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17.1.10

अपनी प्रकृति के अनुसार काम न कर पाने से आत्‍मविश्‍वास पर बुरा प्रभाव पडता है !!

काफी हद तक जीन का प्रभाव और कुछ हद तक परिस्थितियों का प्रभाव , पर इतने विशाल दुनिया में कोई भी दो बीज एक जैसे नहीं होते । रंग रूप , और बनावट में भिन्‍नता तो हमें स्‍पष्‍टत: दिखाई पडती है , पर वो एक होने पर भी कभी कभी स्‍वभाव तक में अच्‍छी खासी भिन्‍नता देखी जाती है। वास्‍तव मे विचित्रता से भरी इसी दुनिया में सुंदरता , स्‍वाद और व्‍यवहार का भिन्‍न भिन्‍न रूप हमारे सोंचने और समझने की शक्ति को बढाने में सहायक है। इनके वर्णन करने के क्रम में इतने साहित्‍य लिखे गए , पर लेखकों के लिए अभी भी न तो भाव की कमी हुई है और न ही शब्‍दों की और न ही आगे कभी होगी।

जीन की विभिन्‍नता के कारण ही नहीं , परिस्थितियों की विभिन्‍नता के कारण भी हम मनुष्‍य भी एक दूसरे से बिल्‍कुल भिन्‍न हैं। इतिहास की किताबों में हमने जितने महापुरूषों के बारे में पढा है , सबका व्‍यक्त्त्वि बिल्‍कुल भिन्‍न दिखाई पडा होगा , यहां तक कि किसी की किसी से तुलना भी नहीं की जा सकती है। अपने ही परिवार में हमें महसूस होगा कि हर व्‍यक्ति की रूचि , आई क्‍यू बात चीत करने का तरीका सब भिन्‍न है, पर इसे स्‍वीकारने में हमें कठिनाई आती रहती है।क्‍यूंकि हम अपने सामने वाले को एक ढांचे में फिट देखना चाहते हैं , जो कदापि संभव नहीं। इसके बावूजद हम एक दूसरे के दोष निकालते हैं , उसे भला बुरा कहते हैं , अपनी बातें मनवाने को मजबूर करते हैं , पूरा पढें ।

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