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31.5.10

लो क सं घ र्ष !: बुलबुल-ए-बे-बाल व पर -2

(पंखहीन बुलबुल)

जैसा कि ऊपर बताया गया ज़फ़र को मुल्क व दौलते-बादशाही बस नाम को ही मिली थी, वे सूरत ए हाल से बखूबी वाकिफ़ थे लेकिन उनके पास करने को कुछ नहीं था क्योंकि उस अहद में ज़माने ने ख़ासतौर पर हिन्दुस्तान के लिए और आमतौर पर आलमे मशरिक़ के लिए कुछ ऐसी करवट पलटी थी जैसा कि आजकल मौजूदा दौर में फिर पलटने लगा है। उसको सँभालना उन बुलबुले बे बालो पर के लिए ना मुमकिन था क्योंकि वे एक ऐसी हालत में थे कि दस्ते दुआ भी दराज़ करें कज़ाए इलाही को नहीं बदल सकते थे:-
दिखाती है जो शमशीर-ए- कज़ा अपनी जबरदस्ती।
नहीं दस्ते दुआ की काम आती, है सिपर दस्ती। (ढाल)
ज़फ़र की उल्टी क़िस्मत इतनी बिगड़ी हुई थी कि कज़ा ए इलाही के सामने उनकी दुआएँ कुछ काम न आने के साथ-साथ जिनसे उनकी उम्मीदे वाबस्ता थीं वे उनसे कह रहे थे ‘‘पहले तुम मर तो लो फिर तुम्हारी उम्मीदें पूरी हो जाएँगी।’’
मैंने कहा कहो तो मसीहा तुम्हें कहूँ।
कहने लगे कि कहना अभी पहले मर तो लो।।
दरअसल वह अपनी इस हालत पर सरापा एहतेजाज है और कभी कभार उनका यह अन्दरूनी एहतेजाज (असंतोष) यूँ जाहिर होता है और वे सोने के पिंजड़े को टुकड़े-टुकड़े करना चाहते हैं और कहते हैं:-
क़फ़स के टुकड़े उड़ा दूँ, फड़क-फड़क कर आज।
इरादा मेरा असीरान-ए-(कैदी) हम नफस यूँ हैं।
लेकिन उनके पास लब-बस्ता (बँधे होठों से) एहतेजाज के सिवा कुछ भी नहीं है और वे बस एहतेजाज-ए मख़्फ़ी (गुप्त) कर पाते हैं क्योंकि वे किसी और के यानी अंग्रेजों के बस में हैं और उनके पेंशन ख़्वार, जिसकी याद दहानी अंग्रेज हर मौके पर कराया करते हैं। ज़फ़र खून के आँसू बहाते हुए कहते हैं-
जो उनकी जान पर गुज़रे है वह वही जाने।
ख़ुदा किसी को जहाँ में किसी के बस न करे।
किसी के बस होने को न चाहने के बावजूद उनको अपनी बेचारगी का सख्त एहसास है। वैसे भी ये बे बालो पर बुलबुल अपने पिंजड़े से निकलेगा तो क्या करेगा? उसमें उड़ने तक की हिम्मत व सलाहियत बाक़ी नहीं है-
ऐ असीरों अब न पर में ताक़ते परवाज़ है
क्या करोगे तुम निकल कर दाम से, बैठे रहो।
फिर उसी मानी में कहते हैं-
खोल दे सैय्याद तू खिड़की क़फ़स की शौक़ से।
बुलबुले बे-बालो-पर ज़ालिम किधर उड़ जाएगी।
बिल्कुल इसी तरह ज़फ़र की मुन्दरजाज़ील (निम्नलिखित) खूबसूरत ग़ज़ल में उस बुलबुले बे-बालो-पर की उदासी, बेचारगी और हालते पुर मलाल की उम्दा तस्वीर कसी की गईं है, वे यूँ फरमाते हैं -
सूफियों में हूँ न रिन्दो में न मय-ख़्वारों में हूँ।
ऐ बुतो बन्दा खुदा का हूँ, गुनहगारों में हूँ।।
मेरी मिल्लत है मोहब्बत मेरा मजहब इश्क है।
ख़्वाह हूँ मैं काफ़िरों में ख़्वाहदींदारों में हूँ।
सफ-ए-आलम पे मानिन्दे नगीं मिसले क़लम।
या सियह रूयों में हूँ या सियह कारों में हूँ।
न चढँू सर पर किसी के, न, मैं पाँवों पर पड़ूँ,
इस चमन के न गुलों में हूँ न मैं ख़ारों में हूँ।
सूरत ए तस्वीर हूँ मैं मयक़दा में दहर के,
कुछ न मदहोशों में हूँ मैं और न होशियारों में हूँ।
न मेरा मोनिस है कोई और न कोई ग़मगु़सार,
ग़म मेरा ग़मख़्वार है मैं ग़म के ग़मख़्वारों में हूँ।
जो मुझे लेता है फिर वह फेर देता है मुझे,
मैं अजब इक जिन्से नाकारा खरीदारों में हूँ।
खान-ए-सैय्याद में हूँ मैं तायर-ए-दार
पर न आज़ादों में हूँ न मैं गिरफ्तारों में हूँ,
ऐ ज़फ़र मैं क्या बताऊँ तुझसे जो कुछ हूँ सो हूँ,
लेकिन अपने फ़ख्र-ए-दीं के क़फ़स बरदारों में हूँ।
जफ़र एहतेजाज और तक़दीरे ए इलाही पर रज़ा के आलम में पेंचओ ताब खाते थे कि 1857 ई0 में अचानक हिन्दुस्तान में अंग्रेज़ों के खि़लाफ़ एक तूफान बरपा हुआ। मेरठ से बग़ावत करके अपने अंग्रेज अफसरों को क़त्ल करने वाले सिपाही देहली चले आए और देहली पर काबिज होने के बाद उन्होंने बहादुर शाह ज़फ़र को अपनी तह़रीक का लीडर मुक़र्रर किया। ज़फ़र सिन रशीदा (वयोवृद्ध) थे और बाद में उड़ाने वाली अफवाहों के मुताबिक अक़्ली लिहाज से माज़ूर भी थे लेकिन उसके बावजूद वह इस तहरीक के अंजाम का अंदाजा बखूबी कर रहे थे क्योंकि उन्हें अंग्रेजों की ताक़त और अपने आसपास में मौजूद इलाही बख्श जैसे लोगों के काबिले यक़ीन न होने का इल्म था इसलिए उन्होंने शुरू में बग़ावत करने वालों को रोकने की कोशिश की लेकिन जब उन्होंने देखा कि इस सैलाब को रोकना नामुमकिन हैं तो वे भी उसमें बेअख़्तियार बहने लगे। फिर बेशुमार लड़ाइयाँ र्हुइं। बहुत सारे मासूमों का खून बहाया गया, अंग्रेजों ने देहली पर कब्जा कर लिया और मुग़ल खानदान को नेस्तानाबूद करके हिन्दुस्तान पर हुक्मरानी करने लगे और बहादुर शाह की औलाद को क़त्ल करके शहर दिल्ली को बर्बाद कर दिया।

-ख़लील तौक़आर

अनुवादक-मो0 जमील शास्त्री
साभार-चहारसू पत्रिका
प्रकाशित-रावलपिण्डी, पाकिस्तान

( क्रमश: )

लो क सं घ र्ष !: बुलबुल-ए-बे-बाल व पर -1

(पंखहीन बुलबुल)

