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5.9.09

पीठ और पेट

सुबह हुईपीठ ने बोझ उठाना आरम्भ कियाकुछ पैसे मिलेउन पैसों से आटे, नमक, तेल खरीदे गएरोटियां बनीथोड़ी सब्जी थीपेट ताबड़तोड़ खाता गया
दोपहर बाद --
पीठ ने फ़िर बोझ उठायाफिर पेट ने खाने का ही काम किया
रात हुई है --
और पीठ पर लदकर सो गया बेहया भारी पेटनिश्चिंत, लापरवाह और परजीवी पेट को देख 'अपने देश के नेता याद आए।'
अभिराम सत्यज्ञ जयशील

1 टिप्पणियाँ:

वाह!!!क्या कहने भाई। थोडे ही शब्दों में बहोत कुछ! वाह!

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