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17.1.10

हम तो बचपन में भी अकेले थे

हम तो बचपन में भी अकेले थे










 जावेद अख्तर फ़िल्मी दुनिया के एक चिर-परिचित शख्स है. हमारी पीढ़ी जावेद अख्तर के लिखे गीतों, फिल्मों को सुनकर और देखकर जवान हुई है. आज उनका जन्म दिन है. इस अवसर पर उनके ' तरकश ' ( नज़्मों और ग़ज़लों का संकलन ) से मेरे पसंदीदा तीर मुबारक दिवस पर पेश कर रहा हूं. आशा करता हूं कि आपको मेरे पसंदीदा ' तरकश ' के तीर पसंद आएंगे.






 


                    

                     (1)

ख़ुशशक्ल१ भी है वो, ये अलग बात है, मगर
हमको ज़हीन२ लोग हमेशा अज़ीज़३ थे.




       






          

               (2)

हम तो बचपन में भी अकेले थे
सिर्फ दिल की गली में खेले थे.
इक तरफ़ मोर्चे थे पलकों के
इक तरफ़ आंसुओं के रेले थे.
थीं सजी हसरतें४ दूकानों पर
ज़िंदगी के अजीब मेले थे.
ख़ुदकुशी क्या दुखों का हल बनती
मौत के अपने सौ झमेले थे.
ज़हनों-दिल आज भूखे मरते हैं
उन दिनों हमने फ़ाके झेले थे.





 


           
                 (3)

सूखी टहनी तनहा चिड़िया फीका चांद
आंखों के सहरा५ में एक नमी का चांद.
उस माथे को चूमे कितने दिन बीते
जिस माथे की खातिर था इक टीका चांद.
पहले तू लगती थी कितनी बेगाना
कितनी मुब्हम६ होता है पहली का चांद.
कम हो कैसे इन खुशियों से तेरा ग़म
लहरों में कब बहता है नद्दी का चांद.
आओ अब हम इसके भी टुकड़े कर लें
ढाका, रावलपिंडी और दिल्ली का चांद.



                  (4) 
अपनी वजहे-बरबादी सुनिए तो मज़े की
ज़िंदगी से यूं खेले जैसे दूसरे की है.













       


                  (5)
ग़म होते हैं जहां ज़हानत होती है
दुनिया में हर शय७ की कीमत होती है.
अक्सर वो कहते हैं वो बस मेरे हैं
अकसर क्यों कहते हैं हैरत होती है.
तब हम दोनों वक्त चुराकर लाते थे
अब मिलते हैं जब फ़ुरसत होती है.
अपनी महबूबा में अपनी मां देखें
बिन मां के लड़कों की फ़ितरत८ होती है.
इक कश्ती में एक क़दम ही रखते हैं
कुछ लोगों की ऐसी आदत होती है.


                 (6)
इस शहर में जीने के अंदाज़ निराले हैं
होठों पे लतीफ़े हैं आवाज़ में छाले हैं.





              





                 

                       (7)
मुझको यकीं है सच कहती थीं जो भी अम्मी कहती थीं
जब मेरे बचपन के दिन थे चांद में परियां रहती थीं.
एक ये दिन जब अपनों ने भी हमसे नाता तोड़ लिया
एक वो दिन जब पेड़ की शाखें बोझ हमारा सहती थीं.
एक ये दिन जब सारी सड़कें रूठी-रूठी लगती हैं
एक वो दिन जब ' आओ खेलें ' सारी गलियां कहती थीं.
एक ये दिन जब जागी रातें दीवारों को तकती हैं
एक वो दिन जब शामों की भी पलकें बोझिल रहती थीं.
एक ये दिन जब ज़हन में सारी अय्यारी९  की बातें हैं
एक वो दिन जब दिल में भोली-भाली बातें रहती थीं.

एक ये दिन जब लाखों ग़म और काल पड़ा है आंसू का
एक वो दिन जब एक ज़रा सी बात पे नदियाँ बहती थीं.
एक ये घर जिस घर में मेरा साज़ो-सामां१० रहता है
एक वो घर जिस घर में मेरी बूढ़ी नानी रहती थीं.

१. अच्छी सूरतवाले.

२. समझदार.

३. प्यारे.

४. इच्छाएं.

५. वीराना.

६. धुंधला.

७. चीज़.

८. प्रकृति.

९. चालाकी.

१०. तामझाम.


प्रबल प्रताप सिंह





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