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24.10.09

मन्नाडे को दादासाहब फाल्के

२००७ के राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कारों में सर्वोच्च पुरस्कार "दादासाहब फाल्के" पुरस्कार हिन्दी फिल्मो के बेहतरीन महान गायक "मन्नाडे" को दिया गया हैं जिसे देखकर सुनकर बेहद खुशी की अनुभूति हुई ऐसा लगा की देर से ही सही आख़िर हमारे भारत वर्ष को मन्नाडे जैसे महान गायक की प्रतिभा का भान तो हुआ,उनके भारतीय सिनेमा को दिए गए योगदान के लिए उम्र के इस पडाव में उन्हें इस सम्मान से नवाज कर भारतीय सरकार ने यह तो जता ही दिया की उन्हें ऐसे महान लोगो की बहुत परवाह ज़रूरत हैं|

मन्नाडे जैसी शख्सियत कई सालो में एक बार ही धरा पर जन्म लेती हैं| यह भी बड़े गर्व की बात हैं की उन्होंने हमारे भारत जैसे देश में जन्म लिया जहाँ उनकी बेहतरीन प्रतिभा का पूर्ण जलवा देखने को मिला तथा इस प्रतिभा के चलते उन्हें अब उचित सम्मान भी दिया गया हैं|बहुत कम लोग ही जानते हैं की मन्नाडे ने अपनी संगीत यात्रा की शुरुआत बतौर संगीत निर्देशक की थी परन्तु बाद में उन्हें बतौर गायक प्रसिद्दी अधिक मिली,उन्होंने लगभग३५०० से अधिक गीत देश की विभिन्न भाषाओ में गाये हैं|मन्नाडे की गायकी विश्वस्तरीय कलाकारों के समान हैं,शुरू शुरू में इन्हे मुख्यतया:शास्त्रीय गायन से सम्बंधित ही गाने ज्यादा गाने को दिए गए जिन्हें इन्होने बखूबी से गाकर अपना लोहा उस ज़माने के बड़े बड़े गायक दिग्गजों से भी मनवाया|अपने ज़माने के मशहूर शोमेन राजकपूर जी के साथ इनकी जबरदस्त ट्यूनिंग जमी जिससे इस जोड़ी ने एक से बढकर एक सुपरहिट गीत दिए जो आज भी बेहद लोकप्रिय हैं|

मन्नाडे के गाए हुए गीतों में दिल का हाल सुने दिल वाला, भाई ज़रा देख के चलो,लागा चुनरी में दाग छुपाऊ कैसे,पूंछो कैसे मैंने रैन बिताई,हर तरफ़ अब यही अफसाने हैं,ये दोस्ती हम नही छोडेंगे,यारी है ईमान मेरा यार मेरी जिंदगी,कस्मे वादे प्यार वफ़ा सब वादे हैं वादों का क्या,मेरी भैंस को डंडा क्यों मारा,तू प्यार का सागर हैं
आदि गीत आज भी भुलाये नही भूलते|
बहुत कम लोग ही जानते हैं की श्री मन्नाडे ने श्री हरिवंश राय बच्चन के काव्य "मधुशाला" को भी अपनी आवाज़ दी हैं|इसी उम्मीद के साथ की मन्नाडे जैसी शख्शियत आगे भी बतौर धरोहर हमारा मार्गदर्शन करती रहेगी| उन्हीके गाये गीत की कुछ पंक्तिया.......................... आयो कहाँ से घनश्याम से मैं यह लेख समाप्त कर रहा हूँ |

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