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14.11.09

एक कतरा बचपन चाहिये

एक कतरा बचपन चाहिये
मेरा बचपन बहुत सुखमय रहा किसी राज कुमारी कि तरह घर मे किसी चीज़ की कमी नहीं थी ।सब की लाडली थी। मगर बचपन कितनी जल्दी बीत जाता है ।जवानी मे तो इन्सन के पास फुर्सत ही नहीं होती कि अपने बारे मे कुछ सोच सके। ये सफर तो हर इन्सान के लिये कठिनाईयों से भरा रहता और जब होश आता है तो बारबार बचपन याद आता है बचपन से जुडी यादें फिर से अपनी ओर खींचने लगती हैं--- लगता है बहुत थक गयी हूँ । क्यों ना कुछ बचपना कर लिया जाये---- क्यों ना कुछ पल फिर से जी लिया जाये ----- जब इस तरह सोचती हूं तो----- उदास हो जाती हूँ------- बात बात पर परेशान होना ---- जीवन से निराश होना ----- उससे तो अच्छा है बच्ची ही बन जाऊँ------- मगर ----- सब ने मिल कर मुझे इतनी बडी बना दिया है कि अब कभी बच्ची नहीं बन पाऊँगी----- नहीं जी पाऊँगी उन गलियों मे जहाँ कोई चिन्ता दुख नहीं था ---- नहीं मिल पाऊँगी उन सखियों सहेलियों से जो मेरी जान हुया करती थी------ नहीं बना पाऊँगी रेत के घर] नहीं खेल पाऊँगी लुकन मीटी----- नहीं तोड पाऊँगे जामुन अमरूद बेर और शह्तूत ----कैसे हो गयी बडी ----- मैने तो कभी नहीं चाहा था---- मुझे तो बच्ची सी बने रहना अच्छा लगता था---- जहाँ ना कोई रोक ना टोक------ ना बन्धन------ बस एक निश्छल प्यार---- प्रेम---- खेल--- हंसी----- मुक्त आकाश की उडान ।----- मै कभी बडी होना नहीं चाहती थी ------
अब समझ आता है कि अपने आप नहीं हुई मुझे बडा बनाया गया है। पहले मेरे पिता जी ने फिर पति ने फिर मेरे बच्चों ने ------उन लोगों ने मै जिन के दिल के बहुत करीब थी------ खुद बडा कहलाने के लिये मुझे मोहरा बनाया गया शायद----- जिसके नाम के साथ मेरा नाम जुडा था । पल पल मुझे ये एहसास करवाया गया कि अब मैं बच्ची नहीं हूँ।-- मगर शायद अंदर से वो मेरे दिल को बदल नहीं पाये अब तक भी बच्ची बनी रहने की एक छोटी सी अभिलाशा कहीं जिन्दा है।
जीवन मे हर आदमी के सामने चुनौतियाँ तो आती ही रहती हैं मगर हर कोई उनका सामना अपने ही बलबूते पर करे ये हर किसी के लिये शायद सँभव नहीं होता।कुछ जीवन के किरदार दिल के इतने करीब होते हैं कि चाहे वो दुनिया मे ना भी हों तो भी हर पल दिल मे रहते हैं। मगर उनका नाम लेते इस लिये डरती हूँ कि कहीं नाम लेते ही वो जुबान के रास्ते बाहर ना निकल जायें।
बचपन से एक आदत सी पड गयी थी कि कोई ना कोई मेरे सवाल के जवाब के लिये मौज़ूद रहता। और मै बडी होने तक भी बच्ची ही बनी रही। उसके बाद जीवन शुरू हुया तो अचानक मुसीबतों ने घेर लिया। मगर तब भी मेरी हर मुसीबत मे जो मेरे प्रेरणा स्त्रोत और मुझे चुनौतियों से जूझना सिखाया वो मेरे पिता जी थे।जब तक जिन्दा रहे मैं कभी जीवन से घबराई नहीं। बाकी सब रिश्ते तो आपेक्षाओं से ही जुडे होते हैं।और फिर उन रिश्तों से मिली परेशानियों का समाधान तो कोई और ही कर सकता है।
