा था और उसे मालूम नहीं था कि फ्लैट में कुल कितने लोग हंै इसलिए क्रास फायरिंग में उसे पीछे से गोलियाँ लगीं लेकिन इन्काउन्टर या क्रास फायरिंग में कोई गोली जाँघ में लगकर कूल्हे की ओर कैसे निकल सकती है। आतिफ के दाहिने पैर के घुटने में 1.5 x 1 सेमी0 का जो घाव है उस के बारे में पुलिस का कहना है कि वह गोली चलाते हुए गिर गया था। पीठ में गोलियाँ लगने से घुटने के बल गिरना तो समझ में आ सकता है किन्तु विशेषज्ञ इस बात पर हैरान है कि फिर आतिफ के पीठ की खाल इतनी बुरी तर कैसे उधड़ गई? पोस्मार्टम रिपोर्ट के अनुसार आतिफ के दाहिने कूल्हे पर 6 से 7 सेमी0 के भीतर कई जगह रगड़ के निशानात भी पाए गए।
साजिद के बारे में भी पुलिस का कहना है कि साजिद एक गोली लगने के बाद गिर गया था और वह क्रास फायरिंग के बीच आ गया। इस तर्क को गुमराह करने के अलावा और क्या कहा जा सकता है साजिद को जो गोलियाँ लगी हैं उन में से तीन पेशानी (Fore head) से नीचे की ओर आती हैं। जिस में से एक गोली ठोढ़ी और गर्दन के बीच जबड़े से भी निकली है। साजिद के दाहिने कन्धे पर जो गोली मारी गई है वह बिल्कुल सीधे नीचे की ओर आई है। गोलियों के इन निशानात के बारे में पहले ही स्वतन्त्र फोरेन्सिक विशेषज्ञ का कहना था कि या तो साजिद को बैठने के लिए मजबूर किया गया या फिर गोली चलाने वाला ऊँचाई पर था। जाहिर है दूसरी सूरत उस फ्लैट में सम्भव नहीं है। दूसरे यह कि क्रास फायरिंग तो आमने सामने होती है ना कि ऊपर से नीचे की ओर।
साजिद के पैर के घाव के बारे में रिपोर्ट में यह कहा गया है कि यह किसी गैर धारदार वस्तु ;(Blunt Force By object or surface) से लगा है। पुलिस इसका कारण गोली लगने के बाद गिरना बता रही है। लेकिन 3.5 x 2 सेमी0 का गहरा घाव फर्श पर गिरने से कैसे आ सकता है पोस्टमार्टम रिपोर्ट से इस आरोप की पुष्टि होती है कि आतिफ व साजिद के साथ मारपीट की गई थी।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के आदेशानुसार इस प्रकार के केस में पोस्टमार्टम की वीडियो ग्राफी को पोस्टमार्टम रिपोर्ट के साथ उसे भी आयोग के कार्यालय भेजा जाए। लेकिन एम0 सी0 शर्मा की रिपोर्ट में केवल यह लिखा है कि घावों की फोटो पर आधारित सी0 डी0 सम्बंधित जाँच अफसर के सुपुर्द की गई।
बटाला हाउस की घटना के बाद सरकार, कार्यपालिका और मीडिया ने जो रोल अदा किया है वह न कि तशवीश-नाक है बल्कि इससे देश के मुसलमानों व अन्य लेागों के मन में यह प्रश्न उठ रहा है कि आखिर सरकार इस मामले की न्यायिक जाँच से क्यों कतरा रही है? न्यायिक जाँच के लिए जज भी सरकार ही नियुक्त करेगी।
वर्ष 2008 में होने वाले सीरियल धमाकों के बारे में विभिन्न रायें पाई जाती हैं। कुछ लोग इन तमाम घटनाओं को हेडली की भारत यात्रा से जोड़ कर देखते हैं। जबकि भारतीय जनता पार्टी की नेता सुषमा स्वराज ने अहमदाबाद धमाकों के बाद संवाददाताओं से कहा था कि यह सब कांग्रेस करा रही है क्योंकि न्युकिलियर समझौता के मुद्दे पर लोकसभा में नोट की गड्डियों के पहुँचने से वह परेशान है और जनता के जेहन को मोड़ना चाहती है। समाजवादी पार्टी से निष्कासित सांसद अमर सिंह के अनुसार सोनिया गाँधी बटाला हाउस इन्काउन्टर की जाँच कराना चाहती थीं लेकिन किसी कारण वह ऐसा नहीं कर सकीं, लेकिन उन्होंने इसका खुलासा नहीं किया कि वह कारण क्या है?
बटाला हाउस इन्काउन्टर की न्यायिक जाँच की माँग केन्द्रीय सरकार के अलावा न्यायालय भी नकार चुके हैं। सब का यही तर्क है कि इससे पुलिस का मारल गिरेगा। केन्द्रीय सरकार और न्यायालय जब इस तर्क द्वारा जाँच की माँग ठुकरा रही थीं उसी समय देहरादून में रणवीर नाम के एक युवक की इन्काउन्टर में मौत की जाँच हो रही थी और अंत में पुलिस का अपराध सिद्ध हुआ। आखिर पुलिस के मारल का यह कौन सा आधार है जिस की रक्षा के लिए न्याय और पारदर्शिता के नियमों को त्याग दिया जा रहा है।

