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8.4.10

' को अहम् '...................??

क्या मैं हिन्दू हूँ  ?
यह सब एक बहुत बड़े मतलब से कह रहा हूँ. मेरी इक पुरानी पोस्ट ' राम की व्यक्ति परीक्षा -२ ' पर भाई ' नवीन त्यागी ' की एक टिप्पणी आयी है हाल में . 

कुछ ब्लोगर्स ने आजकल हिंदू संस्कृति को बदनाम करने का ठेका ले रक्खा है वो चाहे हिंदू त्यौहार हों अथवा हिंदू देवी देवता। और इससे भी बड़ा दुख जब होता है जब हिंदू समाज के ही कुछ लोग उनके समर्थन में टिपण्णी छोड़ते है।

इसलिए मेरा सभी ब्लोगर्स से अनुरोध है कि वे किसी अध्यन हीन व बुद्धि हीन व्यक्ति की ग़लत जानकारी को सच न माने।हिंदू धर्म की बुराई करो और अपने को हिंदू कहो ,ऐसा करने से कोई हिंदू नही बन जाता।

 उसका जबाब तो मैंने वहीं दे दिया है साथ ही डा.अमर कुमार जी की मेल से मिली टिप्पणी भी चस्पां कर दी है .


फिर भी .......


अगर  'हिन्दोस्तान' कोई मायने रखता है तो मेरे लिए तो वह  राष्ट्रीयता भी है मेरी , भारतीयता भी है मेरी , नागरिकता भी है मेरी और मेरी धरोहर भी . वह न लम्बी चौड़ी परिभाषा का मोहताज है न बहस का . क्योंकि वह मेरा स्वप्न की हदों तक संतोष देने वाला अभिप्राय है .मान है . सम्मान और  प्राप्य भी .  और मैं जानता हूँ मेरे जैसे करोड़ों का है. 

जो जानते हैं वो मानते हैं कि सभ्यताओं के इतिहास में यह सिर्फ़ हमारा हक ही नहीं , हमारे जीवन दर्शन का नैतिक आधार भी है. हमारी सबसे बड़ी ताकत भी . इस लिए इतिहास के इस मोड़ पर हमें बहस नहीं जरूरी. हमारे शाश्त्रों में जरूरी बहस हो चुकी है. ' वसुधैव कुटुम्बकम ' हम कह चुके . सच्चे मन से निभाना है .
 

एक बात साफ हो जाए. ' को अहम् ? ' 

और इतना कह लेने का मेरा (व्यक्तिगत नहीं ) क्या अधिकार है ? जायज है किसी से भी ये सवाल. 

उम्मीद करता हूँ मेरे जबाब में आस्था का अति बंधन न हो न विश्वास की अति मूर्खता . न बुद्धि, ज्ञान ,तार्किकता का अंहकार हो न शक्तिहीनता की विरासत . न हार की पीड़ा , न विजय का अतिरेक . न कल ,आज या आने वाले कल्पित कल की संभावित उपलब्धि के शेखचिल्ली का नया अवतार वाद . और मेरी राष्ट्रीयता और विश्व नागरिकता में कोई द्वंद ?  नहीं . बिलकुल नहीं . हाँ सामंजस्य बेहद जरूरी है .
 

अमेरिका में जब भी किसी अमेरिकी से निकटता हुयी तो अपनी भारतीयता बताने के बाद अक्सर पूछा गया "are you a hindoo"?(क्या तुम हिन्दू हो ).जबाब ? मैंने हमेशा अगली बारी पे वादा किया और वादा हमेशा ही पूरा किया.
क्या मैं हिंदू हूँ ? हम सबसे यह सवाल कभी न कभी पूछा ही गया होगा. मेरा मतलब है कि दुनिया में हर सख्स से उसका धर्म या आस्था . और दुनिया में हर जगह हर काल में . विदित इतिहास के हर मोड़ पर . इन्सान का धर्मं क्या है ? तुम्हारा धर्मं क्या है ? और इस सवाल और उसके जबाब में ना जाने कितना खून बहा है ,इतिहास गवाह है और आज तक भी वही जारी है . 