20 जनवरी 1858ई0 को बवक़्ते सुबह दीवाने ख़ास क़िला देहली। यह हिन्दुस्तान की तारीख़ के लिए एक अहम मोड़ है। हिन्दुस्तान को गु़लामी की ज़जीरों में जकड़ने के लिए एक आख़िरी चाल चली जा रही है। आज हिन्दुस्तान की आज़ादी की आख़िरी किरन तारीकी के हाथों मिटाई जा रही है और हिन्दुस्तान ग़ुलामी के एक तवील (लम्बे) दौर में क़दम रखता है।
इस दिन क़िला-देहली के दीवाने ख़ास में देहली के आख़िरी ताजदार और मुग़ल ख़ानदान के आख़िरी चिराग़ बहादुर शाह ज़फ़र के मुक़दमे का पहला-पहला इजलास शुरू होता है। प्रेसीडेंट, मेम्बरान, वकील-सरकार मौजूद हैं। मुल्ज़िम मुहम्मद बहादुर शाह साबिक़ (भूतपूर्व) शाह देहली को लाया जाता है।
इजलास के मुजतमअ़ (इकट्ठा) करने और लेफ्टिनेन्ट कर्नल डास को प्रेसीडेंट बनाने के एहकाम पेश होते और पढ़े जाते हैं। अफसरान मुतअय्यिना (नियुक्त) के नाम मुल्जिम की मौजूदगी में पढ़े जाते हैं।
मुल्जिम से अदालत का सवाल-आपको मौजूदा मेम्बरान जेवरी (पंचगण) व प्रेसीडेंट के मुक़दमे की समाअत (सुनवाई) करने में कोई एतराज है?
जवाब-मुझे कोई एतराज नहीं है।
दुनिया की ज़िन्दगी कितनी फ़रेबदह, कितनी झूठी है कि देखिए बाबरी ख़ानदान के आखिरी चश्मो चिराग़, दिल्ली के आखिरी ताजदार और मुल्के सुखन के शहसवार बहादुर शाहज़फ़र, आज 20 जनवरी 1858ई0 को अपने महल के दीवाने खास में एक समाअ़त में एक मामूली मुल्ज़िम की हैसियत से लाए जाते हैं और उनसे सवाल किया जा रहा है कि ‘‘मौजूदा मेम्बरान जेवरी और प्रेसीडेंट के मुकदमा की समाअ़त करने में कोई एतराज है?’’
वह कैसे एतराज करते? उनसे उनका मुल्क, उनका शहर, उनकी रैय्यत, उनका महल, उनकी औलाद, उनके दोस्त-यार, मुख़्तसर उनका सब कुछ ज़बरदस्ती छीन लिया गया था और पूछा तक नहीं गया था कि आपको कोई एतराज है कि नहीं?
हिन्दुस्तान किस तरह गुलामी की ज़ंजीरों में गिरफ्तार हुआ और एक बादशाह मामूली मुल्ज़िम की हैसियत से अजनबियों की अदालत में लाया गया, यह बात किसी से मख़्फ़ी (छिपी) नहीं है, लेकिन आइए एक ज़वाल पज़ीर (अवनति की ओर अग्रसर) सल्तनत के आखिरी तख्त नशीन होने की वजह से बअज़ो (कुछ लोगों) की निगाह में पैदाइशी मुजरिम उन शायर बादशाह की ज़िन्दगी के औराक़ (पन्ने) उनकी शायरी से भी मदद लेते हुए पल्टें और देखें कि क़ज़ाए इलाही (ख़ुदाई हुक्म) इंसान को कहाँ से कहाँ पहुँचाती है।
बहादुर शाह ज़फ़र का पूरा नाम अबू ज़फ़र सिराजुद्दीन मुहम्मद बहादुर शाह था। उनकी वलादत (जन्म) 28 शाबान 1189 हिजरी मुताबिक़ 14 अक्तूबर 1775ई0 को उनके वालिद अकबर शाह सानी (द्वितीय) की वली अहदी के ज़माने में अकबर शाह की हिन्दू बीबी लालबाई के बतन (उदर) से हुई थी। ज़फ़र की परवरिश उनके दादा शाह आलम सानी के जे़रे साया (आश्रय में) हुई थी जो कि बदनसीबी में अपने पोते से कुछ कम नहीं थे। 22 अक्तूबर 1764ई0 को बक्सर के मुक़ाम पर अंग्रेजों के सामने शिकस्त खाने के बाद 1788ई0 में ग़ुलाम क़ादिर नामी एक ज़ालिम के हुक्म से शाह आलम सानी की आँखें निकाल दी गईं, फिर मरहठों के हाथों वह सालहा साल गिरफ्तार रहे, तावक़्त ये कि लार्ड लैक की फौजों ने जमुना पार करके देहली पर कब्जा किया और उनको फिर अपनी बराये नाम बादशाहत मिली। यह बादशाहत 1807ई0 में बहादुर शाह के वालिद अकबर शाह सानी को मुन्तक़िल (हस्तान्तरित) हो गई। अकबर शाह सानी का ज़माना कुछ आराम व सुकून का ज़माना था लेकिन देहली के लाल किले पर मुस्तमिल (आधारित) इस बादशाहत के लिए भी साजिशें और चपकुलशें (हड़बोंग) थीं और ज़फ़र और उनके भाई मिर्जा जहाँगीर के दरम्यान वली अहदी (उत्तराधिकार) के लिए कुछ अरसा मुक़ाबिला जारी रहा। इस मुक़ाबिले में उनके वालिद अकबर शाह, मिर्जा जहाँगीर की तरफदारी कर रहे थे। ज़फ़र अपनी जिन्दगी के इस बड़े इम्तिहान में यक व तनहा थे और आस-पास में मौजूद लोग मुख़्लिस नहीं थे। जैसा कि एक शेर में वे रक़मतराज हैं (लिखते हैं):-
अहले दुनिया तो नहीं कुछ भी मुरव्वत रखते।
मुँह पे मिलते ये हैं दिल में अदावत रखते।।
लेकिन चूँकि अंग्रेज अपने दस्तूर के मुताबिक वली अहदी बादशाह के बड़े बेटे का हक समझते थे और बहादुर शाह ज़फ़र की वली अहदी मसलहतन और बिल्खुसूस खुद अंग्रेजों के मफ़ादात (लाभ) के लिए ज्यादा मुनासिब थी लिहाजा उन्होंने वली अहदी के मामले में ज़फ़र का साथ दिया और आस पास में कोई मुरव्वत वाले शख़्स के न मिलने के बावजूद ज़फ़र अंग्रेजों के ज़रिए मुक़ाबिले में कामियाब रहे। 1253 हिजरी बामुताबिक़ 1837ई0 में अकबर शाह सानी के इन्तिक़ाल पर 25 अक्टूबर 1837ई0 को बहादुर शाह ज़फ़र तख़्त नशीन हुए।
वह तख्तनशीन होने को तो हुए थे लेकिन उनकी बादशाहत बस लाल क़िला के दीवारों के अन्दर थी। एक तरफ सर पर अंगे्रजों की तलवार और दूसरी तरफ शाही ख़जाना के खाली होने की वजह से किला के बाहर साहूकारों का घेरा और वे उस नकली सोने के क़फ़स (पिंजड़ेे) के अन्दर एक बालो पर टूटे हूए बुलबुल की सूरत अपनी ज़िन्दगी बसर करने लगे। ज़फ़र को उनके अपने मुल्क में, उनके अपने शहर में और हत्ता कि उनके अपने क़िले के अन्दर सारे काम अंग्रेजों के जे़रे अस़र (अधीन) अंजाम देने पड़ते थे। दिल्ली शहर या महल में जो कुछ भी हो अंग्रेजों के दस्तकुर्द (हस्तक्षेप) से छुटकारा हासिल नहीं कर पाता था। इस सूरत ए हाल को ज़फ़र यूँ बयान करते हैं:-

तस्मा तस्मा कर दिया बस काटकर आशिक़ की खाल।
वह फिरंगी जा़दे कलकत्ता जो सीखा नापना।।

-ख़लील तौक़आर

अनुवादक-मो0 जमील शास्त्री
साभार-चहारसू पत्रिका
प्रकाशित-रावलपिण्डी, पाकिस्तान

( क्रमश: )

29.5.10

लो क सं घ र्ष !: लोकसंघर्ष के उत्तर - २ : दूसरे गांधी की हत्या कब करोगे

प्रिय सुनील दत्त जी आप के सवालों के जवाब दिए जा रहे हैं। एक गाँधी की हत्या आप की मानसिकता के लोगो ने कर दी थी। दूसरे गांधी की हत्या कब करोगे :-


• जिस तरह का लेख हिन्दूओं को अपमानित करने के लिए लख़नऊ ब्लॉजगर्स असोसिएशन पर लिखा गया अगरहिन्दू भी उस पर उसी तरह की प्रतिक्रिया करें जैसी मुसलमानों ने सिमोगा में की कई दिनों तक हिंसा फैलाकर वसमाचार पत्रों के कार्यालयों को जलाकर की तो फिर परिणाम स्वारूप मारे गए हिन्दूओं और मुसलामानों के कत्लके लिए क्या लख़नऊ ब्लॉगर्स असोसिएशन जिम्मेवारी लेने को तैयार है?
भगवान न करे ऐसी कोई हिंसा हो लेकिन अगर होती है तो फिर इस वात की क्या गारंटी है कि लोकसंघर्ष, विस्फोटकाम उस दंगे के लिए हिन्दूओं व सुरक्षावलों को जिम्मेवार ठहराकर मुसलमानों को अगले दंगे के लिए भड़कानाशुरू कर देंगे?