-अबू ज़फ़र आदिल आज़मी
मोबाइल: 09540147251

(समाप्त)

दो कारों के बीच टक्कर, पांच की मौत

फतेहाबाद। यहां से करीब चार किलोमीटर दूर गांव हमीरगढ़ के बस स्टैड के नजदीक रविवार देर सायं दो कारों की आमने-सामने की टक्कर में पंाच लोगों की मौत हो गई और आठ अन्य घायल हो गए। इनमें में चार की हालत गंभीर बनी हुई है, जिनको हिसार, टोहाना व पटियाला के सरकारी अस्पतालों को रेफर कर दिया गया। हादसे में दो वर्षीय बच्चा बाल-बाल बच गया।
कुछ लोग नजदीकी गांव फूलद में विवाह कार्यक्रम में हिस्सा लेने के बाद एक स्विफ्ट कार से राजपुरा लौट रहे थे। इसी दौरान एक टाटा इंडिगो कार पातड़ां की तरफ से आ रही थी, जिसमें रतिया का एक परिवार सवार था, जो चंडीगढ़ में जागरण में शामिल होकर वापस जा रहा था। हमीरगढ़ गांव के नजदीक दोनों कारों में टक्कर हो गई।
हादसे में तीन लोगों 28 वर्षीय मंजू, 30 वर्षीय मनोज व 12 वर्षीय डिंपी की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि रतिया जा रही कार के ड्राइवर बबली की हिसार के अस्पताल ले जाते हुए रास्ते में मौत हो गई।
दोनों कारों से मृतकों व घायलों को निकालने के लिए मौके पर पहुंची पुलिस पार्टी व गांववासियों को भारी मशक्कत करनी पड़ी। कारों के दरवाजे आदि काट कर घायलों संजू, कृष्ण, अंजली, साक्षी, निखिल, श्रेया समेत आठ लोगों को बाहर निकाला गया। मामूली तौर पर घायल हुए कई दूसरे लोगों को टोहाना के निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां से गंभीर घायलों को पटियाला व टोहाना के अस्पतालों को रेफर कर दिया गया। टोहाना सरकारी अस्पताल में श्रेया ने दम तोड़ दिया।
मूनक के डीएसपी हरप्रीत सिंह एवं एसएचओ जसविंदर सिंह ने मौके पर पहुंचकर घटना का जायजा लिया।