अक्सर हमारा ' धर्म ' क्या है इसका उत्तर हम एक पल में दे देते हैं . पर उत्तर हम जानते हैं ?  इसलिए नहीं कि हमने ' को अहम् ? ' का उत्तर पाया है . हम जानते हैं. क्योंकि हमें बता दिया गया रहता है . बचपन से. और हम उस दिए गए विश्वास को ही अपनी पहचान और संबल दोनों मान लेते हैं. अक्सर उसे बचाने की जिम्मेदारी भी (खास कर अगर फायदा हो रहा हो ). वगैरह वगैरह.
तो क्या इन्हीं कारणों से मैं हिंदू हूँ. और इसीलिए मैं गर्व से कहूं कि 'मैं हिन्दू हूँ ' ? और अगर कहने का साहस करता हूँ तो वह गर्व इमानदारी होगी ? क्या इस हिन्दू होने में गर्व से ज्यादा शर्म भी  नहीं छुपी है ? और शर्म का मतलब सिर्फ़ पराजय है ? और पराजय का मतलब सिर्फ़ लड़ाई के मैदान तक ही सीमित हो ? (मैं लड़ाई के मैदानों की जय पराजय को छोटा नहीं आंक रहा ) . और जय पराजय की तो परिभाषाएं भी वक्त वक्त में बदलती रहती हैं. खास कर कौन लिख रहा है , कौन लिखा रहा है . लिखने लिखाने वाले के हाँथ तलवार थी ,या पैसा था ,या ताकत थी ,या सब कुछ . निर्णय कराने की निर्णायक औकात भी. लेकिन समझाया तो सब धर्मों में (जाता रहा) है. 


मानवता , इंसानियत . 
और हमेशा इसके लिए कानून भी रहे हैं. मैं यही सब नहीं दोहराना चाहता. हम सभी कुछ न कुछ तो इतिहास जानते ही हैं. मैं फिलहाल अपना जबाब देना चाहता हूँ.

हाँ मैं हिन्दू हूँ. औरमेरे हिंदू होने में मुझे गर्व भी है . शर्म भी . फिलहाल तो अपने गर्व के बारे में कहना चाहता हूँ . ( अगर आप शर्म को प्राथमिकता दे रहे हों तो हजारों कारन हैं , लिखे हुए हैं , छपे हुए हैं और मैं उनसे सहमत हूँ ) .
 

मैं हिन्दू हूँ कि व्यक्तिगत आस्था और विश्वास की मुझे अबाध आजादी है . मैं किसी इश्वर को चाहे तो मानूं या न मानू . मानूं भी तो चाहे एक को मानूं , कईयों को मानूं , कुछ को न मानूं या कैसे मानूं , सबकी आजादी . और इतनी वाइड चोइस कि पूरे तैंतीस करोड़ से भी ज्यादा . और सब के सब लिस्टेड भी नहीं हैं . काम पड़ते हों तो अपना भगवान् पैदा कर लो . आपमें साहस /ज्ञान/मौका या धूर्तता , इनमे से कुछ या सभी कुछ  हो तो आप ख़ुद भी भगवान्  बन सकते हैं. 

' अहम् ब्रम्हास्मि ! ' 

और इन सबसे बढ़कर यह कि आपका कोई भी इश्वर हो (या कितने ही हों ) उसके साथ मेरा वाला रह सकता है .
हाँ मैं हिन्दू हूँ . मेरी इसी परिभाषा से आप भी हिन्दू हैं . आपभी और आप भी . हम सभी हिन्दू हैं . कमसे कम पैदा तो हिंदू ही होते हैं दुनिया में चाहे जहाँ पैदा हुए हों कोई भी कहीं  भी . और हिंदुस्तान में होने का तो सौभाग्य ही काफी है हम सब के लिए हिन्दू होने के लिए.
 