मैं जब भी परेशान होती या किसी मुसीबत मे होती तो झट से उनके पास चली जाती। और जाते ही उनके कन्धे पर अपना सिर रख देती । उन्हों ने कभी मुझ से ये नहीं पूछा था कि मेरी लाडाली बेटी किस बात से परेशान है। शायद मेरा आँसू जब उनके कन्धे पर गिरता तो वो उसकी जलन से मेरे दुख का अंदाज़ लगा लेते---- हकीम थे ---मर्ज ढूँढना उन्हें अच्छी तरह आता था। बस वो मेरे सिर पर हाथ फेरते अगर उन्हें लगता कि समस्या बडी है तो मेरे सिर को उठा कर ध्यान से मेरा चेहरा देखते और मुस्करा देते तो ~--- तो आज मेरी मेरी बेटी फिर से छोटी सी बच्ची बन गयी है\------- अच्छा तो चलो अब बडी बन जाओ------ ।और फिर कोई ना कोई बोध कथा या जीवन दर्शन से कुछ बातें बताने लगते । और इतना ही कहते कि मैं तुम्हें कमज़ोर नहीं देखना चाहता । तुम्हें पता है कि तुम्हारे दोनो भाईयों की मौत के बाद तुम ही मेरा बेटा हो और तुम्हें देख कर ही मै जी रहा हूँ । क्या मेरा सहारा नहीं बनोगी\-- और मै झट से बडी हो जाती \ मुझे लगता कि क्या इस इन्सान के दुख से भी बडा है मेरा दुख \ जीवन मे दुख सुख तो आते ही रहते हैं फिर वो मुझे याद दिलाते कि अपना सब से बडा दुख याद करो जब वो नहीं रहा तो ये भी नहीं रहेगा ! और उनकी बात गाँठ बान्ध लेती । सच मे जब कोई परेशानी आती है तो हमे वही बडी लगती है जैसे जीवन इसके बाद रुक जायेगा । आज लगता है कि उन्होंने ही मुझे बडा बना दिया। मै तो बचपन मे ही रहना चाहती थी।
उनकी मौत के बाद भी उन्हीं के सूत्र गाँठ बान्ध कर चलती रही हूँ । वो बडी बना गये थे सो बडी बनी रही मगर अब भी कहीं एक इच्छा जरूर थी कि कभी एक बार बच्ची जरूर बनुंम्गी जिमेदारियों से मुक्त हो कर अपना बचपन एक बार वापिस लाऊँगी शरीर से क्या होता है-----बूढा है तो--- रहे दिल मे तो बचपन बचा के रखा है ना------ इस उम्र मे श्रीर से यूँ भी मोह नहीं रहता बस आत्मा से दिल से जीने की तमन्ना रहती है।
पिता के बाद पति --- फिर तो दिल जिस्म दिमाग कुछ भी मेरा नहीं रहा------ सब पर उनका ही हक था ---- क्यों कि वो भी मेरे दिल के करीब थे इस लिये उन्हों ने भी सदा यही एहसास करवाया कि तुम अब बच्ची नहीं हो उनकी मर्यादा अनुसार----- उनकी जरूरत मुताबिक बडी बनो---और तब तो पिता की तरह कोई सिर पर हाथ फेरने वाला भी नहीं होता। उनके बाद बच्चे बच्चों के लिये तो तब तक बडे बने रहना पडता है जब तक वो जवान नहीं हो जाते----- उनके जवान होते ही वो अपने अपने जीवन मे व्यस्त हो गये ----- अब जब भी अकेली होती तो बचपन फिर याद आता मन होता बचपन मे लौट जाऊँ------ बिलकुल अब बच्चों की तरह व्यव्हार करने लग जाती------- फिर कभी परेशान होती तो पिता की जगह बेटे का कन्धा तलाश करने लगती------।कुछ दिन से पता नहीं क्यों मन परेशान सा रहता था । अपने किसी बच्चे से कहा तो उसने जवाब दिया कि----- माँ तुम्हें क्या हो गया है क्यों बच्चों जैसी बातें करने लगी हो\ वो भी सही था अब बच्चे तो माँ को सदा महान या बडी ही देखना चाहते हैं न। वो कैसे समझ सकते हैं कि इस उम्र मे अक्सर बूढे बच्चे बन जाते हैं। शायद बच्चों मे रह कर---- और उस दिन मुझे लगा कि आज सच मुच मेरे पिता जी चले गये हैं।सदा के लिये बडी बना कर् । क्या बच्चे अपने माँ बाप को थोडा सा बचपन भी उधार नहीं दे सकते\ आज मन फिर से बचपन मे लौट जाने को है ---- मगर जा नहीं सकती पहले पिता जी ने नहीं जाने दिया अब बच्चे भी मेरे पिता का किरदार निभा रहे हैं । काश कि जीवन के कुछ क्षण उस बचपन के लिये मिल जायें ------ तो शायद जीवन संध्या शाँति से निकल जाये। बस कुछ दिन बचपन के उधार चाहिये------ मैं बडी नहीं बनी रहना चाहती अब --- शायद इसका जवाब भी पिता जी के पास था मगर अब वो लौट कर नहीं आयेंगे ------- तब उनके पास जाने की जल्दी लग जाती है । क्यों कि अब मुझे फिर से बचपन चाहिये--------

