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15.9.09

भ्रष्ट्राचार को देश की कार्यसंस्कृति का हिस्सा बनने से रोकना होगा !

क्या भ्रष्टाचार देश के लोगों की कार्यसंस्कृति बन गया है और कंही न कंही भ्रष्टाचार को शिष्टाचार के रूप मे स्वीकार करने की मौन स्वीकृति दी जा चुकी है । क्योंकि अवसरवादिता के इस युग मे जरूरत पड़ने पर अधिकाँश लोग अपना काम निकलवाने हेतु किसी न किसी रूप मे चाहे उपहार के रूप मे हो अथवा नकद राशि के रूप मे, घूंस देने मे परहेज नहीं करता है । नतीजतन देश के हर बड़े और छोटे कार्य बिना किसी लेनदेन के नहीं हो रहे हैं । भ्रष्टाचार की यह नदी चाहे ऊपर से नीचे की बात करें या फिर नीचे से ऊपर की बात करें , दोनों दिशाओं मैं बह रही है । या यह कहें की यह दो दिषीय और दो धारिया होकर विकराल और बड़ा रूप धारण कर चुकी है । और इससे अब न्यापालिका संस्था भी अछूती नहीं रह गयी है, जिसे की माननीय मुख्या न्यायधीश भी स्वीकारने मैं गुरेज़ नहीं कर रहे हैं । हमारे प्रधानमन्त्री भी इस पर अपनी चिंता जता चुके हैं ।
कंही न कंही हमारे समाज और पूर्वज ने भी इस भ्रष्टाचार के पौधे को सीचने का काम किया है । जहाँ हम घर के बच्चों को अपने अनुरूप कार्य करवाने हेतु उसके मनपसंद चीज़ का प्रलोभन देते हैं, वहीं अपने पक्ष मे कार्य करवाने हेतु बड़े लोगों द्वारा भी उपहार का आदान प्रदान भी किया जाता है । यंहा तक कि भगवान को मनाने हेतु एवं कार्य सफल हो जाने पर बड़ी से बड़ी एवं कीमती चीजों का चढाव देने से भी नहीं चूकते हैं । संभवतः यही आदान प्रदान का रूप आज विकृत एवं विकराल भ्रष्टाचार का रूप ले चुका है जो इस समाज और देश को खोखला कर रहा है ।
तो क्या भ्रष्टाचार एक कभी न सुलझने वाली एवं चिरस्थायी समस्या बन चुकी है । क्या इस पर अंकुश लगाना और इसे जड़ से खत्म करना नामुमकिन हो गया है । मुझे लगता है बिलकुल नहीं । जरूरत है तो राजनीतिक एवं प्राशासनिक स्तर पर दृढ इच्छा शक्ति से इस पर अंकुश लगाने एवं ठोस कदम उठाने की। लोगों को अपने अधिकार के प्रति जागरूक होने और जागरूक करने की । शिक्षा के व्यापक प्रसार प्रचार करने की । प्रशासनिक कार्यप्रणाली को पूर्णतः चुस्त दुरुस्त , जवाबदेह एवं पारदर्शी बनाते हुए कुछ इस तरह के सख्त कदम उठाने की ।
१. देश के लोगों का पैसा विदेशी बैंकों मे जमा करने पर रोक लगाना ।
२.१०० से बड़े नोटों का चलन बंद करना ( स्वामी राम देव बाबा के अनुसार ) ।
३. लघु अवधि मैं त्वरित एवं निष्पक्ष रूप से कार्यवाही पूर्ण कर भ्रस्ताचारियों एवं दोषियों को कड़ी सजा दिलवाना ।
४. प्रतिवर्ष शासन द्वारा क्षेत्र के विकास और जनकल्याण हेतु जारी की जाने वाली राशिः का जिलेवार , विभागवार और कार्यवार जानकारी एवं उसके अनुसार कार्यों की समीक्षा रिपोर्ट सार्वजनिक प्रस्तुत करना ।
५. प्रतिवर्ष सरकारी कर्मचारियों / अधिकारियों से लेकर विधायक , सांसद एवं मंत्रियों को अपनी संपत्ति का व्योरा सार्वजानिक करना एवं उनके द्वारा अपने कर्तव्यों के पालन मैं किये कार्यों का व्योरा प्रस्तुत करना ।
६. सूचना के अधिकार का दायरा और व्यापक कर सभी को इस दायरे मैं लाना । यंहा तक की निजी एवं गैर सरकारी संस्थाओं को भी इसके दायरे मैं लाना ।
७. विभिन्न महत्वूर्ण देश हित और जनहित से जुड़े न्यायालीन प्रकरण एवं विभिन्न महत्वपूर्ण जनहित और देश हित से जुड़े जांच एवं तफ्तीश प्रकरण की प्रगति रिपोर्ट प्रत्येक तीन माह मैं सार्वजनिक करना.
८. राज्य एवं देश की सरकारों द्वारा किये गया कार्यों का व्योरा , मंत्री , सांसदों और विधायकों एवं अधिकारियों के कार्यों का व्योरा प्रति तीन माह मैं सार्वजानिक करना एवं इनका जनता के सामने जनता की निगरानी मैं रखना ।
इस तरह के जवादेह और पारदर्शी पूर्ण ठोस कदम देश को भ्रष्टाचार से मुक्त करने मैं महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं ।

1 टिप्पणियाँ:

बहुत ही सुन्दर प्रसंग प्रस्तुत किया है | सचमुच ऐसा ही है की भ्रष्टाचार को मौन स्वीकृति मिल चुकी है | जब कीसी सरकारी कार्य को करने जाते है तो विलंब होती देख हम सोर्ट कट तलाश करते है| कोई ले दे के काम करने वाला| जितना भारत का पैसा स्विस बैंकों में जमा है अगर भारत में आ जाये तो फिर कमी क्या है |

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