उत्तर : यह आपका मानसिक दिवालियापन है लखनऊ ब्लॉगर अस्सोकोअतिओन में क्या लिखा गया मेरी जानकारी में नहीं है। कम्युनिटी ब्लॉग पर काफी लोग सदस्य होते हैं जिनका इदेन्तिफ़िकतिओन भी नहीं किया जाता है यही हाल आपका भी है। मेरी समझ से आप प्रखर राष्ट्रवाद के प्रणेता सुनील दत्त जी हैं। लेकिन इसका इदेन्तिफ़िकतिओन मेरे पास नहीं है । विर्तुअल दुनिया में बहुत सारी चीजें यथार्त नहीं होती हैं यहाँ पर कोई किसी का जमानतदार नहीं है। रहा द्रष्टिकोण का सवाल आपका द्रष्टिकोण गलत है। आप की बात तय है की हर चीज हिन्दू मुसलमान के नजरिये से देखेंगे । इंसानी भाव आपमें नहीं है। अभी तक जहाँ जहाँ दंगे हुए हैं उसका प्रेरणा स्रोत्र नागपुर मुख्यालय रहा है।


• जिस तरह आप लोग गुजरात दंगो के लिए हिन्दूओं को शूली पर टांगने की बात कर रहे हैं अगर उसी तरह हिन्दूभी हिन्दूओं को जिन्दा जलाने वाले 2000 मुसलिम आतंकवादियों ( जो वास्तविक रूप से दंगों के असली गुनाहकारहैं ठीक उसी तरह जिस तरह अनवर जमाल और सलीमखान लगातार हिन्दूओं के आस्थ केन्द्रों पर हमला कर नए दंगे की भूमिका तैयार कर रहे हैं)को सूली पर टांगने के लिए अभियान शुरू कर दें जिन्होंने ट्रेन रोककर आग लगाईथी तो ?

उत्तर : गुजरात में नर पिशाचों ने इंसानों की हत्या की। यह आपका हिन्दू मुसलमान का द्रष्टिकोण उचित नहीं है गुजरात में राज सत्ता ने धर्म आधारित स्वरूप धारण कर स्वयं दंगो में भाग लिया था इसीलिए उसके कई अधिकारी कारागार में हैं। किसी भी घटना के अपराधियों का अंतिम निष्कर्ष न्यायपालिका द्वारा सजा देना ही संभव है। जो होता रहता है। अगर किसी ब्लॉग के ऊपर कोई किसी की आस्था को धक्का पहुंचा रहा है तो पोर्न साईट मान कर उसे मत देखने जाइये। एक दुसरे की आस्था और विश्वास को डगमगाने का काम आप लोग करते रहते हैं तो कभी एक सिद्धक होता है तो दूसरा साधक ।

• अगर विस्फोट काम वास्तब में मानबता की पक्षधर हैं तो 23 बर्ष पहले हुए मेरठ दंगों जिसके लिए भी मुसलिमआतंकवादी जिम्मेवार थे का दोष हिन्दूओं व सुरक्षावलों पर डालकर मुसलिम आतंकवादियों को फिर से दंगाभड़काने के लिए भूमिका तैयार करने का क्या मतलब ?
सच्चाई पढ़ो जरा।


"The Beginning of the Tragedy


Large scale rioting began in the early hours of May 19, 1987 and the maximum damage was done just in course of a few hours. On that fateful morning, thousands of people, already incited by inflammatory speeches and slogans broadcast over public address system in mosques, barricaded the national highway, burnt 14 factories, hundreds of shops and houses, vehicles, and petrol pump, and cast scores of people into flames. The sporadic Hindu reaction was revengeful. Meerut continued in flames between May 19 and May 22, with murder, loot, explosions, and wild rumours further fuelling violence. "


उत्तर : वैसे तो यह प्रश्न विस्फोट डॉट कॉम से आप ने पुछा है लेकिन मेरठ दंगो की वास्तविकता से परचित होने के कारण आपके सेवार्थ लिख रहा हूँ मैं अपने छात्र जीवन में मेरठ शहर के इस्लामाबाद मोहल्ले में रहा हूँ। पूरे मोहल्ले में अकेला मैं गैर मुस्लिम था शाम को अक्सर वहां की चाय की दुकानों पर तमाम सारे लोगों से बात चीत होती रहती थी और कभी कभी तीखी और उग्र बातचीत हो जाती थी लेकिन कभी भी मारपीट की नौबत नहीं आई बगल में गैर मुस्लिम व्यापारियों का मोहल्ला है एकी दुसरे से जम कर कारोबार भी करते हैं लेकिन जब हिंदुत्व वाले तबके और प्रसाशन का साथ एक साथ हो जाता है तब मुस्लिम व्यापारियों को दबाने के लिए दंगे हो जाते हैं इन दंगो में व्यापक जान माल की हानि होती है लूट होती है मैं मुस्लिम्स को कोई प्रमाण पात्र नहीं जारी कर रहा हूँ जैसे हमारे धर्म में हिन्दुवात्व वादी लोग हैं जो विदेशों से संचालित होते हैं उनके बीच में भी गैर जिम्मेदाराना लोग व विदेशों से संचालित होने वाले लोग हैं। स्थानीय स्तर पर वोटों के व्यापारी इन सब कामो में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते हैं। सुरक्षा बालों विशेष कर पी.एस.सी के जवानो ने मलियाना मेरठ दंगो के बाद अपने घ रों को जो मनी आर्डर भेजे थे वह उनकी आय से अधिक थे। भैया सुनील दत्त सी.आइ.ए का प्रचार तंत्र मत बनो ।

• जिस तरह आप लोग हत्याओं की सालगिराह मनाने का चलन चला रहे हैं ठीक उसी चलन का पालन करते हुएअगर हिन्दू आज तक मुसलिम आतंकवादियों द्वारा की गई हिन्दूओं की हत्याओं की सालगिराह मनाना सुरू करदें तो ? उसके परिमामस्वारूप पैदा हुए बातबरण की बजह से होने वाली हत्याओं के लिए क्या विस्फोट कामजिम्मेवारी लेने को तैयार है अगर नहीं तो फिर ऐसी उकसाने वाली कार्यवाही क्यों ?


उत्तर: यह प्रश्न आपका विस्फोट डॉट कॉम से है जहाँ तक मेरी जानकारी है की भारतीय समाज में हत्याओं की सालगिराह मानाने का अभी तक कोई संचार प्राप्त नहीं हुआ हाँ यह जरूर है की हत्यारों के मरने पर लोग गम जरूर मना लेते हैं।

• जिस तरह आप गुजरात दंगो में हुई कुल 1500 हत्याओं के लिए सीधे हिन्दूओं व सुरक्षावलों को जिम्मेवारठहराते हैं क्या उसी तरह आपने कभी कशमीरघाटी में हुई 100000 मौतों व उजाड़े गए 500000 लोगों के लिएमुसलमानों व उनके सेकुलर नेताओं को कभी जिम्मेवार ठहराया क्या ?

उत्तर: गुजरात के दंगो में सीधे-सीधे वहां के मुख्यमंत्री और राज्य नियोजित दंगे थे। राज्य ने नियोजित तरीके से

अपने नागरिकों की हत्या की थी और आज भी उनके तमाम अधिकारी जेलों में हैं। कश्मीर के सम्बन्ध में आप के आंकड़े गलत हैं। कश्मीर घाटी में राज्य द्वारा कभी नागरिको का नियोजित हत्या नहीं किया गया है। लेकिन आप की आँखों का चस्मा हिन्दू और मुसलमान के रूप में देखने का आदि है इसलिए आप हर हत्या में हिन्दू मुसलमान ढूंढते रहते हैं जबकि मरता एक इंसान है।


• क्या आपने कभी सोचा कि क्यों वहीं पर दंगे होते हैं जहां पर हिन्दूओं की जनशंख्या कम होती है ?