20.6.10

बटाला हाउस इन्काउन्टर - 1

फोटो सोर्स : hardnewsmedia.com
बटाला हाउस इन्काउन्टर के डेढ़ वर्ष बाद पोस्टमार्टम रिपोर्ट के सार्वजनिक होने से इन्काउन्टर के न्यायिक जाँच की माँग में फिर तेजी आ गई है। मानवाधिकार के विभिन्न संगठन और आम लोग इस इन्काउन्टर पर लगातार प्रश्न उठाते रहे हैं और अब पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने उनके सवालों को अधिक गंभीर बना दिया है।
जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्र अफरोज आलम साहिल ने इस तथाकथित इन्काउन्टर से सम्बंधित विभिन्न दस्तावेजों की प्राप्ति के लिए सूचना के अधिकार (RTI) के तहत लगातार विभिन्न सरकारी एवम् गैर सरकारी कार्यालयों का दरवाजा खटखटाया किन्तु पोस्टर्माटम रिपोर्ट की प्राप्ति में उन्हें डेढ़ वर्ष लग गए।
अफरोज आलम ने सूचना के अधिकार के अन्तर्गत राष्ट्रीय मानवाधिकर से उन दस्तावेजों की माँग की थी जिनके आधार पर जुलाई 2009 में आयोग ने अपनी रिपोर्ट दी थी। ज्ञात रहे कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने अपनी रिपोर्ट में दिल्ली पुलिस को क्लीन चिट देते हुए पुलिस का यह तर्क मान लिया था कि उसने गोलियाँ अपने बचाव में चलाई थीं।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा भेजे गए दस्तावेजों में पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अलावा पुलिस द्वारा कमीशन और सरकार के समक्ष दाखिल किए गए विभिन्न कागजात के अलावा खुद आयोग की अपनी रिपोर्ट भी है।
पोस्मार्टम रिपोर्ट के अनुसार आतिफ अमीन (24 वर्ष) की मौत तेज दर्द (Shock & Hemorrhage) से हुई और मुहम्मद साजिद (17 वर्ष) की मौत सर में गोली लगने के कारण हुई है। जबकि इन्स्पेक्टर मोहन चन्द्र शर्मा की मृत्यु का कारण गोली से पेट में हुए घाव से खून का ज्यादा बहना बताया गया है। रिपोर्ट के अनुसार तीनों (आतिफ, साजिद और एम0 सी0 शर्मा) को जो घाव लगे हैं वे मृत्यु से पूर्व ( Antemortem in Nature) के हैं।
रिपोर्ट के अनुसार मोहम्मद आतिफ अमीन के शरीर पर 21 घाव हैं जिसमें से 20 गोलियों के हैं। आतिफ को कुल 10 गोलियाँ लगी हैं और सारी गोलियाँ पीछे से मारी गई हैं। 8 गोलियाँ पीठ पर, एक दाएँ बाजू पर पीछे से और एक बाँई जाँघ पर नीचे से। 2 x 1 से0 मी0 का एक घाव आतिफ के दाएँ पैर के घुटनों पर है। रिपोर्ट के अनुसार यह घाव किसी धारदार चीज से या रगड़ लगने से हुआ है। इसके अलावा रिपोर्ट में आतिफ की पीठ और शरीर पर कई जगह छीलन है जबकि जख्म न0 20 जो बाएँ कूल्हे के पास है से धातु का एक 3 सेमी0 का टुकड़ा मिला है।
मोहम्मद साजिद के शरीर पर कुल 14 घाव हैं। साजिद को कुल 5 गोलियाँ लगी हैं और उनसे 12 घाव हुए हैं। जिसमें से 3 गोलियाँ दाहिनी पेशानी के ऊपर, एक गोली पीठ पर बाँई ओर और एक गोली दाहिने कन्धे पर लगी है। मोहम्मद साजिद को लगने वाली तमाम गोलियाँ नीचे की ओर निकली हैं जैसे एक गोली जबड़े के नीचे से (ठोड़ी और गर्दन के बीच) सर के पिछले हिस्से से और सीने से। साजिद के शरीर से 2 धातु के टुकड़े (Metalic Object) मिलने का रिपोर्ट में उल्लेख है जिस में से एक का साइज 8 x 1 सेमी0 है। जबकि दूसरा Metalic Object पीठ पर लगे घाव (GSW -7) से टीशर्ट से मिला है। इस घाव के पास 5ग1.5 सेमी0 लम्बा खाल छिलने का निशान है। पीठ पर बीच में लाल रंग की 4 x 2 सेमी0 की खराश है। इसके एलावा दाहिने पैर में सामने (घुटने से नीचे) की ओर 3.5 x 2 सेमी0 का गहरा घाव है। इन दोनों घावों के बारे में रिपोर्ट का कहना है यह घाव गोली के नहीं हैं। साजिद को लगे कुल 14 घावों में से रिपोर्ट में 7 घावों को बहुत गहरा (Cavity Deep) कहा गया है।
इनस्पेक्टर मोहन चन्द्र शर्मा के बारे में रिपोर्ट का कहना है कि बाएँ कन्धे से 10 सेमी0 नीचे घाव के बाहरी हिस्से की सफाई की गई थी। मोहन चन्द्र शर्मा को 19 सितम्बर 2008 को एल-18 में घायल होने के बाद निकटतम अस्पताल होली फैमली में भर्ती कराया गया था। उन्हें कन्धे के अलावा पेट में भी गोली लगी थी। रिपोर्ट के अनुसार पेट में गोली लगने से खून का ज्यादा स्राव हुआ और यही मौत का कारण बना। इन्काउन्टर के बाद यह प्रश्न उठाया गया था कि जब शर्मा को 10 मिनट के अन्दर चिकित्सकीय सहायता मिल गई थी और संवेदनशील जगह (Vital Part) पर गोली भी नहीं लगी थी तो फिर उनकी मौत कैसे हो गई? यह भी प्रश्न उठाया गया था कि शर्मा को गोली किस तरफ से लगी, आगे से या पीछे से? क्योंकि यह भी कहा जा रहा था कि शर्मा पुलिस की गोली का शिकार हुए हैं किन्तु पोस्टमाटम रिपोर्ट इसकी व्याख्या नहीं कर पा रही है क्योंकि होली फैमली अस्पताल जहाँ उन्हें पहले लाया गया था और बाद में वहीं उनकी मौत भी हुई, में उनके घावों की सफाई की गई, लिहाजा पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टर यह नहीं बता सके कि यह गोली के घुसने की जगह है या निकलने की। दूसरा कारण यह है कि शर्मा को एम्स (AIIMS) में सफेद सूती कपड़े में ले जाया गया था और उनके घाव यहीं (Adhesive Lecoplast) से ढके हुए थे। रिपोर्ट में लिखा है कि जाँच अफसर (IO) से निवेदन किया गया था कि वह शर्मा के कपड़े लैब में लाएँ। ज्ञात रहे कि शर्मा का पोस्टमार्टम 20 सितम्बर 2008 को 12 बजे दिन में किया गया था और उसी समय यह रिपोर्ट भी तैयार की गई थी।