और इन सब से बढ़ कर, इसलिए नहीं कि आप अगर हिंदुस्तान में पैदा हुए हैं तो आपको हिन्दू ही होना पड़ेगा. आपके भीतर अगर हिन्दोस्तान है तो आप अपने को कुछ भी कह सकते हैं . जमीन से लेकर पूरे ब्रम्हांड तक इश्वर आपका है . मिल गया हो तो लगे रहें वरना मेरी तरह (या बुद्ध से लेकर आइंस्टाइन तक न जाने कितनों की तरह ) ढूंढते रहें . या फ़िर कबीर की तरह " मोको कहाँ  रे ढूंढें  ?.......      बन्दे मैं तो...... तेरे पास में "
 

लेकिन संविधान हिंदुस्तान का है . और हम ही ने बनाया है . हमें बदल देने तक का भी अधिकार है और यह अधिकार भी हमने ही ख़ुद को दिया है . दुनिया के बहुत सारे मुल्कों की तरह . और इस संविधान की खामियों से असहमत होने और बदलने के लिए कोशिश करना हमारा जायज हक है . हक है कि हम उसके नागरिक होकर, उसकी कसम खाकर , पाने को तो सब पायें जो यह मुल्क दे सकता है , बराबरी से . हक़ यह नहीं है कि कोई इस संविधान की यह कह कर तौहीन करे की "हमसे पूछ कर बनाया था ?" तब जबाब होगा कि हाँ पूँछ कर बनाया था , और इस बात को बीते काफी अरसा हो गया है . हक़ है कि मुल्क के लिए हथियार उठाओ सभी की तरह ( या न उठाओ ) हक़ ये नहीं है कि इसी मुल्क में रह कर , इसी की जमीन से , इसी के खिलाफ हथियार उठाओ और ये नारा लगा कर कि ' गजनी की वापसी है ' . आज का हिंदुस्तान गज़नवी का वैसे ही इस्तकबाल करेगा जैसे करना चाहिए था . यह आगे कहूँगा कि कैसा करना चाहिए था . अभी तो हिंदुस्तान को ही नहीं मालूम . करोड़ों एक दूसरे से ही पूँछ रहे हैं .
 

और जितना लिखा है , मैंने लिखा है . हिंदुस्तान को जितना जाना है उसकी बिना पर . दावा नहीं करता. दावा तो यह भी नहीं करता कि हिंदुस्तान का सबसे बड़ा नहीं तो क्या सबसे नालायक बेटा भी मैं नहीं हूँ . हाँ जो भी जो रंग मुझमे देखना चाहे सब है . जितने रंग हैं मैं सभी को प्यार करता हूँ . हिंदुस्तान भी . हाँ सभी रंगों में हमारे पास झंडे तो हैं पर हमारे झंडे में सब रंग नहीं आ पाते . आप मुझे सिर्फ़ भगवा भी देखेगे तो मैं आपको कलर ब्लाईंड  ( रंग अन्धांग  )  नहीं समझूंगा !

लेकिन जैसा कि डा. अमर कुमार जी ने कहा " बात बात में  ' हिंदुत्व '  खतरे में है " जो नारे लगा रहे हैं  तो हम भी ' गैर मजहबियों , से अलग नहीं लगेंगे धर्मांध .
नवीन त्यागी जी के इक ब्लॉग  ' हिन्दू , हिन्दी , हिन्दुस्तान ' की अद्यतन पोस्ट पर अपनी , 'टिप्पणी ' भी कर आया हूँ . शायद उभें मुझे और खुद को भी पहचानने में मदद मिले .

जय हिंद !