उत्तर: बहुत सीधा सा उत्तर है जहाँ पर गैर हिन्दू आबादी हिन्दू ज्यादा है वहीँ पर हिंदुत्व वादी शक्तियां उनकी हत्या, लूटपाट करने की साजिशें रचती हैं और जैसे ही प्रसाशन के किसी अफसर का साथ मिलता है हत्याएं और लूट पात हो जाती हैं अगर प्रसाशन का सहयोग न मिले तो कहीं दंगा हो ही नहीं सकता है। मारना मुसलमान को होता है तो हिन्दू आबादी में षड्यंत्र क्यों रचा जायेगा।


• क्या आपने की सोचा कि अगर हिंसा हिन्दूओं ने फैलानी हो तो वो अपने बहुमत वाले क्षेत्रों में फैलायेंगे या फिरजहां वो कम हैं वहां पर ?


उत्तर : इससे पूर्व उत्तर दिया जा चुका है।

• आपको समझना चाहिए कि आज देश के कई ऐसे राज्य हैं जहां हिन्दूओं की जनशंख्या 90% से अधिक होने केवावजूद गैर हिन्दू मुख्यामन्त्री हुए हैं क्या ऐसी ही कल्पना लगभग 50% हिन्दू अबादी वाले जम्मू कसमीर में हिन्दूमुख्यमन्त्री होने की कर सकते हैं?

उत्तर: जम्मू एंड कश्मीर का राजा हरी सिंह था । जो ब्रिटिश साम्राज्यवाद के इशारों पर कार्य करता था लेकिन जंगे आजादी का योद्धा शेख अब्दुल्ला जम्मू कश्मीर को ब्रिटिश साम्राज्यवाद से आजाद कराने की लड़ाई लड़ रहा था। इस विषय में और अधिक जानना चाहते हैं तो कर्ण सिंह की आत्मकथा पढ़ लीजिये। जो हरी सिंह के लड़के हैं।


• अगर हिन्दू और मुसलमान एक जैसे हिंसक होते तो क्या 80% हिन्दू अबादी वाले सारे भारत से मुसलामनों कासफाया उसी तरह न कर दिया जाता जिस तरह कशमीर घाटी व उतर पूर्व के कई राज्यों से हिन्दूओं का सफायाकर दिया गया ?


उत्तर: हिंसा के लिए किसी एक धर्म को जिम्मेदार ठहराना उचित नहीं है । धर्म के नाम पर महाभारत रावण वध कलिंग विजय क्या आप भूल गए हैं । भारतीय सामंत राजा रजवाड़े छोटी छोटी बातों में एक दुसरे को नीचा दिखाने के लिए हमेशा युद्धरत ही रहते थे। आज भी प्यार करुना दया का सन्देश देने वाले हजरत ईशा का अनुयायी पूरी दुनिया में अपनी साम्राज्यवादी नीतियों के लिए सम्पूर्ण मानवता को नष्ट कर देने पर उतारू हैं। इतिहास के पन्नो को जरा ध्यान से देखिये मैं कुछ नहीं लिख रहा हूँ यह सब दर्ज है।

• क्या आपने आज तक कभी इस वात का विरोध किया कि बच्चों की छात्रवृतियों का आधार सांप्रदाए नहीं होनाचाहिए जो कि इस सेकुलर सरकार द्वारा वना दिया गया?


उत्तर: इस भ्रष्ट व्यवस्था में ना जाति के आधार पर कुछ होता हैं न धर्म के आधार पर कुछ होता है सब कुछ भ्रष्टाचार के साथ होता है हमारे छात्र जीवन में अनसुचित जाति की छात्र वृत्तियाँ सबसे जयादा सवर्ण जाति के छात्र फर्जी सरिफिकाते लगा के लेते थे। आरक्षण का खेल आपस में लड़ने का खेल है। इमानदारी से अगर दस सालों के लिए आरक्षण लागू किया गया होता तो उसको आगे बढ़ने की कटाई आवश्यकता नहीं थी। लेकिन हमारी नियत में खोट रही है इसलिए ये दिक्कतें पैदा होती हैं। विश्व स्तर पर जब हमारे देश का नाम आता है तो एक तबका अथाह सम्पदा का मालिक नजर आता है तो द्सुसरी तरफ गोबर से गेंहू निकाल कर खाने वाले लोग मिलते हैं। अगर आप चाहते हैं गोबर से गेंहू निकाल कर खाने वाले लोगों को उसी दशा में रहने दिया जाए तो आप की बार उचित है अन्यथा इमानदारी से अपने दिल पर हट रखकर उनके बारे में सोचिये फिर कोई सवाल नहीं उठेगा और उनके लिए कुछ करने की तमन्ना जागेगी।

• जिन बच्चों को आप सांप्रदाए के आधार पर बंचित करेंगे क्या वो कभी सर्वघर्मसम्भाव के रास्ते पर चल सकेंगे?


उत्तर: बच्चे बच्चे हैं हर बच्चे को उचित परवरिश पाने का अधिकार है आप ऐसी व्यवस्था के पोषक हैं जिसमें धीरू भाई अम्बानी, सुब्रत राय सहारा, जैसे लोग देखते ही देखते हजारो-हजार करों के स्वामी हो जाते हैं मेरा आपसे अनुरोध है की उनके जीवन परिचय को और अर्थशास्त्र को पुश्तकों में शामिल करवाइए ताकि उसको पढ़कर हर बच्चा धीरू भाई अम्बानी, सुब्रत राय सहर जैसे विशाल आर्थिक साम्राज्यों का मालिक बन सके।


• देखो मेरे भाई आज फूट डालो और राज करो की निती अपने चर्म पर है तो क्या आपकी कलम इस फूट डालो औरराज करो की निती के विरूद्ध नहीं चलनी चाहिए?


उत्तर: आप का लेखन उसी का हिस्सा है। आप साम्राज्यवादियो की इन्ही नीतियों का अनुसरण कर रहे हैं।


• अगर आप बास्तब में समझते हैं कि आतंकवादी सही हैं और सुरक्षाबल गलत तो फिर खुल के कहो न कि तुम आतंकवादियों के समर्थक हो फिर देखो जरा परिणाम क्या होता है?


उत्तर: कोई भी आतंकवादी लोकतान्त्रिक नहीं हो सकता है उसकी जितनी भी निंदा की जाए वह कम है लेकिन आतंकवादियों के नाम पर किसी समुदाय विशेष का मान मर्दन करना उचित नहीं होता है।

• जब देश सेकुलर है तो फिर देश में धर्म आधारित पाठशालाओं व उनको सरकारी सहयता का क्या मतलब?


उत्तर: यह आप राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ द्वारा संचालित सरस्वती शिशु मंदिर के प्रबंधको से पूछिए।

• जब देश सेकुलर है तो देश के मदरसों को आतंकवाद व अलगाववाद की जड़ साऊदी अरब से आर्थिक सहायताक्यों ?


उत्तर: ये सी.आइ.ए का प्रचार है विदेशी दान और चंदे सबसे ज्यादा विश्व हिन्दू परिषद्, राष्ट्री स्वयं सेवक संघ ले रहा है और जिसका समाज के हित में कोई उपयोग नहीं हो रहा है। देश की भावनात्मक एकता और अखंडता को तोड़ने के कार्य में खर्च हो रहा है।

• जब देश के मन्दिरों पर सरकार का कब्जा है तो फिर मसजिदें और चर्च सरकार के कब्जे में क्यों नहीं ?


उत्तर: मेरी जानकारी में कोई भी मंदिर सरकार नहीं संचालित कर रही है। हाँ , ट्रस्ट अगर है तो उसके विवाद में रिसीवर बैठाने का काम कर सकती है और करती है। सरकार तीर्थ यात्रियों की सुरक्षा के लिए काफी खर्च करती है चाहे तीर्थ यात्री किसी भी धर्म या समुदाय का हो। वैसे तो आपके तमाम सारे गुरुवों की चर्चाएं ब्लॉगजगत में हुई हैं लगता है उससे आपकी भी नाक ऊँची हुई होगी।

• .. जिन लोगों को भारत की सभ्यता संस्कृति, सुरक्षावलों, नयाय प्रक्रिया व संविधान पर कोई भरोशा नहीं तो क्याउनको आतंकवादियों की पनागाह पाकिस्तान या चीन जाकर नहीं बस जाना चाहिए?