(क्रमश: )

-अबू ज़फ़र आदिल आज़मी
मोबाइल: 09540147251

19.6.10

अपसंस्कृति


दुनिया की आप़ा धापी में शामिल लोग
भूल चुके है अलाव की संस्कृति
नहीं रहा अब बुजुर्गों की मर्यादा का ख्याल
उलझे धागे की तरह नहीं सुलझाई जाती समस्याएं
संस्कृति , संस्कार ,परम्पराओं की मिठास को
मुंह चिढाने लगी हैं अपसंस्कृति की आधुनिक बालाएं
अब वसंत कहाँ ?
कहां ग़ुम हो गयीं खुशबू भरी जीवन की मादकता
उजड़ते गावं -दरकते शहर के बीच
उग आई हैं चौपालों की जगह चट्टियां
जहाँ की जाती ही व्यूह रचना
थिरकती हैं षड्यंत्रों की बारूद
फेकें जाते हैं सियासत के पासे
भभक उठती हैं दारू की गंध -और हवाओं में तैरने लगती हैं युवा पीढ़ी
गूँज उठती हैं पिस्टल और बम की डरावनी आवाज़
सहमी-सहमी उदासी पसर जाती हैं
गावं की गलियों ,खलिहानों और खेतों की छाती पर
यह अपसंस्कृति का समय हैं

-सुनील दत्ता
मोबाइल- 09415370672