7 टिप्पणियाँ:

यह हिन्‍दूधर्म की विशेषता है कि वह आपने धर्म की आलोचना की छूट देता है तो गैर हिन्‍दूधर्म को साथ चलने की भी छूट देता है। अन्‍यथा इस दुनिया मे कोई अन्‍य इश्वर अपनी अलोचना की छूट नही देते है।

भारत की पहिचान भारतीयता मे छिपी हुई है जो देश को एकीकरण की सूत्र मे बाधे हुये है। भारत की सहिष्‍णुता का ही परिणाम है कि भारत मे भारत विरोधी भी संरक्षण पा रहे है, अन्‍यथा विश्व का कोई देश अपने अंदर देश द्रोहियों को संरक्षण नही देता है।

स्वयं को हिन्दू कहने में शर्म किस बात की? कम से कम बिल्डिंग्स पर विमान से हमला तो नहीं कर रहे ना! मुझे अमेरिका में रहते साल बीत गए, इंडियन बताने के बाद किसी ने नहीं पूछा की क्या हिन्दू हो! बलके 9/11 के बाद मसलन मुसलमान जरुर हम देसियों को समझा जाता रहा है, इसके प्रतक्ष व् परोक्ष अंदाजे काफी बार अनुभव हुए. यहाँ कहने का भाव यह नहीं की मुसलमान समझा गया तो कोई अनिष्ट हो गया, लेकिन यह कहना चाहता हूँ की हिन्दू लोग अपने धरम को अपनी बाजू पर बाँध कर नहीं चल रहे, जो जैसा समझे, ठीक है - ऐसा देखा गया है. भव्य मंदिर विदेशों में भी खूब हैं, लेकिन दुसरे धर्मों की तरह पब्लिसिटी के बिज़नस में अभी भी पिछड़े हुयें है. कुच्छ लोग यह भी समझते हैं की भारत मिडल ईस्टमें है. शिकागो की डेवोन मार्केट में एक हिस्से में (पाकिस्तानी) इस्लाम धरम की खुशबू आप को जरुर मिलेगी, लेकिन भारतीय हिस्से में हिन्दू धरम की मिसाल स्पस्ट मिले, ऐसा मुश्किल है, बनस्पत पटेल ब्रथर की दूकान के नुक्कड़ पर गत रविवार को भारतीय भाई व् बहने - जो ईसाई धरम से वास्ता रखते होंगे- बैंड बाजे के साथ गीत संगीत कर " ईशा की शरण में आइये " के पर्चे बाँट रहे थे. जब भारत में ही सब हो रहा है, तो यहाँ क्यों नहीं! आखिर पोप ने भी तो बोला ही था की एशिया तो पूरा अछूता पड़ा है! फिर भी, कोई दिक्कत नहीं, और यही हमारे भारत की सर्व धर्म्म समभाव की पहचान है. परन्तु राज जी! इतिहास से थोडा सीखिए! हिंदूं को बार बार धक्का दे कर साइड लाइन करने की बजाय उनका मनोबल बढ़ाने वाले लेख लिखिए, देशभक्ति का काम होगा!

आपकी आत्म विवेचना उचित है.

समग्र विकास के लिए, मैं तो यही मानता हूँ की, राष्ट्र जागरण धर्म हमारा.
और इसे भी मानना बेहतर है, हमारा संविधान ही हमारा धर्मग्रन्थ है.

- sulabh

@मुनीश जी विश्वास करें आपका सुझाव ही मेरा उद्देश है और हिंदुत्व की सहजतम परिभाषा से दुनिया को एकाकार कर देने का इरादा .अभी बहुत नहीं कह सकता .

राज जी:
धन्यवाद.

raj singh ji maine aapke kisi bhi lekh par koi tippani nahi ki.aaj pahli baar kar raha hoon.haan ye mera lekh ka hissa jarur hai.krapya dhyaan de ki vo tippani kisne ki hai.

aisa koi bhi vyakyi jo hindustan me rajkar hindu devi devtaon par galat tippani kare vah kutte ka bachcha hoga aur vo apni maa ki @%%&^&^^&^&& karega

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