उत्तर: श्रीमान जी, सभ्यता और संस्कृति को आप परिभाषित नहीं कर पा रहे हैं जब भारत की सभ्यताएं अनेकता में एकता पैदा करती हैं लेकिन आप चाहते हैं कबीर को, रसखान को, मालिक मोहम्मद जायसी को, अमीर खुसरो को, नजीर अकबराबादी की एक विशाल जमात को स्वर्ग से आप नीचे लाकर किस देश में भेजना चाहते हैं उनको नीचे लाने के लिए कोई उपाय सोचो तभी आप दूसरे देश में उनको भेज पायेंगे। वैसे यह लोग आपकी संकुचित विचारधारा से बहुत ऊपर हैं। आपकी विचारधारा का भारतीय सभ्यता और संस्कृति में कोई भी आधार रहा है न आज है अगर आप में थोड़ी क्षमता हो तो मुझे पकिस्तान या चीन भेजवा दें तो मैं आपका व्यक्तिगत रूप से आभारी रहूँगा।



सादर

सिर्फ आपका


सुमन

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लो क सं घ र्ष !: ब्लॉग उत्सव 2010

सम्मानीय चिट्ठाकार बन्धुओं,

सादर प्रणाम,


आज दिनांक 28.05.2010 को परिकल्पना ब्लोगोत्सव-2010 के अंतर्गत उन्नीसवें दिन के कार्यक्रम का लिंक -

तीन दिवसीय प्रथम अन्तराष्ट्रीय हिंदी ब्लॉग उत्सव लखनऊ में ....

http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_28.html

यह प्रस्ताव केवल ब्लोगोत्सव-२०१० से जुड़े रचनाकारों एवं शुभचिंतकों हेतु है http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_6266.html

मेरा व्यापार, यह अख़बार : डा. सुभाष राय

http://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_8411.html

राजेन्द्र स्वर्णकार की कविताएँ

http://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_3461.html

समान्तर मीडिया की दृष्टि से कितनी सार्थक है हिन्दी ब्लोगिंग ....... http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_9843.html

मयंक सक्सेना की कविता

http://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_1140.html

कौन बनेगा वर्ष का श्रेष्ठ ब्लोगर ?

http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_4332.html

बागवानी की एक शाम....

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अंतरजाल पर परिकल्पना के श्री रविन्द्र प्रभात द्वारा आयोजित ब्लॉग उत्सव 2010 लिंक आप लोगों की सेवा में प्रेषित हैं।

-सुमन
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28.5.10

लो क सं घ र्ष !: और कुछ लोग भी अफ़साना बना देते हैं

कुछ तो होता हैं मुहब्बत में जुनूं के आसार
और कुछ लोग भी अफ़साना बना देते हैं।

आज कल ‘एलियन्स‘ को लेकर लोग ऊँची उड़ाने भर रहे हैं। जितने मुंह उतनी बातें कुछ जानना चाहते हैं, कुछ कहानियाँ बनाने और सुनाने में मज़ा ले रहे हैं। किसी भी प्रतिकूल स्वभाव वाले को या परदेशी को ‘एलेयिन‘ कह सकते हैं। लेकिन जब से इस मामले में विख्यात वैज्ञिानिक स्टीफन हाकिंस ने दख़ल दिया है, कल्पनावादियों को अपनी बातों को साबित करने का वैज्ञानिक आधार हाथ लग गया है।
हाकिंस ने तो केवल इतना कहा कि पृथ्वी से बाहर श्रभी जीवन मौजूद है। परन्तु हम को उनसे सम्पर्क के अभियान नही चलाना चाहिये। इतनी सी बात पर समाचार छपने शुरू हुए। एक उड़ान तश्तरी विशेषज्ञ जर्मनी के हार्टविग हासडार्फ ने तो एक किताब ही लिख दी जिसमें से दावा भी कर बैठे कि अमेरिका अतंरिक्ष एजेन्सी ‘नासा के एक अंतरिक्ष-यान का दूसरे ग्रह के प्राणियोें ने अपहरण कर लिया है।
आप जानते हैं मनुष्य जाति दो भागों-बुद्धि-प्रधान एवं भावना प्रधान में विभाजित हैं। हम बहुत समय से ये दुआ करते रहे हैं ‘तमसो या ज्योर्तिगमय‘ परन्तु यह अभी तक पूरी नहीं हुई, क्योंकि भावनाओं में बहने वालों की संख्या अब भी बहुत हैं। यही वह लोग हैं जिनको रहस्य व रोमांच में मज़ा आता है, यही ‘मुँहनोचवा‘ जैसी अफ़वाहों मे पंख लगते हैं। यही भूत-प्रेत, चुड़ैल, जिन, शैतान की कहानियाँ गढ़ते और सुनाते हैं। यही तंत्र-मंत्र, दुआ तावीज़ करने वालों के चक्कर में फंसते हैं।
चाँद एँव मंगल पर अनुसनंधान हेतु अनेक देशों नें बड़े-बड़े अंतरिक्ष अभियान चला रक्खे हैं, परन्तु अब भी उन पर सुक्ष्म जीवों के अस्तित्व की संभावना की चांच तक हम नहीं पहुँच सके हैं। यहाँ तक कि हम अभी यह भी सुनिश्चित नहीं कर पाये हैं कि वहाँ पानी है भी या भी नहीं ? पिछले ज़माने में अगर काल्पनिक उड़ानों में लोग तल्लीन थे, वे दास्ताने अमीर हमज़ा, क़सानये आज़ाद तथा चन्द्रकांता की कहानियों में विश्वास करते थे तब कोई हर्ज नहीं था परन्तु अब इस विज्ञान के युग में यदि लोग उसी स्तर पर रहें तो आश्चर्य की बात ज़रूर है।
अन्त में हम आपका थोड़ा सा ध्यान मोड़ते हैं। शायरी के क्षेत्र में कल्पना एँव अतिश्योक्रि चल सकती है, परन्तु सुपर अतिश्योक्रि कि लिये ‘पदमावत‘ में जायसी का एक दोहा देखिये ये मान्यता है युद्ध में इतनी धूल उड़ी कि पृथ्वी छै रह गई, आसमान आठ हो गये- सत खंड धरती भई खंडा-ऊपर अष्ट भए ब्रम्हांड।


-डा0 एस0एस0 हैदर

27.5.10

लो क सं घ र्ष !: लोकसंघर्ष से पूछे गए सवालों का जवाब

• जब भारत सेकुलर देश है तो फिर कानून सांप्रदाए के आधार पर क्यों?

भारत एक बहुजातीय, बहुधर्मीय देश है। संविधान इस बात की इजाजत देता है की आप अपने धार्मिक रीति रिवाजो के अनुसार अपनी जीवन शैली निर्धारित कर सकते हैं इसीलिए प्रत्येक धर्म वालों को अपने धार्मिक रीति रिवाजों के अनुसार रहने की स्वतंत्रता है। जब कोई धर्म के मानने वाले सरकार से अनुरोध करते हैं कि उनके समाज में यह कुरीतियाँ है और इनको हटाने के लिए कानून बनाया जाए तो सरकार कानून बनाती है। जैसे सती प्रथा, बाल विवाह और दहेज़ प्रथा जैसी कुरीतियों पर सरकार ने कानून बनाये।

• जब संविधान धर्म के आधार पर आरक्षण की मनाही करता है तो फिर मुसलमानों को धर्म के आधार पर आरक्षण की मांग क्यों ?

श्रीमान जी, भारत लोकतान्त्रिक देश है। लोकतान्त्रिक ढांचे के तहत हर समुदाय, हर धर्म वाले को अपनी बात कहने का हक़ है कोई जरूरी नहीं है कि वह मांग मानी ही जाए। वास्तव में संविधान पत्थर की लकीर नहीं है की जिसको संशोधित न किया जा सके भारतीय संविधान में कई बार संशोधन किये जा चुके हैं और भविष्य में होते रहेंगे। समाज जैसे जैसे आगे बढ़ता है आवश्यकताएं बदलती रहती हैं। समय और काल के अनुरूप संशोधन होते रहेंगे।


• जब भारत धर्म आधारित राज्य नहीं तो फिर अलपसंख्यकवाद का नारा क्यों?