2 टिप्पणियाँ:

आदरणीया माता स्वरूपणी,
क्या नाम दूँ उस पाकीजा रिश्ते को, जो हमारे बीच कायम हुआ है? मै और मेरी पत्नी जब आपसे मिले, उस दौरान का एक-एक क्षण हमारी स्मृतियों में हमेशा बसा रहेगा.
मुझे उस पल का एहसास नही भूल सकता, जब आप दरवाज़े पर खड़े हमारे आने इंतज़ार कर रहीं थी. बचपन में जब मै स्कूल से पढ़कर आता था तो मेरी बड़ी बहन ऐसे ही मेरी राह देखा करती थी.
आपसे विदा लेते हुए जो आर्शीवाद आपने दिया, उस समय मानो ये लगा कि सभी सांसारिक तथा अध्यात्मिक माताएं हमें दुआएं दे रही हैं.
आपका यह लेख पढ़कर एक बात कहूँगा कि बराहे मेहरबानी उन बेशकीमती नेमतों से वंचित न रहिये, जो खुदा ने आपको बख्शी हैं. माताश्री ! मैंने उस दिन "आपकी" जी हाँ, इस शब्द पर फिर से गौर कीजिये कि "आपकी" तीन पुश्ते देखी. आपकी नाती के रूप में आपका बचपन आपके पास है.
आपको तो "एक कतरा बचपन चाहिये" था. जबकि आपके पास जीने के लिए पूरा बचपन है.....बस एक एहसास की ज़रूरत है.
आपका बेटा,
अकबर.

अकबर बेटाजी बहुत बहुत धन्यवाद । मुझे भी शायद वो दिन हमेशा याद रहेगा। आपने मुझे जो सम्मान दिया उस काबिल शायद मैं नहीं थी फिर भी मेरे बेटे और बहु घर आये और क्या चाहिये था। मेरे पास बस प्रेमभाव ही है बकी आपकी सेवा नहीं कर सकी ये अफसोस जरूर रहेगा । जब भी नंगल आना हो जरूर आयें।बच्चिं को साथ ले कर यूँ तो मैं चार पीढियों की साक्षी अब भी हूँ मेरी माँ भी पास ही राज नगर मे रहती हैं। आपकोबहु को और बच्चिं को आह्सीर्वाद्

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