क्या आप इसको मानने के लिए तैयार हैं। आप तो हिंदुत्व वादी विचारधारा के तहत इसको हिन्दू राष्ट्र बनाना चाहते हैं जबकि बहुसंख्यक हिन्दू आपके खिलाफ है क्योंकि हिन्दू धर्म में घृणा और द्वेष का कोई समावेश नहीं है सिर्फ नागपुर मुख्यालय से संचालित होने वाले लोग तरह-तरह के किस्से गढ़ा करते हैं। मर्यादा पुरषोत्तम राम और कर्मयोगी कृष्ण ने कहीं भी जो सवाल आप उठाते हैं उन्होंने उठाये हैं। आप तो सिर्फ घृणा और द्वेष फैला कर इस देश के नागरिको में परस्पर मारपीट कराकर देश को अस्थिर करना चाहते हैं। अगर कोई अल्पसंख्यकवाद या बहुसंख्यकवाद का नारा देता है तो वह देश का भला नहीं चाहता है।


• अगर गुजरात में आतंकवादियों द्वारा हिन्दूओं को जिन्दा न जलाया जाता तो गुजरात में दंगे होते क्या?

गुजरात में नर पिशाचों ने लोगो को जलाने का काम किया नर पिशाचों में हिन्दू मुसलमान, सिख, इसी ढूंढना मेरा काम नहीं है । इसके लिए अमेरिकन साम्राज्यवाद के पिट्ठू नागपुर मुख्यालय से संचालित होने वाले लोग ही काफी हैं।

• जब मक्का मदीना के लिए प्रति मुसलमान 60000 रूपए की सहायता सरकार देती है तो फिर हिन्दूओं की धार्मिक यात्राओं(बाबा अमरनाथ गुफा यात्रा,महाकुंभ यात्रा...) पर विशेष टैक्स क्यों?

बड़े नासमझ हैं आप अभी हरिद्वार में कुम्भ मेला चल रहा था ज्सिकी व्यवस्था करने में करोनो व अरबों रुपये खर्च किये गए है। जिसमें हिंदुत्व वाले ठेकेदारों ने काफी घोटाले भी किये हैं। राम की पवित्र नगरी अयोध्या में सरकार करोनो रुपये खर्च करती है। इस देश के नागरिक कहीं भी अपनी संस्कृति के अनुसार कोई भी आयोजन करते हैं तो सरकार का दायित्व है की वह आपने नागरिको के स्वास्थ्य, सुरक्षा की व्यवस्था करे। अमरनाथ की यात्रा का भारत सरकार ही कराती है अगर सिख भाई पकिस्तान में अपने धार्मिक तीर्थ स्थानों की यात्रा करते है तो सरकार थोडा ही सही कुछ न कुछ करती है।


• जब आतंकवादियों द्वार लगातार देश को लहुलुहान किया जा रहा है तो फिर उनके मानबधिकारों का रोना क्यों?

जब तक निर्धारित न्याय व्यवस्था के अनुसार किसी को सजा नहीं हो जाती है। तब तक आतंकवादी कहना ही गलत है। सजा हो जाने के बाद भी न्याय व्यवस्था के अनुसार उसकी सजा उसको दी जाती है लेकिन आप जैसे लोग हर समय गाली गलौज करते हैं। यह अधिकार आपको न संविधान न न्याय व्यवस्था देती है। जज की एक योग्यता होती है यदि वह योग्यता आप में होती तो आप जज होते और उस समय भी आप व्यवस्था तोड़ कर कोई कार्य नहीं कर पाते।

• क्या आम जनता व आम जनता की सुरक्षा के लिए लड़ रहे सुरक्षावलों के कोई मानबाधिकार नहीं?

श्रीमान जी, सबसे पहले उन्ही के मानव अधिकार है और उनका ही प्रमुख कार्य है कि वह मानव अधिकारों की सुरक्षा करें हमारा काम नहीं है लेकिन जब वह व्यवस्था तोड़ते हैं तो ऊँगली उठती है । और जो लोग आम जनता के खिलाफ विधि व्यवस्था का उल्लंघन करते हैं वह अपराधी होते हैं और उसकी सजा विधि के अनुसार मिलती है और मिलनी चाहिए।

• जब आप बार-बार कहते हैं कि हमारी न्यायप्रक्रिया कमजोर है तो फिर आम जनता के जानमाल को खतरे में डालने वाले आतंकवादियों को मुठभेड़ में मारे जाने पर हाए-तौवा क्यों?

शायद आप को जानकार नहीं है की इस देश के अन्दर मुठभेड़ के नाम पर लाखो नवजवानों का क़त्ल किया जा चुका है। लेकिन आप तो जानबूझ कर अनजान बनते हैं। आप को अनजान बनाने के लिए नागपुर मुख्यालय सक्रीय रहता है। आये दिन अखबारों में आप भी पढ़ते होंगे की फर्जी मुठभेड़ में मारे गए नवजवानों के सशक्त परिवार वालों द्वारा सजायें भी करवाई जा रही हैं। सनातन हिन्दू संस्था, श्री राम सेना, प्रज्ञा ठाकुर एंड कंपनी को यदि फर्जी मुठभेड़ में मार दिया जाये तो आप को कैसा महसूस होगा। विधि व्यवस्था द्वारा निर्धारित मौत के अतिरिक्त कोई भी मौत दुखद है।

• जब आपलोग भारत माता व हिन्दू देवीदेवताओं का अपमान करने वाले एम एफ हुसैन का समर्थन करते हैं तो फिर हजरत मुहम्मद का अपमान करने वाले डैनिस कलाकार का विरोध क्यों?

यह सवाल आप का हिन्दू देवताओं का अपमान करने वालों से है। उन्ही से उत्तर ले लीजिये ज्यादा अच्छी बात होगी। हमारे लिए चाहे हजरत मोहम्मद हों या हिन्दू देवी देवता हम लोग किसी का अपमान नहीं करते है। रही एम.ऍफ़ हुसैन का वह कलाकार है कृपया कला को रहने दीजिये हमारे घर के पास लोधेस्वर महादेव का धार्मिक स्थल है जहाँ पर लाखो कावांरथी आते हैं जो आदि देवता शिव और पार्वती के सम्बन्ध में गन्दी-गन्दी गालियाँ देते हैं । कवितायेँ कहते हैं हमारे यहाँ के लोग उनको रोक रोक कर जगह जगह नाश्ता पानी करते हैं और वह लोग अपने को शिव का बाराती कहते हैं तो कुछ लोग पार्वती की तरफ होते हैं जो उसका उसी भाषा में जवाब देते हैं। इसका क्या करोगे।


• जब अधिकतर दंगे मुसलिमबहुल क्षेत्रों में आतंकवादियों द्वारा शुरू किए जाते हैं तो फिर उनका दोष हिन्दूओं पर क्यों?

आप ही लोग जानबूझ कर उनकी आर्थिक सम्रधता को लूटने के लिए लड़ने जाते हैं। हमारा शहर मुस्लिम बाहुल्य है कभी दंगा नहीं हुआ है। लेकिन हिन्दुवात्व वाले लोग जबरदस्ती उनसे भिड़ने की कशिश करते हैं उसके बाद भी लड़ाई नहीं होती है। हमर जनपद बाराबंकी हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है। हमारे जनपद के श्री काशिम शाह ने 18 वी शताब्दी में हंस जवाहर नाम से पूरा राम चरित्र उर्दू भाषा में लिखा था वहीँ हाजी वारिस अली शाह की दरगाह भी प्यार मोहब्बत का सन्देश देती है दुनिया में सतनाम पीठ बाराबंकी से ही शुरू हुई है जिसके संस्थापक जगजीवन साहब हैं। कबीर की भी शिक्षाओं को बाराबंकी जनपद ने नई दिशा दी है । आप की हिंदुत्व वाली विचारधारा के पास सिर्फ एक काम है की हल्दी में राम राज, पीसी धनिया में घोड़े की लीद , नकली खादें व नकली दवाएं बेचने का ही काम है। अक्सर गिरफ्तार होकर जेल भी जाते रहते हैं।

• जब संविधान हर नागरिक को अपनी रक्षा करने का अधिकार देता है तो फिर आतंकवादियों द्वारा हमला किए जाने पर हिन्दूओं द्वारा इस संबैधानिक अधिकार का प्रयोग करने पर आपको आपती क्यों?

कोई भी हिन्दू या मुसलमान कोई यह रोक नहीं है की विधि व्यवस्था के विरुद्ध काम करने वाले लोगों को गिरफ्तार न करे। सी.आर.पि.सी में प्राइवेट व्यक्तियों द्वारा गिरफ्तारी की व्यवस्था है। अपराधी-अपराधी है उसको हिन्दू मुसलमान में मत बांटो।


• जब आपको भारत की सभ्यता संस्कृति,सुरक्षावलों,नयाय प्रक्रिया व संविधान पर कोई भरोशा नहीं तो फिर आपको आतंकवादियों की पनागाह पाकिस्तान या चीन जाकर बसने पर दिक्कत क्या?

ये आप से किसने कह दिया। भारतीय सभ्यता और संस्कृति की आप की कोई अलग व्याख्या होगी। भारतीय सभ्यता और संस्कृति में बहुत कुछ समाहित है। आपके पास घृणा और द्वेष के अतिरिक्त कुछ नहीं है।

यदि कोई उत्तर समझ में न आवे तो फिर सवाल पूछ लेना। आप जो लिखते हैं वह एडोल्फ हिटलर की जेर्मन नाजी विचारधारा है फिर ब्रिटिश साम्राज्यवाद के आप समर्थक हुए और अब अमेरिकन साम्राज्यवाद से संचालित होते हैं। आप को इस देश में किसानो की आत्महत्याएं , भूख प्यास, महंगाई, भ्रष्टाचार आदि कुछ नहीं दिखाई देता है। अमेरिकन साम्राज्यवाद इस देश की एकता और अखंडता को नष्ट कर देना चाहता है इसलिए ऐसी बातों का प्रचार किया जाता है ।

सादर
सुमन
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लो क सं घ र्ष !: ब्लॉग उत्सव 2010

सम्मानीय चिट्ठाकार बन्धुओं,

सादर प्रणाम,


आज दिनांक 26.05.2010 को परिकल्पना ब्लोगोत्सव-2010 के अंतर्गत अठारहवें दिन प्रकाशित पोस्ट का लिंक-

एक सीमा तक करें शैतानियाँ, ना किसी का दिल दुखाना चाहिए।

http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_1497.html

अजित कुमार मिश्र की दो कविताएँ

http://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_844.html

हल्ला हुआ गली दर गल्ली। तिल्ली सिंह ने जीती दिल्ली।।

http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_7061.html

कविता रावत की दो कविताएँ

http://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_2453.html

अंग्रेज तो हिन्दुस्तान को आज़ाद छोड़ कर चले गए, लेकिन अपने पीछे हिंदी भाषा को अंग्रेजी का गुलाम बना कर गए!

http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_4631.html

सुरेश यादव की दो कविताएँ

http://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_9870.html

मैं तुम्हारा हूँ !

http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_7471.html

गोपाल जी की दो कविताएँ

http://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_5523.html

उनके बच्चे कैसे पँख निकलते ही आकाश मे उड़ान लेते हैं.........

http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_7016.html

प्रताप सहगल दो कविताएँ

http://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_9459.html

आओ, मेरे लाडलों, लौट आओ !!!

http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_5794.html

अमित केशरी की कविता : पंख

http://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_7682.html

ब्लोगोत्सव-२०१० की आखिरी शाम हिंदी ब्लॉग जगत के लिए एक यादगार शाम होने जा रही है !

http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_26.html

आजादी के लिये लड़ने वाले दीवानों ने क्या इसी स्वतन्त्र भारत की कल्पना की थी?

http://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_26.html


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26.5.10

लो क सं घ र्ष !: पुलिस में सुधार की ज़रूरत

पुलिस के ज़ुल्म के किस्से सबने ही सुने हैं। उनकी कार्यप्रणाली पर भी अक्सर सवाल उठते रहते हैं। पुलिस का काम क़ानून व्यवस्था को बनाए रखना है। वो ऐसा करती भी है पर फिर भी उसकी छवि कोई खास अच्छी नहीं है। इसके दरअसल कई कारण है। पहले हम आपको पुलिस की पृष्ठभूमि के बारे में बता दें ब्रिटिश काल में वर्दीधारियों को लाट साहबों की कठपुतली कहा जाता था। अंग्रेजों ने पुलिस का गठन इसीलिए किया था की वो सत्ताधारियों का हुक्म बजा सकें। स्वतंत्रता से पहले तक पुलिस का काम अंग्रेजों का हुक्म बजने से ज्यादा कुछ नहीं था। अंग्रेज़ पुलिस का इस्तेमाल इस तरह से करते थे की आम जनता के बीच ब्रितानी हुकूमत का खौफ बना रहे।
देश आजाद होने के बाद एक उम्मीद थी कि शायद पुलिस में कुछ परिवर्तन आएगा पर इस रवैये में कुछ खास अंतर नहीं आया। पहले अंग्रेज़ इसका दरुपयोग करते थे, अब राजनेता राजनेता गाहे -बगाहे इसका दुरूपयोग अपने राजनीतिक लाभ के लिए करते हैं। निचले स्तर से राजनीति का दखल शुरू होता है जो शीर्ष स्टार तक जरी रहता है पुलिस कमिश्नर या महानिदेशक वही बनता है जिसकी ट्यूनिंग सरकार से अच्छी हो इसके लिए सरकार वरीयता क्रम को भी नकार देती है जिसका सबसे बड़ा उदाहरण किरण बेदी का ही ले लीजिये राजनीतिक संरक्षण पा कर पुलिस और निरंकुश हो जाती है पुलिस एकमात्र ऐसा विभाग है जिस पर सब अपना अधिकार चाहते हैं यही नहीं स्थानीय स्तर के नेता भी पुलिस पर दबाव बनाए रखना चाहते हैं पर इसके लिए मोटे तौर पर सरकार ही ज़िम्मेदार हैद्यदरअसल 1861 एक्ट के अनुसार जिस पुलिस बल का गठन किया गया था उसके पीछे अवधारणा यही थी की पुलिस राजनीतिक दृष्टि से उपयोगी हो और सत्ता के हर आदेश का पालन करे चाहे आदेश कुछ भी क्यों न होंद्यपरन्तु आज़ादी मिलने के बाद भी यही व्यवस्था कायम रही हालांकि आज़ादी के बाद भारतीय पुलिस का गठन किया गया पर मूल ढांचा वही रहा जो ब्रिटिश सरकार ने दिया थाद्यजैसे जैसे राजनीति भ्रष्ट होती गयी पुलिस का दुरूपयोग भी बाधा बाद में शाह आयोग का गठन हाजिसने पुलिस के दुरूपयोग को रोकने की वकालत की परन्तु संस्तुति को नहीं माना गयाद्यसरकार का स्वार्थ इसमें निहित थाद्यहालांकि बाद में राष्ट्रीय पुलिस आयोग के गठन से ये उम्मीद जगी थी की अब शायद कुछ सुधार हो परन्तु वो भी मर गयीद्यउसके केवल कुछ कम ज़रूरी सुझाव माने गए
जानकार कहते हैं की सरकार कोई भी आये पर कोई इन सिफारिशों पर अमल नहीं करना चाहताद्यइसके बाद भी कई कमेटियां बनी मसलन रिबेरो कमेटीएपद्मनाभैया कमेटी एमनिमाथ कमेटीएसोली सोराबजी कमेटी परन्तु हर बार नतीजा वही धाक के तीन पात वाला रहा वेद मारवाह जो 1956 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं और दिल्ली के पुलिस आयुक्त के अलावाएझारखण्डएमणिपुर और मिजोरम के राज्यपाल भी रह चुके हैं कहते हैं किराज्नीतिक दल पुलिस सुधार में सबसे बड़ी बाधा हैं वे चाहते हैं कि पुलिस उनके इशारे पर काम करे 1981 की आयोग कि रिपोर्ट को ठन्डे बसते में डाल दिया गया और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद भी इसे लागू नहीं किया गया बल्कि एक मोनिटरिंग कमेटी बना दी गयी राजनेता पुलिस को अपना पर्सनल नौकर समझते हैं जब किसी राज्य का महानिदेशक मुख्यमंत्री के लिए दरवाजा खोलता हो तो निचले स्तर के पुलिसवालों के मनोबल पर इसका क्या असर पड़ेगा इसका अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं
वेद मारवाह के अनुसार वे पुलिस के पास अत्याधुनिक हथियारों और बाकी चीज़ों कि कमी भी मानते है जिस से पुलिस आतंकियों का मुकाबला करने में परेशानी महसूस करती हैद्यपुलिस वालों का वेतन भी कम होना उनके काम को प्रभावित करता हैद्यखासकर निचले कर्मचारियों के वेतन तो बढ़ने ही चाहियें उन पर काम का दबाव ज्यादा है और 1861 का ही पुलिस एक्ट अब भी चल रहा है उन्होंने राज्यपाल रहने के दौरान कई तरह के राजनीतिक दबावों का ज़िक्र अपनी पुस्तकष्इंडिया इन टार्मोइलष्में किया है
किरण बेदी ने भी पुलिस सुधार कि काफी वकालत की और वे हमेशा इसके लिए लडती रही। इनका इमानदार होना भी राजनेताओं को खटकता था। यही कारण है की उन्हें दिल्ली का पुलिस आयुक्त नहीं बनाया गया। इसकी भर्त्सना पूरे देश में हुई थी और सरकार की थू-थू भी पर सरकार बेशर्मों का कारवां जो होती है, उसे इसकी भला क्या परवाह?
हर पुलिस वाला भ्रष्ट नहीं होता और दोषी या भरष्ट अधिकारी को सजा मिलनी ही चाहिए चे वो पुलिस में हो या बाहरद्यबड़ा हो या निचले स्तर काद्यसबकी ज़िम्मेदारी अगर तय कर दी जाये और राजनेता पुलिस सुधार में दिलचस्पी दिखाएँ तो निशी ही तस्वीर बदल सकती है। हमें और आपको उम्मीद का दामन नहीं छोड़ना चाहिए क्योंकि जब तक सांस है तब तक आस है"

मुकेश चन्द्र

25.5.10

लो क सं घ र्ष !: देश हित में ....

भारतीय जनता पार्टी अपनी नीति और कार्यक्रम के अनुसार सब कुछ तय करती है राष्ट्र हित में क्योंकि वह एक राष्ट्रवादी पार्टी है और उसकी अपनी राष्ट्र की परिभाषा है भारतीय जनता पार्टी की परिभाषा के अनुसार राष्ट्र किसी भूभाग में बसने वाले लोगों का वह समूह है जो एक पंथ को मानने वाला और उसमें विश्वास रखने वाला है। भारतीय जनता पार्टी इसीलिए भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने के लिए प्रयासरत रहती है और उससे जुड़े हुए सामाजिक और धार्मिक लोग हिन्दू राष्ट्र स्थापित करने का राग अलापते रहते हैं। भारतीय जनता पार्टी के योगी आदित्य नाथ जो गोरखपुर से सांसद हैं कहते नहीं थकते कि वह हिन्दू राष्ट्र स्थापित करने के लिए भारत को फिर विभाजित करने के लिए तत्पर हैं। इसी प्रकार भाजपा से जुड़े हुए तमाम संगठन के लोग भारत भूमि से मुसलमानों को निकालकर हिन्दू राष्ट्र स्थापित करने की घोषणा करते रहते हैं और इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए वह भारत का एक भाग मुसलमानों को देने के पक्ष में हैं। जैसे कि भारत एक देश नहीं भाजपा के लोगों को विरासत में मिली हुई सम्पत्ति हो।

गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारतीय जनता पार्टी की लाइन पर काफी कुछ काम भी किया। आपराधिक विधि विज्ञान का सिद्धान्त है कि जान लेने के उद्देश्य से हमला करने वालों के विरूद्ध उतनी शक्ति का उपयोग करो जितना अपनी जान बचाने के लिए आवश्यक है, यदि उससे अधिक शक्ति का उपयोग किया जाएगा तो वह खुद हमलावर की श्रेणी में समझा जाएगा। गुजरात में इस सिद्धान्त का खुलकर मज़ाक उड़ाया गया। गोधरा काण्ड में जिनपर हमला किया गया बताया जाता है उन्होंने तो अपनी जान बचाने के लिए शक्ति का प्रयोग किया नहीं, लेकिन उनकी जान के बदले जान लेने का जो खुला नाच पूरे प्रदेश में हुआ वह शर्मनाक था लेकिन मोदी जैसा व्यक्ति उसका पक्षधर बनकर उसे सही बताता रहा है। यही नहीं कि उसने उसे सही करार दिया बल्कि पूरे गुजरात में नरसंहार के प्रायोजक के रूप में अपना किरदार निभाया।

आज एक गलत आदमी ने एक सही बात का समर्थन किया है। सम्भव है कि इस सही काम को समर्थन देने के पीछे उसका अपना कोई छिपा हुआ उद्देश्य हो क्योंकि गलत काम करने वाला जल्दी सही काम को समर्थन नहीं देता, जब तक कि उससे उसको स्वयं कोई लाभ न उठाना हो। फिर भी मोदी द्वारा सरकारों को माओवादियों के साथ संवाद का रास्ता निकालकर मसले को हल करना, बताया जाना उचित है। माओवादी कुछ भी हो हमारे देश का अंग हैं और अगर देश को राष्ट्रवाद के नाम पर तोड़ने वाला पक्षधर माओवादियों से बात करके देश को एक रखने की बात करे, खुशी की बात है। देश हित में राष्ट्रवाद के नाम पर देश को तोड़ने वाला व्यक्ति अगर कोई फैसला लेता है तो वह फैसला अच्छा और सराहनीय है क्योंकि फैसला देश हित में है और देश हित से बड़ा कोई हित नहीं होता।

मोहम्मद शुऐब

लो क सं घ र्ष !: ब्लॉग उत्सव 2010

सम्मानीय चिट्ठाकार बन्धुओं,

सादर प्रणाम,

आज दिनांक 24.05.2010 को परिकल्पना ब्लोगोत्सव-2010 के अंतर्गत सत्रहवें दिन प्रकाशित पोस्ट का लिंक-

ब्लोगोत्सव-२०१० : ..मॉल , यानी.....शोखियों में घोला जाये,फूलों का शबाब http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_24.html

बाघों को बेच कमा रहे अपना नाम : देवेन्द्र प्रकाश मिश्र

http://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_24.html

यार ये कैसी है इज्जत कांच की ?

http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_6459.html

चिराग जैन की कविता : अनपढ़ माँ

http://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_21.html

बजट का क्या? देख लेंगे बाद में और फिर क्रेडिट कार्ड किस मर्ज़ की दवा है ? http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_1970.html

अरुण चन्द्र राय की दो कविताएँ

http://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_8746.html

उदारीकरण की प्रक्रिया ने हमारे देश में एक नव धनाढ्य मध्यमवर्ग को जन्म दिया है http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_7203.html

अशोक कुमार पाण्डेय की कविता : माँ की डिग्रियाँ

http://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_3377.html

सबल और निर्बल के बीच की खाई को और चौड़ा करने की साजिश आज की मॉल संस्कृति http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_2482.html

कवि कुलवंत सिंह की कविता

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हमारे देश की अधिकाँश जनता की बुनियादी जरूरतें नहीं पूरी हो पातीं http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_3210.html

शील निगम की कविता

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यह मॉल है या कि अजायबघर है.. ?

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ब्लोगिंग को विचारों का साझा मंच बनाएं, गुणवत्ता का ध्यान रखें : देवमणि पाण्डेय

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पढ़िए और सुनिए श्री राजेन्द्र स्वर्णकार के द्वारा रचित और स्वरबद्ध रचना :मन है बहुत उदास रे जोगी !

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अंतरजाल पर परिकल्पना के श्री रविन्द्र प्रभात द्वारा आयोजित ब्लॉग उत्सव 2010 लिंक आप लोगों की सेवा में प्रेषित हैं।

-सुमन
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